All Deases Treatment by Homeopathy

All Deases Treatment by Homeopathy all disease completely cure by homeopathy

28/04/2025

Homeopathic Remedies for OCD are
Some of the homeopathic medicine that have been found to be useful in treating the symptoms of OCD include:
.shukla
Argentum Nitricum: This remedy is for individuals, suffering from anxiety and compulsive behavior, where they feel compelled to do something or get something done, fast.
Syphilinum: Obsessive patients with ideas about dirt and cleanliness, constantly washing their hands or afraid of contamination.
Lachesis: Obsessive patients with extreme or vivid ideas of suspicion; even absurd reactions, primarily emotional.
Arsenicum Album: Excessive fear of germs and infection on the part of patients with too much cleaning and disinfecting.
Thuja Occidentalis: It is helpful for those individuals suffering from compulsive, repetitive rituals and the fear that something bad is going to happen if the person does not perform their rituals

24/03/2025

किसी किसी की हड्डियां असामान्य रूप से बढ़ जाता है। यह समस्या उन जगहों पर होती है जहां हड्डियां आपस में मिलती है यानी ज्वाइंट में बनने वाले उभार के पास कभी कभी हड्डी बढ़ जाती है। मेडिकल भाषा में इसे बोन स्पर या ओस्टियोफाइट्स कहा जाता है।

हड्डी बढ़ने पर आमतौर पर कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन जब रगड़ की वजह से हड्डियों में दबाव बढ़ता है तब अकड़न महसूस होती है, वहां दर्द होता है । हड्डी में किसी तरह की खराबी आती है जिसे हड्डी खुद ही रिपेयर करती है। इस दौरान बार-बार कैल्शियम जमा होता है जिसकी वजह से हड्डी बढ़ती है। अगर आप सर्जरी कराते हैं तो ऐसा देखा जाता है की कुछ समय बाद कही और जगह का हड्डी बढ़ रहा है। ऐसे में हड्डी बढ़ने का टेन्डेन्सी को भी ठीक करना जरुरी है। मैं आज आपको होम्योपैथिक दवा बताऊंगा जिससे हड्डी बढ़ने की समस्या ठीक हो जायेगा।

अगर किसी भी कारण से हड्डियों का असम-विकास हो, वे बढ़ जायें । तो ऐसे में Calcarea Flour 1m शकित की 2 बून्द हफ्ते में एक बार लेना है साथ में Calcarea Flour 6x की 4 गोली सुबह और शाम लेते रहना है।

अगर सिर या जबड़े की हड्डी बहुत बढ़ जाए। तो ऐसे में हेक्ला लावा 6x को 3 से 4 महीने लेना है। साथ में Calcarea Flour 1m की 2 बून्द 10 दिन में 1 बार ले लें।

अगर शरीर की लम्बी हड्डियाँ बहुत बढ़ने लगें तो ऐसे में फ़ॉसफ़ोरस 30 रोजाना एक बार लेना है, साथ में Calcarea Flour 1m की 2 बून्द 10 दिन में 1 बार ले लें।

अगर सिफ़िलिस के दोष के कारण हड्डियों का असम-विकास हो, तो ऑरम मेट 30 शक्ति रोजाना शुरू और शाम लेना है। साथ में Calcarea Flour 1m की 2 बून्द 10 दिन में 1 बार ले लें।

अगर कलाई की हड्डी बढ़ गई है तो ऐसे में Ruta 200 शक्ति की 2 बून्द रोजाना एक बार, साथ में Calcarea Flour 1m की 2 बून्द 10 दिन में 1 बार ले लें। .shukla

26/02/2025

नेट्रम सल्फ्यूरिकम Natrum Sulphuricum

परिचय-

नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि उन लोगों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती है जिनका रोग मौसम बदलने से बढ़ जाता है। इसके अलावा जो लोग समुद्र की हवा बर्दाश्त नहीं कर पाते उनके लिए भी ये औषधि लाभकारी है।

विभिन्न रोगों के लक्षणों में नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि से होने वाले लाभ-

