Astrologer Dr. Rakhi Sharma

Astrologer Dr. Rakhi Sharma Mrs. As completing her graduation in Tourism

Dr. Rakhi Sharma Reiki Grand master and Vedic Astrologer from one of premier astrology institute ICAS, beside it she is consultant for Palm reading, Vastu, Face reading and Tarot reader as well .

खेजड़ी या शमी एक वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों में पाया जाता है। यह वहां के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। इ...
05/11/2024

खेजड़ी या शमी एक वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों में पाया जाता है। यह वहां के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। इसके अन्य नामों में घफ़ (संयुक्त अरब अमीरात), खेजड़ी, जांटी, सांगरी (राजस्थान), छोंकरा (उत्तर प्रदेश), जंड (पंजाबी), कांडी (सिंध), वण्णि (तमिल), शमी, सुमरी (गुजराती) आते हैं। इसका व्यापारिक नाम कांडी है। यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं। अंग्रेजी में यह प्रोसोपिस सिनेरेरिया नाम से जाना जाता है। खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। इसकी लकड़ी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है। अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। सन 1899 में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे। इस पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार ज्यादा होती है।

1. दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा भी है।
2.रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा है जो स्वर्ण का प्रतीक मानी जाती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है। पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं। इसी प्रकार लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है।
3. शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। वसन्त ऋतु में समिधा के लिए शमी की लकड़ी का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार वारों में शनिवार को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है।

1983 में इसे राजस्थान राज्य का राज्य वृक्ष घोषित कर दिया था।

Shri Krishna ki kripa se prakritik upchar kendra ki shuruaat....
02/11/2024

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17/10/2024
मां शैलपुत्री की क्यों होती है प्रथम पूजा -मां दुर्गा के नौ रुपों में पहला रुप है शैलपुत्री का । नवरात्र के पहले दिन घट ...
03/10/2024

मां शैलपुत्री की क्यों होती है प्रथम पूजा -
मां दुर्गा के नौ रुपों में पहला रुप है शैलपुत्री का । नवरात्र के पहले दिन घट स्थापना के साथ देवी के इसी रुप की पूजा की जाती है । मां का यह रुप सौम्य और भक्तों को प्रसन्नता देने वाला है । ऐसी मान्यता है कि देवी पार्वती पूर्व जन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थी । दक्ष के यज्ञ कुंड में जलकर देवी सती ने जब अपने प्राण त्याग दिए तब महादेव से पुनः मिलन के लिए उन्होंने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रुप में जन्म लिया । पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये हेमवती और उमा नाम से जानी जाती हैं । पर्वत को शैल भी कहा जाता है इसलिए माता का प्रथम रुप शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है । मान्यता है कि देवी पार्वती ने अपने पूर्वजन्म के पति भगवान शिव को पुनः पाने के लिए वर्षों कठोर तप किया । इनके तप से प्रसन्न होकर महादेव ने पार्वती को पत्नी रुप में स्वीकार कर लिया । विवाह के पश्चात देवी पार्वती अपने पति भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं । इसके बाद मां पार्वती हर साल नवरात्र के नौ दिनों में पृथ्वी पर माता-पिता से मिलने अपने मायके आने लगीं । संपूर्ण पृथ्वी माता को मायका माना जाता है । नवरात्र के पहले दिन पर्वतराज अपनी पुत्री का स्वागत करके उनकी पूजा करते थे इसलिए नवरात्र के पहले दिन मां के शैलपुत्री रुप की पूजा की जाती है । भगवती का वाहन बैल है । इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है । साथ ही इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक माना जाता है । दुर्गम स्थलों पर स्थित बस्तियों में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना इसीलिए की जाती है कि वह स्थान सुरक्षित रह सके ।

सोमवती अमावस्या का महत्वधार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सोमवती अमावस्या बेहद महत्वपूर्ण होती है। यह दिन पितरों की पूजा के ल...
02/09/2024

