Astrologer Hemlata Murlidhar

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मृत्यु के बारे में एक ऐसा सच जो आपको हैरान कर सकता है। समय निकालकर जरूर पढ़ें। एक संग्रहणीय आलेखप्रोफेसर डॉ. लोपा मेहता,...
25/08/2025

मृत्यु के बारे में एक ऐसा सच जो आपको हैरान कर सकता है। समय निकालकर जरूर पढ़ें। एक संग्रहणीय आलेख

प्रोफेसर डॉ. लोपा मेहता, जो मुंबई के KEM मेडिकल कॉलेज में एनाटॉमी डिपार्टमेंट की हेड थीं ने 78 साल की उम्र में अपना Living Will बनाया कि जब मेरा शरीर जवाब देने लगे और लौटने की कोई गुंजाइश न बचे, तब मेरा इलाज नहीं किया जाए। न वेंटिलेटर, न ट्यूब, न अस्पताल में बेवजह की दौड़। वो चाहती हैं कि आख़िरी वक़्त शांति से बीते, जहाँ इलाज की ज़िद नहीं, समझदारी हो।

डॉ. लोपा ने केवल यह दस्तावेज़ ही नहीं लिखा बल्कि एक शोध-पत्र भी प्रकाशित किया है जिसमें मृत्यु को एक स्वाभाविक, समय-निर्धारित, जैविक प्रक्रिया के रूप में समझाया गया है।

यहां से कृपया गंभीर होकर पढ़ा जाय। उनका कहना है कि आधुनिक चिकित्सा मृत्यु को कभी स्वतंत्र रूप में देख ही नहीं पाई। चिकित्सा पद्धतियां मानती रहीं कि मौत हमेशा किसी बीमारी की वजह से होती है और अगर बीमारी का इलाज हो जाए तो मौत टाली जा सकती है लेकिन वे गलत हैं। उनका चिकित्सा विज्ञान बाद में बना , शरीर का विज्ञान पहले से है और यह शरीर का विज्ञान चिकित्सा विज्ञान से कहीं अधिक गहरा है।

उनका तर्क है कि शरीर कोई अनंत चलने वाला यंत्र नहीं है। यह एक सीमित प्रणाली है, जिसमें एक निश्चित जीवन-ऊर्जा होती है। यह ऊर्जा हमें किसी टंकी से नहीं, बल्कि सूक्ष्म शरीर के माध्यम से मिलती है। वही सूक्ष्म शरीर जिसे अनुभव तो हर कोई करता है, पर देखा नहीं जा सकता ,मन, बुद्धि, स्मृति, और चेतना ,इन्हीं से मिलकर बना है यह सिस्टम ।

यह सूक्ष्म शरीर एक माध्यम है, जिससे जीवन-शक्ति आती है और पूरे शरीर में फैलती है। यही शक्ति शरीर को जीवित रखती है। यह नाड़ी, धड़कन, पाचन और सोचने की क्षमता ,सब कुछ उसी के भरोसे चलता है। लेकिन यह शक्ति अनंत नहीं है। हर शरीर में इसकी एक निश्चित मात्रा होती है। जैसे किसी मशीन में फिक्स बैटरी हो ,न ज़्यादा हो सकती है, न कम। जितनी चाभी भरी राम ने उतना चले खिलौना टाइप ।

डॉ. लोपा लिखती हैं कि जब शरीर में मौजूद इस ऊर्जा का अंतिम अंश खर्च हो जाता है, तो सूक्ष्म शरीर अलग हो जाता है। यही वो क्षण होता है, जब देह स्थिर हो जाती है, और हम कहते हैं “प्राण निकल गया।”

यह प्रक्रिया न तो किसी बीमारी से जुड़ी है और न किसी चूक से। यह शरीर की अपनी आंतरिक गति है, जो गर्भ में ही शुरू हो जाती है और जब यह गति पूरी हो जाती है, तब मृत्यु हो जाती है। इस ऊर्जा का व्यय हर पल होता रहता है। एक-एक कोशिका, एक-एक अंग, धीरे-धीरे अपने जीवन की लंबाई पूरी करते हैं और जब संपूर्ण शरीर का कोटा खत्म होता है, तब शरीर शांत हो जाता है।