सिर से सम्बंधित लक्षण- रोगी के सिर के पीछे के हिस्से में बहुत तेजी से दर्द होने पर, कानों में इस प्रकार का दर्द होना जैसे कि किसी ने कोई नुकीली सी चीज चुभा दी हो, सिर का घूमता हुआ सा महसूस होना, खांसी होने पर रोगी को ऐसा लगता है जैसे कि उसका सिर फटने वाला है, कपाल का बहुत ज्यादा गर्म सा लगना, दाईं कनपटी में बहुत तेज दर्द लेकिन उसके होने से पहले आमाशय में जलन पैदा होना, सिर पर गिरने या दूसरे किसी प्रकार की चोट लग जाने के कारण होने वाली दिमागी परेशानिया आदि सिर के रोगों के लक्षणों के आधार पर रोगी को अगर नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि दी जाए तो ये उसके लिए बहुत ही उपयोगी साबित होती है।

कान से सम्बंधित लक्षण- कान के रोग के लक्षणों में रोगी के कान में बहुत तेजी से दर्द होता है, उसको लगता है कि कान को अन्दर से खोदा जा रहा है, आर्द्र (गर्म) मौसम में कान के अन्दर सुई चुभने जैसा दर्द होना में रोगी को नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि देने से लाभ होता है।

नाक से सम्बंधित लक्षण- रोगी को ठण्ड लग जाने के कारण उसकी नाक में से पीले रंग का, गाढ़ा और नमकीन सा श्लेष्मा निकलना, सर्दी-जुकाम होना, नाक में से खून का आना, झझैरिकाशोथ (एथोमाइडीटिस) आदि लक्षणों में रोगी को नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ होता है।

आंखों से सम्बंधित लक्षण- आंखों के अन्दर के सफेद भाग का पीला हो जाना तथा रोगी के रोशनी में आते ही आंखों का बंद हो जाना जैसे आंखों के रोगों के लक्षणों में रोगी को सल्फ्यूरिकम औषधि देने से लाभ होता है।

मुंह से सम्बंधित लक्षण- मुंह का स्वाद बिल्कुल खराब हो जाना, मुंह के अन्दर तालु पर छाले से निकलना, मुंह के अन्दर से सफेद, गाढ़ा, लेसदार, चिपचिपा सा बलगम आना आदि मुंह के रोगों के लक्षणों में रोगी को नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि का सेवन कराना काफी लाभदायक रहता है।

आमाशय से सम्बंधित लक्षण- रोगी को खट्टी उल्टी होना, पेट का फूल जाना, रोगी की जीभ पर कत्थई रंग की कड़वे स्वाद वाली परत का जम जाना, जीभ का पीला हो जाना, रोगी को हर समय ठण्डा पानी पीने का मन करता रहता है, गर्मी के कारण होने वाली उल्टी, पेट में गैस बनने के कारण सीने में जलन महसूस होना जैसे लक्षणों में अगर रोगी को नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि दी जाए तो ये उसके लिए काफी लाभकारी सिद्ध होती है।

पेट से सम्बंधित लक्षण- रोगी को मल के साथ आंव के जैसा पदार्थ आना, जिगर में जलन होना, रोगी को पीलिया होना, गर्मी के कारण उल्टी होना, जिगर को छूते ही दर्द सा होना, ज्यादा टाईट कपड़े पहने नहीं जाते, बाईं तरफ लेटने पर दर्द का ज्यादा होना, पेट का फूल जाना, पेट और मलद्वार में बहुत तेजी से जलन का होना, मल का तेजी से आना, मल का पानी जैसा पीले रंग में आना, गंदी गैस छोड़ते समय मल का आ जाना, नमीदार मौसम के बाद सुबह के समय तरल मल का आना जैसे लक्षणों के आधार पर रोगी को नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।

स्त्री रोगों से सम्बंधित लक्षण- मासिकस्राव के समय नाक में से खून का आना जो तीखा और बहुत ज्यादा मात्रा में आता है, मासिकस्राव के दौरान आहारनली में जलन होना, परिसर्पीय योनि में सूजन आना, स्त्रियों में पुरुषों को होने वाले सुजाक रोग की ही तरह योनि में से हरा-पीला सा पानी आना, योनि में से पानी आने के साथ गले की खराश होने जैसे लक्षणों में रोगी को नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि देने से लाभ होता है।

मूत्र (पेशाब) से सम्बंधित लक्षण- रोगी को बार-बार और ज्यादा मात्रा में पेशाब आता है, जिसके कारण रात को उठकर कई बार पेशाब करना पड़ता है, पेशाब के साथ चीनी का आना, पेशाब के साथ ज्यादा मात्रा में स्राव का आना, पेशाब में ईंट के चूरे जैसा तलछट का आना, पेशाब के साथ पित्त का आना जैसे लक्षणों में रोगी को नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि का सेवन कराना लाभकारी रहता है।

