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एक और मासूम मोबाइल एडिक्शन और game एडिक्शन के चक्कर में अपनी जान ले बैठा। आज कल बच्चों और बड़ों में मोबाइल एडिक्शन और ga...
03/08/2025

एक और मासूम मोबाइल एडिक्शन और game एडिक्शन के चक्कर में अपनी जान ले बैठा। आज कल बच्चों और बड़ों में मोबाइल एडिक्शन और game एडिक्शन एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है जिसके परिणाम प्रतिदिन आते रहते है।

1. मध्य प्रदेश: इंदौर में 7 वीं के छात्र ने फांसी लगाकर किया सुसाइड

पुलिस की शुरुआती जांच में पता चला है कि छात्र ऑनलाइन फ्री फायर गेम में 2800 रुपए हार गया था

उसे डर था कि परिजन को पता चलेगा तो वे नाराज होंगे, तनाव में आकर उसने जान दे दी,13 साल का आकलन जैन निजी स्कूल में कक्षा सातवीं का छात्र था

2. 🕹️💸 "मोबाइल गेम ने छीन ली ज़िंदगी – 80 लाख की संपत्ति गई, फिर कर्ज़ और अंत में मौत"

🗓 घटना:

स्थान: एटा, उत्तर प्रदेश

दिनांक: 9 जुलाई 2025

प्रकाशन समय: शाम 7:13 बजे

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🔥 खबर का सार:

एक स्थानीय व्यापारी ने मोबाइल गेम की लत में आकर अपनी पूरी 80 लाख रुपये की संपत्ति खो दी।
खेलते-खेलते नुकसान इतना बढ़ा कि उसने कर्ज़ लेकर भी और पैसे लगाए, लेकिन हालात नहीं बदले।

👉 अंत में जब कर्ज़ का दबाव और सामाजिक अपमान बढ़ा,
👉 तो वह तनाव और अवसाद में आ गया,
👉 और आत्महत्या कर ली।

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💔 यह केवल मौत नहीं...

यह ऑनलाइन गेमिंग की लत और फाइनेंशियल लापरवाही से हुई एक बड़ी त्रासदी है।
आज मोबाइल गेम सिर्फ टाइम पास नहीं, बल्कि कई बार जुआ, घाटा और जान का सौदा बन चुका है।

🎯 "मोबाइल में गेम था, पर दिमाग से गेम चला गया!"

> एक व्यापारी ने 80 लाख की संपत्ति गंवाई, फिर कर्ज़ लिया... और अंत में मौत को गले लगा लिया।
ये हादसा नहीं – देश में बढ़ती गेमिंग लत का नया चेहरा है।

👇 क्या आपको भी लगता है मोबाइल गेम अब सिर्फ टाइम पास नहीं – जानलेवा भी हो सकते हैं?
कमेंट में अपनी राय बताएं।

आज हम बात करने जा रहे है स्कूली बच्चों में बढ़ रही आत्महत्या की दर कितनी खतरनाक? भारत सरकार भी कब  YouTube पर बैन लगाएगी...
02/08/2025

आज हम बात करने जा रहे है स्कूली बच्चों में बढ़ रही आत्महत्या की दर कितनी खतरनाक? भारत सरकार भी कब YouTube पर बैन लगाएगी ?