मौत का समय कोई घड़ी से नापा गया क्षण नहीं होता। यह एक जैविक समय है ,हर व्यक्ति के लिए अलग। किसी का जीवन 35 साल में पूरा होता है, किसी का 90 में लेकिन दोनों ही अपनी पूरी इकाई जीते हैं। कोई अधूरा नहीं मरता, अगर हम उसे मजबूरी या हार न कहें।

डॉ. लोपा ने अपने लेख में ये भी कहा है कि आधुनिक चिकित्सा जब मृत्यु को टालने की जिद करती है, तो वो केवल शरीर नहीं, पूरे परिवार को थका देती है। ICU में महीने भर की साँसें कभी कभी वर्षों की कमाई ले जाती हैं। रिश्तेदार कहते रह जाते हैं “अभी उम्मीद है”, पर मरीज की देह कब की कह चुकी होती है “बस अब बहुत हो गया।”

इसीलिए उन्होंने लिखा है कि जब मेरा समय आए, तो बस KEM ले जाना। जहाँ मुझे भरोसा है कि कोई अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं होगा। इलाज के नाम पर खिंचाई नहीं की जाएगी। मेरे शरीर को रोका नहीं जाएगा जाने दिया जाएगा।

अब सवाल ये है ,

क्या हम सबने अपने लिए ऐसा कुछ सोचा है?

क्या हमारा परिवार उस इच्छा का सम्मान करेगा?

क्या इच्छा का सम्मान करने वाला व्यक्ति समाज में सम्मान पा सकेगा?

क्या हमारे देश के अस्पतालों में ऐसी इच्छाओं की इज्‍जत बची है?

या अब भी हर सांस पर बिल बनेगा, और हर मौत पर आरोप?

सब इतना आसान नहीं लगता है, तर्क और इमोशन का मैनेजमेंट शायद सबसे कठिन कामों में से एक है ।

अगर मौत को एक नियत, शांत और शरीर के भीतर से तय प्रक्रिया की तरह देखना शुरू करें, तो शायद मौत से डर भी कम हो, और डॉक्टर से उम्मीद भी थोड़ी सच्ची हो।

मुझे लगता है मौत से लड़ना बंद करना चाहिए, उससे पहले जीने की तैयारी करनी चाहिए और जब वो आए तो शांति से, गरिमा से उसे जाने देना चाहिए।

बुद्ध की भाषा में मौत एक प्रमोशन है ।

लेकिन क्या मेरी ख़ुद की ये सोच 70 के बाद रह पायेगी? हम खुद ही नहीं जानते। आपका क्या विचार है? आलेख यदि अच्छा लगा हो तो आशीर्वाद देंगे।

23/08/2025

गणेश जी के अनोखे रूप का रहस्य | मोदक-दूर्वा के अद्भुत उपाय

सन् 1974-75 की बात हैः जयपुर के पास हनुमान जी का मंदिर है जहाँ हर साल मेला लगता है और मेले में जयपुर के आस- पास के देहात...
22/08/2025

सन् 1974-75 की बात हैः जयपुर के पास हनुमान जी का मंदिर है जहाँ हर साल मेला लगता है और मेले में जयपुर के आस- पास के देहातों से भी बहुत लोग आते हैं

वहाँ मेले में हलवाई आदि की दुकानें भी होती हैं।

एक लोभी हलवाई के पास एक साधु बाबा आये। उन्होंने हलवाई के हाथ में चवन्नी रखी और कहाः "पाव भर पेड़े दे दे।"

हलवाईः "महाराज ! चार आने में पाव भर पेड़े कैसे मिलेंगे ? पाव भर पेड़े बारह आने के मिलेंगे, चार आने में नहीं।"

साधुः "हमारे राम के पास तो चवन्नी ही है। भगवान तुम्हारा भला करेगा, दे दे पाव भर पेड़े।"

हलवाईः "महाराज ! मुफ्त का माल खाना चाहते हो ? बड़े आये हो.... पेड़े खाने का शौक लगा है ?"