सांस से सम्बंधित लक्षण- रोगी को सांस लेने में परेशानी होना खासकर के आर्द्र (गर्म) नमीदार मौसम में, खांसी इतनी जोर से उठती है कि रोगी को हाथों से छाती को थामना पड़ता है, रोगी को दमे का दौरा सुबह 4 से 5 बजे के बीच में उठने के साथ छाती में गड़गड़ाहट होना, रोगी को खांसी होने के साथ हरे रंग का बलगम निकलता है, रोगी को गहरी लंबी सांस लेनी पड़ती है, रोगी को रात को सोते समय इतनी तेज खांसी होती है कि उसे उठकर बैठना पड़ता है, हर बार ताजी ठण्डी हवा लगने से दमे का दौरा उठता है, इन सारे लक्षणों में रोगी को नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि का सेवन कराना काफी लाभकारी रहता है।

पीठ से सम्बंधित लक्षण- रोगी को कपड़े उतारते समय पीठ में खुजली होने लगती है, गर्दन के पीछे के हिस्से और दिमाग के हिस्से में बहुत तेजी से उठने वाला दर्द, स्कंध-फलकों (स्केप्युलाद्ध के बीच किसी चीज के चुभने जैसा दर्द होना, मेरुतानिकाशोथ (स्पीनल मेनीन्गिटीस) पीठ का आकार धनुष के जैसा हो जाना (ओपीस्थोटोनोसद्ध आदि पीठ के रोगों के लक्षणों में रोगी को नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि का सेवन कराना काफी उपयोगी साबित होता है।

शरीर के बाहरी अंगों से सम्बंधित लक्षण- रोगी की कक्षा-ग्रंथियों में सूजन का आना, नाखूनों की जड़ के चारों तरफ जलन सी होना, पैरों के तलुओं में जलन महसूस होना, पैरों में पानी भर जाना, पैरों की उंगलियों के बीच में खुजली होना, गठिया का दर्द जो गर्म या ठण्डे मौसम में ज्यादा होता है, शरीर के अंगों में दर्द होने के कारण रोगी को बार-बार अपने बैठने की जगह बदलनी पड़ती है, शरीर पर कटे-फटे सी जख्म पैदा होना, नितंब के जोड़ों में दर्द होना, घुटनों का कठोर हो जाना जैसे लक्षणों में नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि का सेवन लाभकारी रहता है।

चर्म (त्वचा) से सम्बंधित लक्षण- रोगी को सर्दी वाले मौसम में एक्जिमा से पानी निकलता है, रोगी जब कपड़े उतारता है तो उसे खुजली चालू हो जाती है, रोगी के पूरे शरीर में सुर्ख मस्से से निकल जाते हैं, इन सारे लक्षणों के आधार पर रोगी को नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि का सेवन कराने से लाभ मिलता है।
पुरुष से सम्बंधित लक्षण- रोगी को सूजाक रोग होने के कारण पीले हरे रंग का स्राव का आना, रोगी को स्राव गाढ़ा और दर्द के साथ आता है, शाम के समय रोगी की यौन उत्तेजना तेज होने के कारण उसकी संभोग करने की इच्छा तेज हो जाती है। इस तरह के पुरुष रोगों के लक्षणों में रोगी को नेट्रम सल्फ्यूरिकम औषधि देने से आराम मिलता है।

वृद्धि-
ठण्ड लगने के कारण, पानी वाले या सीलन वाले स्थान में रहने से, पीठ के बल लेटने से, बाईं करवट लेटने से, किसी तरह ही हरकत करने से और सुबह के समय रोग बढ़ जाता है।

शमन- दबाने से, स्थान बदलने से, गर्म मौसम में रोग कम हो जाता है
पूरक-
आर्स, थूजा
तुलना-नेट्रम फ्यूरिकम औषधि की तुलना नेट्रम सिक्सनेट, मलेरिया ऑफिसिनैलिस, नेट्रम कोलीनिकम, मोमोर्डिका, पुल्मोबुल्पिस, पियूमस बोल्डस, नेट्रम आयोडेटम, नेट्रम हाइपोसल्फ, सल्फ, थूजा, मर्क्यू और सिटलिगि से की जा सकती है।
मात्रा- रोगी को सल्फ्यूरिकम औषधि की 1x से 12x शक्ति के विचूर्ण देने से लाभ होता है।

