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21 साल का अभिरूप… इकलौता बेटा… और एक सपना देखने वाला छात्र। लेकिन पढ़ाई के दबाव, अधूरी तैयारी और लगातार बढ़ते स्ट्रेस के...
05/12/2025

21 साल का अभिरूप… इकलौता बेटा… और एक सपना देखने वाला छात्र। लेकिन पढ़ाई के दबाव, अधूरी तैयारी और लगातार बढ़ते स्ट्रेस के बीच वह अपनी ही लड़ाई हार गया। परिवार को कोई अंदाज़ा नहीं था कि उसके ‘मैं ठीक हूँ’ के पीछे इतनी गहरी घबराहट छिपी थी।

हमारे देश में एग्ज़ाम स्ट्रेस, परफॉर्मेंस प्रेशर और ओवरथिंकिंग युवाओं की मानसिक सेहत को अंदर ही अंदर खा रही है। हर साल हज़ारों छात्र इसी दबाव के कारण बेहद कठिन फैसले ले लेते हैं। लेकिन सच्चाई यह है—अंक आपकी कीमत नहीं तय करते, और एक खराब पेपर आपकी ज़िंदगी का अंत नहीं होता।

अगर आपका बच्चा, भाई, दोस्त या स्टूडेंट अचानक चुप हो जाए… बात बदलने लगे… खुद को कमरे में बंद रखने लगे—तो यह सिर्फ “पढ़ाई का तनाव” नहीं, help की पुकार भी हो सकती है।
कृपया सुनिए, देखिए, और ज़रूरत पड़े तो उन्हें पेशेवर मदद तक ले जाइए। एक बातचीत… एक समझ… एक छोटा सा कदम… कई ज़िंदगियां बचा सकता है।

_इमोशनल रेगुलेशन एक्सरसाइज:_1. माइंडफुलनेस मेडिटेशन: अभी के पल, सांस या शरीर के एहसास पर फोकस करें।2. गहरी सांस लेने की ...
27/11/2025

_इमोशनल रेगुलेशन एक्सरसाइज:_

1. माइंडफुलनेस मेडिटेशन: अभी के पल, सांस या शरीर के एहसास पर फोकस करें।

2. गहरी सांस लेने की एक्सरसाइज: धीमी, गहरी सांसों से नर्वस सिस्टम को शांत करें।

3. ग्राउंडिंग टेक्नीक: खुद को अभी में रखने के लिए सेंस (जैसे, देखना, आवाज़, छूना) का इस्तेमाल करें।

4. जर्नलिंग: दुख को समझने के लिए भावनाओं और विचारों को बताएं।

_शोक से जुड़ी खास एक्सरसाइज:_

1. मेमोरी बुक: गुज़र चुके व्यक्ति के साथ खुशनुमा यादों की एक बुक बनाएं।

2. शुक्रगुजार होने की प्रैक्टिस: उन चीज़ों के बारे में सोचें जिनके लिए आप शुक्रगुजार हैं।

3. सेल्फ-केयर रूटीन: एक आरामदायक डेली रूटीन बनाएं।

4. क्रिएटिव एक्सप्रेशन: भावनाओं को बताने के लिए आर्ट, म्यूज़िक या लिखने में शामिल हों।

_और टिप्स:_

1. भावनाओं को सही ठहराएं: भावनाओं को पहचानें और अपनाएं।

2. सोशल सपोर्ट को बढ़ावा दें: अपनों या सपोर्ट ग्रुप से जुड़ें। 3. खुद के प्रति दया दिखाएं: दूसरों के प्रति दया और समझ दिखाएं ।

पिछले कुछ दिनों से एक शब्द चर्चा में है AI Psychosis (साइकॉसिस)। इसका मतलब है कि कुछ लोग आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) चैटबॉ...
16/11/2025

