Desi Dawakhana cheeka

Desi Dawakhana cheeka आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए आप संपर्क करे सकते हैं। आयुर्वेदिक घरेलू नुक्से जनहित में जारी है।नुक्सा लेने से पहले अपने निजी डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

लौंग: एक छोटी सी कली, बड़े-बड़े रोगों का इलाज!"लवंगं वातकफघ्नं च दीपनं रुचिकारकम्।”भारतीय मसालों की रसोई में मौजूद एक छो...
23/07/2025

लौंग: एक छोटी सी कली, बड़े-बड़े रोगों का इलाज!

"लवंगं वातकफघ्नं च दीपनं रुचिकारकम्।”

भारतीय मसालों की रसोई में मौजूद एक छोटा-सा तत्व लौंग (Laung), आयुर्वेद के अनुसार एक चमत्कारी औषधि है। लौंग केवल स्वादवर्धक नहीं बल्कि औषधीय गुणों की खान है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसे वात और कफ दोष नाशक माना गया है। इसकी तीक्ष्ण सुगंध, ऊष्ण प्रभाव और औषधीय तासीर शरीर की कई समस्याओं को मिटाने में सहायक है।
जुकाम और बंद नाक उपायः लौंग को तवे पर सेंक कर कपड़े में लपेटकर सूंचें। लाभः नाक खुलेगी, सिरदर्द में भी आराम मिलेगा। मुँह के छाले और गंध उपायः लौंग को पीसकर मिश्री के साथ मिलाकर छालों पर लगाएं। लाभः जलन शांत होती है और मुँह साफ रहता है। स्त्रियों की मासिक समस्याएं

संस्कृत नामः लवंग;

वैज्ञानिक नाम: Syzygium

aromaticum; कुल: Myrtaceae;

प्रभावः कफ-

वात शामक, अग्निदीपक, शूलहर, मुखशुद्धिकर, ज्वरहर

लौंग के आयुर्वेदिक गुणः

रसः कटु (तीखा), तिक्त (कसैला)

गुणः लघु, तीक्ष्ण, रुक्ष

वीर्यः उष्ण (गर्म)

विपाकः कटु (पचने के बाद भी तीखा प्रभाव देता है)

दोष प्रभावः कफ और वात को शांत करता है, पित्त को बढ़ा सकता है।

चरक संहिता और सुश्रुत संहिता दोनों में लौंग को वातनाशक और पाचनवर्धक कहा गया है।

लौंग के आयुर्वेदिक नुस्खेः

गले में खराश और कफ की समस्या उपायः एक लौंग को शहद के साथ चूसें।

उपाय: लौंग के तेल की 2 बूंदें रुई में डालकर दर्द वाले दांत पर रखें।

लाभः गैस, अपच और भूख की कमी में लाभ।

लाभः गला साफ होगा, बलगम ढीला पड़ेगा, खांसी में राहत। दांत का दर्द और दुर्गंध लाभः दर्द, सूजन, और सांस की बदबू में राहत। पाचन तंत्र को सुधारने वाला चूर्ण उपायः भुनी लौंग, काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर चूर्ण बनाएं। सेवन विधिः भोजन के बाद 1 चुटकी लें।

उपायः लौंग, अदरक, दालचीनी का काढ़ा बनाएं। सेवन विधिः पीरियड्स के पहले 3 दिन तक दिन में दो बार पिएं। लाभः दर्द और ऐंठन में राहत। मानसिक तनाव और नींद न आना उपायः रात को दूध में लौंग का पाउडर डालकर पिएं। लाभः तनाव कम होगा, नींद अच्छी आएगी। त्वचा के फोड़े-फुंसियों पर प्रयोग उपायः लौंग पाउडर नारियल तेल में मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाएं। लाभः सूजन कम होगी, बैक्टीरिया खत्म होंगे। श्वास रोगों के लिए उपायः लौंग, तुलसी, काली मिर्च, शहद मिलाकर सेवन करें। लाभः अस्थमा, खांसी, सांस की तकलीफ में राहत।

लौंग से बने आयुर्वेदिक उत्पादः

लवंगादि वटीः मुख रोगों के लिए

दन्तमंजन चूर्णः दांत-मसूड़ों की देखभाल

लवंग तेलः दर्द और कीटाणुनाशक

सावधानियांः

अत्यधिक सेवन से पित्त बढ़ सकता है, सीने में जलन हो सकती है।

गर्भवती महिलाएं या हाई बीपी रोगी डॉक्टरी सलाह के बाद ही लें।

लौंग का तेल हमेशा डायल्यूट करके ही लगाएं।

निष्कर्षः

लौंग, एक अद्भुत प्राकृतिक औषधि है जो आपकी रसोई में पहले से मौजूद है। अगर सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो यह छोटी-सी कली कई बड़े रोगों को मात दे सकती है। लौंग का महत्व केवल रसोई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सम्पूर्ण आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली का हिस्सा है।

बार-बार अचानक शुगर बढ़ने पर क्या करें?आयुर्वेदिक समाधान और घरेलू नुस्खेआजकल की दौड़-भाग भरी ज़िंदगी, तनाव, असंतुलित खानप...
22/07/2025

बार-बार अचानक शुगर बढ़ने पर क्या करें?

आयुर्वेदिक समाधान और घरेलू नुस्खे

आजकल की दौड़-भाग भरी ज़िंदगी, तनाव, असंतुलित खानपान और नींद की कमी के कारण मधुमेह (डायबिटीज़) आम हो गया है। लेकिन इससे भी खतरनाक स्थिति है बार-बार अचानक ब्लड शुगर का बढ़ जाना। यह न केवल आंखों, किडनी, नर्वस सिस्टम और हृदय को प्रभावित करता है, बल्कि दैनिक जीवन को भी कठिन बना देता है।

बार-बार शुगर क्यों बढ़ती है?

1. अनियमित खानपानः देर रात खाना, बार-बार तला हुआ भोजन, सफेद आटा और चीनी का सेवन।

2. मानसिक तनावः Cortisol हार्मोन का बढ़ना ब्लड शुगर को असंतुलित करता है।

3. नींद की कमी: 6-8 घंटे की गहरी नींद न लेना भी शुगर को

प्रभावित करता है।

4. शारीरिक निष्क्रियताः दिन भर बैठना, चलने-फिरने की कमी।

5. औषधियों की अनियमितताः दवाइयों को समय पर न लेना या खुद ही छोड़ देना।

आयुर्वेद क्या कहता है?