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09/02/2025

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04/07/2024

पीरियड्स की परेशानियों का होम्योपैथिक ईलाज

क़ोक़्क़लस–इंडिका (COCCULAS–INDICA 200) : पेट के निचले हिस्से में अत्यधिक दर्द व ऐंठन होना। पीरियड्स के समय बहुत कमजोरी लगना, कब्ज रहना, गर्दन के पिछले हिस्से में दर्द रहना, चक्कर आना, कमर दर्द होना। पीरियड्स में काले रंग का खून निकलता है।

केमोमिला (CHAMOMILA 200) : पीरियड्स मे बहुत दर्द होता है। रोगी बहुत ही चिड़चिड़ी हो जाती हैं, बहुत ज्यादा क्रोध आता हैं।

कोलोफायलाम(CAULOPHYLUM 30) : पीरियड्स में अत्यधिक दर्द होना, पीरियड्स शुरू होने के पहले पेट के निचले हिस्से में ऐंठन होती है। कमर में दर्द होता है। कभी-कभी पित्त की उल्टी भी हो जाती है।

सिमिसीफुगा (CIMICIFUGA 200) : कमर में अत्यधिक दर्द होना। ज्यादा ब्लीडिंग होने पर ज्यादा दर्द होना। हाथ-पैरों में दर्द होना।

पल्‍सटिला (PULSATILLA 30) : इसे महिलाओं की औषधि भी कहते हैं। पीरियड्स रुक जाने पर या अनियमित होने पर होने वाली तकलीफ में उपयोगी हैं। रोगी को पूरे महीने यही लगता है कि उसका पीरियड आने वाला है। छोटी-छोटी बातों पर रोना आता है। दर्द अपना स्थान बदलते रहता है, कभी पेट में दर्द होता है, तो कभी कमर में तो, कभी जांघो में दर्द होता है।

जेल्सीमियम (GELSIMIUM 30) : हाथ-पैरों में कंपन हो, चक्कर आये, सुस्ती रहे, थकान रहे, सोते रहने का मन हो, ब्लड-प्रेशर कम हो जाए तो ये उपयोगी है।
Dr.Shukla
मेग–फॉस (MAG-PHOS 6X) : पीरियड्स के दर्द में सिकाई करने पर आराम लगे। दर्द चारों तरफ फैलता हुआ लगे। पीरियड्स समय से पहले आए, शरीर में सूजन आ जाए, पेट दर्द में आगे झुकने पर दर्द कम लगे, पेट फूला हुआ लगे तो ये उपयोगी है।

10/05/2024

होम्योपैथिक दवा का प्रयोग बहुत सी बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है।जो रोग व्यक्ति को अपने माता-पिता से विरासत के रूप में प्राप्त होता है उस रोग के इलाज में थूजा 200 होम्योपैथिक दवा फायदा करती।

थूजा एक एंटीसाइकोटिक (प्रमेह-विष नाशक) होम्योपैथिक दवा है।शरीर के बाएं अंग पर इस औषधि की विशेष क्रिया होती है।

यह दवा उन रोगियों को ज्यादा फायदा करती है जिनके शरीर पर बहुत अधिक मस्से होते हैं, जिनके शरीर के सिर्फ खुले हुए अंगों (सिर को छोड़कर) पर पसीना आता है,जिन्हें नींद आते ही पसीना आता है और नींद टूटते ही पसीना आना बंद हो जाता है।

आँख बंद करने से चक्कर आना थूजा का विशेष लक्षण है।ऐसे विलक्षण प्रकृति के रोगियों के रोग के इलाज में thuja 200 uses in hindi से फायदा होता है।

इसके अलांवा स्त्री और पुरुष की जननेन्द्रिय पर मस्से होना,बहुत ज्यादा मात्रा में पेशाब होना इतने पर भी मूत्र नली में जलन होना,टीका लगने के बाद किसी दूसरी बीमारी का उत्तपन्न हो जाना।

सुबह पहली बार भोजन करने के बाद दस्त आना, जीभ और मुँह के अंदर छाले होना आदि लक्षणों में Thuja 200 uses in Hindi से फायदा होता है।

थूजा क्या है ( What is thuja 200 in hindi )

थूजा एक होम्योपैथिक दवा है।इसका पूरा नाम थूजा आक्सिडेण्टैलिस (Thuja Occidentalis) है।यह दवा कनाडा के जंगलों में पाये जाने वाले एक प्रकार के गाछ के पौधे के पत्ते से इसका टिंचर बनाया जाता है।

