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⛳ *सुप्रभात🌞वन्दे मातरम्*⛳🦚🌿🌹🦢🦢🌹🌿🦚माघ मास, शुक्ल पक्ष, *चतुर्दशी*,पुष्य नक्षत्र, सूर्य उत्तरायण,शिशिर ऋतु, युगाब्द ५१२१,...
08/02/2020

⛳ *सुप्रभात🌞वन्दे मातरम्*⛳
🦚🌿🌹🦢🦢🌹🌿🦚
माघ मास, शुक्ल पक्ष, *चतुर्दशी*,
पुष्य नक्षत्र, सूर्य उत्तरायण,
शिशिर ऋतु, युगाब्द ५१२१,
विक्रम संवत-२०७६,
शनिवार, 08 फरवरी 2020.
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*प्रभात दर्शन*
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दाने तपसि शौर्ये च
विज्ञाने विनये नये,
विस्मयो न हि कर्तव्यो
बहुरत्ना वसुन्धरा॥

भावार्थ :- व्यक्ति को कभी अपनी दानशीलता, तप, वीरता, बुद्धिमत्ता पर या अपनी नीतिपरकता पर अहंकार नही करना चाहिये क्योंकि इस संसार में एक से एक बढ़कर दानवीर हैं, तपस्वी हैं, शूरवीर हैं, विज्ञानी हैं, बुद्धिमान हैं और नीतिज्ञ है। ऐसे रत्नों से ये संसार भरा पड़ा है।
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🚩🦚आपका दिन मंगलमय हो🦚 🚩
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आज के जमाने में एक अजीब सी प्रथा चल पड़ी है। वह है, रात को 12 बजे शुभकामनाएं देने और जन्मदिन मनाने की। लेकिन क्या आपको प...
30/11/2019

आज के जमाने में एक अजीब सी प्रथा चल पड़ी है। वह है, रात को 12 बजे शुभकामनाएं देने और जन्मदिन मनाने की। लेकिन क्या आपको पता है भारतीय शास्त्र इसे गलत मानता है। आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि वास्तव में ऐसा करने से कितना बड़ा अनिष्ट हो सकता है। आजकल किसी का बर्थडे हो, शादी की सालगिरह हो या फिर कोई और अवसर क्यों ना हो, रात के 12 बजे केक काटना नया ट्रेंड बन गया है। क्‍या आप जानते हैं कि ऐसा करने से आपके जीवन में खुशियों के बजाए समस्‍याएं पैदा हो सकती हैं…

लोगों में रात 12 बजे केक काटने को लेकर खासा उत्‍साह रहता है। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि लोग अपना जन्मदिन 12 बजे यानी निशीथ काल में मनाते हैं। निशीथ काल रात्रि का वह समय है जो समान्यत: रात 12 बजे से रात्रि 3 बजे की बीच होता है। आम लोग इसे इसे मध्यरात्रि या अर्ध रात्रि काल कहते हैं। शुभ कार्यों के लिए यह समय उचित नहीं माना जाता है।
जन्मदिन की पार्टी में अक्सर लोग रात्रिकाल में केक काटकर सेवन करते हैं। ऐसा करने से तमोगुणी शक्तियां व्यक्ति की आयु व भाग्य में कमी करती हैं और दुर्भाग्य उसके द्वार पर दस्तक देता है। ये नकारात्‍मक शक्तियां व्‍यक्ति को गंभीर रूप से बीमार भी बना सकती
सूर्योदय का समय सबसे शुभ।
दिन की शुरुआत सूर्योदय के साथ ही होती है और यही समय ऋषि-मुनियों के तप का भी होता है। इसलिए इस काल में वातावरण शुद्ध और नकारात्मकताविहीन होता है। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार सूर्योदय होने के बाद ही व्यक्ति को बर्थडे विश करना चाहिए क्योंकि रात के समय वातावरण में रज और तम कणों की मात्रा अत्यधिक होती है और उस समय दी गई बधाई या शुभकामनाएं फलदायी ना होकर प्रतिकूल बन जाती हैं।

*💥।। मन्त्र दीक्षा ।।💥**🏵क्या कारण है कि लोगों को मंत्र गुप्त रखने के लिए कहा जाता है?🏵**मंत्र—*दीक्षा का अर्थ है कि जब ...
14/09/2019

