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✨🌸 शक्ति ज्ञान परिवार की ओर से दीपावली 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं 🌸✨प्रिय साधकगण,दीयों का यह पर्व आपके जीवन से अंधकार मि...
20/10/2025

✨🌸 शक्ति ज्ञान परिवार की ओर से दीपावली 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं 🌸✨

प्रिय साधकगण,
दीयों का यह पर्व आपके जीवन से अंधकार मिटाकर ज्ञान, समृद्धि और शक्ति का प्रकाश फैलाए।
माँ लक्ष्मी आपके घर वैभव बरसाएं,
भगवान गणेश सभी विघ्नों को दूर करें,
और माँ जगदंबा अपनी कृपा से आपका जीवन मंगलमय बनाएं।

दीप केवल बाहर ही नहीं, भीतर भी जलाएं —
क्योंकि सच्ची दीपावली वही है, जहाँ आत्मा का प्रकाश प्रकट हो।

शुभ दीपावली 🙏
✨ जय माँ शक्ति ✨
— शक्ति ज्ञान

दीपावली: इतिहास, पौराणिक कथाएँ, लाभ और महत्वदीपावली या दिवाली भारत का सबसे प्रमुख और पवित्र त्यौहार है। यह न केवल हिंदू ...
20/10/2025

दीपावली: इतिहास, पौराणिक कथाएँ, लाभ और महत्व

दीपावली या दिवाली भारत का सबसे प्रमुख और पवित्र त्यौहार है। यह न केवल हिंदू धर्म का बल्कि जैन, सिख और कुछ बौद्ध परंपराओं में भी अत्यंत श्रद्धा से मनाया जाता है। “दीपावली” शब्द दो शब्दों से बना है — दीप अर्थात् “प्रकाश” और आवली अर्थात् “पंक्ति”। इस प्रकार दीपावली का अर्थ हुआ “दीपों की पंक्ति”। यह अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, अन्याय पर न्याय और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।

दीपावली का इतिहास और उत्पत्ति

दीपावली का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। वैदिक काल से ही यह प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता रहा है। कई पुराणों और शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है। समय के साथ इसकी परंपराएँ भले ही भिन्न रूपों में विकसित हुई हों, पर इसका मूल भाव “प्रकाश से अंधकार का नाश” ही रहा है।

सबसे प्रचलित मान्यता के अनुसार, त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास के बाद रावण का वध कर अयोध्या लौटे, तब अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में पूरे नगर को दीपों से प्रकाशित किया। उसी दिन से यह पर्व “दीपावली” कहलाया।

पौराणिक कथाएँ और धार्मिक मान्यताएँ

1. भगवान राम का आगमन:
श्रीराम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण जब लंका विजय के बाद लौटे, तब अयोध्या में असंख्य दीप प्रज्ज्वलित किए गए। यह प्रसंग सत्य, धर्म और मर्यादा की जीत का प्रतीक है।

2. माता लक्ष्मी का अवतरण:
समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी जी का प्रकट होना भी इसी दिन हुआ था। इसलिए दीपावली को लक्ष्मी पूजन का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी घर-घर भ्रमण करती हैं और जिन घरों में स्वच्छता, शुद्धता और श्रद्धा होती है, वहाँ स्थायी रूप से निवास करती हैं।

3. नरकासुर वध:
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था, जिसने 16,000 देवकन्याओं को बंदी बना रखा था। उसके वध के बाद सभी कन्याओं को मुक्त कराया गया और दूसरे दिन दीपावली मनाई गई। इसीलिए दक्षिण भारत में “नरक चतुर्दशी” विशेष रूप से मनाई जाती है।

4. महावीर निर्वाण दिवस:
जैन धर्म में दीपावली का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान महावीर स्वामी को निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त हुआ था। इसलिए यह जैन धर्मावलंबियों के लिए आत्मज्ञान और अहिंसा का प्रतीक पर्व है।

5. सिख परंपरा में अर्थ:
सिख धर्म में भी दीपावली को “बंदी छोड़ दिवस” कहा जाता है, क्योंकि इस दिन गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने मुग़ल बादशाह जहाँगीर की कैद से 52 राजाओं को मुक्त कराया था। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में इस दिन दीपों की भव्य सजावट की जाती है।

दीपावली के लाभ और आध्यात्मिक महत्व

1. आध्यात्मिक शुद्धि:
दीपावली केवल बाहरी रोशनी का पर्व नहीं है, बल्कि यह अंतरात्मा को प्रकाशित करने का अवसर है। यह हमें अहंकार, क्रोध, लोभ, और अज्ञान के अंधकार से मुक्त होने की प्रेरणा देती है।

2. ऊर्जा और सकारात्मकता:
जब घरों में दीप जलाए जाते हैं, तो वातावरण में एक विशेष सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से दीपक का प्रकाश वातावरण में सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट करता है और मन को शांति देता है।

3. समृद्धि और धनलाभ:
लक्ष्मी पूजन के कारण यह पर्व व्यापारियों और गृहस्थों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन नया लेखा-जोखा प्रारंभ करना, नया सामान या स्वर्ण क्रय करना और नए कार्य की शुरुआत करना शुभ फल देता है।

4. सामाजिक एकता:
दीपावली सभी वर्गों, जातियों और परिवारों को एक सूत्र में बांधती है। यह मिलन, दया, दान और सद्भावना का उत्सव है।

दीपावली पर क्या करना चाहिए

1. घर की स्वच्छता:
दीपावली से पहले घर की पूरी सफाई करनी चाहिए। यह केवल बाहरी सफाई नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक नकारात्मकता को भी दूर करने का प्रतीक है।

