हिन्दू पंचांग और सनातन धर्म

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हिन्दू पंचांग और सनातन धर्म वैदिक हिंदू पंचांग और सनातन धर्म से जुड़ी जानकारियां

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞 🌤️  *दिनांक - 30 जुलाई 2025*🌤️ *दिन -  बुधवार*🌤️ *विक्रम संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081...
29/07/2025

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌤️ *दिनांक - 30 जुलाई 2025*
🌤️ *दिन - बुधवार*
🌤️ *विक्रम संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081)*
🌤️ *शक संवत -1947*
🌤️ *अयन - दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु - वर्षा ॠतु*
🌤️ *मास - श्रावण*
🌤️ *पक्ष - शुक्ल*
🌤️ *तिथि - षष्ठी 31 जुलाई रात्रि 02:41 तक तत्पश्चात सप्तमी*
🌤️ *नक्षत्र - हस्त रात्रि 09:53 तक तत्पश्चात चित्रा*
🌤️ *योग - सिद्ध 31 जुलाई रात्रि 03:40 तक तत्पश्चात साध्य*
🌤️ *राहुकाल - दोपहर 12:45 से दोपहर 02:23 तक*
🌤️ *सूर्योदय - 06:12*
🌤️ *सूर्यास्त - 07:17*
👉 *दिशाशूल - उत्तर दिशा मे*
🚩 *व्रत पर्व विवरण -*
💥 *विशेष - षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

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💥 *चतुर्मास के दिनों में ताँबे व काँसे के पात्रों का उपयोग न करके अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करना चाहिए।(स्कन्द पुराण)*
💥 *चतुर्मास में पलाश के पत्तों की पत्तल पर भोजन करना पापनाशक है।*
🌞~*वैदिक पंचांग* ~🌞

🌷 *शिवपुराण* 🌷
🙏🏻 *श्रावण (सावन) में शिव भक्त भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए अनेक उपाय करते हैं। कुछ ऐसे ही छोटे और अचूक उपायों के बारे शिवपुराण में भी लिखा है। ये उपाय इतने सरल हैं कि इन्हें आसानी से किया जा सकता है। सावन में ये उपाय विधि-विधान पूर्वक करने से भक्तों की हर इच्छा पूरी हो सकती है। ये उपाय इस प्रकार हैं-*
🙏🏻 *शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के उपाय इस प्रकार हैं-*
➡ *1. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।*
➡ *2. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।*
➡ *3. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।*
➡ *4. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।*
🙏🏻 *शिवपुराण के अनुसार, जानिए भगवान शिव को कौन-सा रस (द्रव्य) चढ़ाने से क्या फल मिलता है-*
👉🏻 *1. बुखार होने पर भगवान शिव को जल चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जल द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।*
👉🏻 *2. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिला दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।*
👉🏻 *3. शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।*
👉🏻 *4. शिव को गंगा जल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।*
👉🏻 *5. शहद से भगवान शिव का अभिषेक करने से टीबी रोग में आराम मिलता है।*
👉🏻 *6. यदि शारीरिक रूप से कमजोर कोई व्यक्ति भगवान शिव का अभिषेक गाय के शुद्ध घी से करे तो उसकी कमजोरी दूर हो सकती है।*
🙏🏻 *शिवपुराण के अनुसार, जानिए भगवान शिव को कौन-सा फूल चढ़ाने से क्या फल मिलता है-*
🌷 *1. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।*
🌸 *2. भगवान शिव की पूजा चमेली के फूल से करने पर वाहन सुख मिलता है।*
💐 *3. अलसी के फूलों से शिव की पूजा करने पर मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।*
🌸 *4. शमी वृक्ष के पत्तों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।*
🍀 *5. बेला के फूल से पूजा करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।*
🌼 *6. जूही के फूल से भगवान शिव की पूजा करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।*
🌺 *7. कनेर के फूलों से भगवान शिव की पूजा करने से नए वस्त्र मिलते हैं।*
🍀 *8. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।*
🌸 *9. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।*
🌺 *10. लाल डंठलवाला धतूरा शिव पूजा में शुभ माना गया है।*

*🔱🚩🇮🇳 आर्यावर्त भारतखंड 🇮🇳🚩🔱*
🙏🍀🌷🌻🌺🌸🌹🍁🙏

29/07/2025

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌤️ *दिनांक - 29 जुलाई 2025*
🌤️ *दिन - मंगलवार*
🌤️ *विक्रम संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081)*
🌤️ *शक संवत -1947*
🌤️ *अयन - दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु - वर्षा ॠतु*
🌤️ *मास - श्रावण*
🌤️ *पक्ष - शुक्ल*
🌤️ *तिथि - पंचमी रात्रि 12:46 तक तत्पश्चात षष्ठी*
🌤️ *नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी शाम 07:27 तक तत्पश्चात हस्त*
🌤️ *योग - शिव 30 जुलाई रात्रि 03:05 तक तत्पश्चात सिद्ध*
🌤️ *राहुकाल - शाम 04:02 से शाम 05:40 तक*
🌤️ *सूर्योदय - 06:12*
🌤️ *सूर्यास्त - 07:17*
👉 *दिशाशूल - उत्तर दिशा मे*
🚩 *व्रत पर्व विवरण - नाग पंचमी,मंगलागौरी पूजन*

