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हिंदी बोध कथा - 001बुद्ध एक कहानी कहा करते थे। वे कहते थे: एक आदमी को एक सम्राट ने कारागृह में बंद कर दिया। लेकिन उस आदम...
13/12/2023

हिंदी बोध कथा - 001

बुद्ध एक कहानी कहा करते थे।
वे कहते थे: एक आदमी को एक सम्राट ने कारागृह में बंद कर दिया। लेकिन उस आदमी ने सम्राट की बड़ी सेवाएं की थीं और सम्राट दुखी था कि उसे बंद करना पड़ा, क्योंकि उसने कुछ दगाबाजी की थी। मगर हजारों उसने सम्राट के उपकार भी किए थे, तो उसे एक विशेष तरह की सजा दी गई।

सम्राट का एक महल था, जिसमें एक हजार दरवाजे थे। उस आदमी की आंख पर पट्टी बांध दी गई और उससे कहा गया कि तू महल में घूम, नौ सौ निन्यानबे दरवाजे बंद कर दिए हैं और एक दरवाजा खुला है, अगर तू वह दरवाजा खोज लेगा और बाहर निकल आएगा, तो तू मुक्त है।

वह आदमी आंख पर पट्टी बांधे टटोलता - टटोलता महल में भटकता है। नौ सौ निन्यानबे दरवाजे बंद हैं। सोच सकते हो तुम उसकी हालत, थक जाता है, परेशान हो जाता है। मालूम है कि एक दरवाजा खुला है, और मालूम है कि हर घड़ी वह दरवाजा करीब आ रहा है, क्योंकि जितने दरवाजे बंद छूट गए पीछे उतने कम हो गए। ओर जब वह दरवाजा उसके करीब आया तो उसके सिर पर एक मक्खी आ बैठी, वह उस मक्खी को उड़ाने में दरवाजा पार कर गया.. बिना टटोले। फिर नौ सौ निन्यानबे दरवाजे! फिर लंबी यात्रा! बस आया-आया और चूक गया।

बुद्ध कहते थे, ऐसी ही हालत मनुष्य की है। मनुष्य-जीवन एक खुला दरवाजा है। और कितने बंद दरवाजों को टटोल-टटोल कर तुम मनुष्य हो पाए! कहीं छोटी-मोटी बातों में मत चूक जाना। सिर पर मक्खी बैठ गई और चूक गए! और ऐसी ही बातों में लोग चूक कर रहे हैं। कोई धन में अटक गया है; वह कोई सिर पर बैठी मक्खी से ज्यादा नहीं है मामला। कम भला हो ज्यादा तो नहीं है। कोई पद में चूका जा रहा है। कोई गरुर में अकड़ा हुआ है। छोटी-छोटी बातें, दो कौड़ी की बातें, जिनका कोई मूल्य नहीं।

समझो कि यह आदमी आ गया फिर नौ सौ निन्यानबे चक्कर लगा कर और कोई आदमी गाली दे दे उसको जब दरवाजा खुला उसके करीब आता हो; बस, क्रोध में भन्ना गया; उसी भन्नाने में निकल गया। फिर नौ सौ निन्यानबे दरवाजे, फिर लंबी यात्रा है। और कई तरह की अड़चनें आ सकती हैं। और लोग ऐसे मूढ़ हैं कि उनके लिए चूकना आसान, चूकने का अभ्यास पुराना है। इसलिए चूकना उनका स्वभाव हो गया है।

फिर सुबह आ गई। मनुष्य का जन्म भोर का क्षण है। अभी चाहो और जाग जाओ, तो सूरज से मिलन हो जाए। कहीं दिन को भी सोने में मत गंवा देना। रात सोने में गई, क्षमा किया जा सकता है। लेकिन दिन भी सोने में चला जाए तो अक्षम्य है।

- ओशो

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मैंने संन्यासियों सेवह सब कुछ ले लिया है जो उन्हें भिन्न बनाता है। मैंने उन्हें बता दिया है कि अब लाल वस्त्र पहनना आवश्य...
06/11/2023

मैंने
संन्यासियों से
वह सब कुछ ले लिया है
जो उन्हें भिन्न बनाता है।
मैंने उन्हें बता दिया है
कि
अब लाल वस्त्र पहनना आवश्यक नहीं है।

सभी रंग हमारे हैं।

मेरे फोटो वाली
माला पहनने की
आवश्यकता नहीं है,
क्योंकि
मैं कोई उद्धारक,
मसीहा या पैंगबर नहीं हूं।

मेरे पास तुम्हें देने को परमात्मा नहीं है,
मैं केवल तुम्हें स्वयं को
जानने का विज्ञान दे सकता हूं।

अतः
तुम्हें सिर्फ समझना होगा
कि मैं केवल एक मित्र हूं,
उससे अधिक कुछ नहीं।

मैं तुममें से एक हूं,
इसलिए किसी
पूजा की आवश्यकता नहीं है
और अपने को
किसी समूह का हिस्सा समझने की
जरूरत नहीं है।

तुम सभी
वैयक्तिक इकाई हो।

आचार्य श्री रजनीश
The Last Testament, भाग 3, प्रवचन 14

23/10/2023

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