सोमवती अमावस्या का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सोमवती अमावस्या बेहद महत्वपूर्ण होती है। यह दिन पितरों की पूजा के लिए समर्पित है। कई लोग अपने पितरों की शांति के लिए इस शुभ दिन पर पितृ तर्पण और पितृ पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही उनका विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। अगर आप पितृ दोष की समस्या से लगातार परेशान हैं, तो आपको इस दिन पितरों की पूजा जरूर करनी चाहिए।सोमवती अमावस्या नियम
यह दिन दान-पुण्य के लिए शुभ माना जाता है। भारत के कुछ हिस्सों में लोग इस दिन व्रत रखते हैं। इस दिन लोग विभिन्न प्रकार की धार्मिक विधियां करते हैं। इस दिन गंगा स्नान करना शुभ माना गया है। इस दिन पीपल पर कच्चे दूध में जल मिलाकर चढ़ाएं और 7 बार उसकी परिक्रमा लगाएं। इस तिथि पर जल में तिल मिलाकर पितरों के नाम का दक्षिण दिशा में तर्पण करें। विधि अनुसार शिव पूजन करें। भगवान सूर्य को अर्घ्य दें। इस दिन गरीबों की मदद जरूर करें। इस तिथि पर गाय को चारा खिलाना भी शुभ माना जाता है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, नागों को भगवान के रूप में पूजा जाता है. इस साल यह 9 अगस्त को नाग पंचमी मनाया जा रहा हैनाग...
08/08/2024

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, नागों को भगवान के रूप में पूजा जाता है. इस साल यह 9 अगस्त को नाग पंचमी मनाया जा रहा हैनाग पंचमी हिंदुओं का एक पारंपरिक त्योहार है और हिंदू समुदाय में इसका बहुत महत्व है. यह हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है और हरियाली तीज के दो दिन बाद मनाया जाता है नाग पंचमी. इस शुभ दिन पर, पूरे भारत में लोग सांपों की पूजा करते हैं. भक्त भगवान शिव के साथ सांपों का संबंध पाते हैं और इसलिए भगवान से सद्भावना, समृद्धि और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, नागों को भगवान के रूप में पूजा जाता है. इस साल यह 9 अगस्त को नाग पंचमी मनाया जा रहा है और यहां कुछ ऐसी बातें बताई गई हैं जिनका पालन हर भक्त को नाग देवता की पूजा करते समय करना चाहिए.

नाग पंचमी के दिन क्या करें
नाग देवता की पूजा करते समय, भक्त भगवान से आशीर्वाद लेने के लिए पारंपरिक समारोह और अनुष्ठान करते हैं. अनुष्ठान करने के अलावा, नाग देवता को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न नाग पंचमी मंत्रों का जाप भी किया जा सकता है.
इस दिन, लोग अपने धार्मिक अभ्यास के हिस्से के रूप में या तो उपवास करते हैं या केवल शाकाहारी भोजन खाते हैं. इससे उनके शरीर को शुद्ध करने में मदद मिलती है और नाग देवता के साथ उनका आध्यात्मिक बंधन मजबूत होता है. उपवास करना और शाकाहारी भोजन करना इस विशेष दिन के महत्व को सम्मान और आदर दिखाने के तरीके के रूप में देखा जाता है.नाग पंचमी पर सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान सांप की मूर्तियों या चित्रों को दूध चढ़ाना है. यह कार्य नाग देवता के प्रति सम्मान दर्शाता है और आशीर्वाद, अच्छा स्वास्थ्य, खुशी और सफलता लाता है.
नाग पंचमी का महत्व मंदिरों में जाना और नाग देवता की पूजा करना है. यह परंपरा बहुत गहरी है और ईश्वरीय सुरक्षा के लिए आभार और हार्दिक प्रार्थना दर्शाती है.
नाग पंचमी के महत्व को अगली पीढ़ी तक पहुंचाएं इस त्योहार का महत्व, इसकी परंपराएं और सांपों के संरक्षण का महत्व सिखाएं.

नाग पंचमी के दिन क्या न करें

नाग पंचमी के दिन, जमीन पर हल चलाने से बचना सबसे अच्छा है क्योंकि इससे नीचे रहने वाले सांपों को चोट लग सकती है या उन्हें नुकसान भी पहुंच सकता है.
नाग पंचमी के दौरान, पेड़ों को काटने से बचना एक अच्छा विचार है. सांप अक्सर पेड़ों पर अपना घर बनाते हैं, और उन्हें काटने से उनके आवास नष्ट हो सकते हैं.
इस दिन सांपों को नुकसान पहुंचाना या उन्हें चोट पहुंचाना महत्वपूर्ण नहीं है. सांपों सहित सभी प्राणियों के प्रति दया दिखाना नाग पंचमी की एक मुख्य मान्यता है.

