07/09/2025
वह क्यूँ रो रही थी??
वो बेतहाशा रोये ही जा रही थी, लगातार पिछले तीन घंटों से!!
मैंने बहुत कोशिश की समझने की, समझाने की, पर सब बेकार था।
एक डॉक्टर की तरह यह मेरी बहुत बड़ी नाकामयाबी थी, कोई रोगी जो किसी भी गंभीर रोग से पीड़ित नहीं था...
हाँ उसे बस 8 माह का गर्भ था, पेट में पलने वाला शिशु एकदम स्वस्थ था, कोई अन्य परेशानी भी नहीं थी।
परिवार के सभी सदस्य उसे समझाने की कोशिश में जी जान से लगे हुए थे। उसका बेचारा पति असमंजस में मेरी तरफ देख रहा था और मुझमें उससे नजर मिलाने का साहस भी नहीं था।
ऐसा नहीं है कि इस तरह के लोग हमारे सामने सामान्यतया नहीं आते हैं, महिलाओं को कमज़ोर हमेशा से माना जाता रहा है और अब 50 पार करने के बाद मुझे यह मानने में कोई शर्म नहीं है कि यह सच है, तक़रीबन 50% लोगों के साथ, ये बात अलग है कि इसमें आधे पुरूष भी शामिल हैं, जो कि कभी भी इस बात से सहमत होने का साहस ही नहीं करेंगे।
आज रविवार के दिन इसी मुख्य सामाजिक समस्या पर विचार करने का रखा है।
# क्यूँ महिलाएँ जल्दी परेशान हो जाती हैं?
# क्यूँ उन्हें महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में पुरुषों की जरूरत पड़ती है?
# क्या इसमें उनके हॉर्मोन कुछ करते हैं?
# या बचपन से उनकी देखभाल इस तरह से की जाती है कि ज़िम्मेदारी और समझदारी से दूर ही रखा जाता है उन्हें।
# या ये हर व्यक्ति के गुणसूत्रों पर निर्भर करतl है, X या Y का कोई महत्व नहीं है??
आइए समझने की कोशिश करते हैं..
1, हॉर्मोन और बायोलॉजी
महिलाओं में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर जीवन भर उतार-चढ़ाव करता है (मासिक चक्र, गर्भावस्था, पेरिमेनोपॉज़)।
ये हॉर्मोन मूड और स्ट्रेस-रेस्पॉन्स पर असर डालते हैं।
रिसर्च से पता चलता है कि महिलाओं में anxiety disorders पुरुषों से लगभग दोगुना पाए जाते हैं। (NIMH, 2021)
पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन अपेक्षाकृत स्थिर रहता है और यह risk-taking behavior और assertiveness बढ़ा सकता है।
लेकिन: ये अंतर औसत (average) स्तर पर हैं, हर महिला या पुरुष पर लागू नहीं होते।
2. न्यूरोसाइंस और निर्णय क्षमता
MRI अध्ययनों में पाया गया है कि महिलाओं का prefrontal cortex (जो निर्णय, योजना, सहानुभूति से जुड़ा है) पुरुषों से अधिक सक्रिय रहता है।
पुरुषों का amygdala response (fear और risk perception) अलग होता है।
इसका मतलब है कि निर्णय लेने की रणनीति में अंतर हो सकता है – महिलाएँ ज़्यादा दीर्घकालिक सुरक्षा और रिश्तों को ध्यान में रखती हैं, पुरुष अक्सर तात्कालिक और रिस्की निर्णय लेने की ओर झुकते हैं।
3. समाज और परवरिश (Social Conditioning)
समाज में अक्सर लड़कियों को बचपन से ही “संरक्षण” की भूमिका में पाला जाता है –
कम जोखिम लेने,
ज़्यादा इमोशनल होने,
और निर्णायक स्थितियों से दूर रहने की सीख दी जाती है।
लड़कों को स्वतंत्रता, नेतृत्व और निर्णय लेने की जिम्मेदारी जल्दी से दी जाती है।
इसीलिए कई बार महिलाएँ निर्णय लेने से हिचकिचाती दिखती हैं – ये हॉर्मोनल से ज़्यादा सामाजिक प्रशिक्षण का परिणाम होता है।
4. जीन और गुणसूत्र
X या Y क्रोमोसोम का सीधा असर “निर्णय लेने की क्षमता” पर नहीं होता।
हाँ, कुछ जीन (जैसे MAOA, COMT, 5-HTTLPR) जो डोपामिन और सेरोटोनिन मेटाबॉलिज़्म से जुड़े हैं, व्यक्तित्व और स्ट्रेस हैंडलिंग पर असर डालते हैं।
लेकिन “महिला = कमजोर निर्णय क्षमता” या “पुरुष = बेहतर निर्णयकर्ता” का कोई genetic proof नहीं है।
5. निष्कर्ष (What research says)
महिलाओं के “जल्दी परेशान होने” की प्रवृत्ति का कारण केवल हॉर्मोन नहीं है।
निर्णय लेने में पुरुषों पर निर्भरता का बड़ा हिस्सा समाज और परवरिश से आता है।
बायोलॉजिकल अंतर केवल मूड, स्ट्रेस रेस्पॉन्स और निर्णय लेने की क्षण को थोड़ा प्रभावित करते हैं।
हर व्यक्ति का अनुभव अलग होता है – और शिक्षा, आत्मनिर्भरता, तथा अभ्यास से महिलाएँ उतनी ही (या कभी-कभी बेहतर) निर्णय क्षमता रखती हैं जितनी पुरुष।
इसलिए, यह न तो पूरी तरह हॉर्मोन का मामला है और न ही गुणसूत्र का, बल्कि समाज, परवरिश और थोड़े-बहुत बायोलॉजिकल फैक्टर्स का मिश्रण है।