Fellows of Philosophy

Fellows of Philosophy subject like Ethics ,Logic,Psychology etc. are part of Philosophy and these are roots of our education system or social tree.

I invite all my friends and colleagues to have discussions on Philosophical ideas and Yogic Healing.Joine Every Day Yoga Programe - Introduction of Meditation and Yogic Management. Fellowship with Philosophy is a way of Wisdom!

06/01/2024

!ध्यान तत्व विमर्श!

स्थूल भौतिक शरीर का आवरण ज्ञान और विज्ञान के साधन प्रदान करता है। इसका आशय यह है कि सर्वाधिक अज्ञानता के कारक तत्व स्थूल भौतिक जगत में विद्यमान है। इस प्रकार जैविक संसार ज्ञान और अज्ञान से मिश्रित है। ध्यान ज्ञान का ही पर्याय है। जैसे-जैसे भौतिक शरीर के ज्ञान में वृद्धि होती है क्रिया योग पूर्वक शारीरिक प्रवृत्तियों का ज्ञान प्राणिक शक्ति में वृद्धि करता है। परिणाम स्वरूप जीव का अज्ञानता पर अधिकार बढ़ जाता है और ज्ञान का उदय होता है। अतः ध्यान से निर्मित एकाग्रता, जड़ से चेतन की दिशा में प्रगति का पर्याय है।

सादर आभार एवं अभिनंदन!

डॉ. देवेंद्र जाटव
योग विशेषज्ञ
महाकौशल विश्वविद्यालय जबलपुर मध्य प्रदेश
🙏🙏🙏🙏🙏

01/01/2024

!ध्यान तत्व विमर्श!

नव्य एवं समयअनुकूल संकल्प नवीनता का भाव प्रदान करते हैं। अकर्मण्यता तथा निष्काम भावना के द्वंद से ध्यानआत्मक विधि द्वारा बाहर निकाला जा सकता है। किसी कार्य को किया ही ना जाए ऐसी निष्कर्मनता की भावना संकल्प या लक्ष्य पूर्ति में बाधक है जबकि निष्काम भावना से किया गया कार्य संकल्प को पूर्णता प्रदान करता है। मन का साक्षी स्वरूप हमें सदैव कार्य कुशलता के लिए प्रेरित करता है। अतः प्रत्येक कर्म में संकल्प पूर्ण विधि से साक्षी स्वरूप का किया गया ध्यान हमें भौतिक तथा आध्यात्मिक प्रगति प्रदान करता है।

समस्त गणमान्य पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित विनम्र प्रणाम!!!!!

सादर आभार एवं अभिनंदन!

डॉ. देवेंद्र जाटव
योग विशेषज्ञ
महाकौशल विश्वविद्यालय जबलपुर मध्य प्रदेश

22/12/2023

!! ध्यान तत्व विमर्श !!

अभिव्यक्ति रेचन का उपयुक्त माध्यम है। जैसे श्वास को बाहर छोड़ना रेचन कहलाता है। उत्सर्जन प्रणाली रेचन के लिए उत्तरदाई है। इसका कार्य अपशिष्ट को शरीर से बाहर करना है। मानसिक प्रकृति के विकृत होने पर मनोविकार उत्पन्न होते हैं। विपश्यना पूर्वक स्थिर होकर ध्यान मुद्रा में बैठने से मनोवृतियों के दोष स्पष्ट दिखने लगते हैं। अतः ध्यान द्वारा मनोविकारों पर नियंत्रण सहज हो जाता है।


सादर आभार एवं अभिनंदन!

डॉ देवेंद्र जाटव
योग विशेषज्ञ

प्रत्येक सुबह 6:30 बजे योग एवं ध्यान का अभ्यास करें। अभ्यास हेतु लिंक है-
https://meet.google.com/thy-jauz-bpo

योग विज्ञान विभाग महाकौशल विश्वविद्यालय द्वारा जनहित में संचालित!

सादर धन्यवाद!!!!!
🙏🌷🙏🌹🙏

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20/12/2023

!! ध्यान तत्व विमर्श !!