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💥 *विशेष - पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥 *चतुर्मास के दिनों में ताँबे व काँसे के पात्रों का उपयोग न करके अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करना चाहिए।(स्कन्द पुराण)*
💥 *चतुर्मास में पलाश के पत्तों की पत्तल पर भोजन करना पापनाशक है।*
🌞~*वैदिक पंचांग* ~🌞

🌷 *नागपंचमी* 🌷
🙏🏻 *श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर प्रमुख नाग मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और भक्त नागदेवता के दर्शन व पूजा करते हैं। सिर्फ मंदिरों में ही नहीं बल्कि घर-घर में इस दिन नागदेवता की पूजा करने का विधान है।*
🙏🏻 *ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है उसे व उसके परिवार को कभी भी सर्प भय नहीं होता। इस बार यह पर्व 29 जुलाई मंगलवार को है। इस दिन नागदेवता की पूजा किस प्रकार करें, इसकी विधि इस प्रकार है-*
🌷 *पूजन विधि* 🌷
🙏🏻 *नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोलें-*
🌷 *अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।*
*शंखपाल धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।*
*एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।*
*सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।*
*तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।*
🙏🏻 *इसके बाद पूजा व उपवास का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, फूल, धूप, दीप से पूजा करें व सफेद मिठाई का भोग लगाएं। यह प्रार्थना करें-*
🌷 *सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।*
*ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।*
*ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।*
*ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।*
🙏🏻 *प्रार्थना के बाद नाग गायत्री मंत्र का जप करें-*
🌷 *ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।*
🐍 *इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें* 🐍
🌷 *ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।*
*इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखादय:।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।*
*कद्रवेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।*
*इंद्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखादय:।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।*
*सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।*
*मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखादय:।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।*
*पृथिव्यांचैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।*
*सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।*
*ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पा प्रचरन्ति च।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।*
*समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जलवासिन:।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।*
*रसातलेषु या सर्पा: अनन्तादि महाबला:।*
*नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।*
🐍 *नागदेवता की आरती करें और प्रसाद बांट दें। इस प्रकार पूजा करने से नागदेवता प्रसन्न होते हैं और हर मनोकामना पूरी करते हैं।*

*🔱🚩🇮🇳 आर्यावर्त भरतखंड 🇮🇳🚩🔱*
🌞 ~ *वैदिक पंचांग* ~ 🌞

29/07/2025

I wish the glory of Shiva Shankar uplift your soul and banish all your troubles. Happy Nag Panchami🙏🏻

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞🌤️  *दिनांक - 28 जुलाई 2025*🌤️ *दिन -  सोमवार*🌤️ *विक्रम संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081)...
27/07/2025

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌤️ *दिनांक - 28 जुलाई 2025*
🌤️ *दिन - सोमवार*
🌤️ *विक्रम संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081)*
🌤️ *शक संवत -1947*
🌤️ *अयन - दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु - वर्षा ॠतु*
🌤️ *मास - श्रावण*
🌤️ *पक्ष - शुक्ल*
🌤️ *तिथि - चतुर्थी रात्रि 11:24 तक तत्पश्चात पंचमी*
🌤️ *नक्षत्र - पूर्वाफाल्गुनी शाम 05:35 तक तत्पश्चात उत्तराफाल्गुनी*
🌤️ *योग - परिघ 29 जुलाई रात्रि 02:54 तक तत्पश्चात शिव*
🌤️ *राहुकाल - सुबह 07:49 से सुबह 09:28 तक*
🌤️ *सूर्योदय - 06:12*
🌤️ *सूर्यास्त - 07:18*
👉 *दिशाशूल - पूर्व दिशा मे*
🚩 *व्रत पर्व विवरण - विनायक चतुर्थी*
💥 *विशेष - चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

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💥 *चतुर्मास के दिनों में ताँबे व काँसे के पात्रों का उपयोग न करके अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करना चाहिए।(स्कन्द पुराण)*
💥 *चतुर्मास में पलाश के पत्तों की पत्तल पर भोजन करना पापनाशक है।*
🌞~*वैदिक पंचांग* ~🌞

