Shri Bhagvat Gurukul

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सिख हिंदू एकता की मिसाल - गुरु तेग बहादुर जी "हिंद की चादर" बलिदान दिवस (24 नवंबर) पर खास..[डॉ. राजेंद्र साहिल]दुनिया को...
25/11/2025

सिख हिंदू एकता की मिसाल - गुरु तेग बहादुर जी "हिंद की चादर" बलिदान दिवस (24 नवंबर) पर खास..

[डॉ. राजेंद्र साहिल]

दुनिया को ऐसे बलिदानियों से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने अपनी जान दे दी, लेकिन सच्चाई का त्याग नहीं किया।
नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर भी ऐसे ही बलिदानी थे। गुरु जी ने अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के हक और विश्वास की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। इतिहास अपने विश्वास के लिए कुर्बानी देने वालों के उदाहरणों से भरा पड़ा है, लेकिन दूसरे के विश्वास की रक्षा के लिए कुर्बानी देने का सिर्फ एक उदाहरण है - नवम पातशाह की शहादत। औरंगजेब को दिल्ली की गद्दी पर बैठे 24-25 साल होने वाले थे। इनमें से पहले 10 साल उसने पिता शाहजहां को कैद में रखने और भाइयों से निपटने में बिताए। औरंगजेब के अत्याचार चरम पर थे। बात 1675 ई. की है। कश्मीरी पंडितों का एक जत्था पंडित किरपा राम के नेतृत्व में गुरु तेग बहादुर जी के दरबार कीरतपुर साहिब में आया और शिकायत की- हे सच्चे पातशाह, कश्मीर का सूबेदार राजा औरंगजेब को खुश करने के लिए हमारी प्रजा का धर्म परिवर्तन कर रहा है, आप हमारी रक्षा कीजिए। यह शिकायत सुनकर गुरु जी चिंतित हो गए। इतने में बाहर से मात्र नौ वर्षीय श्री गुरु गोविंद सिंह आ गए। अपने पिता को घबराया देख उन्होंने कारण पूछा। गुरु पिता ने कश्मीरी पंडितों की पीड़ा बताई। साथ ही कहा कि उनकी रक्षा तभी हो सकती है, जब कोई महापुरुष अपना बलिदान दे। बालक गोविंद राय जी ने सहजता से उत्तर दिया कि इस महान बलिदान के लिए आपसे बड़ा महापुरुष कौन हो सकता है? नवम पातशाह ने पंडितों को यह आश्वासन देकर वापस भेज दिया कि यदि कोई तुम्हारा धर्म परिवर्तन कराने आए तो कहना कि पहले गुरु तेग बहादुर का धर्म परिवर्तन करवाओ, फिर हम भी धर्म परिवर्तन कर लेंगे। नवम पातशाह औरंगजेब से युद्ध करने के लिए तैयार हो गए। बालक गोविंद राय को गुरुगद्दी सौंप दी और औरंगजेब से मिलने के लिए दिल्ली की ओर रवाना हो गए। औरंगजेब ने गुरु जी को गिरफ्तार करके कोठरी में बंद कर दिया। गुरु जी के सामने तीन शर्तें रखी गईं- या तो वे अपना धर्म बदल लें या कुछ कर्म दिखा दें या फिर शहादत के लिए तैयार रहें। गुरु जी ने पहली दो शर्तें मानने से इनकार कर दिया। नतीजतन, गुरु जी के साथ आए तीन सिखों- भाई मति दास, भाई सती दास और भाई दयाला को प्रताड़ित कर शहीद कर दिया गया। गुरु जी इन सबके लिए पहले से ही तैयार थे। उन्होंने कहा- मैं धर्म परिवर्तन के खिलाफ हूं और कृपा करना ईश्वर की इच्छा के खिलाफ है। गुरु जी को आठ दिनों तक चांदनी चौक की कोटवाली में रखा गया। उन्हें प्रताड़ित किया गया, लेकिन वे अनचाहे रहे और आखिरकार तारीख के कागज के अनुसार 24 नवंबर 1675 को चांदनी चौक में उन्हें शहीद कर दिया गया। गुरु जी के एक सिख भाई जैता जी ने गुरु जी का सिर आनंदपुर साहिब लाने की हिम्मत दिखाई। गुरु गोविंद सिंह जी भाई जैता के साहस से खुश हुए और उन्हें रंगरेते गुरु के बेटे की उपाधि दी। गुरु जी के सिर का अंतिम संस्कार आनंदपुर साहिब में किया गया। भाई लखी शाह और उनके बेटे गुरुजी के पार्थिव शरीर को अपने गांव रकाबगंज ले गए और घर में आग लगाकर गुरुजी को दफ़ना दिया। आज यहां गुरुद्वारा रकाबगंज, दिल्ली सजाया गया है। आज भी दिल्ली में गुरुद्वारा शीशगंज नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर की बेमिसाल शहादत की याद दिलाता है। आज भी लोग उन्हें हिंद की चादर कहकर याद करते हैं।