2. लक्ष्मी पूजन:
अमावस्या की रात्रि को लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा या चित्र को लाल वस्त्र पर स्थापित कर विधिवत पूजा करनी चाहिए। चांदी का सिक्का, नया लेखा-जोखा, धूप, दीप, पुष्प और मिठाई से आराधना करनी चाहिए।

3. दीप जलाना:
सूर्यास्त के बाद पूरे घर, आंगन, दरवाजे, मंदिर और जलस्रोतों के पास दीपक जलाना चाहिए। माना जाता है कि इससे नकारात्मक शक्तियाँ नष्ट होती हैं और लक्ष्मी का आगमन होता है।

4. दान और सेवा:
दीपावली के दिन गरीबों, मजदूरों और जरूरतमंदों को वस्त्र, भोजन या धन का दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।

5. ध्यान और प्रार्थना:
रात्रि में शांत मन से ध्यान करने से आध्यात्मिक शक्ति और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है।

दीप जलाने का कारण

दीपक जलाना केवल परंपरा नहीं बल्कि गहरे प्रतीकात्मक अर्थ रखता है।

दीपक का प्रकाश हमारे भीतर के अंधकार को मिटाने की प्रेरणा देता है।

यह ज्ञान, सत्य और चेतना का प्रतीक है।

आयुर्वेद के अनुसार तिल या घी के दीपक से निकलने वाला धुआं वातावरण को शुद्ध करता है और मन में स्थिरता लाता है।

घर के द्वार पर दीप जलाने से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।

पटाखे जलाने की परंपरा

पुराने समय में पटाखों का उपयोग ध्वनि और प्रकाश के माध्यम से नकारात्मक शक्तियों और दुष्ट आत्माओं को दूर करने के लिए किया जाता था। यह रात्रि अमावस्या की होती है, जब अंधकार और स्थिरता अधिक होती है, इसलिए प्राचीन ऋषियों ने इस दिन शोर और प्रकाश के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा को संतुलित करने की परंपरा बनाई।
हालाँकि आज पर्यावरण प्रदूषण के कारण ज़रूरी है कि हम पर्यावरण-अनुकूल पटाखों का ही प्रयोग करें या दीप और संगीत से उत्सव मनाएँ।

दीपावली का सांस्कृतिक और राष्ट्रीय महत्व

दीपावली भारत की संस्कृति की आत्मा है। यह पर्व परिवार, समाज और राष्ट्र को एकता, प्रेम और कर्तव्य की भावना से जोड़ता है। यह हमें सिखाता है कि

> “जब तक भीतर का दीप नहीं जलता, बाहर की रोशनी व्यर्थ है।”

दीपावली केवल एक त्योहार नहीं बल्कि जीवन की एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमें मनुष्य अपने भीतर की नकारात्मकताओं को जला कर नया आरंभ करता है। यही कारण है कि इस दिन नए वस्त्र, नई शुरुआत, नई सोच और नई उम्मीदें जीवन में लाई जाती हैं।

संक्षेप में, दीपावली का अर्थ केवल दीप जलाना नहीं है, बल्कि अपने भीतर ज्ञान का प्रकाश फैलाना है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जैसे दीपक छोटा होकर भी चारों ओर रोशनी फैलाता है, वैसे ही हमें भी अपनी क्षमता के अनुसार समाज और जीवन में प्रकाश फैलाना चाहिए।

“दीपावली का यह पावन पर्व आपके जीवन में ज्ञान, स्वास्थ्य, समृद्धि और दिव्यता का प्रकाश भर दे।”

नरक चतुर्दशी : इतिहास, पौराणिक कथा, महत्त्व, लाभ और करने योग्य कर्मपरिचय :नरक चतुर्दशी हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मा...
19/10/2025

नरक चतुर्दशी : इतिहास, पौराणिक कथा, महत्त्व, लाभ और करने योग्य कर्म

परिचय :
नरक चतुर्दशी हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। यह दीपावली के एक दिन पहले आती है और इसे ‘छोटी दिवाली’ भी कहा जाता है। इस दिन को यमद्वितीया या रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। नरक चतुर्दशी का मुख्य उद्देश्य नरक से मुक्ति, पापों का प्रायश्चित और आत्मशुद्धि है।

पौराणिक कथा : नरकासुर वध

नरक चतुर्दशी से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा नरकासुर दैत्य की है। पुराणों के अनुसार, नरकासुर भूदेवी (पृथ्वी माता) और भगवान वराह (विष्णु के अवतार) का पुत्र था। प्रारंभ में वह एक धर्मनिष्ठ और ज्ञानी राजा था, लेकिन बाद में अहंकार और शक्ति के नशे में उसने अत्याचार करना शुरू कर दिया।
उसने स्वर्ग लोक और पृथ्वी लोक में आतंक फैला दिया, 16,000 से अधिक देवकन्याओं को बंदी बना लिया और इंद्र का छत्र तथा कुबेर का आभूषण छीन लिया।

जब उसके अत्याचार असहनीय हो गए, तब देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। विष्णु ने श्रीकृष्ण रूप में अवतार लेकर युद्ध किया। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ नरकासुर का वध किया। कहा जाता है कि सत्यभामा स्वयं भूदेवी का अवतार थीं, इसलिए पुत्र नरकासुर का अंत उनके हाथों ही हुआ।
वध के समय नरकासुर ने भगवान से वर माँगा कि जो भी इस दिन स्नान-पूजन करेगा, उसे नरक के भय से मुक्ति मिले। तभी से यह दिन नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाने लगा।

अन्य पौराणिक प्रसंग

1. यमराज और चतुर्दशी का संबंध:
एक अन्य कथा के अनुसार, इस दिन यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु नहीं होती और व्यक्ति यमलोक के कष्टों से मुक्त होता है। इसीलिए इस दिन दीपदान को “यमदीपदान” कहा गया है।