🌷 *काल सर्प योग* 🌷
➡ *29 जुलाई 2025 मंगलवार को नाग पंचमी है ।*
🙏🏻 *नाग पंचमी के दिन , जिन को काल सर्प योग है , वे शांति के लिए ये उपाय करे | पंचमी के दिन पीपल के नीचे, एक दोने में कच्चा दूध रख दीजिये , घी का दीप जलाए , कच्चा आटा , घी और गुड मिला कर एक छोटा लड्डू बना के रख दे और ये मन्त्र बोला कर प्रार्थना करें :-*
🐍 *ॐ अनंताय नमः*
🐍 *ॐ वासुकाय नमः*
🐍 *ॐ शंख पालाय नमः*
🐍 *ॐ तक्षकाय नमः*
🐍 *ॐ कर्कोटकाय नमः*
🐍 *ॐ धनंजयाय नमः*
🐍 *ॐ ऐरावताय नमः*
🐍 *ॐ मणि भद्राय नमः*
🐍 *ॐ धृतराष्ट्राय नमः*
🐍 *ॐ कालियाये नमः*
➡️ *काल सर्प योग है तो उस का प्रभाव निकल जाएगा .. तकलीफ दूर होगी ..काल सर्प योग की शांति होगी …*

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞

🌷 *नागपंचमी* 🌷
➡ *गंताक से आगे....*
🙏🏻 *श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 29 जुलाई, मंगलवार को है। इस दिन नागों की पूजा करने का विधान है। हिंदू धर्म में नागों को भी देवता माना गया है। महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं। नागपंचमी के अवसर पर हम आपको ग्रंथों में वर्णित प्रमुख नागों के बारे में बता रहे हैं-*
🐍 *कर्कोटक नाग*
*कर्कोटक शिव के एक गण हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सर्पों की मां कद्रू ने जब नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब भयभीत होकर कंबल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए।*
🙏🏻 *ब्रह्माजी के कहने पर कर्कोटक नाग ने महाकाल वन में महामाया के सामने स्थित शिव लिंग की स्तुति की। शिव ने प्रसन्न होकर कहा- जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा। इसके बाद कर्कोटक नाग उसी शिवलिंग में प्रवेश कर गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं। मान्यता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार के दिन कर्कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।*
🐍 *कालिया नाग*
*श्रीमद्भागवत के अनुसार, कालिया नाग यमुना नदी में अपनी पत्नियों के साथ निवास करता था। उसके जहर से यमुना नदी का पानी भी जहरीला हो गया था। श्रीकृष्ण ने जब यह देखा तो वे लीलावश यमुना नदी में कूद गए। यहां कालिया नाग व भगवान श्रीकृष्ण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को पराजित कर दिया। तब कालिया नाग की पत्नियों ने श्रीकृष्ण से कालिया नाग को छोडऩे के लिए प्रार्थना की। तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि तुम सब यमुना नदी को छोड़कर कहीं और निवास करो। श्रीकृष्ण के कहने पर कालिया नाग परिवार सहित यमुना नदी छोड़कर कहीं और चला गया।*
*इनके अलावा कंबल, शंखपाल, पद्म व महापद्म आदि नाग भी धर्म ग्रंथों में पूज्यनीय बताए गए हैं।*
➡ *समाप्त.....*

*🔱🚩🇮🇳 आर्यावर्त भरतखण्ड 🇮🇳🚩🔱*

🌞 ~ *वैदिक पंचांग* ~ 🌞

 #शालीग्राम~~~~~~~शालीग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जिसका प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान विष्णु जी...
27/07/2025

#शालीग्राम
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शालीग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जिसका प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान विष्णु जी का आह्वान करने के लिए किया जाता है। शालीग्राम आमतौर पर पवित्र नदी की तली या किनारों से एकत्र किया जाता है। शिव भक्त पूजा करने के लिए शिव लिंग के रूप में लगभग गोल या अंडाकार शालिग्राम का उपयोग करते हैं।

वैष्णव (हिन्दू) पवित्र नदी गंडकी में पाया जाने वाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड जीवाश्म को भगवान विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में उपयोग करते हैं। शालीग्राम को प्रायः 'शिला' कहा जाता है। शिला शालिग्राम का छोटा नाम है जिसका अर्थ "पत्थर" होता है। शालीग्राम भगवान विष्णु का ही एक प्रसिद्ध नाम है। इस नाम की उत्पत्ति के सबूत नेपाल के एक दूरदराज़ के गाँव से मिलते है जहां विष्णु को शालीग्रामम् के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में शालीग्राम को सालग्राम के रूप में जाना जाता है। शालीग्राम का सम्बन्ध सालग्राम नामक गाँव से भी है जो गंडक नामक नदी के किनारे पर स्थित है तथा यहां से ये पवित्र पत्थर भी मिलता है।