पिछले कुछ दिनों से एक शब्द चर्चा में है AI Psychosis (साइकॉसिस)। इसका मतलब है कि कुछ लोग आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) चैटबॉट्स से बातचीत के दौरान मानसिक भ्रम और खतरनाक सोच जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। वे वास्तविकता और कल्पना में फर्क नहीं कर पा रहे और भ्रमित हो रहे हैं। यह समस्या खासकर उन लोगों में ज्यादा देखी गई है, जिन्हें पहले से मानसिक स्वास्थ्य में परेशानी होती है।​ स्टडी में पता चला कि लोग काउंसलिंग, सपोर्ट या स्यूसाइड प्रिवेंशन जैसे मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं के लिए ChatGPT, Gemini, Grok जैसे AI चैटबॉट से मदद ले रहे हैं। AI साइकॉसिस के लिए एक्सपर्ट इसी मदद को जिम्मेदार मान रहे हैं। कुछ मामलों में तो ऐसा हुआ कि मानसिक रूप से कमजोर लोग इन चैटबॉट्स से बातचीत करके मनोवैज्ञानिक रोगों जैसे आत्महत्या के विचार और मानसिक भटकाव की अवस्था में चले गए।

ध्यान देने योग्य बातें:

1.किसी भी गंभीर मानसिक समस्या के लिए आधिकारिक प्रफेशनल से संपर्क जरूर करें ।
2. AI से मिले सुझावों को अंतिम इलाज न मानें, बल्कि इसे इंसानी थेरपी का पूरक समझें।
3. AI चैटबॉटस या ChatGPT से बातचीत के बाद कोई अजीब विचार या भ्रम हो तो तुरंत काउंसलर और साइकॉलजिस्ट से संपर्क करें।​

The truly successful person is the one whose mindset is better than their financial condition.आज कल की भाग दौड़ भरी जिंद...
16/11/2025

The truly successful person is the one whose mindset is better than their financial condition.
आज कल की भाग दौड़ भरी जिंदगी में खुश रहने के लिए बहुत अधिक पैसा और बहुत सारे संसाधन नहीं चाहिए ।
सिर्फ एक अच्छा माइंडसेट चाहिए पॉजिटिव माइंडसेट चाहिए।

हमारा मन अक्सर ऐसी बातें सोचता है जो सच नहीं होतीं—और इसी वजह से हम चिंता, डर और ओवरथिंकिंग में फँस जाते हैं। किताब "Don...
14/11/2025

हमारा मन अक्सर ऐसी बातें सोचता है जो सच नहीं होतीं—और इसी वजह से हम चिंता, डर और ओवरथिंकिंग में फँस जाते हैं। किताब "Don't Believe Everything You Think" इसी एक गहरे सच पर आधारित है: समस्या हमारे विचार नहीं हैं, बल्कि उन विचारों पर किए गए हमारे विश्वास हैं।

किताब बताती है कि इंसान का दिमाग हमेशा सक्रिय रहता है। यह लगातार भविष्य की चिंता, पिछले पछतावे, या बनाए हुए डर पैदा करता रहता है। लेकिन असली आज़ादी तब आती है जब इंसान समझ जाता है कि हर विचार को सच मानना ज़रूरी नहीं है।

इस किताब के अनुसार, नेगेटिव थॉट्स को रोकने की कोशिश करना बेकार है—क्योंकि जितना रोकोगे, वो उतने ही तेज़ वापस आते हैं। असली समाधान है: विचारों को आना-जाना दो, पर उनके पीछे मत भागो।

लेखक बताते हैं कि हमारे भावनाएँ सीधे हमारे विचारों से बनती हैं। जब हम किसी गलत या ओवरथिंक किए हुए विचार को सच मान लेते हैं, तो डर या उदासी पैदा होती है। लेकिन वही विचार अगर हम सिर्फ एक "गुज़रते हुए बादल" की तरह देखें, तो हम instantly हल्का महसूस करते हैं।

Don’t Believe Everything You Think ये सिखाती है कि असली शांति भीतर से आती है—जब हम समझ जाते हैं कि हमारा मन ही कभी-कभी सबसे बड़ा झूठा कहानीकार होता है। सोच को बदलने की जगह, बस सोच को "देखना" सीख लो। यही मानसिक आज़ादी है।





वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि शारीरिक गतिविधि दवा से 1.5 गुना ज्यादा असरदार है — चिंता और डिप्रेशन को कम करने में।एक ब...
07/11/2025

वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि शारीरिक गतिविधि दवा से 1.5 गुना ज्यादा असरदार है — चिंता और डिप्रेशन को कम करने में।
एक बड़ी रिसर्च British Journal of Sports Medicine में प्रकाशित हुई, जिसमें 100 से ज़्यादा स्टडीज़ और 1 लाख 28 हजार से अधिक लोगों के डेटा का विश्लेषण किया गया। नतीजा चौंकाने वाला था — लगभग हर तरह की एक्सरसाइज मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है, लेकिन कम समय वाली, हाई-इंटेंसिटी वर्कआउट्स का असर सबसे ज़्यादा पाया गया।

जिन लोगों में सबसे ज़्यादा सुधार देखा गया, उनमें डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति, क्रॉनिक बीमारियों (जैसे HIV या किडनी डिज़ीज़) वाले मरीज, गर्भवती और नई माताएँ, और स्वस्थ वयस्क शामिल थे। हैरानी की बात यह रही कि लंबे प्रोग्राम की नहीं, बल्कि छोटे समय की एक्सरसाइज ने सबसे अच्छा असर दिखाया। यानी हर हफ़्ते सिर्फ़ 150 मिनट की एक्टिविटी — जैसे तेज़ चलना, योग या स्ट्रेंथ ट्रेनिंग — मानसिक तनाव को काफ़ी हद तक घटा सकती है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, इसका कारण शरीर में एंडॉर्फिन रिलीज़, सूजन में कमी और न्यूरोट्रांसमीटर फ़ंक्शन में सुधार है।
आज जब पूरी दुनिया में डिप्रेशन और चिंता बढ़ रही है, विशेषज्ञ कहते हैं — अब वक्त आ गया है कि एक्सरसाइज को पहली दवा माना जाए, न कि सिर्फ़ एक शौक़।

राजस्थान के धौलपुर में एक 13 साल के बच्चे ने पिता की डांट के बाद फांसी लगाकर जान दे दी। बताया जा रहा है कि पिता ने उसे म...
07/11/2025

राजस्थान के धौलपुर में एक 13 साल के बच्चे ने पिता की डांट के बाद फांसी लगाकर जान दे दी। बताया जा रहा है कि पिता ने उसे मोबाइल गेम खेलने से रोका, जिससे नाराज़ होकर वह कमरे में चला गया और खुदकुशी कर ली।

👉 ऐसी घटनाएँ बताती हैं कि बच्चों की मानसिक स्थिति और भावनात्मक संतुलन पर ध्यान देना कितना ज़रूरी है।
कभी-कभी छोटी-सी बात उनके लिए बहुत बड़ी लग सकती है।
बच्चों के स्क्रीन टाइम को सिर्फ सीमित ही नहीं, बल्कि समझदारी से मॉनिटर करना भी ज़रूरी है।

पैरेंटिंग टिप्स:

बच्चों से खुलकर बात करें, उन्हें भावनाएँ साझा करने दें।
गेम या मोबाइल को सज़ा का नहीं, बैलेंस का हिस्सा बनाएं।
अगर बच्चा लगातार चिड़चिड़ा या उदास दिखे, तो विशेषज्ञ की सलाह लें।

शैडो आर्ट (छाया कला) एक रचनात्मक माध्यम है जिसमें कलाकृति बनाने के लिए प्रकाश और छाया का उपयोग किया जाता है। इसमें प्रका...
05/11/2025

शैडो आर्ट (छाया कला) एक रचनात्मक माध्यम है जिसमें कलाकृति बनाने के लिए प्रकाश और छाया का उपयोग किया जाता है। इसमें प्रकाश स्रोत, वस्तुओं या आकृतियों का उपयोग करके छाया डाली जाती है, जिससे एक सपाट सतह पर चित्र बनते हैं। यह कला गहराई, गति और रूप को दर्शा सकती है।