2. भगवान कृष्ण और तुलसी विवाह की कथा से जुड़ाव:
कुछ परंपराओं में माना जाता है कि नरकासुर वध के बाद जब कृष्ण ने 16,000 कन्याओं को मुक्त कराया, तो अगले दिन उन सबका विवाह करवाया गया। इसलिए यह दिन “रूप चतुर्दशी” या “सौंदर्य पूजा” के रूप में भी प्रसिद्ध हुआ।

नरक चतुर्दशी का धार्मिक महत्त्व

1. यह दिन आत्मा की शुद्धि और पापों के निवारण का प्रतीक है।

2. यह दिवाली की शुद्धता का आरंभिक दिन माना जाता है।

3. इस दिन शरीर, मन और घर की पवित्रता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

4. पितृ और यमराज की कृपा प्राप्त करने के लिए यह अत्यंत शुभ दिन है।

5. सौंदर्य, स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना से भी इसका विशेष महत्त्व है।

नरक चतुर्दशी के लाभ

पापमोचन: इस दिन विधिवत स्नान और दीपदान करने से जन्मों के पाप नष्ट होते हैं।

आरोग्य और सौंदर्य: प्रातःकाल तेल स्नान, उबटन और सुगंधित जल से स्नान करने से त्वचा, रक्त और स्वास्थ्य लाभ होता है।

कष्टों से मुक्ति: यमदीपदान से मृत्यु और यमलोक के भय से रक्षा होती है।

सौभाग्य की प्राप्ति: इस दिन लक्ष्मी और यमराज दोनों की कृपा प्राप्त होती है।

नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश: दीपों का प्रकाश घर से नकारात्मकता दूर करता है और दिवाली की पवित्र ऊर्जा को आमंत्रित करता है।

नरक चतुर्दशी पर क्या करें (विधि-विधान)

1. प्रातःकालिक स्नान (अभ्यंग स्नान):
सूर्योदय से पहले तेल मालिश कर उबटन (चने का आटा, हल्दी, तिल और चंदन) लगाएं। इसे ‘अभ्यंग स्नान’ कहते हैं। इससे शरीर की सारी नकारात्मकता और रोग दूर होते हैं।

2. यम तर्पण और दीपदान:
सायंकाल घर के दक्षिण दिशा में 14 दीपक जलाकर यमराज को समर्पित करें। इसे यमदीपदान कहा जाता है। यह मृत्यु भय से मुक्ति देता है।

3. दीप प्रज्वलन:
इस दिन घर, आँगन, तुलसी, रसोई, स्नानागार, दरवाजे और खिड़कियों पर दीपक रखना शुभ होता है।

4. पूजा-पाठ:
भगवान विष्णु, श्रीकृष्ण, देवी लक्ष्मी और यमराज की पूजा की जाती है।

5. दान-पुण्य:
तिल, दीप, वस्त्र और भोजन का दान इस दिन विशेष फल देता है।

6. रात्रि जागरण:
दीपावली की तरह इस दिन भी कुछ लोग जागरण करते हैं और घर में दीपक जलाकर अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक मानते हैं।

14 दीपक जलाने का कारण

नरक चतुर्दशी को 14 दीपक जलाने की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसके पीछे धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों कारण हैं।

1. 14 यमदूतों से रक्षा:
पुराणों के अनुसार, मृत्यु के पश्चात आत्मा को ले जाने वाले 14 यमदूत होते हैं। इन दीपों को जलाने से वे आत्मा को कष्ट नहीं देते।

2. 14 लोकों की शुद्धि का प्रतीक:
हिंदू धर्म में 14 लोकों का वर्णन है – सात ऊर्ध्व लोक और सात अधोलोक। इन दीपों से इन सभी लोकों में शुभ ऊर्जा और प्रकाश फैलाने की मान्यता है।

3. 14 मनोविकारों का नाश:
क्रोध, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, भय आदि 14 विकारों को दूर करने का यह प्रतीकात्मक उपाय है।

4. शारीरिक और मानसिक पवित्रता का प्रतीक:
दीपक आत्मा का प्रतीक है। जब 14 दीप जलाए जाते हैं, तो यह शरीर के 7 चक्रों और 7 सूक्ष्म शरीरों में दिव्यता का संचार करता है।

5. लोक परंपरा:
भारत के कई क्षेत्रों में 14 दीप घर के कोनों, दरवाजों, कुएं या तालाब के पास रखे जाते हैं ताकि यमराज को प्रकाश मिले और घर में सुख-शांति बनी रहे।

नरक चतुर्दशी और दीपावली का संबंध

नरक चतुर्दशी को दीपावली की शुरुआत माना जाता है। यह दिन शरीर, मन और आत्मा को तैयार करने का प्रतीक है, ताकि अगले दिन लक्ष्मीपूजन के समय व्यक्ति पूर्ण पवित्रता के साथ देवी का स्वागत कर सके।

जहाँ नरक चतुर्दशी आत्मा की अंधकारमय परतों को हटाने का प्रतीक है, वहीं दीपावली उस पवित्र आत्मा में दिव्यता के प्रकाश का आगमन है। इसीलिए कहा जाता है –
“नरक चतुर्दशी पापों का अंत है और दीपावली पुण्यों की शुरुआत।”

निष्कर्ष

नरक चतुर्दशी केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक जागृति का दिन है। इस दिन व्यक्ति बाहरी और आंतरिक दोनों तरह के अंधकार को दूर कर प्रकाश का स्वागत करता है।
श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर वध केवल एक दैत्य के अंत का प्रतीक नहीं, बल्कि हमारे भीतर बसे अहंकार, लोभ और पाप के नाश का भी संकेत है।