*💥।। मन्त्र दीक्षा ।।💥*

*🏵क्या कारण है कि लोगों को मंत्र गुप्त रखने के लिए कहा जाता है?🏵*

*मंत्र—*दीक्षा का अर्थ है कि जब तुम समर्पण करते हो तो गुरु तुममें प्रवेश कर जाता है, वह तुम्हारे शरीर, मन, आत्मा में प्रविष्ट हो जाता है। गुरु तुम्हारे अंतस में जाकर तुम्हारे अनुकूल ध्वनि की खोज करेगा। वह तुम्हारा मंत्र होगा। और जब तुम उसका उच्चारण करोगे तो तुम एक भिन्न आयाम में एक भिन्न व्यक्ति होओगे।

जब तक समर्पण नहीं होता, मंत्र नहीं दिया जा सकता है। मंत्र देने का अर्थ है कि गुरु ने तुममें प्रवेश किया है, गुरु ने तुम्हारी गहरी लयबद्धता को, तुम्हारे प्राणों के संगीत को अनुभव किया है। और फिर वह तुम्हें प्रतीक रूप में एक मंत्र देता है जो तुम्हारे अंतस के संगीत से मेल खाता हो। और जब तुम उस मंत्र का उच्चार करते हो तो तुम आंतरिक संगीत के जगत में प्रवेश कर जाते हो, तब आंतरिक लयबद्धता उपलब्ध होती है।

मंत्र तो सिर्फ चाबी है। और चाबी तब तक नहीं दी जा सकती जब तक ताले को न जान लिया जाए। मैं तुम्हें तभी चाबी दे सकता हूं जब तुम्हारे ताले को समझ लूं। चाबी तभी सार्थक है जब वह ताले को खोले। किसी भी चाबी से काम नहीं चलेगा। प्रत्येक आदमी विशेष ढंग का ताला है, उसके लिए विशेष ढंग की चाबी जरूरी है।

यही कारण है कि मंत्रों को गुप्त रखा जाता है। अगर तुम अपना मंत्र किसी और को बताते हो तो वह उसका प्रयोग कर सकता है । यही कारण है कि लोगों को अपने— अपने मंत्र गुप्त रखने चाहिए, उन्हें सार्वजनिक बनाना ठीक नहीं है। वह खतरनाक है। तुम दीक्षित हुए हो तो तुम जानते हो, तुम उसका मूल्य जानते हो, तुम उसे बांटते नहीं फिर सकते। यह दूसरों के लिए हानिकर हो सकता है। यह तुम्हारे लिए भी हानिकर हो सकता है। इसके कई कारण हैं।

पहली बात कि तुम वचन तोड़ रहे हो। और जैसे ही वचन टूटता है, गुरु के साथ तुम्हारा संपर्क टूट जाता है। फिर तुम गुरु के संपर्क में नहीं रहोगे। वचन पालन करने से ही सतत संपर्क कायम रहता है। दूसरी बात, दूसरे को बताने से, दूसरे के साथ उसके संबंध में बातचीत करने से मंत्र मन की सतह पर चला आता है और उसकी गहरी जड़ें टूट जाती हैं। तब मंत्र गपशप का हिस्सा बन जाता है। और तीसरा कारण है कि गुप्त रखने से मंत्र गहराता है। जितना गुप्त रखोगे वह उतना ही गहरे जाएगा; उसे गहरे में जाना ही होगा।

मारपा के संबंध में खबर है कि जब उसके गुरु ने उसे गुह्य मंत्र दिया तो उससे वचन ले लिया कि वह उसे बिलकुल गुप्त रखेगा। उसे कहा गया कि तुम इसे किसी को भी नहीं बताओगे। फिर मारपा का गुरु उसके स्वप्न में प्रकट हुआ और उसने पूछा कि तुम्हारा मंत्र क्या है?

और स्‍वप्‍न में भी मारपा ने वचन का पालन किया; उसने बताने से इनकार कर दिया। और कहा जाता है कि इस भय से कि कहीं स्वप्न में गुरु फिर प्रकट हों या किसी को भेजें और वह इतनी नींद में हो कि गुप्त मंत्र को प्रकट कर दे और वचन टूट जाए, मारपा ने बिलकुल सोना ही छोड़ दिया। वह सोता ही नहीं था।

ऐसे सोए बिना मारपा को सात— आठ दिन हो गए थे। फिर जब उसके गुरु ने पूछा कि तुम सोते क्यों नहीं हो? मैं देखता हूं कि तुमने सोना छोड़ दिया है। बात क्या है? मारपा ने गुरु से कहा : आप मेरे साथ चालबाजी कर रहे हैं। आपने स्वप्न में आकर मुझसे मेरा मंत्र पूछा था। मैं आपको भी नहीं बताने वाला हूं। जब वचन दे दिया तो मैं उसका स्‍वप्‍न में भी पालन करूंगा। लेकिन फिर मैं डर गया। नींद में, कौन जाने, किसी दिन मैं भूल जा सकता हूं!