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24/11/2025

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23/11/2025

🌷🚩वैदिक धर्म को जानो🚩🌷
🌷🚩आध्यात्मिक प्रश्नोत्तरी🚩🌷
🔥1. ईश्वर किसे कहते हैं? वह कैसा है? वह कहाँ है?
उत्तर:- ईश्वर वह एक, निर्दोष, निराकार और सर्वशक्तिमान चेतन तत्त्व है, जो इस जगत् का कारण और सबका आधार है। ईश्वर सत् + चित् + आनंद, नित्य है और उसका स्वभाव शुद्ध-बुद्ध-मुक्त है। वह महानतम, सर्वशक्तिमान और सर्वसमर्थ है। अनगिनत रचनाएँ और आत्माएँ उसी ईश्वर में निवास करती हैं और वह ईश्वर स्वयं इन सबमें निवास करता है। ब्रह्मांड में ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ ईश्वर की शक्ति न हो।
🔥2. किसकी और कैसे पूजा करें?
उत्तर:- पूजा उसी निराकार, सर्वशक्तिमान, अजन्मा, सर्वसमर्थ ईश्वर की करनी चाहिए। पूजा का अर्थ है ईश्वर के समीप बैठना और ईश्वर के गुणों का ध्यान करना और उन्हें अपने जीवन में धारण करना। पूजा की विधि यह है कि एक एकांत स्थान पर बैठें जहाँ आप बिना हिले-डुले आराम से बैठ सकें। फिर मन की एकाग्रता के लिए तीन प्राणायाम करें। फिर आँखें बंद करके अपने हृदय या भौंहों के बीच ध्यान केंद्रित करें और मानसिक रूप से ओ३म् (O3m) का जाप करें। धीरे-धीरे जाप बढ़ाएँ और जितना अधिक ओ३म् का जाप बढ़ेगा, उतनी ही अधिक एकाग्रता आपको मिलेगी। पूजा के लिए अष्टांग योग के नियमों का पालन करना आवश्यक है। योग के आठों अंगों का दृढ़ता से पालन करें। कम से कम एक घंटे ईश्वर की पूजा करें।
🔥3. ईश्वर एक-देशी है या सर्व-देशी?
उत्तर:- ईश्वर एक-देशी नहीं है, ईश्वर सर्व-देशी या सर्वव्यापक है। क्योंकि एक-देशी वस्तु वास्तविक (real) होती है और वास्तविक वस्तु के गुण, कर्म और स्वभाव भी सीमित होते हैं। और एक-देशी या वास्तविक जन्म-मृत्यु, भूख-प्यास, हानि-लाभ, सुख-दुख आदि से नहीं बच सकता। और यदि ईश्वर एक-देशी होता, तो वह पूरी दुनिया का निर्माण नहीं कर सकता था और न ही जान सकता था कि सबके मन में क्या है। ईश्वर सर्वशक्तिमान है, इसलिए वह पूरी दुनिया बनाता है और सूक्ष्म परमाणुओं को जाग्रत करता है और सृष्टि की रचना करता है। एक-देशी वस्तु न तो सृष्टि बना सकती है और न ही सबके कर्मों का फल दे सकती है, क्योंकि एक-देशी होने पर वह सबके मन में नहीं हो सकता और न ही एक-देशी सर्वोच्च हो सकता है।