इसलिए इस दिन तेल स्नान, यमदीपदान, पूजा और दान करके व्यक्ति न केवल पापों से मुक्त होता है, बल्कि अपने जीवन में प्रकाश, शांति और सौभाग्य को आमंत्रित करता है।
नरक चतुर्दशी का वास्तविक संदेश है — “अंधकार से प्रकाश की ओर, पाप से पुण्य की ओर, मृत्यु से अमरत्व की ओर।”

धनतेरस : इतिहास, पौराणिक कथा, महत्व, लाभ और क्या करें इस दिनपरिचयधनतेरस हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष...
18/10/2025

धनतेरस : इतिहास, पौराणिक कथा, महत्व, लाभ और क्या करें इस दिन

परिचय
धनतेरस हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। यह दिवाली पर्व की शुरुआत का प्रतीक होता है और इसे धनत्रयोदशी भी कहा जाता है। इस दिन का संबंध समृद्धि, स्वास्थ्य और शुभता से है। "धन" का अर्थ है संपत्ति या स्वास्थ्य और "तेरस" का अर्थ है त्रयोदशी तिथि। इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी और आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि की पूजा की जाती है।

धनतेरस का इतिहास

धनतेरस का आरंभ वैदिक काल से माना जाता है जब मनुष्य ने स्वास्थ्य और समृद्धि दोनों को जीवन के दो प्रमुख स्तंभ के रूप में स्वीकार किया। इस दिन की पौराणिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि बहुत समृद्ध है। इसका उल्लेख कई ग्रंथों में मिलता है, जैसे कि स्कंद पुराण, पद्म पुराण और भाविष्य पुराण।

कहा जाता है कि इस दिन समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए इसे धन्वंतरि जयंती भी कहा जाता है। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है, जिन्होंने मनुष्यों को निरोग रहने का ज्ञान दिया।

धनतेरस से जुड़ी पौराणिक कथाएँ

1. धन्वंतरि प्रकट होने की कथा

समुद्र मंथन के समय देवता और असुरों के बीच अमृत प्राप्ति के लिए संघर्ष हुआ। इसी मंथन से चौदह रत्न निकले, जिनमें से एक थे भगवान धन्वंतरि, जो अपने हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। इस दिन को ही धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा, ताकि मनुष्य अपने जीवन में स्वास्थ्य और अमृत तुल्य आयु प्राप्त कर सके।

2. राजा हेम का पुत्र और यमराज की कथा

एक प्राचीन कथा के अनुसार, राजा हेम का पुत्र अपने विवाह के चौथे दिन मरने के लिए अभिशप्त था। जब वह दिन आया, उसकी पत्नी ने उसे मरने नहीं दिया। उसने घर में दीपक जलाए, दरवाजे पर सोने-चाँदी के आभूषणों का ढेर लगाया और रातभर भजन करती रही। जब यमराज उसके प्राण लेने आए, तो सोने की चमक और भक्ति से प्रभावित होकर चले गए। तभी से धनतेरस की रात दीपदान और धन क्रय का महत्व माना गया ताकि यम के प्रभाव से रक्षा हो सके।

3. माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार लक्ष्मीजी ने विष्णु भगवान से पृथ्वी पर जाने की इच्छा व्यक्त की। विष्णुजी ने मना किया कि वहाँ जाकर उन्हें मोह हो जाएगा। लेकिन देवी ने आग्रह किया। जब वे पृथ्वी पर आईं तो एक किसान के खेत में धन वर्षा कर दी। विष्णुजी ने उन्हें वापस ले जाते हुए कहा कि यही कारण है कि इस दिन उनकी पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है, परंतु संयम के साथ।

धनतेरस का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

धनतेरस का दिन स्वास्थ्य, धन और समृद्धि की साधना का प्रतीक है।

यह दिन आयुर्वेद और आरोग्य का उत्सव है, इसलिए लोग इस दिन सेहत की रक्षा के उपाय आरंभ करते हैं।

इस दिन नया धन, बर्तन, आभूषण या कोई मूल्यवान वस्तु खरीदना शुभ माना जाता है।

माना जाता है कि इस दिन खरीदी गई चीजें लक्ष्मी को आकर्षित करती हैं और घर में स्थायी समृद्धि लाती हैं।

यह दिन दीपदान का भी प्रतीक है, जिससे यमदेव प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं।

धनतेरस के लाभ

1. आर्थिक उन्नति: इस दिन किया गया लक्ष्मी पूजन घर में धन-संपदा बढ़ाता है।

2. आरोग्य लाभ: धन्वंतरि पूजन से शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है और स्वास्थ्य लाभ होता है।

3. कर्म सिद्धि: धनतेरस पर किए गए दान-पुण्य से पाप कर्मों का क्षय होता है।

4. दीर्घायु का वरदान: यमदीपदान से अकाल मृत्यु का निवारण होता है।

5. आध्यात्मिक उन्नति: यह दिन आत्मिक शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा के संचय का प्रतीक है।

धनतेरस पर क्या करें

1. घर की सफाई करें: लक्ष्मीजी को स्वच्छता प्रिय है, इसलिए घर और कार्यस्थल को पूरी तरह साफ करें।

2. लक्ष्मी और धन्वंतरि पूजन करें: संध्या के समय देवी लक्ष्मी, कुबेर और धन्वंतरि का पूजन करें।

3. दीपदान करें: यमराज की प्रसन्नता के लिए घर के द्वार पर दक्षिण दिशा में दीपक जलाएं।

