Richa Sharma astrologer

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28/07/2025

कुंडली के 12 भाव क्या बताते है?
🔮 1. प्रथम भाव (लग्न / Ascendant / Tanu Bhava)
भावार्थ: स्वयं, शरीर, स्वास्थ्य, व्यक्तित्व, आत्म-छवि, रंग-रूप, जीवन की शुरुआत
गहराई से: यह भाव यह दर्शाता है कि दुनिया आपको कैसे देखती है और आप स्वयं को कैसे अनुभव करते हैं।

🔮 2. द्वितीय भाव (Dhana Bhava / Wealth House)
भावार्थ: धन, वाणी, कुटुंब, भोजन, प्राथमिक शिक्षा, पारिवारिक संपत्ति
गहराई से: व्यक्ति की कमाई करने की क्षमता और पारिवारिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है।

🔮 3. तृतीय भाव (Sahaj Bhava / Courage & Siblings)
भावार्थ: साहस, छोटे भाई-बहन, संचार, पराक्रम, लेखन, कला, यात्रा
गहराई से: यह भाव यह बताता है कि आप कितने साहसी हैं, आपके प्रयासों में कितनी ऊर्जा है।

🔮 4. चतुर्थ भाव (Sukh Bhava / Home & Mother)
भावार्थ: माता, सुख, संपत्ति, वाहन, घर, शिक्षा, मन की शांति
गहराई से: मानसिक स्थिरता, मातृ-संस्कार और घरेलू सुख-सुविधाओं का भाव।

🔮 5. पंचम भाव (Putra Bhava / Creativity & Children)
भावार्थ: संतान, विद्या, प्रेम, सृजनशीलता, मनोरंजन, भविष्य
गहराई से: यह भाव संतान योग, बुद्धिमत्ता और आपकी रचनात्मकता को दर्शाता है।

🔮 6. षष्ठ भाव (Rog Ripu Rin Bhava / Disease & Enemies)
भावार्थ: रोग, शत्रु, ऋण, संघर्ष, सेवा, दासता, कानूनी विवाद
गहराई से: यह व्यक्ति के संघर्ष और जीवन में आने वाली कठिनाइयों को दर्शाता है।

🔮 7. सप्तम भाव (Yuvati Bhava / Marriage & Partnerships)
भावार्थ: विवाह, जीवनसाथी, साझेदारी, सार्वजनिक संबंध, रोमांस
गहराई से: यह आपके वैवाहिक जीवन और बिज़नेस पार्टनरशिप को दर्शाता है।

🔮 8. अष्टम भाव (Randhra Bhava / Death & Transformation)
भावार्थ: मृत्यु, आयु, गूढ़ ज्ञान, गोपनीयता, दुर्घटना, इनहेरिटेंस
गहराई से: यह भाव अचानक होने वाली घटनाओं, आध्यात्मिक रहस्य और परिवर्तन का कारक है।

🔮 9. नवम भाव (Dharma Bhava / Luck & Higher Learning)
भावार्थ: धर्म, भाग्य, गुरु, तीर्थ यात्रा, न्याय, उच्च शिक्षा
गहराई से: यह भाग्य, संस्कार और आध्यात्मिक मार्गदर्शन का भाव है।

🔮 10. दशम भाव (Karma Bhava / Career & Public Life)
भावार्थ: कर्म, पेशा, समाज में प्रतिष्ठा, नेतृत्व, पिता
गहराई से: यह व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और करियर ग्रोथ को दर्शाता है।

🔮 11. एकादश भाव (Labha Bhava / Gains & Fulfillment)
भावार्थ: लाभ, आय, मित्र, आकांक्षाओं की पूर्ति, नेटवर्क
गहराई से: यह आर्थिक लाभ, महत्वाकांक्षाएं और सामाजिक जुड़ाव का भाव है।

🔮 12. द्वादश भाव (Vyaya Bhava / Losses & Moksha)
भावार्थ: व्यय, हानि, विदेश यात्रा, त्याग, मोक्ष, निद्रा
गहराई से: यह आध्यात्मिक मुक्ति, परोपकार, अस्पताल/जेल और हानि को दर्शाता है।
Richa Sharma

10/05/2025

14 may tk mangal kark rashi me neech ki sthiti me upasthit hai

🦵 आपकी पिंडलियां (Shin Bones) क्या कहती हैं आपकी Personality के बारे में?🔹 अगर आपकी पिंडलियां पतली और लंबी हैं,तो आप बहु...
09/05/2025

🦵 आपकी पिंडलियां (Shin Bones) क्या कहती हैं आपकी Personality के बारे में?
🔹 अगर आपकी पिंडलियां पतली और लंबी हैं,
तो आप बहुत तेज सोचने वाले, बुद्धिमान और कल्पनाशील व्यक्ति हैं। आपकी सोच दूसरों से काफी आगे होती है! 🧠⚡