यह एक प्रमेह-विष नाशक होम्योपैथिक दवा है।इस दवा का मुख्य असर चर्म, मूत्रयंत्र और जननेन्द्रिय पर होता है।

थूजा 200 के उपयोग | thuja 200 uses in hindi

निम्नलिखित लक्षणों में थूजा 200 उपयोग से फायदा होता है।

मानसिक लक्षण

थूजा रोगी का मानसिक लक्षण बड़ा ही विचित्र होता है।वह सोचता है कि उसका शरीर शीशे के बना हुआ है।

जो किसी के छूने मात्र से ही टूट जाएगा।इसलिए वह किसी को भी अपने पास आने नहीं देता है।

वह सोचता है कि उसके पास कोई अनजान व्यक्ति खड़ा है,उसका शरीर और आत्मा अलग-अलग है,उसके पेट में कोई जीता जानवर हरकतें कर रहा है।

वह सोचता है कि मैं किसी दैवीय शक्ति के वश में हूँ।थूजा की रोगिणी हमेशा अपने को गर्भवती ख्याल करती है।

वह सोचती है कि उसके पेट के अंदर उसका बच्चा हाथ-पांव हिला रहा है।

थूजा रोगी बड़ा ही बदमिजाज,चिड़चिड़ा और जिद्दी स्वभाव का होता है।

26/10/2023

PID treatment homeopathy

पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज (पीआईडी) महिला प्रजनन अंगों का एक संक्रमण है। यह अक्सर तब होता है जब यौन संचारित बैक्टीरिया योनि से गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब या अंडाशय तक फैल जाते हैं।

पेल्विक सूजन रोग (पीआईडी) के लक्षण
पेल्विक सूजन की बीमारी के लक्षण हल्के हो सकते हैं और उन्हें पहचानना मुश्किल हो सकता है। कुछ महिलाओं में कोई संकेत या लक्षण नहीं होते हैं। जब पीआईडी ​​के संकेत और लक्षण मौजूद होते हैं, तो उनमें अक्सर शामिल होते हैं:

दर्द - हल्के से लेकर गंभीर तक - निचले पेट और श्रोणि में
असामान्य या भारी योनि स्राव जिसमें अप्रिय गंध हो सकती है
असामान्य गर्भाशय रक्तस्राव, विशेष रूप से संभोग के दौरान या बाद में, या मासिक धर्म चक्र के बीच
संभोग के दौरान दर्द
बुखार, कभी-कभी ठंड के साथ
दर्दनाक, बार-बार या कठिन पेशाब आना
पेल्विक सूजन रोग (पीआईडी) के कारण
कई प्रकार के बैक्टीरिया पीआईडी ​​का कारण बन सकते हैं , लेकिन गोनोरिया या क्लैमाइडिया संक्रमण सबसे आम हैं। ये बैक्टीरिया आमतौर पर असुरक्षित यौन संबंध के दौरान प्राप्त होते हैं।

आमतौर पर, बैक्टीरिया किसी भी समय प्रजनन पथ में प्रवेश कर सकते हैं जब गर्भाशय ग्रीवा द्वारा बनाई गई सामान्य बाधा परेशान होती है। यह मासिक धर्म के दौरान और प्रसव, गर्भपात या गर्भपात के बाद हो सकता है। शायद ही कभी, अंतर्गर्भाशयी डिवाइस (आईयूडी) - दीर्घकालिक जन्म नियंत्रण का एक रूप - या किसी भी चिकित्सा प्रक्रिया जिसमें गर्भाशय में उपकरण डालना शामिल होता है - के सम्मिलन के दौरान बैक्टीरिया प्रजनन पथ में भी प्रवेश कर सकते हैं।

पेल्विक सूजन रोग (पीआईडी) के जोखिम कारक
कई कारक पेल्विक सूजन रोग के खतरे को बढ़ा सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

25 वर्ष से कम उम्र की यौन रूप से सक्रिय महिला होना
एकाधिक यौन साथी होना
ऐसे व्यक्ति के साथ यौन संबंध में रहना जिसके एक से अधिक यौन साथी हों
बिना कंडोम के सेक्स करना
नियमित रूप से हाथ धोना, जिससे योनि में अच्छे बनाम हानिकारक बैक्टीरिया का संतुलन बिगड़ जाता है और लक्षण छिप सकते हैं
पेल्विक सूजन की बीमारी या यौन संचारित संक्रमण का इतिहास होना
अंतर्गर्भाशयी डिवाइस (आईयूडी) डालने के बाद पीआईडी ​​का जोखिम थोड़ा बढ़ जाता है । यह जोखिम आम तौर पर सम्मिलन के बाद पहले तीन हफ्तों तक ही सीमित होता है।