4. स्वास्थ्य के लिए संकल्प लें: इस दिन आयुर्वेदिक औषधियाँ या हर्बल उत्पाद खरीदना भी शुभ माना जाता है।

5. धन प्राप्ति के उपाय करें: लक्ष्मी मंत्र “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” का जाप 108 बार करें।

6. भोजन में सात्विकता रखें: ताजा और शुद्ध भोजन ग्रहण करें, मांस-मदिरा से परहेज करें।

7. जरूरतमंदों को दान दें: यह दिन दान और सेवा से पुण्य अर्जित करने का अवसर है।

धनतेरस पर क्या खरीदें

1. सोना और चांदी: यह सबसे शुभ खरीद मानी जाती है, क्योंकि यह धन वृद्धि और स्थायित्व का प्रतीक है।

2. नए बर्तन: खासकर पीतल, तांबा या स्टील के बर्तन खरीदना शुभ होता है। इन्हें लक्ष्मी पूजन में उपयोग करें।

3. झाड़ू: माना जाता है कि झाड़ू क्रोध, ऋण और नकारात्मकता को हटाता है।

4. दीपक और गोमती चक्र: दीपक से अंधकार नष्ट होता है और गोमती चक्र से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

5. धन्वंतरि संबंधित औषधियाँ: आयुर्वेदिक औषधियाँ या जड़ी-बूटियाँ खरीदना स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।

6. कुबेर की मूर्ति या यंत्र: धन स्थायित्व और व्यापार में वृद्धि के लिए।

7. लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति: दिवाली पूजन के लिए इस दिन खरीदना अत्यंत शुभ माना गया है।

धनतेरस का आधुनिक महत्व

आज के युग में धनतेरस केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन गया है। यह व्यापारियों के लिए नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत का संकेत होता है। लोग नए व्यवसाय शुरू करते हैं, गाड़ियाँ, संपत्ति या इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ खरीदते हैं। यह दिन सकारात्मक शुरुआत और नए अवसरों के स्वागत का प्रतीक बन गया है।

निष्कर्ष

धनतेरस का असली अर्थ केवल धन-संपत्ति प्राप्त करना नहीं, बल्कि धन, स्वास्थ्य और धर्म का संतुलन बनाए रखना है। यह दिन हमें सिखाता है कि सच्चा “धन” केवल पैसा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, ज्ञान, और सदाचार है।
भगवान धन्वंतरि के आशीर्वाद से निरोग जीवन और माता लक्ष्मी की कृपा से समृद्ध जीवन यही धनतेरस का वास्तविक वरदान है।

शुभकामना:
आपके जीवन में इस धनतेरस पर धन, आरोग्य, और सुख की वर्षा हो।
“शुभ धनतेरस!”

02/10/2025
01/10/2025

Durga Puja Kolkata 2025

🌸 आदि दुर्गा साधना : नवरात्रि में परम शक्ति की उपासना 🌸देवी आदि दुर्गा का परिचयहिंदू धर्म में शक्ति की अनंत धाराओं में आ...
21/09/2025

🌸 आदि दुर्गा साधना : नवरात्रि में परम शक्ति की उपासना 🌸

देवी आदि दुर्गा का परिचय

हिंदू धर्म में शक्ति की अनंत धाराओं में आदि दुर्गा का स्थान सर्वोच्च है। "आदि" का अर्थ है — आदि काल से विद्यमान, और "दुर्गा" का अर्थ है — वह शक्ति जो सभी दुर्गम मार्गों, कष्टों और बाधाओं को काटकर अपने भक्तों की रक्षा करती है।
आदि दुर्गा को जगतजननी, त्रिकालदर्शिनी, सर्वमंगलदायिनी और कालातीत महाशक्ति कहा गया है। वे शाश्वत ऊर्जा का प्रतीक हैं और समस्त देवियों का मूल स्रोत मानी जाती हैं।

पुराणों में वर्णन है कि स्वयं भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी उनके आदेश पर सृष्टि का संचालन करते हैं। साधक जब उनकी आराधना करता है तो वह केवल पूजा ही नहीं करता, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा से सीधा संबंध स्थापित करता है।

आदि दुर्गा साधना का महत्व

आदि दुर्गा की साधना साधक को जीवन के हर क्षेत्र में अद्भुत शक्ति और सफलता प्रदान करती है।

यह साधना मानसिक शांति और आत्मबल देती है।

साधक के भीतर छिपी नकारात्मकता, भय और असुरक्षाएँ समाप्त होती हैं।

साधना करने से प्राचीन कर्म दोष, पाप बंधन और ग्रह बाधाएँ भी दूर होती हैं।

नवरात्रि के पावन दिनों में यह साधना करने से विशेष सिद्धि प्राप्त होती है।

साधना और पूजन से होने वाले लाभ

आदि दुर्गा साधना केवल साधकों के लिए ही नहीं, बल्कि आम जनों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है।

1. साधकों के लिए लाभ:

आध्यात्मिक जागरण और आत्म-साक्षात्कार।

शक्तिपात और दिव्य अनुभूतियाँ।

सिद्धियाँ प्राप्त करना और साधनाओं में सफलता।

कठिन से कठिन साधनाओं के मार्ग प्रशस्त होना।

2. सामान्य जनों के लिए लाभ:

रोग, शोक और कष्टों से मुक्ति।

घर में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति।

संतान सुख और वैवाहिक जीवन में सामंजस्य।

कार्यक्षेत्र और व्यापार में सफलता।

नवरात्रि में साधना की विशेषता

नवरात्रि के नौ दिन शक्ति उपासना के लिए अत्यंत पवित्र माने जाते हैं। इस समय देवी की ऊर्जा पृथ्वी पर विशेष रूप से सक्रिय रहती है। यदि कोई साधक इस अवधि में आदि दुर्गा साधना करता है तो उसे सामान्य दिनों की तुलना में अनेक गुना अधिक फल प्राप्त होता है।