1. शैडो आर्ट के रचनात्मक तरीके
3D से 2D: 3D वस्तुओं या मूर्तियों का उपयोग करके 2D छाया चित्र बनाना एक लोकप्रिय तरीका है। यह एक अद्भुत और प्रेरणादायक दृश्य प्रभाव पैदा कर सकता है।

2. आकृतियों और आकृतियों से खेलना: कागज़ या अन्य सामग्री से आकृतियाँ काटकर उन्हें प्रकाश स्रोत के सामने रखकर उनकी छायाओं का उपयोग करें। अलग-अलग आकृतियाँ और ऊँचाइयाँ छायाओं के आकार को बदल सकती हैं।

3. प्रकृति का उपयोग करें: धूप वाले दिन किसी पेड़ के पास एक लंबा कागज़ बिछाएँ। पत्तियों और शाखाओं की छायाएँ खुद ही एक सुंदर कलाकृति बना सकती हैं।

4. रहस्य और कल्पना को शामिल करें: शैडो आर्ट का उपयोग करके आप दृश्य के एक हिस्से को छिपा सकते हैं। छाया का उपयोग एक रहस्य बनाने के लिए किया जा सकता है जो दर्शक को कल्पना करने पर मजबूर करता है कि क्या हो रहा है।

5. बच्चों के लिए: यह बच्चों के लिए एक मजेदार गतिविधि है जो ड्राइंग कौशल के साथ रचनात्मकता को विकसित करने में मदद करती है।

क्या आपका पार्टनर इमोशनली कंट्रोल में रखता है आपको? मेंटल स्ट्रेस दूर रखने के लिए इस तरह रखें खुद का ख्‍यालEmotional Man...
05/11/2025

क्या आपका पार्टनर इमोशनली कंट्रोल में रखता है आपको? मेंटल स्ट्रेस दूर रखने के लिए इस तरह रखें खुद का ख्‍याल

Emotional Manipulation in Relationships : रिश्ता तभी मजबूत होता है जब उसमें बराबरी, भरोसा और इमोशनल सपोर्ट हो. लेकिन कई बार यही रिश्ता धीरे-धीरे एक तरफ झुकने लगता है. शुरुआत में पार्टनर का ओवरकेयर करना या हर बात में दिलचस्पी दिखाना प्यार जैसा लगता है, पर जब यही व्यवहार आपकी आज़ादी और सोच पर हावी होने लगे, तो समझ लीजिए बात अब इमोशनल कंट्रोलिंग तक पहुंच गई है

इमोशनल कंट्रोलिंग वह स्थिति है जब कोई व्यक्ति आपको अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करता है, वो भी प्यार या केयर के नाम पर. ऐसा पार्टनर आपकी भावनाओं को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता है. वह चाहता है कि आप उसकी बात मानें, और जब आप ऐसा नहीं करते, तो आपको गिल्टी महसूस कराता है. धीरे-धीरे यह पैटर्न आपकी सोच और आत्मविश्वास पर असर डालने लगता है
1.क्यों बढ़ता है मानसिक तनाव?
ऐसे रिश्तों में रहने से इंसान धीरे-धीरे अपने आत्मसम्मान को खोने लगता है. लगातार कंट्रोल किए जाने की वजह से आप खुद पर भरोसा नहीं कर पाते. आपकी सोच सीमित होने लगती है और हर फैसले से पहले डर लगने लगता है. इस तरह का इमोशनल दबाव आगे चलकर चिंता (anxiety) और अवसाद (depression) जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है

2.पहचानें कि यह प्यार नहीं, कंट्रोल है
पहला कदम है सच्चाई को स्वीकार करना. खुद से ईमानदारी से पूछें, क्या आप इस रिश्ते में खुश हैं या बस डर और guilt के साथ रह रहे हैं? सच्चा प्यार आपको सुरक्षित महसूस कराता है, जबकि कंट्रोलिंग रिश्ता आपको कमजोर बना देता है