🔹 अगर पिंडलियां मोटी और मजबूत हैं,
तो आप बहुत मेहनती, ज़मीन से जुड़े हुए और भरोसेमंद इंसान हैं। आप जिस काम में लगते हैं, उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। 💪🌱

🔹 अगर पिंडलियों की बनावट असमान (uneven) है,
तो आपका स्वभाव उतार-चढ़ाव से भरा होता है, पर आप हर परिस्थिति में खुद को ढाल लेते हैं। आप बहुत adaptable और emotional भी होते हैं. 🌊💫
Sudhir Pathak Richa Sharma astrologer Richa Sharma

एक उड़ते हुए गुब्बारे पर क्या खूब लिखा था ...जो बाहर है वो नहीं जो अन्दर है बस वही ऊपर ले जाता है।💞
06/05/2025

एक उड़ते हुए गुब्बारे पर क्या खूब लिखा था ...जो बाहर है वो नहीं जो अन्दर है बस वही ऊपर ले जाता है।💞

(मां के मंदिर बेलों और करनवास ग्राम में है बुलंदशहर उत्तर प्रदेश)भरद्वाज गोत्र की कुल देवी मां बेलोन वाली श्रीमाता सर्वम...
27/04/2025

(मां के मंदिर बेलों और करनवास ग्राम में है बुलंदशहर उत्तर प्रदेश)भरद्वाज गोत्र की कुल देवी मां बेलोन वाली श्रीमाता सर्वमंगला 🙏मेरी भी कुलदेवी हैं। साथ ही करनवास की माता का पूजन भी होता है। (आप अवंतिका माता के दर्शन भी चाहे तो कर सकते है जो आहार ग्राम में है इस स्थान से रुक्मिणी जी का हरण किया था कृष्ण जी ने।वत्स गोत्र मेरे पिताजी का गोत्र है और वे कुलदेवी मां के रूप में इनका पूजन करते है।)

बेलों वाली माता ..(श्री माता मंदिर बुलंदशहर में है)उनकी प्रतिमा वीरासन में हैं। अर्थात मैया का एक पैर पाताल में है और तमाम प्रयासों के बाद भी मैया की मूर्ती को हटाना तो दूर हिलाया भी नहीं जा सकता। इनके प्रादुर्भाव का प्रसंग भी राजा दक्ष के यज्ञ उसमें देवादिदेव महादेव की अवहेलना, पिता के असहनीय व्यवहार से दुखी होकर मां पार्वती द्वारा देह त्यागने और इससे कुपित महादेव के गुणों यज्ञ विध्वंस की पौराणिक कथाओं से जुड़ा है।

भगवान शिव और पार्वती एक बार पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकले। भ्रमण करते-करते वह गंगा नदी के पश्चिमी छोर के पास स्थित बिलबन क्षेत्र में आ गए। प्राचीन काल में यह क्षेत्र बेल के वन से घिरा हुआ था, जिससे इसका नाम बिलवन पड़ गया। यहां पार्वती मैया को एक सिला दिखाई दी। वह इस पर बैठने के लिए ललायित हुई। भगवान शिव से अपनी इच्छा प्रकट की और उनकी अनुमति मिलने पर वह सिला पर बैठ गई। मां पार्वती के विश्राम करने पर भगवान शिव भी पास ही एक वटवृक्ष के पास आसन लगाकर बैठ गए। बताते हैं कि इसी मध्य वहां एक बालक आया और वह सिला पर बैठकर आराम कर रहीं पार्वती मैया के पैर दबाने लगा। यह देख माता पार्वती ने आनंद और आश्चर्य का मिश्रित भाव व्यक्त करते हुए भगवान महादेव से पूछा कि महाराज यह बालक कौन है और इस सिला पर बैठकर मैं इतनी आनंद विभार क्यों हूं।