हरियाली तीज क्यों मनाई जाती है, क्या होता है महत्व जानें पौराणिक कथाओं के अनुसार अगर किसी लड़की की शादी में देरी हो रही ...
07/08/2024

हरियाली तीज क्यों मनाई जाती है, क्या होता है महत्व जानें
पौराणिक कथाओं के अनुसार अगर किसी लड़की की शादी में देरी हो रही है तो उसे हरियाली तीज का व्रत जरूर करना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि हरियाली तीज का व्रत करने से जल्द विवाह के योग बनते हैं.

हर साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली या हरतालिका तीज मनाई जाती है. हरियाली तीज का व्रत 7 अगस्त 2024 को है. तीज के दिन सुहागिनें निर्जला व्रत करती हैं, और 16 श्रृंगार कर भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करती हैं. इस व्रत को करने से सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान मिलता है. पति की लंबी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए इस व्रत का महत्व माना गया है.हरियाली तीज का त्यौहार बड़ी हो धूम धाम से मनाया जाता है. तीज के दिन ही देवों के देव महादेव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया. माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए 107 जन्मों तक तप किया था. भगवान भोलेनाथ माता पार्वती के कठिन तप से प्रसन्न हुए, उन्होंने 108 वें जन्म के में पार्वती जी से विवाह रचाया. यही कारण है कि हरियाली तीज का दिन सुहागिनों और कुंवारी कन्याओं के लिए बहुत खास होता है. इस व्रत को करने से स्त्रियों को मनोवांछित फल मिलता है.हरियाल तीज के दिन विधि-विधान के साथ मां गौरी की पूजा अर्चना करें. हरियाली तीज के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके व्रत और पूजा करती हैं. कलश, चंदन, अक्षत, पीला कपड़ा, केले के पत्ते, बेलपत्र, भांग, धतूरा, शहद, चीनी, गया का दूध, गंगाजल, पंचामृत, सुपारी, नारियल, कपूर, घी, तेल, गुलाल, कच्चा सूत, जनेऊ, पार्वती माता को अर्पित करने के लिए एक हरी साड़ी, सोलह श्रृंगार की चीजें जैसे बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, चूड़ी, मेंहदी, महावर, बिछिया, इत्र, कंघी आदि हरियाली तीज के दिन पूजन की थाली में इन चीजों का होना जरूरी है. इन चीजों को शामिल करने से पूजन सामग्री पूर्ण मानी जाती है और व्रत का फल भी मिलता है.

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31/07/2024

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हरियाली अमावस्या के दिन दान-पुण्य के साथ ही पौधे लगाने का भी खास महत्व है. क्या है इसका धार्मिक महत्व जानें यहां. कब है ...
28/07/2024

हरियाली अमावस्या के दिन दान-पुण्य के साथ ही पौधे लगाने का भी खास महत्व है. क्या है इसका धार्मिक महत्व जानें यहां.

कब है हरियाली अमावस्या, जानें इसका धार्मिक महत्व
सावन के महीने में आने वाली अमावस्या काफी खास होती है, यह हरियाली अमावस्या कहलाती है. इस दिन भगवान शिव की पूजा पूरे भक्ति भाव से की जाती है. हरियाली अमावस्या पर पितरों का आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध करने का खास महत्व है. साथ ही गंगा स्नान, दान-पुण्य का भी इस दिन खास महत्व होता है.यह अमावस्या हरियाली तीज के त्योहार से तीन दिन पहले आती है. श्रावण मास में हर तरफ हरा-भरा होने की वजह से इसको हरियाली अमावस्या कहा जाता है.खास बात ये भी है कि मनोकामना पूर्ति के लिए इस दिन पौधे लगाने का भी विधान है. इस साल कब है हरियाली अमावस्या और क्या है इसका धार्मिक महत्व जानें यहा