पद्मपुराण के अनुसार
~~~~~~~~~~~~~~
गण्डकी अर्थात नारायणी नदी के एक प्रदेश में शालिग्राम स्थल नाम का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है; वहाँ से निकलनेवाले पत्थर को शालिग्राम कहते हैं। शालिग्राम शिला के स्पर्शमात्र से करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। फिर यदि उसका पूजन किया जाय, तब तो उसके फल के विषय में कहना ही क्या है; वह भगवान के समीप पहुँचाने वाला है।

बहुत जन्मों के पुण्य से यदि कभी गोष्पद के चिह्न से युक्त श्रीकृष्ण शिला प्राप्त हो जाय तो उसी के पूजन से मनुष्य के पुनर्जन्म की समाप्ति हो जाती है।

पहले शालिग्राम-शिला की परीक्षा करनी चाहिये; यदि वह काली और चिकनी हो तो उत्तम है। यदि उसकी कालिमा कुछ कम हो तो वह मध्यम श्रेणी की मानी गयी है। और यदि उसमें दूसरे किसी रंग का सम्मिश्रण हो तो वह मिश्रित फल प्रदान करने वाली होती है। जैसे सदा काठ के भीतर छिपी हुई आग मन्थन करने से प्रकट होती है, उसी प्रकार भगवान विष्णु सर्वत्र व्याप्त होने पर भी शालिग्राम शिला में विशेष रूप से अभिव्यक्त होते हैं।

जो प्रतिदिन द्वारका की शिला-गोमती चक्र से युक्त बारह शालिग्राम मूर्तियों का पूजन करता है, वह वैकुण्ठ लोक में प्रतिष्ठित होता है।

जो मनुष्य शालिग्राम-शिला के भीतर गुफ़ा का दर्शन करता है, उसके पितर तृप्त होकर कल्प के अन्ततक स्वर्ग में निवास करते हैं।

जहाँ द्वारकापुरी की शिला- अर्थात गोमती चक्र रहता है, वह स्थान वैकुण्ठ लोक माना जाता है; वहाँ मृत्यु को प्राप्त हुआ मनुष्य विष्णुधाम में जाता है।

जो शालग्राम-शिला की क़ीमत लगाता है, जो बेचता है, जो विक्रय का अनुमोदन करता है तथा जो उसकी परीक्षा करके मूल्य का समर्थन करता है, वे सब नरक में पड़ते हैं। इसलिये शालिग्राम शिला और गोमती चक्र की ख़रीद-बिक्री छोड़ देनी चाहिये।

शालिग्राम-स्थल से प्रकट हुए भगवान शालिग्राम और द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र- इन दोनों देवताओं का जहाँ समागम होता है, वहाँ मोक्ष मिलने में तनिक भी सन्देह नहीं है।

द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र से युक्त, अनेकों चक्रों से चिह्नित तथा चक्रासन-शिला के समान आकार वाले भगवान शालिग्राम साक्षात चित्स्वरूप निरंजन परमात्मा ही हैं। ओंकार रूप तथा नित्यानन्द स्वरूप शालिग्राम को नमस्कार है।

शालिग्राम स्वरूप
~~~~~~~~~~~
जिस शालिग्राम-शिला में द्वार-स्थान पर परस्पर सटे हुए दो चक्र हों, जो शुक्ल वर्ण की रेखा से अंकित और शोभा सम्पन्न दिखायी देती हों, उसे भगवान श्री गदाधर का स्वरूप समझना चाहिये।

संकर्षण मूर्ति में दो सटे हुए चक्र होते हैं, लाल रेखा होती है और उसका पूर्वभाग कुछ मोटा होता है।

प्रद्युम्न के स्वरूप में कुछ-कुछ पीलापन होता है और उसमें चक्र का चिह्न सूक्ष्म रहता है।

अनिरुद्ध की मूर्ति गोल होती है और उसके भीतरी भाग में गहरा एवं चौड़ा छेद होता है; इसके सिवा, वह द्वार भाग में नील वर्ण और तीन रेखाओं से युक्त भी होती है।

भगवान नारायण श्याम वर्ण के होते हैं, उनके मध्य भाग में गदा के आकार की रेखा होती है और उनका नाभि-कमल बहुत ऊँचा होता है।

भगवान नृसिंह की मूर्ति में चक्र का स्थूल चिह्न रहता है, उनका वर्ण कपिल होता है तथा वे तीन या पाँच बिन्दुओं से युक्त होते हैं। ब्रह्मचारी के लिये उन्हीं का पूजन विहित है। वे भक्तों की रक्षा करनेवाले हैं।

जिस शालिग्राम-शिला में दो चक्र के चिह्न विषम भाव से स्थित हों, तीन लिंग हों तथा तीन रेखाएँ दिखायी देती हों; वह वाराह भगवान का स्वरूप है, उसका वर्ण नील तथा आकार स्थूल होता है। भगवान वाराह भी सबकी रक्षा करने वाले हैं।

कच्छप की मूर्ति श्याम वर्ण की होती है। उसका आकार पानी की भँवर के समान गोल होता है। उसमें यत्र-तत्र बिन्दुओं के चिह्न देखे जाते हैं तथा उसका पृष्ठ-भाग श्वेत रंग का होता है।

श्रीधर की मूर्ति में पाँच रेखाएँ होती हैं, वनमाली के स्वरूप में गदा का चिह्न होता है।

गोल आकृति, मध्यभाग में चक्र का चिह्न तथा नीलवर्ण, यह वामन मूर्ति की पहचान है।

जिसमें नाना प्रकार की अनेकों मूर्तियों तथा सर्प-शरीर के चिह्न होते हैं, वह भगवान अनन्त की प्रतिमा है।