आदि दुर्गा साधना की विधि (Step by Step Process)

1. साधना स्थान की तैयारी

घर के उत्तर-पूर्व कोने में या किसी शांत पवित्र स्थान पर साधना करें।

आसन कुश, ऊन या लाल कपड़े का होना चाहिए।

सामने देवी आदि दुर्गा का चित्र या यंत्र स्थापित करें।

2. शुद्धि और संकल्प

प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।

हाथ में जल लेकर संकल्प लें:
“मैं (अपना नाम) आज नवरात्रि के पावन अवसर पर आदि दुर्गा साधना आरंभ कर रहा/रही हूँ। माँ मुझे शक्ति, शांति और सिद्धि प्रदान करें।”

3. पूजन सामग्री

लाल वस्त्र, लाल पुष्प, अक्षत, दीपक, धूप, नैवेद्य (फल, मिठाई)।

नारियल और चुनरी चढ़ाना अत्यंत शुभ है।

4. पूजन प्रक्रिया

सबसे पहले गणेश जी का स्मरण करें।

फिर कलश स्थापना करें।

दीपक और धूप जलाकर देवी का ध्यान करें।

पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें।

5. ध्यान (Dhyana)

आँखें बंद कर देवी का ध्यान करें —
“सिंहवाहिनी, अष्टभुजा, त्रिनेत्रा, लाल वस्त्र धारण की हुई, करुणा स्वरूप माँ, मेरे सम्मुख विराजमान हैं।”

6. मंत्र-जप

आदि दुर्गा के मूल मंत्र का जप करें। नवरात्रि में प्रतिदिन 108, 501 या 1008 बार जप करना श्रेष्ठ माना गया है।

मंत्र:
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ दुं दुर्गायै नमः॥”

जप लाल चंदन या रुद्राक्ष की माला से करें।

जप के समय मन एकाग्र रखें और देवी को आह्वान करें।

7. स्तुति और प्रार्थना

मंत्र जप के बाद देवी की आरती करें और स्तुति करें:
“हे जगतजननी, हे माँ दुर्गा, मेरे कष्ट हर लो, सुख-समृद्धि प्रदान करो।”

8. साधना का समापन

अंत में हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें।

नैवेद्य अर्पण कर परिवारजनों में प्रसाद बाँटें।

रोजाना यही प्रक्रिया नवरात्रि के नौ दिनों तक करें।

साधना के अनुभव और उपयोगिता

जो साधक नवरात्रि में पूरे नियम और श्रद्धा से साधना करता है, उसे अद्भुत अनुभव प्राप्त होते हैं। कई बार साधक को ध्यानावस्था में प्रकाश दिखाई देता है, शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और मन स्वतः आनंद से भर उठता है।

साधना के फलस्वरूप:

घर-परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।

अचानक आने वाले संकट टल जाते हैं।

मनोबल इतना प्रबल हो जाता है कि साधक हर परिस्थिति का सामना कर पाता है।

भक्ति और साधना के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

निष्कर्ष

आदि दुर्गा साधना केवल पूजा-पाठ भर नहीं है, बल्कि यह साधक और साधारण जन के जीवन को बदलने वाली प्रक्रिया है। नवरात्रि का समय इसका सर्वोत्तम अवसर है। माँ आदि दुर्गा के चरणों में आस्था और श्रद्धा से किया गया छोटा सा जप भी बड़ा फल देता है।

👉 इस नवरात्रि, आप भी माँ आदि दुर्गा की साधना करें, मंत्र जपें, आराधना करें और जीवन में शक्ति, शांति, समृद्धि और सिद्धि का अनुभव करें।

🌹 जय माँ आदि दुर्गा 🌹

🌺✨ नवरात्रि का महत्व और शक्ति साधना के लाभ ✨🌺नवरात्रि का पर्व भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का सबसे महान और दिव्य उत्स...
19/09/2025

🌺✨ नवरात्रि का महत्व और शक्ति साधना के लाभ ✨🌺

नवरात्रि का पर्व भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का सबसे महान और दिव्य उत्सव है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशक्ति जागरण, साधना और आत्मोन्नति का स्वर्णिम अवसर है। ‘नवरात्रि’ का अर्थ है – नौ रातें। ये नौ दिन और रातें विशेष रूप से देवी शक्ति की उपासना के लिए समर्पित हैं।

🔱 नवरात्रि का महत्व

हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि नवरात्रि के समय समस्त ब्रह्मांडीय ऊर्जा विशेष रूप से पृथ्वी पर सक्रिय होती है। साधक यदि इस समय श्रद्धा और अनुशासन से साधना करता है तो उसे कई गुना फल प्राप्त होता है।

नवरात्रि माँ शक्ति की आराधना का वह काल है जब देवी के नौ स्वरूप – शैलपुत्री से सिद्धिदात्री तक – साधक को क्रमशः स्थिरता, तपस्या, शांति, उर्जा, मातृत्व, विजय, भयमुक्ति, पवित्रता और सिद्धि प्रदान करते हैं।

यह पर्व हमें सिखाता है कि जैसे माँ दुर्गा ने महिषासुर जैसे राक्षस का संहार किया, वैसे ही हम भी अपनी आंतरिक बुराइयों – क्रोध, अहंकार, लोभ, आलस्य और नकारात्मकता – का नाश कर सकते हैं।

🌸 नवरात्रि और साधना

नवरात्रि का समय साधना, जप, ध्यान और उपवास का है। यह केवल बाहरी पूजा नहीं, बल्कि भीतर की चेतना को माँ शक्ति से जोड़ने का अवसर है। जब हम इस दौरान साधना करते हैं, तो हमें केवल भौतिक सफलता ही नहीं मिलती, बल्कि आत्मिक उन्नति भी होती है।

🌼 शक्ति साधना क्यों करें?