प्राणिक श्वास का आवागमन अनियंत्रित होने पर रोगों का स्वरूप धारण करते हैं जबकि नियंत्रित स्थिति में मानों योग रसायन निर्मित करते हैं। इस प्रकार शरीर की स्थिति तथा स्वरूप में पूर्ण स्थिरता का आभास एवं जैविक प्राण वायु का संचार मानसिक एकाग्रता के साथ मिश्रित होकर सर्व औषधी का कार्य करता है जिससे निरोगी काया एवं शांत चित् का निर्माण होता है। अतः शारीरिक स्थिरता पूर्वक प्राणिक संचार पर ध्यान आत्मक एकाग्रता का अभ्यास पूर्वक नियंत्रण पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करता है।

सादर आभार एवं अभिनंदन!

डॉ देवेंद्र जाटव
योग विशेषज्ञ

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18/12/2023

!! ध्यान तत्व विमर्श !!

मनुष्य का शरीर निश्चित रूप से एक जटिल संरचना है। आधुनिक विज्ञान शरीर को प्रणालियों में विभक्त करके अध्ययन करता है; जबकि भारतीय विद्वानों द्वारा यह अध्ययन कोष में विभक्त है, अर्थात भारतीय दृष्टि स्थूल एवं सूक्ष्म में शरीर को विभक्त करती है। इस प्रकार शारीरिक चेतना, मानसिक चेतना, आध्यात्मिक चेतना एवं सामाजिक चेतना जैसे शब्दों की पुष्टि होती है। उपर्युक्त चेतना का विभाजन स्वस्थवृत्त का निर्माण करता है। उक्त चेतन श्रेणियां एकाग्रता के अभाव में तनाव उत्पन्न करती हैं । अतः ध्यान के अभ्यास से प्राप्त एकाग्रता शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक चेतना में समन्वय स्थापित करती है।

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16/12/2023

!! ध्यान तत्व विमर्श !!

शब्द, ध्वनि एवं मंत्र चेतन को स्पर्श करने के शुभ साधन है। यही कारण है की आध्यात्मिक क्षेत्र में वाणी संयम पर विशेष बल दिया जाता है। ऊर्जा की क्षति या संचय शब्द के प्रयोग से निर्धारित होता है। शब्द प्रणव के रूप में आंतरिक आनंद का उद्घाटन करते हैं। प्रणव या ओमनाद के अतिरिक्त अन्य मंत्र भी संकल्प की शक्ति को दृढ़ करने में सहायक होते हैं। मंत्रयोग लययोग एवं नादयोग में ध्यान का विशेष महत्व है। इस प्रकार पंचमहाभूतों में आकाश तत्व या शब्द की साधना ध्यान के माध्यम से साध्य के रूप में सिद्ध होती है।

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15/12/2023

!! ध्यान तत्व विमर्श!!

शब्द, रूप, रस, गंध एवं स्पर्श जैसी तनमात्राएं इंद्रियों को विषय प्रदान करती हैं। चित् की वृत्तियो के निरोध का आशय मन से है जबकि मन की संरचना मात्र विषयों से निर्मित होती है। इस प्रकार एक मात्र मन पर नियंत्रण कर लेने मात्र से इंद्रियों के विषय नियंत्रित हो जाते हैं। इसके लिए बुद्धि अथवा विचार या विज्ञान सहित प्रज्ञा आवश्यक है। मन की संक्रिया विचार तथा बुद्धि की संक्रिया विवेक है और उनके समन्वय को प्रज्ञा कहते हैं जिसके संधान के लिए ध्यान की आवश्यकता होती है। अतः ध्यान का अभ्यास आंतरिक प्रबंधन द्वारा व्यवहार कुशलता तथा आध्यात्मिक विकास में सहायक है।

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डॉ देवेंद्र जाटव
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09/12/2023

!! ध्यान तत्व विमर्श !!

