29/03/2021
जब होली ने स्वतंत्रता संग्राम में फूंक दी जान, छूट गए अंग्रेजों के छक्के
होली का सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है, बल्कि इसके अनूठे सामाजिक पहलू भी हैं और क्रांति से भी रंगोत्सव का यह पर्व जुड़ा हुआ है। भारत को आजादी दिलाने के लिए लड़ी गई लड़ाइयों में होली की भी खास भूमिका रही है। उदाहरण के तौर पर कानपुर के गंगा मेला को ही लें, जहां होली ने स्वतंत्रता संग्राम में ऐसी अलख जगाई कि देशभर के क्रांतिकारियों के साथ ही नेहरू-गांधी तक को उस घटना ने झकझोर दिया और अंग्रेजों को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। आइए जानते हैं होली से जुड़े इस अनूठे किस्से को:
वह साल था 1942 का और देशभर में स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला फैल चुकी थी। तब कानपुर पूरब का मैनचेस्टर हुआ करता था, उद्योगपतियों व व्यापारियों का शहर और इसके साथ ही क्रांतिकारियों का गढ़ भी बन चुका था। कानपुर में एक बाजार है हटिया, वहां के एक बड़े कारोबारी गुलाबचंद सेठ हर साल होली पर बड़ा आयोजन करते थे। 1942 में भी उन्होंने आयोजन किया, लेकिन अंग्रेज अधिकारी ने कार्यक्रम बंद करने को कहा। गुलाब चंद सेठ ने ऐसा करने से मना कर दिया तो अंग्रेजों ने वहां मौजूद सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया और कारागार में डाल दिया।
इस घटना से पूरे शहर में विरोध की लहर दौड़ पड़ी। पूरा शहर भड़क गया और आंदोलन छेड़ दिया, जिससे स्वतंत्रता सेनानी भी जुड़ गए। देशभर में बात फैली तो हर कोने से बड़े बड़े स्वतंत्रता सेनानियों व नेताओं से इस आंदोलन के लिए समर्थन मिलने लगा। इससे घबराकर अंग्रेजों ने सबको छोड़ दिया। जिस दिन लोगों को रिहा किया गया, तब अनुराधा नक्षत्र चल रहा था। जेल के बाहर ही लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा और पूरे शहर में होली खेली गई जमकर। शाम को गंगा के किनारे मेला भी लगा।
तब से कानपुर शहर में एक हफ्ते होली मनाई जाती है, होली के दिन रंगोत्सव शुरू होता है और रंग पंचमी के दिन तक जश्न चलता रहता है। खूब धूम धड़ाके के साथ गाजे बाजे संग रंगोत्सव मनाया जाता है। रंग पंचमी तक करीब एक हफ्ते तक रंग खेलने की यह परंपरा आठ दशक से बदस्तूर जारी है। आज भी वहां गंगा के किनारे विशाल मेला लगता है।