आयुर्वेद में मधुमेह को 'प्रमेह' और गंभीर रूप में 'मधुमेह' कहा गया है। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय में इसके कई प्रकार और उपचार बताए गए हैं। अचानक ब्लड शुगर बढ़ना "वात-कफ असंतुलन" और अग्नि मंदता का संकेत होता है।

आयुर्वेदिक उपाय जो तुरंत राहत देः

71. करेला-जामुन का रस (Karela-Jamun Juice): सुबह खाली पेट 30ml ताजा रस लें। यह अग्न्याशय (Pancreas) की बीटा कोशिकाओं को सक्रिय करता है।

2. मेथी के बीज (Fenugreek Seeds):

रात को एक चम्मच बीज भिगो दें और सुबह खाली पेट खाएं या

पानी पी लें।

3. गुड़मार (Gymnema Sylvestre):

'शुगर नाशक' के नाम से प्रसिद्ध यह जड़ी बूटी स्वाद की मीठास को दबाती है और इन्सुलिन उत्पादन में मदद करती है।

4. नीम की पत्तियां:

5-6 पत्तियां रोज सुबह चबाएं। इसमें शक्तिशाली ब्लड प्यूरीफायर और ग्लूकोज कंट्रोलिंग तत्व होते हैं।

5. त्रिफला चूर्ण:

रात को सोने से पहले एक चम्मच त्रिफला गर्म पानी के साथ लें। यह पाचन तंत्र को मजबूत करता है।

6. अश्वगंधा (Ashwagandha):

तनाव कम करता है, Cortisol को नियंत्रित करता है और शुगर लेवल को स्थिर करता है।

घरेलू काढ़ा - प्राकृतिक इंसुलिन बूस्टर

सामग्रीः 1/2 चम्मच मेथी, 5 तुलसी पत्ते, 5 नीम पत्ते, 1/4 चम्मच

हल्दी, 1 गिलास पानी

विधिः इन सभी को उबालें और सुबह खाली पेट गुनगुना पी लें।

खानपान में करें ये बदलाव:

1. Low GI आहार लें: जैसे दलिया, रागी, चना, ओट्स आदि।

2. फलों का सही चयनः जामुन, अमरूद, पपीता - लेकिन सीमित मात्रा में।

3. चीनी और मैदे से परहेज़ करें।

4. छोटे अंतराल पर हल्का भोजन करें।

5. प्राकृतिक मिठास के लिए स्टीविया या नारियल शुगर का प्रयोग करें।

आयुर्वेदिक जीवनशैली सुझावः

हर दिन प्राणायाम करें: कपालभाति, अनुलोम-विलोम और भ्रामरी।

30 मिनट की सैर करें। दिनचर्या नियमित रखें।

शयन से पहले पैरों की सरसों तेल से मालिश करें इससे वात शांत होता है।

तनाव से बचें संगीत, ध्यान और हर्बल चाय अपनाएं।

अधिक चावल, आलू, सफेद ब्रेड, कोल्ड ड्रिंक, मिठाइयां, फास्ट फूड, शराब, धूम्रपान, देर रात तक जागना ये चीजें टालनी चाहिए !

निष्कर्षः

ब्लड शुगर का उतार-चढ़ाव गंभीर बात है, लेकिन घबराने की नहीं। आयुर्वेद न केवल इसे नियंत्रित करने का तरीका देता है, बल्कि जड़ से समस्या को ठीक करने में मदद करता है। नियमित खानपान, हर्बल उपचार और योग से आप स्थायी राहत पा सकते हैं।

मखानाः क्यों है ये सेहत का खजाना?शुद्ध, हल्का और शक्तिवर्धक सुपरफूडशादी-ब्याह के प्रसाद से लेकर उपवास के व्रतों तक, और अ...
21/07/2025

मखानाः क्यों है ये सेहत का खजाना?

शुद्ध, हल्का और शक्तिवर्धक सुपरफूड

शादी-ब्याह के प्रसाद से लेकर उपवास के व्रतों तक, और अब मॉडर्न फिटनेस डाइट तक, मखाना ने अपने सफर में हर जगह अपना स्थान बनाया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह केवल हल्का और कुरकुरा स्नैक नहीं, बल्कि आयुर्वेद में इसे "स्वास्थ्य रक्षक रत्न" कहा गया है?

मखाना को संस्कृत में "कृष्ण फल" और अंग्रेजी में "Fox Nuts" या "Lotus Seeds" कहा जाता है। यह कमल के बीज से बनता है, और बिहार, खासकर मिथिला क्षेत्र, इसका प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है।

आयुर्वेद के अनुसार मखाना वात और पित्त दोष को शांत करता है और शरीर को स्थिरता प्रदान करता है। चरक संहिता और भवप्रकाश निघंटु जैसे ग्रंथों में इसे बलवर्धक, शुक्रवर्धक और संजीवनी गुणों वाला माना गया है।

मखाना में पाए जाने वाले पोषक तत्वः

प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, पोटैशियम, फाइबर, एंटीऑक्सिडेंट्स और सबसे खास इसमें फैट (वसा) बहुत कम होता है।

मखाना के प्रमुख फायदेः

1. डायबिटीज़ में लाभकारीः

मखाने का Glycemic Index बहुत कम होता है। यह धीरे-धीरे शुगर रिलीज़ करता है जिससे ब्लड शुगर कंट्रोल में रहता है।

2. हड्डियों को बनाए मजबूतः

कैल्शियम से भरपूर मखाना महिलाओं और वृद्धों के लिए अमृत समान है। ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव में सहायक।

3. हृदय के लिए संजीवनीः

कोलेस्ट्रॉल फ्री होने के कारण हृदय रोगियों के लिए यह उत्तम स्नैक है। यह ब्लड प्रेशर भी नियंत्रित करता है।

4. तनाव और नींद की समस्या में राहतः

मखाने में Kaempferol नामक फ्लैवोनॉयड पाया जाता है जो तनाव को कम करता है और अच्छी नींद में मदद करता है।
5. प्रजनन शक्ति में वृद्धिः

आयुर्वेद में मखाना को शुक्रवर्धक माना गया है। यह वीर्य की गुणवत्ता सुधारता है और पुरुषों में यौन दुर्बलता में उपयोगी है।

6. वजन घटाने में मददगारः

कम कैलोरी, ज़्यादा फाइबर यह कॉम्बिनेशन मखाने को वजन घटाने के लिए परफेक्ट बनाता है। भूख कम लगती है और पेट भरा रहता है।

7. एंटी एजिंग गुणः

एंटीऑक्सिडेंट्स से भरपूर मखाना त्वचा को चमकदार और उम्र के असर से बचाता है। झुर्रियां कम करता है और त्वचा को हाइड्रेटेड रखता है।

8. किडनी और लीवर के लिए फायदेमंदः

मखाना शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालता है और यकृत (लीवर) और वृक्क (किडनी) की सफाई करता है।

|| मखाने को खाने के आयुर्वेदिक तरीके:

घी में भुना हुआ मखानाः वात और कफ दोष से राहत।

दूध के साथ उबला हुआ मखानाः कमजोरी और शुक्र धातु की कमी में लाभदायक।

मखाना खीरः बच्चों और वृद्धों के लिए पौष्टिक और पाचन में हल्का।

मखाना पाउडरः शिशुओं के दूध में मिलाकर दिया जा सकता है।

आयुर्वेदिक दिनचर्या में सुबह के नाश्ते या संध्या के हल्के भोजन में मखाने का सेवन आदर्श माना गया है। यह ओजस को बढ़ाता है और शरीर को दीर्घकालिक ऊर्जा देता है।