अगर तुम अपने वचन के प्रति इतने सावधान हो कि स्‍वप्‍न में भी उसका स्मरण रहता है तो उसका अर्थ है कि वह गहराई में उतर रहा है। वह अंतस में उतर रहा है; वह अंतरस्थ प्रदेश में प्रवेश कर रहा है। और वह जितनी गहराई को छुएगा, वह उतना ही तुम्हारे लिए चाबी बनता जाएगा। क्योंकि ताला तो अंतर्तम में है।

किसी चीज के साथ भी प्रयोग करो। अगर तुम उसे गुप्त रख सके तो वह गहराई प्राप्त करेगा। और अगर तुम उसे गुप्त न रख सके तो वह बाहर निकल आएगा। तुम क्यों कोई बात दूसरे से कहना चाहते हो? तुम क्यों बातें करते रहते हो?

सच तो यह है कि जिस चीज को तुम कह देते हो, उससे मुक्त हो जाते हो। एक बार तुमने किसी से कह दिया, तुम्हारा उससे छुटकारा हो जाता है। वह चीज बाहर निकल गई। मनोविश्लेषण का पूरा धंधा इसी पर खड़ा है। रोगी बोलता रहता है और मनोविश्लेषक सुनता रहता है। इससे रोगी को राहत मिलती है। वह अपनी समस्याओं के बारे में, अपने दुख के बारे में जितना ही बोलता है, वह उनसे उतनी ही छुट्टी पा लेता है।

और इसके ठीक विपरीत घटित होता है जब तुम किसी चीज को छिपाकर रखते हो, गुप्त रखते हो। इसीलिए तुम्हें कहा जाता है कि मंत्र को किसी से कभी मत कहो। तब वह गहरे से गहरे तल पर उतरता जाता है और किसी दिन ताले को खोल देता है।
।।ॐ श्री गुरुदेवाय नमः।।

*प्रातः वंदन* 🙏🏽*आपको जीवन से...**जो कुछ भी मिलें उसे पचाना सीखे**क्योंकि...**भोजन न पचने पर रोग बढते है,**पैसा न पचने प...
08/09/2019

*प्रातः वंदन* 🙏🏽

*आपको जीवन से...*
*जो कुछ भी मिलें उसे पचाना सीखे*
*क्योंकि...*
*भोजन न पचने पर रोग बढते है,*
*पैसा न पचने पर दिखावा बढता है,*
*बात न पचने पर चुगली बढती है,*
*प्रशंसा न पचने पर अंहकार बढता है,*
*निंदा न पचने पर दुश्मनी बढती है,*
*राज न पचने पर खतरा बढता है,*
*दुःख न पचने पर निराशा बढती है*
*और सुख न पचने पर पाप बढता है,*
*प्रकृति परमात्मा रूप हैं*
*यदि हर मनुष्य अपने को...*
*प्रकृति के अनुरूप ढाल ले*
*तो कभी दुखी नही हो सकता हैं।*
*चर्चा और निन्दा केवल सफल व्यक्तियों के भाग्य में होती है*

🌷 *सुप्रभात* 🌷

*🌹आठ सिद्धियां, नौ निधियां और दस गौण सिद्धियां कौन कौन सी हैं!!! 🌹🙏🏻*चौपाई:-अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जा...
05/09/2019

*🌹आठ सिद्धियां, नौ निधियां और दस गौण सिद्धियां कौन कौन सी हैं!!! 🌹🙏🏻*

चौपाई:-अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ।।

यह हनुमान चालीसा की एक चौपाई जिसमे तुलसीदास जी लिखते है कि हनुमानजी अपने भक्तो को आठ प्रकार की सिद्धयाँ तथा नौ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते हैं ऐसा सीतामाता ने उन्हे वरदान दिया । यह अष्ट सिद्धियां बड़ी ही चमत्कारिक होती है जिसकी बदौलत हनुमान जी ने असंभव से लगने वाले काम आसानी से सम्पन किये थे। आइये अब हम आपको इन अष्ट सिद्धियों, नौ निधियों और भगवत पुराण में वर्णित दस गौण सिद्धियों के बारे में विस्तार से बताते है।