क्या है हरियाली अमावस्या का धार्मिक महत्व
मान्यता है कि हरियाली अमावस्या को पूजा के साथ अगर दान-पुण्य भी किया जाए तो उम्र लंबी होती है. घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है.मान्यता ये भी है कि इस दिन पिंड दान और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. इस दिन पर्यावरण को भी काफी महत्व दिया जाता है. हरियाली अमावस्या को अगर पेड़ लगाए जाएं तो जीवन में कई तरह के दुखों से मुक्ति मिल जाती है. हरियाली अमावस्या पर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा करने से उनका आशीर्वाद बना रहता है.कुंवारी लड़कियों को मनचाहा पति मिलता है और सुहागिनों का सौभाग्य अखंड रहता है. जो लोग कालसर्प योग से परेशान हैं, वह अगर हरियाली अमावस्या के दिन शिवलिंग पर रुद्राभिषेक और जलाभिषेक करें तो उनको विशेष लाभ मिलता है.

हरियाली अमावस्या के उपाय

हरियाली अमावस्या को गौमाता को रोटी पर खीर रखकर खिलाना बहुत शुभफलदायी माना जाता है.

हरियाली अमावस्या को कुत्ते को सरसों के तेल से बनी रोटी लिखाना भी काफी लाभदायक है. इस उपाय को करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है.

हरियाली अमावस्या को सवा मीटर सफेद कपड़े के भीतर करीब 250 ग्राम चावल को 11 रुपए और सूखे नारियल से साथ बांधकर 21 बार उतारा करें और फिर इसको घर की किसी सेफ जगह पर रख दें. इस उपाय को करने से पितरों का आशीर्वाद बना रहेगा.

हरियाली अमावस्या के दिन शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे तिल के तेल का दीपक जालना चाहिए साथ ही पांच तरह की मिठाइयों को पीपल के पत्ते पर रखने के बाद पितरों के मंत्र का जाप करें.

हरियाली अमावस्या पर पेड लगाने का भी विशेष महत्व माना जाता है.मान्यता है कि इस दिन पेड़ लगाने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है.

21/07/2024

गुरु की महिमा अनंत और अपरंपार है। वे ज्ञान के प्रकाश स्तंभ होते हैं जो अज्ञानता के अंधकार को दूर करते हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और उनके बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव मानी गई है।गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व गुरु के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।‘गुरु’ शब्द का अर्थ होता है - अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाला। गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं और उनकी उन्नति में सहायक बनते हैं। लोक में सामान्यतः दो तरह के गुरु होते हैं। प्रथम तो शिक्षा गुरु और दूसरे दीक्षा गुरु। शिक्षा गुरु बालक को शिक्षित करते हैं और दीक्षा गुरु शिष्य के अंदर संचित विकारों को निकाल कर उसके जीवन को सत्यपथ की ओर अग्रसित करते हैं।Amar Ujala
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Guru Purnima 2024: जानिए ज्ञान और श्रद्धा का पावन पर्व गुरु पूर्णिमा का महत्व
धर्म डेस्क, अमर उजाला Published by: विनोद शुक्ला Updated Sun, 21 Jul 2024 06:29 AM IST
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सार
Guru Purnima 2024: गुरु की महिमा अनंत और अपरंपार है। वे ज्ञान के प्रकाश स्तंभ होते हैं जो अज्ञानता के अंधकार को दूर करते हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और उनके बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव मानी गई है।
धर्म फटाफट: पढ़ें सभी खबरें 60s में
Guru Purnima 2024 Date Time And Know Importance of Guru In Our Life
Guru Purnima 2024: गुरु पूर्णिमा पर गुरु को आदर और सम्मान देने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। - फोटो : अमर उजाला
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Guru Purnima 2024: गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व गुरु के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।‘गुरु’ शब्द का अर्थ होता है - अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाला। गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं और उनकी उन्नति में सहायक बनते हैं। लोक में सामान्यतः दो तरह के गुरु होते हैं। प्रथम तो शिक्षा गुरु और दूसरे दीक्षा गुरु। शिक्षा गुरु बालक को शिक्षित करते हैं और दीक्षा गुरु शिष्य के अंदर संचित विकारों को निकाल कर उसके जीवन को सत्यपथ की ओर अग्रसित करते हैं।
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प्रत्येक पूर्णिमा का अपना महत्व होता है लेकिन गुरु पूर्णिमा पर की गई पूजा, उपवास व दान-पुण्य बहुत पुण्यदायी माने गए हैं। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं और उनकी दी गई शिक्षाओं का पालन करने का संकल्प लेते हैं। लोग अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेने के लिए इस दिन उनके पास जाते हैं और उनकी चरण वंदना कर उन्हें विभिन्न उपहार देते हैं। यह दिन केवल शैक्षिक गुरुओं के लिए नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन करने वाले सभी गुरुओं के प्रति समर्पित है। इस दिन गुरु मंत्र लेने की भी परंपरा है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति होती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। विशेषरूप से गुरु पूर्णिमा पर गुरु को आदर और सम्मान देने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।इस दिन को वेदव्यास जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, इसीलिए इसे व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है। इन्होंने मनुष्य जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था इसीलिए इन्हें जगत का प्रथम गुरु माना जाता है।