ध्यान देने योग्य बातेंः

मखाने को हमेशा अच्छे से चबा कर खाएं।

एक दिन में 1 मुट्ठी (25-30 ग्राम) पर्याप्त है।

डायबिटीज़ या BP के रोगी बिना नमक / चीनी वाले विकल्प चुनें।

रात में अधिक मात्रा में सेवन करने से कब्ज हो सकती है।

निष्कर्षः

मखाना कोई आम नाश्ता नहीं, बल्कि हमारे आयुर्वेदिक ज्ञान और परंपरा की शान है। यह छोटा बीज शरीर, मन और आत्मा तीनों के लिए पोषण देता है। यदि आपने अभी तक मखाने को अपने आहार में नहीं शामिल किया है, तो अब समय है इसे अपनी थाली में जगह देने का।

पिप्पली: पाचन से लेकर प्रतिरक्षा तक- हर रोग निवारण ! 40 दिन में बनाएं शरीर को रोगों से अजेयभारत की प्राचीन चिकित्सा प्रण...
19/07/2025

पिप्पली: पाचन से लेकर प्रतिरक्षा तक- हर रोग निवारण ! 40 दिन में बनाएं शरीर को रोगों से अजेय

भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद में अनेक वनस्पतियाँ वर्णित हैं, लेकिन उनमें से कुछ औषधियाँ ऐसी हैं जिन्हें चरक और सुश्रुत जैसे महर्षियों ने विशेष स्थान दिया है। पिप्पली (Piper longum) यानी लॉन्ग पेपर, इन्हीं औषधियों में से एक है। चरक संहिता में पिप्पली को न केवल पाचन सुधारक, बल्कि एक शक्तिवर्धक रसायन के रूप में भी स्थान प्राप्त है।

संस्कृत नामः पिप्पली

हिंदी नामः लंबी पीपल

वानस्पतिक नाम: Piper longum

गुणधर्मः गर्म (उष्ण), तीखा (कटु), हल्का (लघु), रूक्ष दोषों पर प्रभावः वात और कफ दोष नाशक चरक संहिता में पिप्पली को "दीपन, पाचक, बल्य और वृष्य" बताया गया है। अर्थात् यह भूख बढ़ाने, पाचन सुधारने, बल देने और पुरुष शक्ति बढ़ाने में सहायक है।

* पिप्पली के आयुर्वेदिक लाभः

1. पाचन में सुधारः पिप्पली अग्नि दीपक है, यानी यह जठराग्नि को तेज करती है।

घरेलू नुस्खाः 1 चुटकी पिप्पली चूर्ण को घी के साथ भोजन से पहले लेने से भूख बढ़ती है और अपच नहीं होता।

चरक संहिता अनुसारः

"अजीर्णे पिप्पली प्रधाना" अपच में पिप्पली सर्वोत्तम

औषधि है।

2. श्वास, खांसी व अस्थमा में फायदेमंदः पिप्पली का काढ़ा बलगम को बाहर निकालता है और गले की खराश को शांत करता है।

नुस्खाः पिप्पली + सौंठ तुलसी गुड़ मिलाकर काढ़ा बनाएं और दिन में दो बार पिएं।

चरक संहिता में वर्णनः

पिप्पल्यादि वटी श्वास व कास में उपयोगी मानी गई है।

3. इम्युनिटी बढ़ाए, रोग प्रतिरोधकः पिप्पली रसायन

विद्या में बहुत महत्वपूर्ण है। यह शरीर को धीरे-2 मजबूत करता है और बार-बार बीमार पड़ने से बचाता है।

रसायन प्रयोगः

पिप्पली का चूर्ण- पहले 1 चुटकी से शुरू करके धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाकर फिर घटाएं। यह विधि "पिप्पली रसायन प्रयोग" कहलाती है।

74. पुरुषों के लिए बलवर्धक और वृष्यः चरक संहिता में पिप्पली को वीर्यवर्धक बताया गया है।

उपयोगः पिप्पली + शुद्ध शिलाजीत अश्वगंधा का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ लें।

लाभः यौन दुर्बलता, थकान और वीर्य की कमी में लाभकारी।

75. ज्वर (बुखार) में सहायकः पिप्पली का सेवन ज्वर में पसीना लाकर तापमान कम करता है और शरीर को हल्का करता है।

घरेलू उपायः

पिप्पली, गिलोय और अदरक का काढ़ा पिएं।

76. लीवर टॉनिक और पाचन शक्तिवर्धकः पिप्पली लिवर एंजाइम्स को सुधारती है और यकृत की कार्यक्षमता बढ़ाती है।

चरक संहिता के अनुसारः

पिप्पली यकृत दोषों के लिए विशेष रूप से दी जाती है।

चरक संहिता में पिप्पली के उल्लेख

चरक संहिता के चिकित्सा स्थान (Chikitsa Sthana 1.3):

पिप्पली को दशमूल, त्रिकटु, त्रिफला जैसे योगों में सम्मिलित किया गया है। त्रिकटु चूर्णः पिप्पली सौंठ काली मिर्च यह योग पाचन, वमन, जुकाम, श्वास रोगों में चमत्कारी है।

पिप्पली रसायन प्रयोगः इसे आयुर्वेदिक टॉनिक के रूप में 40-50 दिनों तक सेवन कराया जाता है।

आधुनिक रिसर्च क्या कहती है?

पिप्पली में Piperine नामक तत्व होता है, जो शरीर की औषधि अवशोषण क्षमता बढ़ाता है।

यह एंटीऑक्सिडेंट, एंटी-बैक्टीरियल और हिपैटोप्रोटेक्टिव (लीवर-संरक्षक) गुणों से भरपूर होती है।

- निष्कर्षः

पिप्पली भारतीय रसोई की केवल एक मसाला नहीं, बल्कि चरक संहिता से प्रमाणित एक अत्यंत शक्तिशाली औषधि है। यह पाचन से लेकर प्रतिरक्षा, यौन शक्ति से लेकर श्वसन तंत्र तक शरीर के हर हिस्से के लिए उपयोगी है।

शिलाजीत? पर्वतों की गोद से निकला अमूल्य रसायन !शिलाजीत, एक ऐसी रहस्यमयी और शक्तिशाली औषधि है जिसे आयुर्वेद में "सर्वरोगन...
16/07/2025

शिलाजीत? पर्वतों की गोद से निकला अमूल्य रसायन !