पेल्विक सूजन रोग (पीआईडी) की जटिलताएँ
अनुपचारित पेल्विक सूजन की बीमारी के कारण प्रजनन पथ में निशान ऊतक और संक्रमित तरल पदार्थ (फोड़े) विकसित हो सकते हैं। इनसे प्रजनन अंगों को स्थायी नुकसान हो सकता है।

इस क्षति से होने वाली जटिलताओं में शामिल हो सकते हैं:

अस्थानिक गर्भावस्था। पीआईडी ​​ट्यूबल (एक्टोपिक) गर्भावस्था का एक प्रमुख कारण है। एक अस्थानिक गर्भावस्था तब हो सकती है जब अनुपचारित पीआईडी ​​के कारण फैलोपियन ट्यूब में निशान ऊतक विकसित हो जाते हैं। निशान ऊतक निषेचित अंडे को फैलोपियन ट्यूब के माध्यम से गर्भाशय में प्रत्यारोपित होने से रोकता है। इसके बजाय, अंडा फैलोपियन ट्यूब में प्रत्यारोपित हो जाता है। एक्टोपिक गर्भधारण से बड़े पैमाने पर, जीवन-घातक रक्तस्राव हो सकता है और आपातकालीन चिकित्सा ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
बांझपन. आपके प्रजनन अंगों को नुकसान होने से बांझपन हो सकता है - गर्भवती होने में असमर्थता। जितनी अधिक बार आपको पीआईडी ​​होगी , बांझपन का खतरा उतना ही अधिक होगा। पीआईडी ​​के उपचार में देरी करने से बांझपन का खतरा भी नाटकीय रूप से बढ़ जाता है।
क्रोनिक पेल्विक दर्द. पेल्विक सूजन की बीमारी पेल्विक दर्द का कारण बन सकती है जो महीनों या वर्षों तक बना रह सकता है। आपके फैलोपियन ट्यूब और अन्य पैल्विक अंगों में घाव के कारण संभोग और ओव्यूलेशन के दौरान दर्द हो सकता है।
ट्यूबो-डिम्बग्रंथि फोड़ा. पीआईडी ​​आपके प्रजनन पथ में फोड़ा - मवाद का संग्रह - बनने का कारण बन सकता है। आमतौर पर, फोड़े फैलोपियन ट्यूब और अंडाशय को प्रभावित करते हैं, लेकिन वे गर्भाशय या अन्य पैल्विक अंगों में भी विकसित हो सकते हैं। यदि किसी फोड़े का इलाज नहीं किया जाता है, तो आपमें जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाला संक्रमण विकसित हो सकता है।
पेल्विक सूजन रोग (पीआईडी) की रोकथाम
पेल्विक सूजन रोग के जोखिम को कम करने के लिए:

सुरक्षित सेक्स का अभ्यास करें. हर बार यौन संबंध बनाते समय कंडोम का उपयोग करें, अपने भागीदारों की संख्या सीमित करें और संभावित साथी के यौन इतिहास के बारे में पूछें।
गर्भनिरोधक के बारे में अपने डॉक्टर से बात करें। गर्भनिरोधक के कई रूप पीआईडी ​​के विकास से रक्षा नहीं करते हैं । कंडोम जैसी अवरोधक विधियों का उपयोग करने से आपके जोखिम को कम करने में मदद मिलती है। भले ही आप गर्भनिरोधक गोलियाँ लेते हों, एसटीआई से बचाव के लिए हर बार जब आप किसी नए साथी के साथ यौन संबंध बनाते हैं तो कंडोम का उपयोग करें ।

मर्क सोल - योनि स्राव के साथ पीआईडी ​​के लिए प्रभावी होम्योपैथिक दवा
अत्यधिक योनि स्राव के साथ पीआईडी ​​के लिए मर्क सोल एक प्राकृतिक औषधि है। जो लक्षण मर्क सोल की आवश्यकता का संकेत देते हैं उनमें तीखा, खुजलीदार और खुजली वाला स्राव शामिल है जो योनि में जलन का कारण बनता है। स्राव शुद्ध, पीला या हरा हो सकता है। पेशाब करने पर डिस्चार्ज और भी बदतर हो जाता है।
कुछ मामलों में, गर्भाशय में सिलाई जैसा दर्द हो सकता है। इसके अतिरिक्त, डिम्बग्रंथि में चुभने वाला दर्द भी हो सकता है।