दामोदर की मूर्ति स्थूलकाय एवं नीलवर्ण की होती है। उसके मध्य भाग में चक्र का चिह्न होता है। भगवान दामोदर नील चिह्न से युक्त होकर संकर्षण के द्वारा जगत की रक्षा करते हैं।

जिसका वर्ण लाल है, तथा जो लम्बी-लम्बी रेखा, छिद्र, एक चक्र और कमल आदि से युक्त एवं स्थूल है, उस शालिग्राम को ब्रह्मा की मूर्ति समझनी चाहिये।

जिसमें बृहत छिद्र, स्थूल चक्र का चिह्न और कृष्ण वर्ण हो, वह श्रीकृष्ण का स्वरूप है। वह बिन्दुयुक्त और बिन्दुशून्य दोनों ही प्रकार का देखा जाता है।

हयग्रीव मूर्ति अंकुश के समान आकार वाली और पाँच रेखाओं से युक्त होती है।

भगवान वैकुण्ठ कौस्तुभ मणि धारण किये रहते हैं। उनकी मूर्ति बड़ी निर्मल दिखायी देती है। वह एक चक्र से चिह्नित और श्याम वर्ण की होती है।

मत्स्य भगवान की मूर्ति बृहत कमल के आकार की होती है। उसका रंग श्वेत होता है तथा उसमें हार की रेखा देखी जाती है।

जिस शालिग्राम का वर्ण श्याम हो, जिसके दक्षिण भाग में एक रेखा दिखायी देती हो तथा जो तीन चक्रों के चिह्न से युक्त हो, वह भगवान श्री रामचन्द्रजी का स्वरूप है, वे भगवान सबकी रक्षा करनेवाले हैं।

द्वारकापुरी में स्थित शालिग्राम स्वरूप भगवान गदाधर। भगवान गदाधर एक चक्र से चिह्नित देखे जाते हैं।

लक्ष्मीनारायण दो चक्रों से, त्रिविक्रम तीन से, चतुर्व्यूह चार से, वासुदेव पाँच से, प्रद्युम्न छ: से, संकर्षण सात से, पुरुषोत्तम आठ से, नवव्यूह नव से, दशावतार दस से, अनिरुद्ध ग्यारह से और द्वादशात्मा बारह चक्रों से युक्त होकर जगत की रक्षा करते हैं। इससे अधिक चक्र चिह्न धारण करने वाले भगवान का नाम अनन्त है।

शिवपुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने खुद ही गंडकी नदी में अपना वास बताया था और कहा था कि गंडकी नदी के तट पर मेरा (भगवान विष्णु का) वास होगा। नदी में रहने वाले करोड़ों कीड़े अपने तीखे दांतों से काट-काटकर उस पाषाण में मेरे चक्र का चिह्न बनाएंगे और इसी कारण इस पत्थर को मेरा रूप मान कर उसकी पूजा की जाएगी।

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार शालिग्राम शिला में विष्‍णु का निवास होता है। इस संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं आज भी प्रचलित हैं। इन्‍हीं कथाओं में से एक के अनुसार जब भगवान शिव जालंधर नामक असुर से युद्ध नहीं जीत पा रहे थे तो भगवान विष्‍णु ने उनकी मदद की थी। कथाओं में कहा गया है कि जब तक असुर जालंधर की पत्‍नी वृंदा 'तुलसी' अपने सतीत्‍व को बचाए रखती तब तक जालंधर को कोई पराजीत नहीं कर सकता था। ऐसे में भगवान विष्‍णु ने जालंधर का रूप धारण करके वृंदा के सतीत्‍व को नष्‍ट करने में सफल हो गए। जब वृंदा को इस बात का अहसास हुआ तबतक काफी देर हो चुकी थी। इससे दुखी वृंदा ने भगवान विष्‍णु को कीड़े-मकोड़े बनकर जीवन व्‍यतीत करने का शाप दे डाला। फलस्‍वरूप कालांतर में शालिग्राम पत्‍थर का निर्माण हुआ, जो हिंदू धर्म में आराध्‍य हैं। पुरानी दंतकथाओं के अनुसार मुक्तिक्षेत्र वह स्‍थान है जहां पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहीं पर भगवान विष्‍णु शालिग्राम पत्‍थर में निवास करते हैं।

अन्य कथाओं में वृंदा, शंखचूड़ राक्षस की पत्नी थी लेकिन भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए उपासना तन मन से किया करती थी। भगवान विष्णु उसके मन की बात जानते थे, इसलिये छल से उसके पति शंखचूड़ रुप में बनने का अभिनय किया तो वृन्दा रुष्ट हो गई और उन्होंने विष्णु को शाप दिया कि वे पत्थर बन जाएं क्योंकि आपने छल से मेरे पति का रूप धरा है। भगवान विष्णु ने तुलसी का श्राप स्वीकार कर लिया और कहा कि तुम धरती पर गंडकी नदी तथा तुलसी के पौधे के रूप में रहोगी। तदनोपरांत वृंदा उस शरीर को त्याग स्वयं गंडकी नदी में बदल गई तथा पत्थर बने भगवान विष्णु को अपने हृदय में धारण कर लिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक समय पर तुलसी ने भगवान विष्णों को अपने पति के रूप में पाने के लिए कई सालों तक तपस्या की थीं, जिसके फलस्वरूप भगवान ने उसे विवाह का वरदान दिया था। जिसे देवप्रबोधिनी एकादशी पर पूरा किया जाता है। देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन शालिग्राम शिला तथा तुलसी के पौधा का विवाह करवाने की परंपरा है।

