01/04/2024
जानिये त्रिफला है क्या..?
एक ऐसी दिव्य औषधि जिसको हम भूल गए हैं,त्रिफला के सेवन से अपने शरीर का कायाकल्प कर जीवन भर स्वस्थ रहा जा सकता है।
आयुर्वेद की महान देन त्रिफला से हमारे देश का आम व्यक्ति परिचित है व सभी ने कभी न कभी कब्ज दूर करने के लिए इसका सेवन भी जरुर किया होगा।
पर बहुत कम लोग जानते है इस त्रिफला चूर्ण जिसे आयुर्वेद रसायन भी मानता है त्रिफला से अपने रोग दोष व कमजोरी से ग्रसित शरीर का कायाकल्प किया जा सकता है।
बस जरुरत है तो इसके नियमित सेवन करने की।
क्योंकि त्रिफला का वर्षों तक नियमित सेवन ही आपके शरीर का कायाकल्प कर सकता है।
सेवन विधि :-
सुबह हाथ मुंह धोने व कुल्ला आदि करने के बाद खाली पेट ताजे पानी के साथ इसका सेवन करें तथा सेवन के बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें।
इस नियम का कठोरता से पालन करें।
यह तो हुई साधारण विधि पर आप कायाकल्प के लिए नियमित इसका इस्तेमाल कर रहे है तो इसे विभिन्न ऋतुओं के अनुसार इसके साथ गुड़, सैंधा नमक आदि विभिन्न वस्तुएं मिलाकर ले।
हमारे यहाँ वर्ष भर में छ: ऋतुएँ होती है और प्रत्येक ऋतू में दो दो मास।
1- ग्रीष्म ऋतु :-
14 मई से 13 जुलाई तक त्रिफला को गुड़ 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें।
2- वर्षा ऋतु :-
14 जुलाई से 13 सितम्बर तक इस त्रिदोषनाशक चूर्ण के साथ सैंधा नमक 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें।
3- शरद ऋतु :-
14 सितम्बर से 13 नवम्बर तक त्रिफला के साथ देशी खांड 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें ।
4- हेमंत ऋतु :-
14 नवम्बर से 13 जनवरी के बीच त्रिफला के साथ सौंठ का चूर्ण 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें।
5- शिशिर ऋतु :-
14 जनवरी से 13 मार्च के बीच पीपल छोटी का चूर्ण 1/4 भाग मिलाकर सेवन करें।
6- बसंत ऋतु :-
14 मार्च से 13 मई के दौरान इस के साथ शहद मिलाकर सेवन करें।
शहद उतना मिलाएं जितना मिलाने से अवलेह बन जाये।
दो तोला हरड़ बड़ी मंगावे |
तासू दुगुन बहेड़ा लावे ||
और चतुर्गुण मेरे मीता |
ले आंवला परम पुनीता ||
कूट छान या विधि खाय|
ताके रोग सर्व कट जाय ||
त्रिफला का अनुपात :-
1:2:4= अर्थात...
1भाग (हरड़)+2 भाग (बहेड़ा)+4 भाग (आंवला)
त्रिफला लेने का सही नियम :-
सुबह अगर हम त्रिफला लेते हैं तो उसको हम "पोषक" कहते हैं।
क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है जैसे शरीर में विटामिन, आयरन, कैल्शियम और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी को पूरा करता है एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह त्रिफला खाना चाहिए।
सुबह जो त्रिफला खाएं हमेशा गुड़ के साथ खाएं।
रात में जब त्रिफला लेते हैं उसे "रेचक" कहते है क्योंकि रात में त्रिफला लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि) का निवारण होता है।
रात में त्रिफला हमेशा गर्म दूध के साथ लेना चाहिए |
नेत्र प्रक्षलन :-
एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें। सुबह कपड़े से छानकर उस पानी से आंखें धो लें। यह प्रयोग आंखों के लिए अत्यंत हितकर है। इससे आंखें स्वच्छ व दृष्टि सूक्ष्म होती है। आंखों की जलन, लालिमा आदि तकलीफें दूर होती हैं।
कुल्ला करना :-
त्रिफला रात को पानी में भिगोकर रखें। सुबह मंजन करने के बाद यह पानी मुंह में भरकर रखें। थोड़ी देर बाद निकाल दें। इससे दांत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। इससे अरुचि, मुख की दुर्गंध व मुंह के छाले नष्ट होते हैं।
त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है। त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक- एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती। घाव जल्दी भर जाता है।
गाय का घी व शहद के मिश्रण (घी अधिक व शहद कम) के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन आंखों के लिए वरदान स्वरूप है।
संयमित आहार-विहार के साथ इसका नियमित प्रयोग करने से मोतियाबिंद, कांचबिंदु-दृष्टिदोष आदि नेत्र रोग होने की संभावना नहीं होती।
मूत्र संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में यह फायदेमंद है। रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेने से कब्ज नहीं रहती है।
मात्रा :-
2 से 4 ग्राम चूर्ण दोपहर को भोजन के बाद अथवा रात को गुनगुने पानी के साथ लें।
लाभ :-
त्रिफला का नियमित सेवन वात, पित्त, कफ संबंधित त्रिर्दोष को शांत करता है अर्थात हमारे शरीर को संतुलित रखता है। रेडियोधर्मिता से भी बचाव करता है। प्रयोगों में देखा गया है कि त्रिफला की खुराकों से गामा किरणों के रेडिएशन के प्रभाव से होने वाली अस्वस्थता के लक्षण भी नहीं पाए जाते हैं। इसीलिए त्रिफला चूर्ण आयुर्वेद का अनमोल उपहार कहा जाता है।
सावधानी :-
दुर्बल, कृश व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को एवं नए बुखार में त्रिफला का सेवन नहीं करना चाहिए।
इसकी मात्रा 4 ग्राम से 10 ग्राम तक या वजनानुसार दे सकते है।
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