26/09/2022
डॉक्टर के तीन रूप- भगवान यमराज और लुटेरा के बीच का अंतर
मरीज़ आईसीयू में बहुत क्रिटिकल हो और आप उसके रिश्तेदारों को बुलाते हो , मरीज़ की इस्तिथि बताने के लिये।
वो सारे दोनों हाथ बांध कर खड़े हो जाते हैं और बड़े ध्यान से सर को थोड़ा आगे करके आँखें बड़ी बड़ी करके ऐसे सुनते हैं कि मानो एक एक शब्द को पी रहे हों । फिर जैसे ही आपकी बात ख़त्म होती है वो बस एक पंक्ति बोलते हैं
“वैसे तो सर मरीज़ ठीक है न?”
अब आपको समझ नहीं आता कि इतने ध्यान से वो सुन क्या रहे थे। फिर आप थोड़े सीधे सीधे कठोर शब्द का इस्तेमाल करते हो
“देखिये मरीज़ की हालत ठीक नहीं है। अभी भी इस्तिथि क्रिटिकल है।”
फिर उनके मुँह से एक और ब्रह्मास्त्र निकालते है
“आप ही भगवान हो सर!”
अब आप थोड़ा असहज महसूस करने लगते हो
“नहीं भगवान तो ऊपर है”
लेकिन वो आपकी एक नहीं सुनते हैं ।
“नहीं सर धरती के भगवान तो आपलोग हीं हो”
आपको अब प्रेशर का अनुभव होता है और आप धीरे से आईसीयू के अंदर ग़ायब हो जाते हो।
जब मरीज़ मर जाये और आप रिश्तेदारों को ये सूचना देकर जैसे ही मुड़ते हो , आपके कानों तक आवाज़ पहुँचती है
“यमराज है ये सब । मार दिया मेरे मरीज़ को।”
आपका भगवान से यमराज तक का सफ़र पूरा हो जाता है।
जब मरीज़ ठीक होकर छुट्टी जाने लगता है तब आपको मालूम होता है (ये निजी अस्पताल के डॉक्टरों के लिये है और अक्सर सोशल मीडिया , प्रिंट मीडिया टीवी इत्यादि माध्यमों से पता चलता है) कि रिश्तेदार ब्लॉग लिख रहे हैं
“लुटेरा हो गया है डॉक्टर । लाखों लूट लिया। बिना किसी काम के मशीन पर रख रखा था मेरे मरीज़ को। मुझे मिलने तक नहीं दिया। मैंने खबर निकलवाया था तब मुझे पता चला, मरीज़ तो बिलकुल ठीक है बाद पैसा बनाने के लिये आईसीयू में रखा हुआ था। सरकार भी मिली हुई है इनसे।”
अब आपका सफ़र भगवान से लुटेरा तक का पूरा हो जाता है।
इस तरह से डॉक्टर के तीनों रूपों का दर्शन होता रहता है ।
शुभ प्रभात।
दुर्गा पूजा की शुभकामनाएँ