साधु महाराज ने दो-तीन बार कहा किन्तु हलवाई न माना और उस चवन्नी को भी एक गड्डे में फेंक दिया।

साधु महाराज बोलेः "पेड़े नहीं देते हो तो मत दो लेकिन चवन्नी तो वापस दो।"

हलवाईः "चवन्नी पड़ी है गड्डे में। जाओ, तुम भी गड्डे में जाओ।"

साधु ने सोचाः "अब तो हद हो गयी !"

फिर कहाः "तो क्या पेड़े भी नहीं दोगे और पैसे भी नहीं दोगे ?"

"नहीं दूँगा। तुम्हारे बाप का माल है क्या ?"

साधु तो यह सुनकर एक शिला पर जाकर बैठ गये। संकल्प में परिस्थितियों को बदलने की शक्ति होती है।

जहाँ शुभ संकल्प होता है वहाँ कुदरत में चमत्कार भी घटने लगते हैं।

रात्रि का समय होने लगा तो दुकानदार ने अपना गल्ला गिना। चार सौ नब्बे रूपये थे, उन्हें थैली में बाँधा और पाँच सौ पूरे करने की ताक में ग्राहकों को पटाने लगा।

इतने में कहीं से चार तगड़े बंदर आ गये। एक बंदर ने उठायी चार सौ नब्बे वाली थैली और पेड़ पर चढ़ गया.

दूसरे बंदर ने थाल झपट लिया। तीसरे बंदर ने कुछ पेड़े ले जाकर शिला पर बैठे हुए साधु की गोद में रख दिये और चौथा बंदर इधर से उधर कूदता हुआ शोर मचाने लगा।

यह देखकर दुकानदार के कंठ में प्राण आ गये। उसने कई उपाय किये कि बंदर पैसे की थैली गिरा दे।

जलेबी-पकौड़े आदि का प्रलोभन दिखाया किन्तु वह बंदर भी साधारण बंदर नहीं था। उसने थैली नहीं छोड़ी तो नहीं छोड़ी।

आखिर किसी ने कहा कि जिस साधु का अपमान किया था उसी के पैर पकड़ो।

हलवाई गया और पैरों में गिरता हुआ बोलाः "महाराज ! गलती हो गयी।

संत तो दयालु होते हैं।
साधुः "गलती हो गयी है तो अपने बाप से माफी ले। जो सबका माई-बाप है उससे माफी ले। मैं क्या जानूँ ?

जिसने भेजा है बंदरों को उन्हीं से माफी माँग।"
हलवाई ने जो बचे हुए पेड़े थे वे लिए और गया हनुमान जी के मंदिर में। भोग लगाकर प्रार्थना करने लगाः "जै जै हनुमान गोसाईं.... मेरी रक्षा करो....।.

कुछ पेड़े प्रसाद करके बाँट दिये और पाव भर पेड़े लाकर उन साधु महाराज के चरणों में रखे।.

साधुः "हमारी चवन्नी कहाँ है ?"

"गड्डे में गिरी है।

साधुः "मुझे बोलता था कि गड्डे में गिर। अब तू ही गड्डे में गिर और चवन्नी लाकर मुझे दे।"

हलवाई ने गड्डे में से चवन्नी ढूँढकर, धोकर चरणों में रखी।

साधु ने हनुमान जी से प्रार्थना करते हुए कहाः "प्रभो! यह आपका ही बालक है। दया करो।"
देखते-देखते बंदर ने रूपयों की थैली हलवाई के सामने फैंकी। लोगों ने पैसे इकट्ठे करके हलवाई को थमाये।