बच्चों में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का प्रभाव बच्चों के व्यवहार में बदलाव लाता है। इंटरनेट और तकनीक का अत्यधिक उपयोग भी एक बड़ा कारण।
बच्चों में मानसिक परेशानी होने पर दिनचर्या और व्यवहार में साफतौर पर बदलाव होने लगता है.पहचानें मानसिक परेशानी के संकेत, ताकि बच्चों की मदद की जा सके.25 जुलाई 2025 को अहमदाबाद के नवरंगपुरा स्थित स्कूल में 16 वर्ष की कक्षा 10 की छात्रा हंसते हुए क्लास से बाहर निकली.हाथ में चाबी का गुच्छा घुमाते हुए आराम से स्कूल की चौथी मंजिल की गैलरी में जाकर खड़ी हुई और अचानक ही उसने नीचे छलांग लगा दी.इस पूरी घटना का सीसीटीवी फुटेज सोशल मीडिया पर वायरल हुआ.भारत में मौत को गले लगाते छात्र 26 जुलाई 2025 को लखनऊ के आशियाना स्थित एक स्कूल के आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले 14 वर्षीय छात्र ने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया.कारण, उसकी मां ने डांट लगाई थी कि मोबाइल चलाने के बजाय वह पढ़ाई पर ध्यान दे.ये दो मामले उदाहरण भर हैं.भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में स्कूल जाने वाले बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति में बीते कई वर्षों से इजाफा देखा जा रहा है.यह गंभीर चिंता का विषय है.क्या इंटरनेट बन रहा है बच्चों की आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण?बच्चों में आत्महत्या के मामलों को लेकर मनोवैज्ञानिक अलग-अलग कारण और प्रवृत्तियों पर ध्यान देने की बात करते हैं.हालांकि, अधिकांश मनोवैज्ञानिक सहमति जताते हैं कि सबसे मुख्य कारण बदलती और आधुनिक होती तकनीक है ।
कोरोना काल के बाद से इंटरनेट ने बच्चों की जिंदगी में अहम जगह बनाई है. इसके चलते जहां एक ओर उनकी जिंदगी में मोबाइल फोन और गैजेट्स की संख्या में इजाफा हुआ है, वहीं दूसरी ओर उनके मानसिक स्तर पर इसका प्रतिकूल प्रभाव भी दिख रहा है आज बच्चों के पास बहुत कम उम्र में ही इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स तक पहुंच है.घरों में अनलिमिटेड वाई-फाई है और अभिभावकों के पास उन पर निगरानी रखने का समय बेहद कम है.इसका नतीजा यह होता है कि बच्चों के पास मानसिक विकास के लिए न तो समय होता है और न ही शारीरिक अभ्यास में उनकी रुचि रह जाती है.उन्हें अपना हर जवाब बस एक बटन दबाकर मिल जाता है।
माता-पिता, शिक्षकों और बच्चों के बीच जेनेरेशन गैप है, इस वजह से दोनों पीढ़ियां एक-दूसरे को समझने में अक्षम हो रही हैं.इसमें आधुनिक तकनीक की भी भूमिका है.तकनीक का अत्यधिक प्रयोग न केवल बच्चों के मानसिक विकास और स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, बल्कि माता-पिता को भी उनसे दूर करता जा रहा है । पहले बच्चे नोट्स बनाते थे, उन्हें याद करते थे, बाहर खेलते थे, लोगों से मिलते-बात करते थे.वे अपने अनुभवों से काफी कुछ सीखते थे, लेकिन अब बच्चे मोबाइल और इंटरनेट पर काफी हद तक निर्भर हैं.इससे उनका सामाजिक कौशल कमजोर हो रहा है.साथ ही, इमोशनल इंटेलिजेंस पर भी असर पड़ रहा है
बच्चों में तत्काल संतुष्टि की आदत घर करती जा रही है.ये आदत बच्चों को मेहनत करने की जगह शॉर्टकट की ओर ले जा रही है इसके कारण उनमें दूसरों से अपनी तुलना करने, तुरंत सबकुछ पा लेने, साथियों के बीच खुद को "कूल" या सबसे बेहतर दिखाने जैसी होड़ रहती है.जब उनकी उम्मीदें पूरी नहीं होतीं या उनके अनुरूप नहीं होतीं, तो बच्चे खुद को दोष देने लगते हैं.उनमें कुंठा, तनाव और निराशा, बदला लेने की प्रवृत्ति घर करने लगती है.जब ये भावनाएं बेकाबू हो जाती हैं, तो आत्महत्या जैसी प्रवृत्तियां देखने को मिलती हैं"युवाओं की महिला विरोधी सोच और यौन कुंठा को दिखा रही "एडोलसेंस" सीरीज आत्महत्या की कोशिश के डराने वाले अन्तर्राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों में भी छात्रों की आत्महत्या की संख्या में इजाफा देखा गया है.एनसीआरबी के 2001 के आंकड़े में 5,425 बच्चों ने आत्महत्या की थी.2022 तक ये मामले बढ़कर 13,044 तक हो गए.इन मामलों में 2,248 छात्रों ने सीधे तौर पर परीक्षा में फेल होने पर आत्महत्या कर ली थी.इनके अलावा अवसाद, चिंता, अकेलापन, तनाव और समाज, दोस्तों या घर-परिवार से किसी तरह का समर्थन न मिलने के कारण भी कई बच्चे आत्महत्या का रास्ता चुन रहे हैं।