भगवान महादेव ने माता पार्वती को राजा दक्ष के यज्ञ प्रसंग का वृतांत सुनाते हुए कहा कि पिता के अपमान जनक व्यवहार से दुखी होकर जब पूर्व जन्म में तुमने देह को लेकर आकाश मार्ग से गुजर रहे थे। तब सती के शरीर से एक मां का लोथड़ा और खून की कुछ बूंद जिस सिला पर पड़ी और इसके गर्भग्रह में समा गई। यह बालक उसी का अंश हैं यह बालक तभी से आपके दर्शन की इच्छा के साथ उपासना कर रहा था। आज तुम्हारे साक्षात दर्शन से इसकी उपासना पूरी हो गई। इस पर भाव विहवल मां पार्वती ने बालक को गोद में उठा लिया। वह इस बालक के साथ कुछ समय यहां रहीं। उसी समय भगवान शिव ने कहा कि आज से यह सिला साक्षात तुम्हारा स्वरूप होगा, और मां सर्व मंगला देवी के नाम से विख्यात होगा, जो भी व्यक्ति शुक्ल पक्ष की बारह अष्टमी तुम्हारे दर्शन करेगा। उसे मनवांछित फल प्राप्त होगा। यह बालक लांगुरिया के नाम से जाना जाएगा। इसके दर्शन से ही मां सर्व मंगला देवी की यात्रा पूरी होगी।🌅
द्वापर में राक्षसों के बढ़ते अत्याचार से लोग त्राहि-त्राहि करने लगे। ब्रज से लगे कोल वत्मान में अलीगढ़ क्षेत्र के कोल राक्षस ने आतंक बरपा रखा था। आसपास की जनता ने भगवान कृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता दाऊ बलराम जी से कोल के आतंक से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। इसी के बाद बलराम ने कोल राक्षस मारा गया। इससे क्षेत्र की जनता को काफी राहत मिली। कोल का वध करने के बाद बलराम जी ने रामघाट पर गंगा में स्नान किया। इस दौरान उन्हें दैवीय शक्ति के प्रभाव की अनुभूति हुई। इसके सम्मोहन में बलराम विलवन क्षेत्र में पहुंच गए। यहां देवी के दर्शन की इच्छा के साथ उन्होंने घोर तप किया और इससे प्रसन्न होकर मां सर्वमंगला देवी ने उन्हें दर्शन दिये। देवी ने बलराम से कहा कि वह उनकी खंडित शक्ति को पूर्ण प्रतिष्ठित करें। इसके बाद बलराम ने मां सर्वमंगला देवी के दर्शन को पूर्ण प्रतिष्ठित किया। जनश्रुति के अनुसार मां सर्वमंगला देवी के दर्शन की अभिलाषा से बलराम ने चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी को तपस्या शुरू की और अगली चैत्र शुक्ल भी अष्टमी को मां ने उन्हें दर्शन देकर तपस्या का समापन कराया। तभी से चैत्र सुक्ल पक्ष की अष्टमी को मां सर्वमंगला देवी के दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है।🌅 कालचक्र बदला क्षेत्र में भूस्खलन हुआ नतीजतन बेलों का बगीचा जमीन में समा गया और मां सर्वमंगला देवी की जहां मूर्ति थी वह क्षेत्र टापू में बदल गया🌅
घसियारे जब घास खोदने निकलते थे तो उसी स्थान पर एकत्रित होते थे, जहां जमीन में मां सर्वमंगला देवी की मूर्ति दबी हुई थी। मूर्ति के सिर का छोटा सा हिस्सा बाहर चमकता था। घसियारे इसे पत्थर की सिला समझकर इस पर अपनी खुरपी की धार बनाया करते थे। इससे मां को काफी पीड़ा होती थी। मां के सिर में खुरपी पर धार रखने के लिए की जाने वाली घिसाई से एक गड्ढा हो गया जो आज भी विध्मान है। ☀️समय चक्र फिर बदला। जहांगीर के सेनापति बड्बूजर के वंशज राव भूपसिंह बड़े धर्मपरायण स्वभाव के हुए। उन्होंने इसी
क्षेत्र में अपनी गढ़ी( हवेली) बनवाई और पूजा पाठ में रम गए। एक दिन मां सर्वमंगला देव ने उनहें स्वप्न दिया कि वह अमुक स्थान में जमीन में दबी है। अतः उनकी मूर्ति जहां है वहां खुदाई करवाकर उसका भवन बनवा दें। राव भूपसिंह को स्वप्न तो याद रहा। पर वह स्थान याद नहीं रहा जहां मां ने अपनी मूर्ति होने की जानकारी दी थी। अब तो राव भूपसिंह की बेचैनी बढ़ने लगी। जब पीड़ा असहनीय हो गई तो उन्होंने बनारस के विद्वान ब्राह्मणों को बुलाकर अपनी समस्या बताई।ब्राह्मणों ने राव को इसके लिए सतचंडी यज्ञ करने का सुझाव दिया। राव तुरंत तैयार हो गए। शतचंडी यज्ञ हुआ और यजमान बने राव ने रात्रि विश्राम यज्ञ प्रांगण में ही किया। रात्रि में मां सर्वमंगला देवी ने उन्हें फिर स्वप्न दिया और वह स्थान बताया जहां उनकी प्रतिमा दबी थी। सुबह होते ही राव ने ब्राह्मणों को स्वप्न की जानकारी दी और ब्राह्मणों के निर्देश पर राव भूपसिंह ने मां द्वारा बताये स्थान पर खुदाई शुरू कराई तो वहां मां की इस मूर्ति को देखकर राव ने इसे अपनी हवेली के बाहर लगाने का मन बनाया।

मजदूरों को मूर्ति सुरक्षित निकालने का हुक्म दिया। मजदूरों ने काफी कोशिश की मगर हार थक्कर बैठ गए। मूर्ति के एक पैर का कोई ओर छोर नहीं मिला। तब मां ने राव को बताया कि उनका एक पैर पाताल में है। इसलिए मेरा इसी स्थान पर भवन(मंदिर) बनवाओ। और इसी तरह मां सर्वमंगला देवी के मंदिर का निर्माण हुआ।
゚ Richa Sharma astrologer Sudhir Pathak

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