25/02/2023
शिक्षक होना कोई पेशा नहीं है...बल्कि एक साधना है जिसमें नन्हे दिलों पर राज करना पड़ता है... एक शिक्षक होने के लिए पढ़ा लिखा होना और विषय एवं विषयवस्तु का ज्ञान मात्र होना काफी नहीं है... उसे अपने भीतर संवेदना और समझ का एक ऐसा वायुमंडल बनाना पड़ता है जिसमें प्रीत और नेह पनप सकें...
आप श्री प्रदीप ज्याणी है जो कि सात आठ महीने पहले शिक्षक बने हैं और आप भीलवाड़ा के राजकीय प्राथमिक विद्यालय ऊपला में कार्यरत है... इनके विद्यालय में तक़रीबन 70-80 बालक है... और शिक्षा और आधुनिकता की मुख्य धारा से दूर हैं….
बेहद पिछड़े हुए इस इलाके में कल श्री प्रदीप ज्याणी को अपनी नन्ही सी शिष्या के बाल धोकर उन्हें संवारते देखा तो यूँ लगा मानो कोई ऋषि ने आठ महीने की तपस्या से ब्रह्मा का सिंहासन हिला दिया हो... ये चित्र शिक्षकों के प्रति लोगों के नकारात्मक रुझान में बड़ी कटौती बेशक करने वाले हैं... मेरी नजर में शिक्षक और बालक के बीच एक रिश्ता होता है जिसको सीधे सीधे परिभाषित तो नहीं किया जा सकता परन्तु उसको अनुभव करना और देखना रिश्तों की सबसे श्रेष्ठ अनुभूतियों में से एक होता है...
श्री प्रदीप ज्याणी जैसे यूवा शिक्षकों का शिक्षा विभाग में होना हमारे लिए गर्व और गौरव का विषय है... आज के इस जमाने में जहां शैक्षिक मूल्यों की लैंडस्लाइड इतनी जोरों पर है श्री ज्याणी जैसे लोग न केवल गुरुत्व को बचा लेंगे बल्कि कई बुझ चुके दीपकों को पुनः रोशन कर देंगे... मैं कहता हूँ कि ऐसे चित्र न केवल वायरल हो बल्कि इन्हे इतनी प्रसंशा मिले की बालकों को अपनत्व देना एक फैशन हो जाए...
(साभार : कान्हा )