🔥4. यदि ईश्वर सर्व-राष्ट्रीय (सर्वव्यापक) है तो पत्थर की मूर्ति में क्यों नहीं?
उत्तर:- ईश्वर सर्वशक्तिमान है और सर्वशक्तिमान होने के कारण वह पत्थर की मूर्ति में भी है। लेकिन मूर्ति पूजा से ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि मिलन वहाँ होता है जहाँ आत्मा और परमात्मा दोनों होते हैं। और ऐसी जगह उपासक का स्थान है। उपासक की आत्मा मूर्ति में प्रवेश नहीं कर सकती। और दूसरी बात, मूर्ति जड़ है और आत्मा चेतन है और ईश्वर भी चेतन है। इसलिए, ईश्वर की जड़ मूर्ति से चेतना प्राप्त नहीं की जा सकती। ईश्वर की चेतना चेतन आत्मा से ही प्राप्त होगी।
🔥5. जीव अंश है या पूर्ण?
उत्तर:- जीवन नित्य है, न तो इसकी कोई शुरुआत है और न ही अंत। जीव चरम अंश नहीं है। जीव एक नित्य चेतन शक्ति है। अंश भौतिक पदार्थ का होता है, निरवयव (अंग रहित) का नहीं। केवल ईश्वर ही पूर्ण है। जीव सुख की खोज में अधिक बढ़ता है और ईश्वर की पूजा करता है। और कर्म फल खाता है। ईश्वर बंधन में है। इस दृष्टि से जीव अपूर्ण है, लेकिन जीव उस स्वरूप की दृष्टि से पूर्ण है कि आत्मा को बनाने वाला कोई नहीं है। वह इस दृष्टि से एक निर्दोष चेतन शक्ति है, आत्मा पूर्ण है।
🔥6. ईश्वर के साथ हमारा क्या संबंध है?
उत्तर:- व्यापक-व्यापक (सर्वव्यापक और उसमें रहने वाला), पिता-पुत्र, शिक्षक-शिष्य, राजा-प्रजा, प्राप्तकर्ता-साधक। ईश्वर, जीव और प्रकृति- ये तीनों चीजें शाश्वत हैं। तीनों के अपने गुण हैं, तीनों सूक्ष्म हैं। ईश्वर सर्वशक्तिमान है, प्रकृति अज्ञानी है यानी ज्ञान रहित, जड़ है।
🔥7. जन्म-मृत्यु के बंधन से छूटकर मोक्ष पाने के क्या उपाय हैं?
उत्तर:- ईश्वर के जीव अज्ञान, प्रकृति के विपरीत ज्ञान को दूर करना, वेद-आचरण, सत्संग, विवेक, वैराग्य, षट् संपत्ति (छह गुण), मुमुक्षुत्व, यज्ञ और योग निरर्थक कर्म हैं। कई जन्मों के निरंतर प्रयास एक निश्चित अवधि के लिए मोक्ष की ओर ले जाते हैं, जो एक निश्चित अवधि है- इकतीस नील, दस खरब और चालीस अरब वर्ष या सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय के छत्तीस हजार बार का समय।
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21/11/2025

*निराकार ईश्वर साकार सृष्टि की रचना कैसे करता है ?*

प्रश्न -- ईश्वर निराकार है तो वह बिना शरीर के कैसे कार्य करता है ? निराकार से निराकार की ही उत्तपत्ति होती है तो वह साकार सृष्टि की उत्तपत्ति कैसे करता है ?

