Dr. Raushan Keshri

Dr. Raushan Keshri "जब मेरे हाथ आसमां तक नहीं पहुँचते, तो म

26/01/2025
08/05/2024

अक्ल बाँटने लगे विधाता, लम्बी लगी कतारी ।
सभी आदमी खड़े हुए थे, कहीं नहीं थी नारी ।।
सभी नारियाँ कहाँ रह गयीं, था ये अचरज भारी ।
पता चला ब्यूटी पार्लर में, पहुँच गयीं थीं सारी ।।
मेकअप की थी गहन प्रक्रिया, एक एक पर भारी ।
बैठी थीं कुछ इन्तजार में, कब आयेगी बारी ।।
उधर विधाता ने पुरूषों में, अक्ल बाँट दी सारी ।
पार्लर से फुर्सत पा कर के, जब पहुँची सब नारी ।।
बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है, नहीं अक्ल अब बाकी ।
रोने लगी सभी महिलाएँ, नीन्द खुली ब्रह्मा की ।।
पूछा कैसा शोर हो रहा, ब्रह्मलोक के द्वारे ?
पता चला कि स्टॉक अक्ल का पुरुष ले गये सारे ।।
ब्रह्मा जी ने कहा देवियों, बहुत देर कर दी है।
जितनी भी थी अक्ल सभी वो, पुरुषों में भर दी है ।।
लगी चीखने महिलाएँ, ये कैसा न्याय तुम्हारा ?
कुछ भी करो, चाहिए हमको आधा भाग हमारा ।।
पुरुषों में शारीरिक बल है,हम ठहरी अबलाएँ ।
अक्ल हमारे लिए जरुरी, निज रक्षा कर पाएँ ।।
बहुत सोच दाढ़ी सहला कर, तब बोले ब्रह्मा जी ।
इक वरदान तुम्हे देता हूँ, हो जाओ अब राजी ।।
थोड़ी सी भी हँसी तुम्हारी, रहे पुरुष पर भारी ।
कितना भी वह अक्लमन्द हो, अक्ल जायेगी मारी ।।
एक बोली, क्या नहीं जानते ! स्त्री कैसी होती है ?
हँसने से ज्यादा महिलाएँ, बिना बात रोती हैं ।।
ब्रह्मा बोले यही कार्य तब, रोना भी कर देगा ।
औरत का रोना भी नर की, बुद्धि को हर लेगा ।।
इक बोली, हमको ना रोना, ना हँसना आता है ।
झगड़े में हैं सिद्धहस्त हम, झगड़ा ही भाता है ।।
ब्रह्मा बोले चलो मान ली, यह भी बात तुम्हारी ।
घर में जब भी झगड़ा होगा, होगी विजय तुम्हारी ।।
जग में अपनी पत्नी से जब कोई पति लड़ेगा ।
पछतायेगा, सिर ठोकेगा आखिर वही झुकेगा ।।
ब्रह्मा बोले सुनो ध्यान से, अन्तिम वचन हमारा ।
तीन शस्त्र अब तुम्हें दे दिये, पूरा न्याय हमारा ।।
इन अचूक शस्त्रों में भी, जो मानव नहीं फँसेगा ।
बड़ा विलक्षण जगतजयी ऐसा नर दुर्लभ होगा ।।
कहे कवि सब बड़े ध्यान से, सुन लो बात हमारी ।
बिना अक्ल के भी होती है, नर पर भारी नारी ।। -

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30/08/2023

रक्षाबंधन - लघु लेख :- डॉ॰ रौशन केशरी

राखी (रक्षाबंधन) को पर्व नहीं, यह एक वचन है। यूँ तो राखी को भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का पावन पर्व माना जाता रहा है, पर इस पर्व के मूल में बसी बात को हम अर्थहीन कर चुके हैं।

तार्किक दृष्टिकोण से अगर हम समझें तो, रक्षाबंधन / राखी, रेशम के धागे को एक लड़की या स्त्री अपने भाई को बांध के वचन लेती है कि, वह भाई उसकी हर विकट परिस्थिति में उसका साथ दे और उसकी रक्षा करे।

क्या रक्षाबंधन और रक्षासूत्र दोनों एक ही है, रक्षासूत्र हम भगवान को अर्पण कर फिर भगवान को आशीर्वाद समझ उसे अपने कलाई पे बांधते है ताकि भगवान हमारी हर परिस्तिथि में रक्षा करें।

रक्षाबंधन का यह पर्व वास्तव में सिर्फ़ भाई-बहन तक ही नहीं अपितु सम्पूर्ण समाज और परिवार तक विस्तृत होना चाहिए। क्या माँ अपने पुत्र से, बेटी अपने पिता से, पत्नी अपने पति से यह वचन नहीं ले सकती कि वह उसकी हर परिस्तिथि में रक्षा करें।

क्या एक पुरुष सिर्फ़ अपने बहन की रक्षा करेगा। यह पुरुषत्व के समर्थ पे एक सवाल है। जिसका जवाब किसी के पास नहीं। इस लघु लेख को पढ़ने के लिए धन्यवाद, भाषा त्रुटि व भावना दृष्टांत के लिए क्षमा दान करें।

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