शिलाजीत, एक ऐसी रहस्यमयी और शक्तिशाली औषधि है जिसे आयुर्वेद में "सर्वरोगनाशक रसायन" कहा गया है। यह काले या गहरे भूरे रंग की टार जैसी चिपचिपी पदार्थ होती है, जो हिमालय, विंध्याचल और अन्य ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों की चट्टानों से निकलती है।

संस्कृत में इसे 'शिलाजतु' कहा गया है, जिसका अर्थ है-"चट्टानों का सार"

चरक संहिता, शारंगधर संहिता, भावप्रकाश निघंटु जैसी आयुर्वेदिक ग्रंथों में शिलाजीत को रसायन वर्ग में रखा गया है।

"शिलाजतुं हि रसायनं बलवर्णप्रदं गुरु। मेधायुष्यं यथा सोमं, सर्वरोगप्रणाशनम्।"

चरक संहिता

इसका अर्थ है कि शिलाजीत बल, वर्ण, आयु, मेधा (बुद्धि) और रोगनाशक क्षमता को बढ़ाने वाली औषधि है।

आयुर्वेदिक गुणधर्मः

रस (स्वाद) कटु, तिक्त

गुण - लघु, रूक्ष

वीर्य - उष्ण

विपाक - कटु

दोष प्रभाव त्रिदोष नाशक (विशेष रूप से वात और कफ का शमन)

शिलाजीत एक ऐसा रसायन है जो शरीर के सभी दोषों को

संतुलित करने में सहायक है, विशेष रूप से वात विकारों, शुक्रधातु की कमजोरी, और मांसपेशियों की दुर्बलता में अत्यंत प्रभावी है।

शिलाजीत के प्रमुख लाभः

ऊर्जा और सहनशक्ति में वृद्धि

यह शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा प्रदान करता है।

थकावट, आलस्य, और कमजोरी में लाभकारी।

आयुर्वेद में इसे "ऊर्जावर्धक रसायन" माना गया है। यौन शक्ति और पुरुषत्व वर्धन

शिलाजीत शुक्रधातु को पोषण देता है।

पुरुषों में वीर्य की गुणवत्ता, संतानोत्पत्ति क्षमता और यौन ऊर्जा को बढ़ाता है।

धातुक्षय, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन जैसी समस्याओं में उपयोगी।

स्मृति और मानसिक शक्ति

मस्तिष्क की कार्यक्षमता और एकाग्रता को बढ़ाता है।

तनाव, अवसाद, और अनिद्रा में सहायक। मधुमेह में उपयोगी

रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है।

अग्नाशय की कार्यक्षमता को बढ़ाता है। जोड़ों और हड्डियों के लिए फायदेमंद

गठिया, पीठ दर्द, वात रोग और जकड़न में असरकारक।

कैल्शियम और मिनरल्स के अवशोषण में सहायक।

इम्यून सिस्टम मजबूत करता है

संक्रमण से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है।

शरीर को रोगों से सुरक्षा देता है।

सेवन विधि

! शिलाजीत सेवन में सावधानियाँ

गर्भवती महिलाएं और छोटे बच्चे सेवन न करें

उच्च रक्तचाप, हृदय रोग या क्रॉनिक किडनी डिजीज में वैद्य की सलाह लें

नकली या प्रोसेस्ड शिलाजीत से बचें

उचित मात्रा में और योग्य वैद्य की सलाह से ही सेवन करें

शुद्ध शिलाजीत - 300-500 mg दूध या गर्म पानी के साथ सुबह/शाम

शिलाजीत वटी गोली भोजन के बाद

शिलाजीत अश्वगंधा शक्ति व तनाव निवारण हेतु

शिलाजीत + गोक्षुर + सफेद मूसली वाजीकरण योग हेतु

ध्यान देंः शुद्धता की पुष्टि करें। अशुद्ध शिलाजीत हानिकारक हो सकता है।

शिलाजीत के क्लासिकल आयुर्वेदिक संयोजन

= प्रसिद्ध योगः

1. वृश्यवटी शिलाजीत, गोक्षुर, अश्वगंधा

पुरुष शक्ति बढ़ाने हेतु

2. चंद्रप्रभा वटी मूत्र संबंधी रोग, मधुमेह में प्रयोग

3. यौवनामृत वटी - बुढ़ापे को रोकने और जीवनशक्ति बढ़ाने हेतु

4. शिलाजतु रसायन मानसिक बल, स्मृति और पाचन के लिए

निष्कर्ष

शिलाजीत कोई चमत्कारी औषधि नहीं, बल्कि वर्षों पुरानी वैज्ञानिक परंपरा की देन है।

यह शरीर, मन और आत्मा तीनों का पोषण करता है।

वह व्यक्ति जो दिनभर थका हुआ रहता है, ऊर्जा की कमी महसूस करता है या पुरुषत्व में कमी पाता है- उसके लिए शिलाजीत जीवन को नई दिशा दे सकता है।

आयुर्वेद कहता है -

"शिलाजीतम अमृतं सदृशं" अर्थात शिलाजीत अमृत के समान है।

श्वेत मुसलीः पुरुषों के लिए आयुर्वेदिक ऊर्जा और पुरुषत्व का प्राकृतिक स्रोतआयुर्वेद में कुछ वनस्पतियाँ ऐसी हैं जो ना सिर...
15/07/2025

श्वेत मुसलीः पुरुषों के लिए आयुर्वेदिक ऊर्जा और पुरुषत्व का प्राकृतिक स्रोत

आयुर्वेद में कुछ वनस्पतियाँ ऐसी हैं जो ना सिर्फ रोगों से लड़ने में मदद करती हैं, बल्कि शरीर को भीतर से पोषण और ऊर्जा भी देती हैं। इन्हीं में से एक बहुप्रचलित और प्रभावशाली औषधि है श्वेत मुसली (White Musli / Chlorophytum borivilianum)। इसे प्राचीन काल से ही वीर्यवर्धक, बली, और रसायन (rejuvenator) माना जाता है।

विशेष रूप से पुरुषों में यौन दुर्बलता, कमजोरी, तनाव और वीर्य की कमी जैसी समस्याओं के लिए श्वेत मुसली का प्रयोग शत-प्रतिशत प्राकृतिक और प्रभावी उपाय माना जाता है।

= आयुर्वेद में श्वेत मुसलीः

श्वेत मुसली को आयुर्वेद में निम्नलिखित गुणों वाला बताया गया है:

रस (स्वाद): मधुर

गुणः गुरु (भारी), स्निग्ध (चिकना)

वीर्यः शीत

विपाकः मधुर

दोष प्रभावः वात-पित्त शामक

इसे रसायन, वाजीकरण (कामशक्ति वर्धक), और बृंहण (पोषण देने वाला) औषधि के रूप में वर्गीकृत किया गया है। आयुर्वेद कहता है:

"रसायनं वाजीकरणं च श्वेतमुष्ली विशेषतः।" अर्थात्ः श्वेत मुसली एक उत्तम रसायन और वाजीकरण है।

पुरुषों के लिए लाभः

वीर्यवृद्धि और शुक्रधातु की गुणवत्ता में सुधारः

श्वेत मुसली का नियमित सेवन वीर्य की मात्रा और गुणवत्ता को बेहतर करता है। यह शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाता है और उन्हें सक्रिय बनाता है।

शारीरिक और मानसिक थकावट से राहतः इसमें प्राकृतिक रूप से मौजूद सैपोनिन्स शरीर में ऊर्जा के स्तर को बढ़ाते हैं और मांसपेशियों को पोषण देते हैं।

तनाव और चिंता को करता है कमः

श्वेत मुसली का शीतल गुण मानसिक तनाव को कम करता है। यह शरीर में कोर्टिसोल हार्मोन को संतुलित कर के तनाव मुक्त जीवन में मदद करता है।

यौन दुर्बलता और नपुंसकता में लाभकारीः आयुर्वेद में इसे वाजीकरण के रूप में जाना जाता है, जो यौन शक्ति और प्रदर्शन को बढ़ाने में मदद करता है।

