Ananda Marga Pracaraka Samgha Jaipur Bhukti

Ananda Marga Pracaraka Samgha Jaipur Bhukti "Self realisation and Service to all"

21/10/2025
" बाबा नाम केवलम् -  एक महामंत्र "8 अक्तूबर 1970 को श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने मानवता ही नहीं जीव मात्र पर अनुग्रह कर च...
07/10/2025

" बाबा नाम केवलम् - एक महामंत्र "

8 अक्तूबर 1970 को श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने मानवता ही नहीं जीव मात्र पर अनुग्रह कर चन्द चयनित साधकों के मध्य वन विभाग के आम झरिया ( झारखंड ) विश्राम गृह में ' बाबा नाम केवलम् ' के अष्टाक्षर मंत्र देकर आध्यात्मिकता के क्षेत्र में एक विप्लव की दुदुंभी का उद्घोष किया। इसने छोटे-बडे, गरीब-अमीर, विद्वान-अनपढ़ आदि सबके लिए मुक्ति का द्वार कृष्ण के ब्रज भाव के माध्यम से खोल दिया। इस महामंत्र के विषय में बाबा आनन्दमूर्ति जी ने स्वयं कहा :-

एक बार बाबा नाम केवलम्
यतो पाप हरे,
पापी देर साध्य नाईं
ततो पाप करे।

इस महामंत्र के द्वारा निष्ठा से किये गए कीर्तन की तुलना गंगा स्नान से की गई है।

जब प्रारंभ में यह महामंत्र दिया गया तब इसकी महत्ता न समझ कर दिखावटी साधक कहने लगे ये तो बाबा ने हिरण्यकश्यप की तरह कर दिया जिसने अपने राज्य में घोषणा की थी कि विष्णु की पूजा न करके उसकी पूजा की जाए। इसी तरह आनन्दमूर्ति जी ने केवल बाबा नाम को कहा। इस संदर्भ में उन लोगों ने वास्तविक अर्थ पर ध्यान नहीं दिया।

बाबा शब्द प्राचीन संस्कृत के बप्र शब्द से निकला है जिसका अर्थ है प्यारा अर्थात प्रिय। वो प्रिय कौन है ? पुत्र-पुत्री के लिए माता-पिता, शिष्य के लिए गुरु, भक्त के लिए भगवान........। इस संदर्भ में बाबा ने आगे कहा," जैसे पुत्र-पुत्री के लिए प्यारे माता-पिता हैं, शिष्य के लिए गुरु, भक्त के लिए भगवान प्यारे हैं। वैसे ही माता-पिता के लिए पुत्र-पुत्री, गुरु के लिए शिष्य, भगवान के लिए भक्त प्यारा है। इस तरह जब पुत्र-पुत्री, शिष्य, भक्त आदि अपने प्यारे के लिए " बाबा नाम केवलम् " महामंत्र से कीर्तन करेगा, उसी तरह उनके लिए भी माता- पिता,गुरु, भगवान आदि से भी उसी भाव में कीर्तन का सतत " बाबा नाम केवलम्" का जाप चलेगा क्योंकि दोनों एक दूसरे के बाबा अर्थात प्रिय हैं और सबके सर्वोत्तम प्रिय अर्थात बाबा हैं परम पुरुष जैसे चंद्रमा सबके मामा हैं।

इस महामंत्र का नियमित निष्ठापूर्वक ललित नृत्य के साथ जाप अथवा कीर्तन करने के कई लाभ हैं, परंतु मुख्यतया निम्नलिखित हैं :-

1) साधना सहायकम :- साधना से पहले इस महामंत्र का निष्ठा के साथ विधिवत कीर्तन किया जाए तब साधना में तीव्रगति आती है।इस संदर्भ में बाबा ने कहा है" यदि तुम्हारे पास साधना के लिए आधा घंटा है तो 20 मिनट कीर्तन 10 मिनट साधना करो।

2)आनन्ददायकम :- कीर्तन द्वारा मन इतना सूक्ष्म हो जाता है कि मन आनन्द सागर में गोते खाने लगता है।बाबा ने तो इसे वास्तविक गंगा स्नान बतलाया है।