फॉस्फोरस - मासिक धर्म के बीच गर्भाशय से रक्तस्राव के साथ पीआईडी ​​का प्राकृतिक उपचार
फॉस्फोरस पीआईडी ​​मामलों के इलाज के लिए एक फायदेमंद होम्योपैथिक दवा है जहां मासिक धर्म के बीच गर्भाशय से रक्तस्राव होता है। गर्भाशय से रक्तस्राव बहुत अधिक होता है। कमजोरी आमतौर पर मासिक धर्म के रक्तस्राव के बाद होती है। अन्य लक्षणों में डिम्बग्रंथि दर्द (विशेष रूप से बाईं ओर) शामिल है। मासिक धर्म के दौरान डिम्बग्रंथि में दर्द सबसे अधिक महसूस होता है। सफेद या पानी जैसा बलगम का प्रदर हो सकता है। प्रदर के साथ-साथ पेट में कमज़ोर अनुभूति भी हो सकती है।

सबीना ऑफिसिनैलिस - भारी मासिक धर्म के साथ पीआईडी ​​के लिए प्रभावी होम्योपैथिक उपचार
सबीना ऑफिसिनालिस भारी मासिक धर्म के साथ पेल्विक सूजन की बीमारी के लिए एक अच्छी तरह से संकेतित होम्योपैथिक दवा है। मासिक धर्म प्रचुर मात्रा में और प्रचंड प्रकृति का होता है। रक्तस्राव चमकीले लाल रंग का होता है और इसमें गहरे रंग के थक्के होते हैं। रक्त में अप्रिय गंध हो सकती है। गति से रक्त प्रवाह ख़राब हो जाता है। त्रिक पीठ में दर्द, जो यौवन तक फैलता है, एक प्राथमिक सहवर्ती लक्षण है। यह उपाय गर्भाशय और अंडाशय की सूजन के लिए भी अनुशंसित है जो बच्चे के जन्म या गर्भपात के बाद हो सकती है।

मेडोरिनम - दर्दनाक माहवारी के साथ पीआईडी ​​के लिए प्राकृतिक होम्योपैथिक दवा
मेडोरिनम पीआईडी ​​के लिए एक महत्वपूर्ण होम्योपैथिक दवा है जहां महिला को मासिक धर्म में अत्यधिक दर्द का अनुभव होता है। इसमें पेल्विक क्षेत्र में असहनीय दर्द के साथ-साथ डिम्बग्रंथि में दर्द होता है जो दबाव से ठीक हो जाता है। मासिक धर्म में रक्तस्राव प्रचुर, गहरा और घृणित होता है। कुछ मामलों में तीखा प्रकृति का योनि स्राव और मछली जैसी गंध भी मौजूद होती है।

क्रियोसोटम - संभोग के दौरान दर्द के साथ पेल्विक सूजन की बीमारी का प्राकृतिक उपचार
संभोग के दौरान दर्द (डिस्पेर्यूनिया) होने पर क्रियोसोटम एक प्राकृतिक औषधि पीआईडी ​​है। जननांग में दर्द के साथ जलन भी महसूस होती है। क्रियोसोटम पेल्विक सूजन की बीमारी के मामलों में भी उपयोगी है जहां संभोग के बाद रक्तस्राव होता है। उपरोक्त लक्षणों के साथ-साथ आक्रामक, खुजली, संक्षारक प्रदर भी हो सकता है। मासिक धर्म के बीच में ल्यूकोरिया बढ़ जाता है और अक्सर कपड़ों पर पीला दाग छोड़ देता है

Facebook पर मेरी मौजूदगी के 6 साल का जश्न मनाया जा रहा है. सपोर्ट करने के लिए आपका धन्यवाद. आपके सपोर्ट के बिना मेरे लिए...
29/06/2023

Facebook पर मेरी मौजूदगी के 6 साल का जश्न मनाया जा रहा है. सपोर्ट करने के लिए आपका धन्यवाद. आपके सपोर्ट के बिना मेरे लिए यह कर पाना संभव नहीं था. 🙏🤗🎉

Dr.  homeopathic treatment for dyspnea Treatment for dyspnea requires a detailed case history of the patient. The histor...
16/05/2023

Dr. homeopathic treatment for dyspnea

Treatment for dyspnea requires a detailed case history of the patient. The history helps to find out the cause of dyspnea. It also helps to identify the particulars of each case. The effectiveness of medicines depends on the severity, duration and the reasons for the dyspnea. Depending upon case details of dyspnea, homeopathy can play a curative, palliative, or supportive role.