शास्त्रों में गुरु की महिमा
गुरु की महिमा अनंत और अपरंपार है। वे ज्ञान के प्रकाश स्तंभ होते हैं जो अज्ञानता के अंधकार को दूर करते हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और उनके बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव मानी गई है। वेदों में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप बताया गया है।''गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः'' अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।

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20/07/2024

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हरियाली तीज क्यों मनाई जाती है, क्या होता है महत्व... जानें पूजा में क्या-क्या होगा शामिलपौराणिक कथाओं के अनुसार अगर किस...
20/07/2024

हरियाली तीज क्यों मनाई जाती है, क्या होता है महत्व...

जानें पूजा में क्या-क्या होगा शामिल

पौराणिक कथाओं के अनुसार अगर किसी लड़की की शादी में देरी हो रही है तो उसे हरियाली तीज का व्रत जरूर करना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि हरियाली तीज का व्रत करने से जल्द विवाह के योग बनते हैं.

जानिए क्यों मनाई जाती है हरतालिका तीज
जानिए क्यों मनाई जाती है हरतालिका तीज
हर साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली या हरतालिका तीज मनाई जाती है. तीज के दिन सुहागिनें निर्जला व्रत करती हैं, और 16 श्रृंगार कर भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करती हैं. इस व्रत को करने से सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान मिलता है. पति की लंबी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए इस व्रत का महत्व माना गया है.इसे हरियाली तीज या श्रावणी तीज भी कहते हैं. हरियाली तीज का त्यौहार बड़ी हो धूम धाम से मनाया जाता है. तीज के दिन ही देवों के देव महादेव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया. माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए 107 जन्मों तक तप किया था. भगवान भोलेनाथ माता पार्वती के कठिन तप से प्रसन्न हुए, उन्होंने 108 वें जन्म के में पार्वती जी से विवाह रचाया. यही कारण है कि हरियाली तीज का दिन सुहागिनों और कुंवारी कन्याओं के लिए बहुत खास होता है. इस व्रत को करने से स्त्रियों को मनोवांछित फल मिलता है.हरियाली तीज का व्रत रखने से बनते हैं शादी के योग

पौराणिक कथाओं के अनुसार अगर किसी लड़की की शादी में देरी हो रही है तो उसे हरियाली तीज का व्रत जरूर करना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि हरियाली तीज का व्रत करने से जल्द विवाह के योग बनते हैं. अगर किसी लड़की की शादी में बार-बार मुश्किलें आ रही हैं या बात बनते-बनते बिगड़ जाती है तो हरियाल तीज के दिन विधि-विधान के साथ मां गौरी की पूजा अर्चना करें. हरियाली तीज के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके व्रत और पूजा करती हैं. कलश, चंदन, अक्षत, पीला कपड़ा, केले के पत्ते, बेलपत्र, भांग, धतूरा, शहद, चीनी, गया का दूध, गंगाजल, पंचामृत, सुपारी, नारियल, कपूर, घी, तेल, गुलाल, कच्चा सूत, जनेऊ, पार्वती माता को अर्पित करने के लिए एक हरी साड़ी, सोलह श्रृंगार की चीजें जैसे बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, चूड़ी, मेंहदी, महावर, बिछिया, इत्र, कंघी आदि हरियाली तीज के दिन पूजन की थाली में इन चीजों का होना जरूरी है. इन चीजों को शामिल करने से पूजन सामग्री पूर्ण मानी जाती है और व्रत का फल भी मिलता है.

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