*आठ सिद्धयाँ : - हनुमानजी को जिन आठ सिद्धियों का स्वामी तथा दाता बताया गया है वे सिद्धियां इस प्रकार हैं-

*1अणिमा: - इस सिद्धि के बल पर हनुमानजी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकते हैं।

इस सिद्धि का उपयोग हनुमानजी तब किया जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे। हनुमानजी ने अणिमा सिद्धि का उपयोग करके अति सूक्ष्म रूप धारण किया और पूरी लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला।

*2. महिमा: - इस सिद्धि के बल पर हनुमान ने कई बार विशाल रूप धारण किया है।

जब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे, तब बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया था। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था।

इसके अलावा माता सीता को श्रीराम की वानर सेना पर विश्वास दिलाने के लिए महिमा सिद्धि का प्रयोग करते हुए स्वयं का रूप अत्यंत विशाल कर लिया था।

*3. गरिमा: - इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी स्वयं का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर सकते हैं।

गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमानजी एक वृद्ध वानर रूप धारक करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने देखा कि एक वानर की पूंछ से रास्ते में पड़ी हुई है, तब भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ रास्ते से हटा लें। तब वृद्ध वानर ने कहा कि मैं वृद्धावस्था के कारण अपनी पूंछ हटा नहीं सकता, आप स्वयं हटा दीजिए। इसके बाद भीम वानर की पूंछ हटाने लगे, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस प्रकार भीम का घमंड टूट गया।

*4. लघिमा: - इस सिद्धि से हनुमानजी स्वयं का भार बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ-जा सकते हैं।

जब हनुमानजी अशोक वाटिका में पहुंचे, तब वे अणिमा और लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों में छिपे थे। इन पत्तों पर बैठे-बैठे ही सीता माता को अपना परिचय दिया था।

*5. प्राप्ति: - इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी किसी भी वस्तु को तुरंत ही प्राप्त कर लेते हैं। पशु-पक्षियों की भाषा को समझ लेते हैं, आने वाले समय को देख सकते हैं।

रामायण में इस सिद्धि के उपयोग से हनुमानजी ने सीता माता की खोज करते समय कई पशु-पक्षियों से चर्चा की थी। माता सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।

*6. प्राकाम्य: - इसी सिद्धि की मदद से हनुमानजी पृथ्वी गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं। इस सिद्धि से हनुमानजी चिरकाल तक युवा ही रहेंगे। साथ ही, वे अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को कारण कर सकते हैं। इस सिद्धि से वे किसी भी वस्तु को चिरकाल तक प्राप्त कर सकते हैं।

इस सिद्धि की मदद से ही हनुमानजी ने श्रीराम की भक्ति को चिरकाल का प्राप्त कर लिया है।

*7. ईशित्व: - इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं।

ईशित्व के प्रभाव से हनुमानजी ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया था। इस सिद्धि के कारण ही उन्होंने सभी वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा। साथ ही, इस सिद्धि से हनुमानजी किसी मृत प्राणी को भी फिर से जीवित कर सकते हैं।

*8. वशित्व: - इस सिद्धि के प्रभाव से हनुमानजी जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं।

वशित्व के कारण हनुमानजी किसी भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर लेते हैं। हनुमान के वश में आने के बाद प्राणी उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता है। इसी के प्रभाव से हनुमानजी अतुलित बल के धाम हैं।

नौ निधियां : - हनुमान जी प्रसन्न होने पर जो नव निधियां भक्तों को देते है वो इस प्रकार है

1. *पद्म निधि* : पद्मनिधि लक्षणो से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है तथा स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है ।

2. *महापद्म निधि* : महाप निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता है ।

3. *नील निधि* : निल निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेजसे संयुक्त होता है। उसकी संपति तीन पीढीतक रहती है।

4. *मुकुंद निधि* : मुकुन्द निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है वह राज्यसंग्रह में लगा रहता है।

5. *नन्द निधि* : नन्दनिधि युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है वही कुल का आधार होता है ।

6. *मकर निधि* : मकर निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है ।

7. *कच्छप निधि* : - कच्छप निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है वह अपनी संपत्ति का स्वयं उपभोग करता है ।