शक्ति साधना का अर्थ है – माँ की ऊर्जा से जुड़ना और उनकी कृपा को अपने जीवन में प्रवाहित करना। नवरात्रि के समय यह साधना कई कारणों से विशेष फलदायी होती है:

1. ऊर्जा का संचार – साधक के भीतर दिव्य उर्जा का प्रवाह होता है, जिससे आलस्य, थकान और नकारात्मकता दूर होती है।

2. मन की स्थिरता – ध्यान और जप से चित्त स्थिर होता है और मानसिक तनाव कम होता है।

3. भय और बाधा से मुक्ति – माँ की कृपा से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं और साहस बढ़ता है।

4. भौतिक उन्नति – व्यवसाय, नौकरी और गृहस्थ जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

5. आध्यात्मिक लाभ – साधक को सिद्धियाँ, आत्मज्ञान और मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है।

🔥 नवरात्रि में शक्ति साधना के लाभ

आरोग्य की प्राप्ति – नवरात्रि की साधना से स्वास्थ्य में सुधार होता है और रोगों का नाश होता है।

धन-समृद्धि – माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

परिवार में शांति – घर-गृहस्थी में प्रेम और सामंजस्य बना रहता है।

रक्षा कवच – साधना से नकारात्मक शक्तियाँ दूर रहती हैं और अदृश्य सुरक्षा कवच मिलता है।

सिद्धि और शक्ति – तांत्रिक व वैदिक साधक के लिए यह समय अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस काल की गई साधना कई गुना फल देती है।

🪔 नवरात्रि में शक्ति साधना कैसे करें?

1. प्रतिदिन स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएँ।

2. देवी के नौ रूपों का क्रमशः पूजन करें।

3. दुर्गा सप्तशती, देवी कवच या ललिता सहस्रनाम का पाठ करें।

4. संभव हो तो उपवास रखें या सात्विक आहार ग्रहण करें।

5. प्रतिदिन कम से कम 108 बार "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" मंत्र का जप करें।

6. साधना में ध्यान रखें कि मन, वाणी और कर्म तीनों से शुद्ध रहें।

🌺 साधकों के लिए विशेष अवसर

नवरात्रि उन लोगों के लिए स्वर्णिम अवसर है जो शक्ति साधना, मंत्रजप या तांत्रिक अनुष्ठान करना चाहते हैं। इस समय ब्रह्मांडीय ऊर्जा इतनी प्रबल होती है कि छोटी-सी साधना भी बड़ा फल देती है।

जो साधक सिद्धियों की कामना करते हैं, उनके लिए यह समय साधना का ऋतु है। लेकिन सबसे बड़ा लाभ यह है कि शक्ति साधना साधक को भीतर से बलवान बनाती है और जीवन में स्थिरता देती है।

🌸 निष्कर्ष

नवरात्रि केवल त्योहार मनाने का अवसर नहीं, बल्कि आत्मशक्ति को पहचानने और माँ दुर्गा से जुड़ने का श्रेष्ठ समय है। शक्ति साधना से जीवन में दिव्यता, शांति और सफलता आती है।

इस नवरात्रि, हम सब मिलकर संकल्प लें कि केवल परंपरा निभाने तक सीमित न रहकर, अपने भीतर छिपी दिव्य शक्ति को जागृत करेंगे। माँ शक्ति की कृपा से हमारे जीवन में नया प्रकाश और नई ऊर्जा अवश्य आएगी।

🙏🌺 जय माँ दुर्गा 🌺🙏

🌺✨ नवरात्रि का दिव्य पर्व ✨🌺नवरात्रि केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह माँ शक्ति की उपासना, आत्मशुद्धि और साधना का महान ...
18/09/2025

🌺✨ नवरात्रि का दिव्य पर्व ✨🌺

नवरात्रि केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह माँ शक्ति की उपासना, आत्मशुद्धि और साधना का महान अवसर है। वर्ष भर में दो बार – चैत्र और आश्विन मास में – यह महापर्व आता है, जो पूरे भारतवर्ष में अत्यंत श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है।

🔱 नवरात्रि का महत्व

‘नवरात्रि’ का अर्थ है – नौ रातें। इन नौ रातों में हम माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना करते हैं। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, अगर हम भीतर से जागृत हैं और माँ की कृपा हमारे साथ है, तो कोई भी नकारात्मक शक्ति हमें हरा नहीं सकती।

शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि के नौ दिन देवी शक्ति की साधना, उपवास, दान-पुण्य और आत्मअनुशासन के लिए सर्वोत्तम माने जाते हैं। यह समय साधक को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तर पर ऊँचा उठाता है।

🌼 माँ दुर्गा के नौ रूप

नवरात्रि में प्रतिदिन देवी के एक स्वरूप की पूजा का विधान है।

1. शैलपुत्री – हिमालय की पुत्री, स्थिरता और शक्ति की अधिष्ठात्री।

2. ब्रह्मचारिणी – तपस्या और संयम की प्रतिमा।

3. चंद्रघंटा – शांति, साहस और सौम्यता का प्रतीक।

4. कूष्मांडा – ब्रह्मांड की सृष्टिकर्त्री, उर्जा प्रदान करने वाली।

5. स्कंदमाता – मातृत्व, करुणा और संतानों की रक्षा करने वाली।

6. कात्यायनी – साहस, विजय और शत्रुनाश की देवी।

7. कालरात्रि – तमोगुण का नाश कर भयमुक्ति प्रदान करने वाली।

8. महागौरी – शुद्धता, तपस्या और मोक्ष का वर देने वाली।

9. सिद्धिदात्री – सभी सिद्धियाँ और वरदान देने वाली।

इन नौ रूपों की उपासना से साधक को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता, शक्ति और संतुलन प्राप्त होता है।