उत्तर -- उक्त प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए हमें वैदिक सिद्धान्तों की जानकारी अवश्य प्राप्त करनी चाहिए। वही हमारे सभी प्रश्नों का आधार है और समस्त प्रश्नों का समाधान भी है।
इन वैदिक सिद्धांतों में सबसे प्रथम ईश्वर का स्वरूप आता है कि ईश्वर निराकार है अर्थात उसका कोई रूप नहीं है । वह निराकार होते हुए भी अपने समस्त कार्य बिना किसी शरीर के या बिना किसी अन्य सहायता से करता है। अब प्रश्न पैदा होता है निराकार एक साकार सृष्टि की कैसे रचना कर सकता है ?
इसका उत्तर बहुत ही सरल है जिस प्रकार हम मनुष्य एक कुर्सी का निर्माण करते हैं उसी प्रकार ईश्वर सृष्टि का निर्माण करता है। यहां हम का अर्थ शरीर नहीं है आत्मा है क्योंकि यह शरीर तो एक साधन है जो उस कार्य करने में सहायता देता है किंतु वास्तविक कार्य तो हमारे शरीर में स्थित आत्मा है वह करता है। इसके ज्ञान, इच्छा और प्रयत्न से यह शरीर समस्त कार्यों को करने में सफल हो पाता है। इसका अर्थ यह हुआ की आत्मा जो इस कार्य का कर्ता है वह निराकार है उस निराकार आत्मा ने साकार कुर्सी का निर्माण किया। ठीक उसी प्रकार निराकार ईश्वर ने साकार सृष्टि का निर्माण किया लेकिन वहाँ साधन या माध्यम प्रकृति है।
सृष्टि की रचना में तीन अनादि तत्व कार्य करते है ईशवर , जीवात्मा और प्रकृति।