8. *शंख निधि* : - शंख निधि एक पीढी के लिए होती है।

9. *खर्व निधि* : - खर्व निधिवाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रीत फल दिखाई देते हैं ।

*दस गौण सिद्धियां : - इसके अलावा भगवत पुराण में भगवान कृष्ण ने दस गौण सिद्धियों का वर्णन और किया है जो निम्न प्रकार है-

1. अनूर्मिमत्वम्
2. दूरश्रवण
3. दूरदर्शनम्
4. मनोजवः
5. कामरूपम्
6. परकायाप्रवेशनम्
7. स्वछन्द मृत्युः
8. देवानां सह क्रीडा अनुदर्शनम्
9. यथासंकल्पसंसिद्धिः
10. आज्ञा अप्रतिहता

*अगर तुम निश्चिंत होना चाहो, तो छोटा-सा काम है। बस.. ज़रा सी तरकीब है, ज़रा-सी कला है-- और कला यह है.. अपने को हटा लो और ई...
25/08/2019

*अगर तुम निश्चिंत होना चाहो, तो छोटा-सा काम है। बस.. ज़रा सी तरकीब है, ज़रा-सी कला है-- और कला यह है.. अपने को हटा लो और ईश्वर को करने दो। चाहे जो करे। करे तो ठीक, न करे तो ठीक। पहुँचाए कहीं तो ठीक, न पहुँचाए, तो ठीक। तुम सारी चिन्ता उस पर छोड़ दो। जिस पर इतना विराट जीवन ठहरा हुआ है, चाँद तारे चलते हैं, ऋतुएँ घूमती हैं, सूरज निकलता है, डूबता है।.....इतना विराट जीवन का सागर, इतनी लहर जो सम्भाले हुए है, तुम्हारी भी छोटी लहर सम्भाल लेगा। तुम अपनी लहर को अपना अहंकार मत बनाओ। तुम अपनी लहर को उसके हाथ में समर्पित कर दो।*

27/07/2019
ॐ नमः शिवाय
23/07/2019

ॐ नमः शिवाय

मित्र ही होते है जो आपको किसी भी मुश्किल से आसानी से निकाल सकते हैं। आपत्ति के समय जो मित्र सहयोग करते हैं वे ही सच्चे म...
02/06/2019

मित्र ही होते है जो आपको किसी भी मुश्किल से आसानी से निकाल सकते हैं। आपत्ति के समय जो मित्र सहयोग करते हैं वे ही सच्चे मित्र होते हैं। रामायण में राम ने कहा है हमें मित्रों के छोटे से दुख को पहाड़ के समान समझना चाहिए और हमारे स्वयं के दुख को धूल के समान। भगवान राम ने वानर राज सुग्रीव को अपना मित्र बनाया और सुग्रीव ने उन्हें रावण के युद्ध करने में मदद की।

*🚩रुद्राभिषेक से क्या क्या लाभ मिलता है ?🔱*शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप ज...
06/07/2018

*🚩रुद्राभिषेक से क्या क्या लाभ मिलता है ?🔱*
शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा।
श्लोक
जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै
दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै।
मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा।
पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।।
बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना।
जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।
घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्।
तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशयः।
प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम।
केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषतः।
शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्।
श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च!!
सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह!
पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा।।
जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै।
पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा।
महलिंगाभिषेकेन सुप्रीतः शंकरो मुदा।
कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्।
अर्थात
जल से रुद्राभिषेक करने पर — वृष्टि होती है।
कुशा जल से अभिषेक करने पर — रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है।
दही से अभिषेक करने पर — पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।
गन्ने के रस से अभिषेक करने पर — लक्ष्मी प्राप्ति
मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर — धन वृद्धि के लिए।
तीर्थ जल से अभिषेकक करने पर — मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इत्र मिले जल से अभिषेक करने से — बीमारी नष्ट होती है ।
दूध् से अभिषेककरने से — पुत्र प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण
गंगाजल से अभिषेक करने से — ज्वर ठीक हो जाता है।
दूध् शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से — सद्बुद्धि प्राप्ति हेतू।
घी से अभिषेक करने से — वंश विस्तार होती है।
सरसों के तेल से अभिषेक करने से — रोग तथा शत्रु का नाश होता है।
शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से —- पाप क्षय हेतू।