3.अपनी सीमाएं तय करें
‘ना’ कहना सीखें. हर बार पार्टनर की मर्जी मानना जरूरी नहीं है. अगर कुछ बातें आपको परेशान करती हैं, तो साफ और सम्मानजनक तरीके से उन्हें बताएं. रिश्ते में अपनी सीमाएं तय करना एक हेल्‍दी आदत है

4.किसी भरोसेमंद से बात करें
अगर आपको लग रहा है कि बात हाथ से निकल रही है, तो चुप न रहें. किसी भरोसेमंद दोस्त, परिवार के सदस्य या काउंसलर से बात करें. बाहर की राय अक्सर स्थिति को साफ नज़रिए से देखने में मदद करती है.

5. खुद का ख्याल रखना सीखें
रिश्ते में रहते हुए खुद की पहचान खो देना सबसे बड़ी गलती होती है. अपने लिए वक्त निकालें, पसंदीदा काम करें, और जरूरत हो तो प्रोफेशनल मदद लें. याद रखें, प्यार तभी सच्चा होता है जब वह आपको आज़ादी देता है, न कि आपके इमोशन्स पर कंट्रोल करता है. सच्चा रिश्ता आपको मजबूत बनाता

कभी सोचा है — जो मोबाइल हमने बच्चों को “शांत” रखने के लिए दिया था, वही अब उनकी शांति छीन रहा है। 📱💭लखनऊ के डॉक्टरों ने ह...
04/11/2025

कभी सोचा है — जो मोबाइल हमने बच्चों को “शांत” रखने के लिए दिया था, वही अब उनकी शांति छीन रहा है। 📱💭
लखनऊ के डॉक्टरों ने हाल ही में बताया कि बच्चों में बढ़ता स्क्रीन टाइम उनके दिमाग, नींद और व्यवहार पर गहरा असर डाल रहा है। छोटे-छोटे बच्चे जो पहले खेल के मैदान में दौड़ते थे, अब स्क्रीन पर आंखें गड़ाकर बैठे रहते हैं।

जब 3 साल का बच्चा कार्टून या गेम्स में घंटों डूबा रहता है, तो उसका दिमाग लगातार हाई अलर्ट मोड में रहता है — जिससे उसका ध्यान, सीखने की क्षमता और भावनात्मक नियंत्रण धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगता है।
👉 उदाहरण के तौर पर, एक बच्चे ने हर दिन 5–6 घंटे मोबाइल पर गेम खेलना शुरू किया। कुछ हफ्तों में उसने स्कूल का ध्यान खो दिया, रात में नींद नहीं आती थी और छोटी बातों पर चिड़चिड़ा हो गया।
ये बदलाव सिर्फ "आदत" नहीं हैं — ये एक साइलेंट अलार्म हैं कि हम अपने बच्चों को डिजिटल लत की ओर धकेल रहे हैं।

माता-पिता सोचते हैं कि फोन देने से बच्चा “बिजी” रहता है, लेकिन असल में वो खुद से दूर होता जा रहा है।
थोड़ी देर की राहत हमें शायद आसान लगे, पर आने वाले सालों में यही आराम हमारे बच्चे के दिमाग़ और भावनाओं पर बोझ बन जाता है।

💡 याद रखिए:
"बच्चों को स्क्रीन नहीं, अपनी नज़रों की ज़रूरत है।
उन्हें नेटवर्क नहीं, आपकी नेचर चाहिए।"

आज से एक छोटा कदम उठाइए —
• हर दिन कुछ समय बिना फोन के बच्चे के साथ बिताइए।
• स्क्रीन की जगह कहानी, खेल या बातचीत को दीजिए।
• उन्हें दिखाइए कि असली दुनिया मोबाइल की नहीं, मोहब्बत की होती है। ❤️

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