बंदर कहाँ से आये, कहाँ गये ? यह पता न चल सका।

14/08/2025

जन्माष्टमी की रात्रि को करे यह रहस्यमय उपाय और जपे उनके बारह नाम होंगी हर मनोकामना पूरी जन्माष्टमी 16 अगस्त को है
कृष्ण जन्म की दिव्य घड़ी द्वापर युग की अंधेरी आधी रात… जब कारागार की लोहे की सलाखें स्वयं टूट गईं, और वसुदेव-देवकी की गोद में नील कमल के रंग का बालक प्रकट हुआ — वही क्षण था श्रीकृष्ण का अवतरण। यह वह समय है जब आकाशीय द्वार खुलते हैं, और विष्णु की दिव्य ऊर्जा पूरे ब्रह्मांड में फैल जाती है। हर वर्ष, जन्माष्टमी की रात बारह बजे, वही ऊर्जा पुनः जागृत होती है — और जो साधक उस क्षण ध्यान, जप या संकल्प करता है, उसकी पुकार सीधे ब्रह्मांड तक पहुँचती है। देखो, ये उपाय करने का सही समय है जन्माष्टमी की आधी रात… ठीक बारह बजे, जब कान्हा का जन्म हुआ था। उस घड़ी का असर सबसे गहरा होता है। और जगह ? बस अपने घर का मंदिर चुन लो… या फिर कोई ऐसा शांत कोना, जहाँ दीपक की लौ बिना हवा के डगमगाए।
तैयारी में ज़्यादा कुछ नहीं चाहिए… एक छोटा सा पीतल या चाँदी का बर्तन ले लो, उसमें गंगाजल भर लो। फिर उसमें थोड़ा सा कपूर का बूरा डालना, और थोड़ी-सी मिश्री — ये दोनों मिलकर माहौल को और भी पवित्र बना देंगे। पाँच हरे-हरे तुलसी के पत्ते पास में रख लो, और एक घी का दीपक जला लो। बस… यही है सारी तैयारी।

04/08/2025
जो उन्होंने दिया, वो चुपचाप था...मुझे आज तक नहीं पता कि मेरे शिव ने मुझे क्या-क्या दिया। ना कभी माँगा, ना कभी शर्त रखी.....
03/08/2025

जो उन्होंने दिया, वो चुपचाप था...
मुझे आज तक नहीं पता कि मेरे शिव ने मुझे क्या-क्या दिया। ना कभी माँगा, ना कभी शर्त रखी...पर जब जब टूटी,
कुछ ऐसा मिला जो किसी शब्द में बाँध न सकी।
कई बार लगता है —खाली हूँ, अकेली हूँ, खो गई हूँ भीड़ में। और फिर...कोई अचानक आकर कहता है —तुममें कुछ खास है...तुम्हारी लेखनी में कोई और ही बात है...तब लगता है — शायद यही प्रसाद है उनका, जो बिना पुकार के मिल गया।
उन्होंने दिया —
दर्द, ताकि मैं कोमल हो सकूं।
मौन, ताकि मैं भीतर सुन सकूं।
संघर्ष, ताकि मेरी आत्मा निखरे।

उन्होंने लेखनी दी —
पर तब, जब जीवन की आवाज़ मुझसे रूठ चुकी थी।
शब्द भी तो उन्होंने ही दिए. और अनुभव भी, जिन्हें कागज़ पर उतारते-उतारते मैं खुद को पहचानने लगी।
शिव ने मुझे अच्छाई दी —
लेकिन उसके साथ छल, अस्वीकृति और तपस्या की छाया भी रख दी। कभी-कभी तो जो मिला, वो ज़हर जैसा लगा...पर वही हलाहल, धीरे-धीरे मुझे अमृत बना गया। और जब सब खो चुका था, तब जो बचा —
वो मैं नहीं थी...वो शिव की दी हुई शांति थी।
जो उन्होंने दिया, वो चुपचाप था —बिना शोर के, बिना दिखावे के। पर उसकी गूँज…
अब मेरी लेखनी में है। हेमलता मुरलीधर 🙏🌹

28/07/2025

नाग पंचमी मंगलवार, 29 जुलाई को मनाई जाएगी। इस दिन यह उपाय अवश्य करे
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28/07/2025

आज 28 जुलाई दुर्लभ योग दो देवों का एक दिन सावन सोमवार और विनायक चतुर्थी का चमत्कारी संयोग ये उपाय ज़रूर करें

19/07/2025

शिवा मुट्ठी: श्रावण की रहस्यमयी साधना । इसे जरूर करे।

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