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🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞🌤️  *दिनांक - 27 जुलाई 2025*🌤️ *दिन -  रविवार*🌤️ *विक्रम संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081)...
26/07/2025

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌤️ *दिनांक - 27 जुलाई 2025*
🌤️ *दिन - रविवार*
🌤️ *विक्रम संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081)*
🌤️ *शक संवत -1947*
🌤️ *अयन - दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु - वर्षा ॠतु*
🌤️ *मास - श्रावण*
🌤️ *पक्ष - शुक्ल*
🌤️ *तिथि - तृतीया रात्रि 10:41 तक तत्पश्चात चतुर्थी*
🌤️ *नक्षत्र - मघा शाम 04:23 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी*
🌤️ *योग - वरीयान 28 जुलाई रात्रि 03:13 तक तत्पश्चात परिघ*
🌤️ *राहुकाल - शाम 05:41 से शाम 07:20 तक*
🌤️ *सूर्योदय - 06:11*
🌤️ *सूर्यास्त - 07:18*
👉 *दिशाशूल - पश्चिम दिशा मे*
🚩 *व्रत पर्व विवरण - हरियाली तृतीया*

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💥 *विशेष - *तृतीया को पर्वल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*💥 रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
💥 *रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)*
💥 *रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)*
💥 *स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।*
💥 *चतुर्मास के दिनों में ताँबे व काँसे के पात्रों का उपयोग न करके अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करना चाहिए।(स्कन्द पुराण)*
💥 *चतुर्मास में पलाश के पत्तों की पत्तल पर भोजन करना पापनाशक है।*
🌞~*वैदिक पंचांग* ~🌞

🌷 *नागपंचमी* 🌷
🙏🏻 *श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 29 जुलाई, मंगलवार को है। इस दिन नागों की पूजा करने का विधान है। हिंदू धर्म में नागों को भी देवता माना गया है। महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं। नागपंचमी के अवसर पर हम आपको ग्रंथों में वर्णित प्रमुख नागों के बारे में बता रहे हैं-*
🐍 *वासुकि नाग*
*धर्म ग्रंथों में वासुकि को नागों का राजा बताया गया है। ये हैं भगवान शिव के गले में लिपटे रहते हैं। (कुछ ग्रंथों में महादेव के गले में निवास करने वाले नाग का नाम तक्षक भी बताया गया है)। ये महर्षि कश्यप व कद्रू की संतान हैं। इनकी पत्नी का नाम शतशीर्षा है। इनकी बुद्धि भगवान भक्ति में लगी रहती है। जब माता कद्रू ने नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब नाग जाति को बचाने के लिए वासुकि बहुत चिंतित हुए। तब एलापत्र नामक नाग ने इन्हें बताया कि आपकी बहन जरत्कारु से उत्पन्न पुत्र ही सर्प यज्ञ रोक पाएगा।*
*तब नागराज वासुकि ने अपनी बहन जरत्कारु का विवाह ऋषि जरत्कारु से करवा दिया। समय आने पर जरत्कारु ने आस्तीक नामक विद्वान पुत्र को जन्म दिया। आस्तीक ने ही प्रिय वचन कह कर राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ को बंद करवाया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय नागराज वासुकि की नेती (रस्सी) बनाई गई थी। त्रिपुरदाह (इस युद्ध में भगवान शिव ने एक ही बाण से राक्षसों के तीन पुरों को नष्ट कर दिया था) के समय वासुकि शिव धनुष की डोर बने थे।*
🐍 *शेषनाग*
*शेषनाग का एक नाम अनंत भी है। शेषनाग ने जब देखा कि उनकी माता कद्रू व भाइयों ने मिलकर विनता (ऋषि कश्यप की एक और पत्नी) के साथ छल किया है तो उन्होंने अपनी मां और भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करनी आरंभ की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं होगी।*
🐍 *ब्रह्मा ने शेषनाग को यह भी कहा कि यह पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहती है, अत: तुम इसे अपने फन पर इस प्रकार धारण करो कि यह स्थिर हो जाए। इस प्रकार शेषनाग ने संपूर्ण पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लिया। क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग के आसन पर ही विराजित होते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण व श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम शेषनाग के ही अवतार थे।*
🐍 *तक्षक नाग*
*धर्म ग्रंथों के अनुसार, तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया।*
🙏🏻 *जैसे ही ऋत्विजों (यज्ञ करने वाले ब्राह्मण) ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तिक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए।*
👉🏻 शेष कल.........