👉👉👉  *असली उम्र*   👈👈👈एक बार एक आदमी किसी गाँव के पास से गुजर रहा था ।  उस रास्ते में श्मशान भूमि थी, उसने श्मशान भूमि म...
08/06/2018

👉👉👉 *असली उम्र* 👈👈👈

एक बार एक आदमी किसी गाँव के पास से गुजर रहा था । उस रास्ते में श्मशान भूमि थी, उसने श्मशान भूमि में पत्थरों के ऊपर मरने वाले की उम्र लिखी हुई देखी 5 वर्ष, 8 वर्ष, 10 वर्ष और 20 वर्ष । उस आदमी ने सोचा कि इस गांव में सभी की मृत्यु अल्प आयु में ही हो जाती है । वह आदमी गांव में गया तो गांव वालों ने उस आदमी की बहुत सेवा सत्कार किया । वह आदमी कुछ दिन उस गांव में ठहरने के बाद वहां से जाने के लिए तैयार हुआ और गांव वालों को बताया कि मैं कल जा रहा हूँ ।

उसकी बात सुनकर गांव वाले बहुत दुखी हुए और कहने लगे हमारे से कोई गलती हुई है तो बताओ लेकिन आप यहाँ से न जाओ, आप इसी गाँव में रुक जाओ । वह आदमी कहने लगा कि इस गांव में, मैं और अधिक नहीं रह सकता, क्योंकि इस गांव में इंसान की अल्प आयु में ही मृत्यु हो जाती है । उसकी बात सुनकर गांव वाले हँसने लगे, और बोले देखो - हमारे बीच में भी कोई 60 वर्ष, 70 वर्ष औऱ 85 वर्ष का भी है । *तो उस आदमी ने पूछा कि श्मशान भूमि के पत्थरों पर लिखी मृतक की आयु का क्या कारण है ?* गांव वाले कहने लगे कि हमारे गांव में रिवाज़ है कि *आदमी सारा दिन काम काज करके, फिर भगवान का भजन कीर्तन, जीव की सेवा करके, रात को भोजन करने के बाद, जब वह सोने जाता है, तब वो अपनी डायरी के अंदर यह बात लिखता है कि आज कितना समय भगवान का सत्संग, भजन - सुमिरन किया ।*

जब उस आदमी की मृत्यु होती है, तब उसकी लिखी हुई डायरी लेकर उसके किये हुए *भजन सिमरन के समय को जोड़ कर हम उसे महीने और साल बनाकर उसे पत्थरों पर लिख देते हैं ।* क्योंकि इंसान की *असली आयु तो वही है जो उसने भगवान के भजन - सुमिरन में बिताई है ।* इंसान का बाकी जीवन तो *दुनियाँ मे ही व्यर्थ चला गया।*

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*अपने माता पिता का सम्मान करने के 35 तरीके*1. उनकी उपस्थिति में अपने फोन को दूर रखो.2. वे क्या कह रहे हैं इस पर ध्यान दो...
01/06/2018

*अपने माता पिता का सम्मान करने के 35 तरीके*
1. उनकी उपस्थिति में अपने फोन को दूर रखो.
2. वे क्या कह रहे हैं इस पर ध्यान दो.
3. उनकी राय स्वीकारें.
4. उनकी बातचीत में सम्मिलित हों.
5. उन्हें सम्मान के साथ देखें.
6. हमेशा उनकी प्रशंसा करें.
7. उनको अच्छा समाचार जरूर बताएँ.
8. उनके साथ बुरा समाचार साझा करने से बचें.
9. उनके दोस्तों और प्रियजनों से अच्छी तरह से बोलें.
10. उनके द्वारा किये गए अच्छे काम सदैव याद रखें.
11. वे यदि एक ही कहानी दोहरायें तो भी ऐसे सुनें जैसे पहली बार सुन रहे हो.
12. अतीत की दर्दनाक यादों को मत दोहरायें.
13. उनकी उपस्थिति में कानाफ़ूसी न करें.
14. उनके साथ तमीज़ से बैठें.
15. उनके विचारों को न तो घटिया बताये न ही उनकी आलोचना करें.
16. उनकी बात काटने से बचें.
17. उनकी उम्र का सम्मान करें.
18. उनके आसपास उनके पोते/पोतियों को अनुशासित करने अथवा मारने से बचें.
19. उनकी सलाह और निर्देश स्वीकारें.
20. उनका नेतृत्व स्वीकार करें.
21. उनके साथ ऊँची आवाज़ में बात न करें.
22. उनके आगे अथवा सामने से न चलें.
23. उनसे पहले खाने से बचें.
24. उन्हें घूरें नहीं.
25. उन्हें तब भी गौरवान्वित प्रतीत करायें जब कि वे अपने को इसके लायक न समझें.
26. उनके सामने अपने पैर करके या उनकी ओर अपनी पीठ कर के बैठने से बचें.
27. न तो उनकी बुराई करें और न ही किसी अन्य द्वारा की गई उनकी बुराई का वर्णन करें.
28. उन्हें अपनी प्रार्थनाओं में शामिल करें.
29. उनकी उपस्थिति में ऊबने या अपनी थकान का प्रदर्शन न करें.
30. उनकी गलतियों अथवा अनभिज्ञता पर हँसने से बचें.
31. कहने से पहले उनके काम करें.
32. नियमित रूप से उनके पास जायें.
33. उनके साथ वार्तालाप में अपने शब्दों को ध्यान से चुनें.
34. उन्हें उसी सम्बोधन से सम्मानित करें जो वे पसन्द करते हैं.
35. अपने किसी भी विषय की अपेक्षा उन्हें प्राथमिकता दें...!!!