यदि ईश्वर साकार होता तो वह सृष्टि का निर्माण करने में पूर्णतया असफल होता। साकार शक्ति अथवा व्यक्ति कभी भी संपूर्ण सृष्टि का निर्माण कर ही नहीं सकता क्योंकि साकार में एकदेशीय भाव आ जाता है यदि ईश्वर साकार होगा तो किसी एक देश या जगह में उपस्थित होगा और जब एक स्थान पर होगा तब दूसरी जगह में उपस्थित नहीं हो होगा। इससे ईश्वर की सर्वव्यापकता वाला मौलिक गुण भी समाप्त हो जाएगा। सर्वव्यापकता के गुण के समाप्त होते ही ईश्वर सृष्टि का निर्माण नहीं कर पाएगा और ना ही उसे चला पाएगा, उसकी देखभाल नहीं कर पाएगा, इसीलिए ईश्वर का निराकार होना आवश्यक भी है और उचित भी है। इस प्रकार ईश्वर का सृष्टिकर्ता रूपी गुण भी उसके निराकार रूपी गुण पर आधारित है। अन्यथा वह सृष्टिकर्ता नहीं बन पाएगा।
जीवात्मा शरीर के भीतर होने के कारण शरीर के सारे कार्यों को क्रिया देता है और शरीर के बाहर के पदार्थों को शरीर से क्रिया देता है।क्योंकि यह आत्मा शरीर के बाहर उपस्थित नहीं है। परमात्मा बाहर भीतर सर्वत्र विद्यमान है इसीलिए उसे शरीर की जरूरत नहीं पड़ती है सारे संसार में व्याप्त होने के कारण सारे संसार को क्रिया देता है। वह समस्त संसार मे भी है और संसार के बाहर भी, वह सृष्टि में ओतप्रोत है, इसीलिए वह यह कार्य स्वयं बिना किसी की सहायता के बड़ी आसानी से कर लेता है।
बाहर की चीजों को बनाने के लिए हाथ पैर की आवश्यकता होती है भीतर के लिए नहीं।परमात्मा से कोई भी चीज बाहर नहीं है इसीलिए उसे शरीर की आवश्यकता नहीं है ।
यदि यह कहा जाए कि साकार ही किसी साकार को बना सकता है तब यह प्रश्न होता है कि यदि हाथ पैर से कोई चीज बनती है तो हाथ पैर को किसने बनाया ? हाथ पैर भी तो बने हुए हैं । हाथ पैर बिना हाथ पैरों के बन सकते हैं तो सृष्टि के पदार्थ बिना हाथ पैरों के क्यों नहीं बन सकते। माता के पेट में जो बच्चा बन रहा है क्या वह हाथ पैरों से बनता है ? पृथ्वी पर नाना प्रकार के वृक्ष पौधे को क्या हाथ पैरों से बनाया व उगाया या बढ़ाया जा रहा है ? फिर यह भी प्रश्न उठेगा कि साकार ईश्वर को किसने बनाया ?
सकार से सकार का निर्माण हो रहा दिखाई देता है लेकिन उस सकार के पीछे निराकार चेतन तत्व दिखाई नही देता।यही ज्ञान और अज्ञान में अन्तर है।यह जो विशाल सृष्टि देख रहे हैं क्या उसके लिए ईशवर को जन्म लेना पड़ा ? तब ईशवर को किसने साकार किया ? हर साकार वस्तु के पिछे निराकार चेतन तत्व कार्य कर रहा है। मृत शरीर साकार है क्या वे निर्माण कर लेगा ? शरीर में आत्मा और ब्रह्मणड में परम आत्मा ही कार्य कर रही है।
🍁 यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूंषि पश्यन्ति
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥ – केनोपनि० ॥ – सत्यार्थ प्र० २५४
अर्थ -जो आंख से नहीं दीख पड़ता और जिस से सब आंखें देखती है , उसी को तू ब्रह्म जान और उसी की उपासना कर । और जो उस से भिन्न सूर्य , विद्युत और अग्नि आदि जड़ पदार्थ है उन की उपासना मत कर ॥
🍁ईशा वास्यमिदं सर्व यत्किंच जगत्यां जगत् - यजुर्वेद ४०-१
अर्थ -इस गतिशील संसार में जो कुछ भी है निराकार ईशवर उस सब में बसा है।
🍁एषा सर्वेषु भुतेषु गूढ़ो आत्मा न प्रकाशते
दृश्यते तु अग्रयया बुद्धया सूक्षमया सूक्ष्मदशिर्भि: कठोपनिषद
अर्थ -वे प्रमातमा सब प्राणियों अप्राणियो में छिपा हुआ है। वे सामने नही है। सूक्षम दृष्टी वाले लोग अपनी तीव्र और अपनी सूक्षम बुद्धी के द्वारा उसे जान लेते है।

अतः यह स्पष्ट हो गया कि निराकार भी साकार की रचना कर सकता है या यूं कहें निराकार ही साकार की रचना कर सकता है तो ज्यादा उचित होगा।

20/11/2025

Children should listen to their parents because they are the first guru (teacher) and provide guidance on character development and values. Respecting parents is seen as a fundamental duty (dharma), which helps the child learn from their parents' actions and experience, and ultimately leads to personal and spiritual growth.