अगर अवसाद के शुरुआती संकेतों को समय रहते पहचाना जाए और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मदद ली जाए तो बच्चों को गंभीर मानसिक संकट से बचाया जा सकता है.इनमें से कुछ आदतें इस तरह की हो सकती हैं-- खाने और सोने की आदतों में बदलाव- दोस्तों और परिवार से दूर रहने लगना- अपनी व्यक्तिगत सफाई या खुद के रूप-रंग की उपेक्षा करना- प्रशंसा का असर न होना- उदासी या बार-बार रोना- सोशल मीडिया पर अकेलेपन या अवसाद से जुड़े पोस्ट करना- आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने के बारे में बात करना या संकेत देना- व्यवहार में अचानक बदलाव आना जैसे- चुपचाप या थके हुए रहना, किसी बात की परवाह न करना या अचानक ज्यादा बातूनी और मिलनसार बन जाना- बहुत ज्यादा सोना या बिल्कुल न सो पाना- चिड़चिड़ापन, गुस्सा या आक्रामकता का लगातार बना रहना- "मैं अब और नहीं सह सकता/सकती" या "मेरे बिना तुम्हारा जीवन बेहतर होगा" जैसे जीवन समाप्त करने वाले विचार व्यक्त करना बच्चों के चलने-बैठने, बात करने समेत छोटे-छोटे हाव-भाव से भी उनके मानसिक स्तर का पता लगाया जा सकता है।अभिभावकों के लिए ही जरूरी है.बच्चे किस तरह बैठकर काम कर रहे हैं, उनमें कोई बदलाव आ रहा है, वे चुप हैं या बहुत अधिक उत्तेजित हो रहे हैं, किसी बात को लेकर चिड़चिड़ा रहे हैं या फिर किसी भी तरह की भावना को दबाना सीख चुके हैं, इन बातों का पता सबसे पहले अभिभावकों को ही लगता है.ऐसे में उन्हें इस ओर जरूर ध्यान देना चाहिए।

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Kanpur: डिप्रेशन में शिक्षक ने गंगा में कूदकर दी जान, पांच महीने से चल रहा था बेरोजगार ।कारण कोई भी हो जब व्यक्ति की मान...
02/08/2025

Kanpur: डिप्रेशन में शिक्षक ने गंगा में कूदकर दी जान, पांच महीने से चल रहा था बेरोजगार ।

कारण कोई भी हो जब व्यक्ति की मानसिक स्थिति किसी भी कारण वश ठीक नहीं होती तो मजबूरन वह ऐसा गलत निर्णय ले लेता हैं
मानसिक तौर पर परेशान व्यक्ति और कुछ समझ नहीं आता ?
बेरोजगारी भी आज के समय में मानसिक समस्या का एक बड़ा कारण बन गई है।

एक काउंसलर होते हुए मैं यही कहना चाहूंगी जीवन में चाहे कितनी बड़ी समस्या क्यों ना आ जाए व्यक्ति को हार नहीं माननी चाहिए। व्यक्ति चाहे तो काउंसलिंग की मदद लेकर किसी भी बड़ी से बड़ी समस्या से बाहर आ सकता हैं।