*माता – पिता इस दुनिया में सबसे बड़ा खज़ाना हैं..!!* यह मेसेज हर घर तक पहुंचने मे मदद करे तो बड़ी कृपा होगी मानव जाति का उद्धार संभव हैं, यदि ऊपर लिखी बातों को जीवन में उतार लिया तो। *सबसे पहले भगवान, गुरु माता पिता ही हैं,* हर धर्म में इस बात का उल्लेख हे...!!!

सभी के माता पिता को सत् सत् प्रणाम !!!🙏🙏

शीतला पूजन एवं महोत्सव इस बार चैत्र कृष्णा अष्टमी शुक्रवार तारीख 9 मार्च 2018 को श्रेष्ठतम पूजन का योग बन रहा हैं। चैत्र...
06/03/2018

शीतला पूजन एवं महोत्सव इस बार चैत्र कृष्णा अष्टमी शुक्रवार तारीख 9 मार्च 2018 को श्रेष्ठतम पूजन का योग बन रहा हैं। चैत्र कृष्णा छठ बुधवार तारीख 7 मार्च 2018 को रात में 2:01 से चैत्र कृष्णा सप्तमी गुरुवार तारीख 8 मार्च सन 2018 को 2:48 दोपहर में तक भद्रा रहेगी ।इस बार भद्रा वृश्चिक के चंद्रमा की बदरा मृत्युलोक की मानी जाती है कुंभ मीन वृश्चिक सिंह राशि में चंद्रमा होने पर भद्रा मृत्यु लोक में रहती है मेष मकर वृषभ कर्क राशि चंद्रमा पर स्वर्ग लोक में विद्यमान रहती है कन्या मिथुन तुला धन के चंद्रमा में पाताल लोक में भद्रा रहती है इस बार वृश्चिक राशि की भद्रा होने से मृत्यु लोक में सन्मुख भद्रा रहती है जो परिवार समाज प्रदेश देश और राष्ट्र के लिए हानिकारक है 9 मार्च 2018 चैत्र कृष्ण अष्टमी शुक्रवार को भद्रा रहित शीतला पूजन श्रेष्ठ रहेगा गुरुवार 8 मार्च 2018 का जागरण श्रेष्ठतम बनता है अनेकों पंचांग ने शुक्रवार चैत्र कृष्णाष्टमी 9 मार्च को श्रेष्ठतम शीतला पूजन बताया है गुरुवार 8 मार्च 2018 को 3:00 बजे दोपहर में रान्धा पौवा ,मिष्टान पकवान ,नमकीन रोटी सब्जी ,राबड़ी ,ओल्या ,दही पचकुटा सब्जी अन्य प्रसाद सामग्री का कार्यक्रम करें जो श्रेष्ठतम रहेगा चैत्र कृष्णा सप्तमी गुरुवार 8 मार्च 2018 चैत्र कृष्णा सप्तमी को भद्रा 2:52 दोपहर तक रहेगी ।अतः पूजन का योग अशुभ रहेगा ।शी तला पूजन 9 मार्च 2018 को ही श्रेष्ठ रहेगा।
आचार्य झषांक हरिहर

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