22/06/2025
❤️ कहानी: सफ़र में तुम...
दिल्ली स्टेशन की भीड़ में हर कोई कहीं ना कहीं पहुंचने की जल्दी में था। प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर खड़ा आरव अपने मोबाइल में घड़ी देखते हुए बोर हो रहा था। आज वो लखनऊ जा रहा था — काम से छुट्टी लेकर घर। लेकिन इस सफ़र में कुछ अलग था, एक अजीब सी बेचैनी, एक खालीपन।
शताब्दी एक्सप्रेस धीरे-धीरे स्टेशन पर लगी। आरव ने अपनी बर्थ ढूंढी — 17A। सामान रखते ही सामने की सीट पर उसकी नजर पड़ी। एक लड़की बैठी थी, गुलाबी सूट, खुले बाल, और हाथ में एक पुरानी डायरी। चेहरा शांत था, जैसे बारिश के बाद की मिट्टी की खुशबू।
"हाय," आरव ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
लड़की ने नजरें उठाईं और संकोच के साथ जवाब दिया, "हैलो।"
आरव अपनी सीट पर बैठ गया लेकिन उसकी नजरें बार-बार उस डायरी की ओर जा रही थीं।
कुछ देर की चुप्पी के बाद लड़की ने ही बात शुरू की,
"आपको डायरी लिखने का शौक है?"
आरव थोड़ा चौंका, "नहीं, लेकिन पढ़ने का शौक है… और अब जानने का भी कि तुम क्या लिख रही हो।"
लड़की मुस्कराई।
"मैं सफ़र में लिखना पसंद करती हूं। जब ट्रेन चलती है, लगता है जैसे मेरे एहसास भी चलने लगते हैं।"
आरव ने दिलचस्पी से पूछा, "और आज क्या लिख रही हो?"
लड़की ने धीमे से कहा,
"शायद उस अनजाने लड़के के बारे में, जो मेरी सीट के सामने बैठा है… और बड़ी सच्चाई से मुस्करा रहा है।"
आरव थोड़ी देर तक उसे देखता रहा। पहली बार किसी ने उसे ऐसे देखा था — जैसे वो सच में दिखना चाहता है।
उनके बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। पसंदीदा किताबें, अधूरी कविताएं, चाय की बातें, अकेलेपन की आदतें… सबकुछ। ऐसा लग रहा था जैसे वो सालों से एक-दूसरे को जानते हों।
ट्रेन अब कानपुर पहुंची थी। रात की हल्की ठंडक और स्टेशन की पीली रौशनी ने उस पल को और खास बना दिया था।
आरव ने पूछा,
"तुम्हें ये स्टेशन इतना क्यों पसंद है?"
"बचपन में यहीं से नानी के घर जाया करती थी। हर बार सोचती थी कि कोई सफ़र ऐसा होगा, जो यहीं से शुरू होकर कभी खत्म न हो…" — लड़की ने कहा।
आरव ने उसे थोड़ी देर देखा और धीरे से कहा,
"तो फिर चलो, इस बार वही सफ़र शुरू करते हैं।"
लड़की ने कुछ नहीं कहा, बस एक लंबी सांस ली और सिर आरव के कंधे पर रख दिया। उस क्षण में न कोई शब्द थे, न वादा, लेकिन एक एहसास था — बेहद सच्चा।
जब ट्रेन लखनऊ पहुंची, लोग अपने-अपने बैग लेकर बाहर निकल रहे थे, लेकिन आरव और वो लड़की अभी भी बैठे थे। जैसे उनकी मंज़िल ट्रेन से बाहर नहीं, एक-दूसरे के साथ थी।
आरव ने कहा,
"मैं तुम्हें एक हिस्सा बनाना चाहता हूं — अपनी डायरी का नहीं, ज़िंदगी का।"
लड़की ने उसकी आंखों में देखा और कहा,
"तो फिर पहला पन्ना आज ही लिख लो… नाम देना हो, तो लिख देना — ‘सफ़र में तुम…’"
💫
ये कहानी सिर्फ ट्रेन की यात्रा की नहीं, दो दिलों के सफ़र की शुरुआत की है।
कभी-कभी सबसे सुंदर रिश्ते वहीं बनते हैं जहां हम उन्हें ढूंढने नहीं जाते — बस एक अनजाना सफ़र, और एक मुस्कुराती हुई मंज़िल…