इस तरह की घटनाएं जब भी समाज में होती हैं तो वह समाज में  हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देती है?एक इंसान की मानसिक स्थिति ...
31/07/2025

इस तरह की घटनाएं जब भी समाज में होती हैं तो वह समाज में हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देती है?
एक इंसान की मानसिक स्थिति अगर खराब हो तो वह कितने लोगों का जीवन खत्म कर सकती |

सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा प्रणाली में छात्रों पर बढ़ते मनोवैज्ञानिक दबाव पर चिंता व्यक्त की है, जिससे आत्महत्या के मामले ब...
26/07/2025

सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा प्रणाली में छात्रों पर बढ़ते मनोवैज्ञानिक दबाव पर चिंता व्यक्त की है, जिससे आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। कोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों को छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काउंसलर नियुक्त करने और कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने का निर्देश दिया है।

फिल्म ‘Saiyaara’ में Alzheimer बीमारी से कौन था पीड़ित, जानिए क्या है ये बीमारीफिल्म Saiyaara में Alzheimer यानी भूलने क...
25/07/2025

फिल्म ‘Saiyaara’ में Alzheimer बीमारी से कौन था पीड़ित, जानिए क्या है ये बीमारी
फिल्म Saiyaara में Alzheimer यानी भूलने की बीमारी दिखाई गई है. साथ ही इस बात पर प्रकाश डाला है कि युवा वर्ग में भी अल्जाइमर की शुरुआत हो सकती है. Alzheimer की अगर शुरुआत में ही पहचान कर ली जाए तो दवाएं और जीवनशैली में परिवर्तन, इसे धीमा कर सकते हैं. समझिए Alzheimer क्या है और इससे कैसे डील करना है

अल्जाइमर एक तरह की मानसिक बीमारी है जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे याददाश्त, सोचने और पहचानने की क्षमता खोने लगता है. यह सिर्फ भूलने की बीमारी नहीं, बल्कि दिमाग की कोशिकाएँ प्रभावित होने से होने वाला न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर है. यानी दिमागी क्षमताओं में धीरे-धीरे गिरावट आती है. Alzheimer एक प्रोग्रेसिव न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है- यानी यह समय के साथ बढ़ता है और मस्तिष्क की कोशिकाएं धीरे-धीरे मरने लगती हैं. इसका सबसे बड़ा असर हमारी याददाश्त (memory), सोचने की क्षमता, व्यवहार और निर्णय लेने की शक्ति पर पड़ता है. यह डिमेंशिया का सबसे आम रूप है.

ये लक्षण हो सकते हैं अल्जाइमर के संकेत

शुरुआत में Alzheimer के लक्षण हल्के होते हैं जैसे नाम भूल जाना, किसी बातचीत की लाइन भूल जाना, चीजों को इधर-उधर रख देना या समय-तारीख में कन्फ्यूजन होना. पर धीरे-धीरे ये लक्षण गंभीर हो जाते हैं. व्यक्ति अपने परिवार के लोगों को पहचानना बंद कर देता है, रोज़मर्रा के काम करने में परेशानी होती है और कई बार तो उसे खुद का भी ध्यान नहीं रहता. मूड स्विंग्स, गुस्सा आना, चिड़चिड़ापन और डिप्रेशन भी आम लक्षणों में शामिल हैं.

दिमाग पर कैसे करता है असर?

Alzheimer में दिमाग की कोशिकाओं में प्लाक्स (proteins) जमा होने लगते हैं जिससे न्यूरॉन्स आपस में ठीक से कम्यूनिकेट नहीं कर पाते. इससे दिमाग की स्मृति (memory) और सीखने की क्षमता प्रभावित होती है. समय के साथ दिमाग का वह हिस्सा भी कमजोर हो जाता है जो सोचने, समझने और निर्णय लेने का काम करता है. MRI या स्कैन में दिखता है कि दिमाग सिकुड़ने लगता है.

