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⛔ टैटू बनाने में एक ही निडल कई लोगों में इस्तेमाल होती है इनमें से किसी को एड्स हुआ तो तो बाद में वो सबको हो सकता है।ऐसे...
12/11/2024

⛔ टैटू बनाने में एक ही निडल कई लोगों में इस्तेमाल होती है इनमें से किसी को एड्स हुआ तो तो बाद में वो सबको हो सकता है।
ऐसे में टैटू ना बनवाएं या फिर ऐसी जगह बनवाएं जो एक आदमी में एक निडल का इस्तेमाल करता हो लेकिन ऐसा होता नहीं है।

12/11/2024

*एड़ी के दर्द में अग्निकर्म से तुरंत लाभ*

एड़ी में दर्द को आयुर्वेद में पार्ष्णिशूल कहा जाता है। ये एक आम समस्‍या है जिसमें एड़ी की हड्डी में तेज दर्द उठता है। कुछ गंभीर मामलों में एड़ी के दर्द की वजह से खड़े होने या चलने में दिक्‍कत आती है। एड़ी में दर्द कई कारणों से हो सकता है जैसे कि एड़ी पर अत्‍यधिक दबाव पड़ने, गलत फुटवियर पहनने और ऊबड़-खाबड़ जमीन पर नंगे पैर चलने से। हालांकि, इसका संबंध ऊंची एड़ी के जूतों और प्लान्टर फेशिया (plantar fascia: ऊतक की एक सपाट पट्टी जो एड़ी की हड्डी को पैर के अंगूठे से जोड़ती है) से भी इसका संबंध होता है।

पार्ष्णिशूल के इलाज की आयुवेर्दिक प्रक्रियाओं में अभ्‍यंग (तेल मालिश), स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि), विरेचन (दस्‍त की विधि), बस्‍ती (एनिमा), रक्‍तमोक्षण (खून निकालने की विधि), लेप (प्रभावित हिस्‍से पर लेप लगाने की विधि) और अग्‍नि कर्म (धातु से प्रभावित हिस्‍से को जलाना) शामिल हैं। एड़ी के दर्द के इलाज के लिए कुछ जड़ी बूटियों और औषधियों जैसे कि चित्रक, रसना, अरंडी, योगराज गुग्‍गुल एवं दशमूलारिष्‍ट का इस्‍तेमाल किया जाता है।
अग्निकर्म से एड़ी दर्द से तुरंत राहत मिलती है.

अग्निकर्म से उपचार करने पर मरीज़ को कोई दर्द महसूस नहीं होता.

अग्निकर्म से उपचार के लिए एक से तीन विज़िट की ज़रूरत होती है.

अग्निकर्म से उपचार के लिए एलोपैथी की दवाओं या इंजेक्शन की ज़रूरत नहीं होती.

अग्निकर्म से स्थानीय वात और कफ़ दोष संतुलित होते हैं.

अग्निकर्म से तीव्र या पुराने दर्द से तत्काल, दीर्घकालिक, और स्थायी राहत मिलती है.

31/10/2024
02/08/2024

सभी से निवेदन हैं की इस रूटीन को फॉलो करें ।
आज सबसे ज्यादा बीमारियों का कारण सही समय पर भोजन नही करने व सही खानपान का प्रयोग न करने से हो रही हैं।

04/07/2024
भारतीय प्राचीन गुरुकुल या ग्रामीण जीवन--- या शहर/ city का जीवन तय आपको करना है                                          ...
02/01/2024

भारतीय प्राचीन गुरुकुल या ग्रामीण जीवन--- या शहर/ city का जीवन तय आपको करना है

आज दो जनवरी के दैनिक भास्कर में न्यूजीलैंड के एक विशेष विद्यालय के बारे में पढा। नेचर विद्यालय नाम दिया गया है, प्रकृति की गोद में रहकर बच्चों की शिक्षा व उनके व्यक्तिगत का विकास साथ मे वो आनंद वो गाँवो के अलावा आपको कही नही मिलेगा। प्रकर्ति के सानिध्य में नैसर्गिक विकास । क्रिया आधारित गतिविधियां भी होगी । उनकी चिंतन दृष्टि के आधार पर लिखा है कि मिट्टी और पानी से कीचड़ से भी बच्चे खेलेंगे, सीखेंगे। मनुष्य का शरीर पंच महाभूतों से मिलकर बना है मिट्टी पानी अग्नि हवा आकाश और इस पंचभौतिक शरीर के विकास के लिए ये पांचो महाभूत आपको शुद्ध व सात्विक रूप में ग्रामीण क्षेत्र में ही मिलेंगे ।

नेट पर सर्च करने पर ऐसे और भी बहुत सारे विकल्प प्रयोग सामने आए । कहीं पर फॉरेस्ट स्कूलिंग नाम दिया गया है कहीं पर नेचर स्कूलिंग ,जंगल विद्यालय । अत्यंत प्राचीन काल से भारत में शिक्षा का जो मॉडल था ,वह यही तो था, गुरुकुल पद्धति ।