Causes of Dyspnea
Difficulty in breathing is experienced after exertion or while moving to high altitudes is normal, but if it occurs otherwise, then it is a matter of concern. Such a condition should be investigated and treated. Various medical conditions can lead to dyspnea. Among medical conditions, respiratory and heart troubles are some of the leading causes of dyspnea. The causes of dyspnea also include asthma, pneumonia, chronic obstructive pulmonary disease, pulmonary edema, heart failure, and heart attack. Low blood pressure, cardiomyopathy, anemia, sudden blood loss, obstruction by inhaled foreign objects and anxiety or panic disorders can also be among the causes. Common symptoms that point to dyspnea are cough, wheezing, chest pain, blood in sputum and fainting.

Homeopathic Treatment for Dyspnea
1. Arsenic Album– For Dyspnea in Asthma
Arsenic Album is a top grade medicine for dyspnea for a patient with asthma. Arsenic Album works well when there is difficulty in breathing along with wheezing and constricted air passages. Suffocating attacks are also a symptom in such cases. The symptoms are most disturbing at night. The patient is unable to lie down at night because of the fear of suffocation. The patient may even wake up at night from disturbing dyspnea.

2. Antimonium Tart and Ipecac – For Dyspnea Accompanied by Cough
Antimonium Tart and Ipecac are the best medicines for dyspnea accompanied by a cough. The top indicators for using Antimonium Tart are shortness of breath with a cough and rattling of mucus in the chest. Only a little bit of phlegm is expectorated. There is a feeling of suffocation along with gasping of breath. To use Ipecac, the symptom is dyspnea with a sudden and intense cough. Vomiting may accompany a cough. The person also turns stiff and blue because of the shortness of breath. A suffocating and strangling feeling with a cough are also symptoms in such cases. Bubbling rales in the chest are also noted.

3. Ammonium Carb and Stannum Met – For Dyspnea While Walking
Ammonium Carb and Stannum Met are beneficial medicines for dyspnea experienced while walking. Among them, Ammonium Carb works well in cases where walking even a few steps leads to labored and difficult breathing. Along with dyspnea, cough with bloody expectoration may also be present. Other from this, Ammonium Carb is also indicated for difficulty in breathing in a warm room. Being in the cold air brings relief. Stannum Met is considered when there is shortness of breath with a constriction in the chest while walking. Dyspnea on exertion is also treated well with Stannum Met. Other symptoms that indicate the use of Stannum Met are weakness or sharp pains in the chest, and expectoration with a sweet or salty taste.

4. Lachesis and Grindelia – For Dyspnea During Sleep
Lachesis and Grindelia need consideration in cases of dyspnea that occurs during sleep. Lachesis is useful when a person has difficulty in breathing while sleeping. The patient wakes up from sleep and rushes to open a window to breathe. Tight clothing is unbearable around the chest and throat. Grindelia works in cases of dyspnea where breathing stops on falling asleep. There is an inability to breathe on lying down. The person wakes up with a start and sits up to breathe.

5. Carbo Veg and Silicea – For Dyspnea In Elderly People
For dyspnea in older adults, prominently indicated medicines are Carbo Veg and Silicea. Carbo Veg is an excellent medicine for labored and quick breathing in seniors. Along with this, a burning sensation in the chest is felt. A patient needing Carbo Veg also likes to be fanned to get relief. The skin may be cold and blue in color during attacks of dyspnea. Silicea is helpful for older adults experiences difficulty in breathing. Walking fast, lying on the back, and stooping is some of the factors that indicate the need for Silicea in older adults.

6. For Dyspnea With Heart Troubles
Some effective medicines for dyspnea with heart problems are Digitalis, Iberis, and Viscum Album. The characteristic features that point to the need for Digitalis are dyspnea with constant desire to take a deep breath, precordial anxiety, violent palpitations on motion, and a weak, slow pulse. Iberis works well in cases of dyspnea with a full, irregular pulse. The dyspnea is worse while climbing stairs. Viscum Album is considered in cases of dyspnea when lying on the left side worsens the complaint. Along with this, constriction and tightness in the chest are felt.

05/05/2023

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