16/11/2025

प्रश्न -: ईश्वर तक पहुंचने के लिए हर एक मत सम्प्रदाय अपना रास्ता ही ठीक बताता है और दुसरे को ग़लत । फिर भी कोई तो एक रास्ता है जिसे ठीक कहा जाए , वे कौन सा है ??
उत्तर - ईश्वर तक पहुंचने का यह अर्थ नही समझना चाहीए कि ईश्वर ने बहुत बड़े फासले पर कोई अरामदायक कोठी या स्वर्ग लोक बना रखा है और वहाँ हमें जाना है | परमात्मा तो हर वक़्त हमारे निकट ही है लेकिन हमारा ध्यान वहाँ नहीं है जिससे हम उस तक पहुँचने के ढंग जानने में ही जीवन भर भटकते रहते है । हमें तो केवल उस प्रमात्मा का ध्यान करना है और उसका एक ही तरीका है जो योग द्वारा धारण करके ध्यान में लाकर समाधी तक पहुँच कर उस प्रमात्मा से रूबरू होना है । क्या इससे अलग कोई और तरीका हो सकता है ? कभी नही ।
एक प्रश्न करता हूँ कि अगर कोई आदमी अपना मुँह शीशे में देखना चाहे तो कैसे सम्भव होगा ? शीशा साफ होना चाहिए , आँखे सही होनी चाहिए , शीशे पर गर्द न होनी चाहिए ,अँधेरा न होना चाहिए, शीशा हिलता हुआ न होना चाहिए , इतनी चीजें जरूर हैं शीशे में मुँह देखने के लिए । मुझे बतलइये बादशाह के लिए और गरीब के लिए , अमीर के लिए क्या अलग अलग तरीके होंगे शीशे में मुँह देखने के लिए ?
क्या बादशाह हिलते शीशे में अपना मुँह देख सकता है ? क्या अमीर ऐसे शीशे में जिसमें गर्द पड़ी हुई है, अपना मुँह देख सकेगा , कोई नहीं देख सकेगा | शक्ल देखने के लिए शीशे का साफ़ स्थिर प्रकाश नज़र होनी अवशयक है और वह सब के लिए जरूरी हैं | | इसलिए भगवान सबके निकट है | निकट होने की वजह से उसे जानने का तरीका एक ही है अलग अलग जो सभी मत ढंडोरा पिटते है वे सब झूठ है इनका अलग अलग तरीका कोई हो ही नहीं सकता केवल दुकानें सज़ा रखी है ।
परमात्मा एक है , जीवात्मा भी एक ही प्रकार के हैं इसलिए उनके लिए मिलने व पाने का तरीका भी एक है कोई अलग अलग तरीके नहीं हो सकते ।
परमात्मा तो सबके अंदर है | गरिब अमीर बदमाशों हर इन्सान के अंदर है बहुत पास में है लेकिन उसका ध्यान नहीं है | इसकी जरा एक मिसाल दे दूँ तो समझ में आ जाए |आपका मकान है और खिड़कियाँ आपने बंद की हुई हैं | सूरज निकल आया है किरणें आ रही हैं लेकिन आपने खिड़की बंद की हुई है | इसलिए सूरज ने कोई भी गड़बड़ पैदा नहीं की है | उसने अपने आपको रोका नहीं है बल्कि आपने उसे रोका है | अन्दर के अन्धेरे का कारण सुरज नहीं आप स्वयं है ,खिड़की जरा खोल दीजिए | सूर्य की किरणें स्वयं अंदर मौजूद होगी |
इसी तरह जीवात्मा के अंदर परमात्मा विराजमान है | जीवात्मा बाह्यवृत्ति हो रहा है बाहर भटक रहा है | बाहर देख रहा है | अपने से बाहर देख रहा है | बाहर प्रकृति है | इसलिए Introspection से अगर अंदर देखना है तो भगवान विराजमान है | दूर जाने की जरूरत नहीं | अलग अलग ढोंगीयो पुजा स्थलों पर जाने की अवशयकता नही । एक ही तरीका है और वह सबके लिए एक है । वे है योग द्वारा प्रमात्मा को जान कर विश्वास से धारण करके ध्यान में लाना और फिर समाधी तक पहुँच कर उस प्रमात्मा से एकतव्य स्थापित करना यही प्रमात्मा को पाना कहलाता है ।

15/11/2025
15/11/2025

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Clyde, VIC
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Tuesday 5:45am - 7pm
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