किन्हें ज्यादा खतरा होता है?

Alzheimer आमतौर पर 60 साल के बाद के लोगों में ज्यादा देखने को मिलता है. लेकिन कुछ मामलों में 40-50 की उम्र में भी इसके लक्षण दिख सकते हैं. आनुवंशिक (genetic) कारण, सिर में चोट, लो-फिजिकल एक्टिविटी, डिप्रेशन और हाई ब्लड प्रेशर जैसी स्थितियां इस बीमारी का खतरा बढ़ा सकती हैं.

क्या इलाज संभव है?

फिलहाल Alzheimer का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन शुरुआती स्टेज में दवाओं और थेरेपी से इसके असर को धीमा किया जा सकता है. परिवार का सहयोग, मरीज के लिए स्थिर माहौल और नियमित देखभाल बहुत जरूरी होता है. मानसिक और शारीरिक रूप से एक्टिव रहना भी इस बीमारी के जोखिम को कम कर सकता है|

25/07/2025

स्वस्थ मन से होगा
स्वस्थ जीवन |
किसी भी मानसिक समस्या अवसाद या डिप्रेशन को छिपाए नहीं आशावान रहे |
समय पर काउंसलर से सलाह ले|
info@counsellingwali.com

24/07/2025

🌍 बचपन का मोटापा - एक बढ़ती चिंता 🍔➡️🧘‍♂️

बच्चों में मोटापे की दर चिंताजनक रूप से बढ़ रही हैं।
फ़ास्ट फ़ूड, स्क्रीन टाइम और गतिहीन जीवनशैली आम बात हो गई है, जिससे हमारे बच्चों का स्वास्थ्य गंभीर खतरे में है। यह सिर्फ़ वज़न की बात नहीं है - यह मानसिक स्वास्थ्य, ऊर्जा स्तर, आत्म-सम्मान और दीर्घकालिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

🧘‍♀️ क्या योग इसका समाधान हो सकता है?
योग अनुशासन, सचेतनता, लचीलापन और शारीरिक गतिविधि को मज़ेदार और समावेशी तरीके से सिखाता है। क्या होगा अगर हम प्राथमिक विद्यालयों में सरल योग सत्र शुरू करें?

💬 आपकी क्या राय है?
माता-पिता, शिक्षक और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक व्यक्तियों के रूप में, मुझे आपके विचार जानकर खुशी होगी।
👉 क्या योग को कम उम्र से ही स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए?
👉 क्या आपको लगता है कि यह मोटापा, चिंता और खराब मुद्रा जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों को रोकने में मदद कर सकता है?

आइए, हम सब मिलकर अपने बच्चों के लिए एक स्वस्थ नींव तैयार करें।

बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) उनका मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक कल्याण है। यह बच्चों की सोच, भावनाओं, व्यवह...
21/07/2025

बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) उनका मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक कल्याण है। यह बच्चों की सोच, भावनाओं, व्यवहारों, और उनके संबंधों को प्रभावित करता है, साथ ही यह उनकी जीवन की गुणवत्ता और विकास के विभिन्न पहलुओं को भी प्रभावित करता है। मानसिक स्वास्थ्य का मतलब केवल मानसिक बीमारियों का न होना नहीं है, बल्कि इसका मतलब यह है कि बच्चा तनाव, चिंता और दबाव को समझने, उसे संभालने, और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने में सक्षम हो।

बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के पहलू:

1. भावनात्मक कल्याण: बच्चों का भावनात्मक स्वास्थ्य यह दर्शाता है कि वे अपने भावनाओं को कैसे समझते और व्यक्त करते हैं। यह उनके आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास, और दूसरों के साथ संबंधों पर असर डालता है। उदाहरण के लिए, अगर बच्चा स्वयं को नकारात्मक रूप से महसूस करता है, तो वह उदास या चिंतित हो सकता है।