*🔱🚩🇮🇳 आर्यावर्त भारत खंड 🇮🇳🚩🔱*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞🌤️  *दिनांक - 26 जुलाई 2025*🌤️ *दिन -  शनिवार*🌤️ *विक्रम संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081)...
26/07/2025

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌤️ *दिनांक - 26 जुलाई 2025*
🌤️ *दिन - शनिवार*
🌤️ *विक्रम संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081)*
🌤️ *शक संवत -1947*
🌤️ *अयन - दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु - वर्षा ॠतु*
🌤️ *मास - श्रावण*
🌤️ *पक्ष - शुक्ल*
🌤️ *तिथि - द्वितीया रात्रि 10:41 तक तत्पश्चात तृतीया*
🌤️ *नक्षत्र - अश्लेशा शाम 03:52 तक तत्पश्चात मघा*
🌤️ *योग - व्यतीपात 27 जुलाई प्रात: 04:06 तक तत्पश्चात वरीयान*
🌤️ *राहुकाल - सुबह 09:28 से सुबह 11:06 तक*
🌤️ *सूर्योदय - 06:11*
🌤️ *सूर्यास्त - 07:19*
👉 *दिशाशूल - पूर्व दिशा मे*
🚩 *व्रत पर्व विवरण - चंद्र-दर्शन (रात्रि 07:12 से रात्रि 08:28 तक),व्यतीपात योग (प्रातः 05:32 से 27 जुलाई प्रात:04:06 तक)*
💥 *विशेष - द्वितीया को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥 *ब्रह्म पुराण' के 118 वें अध्याय में शनिदेव कहते हैं- 'मेरे दिन अर्थात् शनिवार को जो मनुष्य नियमित रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उनको कोई पीड़ा नहीं होगी। जो शनिवार को प्रातःकाल उठकर पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उन्हें ग्रहजन्य पीड़ा नहीं होगी।' (ब्रह्म पुराण')*
💥 *शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए 'ॐ नमः शिवाय।' का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है। (ब्रह्म पुराण')*
💥 *हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है ।(पद्म पुराण)*
💥 *चतुर्मास के दिनों में ताँबे व काँसे के पात्रों का उपयोग न करके अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करना चाहिए।(स्कन्द पुराण)*
💥 *चतुर्मास में पलाश के पत्तों की पत्तल पर भोजन करना पापनाशक है।*
🌞~*वैदिक पंचांग* ~🌞

🌷 *खांसी* 🌷
👉🏻 *आधा चम्मच तुलसी का रस और उतना ही अदरक का रस मिलाकर लेने से लाभ होता है l*

🌞 ~ *वैदिक पंचांग* ~ 🌞

🌷 *चांदी वर्क खतरनाक* 🌷
👉🏻 *मिठाई में चांदी के वर्क की जगह एलुमिनियम के वर्क होते हैं । ये धीमा ज़हर है । इससे भविष्य में दुर्बलता आती है व पाचन तंत्र कमज़ोर होता है ।*

🌞 ~ *वैदिक पंचांग* ~ 🌞

🌷 *विघ्न नाश, रोग नाश एवं कार्य सिद्धि के लिए* 🌷
👉🏻 *गेहूं, चावल , उड़द , मूंग और तिल का आटा गूंधकर, घी डाल के दिया जला दें | हनुमानजी या बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे दिया जलाये ।*
🔥 *हनुमानजी के आगे सरसों के तेल का दीया जलाये तो रोगों का नाश करने मे मदद मिलेगी |*
🔥 *गणपति जी के प्रतिमा के निकट जलाएंगे तो विघ्न नाश करने में मदद मिलेगी |*
🔥 *पीपल या वट वृक्ष के नीचे हनुमानजी का सुमिरन करके हनुमानजी के सामने सरसों के तेल का दिया जलाया जाए तो कार्यसिद्धि करने मे मदद मिलेगी |*

*🔱🚩🇮🇳 आर्यावर्त भारतखंड 🇮🇳🚩🔱*

🌞 ~ *वैदिक पंचांग* ~ 🌞

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞 🌤️  *दिनांक - 25 जुलाई 2025*🌤️ *दिन -  शुक्रवार*🌤️ *विक्रम संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 20...
24/07/2025

🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌤️ *दिनांक - 25 जुलाई 2025*
🌤️ *दिन - शुक्रवार*
🌤️ *विक्रम संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081)*
🌤️ *शक संवत -1947*
🌤️ *अयन - दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु - वर्षा ॠतु*
🌤️ *मास - श्रावण*
🌤️ *पक्ष - शुक्ल*
🌤️ *तिथि - प्रतिपदा रात्रि 11:22 तक तत्पश्चात द्वितीया*
🌤️ *नक्षत्र - पुष्य शाम 04:00 तक तत्पश्चात अश्लेशा*
🌤️ *योग - वज्र सुबह 07:28 तक तत्पश्चात सिद्धि*
🌤️ *राहुकाल - सुबह 11:06 से दोपहर 12:45 तक*
🌤️ *सूर्योदय - 06:10*
🌤️ *सूर्यास्त - 07:19*
👉 *दिशाशूल - पश्चिम दिशा मे*
🚩 *व्रत पर्व विवरण - अमावस्यांत श्रावण मास आरंभ*