हड्डियों और मांसपेशियों की मजबूतीः

श्वेत मुसली कैल्शियम अवशोषण में मदद करता है, जिससे हड्डियाँ मजबूत होती हैं और जोड़ों में दर्द नहीं होता।

श्वेत मुसली के सक्रिय तत्वः

सैपोनिन्सः जो कि हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में सहायक हैं।

एल्कालॉयड्स (Alkaloids): शरीर को रोगों से लड़ने की ताकत देते हैं।

प्रोटीन और विटामिन्सः शरीर के संपूर्ण पोषण के लिए अत्यंत उपयोगी।

अनेक शोधों में यह प्रमाणित हुआ है कि श्वेत मुसली में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-एजिंग गुण होते हैं। यह टेस्टोस्टेरोन हार्मोन को संतुलित करने में भी सहायक है, जो पुरुषों की यौन शक्ति का मूल आधार है।

* सेवन की विधियाँ:

चूर्ण - 3-5 ग्राम दूध या शहद के साथ

कैप्सूल / टैबलेट - 1-2 प्रति दिन जल या दूध के साथ

अवलेह (जैम रूप) - 1 चमच सुबह-शाम गर्म दूध के साथ

नोटः चिकित्सक की सलाह से ही सेवन करें।

सावधानियाँः

अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से पाचन संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।

मधुमेह रोगियों को उपयोग से पहले शुगर लेवल की निगरानी करनी चाहिए।

पारंपरिक योगों में उपयोगः

श्वेत मुसली को कई अन्य औषधियों के साथ मिलाकर प्रयुक्त किया जाता है:

श्वेत मुसली + अश्वगंधा कौंच बीजः मर्दाना शक्ति वर्धन हेतु

श्वेत मुसली + शिलाजीत सफ़ेद मूसलीः शक्ति, सहनशक्ति और तनाव मुक्ति के लिए

श्वेत मुसली + विदारीकंद गोखरूः शारीरिक कमजोरी दूर करने हेतु

निष्कर्षः

श्वेत मुसली केवल एक जड़ी-बूटी नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण पुरुष स्वास्थ्य टॉनिक है। आज के तनावपूर्ण जीवन में जब पुरुषों की मानसिक और शारीरिक शक्ति लगातार चुनौती झेल रही है, तब श्वेत मुसली प्राकृतिक, सुरक्षित और आयुर्वेद आधारित समाधान बनकर उभरती है।

टांगों में दर्द का रामबाण घरेलू उपायसामग्री:1 चम्मच सरसों का तेल1/2 चम्मच अजवांन2-3 वहसुन की किर्लानएक चुटकी सेंधा नमकवि...
14/07/2025

टांगों में दर्द का रामबाण घरेलू उपाय

सामग्री:

1 चम्मच सरसों का तेल

1/2 चम्मच अजवांन

2-3 वहसुन की किर्लान

एक चुटकी सेंधा नमक

विधिः

1. सरसों के तेल को गर्म करें।

2. उसमें अजवाइन और लहसुन दालें और सुनहरा होने तक भूनो।

3. मैस से उतारें और हल्का गुनुगुप्ना होने पर उसमें सेंधा नमक मिलाएं।

4. इस तेल से टांगों की 5-10 मिनट तक मालिश करें।

① कब करें: रात को सोने से पहने रोजाना करें। 7 दिनों में फर्क दिखने लगेगा

सितोपलादि चूर्णः सांस से लेकर पाचन तक !हर समस्या का आयुर्वेदिक समाधानजब गले में खराश हो, खांसी रुकने का नाम न ले, या फिर...
12/07/2025

सितोपलादि चूर्णः सांस से लेकर पाचन तक !

हर समस्या का आयुर्वेदिक समाधान

जब गले में खराश हो, खांसी रुकने का नाम न ले, या फिर सांस लेने में दिक्कत हो तो अक्सर हम एंटीबायोटिक की ओर दौड़ लगाते हैं। पर आयुर्वेद कहता है, "जहां दोष संतुलित हों, वहां रोग प्रवेश नहीं करते।" ऐसे में एक चूर्ण वर्षों से भारतीय घरों में अपनी पहचान बनाए हुए है-सितोपलादि चूर्ण, जो न केवल खांसी का इलाज करता है, बल्कि पाचन, इम्युनिटी और फेफड़ों की शक्ति को भी बेहतर बनाता है।

यह एक आयुर्वेदिक बहुपयोगी चूर्ण है, जिसका उपयोग श्वसन तंत्र, गले के संक्रमण और पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याओं के लिए किया जाता है।

इसका उल्लेख प्रमुख ग्रंथ "भैषज्य रत्नावली" और "चरक संहिता" में मिलता है।

मुख्य घटक (Ingredients):

सितोपला (मिश्री) शीतल, स्वादवर्धक खांसी में राहत, द्रव्य वाहक

वंशलोचन (बांस की राख) रुक्ष, कषाय फेफड़ों की सफाई

पीपली (लंबी मिर्च) तीक्ष्ण, गर्म कफ नाशक, पाचनवर्धक

इलायची - मधुर, सुगंधित - श्वसन में सहायता

दालचीनी उष्ण, वातनाशक संक्रमण रोधक

आयुर्वेदिक गुणधर्मः

रस (स्वाद): मधुर, कटु

वीर्य (ऊर्जा): उष्ण

विपाकः मधुर

दोष प्रभावः कफ और वात नाशक

धातु पर प्रभावः विशेषकर प्राणवायु, रस और रुधिर धातु पर कार्य करता है

किन समस्याओं में फायदेमंद ?

1. खांसी और बलगमः

सूखी और गीली दोनों प्रकार की खांसी में लाभकारी

कफ को पतला कर बाहर निकालता है

वंशलोचन और पीपली बलगम को पिघलाते हैं

2. सांस लेने में दिक्कत (अस्थमा):

ब्रोंकाइटिस और अस्थमा के लक्षणों में राहत

फेफड़ों को बल देता है

3. गले की खराश और टॉन्सिल्सः

सूजन, जलन और खराश में त्वरित राहत

शहद या घी के साथ सेवन करने पर विशेष लाभकारी

4. बुखार में सहायकः

कफ जनित बुखार और वात-पित्त विकारों से उत्पन्न ज्वर में

शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है

5. भूख न लगना और अपचः

पाचन अग्नि को प्रज्वलित करता है

गैस, कब्ज, और भूख की कमी दूर करता है

* आयुर्वेदिक संयोजनः

! क्या न करें?

दूध के साथ सेवन न करें

तीव्र बुखार या पुरानी अस्थमा में डॉक्टर से सलाह लें

मधुमेह रोगी बिना सलाह सेवन न करें (क्योंकि इसमें मिश्री होती है)

किन लोगों को जरूर लेना चाहिए?