2. सामाजिक कल्याण: बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उनके सामाजिक संबंधों पर निर्भर करता है। बच्चों को दोस्तों के साथ खेलने, परिवार से जुड़ने और अच्छे सामाजिक कौशल विकसित करने की आवश्यकता होती है। अच्छे सामाजिक कौशल और सकारात्मक संबंध बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करते हैं।

3. बुद्धिमानी और मानसिक विकास: मानसिक स्वास्थ्य बच्चों के मानसिक विकास को भी प्रभावित करता है। अगर बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहता है, तो वे बेहतर तरीके से समस्याओं का समाधान कर पाते हैं और अपनी मानसिक क्षमता का पूरा उपयोग कर पाते हैं। वे स्कूल और अन्य गतिविधियों में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।

4. तनाव और चिंता: बच्चों को अपनी उम्र के अनुसार कुछ हद तक तनाव और चिंता का सामना करना पड़ता है, जैसे कि स्कूल में प्रदर्शन, दोस्तों के साथ संबंध, या पारिवारिक समस्याएँ। हालांकि, अगर ये तनाव लंबे समय तक बने रहते हैं, तो यह मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं।

5. आत्म-नियंत्रण और भावनाओं का प्रबंधन: मानसिक स्वास्थ्य बच्चों को अपनी भावनाओं और प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह उन्हें गुस्सा, निराशा, या भय जैसी भावनाओं को सही तरीके से प्रबंधित करने की क्षमता प्रदान करता है।

मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ:

कुछ सामान्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ जो बच्चों में देखी जा सकती हैं, उनमें शामिल हैं:

चिंता विकार (Anxiety Disorders): इसमें बच्चों को लगातार भय और चिंता का अनुभव होता है, जैसे कि स्कूल जाने से डर, सामाजिक स्थिति का भय, आदि।

अवसाद (Depression): बच्चों में अवसाद का लक्षण होता है जैसे निराशा, उदासी, ऊर्जा की कमी, और आनंद का अभाव।

व्यक्तित्व विकार (Personality Disorders): बच्चे ऐसे मानसिक विकारों से भी प्रभावित हो सकते हैं जो उनके व्यक्तित्व और उनके सामाजिक संबंधों को प्रभावित करते हैं।

आत्महत्या के विचार: मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ कभी-कभी बच्चों को आत्महत्या के विचारों तक भी पहुँचा सकती हैं, जो एक गंभीर समस्या है।

मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल:

1. मनोवैज्ञानिक मदद: बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य में मदद देने के लिए, उन्हें मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह और उपचार की आवश्यकता हो सकती है।

2. परिवार और स्कूल का समर्थन: बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य के लिए घर और स्कूल से समर्थन मिलना बहुत जरूरी है। परिवार को बच्चों की भावनाओं को समझने और उनके साथ समय बिताने की आवश्यकता होती है। स्कूल में भी काउंसलिंग और सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से बच्चों को समर्थन मिल सकता है।

3. स्वस्थ जीवनशैली: बच्चों को मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए उनकी शारीरिक गतिविधि, आहार और नींद का भी ध्यान रखना आवश्यक है। एक स्वस्थ जीवनशैली मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करती है।

4. भावनात्मक लचीलापन (Emotional Resilience): बच्चों को अपनी भावनाओं को समझने और उन पर काबू पाने के लिए शिक्षित करना, उनके मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करने में मदद करता है। यह बच्चों को जीवन में आने वाली चुनौतियों से निपटने की क्षमता प्रदान करता है।

बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य उनके समग्र विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे समझना और देखभाल करना जरूरी है, ताकि बच्चे जीवन की चुनौतियों का सामना अच्छे से कर सकें और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकें। यदि बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं उभरती हैं, तो समय रहते उनका उपचार और समर्थन प्राप्त करना आवश्यक है।
अगर माता -पिता को पेरेंटिंग समस्या या बच्चे मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्या हो |
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तनाव, चिंता और अवसाद तब जन्म लेते हैं जब हम अपनी असली पहचान को भूलकर दूसरों को खुश करने के लिए जीने लगते हैं। खुद को समझ...
08/02/2025

तनाव, चिंता और अवसाद तब जन्म लेते हैं जब हम अपनी असली पहचान को भूलकर दूसरों को खुश करने के लिए जीने लगते हैं। खुद को समझें, अपनी भावनाओं को महत्व दें, और वही करें जो आपको सच्ची खुशी दे!


जेंटल पेरेंटिंग एक दयालु दृष्टिकोण है जो बच्चे की भावनात्मक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों को समझने और उनका पालन-पोषण ...
31/01/2025

जेंटल पेरेंटिंग एक दयालु दृष्टिकोण है जो बच्चे की भावनात्मक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों को समझने और उनका पालन-पोषण करने पर केंद्रित है. इसके मूल में, यह माता-पिता और बच्चों के बीच सहानुभूति, सम्मान और सकारात्मक संचार पर जोर देता है
जेंटल पेरेंटिंग एक दयालु दृष्टिकोण है जो बच्चे की भावनात्मक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों को समझने और उनका पालन-पोषण करने पर केंद्रित है. इसके मूल में, यह माता-पिता और बच्चों के बीच सहानुभूति, सम्मान और सकारात्मक संचार पर जोर देता है. इस पालन-पोषण दर्शन का उद्देश्य बच्चों को एक सहायक, अहिंसक और समझदार माहौल में बड़ा करना है.
1.बच्चे के लिए सम्मान

सौम्य पालन-पोषण बच्चों को उनके अपने विचारों, भावनाओं और अद्वितीय व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों के रूप में पहचानता है. यह उनकी स्वायत्तता को महत्व देता है और उनकी उम्र और समझ के अनुरूप निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उन्हें शामिल करने का प्रयास करता है.
2.सकारात्मक अनुशासन

चिल्लाना, पिटाई या टाइम-आउट जैसे दंडात्मक उपायों का सहारा लेने के बजाय, सौम्य पालन-पोषण सकारात्मक अनुशासन रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करता है. इसमें स्पष्ट सीमाएं निर्धारित करना, पुनर्निर्देशन का उपयोग करना और तार्किक परिणामों को नियोजित करना शामिल हो सकता है जो शर्म या डर पैदा करने के बजाय सिखाते और मार्गदर्शन करते हैं.
3.सहानुभूति और समझ

सौम्य पालन-पोषण करने वाले माता-पिता अपने बच्चे के दृष्टिकोण के साथ सहानुभूति रखने का प्रयास करते हैं. व्यवहार और ज़रूरतों के पीछे अंतर्निहित कारणों को समझकर, माता-पिता अधिक प्रभावी ढंग से और दयालुतापूर्वक प्रतिक्रिया दे सकते हैं

4.संगति और सीमाएं

सुसंगत नियम और सीमाएं स्थापित करने से बच्चों को सुरक्षा और पूर्वानुमान की भावना मिलती है. हालांकि, ये सीमाएं बच्चे के व्यक्तित्व और विकासात्मक अवस्था को ध्यान में रखते हुए सहानुभूति और लचीलेपन के साथ निर्धारित की जाती हैं.

5.शैक्षिक और सहयोगात्मक पालन-पोषण

सौम्य पालन-पोषण माता-पिता को बाल विकास, प्रभावी संचार और उम्र-उपयुक्त अपेक्षाओं के बारे में लगातार शिक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करता है. यह सहयोगात्मक समस्या-समाधान को भी बढ़ावा देता है और माता-पिता को संघर्षों या मुद्दों के समाधान खोजने में बच्चों को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

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