प्रकृति के सानिध्य में रहकर अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने की हमारी अपनी शिक्षा पद्धति। घूम फिर कर दुनिया उस ओर आने लगी है । इस और आना ही पड़ेगा। इसी से जीवन सुरक्षित और संरक्षित रहेगा। इसी से पर्यावरण संरक्षण होगा, इसी से कौशल विकास होगा ,बेरोजगारी मिटेगी। इसी से मानवता बचेगी। इस मार्ग पर चलकर ही जड़ चेतन चराचर जगत का स्थायित्व बचा रहेगा।

हम खुद भी उन रोगियों को जिनको किसी भी तरह की एलर्जी रोग हो चाहे वो त्वचा से सम्बंधित हो या श्वास से संबंधित हो या कोई खाने पीने की चीज़ से हो हम उनको ग्रामीण परिवेश में समय बिताने को बोलते हैं और बच्चों के लिये तो ये वरदान है कि वो मिट्टी , पानी मे खेले।

30/12/2023

*बीपी / हाइपरटेंशन*

बीपी के इन चार नवघोषित रोगियों पर आप ज़रा गौर कीजिए:

एक रोगी है, जिसकी दिनचर्या बहुत अनियमित है, वह अपने खान-पान का ख्याल नहीं रखता और ना ही वह चलता-फिरता है। उसकी इस खराब दिनचर्या के परिणाम में उसे बीपी की समस्या हो जाती है।

दूसरा रोगी है, जिसको हर महीने कोर्ट में पेशी पर जाना होता है क्योंकि उसे एक झूठे केस में फंसा दिया गया है। तारीखों के डर के कारण उसके रक्त वह बढ़े हुए बीपी का रोगी बन गया।

तीसरी रोगी है, जिसके पति युवावस्था में ही एक एक रोड़ एक्सीडेंट में गुज़र गए, जिसके सदमे की वजह से उसे बीपी की समस्या हो गई।

चौथा रोगी है, जिसे जोड़ों का दर्द ठीक करने के लिए डॉक्टर ने लंबे समय तक स्टेरॉइड और पैनकिलर्स दिए जिससे उसे बीपी की समस्या हो गई।

इन चारों रोगियों को देखकर आपको क्या लगता है, इन्हें बीपी की समस्या क्यों हुई? और सामान्य ज्ञान से विचार करके आप मुझे यह बताइए कि क्या इन्हें एक जैसा उपचार दिया जाना चाहिए? क्या सभी रोगियों को एक ही दवाई दी जानी चाहिए? आप यह निश्चित रूप से सोच रहे होंगे कि इन चारों लोगों को अलग-अलग कारणों से बीपी की समस्या हुई है जिसके कारण उनके चिकित्सकों को इनका इलाज भी अलग-अलग तरह से करना चाहिए। जैसे जो रोगी अनियमित दिनचर्या के कारण बीपी का रोगी बना है उसकी दिनचर्या को ठीक किया जाना चाहिए, जो रोगी डर के कारण बीपी का रोगी बना है उसके डर का निदान किया जाना चाहिए, जो रोगी अपने परिजन के दुनिया से असमय जाने के कारण सदमे में है उसकी काउंसलिंग की जाना चाहिए, जो रोगी दवाओं के साइड इफेक्ट की वजह से बीपी की समस्या का शिकार हुआ है उसे उन दवाओं से दूर रखकर और उन दवाओं के असर को खत्म करने का इलाज करना चाहिए।

लेकिन दुर्भाग्य से आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञ ऐसा नहीं करते और ऐसा करने में वे ज़्यादा दिलचस्पी भी नहीं रखते। वे सभी को एक ही जैसी दवाई देना शुरू कर देते हैं। उन्हें कारण से मतलब नहीं है, उन्हें बस क्षणिक परिणाम देना है, आपके ब्लड प्रेशर को कुछ घंटों के लिए सामान्य दिखाना। जब यह कुछ घंटों बाद बढ़ने लगे तो फिर एक गोली खा लो। कब तक? ज़िंदगी भर तक! यह कैसा उपचार हुआ भाई? यह तो चिकित्सा के मूल सिद्धांत से विपरीत है। लेकिन यही हो रहा है! ऐसे ही इलाज किया जा रहा है और ऐसे ही इलाज करवाया जा रहा है।

आप क्या करें? अगर आपको बीपी की समस्या डायग्नोस हो तो सबसे पहले कारणों को पता करें कि आपको यह क्यों हुई? उन कारणों को दूर कीजिए। फिर कोई बहुत इमरजेंसी कंडीशन नहीं हो तो आयुर्वेद उपचार लें। मेरा अनुभव है कि बीपी की समस्या की शुरुआत में ही आयुर्वेदिक उपचार ले लिया जाए तो अधिकांश रोगियों को जीवनभर दवाई खाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।..

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