जिन्हें बार-बार सर्दी-जुकाम होता हो

जिनकी इम्युनिटी कमजोर हो

सितोपलादि + तालीसादि + त्रिकटुः अस्थमा में

जो प्रदूषित वातावरण में रहते हैं (जैसे दिल्ली, मुंबई)

सितोपलादि + प्रवाल पिष्टीः कफ ज्वर में

सितोपलादि + सूंठ + शहदः गले में जलन व खराश के लिए

सितोपलादि + तुलसी अर्कः वायरस जनित सर्दी में

सेवन की विधिः

बच्चों में बलगम और बार-बार गले की शिकायत हो

5-12 वर्ष - 1 ग्राम - शहद या गुनगुने पानी के साथ दिन में 2 बार 13-60 वर्ष - 2-3 ग्राम शहद /घी के साथ दिन में 2 बार

60+ वर्ष 2 ग्राम - शहद / गर्म पानी दिन में 1 बार

भोजन के बाद या चिकित्सक के परामर्श अनुसार लें।

घरेलू नुस्खाः

"गर्म पानी में सितोपलादि तुलसी पत्ता एक चुटकी हल्दी मिलाकर सुबह खाली पेट लें" यह गले की समस्या, पाचन की कमजोरी और वायरल से बचाव के लिए उत्तम उपाय है।

निष्कर्षः

सितोपलादि चूर्ण केवल खांसी की दवा नहीं, यह आयुर्वेद का वह रत्न है जो सांस, पाचन और इम्युनिटी को संतुलन देता है। सही तरीके से और सही संयोजन में इसका सेवन किया जाए, तो यह न केवल रोगों से छुटकारा दिलाता है, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी स्थायी रूप से मजबूत करता है।

गिलोय का काढ़ाः बुखार और कमजोर इम्युनिटी के लिए: आयुर्वेद का अमृतजब शरीर बार-बार बुखार की चपेट में आने लगे, प्लेटलेट्स औ...
11/07/2025

गिलोय का काढ़ाः बुखार और कमजोर इम्युनिटी के लिए: आयुर्वेद का अमृत

जब शरीर बार-बार बुखार की चपेट में आने लगे, प्लेटलेट्स और व्हाइट ब्लड सेल्स (WBCs) घटने लगें, तब आयुर्वेद कहता है - "दवा से पहले देखो दोष क्या है।" ऐसे समय में एक दिव्य औषधि है जो प्रकृति से सीधे आती है - गिलोय, जिसे संस्कृत में "अमृता" कहा गया है, यानी "अमरता देने वाली"।

जब शरीर बार-बार बुखार की चपेट में आने लगे, प्लेटलेट्स और व्हाइट ब्लड सेल्स (WBCs) घटने लगें, तब आयुर्वेद कहता है "दवा से पहले देखो दोष क्या है।"

ऐसे समय में एक दिव्य औषधि है जो प्रकृति से सीधे आती है गिलोय, जिसे संस्कृत में "अमृता" कहा गया है, यानी "अमरता देने वाली"।

गिलोय का काढ़ा न केवल बुखार को जड़ से मिटाता है, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को बढ़ाकर बार-बार होने वाले संक्रमण को भी रोकता है।

गिलोय क्या है?

वैज्ञानिक नामः Tinospora cordifolia

संस्कृत नामः अमृता, गुडूची

गुणः

स्वादः कड़वा

प्रभावः त्रिदोष नाशक (वात, पित्त, कफ)

वीर्यः उष्ण (गरम)

रसः तिक्त व कषाय

दोषों पर असरः विशेषतः पित्त व कफ नाशक

आयुर्वेद में इसे "प्रमेह, ज्वर, रक्तदोष, और प्रतिश्याय" (सर्दी-जुकाम) जैसे रोगों में उत्तम बताया गया है।

बार-बार बुखार और लो प्लेटलेट्स

वायरल बुखार, डेंगू, टायफाइड और मलेरिया जैसे संक्रमण शरीर की इम्युनिटी को कमजोर कर देते हैं। इन रोगों में प्लेटलेट्स और ल्यूकोसाइट्स (WBCS) तेजी से घटते हैं। बुखार उतर जाने के बाद भी शरीर में कमजोरी, चक्कर, थकावट बनी रहती है। इस स्थिति में गिलोय का काढ़ा रामबाण साबित होता है।

गिलोय का काढ़ा कैसे बनाएं?

सामग्री: ताजा या सूखी गिलोय की डंडी 5-6 इंच, पानी- 2 कप, तुलसी पत्ते 5, सौंठ 1/2 चम्मच , काली मिर्च 2, उपलब्ध हो तो गिलोयसत 1 चुटकी विधिः

1. गिलोय को छोटे टुकड़ों में काटकर पानी में डालें।

2. बाकी सभी सामग्री डालें और धीमी आंच पर उबालें। 3. जब पानी आधा रह जाए तो छान लें।

4. गुनगुना काढ़ा सुबह और शाम पीएं।

काढ़े के अद्भुत लाभः

1. बुखार में राहतः

गिलोय पित्त और आम दोष को नष्ट करता है जो बुखार की जड़ है।

इसमें antipyretic गुण होते हैं जो शरीर का तापमान संतुलित रखते हैं।

2. इम्युनिटी बूस्टरः

WBCs की संख्या बढ़ाने में सहायक। बार-बार इन्फेक्शन से सुरक्षा। बच्चों और बुजुर्गों में भी कारगर।

3. प्लेटलेट्स बढ़ाए:

डेंगू / वायरल बुखार में गिरती प्लेटलेट्स को बढ़ाने में मददगार।

शरीर में खून की गुणवत्ता सुधारता है

4. जठराग्नि सुधारेः

अपच, गैस, और उल्टी जैसे लक्षणों में राहत

बुखार के बाद भूख की कमी में विशेष लाभकारी

5. तनाव कम करें:

मानसिक शांति देता है। नींद को बेहतर बनाता है

आयुर्वेद के अनुसार कौन-कौन ले सकता है?

5-12 वर्ष - 2-3 चम्मच दिन में 1 बार

13-60 वर्ष - 1/2 कप दिन में 2 बार

60 वर्ष से ऊपर - 1/2 कप दिन में 1 बार (खाली पेट)

निष्कर्षः

गिलोय का काढ़ा घरेलू और प्राकृतिक रक्षा कवच है। यह न केवल रोगों से लड़ता है, बल्कि शरीर को भविष्य के लिए भी तैयार करता है। जब एलोपैथी की दवाएं साइड इफेक्ट्स देती हैं, तब आयुर्वेद कहता है -"बिना नुकसान के इलाज चाहिए? तो गिलोय अपनाइए।"

! सावधानियाँः

अधिक मात्रा में काढ़ा पीने से कब्ज़ हो सकता है।

गिलोय का लगातार 2 हफ्ते सेवन करने के बाद 1 हफ्ते का अंतर अवश्य रखें।

शीत प्रकृति वाले लोगों को इसमें अदरक या काली मिर्च जरूर मिलानी चाहिए।

बरसात में बाल झड़ना - कारण और समाधानःजानिए आयुर्वेद का नजरिया !बरसात का मौसम जहाँ हरियाली और ठंडक लेकर आता है, वहीं त्वच...
10/07/2025

बरसात में बाल झड़ना - कारण और समाधानः

जानिए आयुर्वेद का नजरिया !