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💥 *विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा पेठा) न खाएं क्योकि यह धन का नाश करने वाला है (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
💥 *चतुर्मास के दिनों में ताँबे व काँसे के पात्रों का उपयोग न करके अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करना चाहिए।(स्कन्द पुराण)*
💥 *चतुर्मास में पलाश के पत्तों की पत्तल पर भोजन करना पापनाशक है।*
🌞~*वैदिक पंचांग* ~🌞

🌷 *व्यतिपात योग* 🌷
➡️ *26 जुलाई 2025 शनिवार को प्रात: 05:32 से 27 अगस्त प्रात: 04:06 तक व्यतिपात योग है।*
🙏🏻 *व्यतिपात योग की ऐसी महिमा है कि उस समय जप पाठ प्राणायम, माला से जप या मानसिक जप करने से भगवान की और विशेष कर भगवान सूर्यनारायण की प्रसन्नता प्राप्त होती है जप करने वालों को, व्यतिपात योग में जो कुछ भी किया जाता है उसका १ लाख गुना फल मिलता है।*
🙏🏻 *वाराह पुराण में ये बात आती है व्यतिपात योग की।*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞

🌷 *श्रावण में रुद्राभिषेक करने का महत्व* 🌷
*“रुद्राभिषेकं कुर्वाणस्तत्रत्याक्षरसङ्ख्यया, प्रत्यक्षरं कोटिवर्षं रुद्रलोके महीयते।* *पञ्चामृतस्याभिषेकादमृत्वम् समश्नुते।। ”*
🙏🏻 *श्रावण में रुद्राभिषेक करने वाला मनुष्य उसके पाठ की अक्षर-संख्या से एक-एक अक्षर के लिए करोड़-करोड़ वर्षों तक रुद्रलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। पंचामृत का अभिषेक करने से मनुष्य अमरत्व प्राप्त करता है।*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞

🌷 *श्रावण मास में भूमि पर शयन* 🌷
🌷 *"केवलं भूमिशायी तु कैलासे वा समाप्नुयात" - स्कन्दपुराण*
🙏🏻 *श्रावण मास में भूमि पर शयन करने से मनुष्य कैलाश में निवास प्राप्त करता है।*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞

🌷 *पार्थिव शिवलिंग* 🌷
🙏🏻 *जो पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर एकबार भी उसकी पूजा कर लेता है, वह दस हजार कल्प तक स्वर्ग में निवास करता है, शिवलिंग के अर्चन से मनुष्य को प्रजा, भूमि, विद्या, पुत्र, बान्धव, श्रेष्ठता, ज्ञान एवं मुक्ति सब कुछ प्राप्त हो जाता है | जो मनुष्य ‘शिव’ शब्द का उच्चारण कर शरीर छोड़ता है वह करोड़ों जन्मों के संचित पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त हो जाता है |’*
🙏🏻 *कलियुग में पार्थिव शिवलिंग पूजा ही सर्वोपरि है ।*
*कृते रत्नमयं लिंगं त्रेतायां हेमसंभवम्*
*द्वापरे पारदं श्रेष्ठं पार्थिवं तु कलौ युगे (शिवपुराण)*
🙏🏻 *शिवपुराण के अनुसार पार्थिव शिवलिंग का पूजन सदा सम्पूर्ण मनोरथों को देनेवाला हैं तथा दुःख का तत्काल निवारण करनेवाला है |*
🌷 *पार्थिवप्रतिमापूजाविधानं ब्रूहि सत्तम ॥*
*येन पूजाविधानेन सर्वाभिष्टमवाप्यते ॥*
🙏🏻 *अग्निपुराण के अनुसार*
🌷 *त्रिसन्ध्यं योर्च्चयेल्लिङ्गं कृत्वा विल्वेन पार्थिवम् ।*
*शतैकादशिकं यावत् कुलमुद्‌धृत्य नाकभाक् ।। ३२७.१५ ।। अग्निपुराण*
🙏🏻 *जो मनुष्य प्रतिदिन तीनों समय पार्थिव लिङ्ग का निर्माण करके बिल्वपत्रों से उसका पूजन करता है, वह अपनी एक सौ ग्यारह पीढ़ियों का उद्धार करके स्वर्गलोक को प्राप्त होता है।*
🙏🏻 *स्कंदपुराण के अनुसार*
*प्रणम्य च ततो भक्त्या स्नापयेन्मूलमंत्रतः॥*
*ॐहूं विश्वमूर्तये शिवाय नम॥*
*इति द्वादशाक्षरो मूलमंत्रः॥ ४१.१०२ ॥*
🙏🏻 *"ॐ हूं विश्वमूर्तये शिवाय नमः" यह द्वादशाक्षर मूल मंत्र है। इससे शिवलिंग को स्नान कराना चाहिए।*

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