🌸 नवरात्रि और आध्यात्मिक साधना

नवरात्रि का समय केवल बाहरी पूजा तक सीमित नहीं है। यह हमारे लिए अंतर्यात्रा का भी अवसर है। जब हम उपवास करते हैं, तो केवल भोजन से ही नहीं बल्कि नकारात्मक विचारों, क्रोध, लोभ और अहंकार से भी व्रत रखना चाहिए।

ध्यान, जप, हवन और पाठ से मनुष्य का चित्त निर्मल होता है। इस समय में विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती, देवी महात्म्य, ललिता सहस्रनाम और देवी कवच का पाठ शुभ माना जाता है।

🔥 शक्ति की उपासना से लाभ

नकारात्मक शक्तियों और बाधाओं से रक्षा।

आत्मबल और आत्मविश्वास की वृद्धि।

स्वास्थ्य में सुधार और रोग निवारण।

परिवार और गृहस्थ जीवन में सुख-शांति।

व्यापार, नौकरी और कार्यक्षेत्र में उन्नति।

साधना से आध्यात्मिक सिद्धियाँ और मोक्ष की प्राप्ति।

🌺 नवरात्रि का सामाजिक महत्व

नवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, यह सामाजिक एकता और उत्साह का भी प्रतीक है। पूरे भारत में इस दौरान अलग-अलग परंपराएँ देखने को मिलती हैं –

गुजरात और महाराष्ट्र में गरबा और डांडिया।

बंगाल और असम में दुर्गा पूजा का भव्य उत्सव।

उत्तर भारत में रामलीला और दशहरा के आयोजन।
इन सबका संदेश एक ही है – सत्य की विजय और असत्य का नाश।

🌼 साधकों के लिए विशेष अवसर

नवरात्रि का समय हर साधक के लिए अद्वितीय होता है। जो लोग मंत्रजप, साधना, तांत्रिक क्रियाएँ या विशेष पूजन करना चाहते हैं, उनके लिए यह काल अत्यंत सिद्धिदायक होता है। ऐसा माना जाता है कि इस समय की गई साधना सामान्य दिनों से कई गुना फल देती है।

🪔 नवरात्रि में अपनाने योग्य बातें

1. प्रातः और सायं समय देवी की आरती करें।

2. दीपक जलाकर माँ दुर्गा को पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें।

3. दुर्गा सप्तशती या देवी कवच का पाठ करें।

4. संभव हो तो नौ दिन तक सात्विक आहार लें।

5. गरीबों और जरूरतमंदों को दान दें।

6. मन, वाणी और कर्म को शुद्ध रखने का प्रयास करें।

🌸 अंत में

नवरात्रि हमें सिखाती है कि जीवन में चाहे कितने भी संघर्ष क्यों न हों, जब तक हम भीतर से जुड़े हैं और ईश्वर पर विश्वास रखते हैं, तब तक हर अंधकार मिट सकता है। माँ दुर्गा केवल बाहरी रूप में ही नहीं, बल्कि हमारे भीतर स्थित दिव्य शक्ति के रूप में भी पूजनीय हैं।

इस नवरात्रि, आओ हम सब मिलकर संकल्प लें कि केवल पूजा-पाठ तक सीमित न रहकर, अपने भीतर की बुराइयों का भी नाश करेंगे और माँ शक्ति के गुणों को अपने जीवन में उतारेंगे।

🙏🌺 जय माता दी 🌺🙏

🙏🌺 Happy Ganesh Chaturthi! 🌺🙏May Vighnaharta Shri Ganesh ji remove all obstacles from your life and bless you with wisdo...
27/08/2025

🙏🌺 Happy Ganesh Chaturthi! 🌺🙏

May Vighnaharta Shri Ganesh ji remove all obstacles from your life and bless you with wisdom, health, prosperity, and spiritual strength. 🌿✨🐘

आप सभी को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं
10/07/2025

आप सभी को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं

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02/05/2025

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अघोर महालक्ष्मी साधना

यह साधना उन्हे करनी चाहिए जो जल्दी से जल्दी अपनी आर्थिक स्थिति सुधारना चाहते हैं ऐसे व्यक्ति जो व्यापार में जल्दी वृद्धि चाहते हैं और नौकरी करने वाले व्यक्ति तो जल्दी प्रमोशन या इंसेंटिव चाहते हैं|

लक्ष्मी साधना कई प्रकार की होती है आप सभी ने किया भी होगा और देखा भी होगा उन सारे साधना ओं का लाभ इसलिए नहीं मिलता है क्योंकि उसमें या तो आप के ग्रह दोष सामने आ जाते हैं या फिर आपके पूर्वजन्म के बुरे कर्म या फिर आपके ऊपर किए गए तंत्र मंत्र प्रयोग |

यह गुप्त साधना है और सभी के सामने नहीं दिया जा सकता इसे व्यक्तिगत रूप में अपने मार्गदर्शन में करवाया जाएगा ग्रुप में जो भी लोग इस साधना की दीक्षा लेंगे उन्हें इस साधना के बारे में बताया जाएगा |

यह साधना करने के लिए दीक्षा लेना अनिवार्य है और शुल्क देखकर आप सब दीक्षा लेकर यह साधना कर सकते हैं|