बरसात का मौसम जहाँ हरियाली और ठंडक लेकर आता है, वहीं त्वचा और बालों की समस्याएँ भी पीछे-पीछे चली आती हैं। इस मौसम में अधिकांश लोग एक आम परेशानी से जूझते हैं बालों का अत्यधिक झड़ना। एक और बात गौर करने लायक है जो बाल गर्मी में नहीं झड़ते, वो मानसून में कमज़ोर होकर टूटने लगते हैं।

आख़िर क्या है इस बदलाव का कारण? क्या आयुर्वेद में इसका समाधान है? आइए समझते हैं।

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण:

बाल झड़ना मुख्यतः तीन दोषों वात, पित्त और कफ के असंतुलन से होता है।

वात दोषः बालों को रूखा, बेजान और दोमुंहा बनाता है।

पित्त दोषः अत्यधिक गर्मी से बालों की जड़ें जल जाती हैं।

कफ दोषः तैलीयपन और फंगल संक्रमण को बढ़ाता है।

मानसून में मुख्य रूप से कफ और वात दोष सक्रिय होते हैं।

बरसात में बाल झड़ने के कारणः

1. नमी और आर्द्रता (Humidity):

मानसून में हवा में अत्यधिक नमी स्कैल्प के पोर्स को बंद कर देती है जिससे सीबम (तेल) और पसीना मिलकर बालों की जड़ों को कमज़ोर कर देते हैं।

2. अम्लीय वर्षा जल (Acidic Rainwater):

बारिश का पानी अक्सर प्रदूषित होता है, जिसमें नाइट्रोजन और सल्फर के तत्व मिलते हैं जो बालों को नुकसान पहुंचाते हैं।

3. कफ दोष की वृद्धिः

आयुर्वेद में बारिश के मौसम को कफ-वृद्धिक माना गया है। यह कफ जब सिर में जमा होता है, तो बालों की जड़ों में सूजन और पोषण की कमी हो जाती है।

4. खान-पान की अनियमितताः

मानसून में तले-भुने, भारी और दूषित भोजन का सेवन पाचन अग्नि को मंद करता है, जिससे बालों को आवश्यक पोषण नहीं मिल पाता।

5. फंगल संक्रमणः

इस मौसम में स्कैल्प में गीलापन अधिक समय तक बना रहता है, जिससे फंगल या डैंड्रफ जैसी समस्याएं बालों के झड़ने का कारण बनती हैं।

आयुर्वेदिक समाधान - बाल झड़ने से कैसे रोकें?

1. त्रिफला का सेवन करें:

रात में 1 चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी से लें यह पाचन सुधारता है और रक्त शुद्ध करता है।

2. भृंगराज तेल से सिर की मालिश करें:

भृंगराज आयुर्वेद में "केशराज" यानी बालों का राजा माना गया है।

सप्ताह में 2-3 बार गुनगुने भृंगराज तेल से सिर की मालिश करें।

इससे रक्त संचार बेहतर होगा और बालों की जड़ें मज़बूत होंगी।

3. नीम और आंवले का प्रयोगः

नीम की पत्तियाँ उबालकर उससे सिर धोएँ- यह संक्रमण को दूर करेगा।

आंवला पाउडर को नारियल तेल में मिलाकर मास्क लगाएँ।

4. केशधृति (आयुर्वेदिक हेयर पैक):

1 चम्मच आंवला

1 चम्मच रीठा

1 चम्मच शिकाकाई

दही में मिलाकर बालों में लगाएँ और 30 मिनट बाद धोएँ।

5. दूध में हल्दी डालकर पिएँ:

यह शरीर के अंदर की सूजन और पित्त दोष को शांत करता है।

निष्कर्षः बरसात का मौसम बालों की सेहत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन आयुर्वेद के सरल उपायों और दैनिक अनुशासन से हम इस चुनौती को वरदान में बदल सकते हैं।

मुंह के छाले: कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज!मुंह के छाले एक आम लेकिन बेहद तकलीफदेह समस्या। खाना खाते समय जलन, बात करते ...
07/07/2025

मुंह के छाले: कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज!

मुंह के छाले एक आम लेकिन बेहद तकलीफदेह समस्या। खाना खाते समय जलन, बात करते वक्त असहजता, और कभी-कभी नींद तक हराम कर देने वाला दर्द। आयुर्वेद में इस असुविधा को "मुखपाक" या "मुख दाह" कहा गया है। लेकिन अच्छी बात यह है कि इस तकलीफ का इलाज हमारी रसोई और औषधियों में छिपा है।

मुंह के छाले यानी माउथ अल्सर ये होंठों के अंदर, जीभ के किनारों या गालों की अंदरूनी सतह पर दर्दभरे, सफेद या पीले रंग के छोटे घाव होते हैं।

छोटे दिखने वाले ये छाले कई बार गंभीर दर्द और असहजता का कारण बन सकते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार, मुंह में छाले पित्त दोष के असंतुलन के कारण होते हैं।

जब शरीर में पित्त अधिक हो जाता है, विशेष रूप से गर्म और तीखे आहार के कारण, तब यह 'मुखपाक' के रूप में बाहर निकलता है।

"पित्तप्रधान दोष से उत्पन्न ज्वर, मुखदाह और मुखपाक में दग्ध रूप प्रकट होता है।" चरक संहिता

कारणः छालों की जड़ें कहां हैं?

अत्यधिक मिर्च-मसाले वाला खाना

बार-बार गर्म चीजें खाना

पाचन तंत्र की कमजोरी

Vitamin B complex, Iron की कमी

नींद की कमी और मानसिक तनाव

अधिक दवाओं का सेवन (एंटीबायोटिक, स्टेरॉयड)

अधिक धूप में रहना या अधिक गर्मी सहना

कब्ज और अपच

लक्षणः

सफेद/पीले घाव

जलन और चुभन

बोलने और खाने में तकलीफ

मुंह सूखना

बदबू आना

लाभः पाचन दुरुस्त करता है, मुंह के ज़ख्मों को ठीक करता है।

2. मुलेठी का लेप

कैसे करें: मुलेठी पाउडर को शहद के साथ मिलाकर छालों पर लगाएं।

लाभः सूजन कम करता है, जलन शांत करता है।

3. घृतकुमारी (एलोवेरा) रस

कैसे करें: 1 चम्मच शुद्ध एलोवेरा रस सुबह खाली पेट और छालों पर सीधा भी लगाया जा सकता है।

लाभः ठंडक देता है, आंतरिक पित्त को शांत करता है।

74. गाय का घी

कैसे करें: गाय का देशी घी छालों पर लगाएं और हल्का-सा मुंह में रखें।

लाभः शीतल गुण से आराम मिलता है।

5. नारियल तेल से कुल्ला

कैसे करें: 1 चम्मच नारियल तेल को मुंह में घुमाएं (ऑयल पुलिंग)

लाभः बैक्टीरिया हटाता है, घावों को ठीक करता है।

6. कटी हुई कच्ची धनिया

कैसे करें: धनिया के बीज उबालकर पानी से गरारा करें लाभः ठंडक, एंटीसेप्टिक और पाचन सुधारक

आधुनिक विज्ञान की मान्यता

विज्ञान भी मानता है कि मुंह के छालेः

Vitamin B12, Iron, Folate की कमी से होते हैं

करें:

ठंडा दूध

सादा खिचड़ी

नारियल पानी

छाछ (बिना मसाले के)

पके हुए फल (सेब, केला)

X न करें:

मिर्च-मसाले

खट्टे फल (नींबू, संतरा)

चाय, कॉफी

बेकरी उत्पाद

तंबाकू और शराब

आयुर्वेदिक औषधियों जैसे मुलेठी, त्रिफला, एलोवेरा में एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं

घी, नारियल तेल और तुलसी-शहद मुंह के लिए प्राकृतिक मरहम हैं

योग और प्राणायाम

मानसिक तनाव, नींद की कमी और अपच छालों के मूल कारण हैं।

इन समस्याओं को दूर करने के लिए नीचे दिए गए योग अभ्यास अत्यंत लाभकारी हैं:

अनुलोम-विलोम प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, वज्रासन (भोजन के बाद)

शवासन (तनाव मुक्ति हेतु)

निष्कर्ष

मुंह के छाले छोटे लगते हैं पर तकलीफ बड़ी देते हैं। इन्हें अनदेखा करने के बजाय आयुर्वेद की शरण में जाएं।

* "जब पाचन ठीक, नींद पूरी, और आहार सत्विक हो तब छाले नहीं होंगे। और यदि हों, तो प्राकृतिक चिकित्सा से ही समाधान पाएं।"

कैसे करें: 1 चम्मच त्रिफला को 1 गिलास गर्म पानी में उबालें, छानकर ठंडा करें और दिन में 3 बार कुल्ला करें।

मुंह के छाले दवा कम, दिशा ज्यादा मांगते हैं। जीवनशैली और आहार में बदलाव लाकर इस समस्या को जड़ से समाप्त करें।

आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे

21. त्रिफला चूर्ण कुल्ला

"गोघृतः आयुर्वेद की अमृतधारा"तन, मन और जीवन का पोषण-गोघृत, यानी देसी गाय के दूध से बना शुद्ध घी, भारतीय संस्कृति, धर्म औ...
05/07/2025

"गोघृतः आयुर्वेद की अमृतधारा"

तन, मन और जीवन का पोषण-

गोघृत, यानी देसी गाय के दूध से बना शुद्ध घी, भारतीय संस्कृति, धर्म और चिकित्सा पद्धति में अत्यंत पूजनीय और उपयोगी रहा है। यह केवल स्वाद या पकवानों का हिस्सा नहीं, बल्कि एक संपूर्ण औषधि और रसायन (Rejuvenator) है।

चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और भावप्रकाश निघंटु जैसे आयुर्वेदिक ग्रंथों में गोघृत को सर्वश्रेष्ठ रसायन, स्मरण शक्ति बढ़ाने वाला, ओजवर्धक और वात-पित्त शामक बताया गया है।

चरक संहिता कहती है:

"सर्वघृतानां गोघृतं श्रेष्ठम्।" अर्थात - सभी प्रकार के घृतों में गाय का घी श्रेष्ठ है।

गोघृत के गुण और प्रकृति

रस (स्वाद) - मधुर (मीठा)

गुण - स्निग्ध, गुरु, मृदु

वीर्य शीत (शीतल प्रभाव)

विपाक - मधुर

दोष प्रभाव वात-पित्त नाशक, कफ वर्धक नहीं

गोघृत के आयुर्वेदिक लाभ

पाचन शक्ति को बढ़ाए

अग्नि (जठराग्नि) को प्रबल करता है

अम्लपित्त (Acidity) और कब्ज में राहत

आंतों की सूजन कम करता है मस्तिष्क और मानसिक बल में वृद्धि

स्मृति, एकाग्रता और बुद्धि को बढ़ाता है

ब्राह्मी या शंखपुष्पी के साथ सेवन करने से न्यूरो टॉनिक की तरह कार्य करता है

मानसिक तनाव और अनिद्रा में लाभदायक रसायन (Rejuvenation)

शरीर में ओज, तेज और बल को बढ़ाता है

वृद्धावस्था की कमजोरी को दूर करता है

रोज सुबह खाली पेट 1 चम्मच घी पीना रसायन माना गया है

त्वचा और बालों को पोषण

त्वचा की नमी बनाए रखता है

ब्यूटी टॉनिक की तरह कार्य करता है

आंखों के लिए अमृत

तर्पण (गाय के घी से आंखों का स्नान) करने से नेत्र ज्योति में वृद्धि

दृष्टि दोष, सूखी आंख, थकावट में लाभकारी गर्भवती स्त्रियों के लिए विशेष लाभकारी

गर्भस्थ शिशु के मानसिक व शारीरिक विकास में सहायक

प्रसव के बाद कमजोरी दूर करने में उपयोगी

गोघृत के उपयोग

कच्चा सेवन (1 चम्मच) सुबह खाली पेट,

रसायन रूप में

दूध में मिलाकर अनिद्रा, स्मृति वृद्धि -नाक में घी (नस्य)- माइग्रेन, सिर दर्द, जुकाम, बाल झड़ना आँखों में तर्पण नेत्र ज्योति

तेल मालिश - शिशुओं, बड़ों की दुर्बलता में

घाव पर बाहरी प्रयोग जलने, फोड़े-फुंसी, सूजन में

घरेलू नुस्खे

! सावधानियाँ

1. ब्राह्मी + गोघृत + दूधः स्मृति और एकाग्रता बढ़ाने के लिए

शुद्ध देसी गाय का घी ही उपयोग करें (A2 milk based)

रोग विशेष की स्थिति में चिकित्सक की सलाह आवश्यक

मधुमेह, मोटापा या यकृत रोगी सीमित मात्रा में लें

2. अनिद्रा में: रात को 1 चम्मच घी गुनगुने दूध में डालकर पिएं

3. पेट की जलनः 1/2 चम्मच घी मिश्री ठंडा पानी

* 4. जलने परः गोघृत कपूर मिलाकर लगाने से जलन और सूजन में राहत

आधुनिक शोध क्या कहता है?

गोघृत में Omega-3, CLA (Conjugated Linoleic Acid), Vitamin A, D, E, K पाया जाता है

यह हृदय, मस्तिष्क, हड्डियों के लिए लाभकारी माना गया है

मस्तिष्क न्यूरॉन्स की मरम्मत करता है और याददाश्त सुधारता है

योग और गोघृत का मेल

गोघृत के सेवन के साथ वज्रासन, पद्मासन, सर्वांगासन, बालासन जैसे आसनों और प्राणायाम (अनुलोम-विलोम, भ्रामरी) का अभ्यास करने से इसके लाभ कई गुना बढ़ जाते हैं।

निष्कर्ष

गोघृत कोई साधारण खाद्य नहीं, यह आयुर्वेदिक जीवनशैली का आधार है।

यह तन, मन और आत्मा तीनों को बल देता है।

यदि आपने आज से ही गोघृत को दिनचर्या में शामिल कर लिया, तो स्वास्थ्य और ओज

आपका स्वागत करेंगे।

"घृतं जीवनस्य मूलं" घी जीवन का मूल है।

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