मन की चंचलता और बुद्धि की द्वंद वृत्ति, बाधा एवं समाधान दोनों में सहायक है। अनियंत्रित मन - बुद्धि बाधा की प्रकृति को प्रकट करते है जबकि नियंत्रित मन एवं बुद्धि समाधान प्रदान करते हैं। धारणा, ध्यान, समाधि मूलत: समाधान के परिचायक है। अतः बाहरी एवं भीतरी प्रबंधन के लिए ध्यान एक औषधि हो सकती है। मन समस्त जैविक रसायनों का मूल स्रोत है जबकि बुद्धि में प्रबंधन की कुशलता है। इससे भी यह ज्ञात होता है कि मन एवं बुद्धि का प्रबंधन अति आवश्यक है। इस प्रकार ध्यान की शक्ति से असाधारण कौशल विकसित होता है।

सादर आभार एवं अभिनंदन!

डॉ देवेंद्र जाटव
योग विशेषज्ञ
महाकौशल विश्वविद्यालय जबलपुर मध्य प्रदेश

05/12/2023

!! ध्यान तत्व विमर्श !!

वाणी संयम भी ध्यानत्मक विभूति का एक मार्ग है। वाणी में शब्द एवं प्राणवायु; चेतना का प्रवाह होता है। ध्यान के साधक वाणी का प्रयोग वैसे ही करते हैं जैसे व्यापारी धन का प्रयोग करता है। शब्द का संयमित आचरण संकल्प को भी आधार प्रदान करता है। वाणी संयम का एक अन्य आशय मौन भी है। इस प्रकार वाणी संयम; ऊर्जाक्षय एवं संयम के मध्य संघर्ष को भी दर्शाता है। द्वेष, घृणा एवं क्रोध ऊर्जाक्षय के सर्वाधिक प्रचलित उदाहरण है। इनसे करुणा के विपरीत आचरण होता है और प्रज्ञाबल नष्ट हो जाता है। अतः मौन या ध्यान के प्रयोग समतुल्य होते हैं।

सादर आभार एवं अभिनंदन!

डॉ देवेंद्र जाटव
योग विशेषज्ञ
महाकौशल विश्वविद्यालय जबलपुर मध्य प्रदेश

04/12/2023

!! ध्यान तत्व विमर्श !!

चित् की एकाग्रता से विक्षिप्त चित् का निदान होता है। मन में स्थित गुण दोष सदैव उनके निग्रह के उपरांत नियंत्रित होते हैं। इस प्रकार एकादश इंद्रियों का बाहरी एवं आभ्यंतर सजग सहज ध्यान द्वारा क्रिया योग पूर्वक अनुसंधान करने से उनके विषय नियंत्रित हो जाते हैं। अतः निरंतर ध्यानात्मक सजकता का अभ्यास अभ्यासी को एकाग्रता प्रदान करने में सहायक सिद्ध होता है।

सादर आभार एवं अभिनंदन!

डॉ देवेंद्र जाटव
योग विशेषज्ञ
महाकौशल विश्वविद्यालय जबलपुर मध्य प्रदेश

03/12/2023

!! ध्यान तत्व विमर्श !!

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश समस्त पांच महाभूतों में प्रकृति अणु एवं परमाणु के रूप में विभाजित पाई जाती है। स्थूल एवं सूक्ष्म शरीर को पंचमहाभूत आवरण प्रदान करते हैं। काया और छाया के इस अतःसंबंध में सुख और दुख का निवास होता है। उपरोक्त बंधन का निराकरण या निदान ध्यान से संभव है। भौतिक तत्वों का स्वरूप ध्यान अर्थात भौतिक तत्वों के विषयों के प्रति सजगता समस्त सांसारिक बंधनों से परिचय कराती है। स्थितप्रज्ञ चित् के अनुसंधान से यह सहज प्राप्त हो जाता है। अतः भौतिक विषयों का सूक्ष्म आध्यात्मिक विश्लेषण गुरु सानिध्य में प्राप्त कर ध्यान लाभ प्राप्त करना चाहिए।

सादर आभार एवं अभिनंदन!

डॉ देवेंद्र जाटव
योग विशेषज्ञ
महाकौशल विश्वविद्यालय जबलपुर मध्य प्रदेश

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