3) बाधा विदुरकम :- किसी भी किस्म की बाधा हो चाहे भौतिक, मानसिक व आध्यात्मिक स्तर की वो कीर्तन के द्वारा दूर हो जाती है। इससे भी बढकर प्राकृतिक आपदाओं मे भी यह अति सहायक है।

4) यह अष्टाक्षर महामंत्र का कीर्तन ऋणात्मक अणुजीवत के नियंत्रण में भी सहायक है तथा घनात्मक अणुजीवत को सुदृढ़ करता है। ऋणात्मक अणुजीवत व अविद्या तांत्रिकों द्वारा खडी की गई प्रेत बाधा इत्यादि को भी निवारण करने की इसमें सामर्थ्य है।

5) मुक्तिमोक्षदायकम :- साधना की गति बढाने के कारण यह साधक के मुक्ति मोक्ष के द्वार स्वयं खोल देता है।

6) इसके अतिरिक्त ललित नृत्य स्वयं मे एक शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक ( जिसे जब सदाशिव ने तांडव दिया था तब पार्वती जी ने ल़लित मार्मिक नृत्य दिया था। इससे ही ताल शब्द निकला है।) व्यायाम है। जो प्रत्येक किस्म की व्याधियों ग्रंथि स्रावण के द्वारा दूर करने मे सहायक है।

बाबा के अनुग्रह की 55वी जयंती के अवसर पर आप सबको शुभकामनाएं । बाबा की कृपावर्षा सम्पूर्ण सृष्टि पर सदैव होती रहे।

कीर्तन दिवस के अवसर पर जयपुर में अष्टाक्षरी सिद्ध महामंत्र बाबा नाम केवलम का 9 घंटे का अखंड कीर्तन आयोजित किया जा रहा है।

🌷* बाबा नाम केवलम् *🌷

05/10/2025

Devotional Akhand Kirtan of Ashtakshari Siddha Mahamantra "Baba Nam Kevalam" by Hari Parimandal Goshti at Madhu Prasun Ananda Marga Ashram Jaipur on 5th October.

02/10/2025

(विजयादशमी पर विशेष)

यथार्थ विजयोत्सव कब?
प्राचीन संस्कृत शब्दकोष में वर्ष में छ: ऋतुओं का उल्लेख हैं- ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमन्त, शीत और बसन्त। किन्तु, भारत में अनेक स्थानों, विशेष कर समुद्रतटीय स्थानों और पूर्वी भारत में चार ऋतुएँ ही मुख्य हैं। ये हैं- ग्रीष्म, वर्षा, शरद और शीत। बंगाल में शीत ऋतु समाप्त होते-होते गर्मी शुरु हो जाती है। इसलिए बसन्त ऋतु यहाँ पन्द्रह दिन के लिए भी स्थायी नहीं रहती और हेमन्त तो शीत का अंग है।

मनुष्य जब अपने अधिकार की प्रतिष्ठा के लिए संग्राम करता है तब वह सबसे अधिक उपयुक्त समय चुन लेता है। शरद काल में बंगाल में 'आमन' धान (धान की एक जाति) कट जाती है, सब कोई जान जाते हैं कि इस साल आमन धान की फसल कैसी होगी। यहाँ पर स्मरणीय है कि पहले बंगाल में धान ही प्रमुख फसल थी, गेहुँ या रबी फसल कम होती थी। प्रकृति भी इस समय अपने उपयुक्त साज से सज उठती है, नदियों में पानी भरा रहता है, काश-शिउली इत्यादि विभिन्न प्रकार के फूल भी खिल उठते हैं। ये फूल बंगाल के अपने प्राचीन फूल हैं, जैसे वटवृक्ष भी बंगाल का अपना है। बंगाल ही इन सब का मूल निवास है। तो सभी तरह से प्रकृति थालियां सजाकर मनुष्य की आरती उतारती है और कहती है यही तुम्हारा सबसे अच्छा समय है।

मनुष्य का संग्राम सार्वभौमिक होता है। अर्थात् जीवन के सभी क्षेत्रों में संग्राम करते हुए आगे बढ़ना पड़ता है। कहना नहीं होगा कि परमपुरुष, मनुष्य को हमेशा प्राणरस तथा प्राणशक्ति देते हैं। यद्यपि सांख्य दर्शन के बहु पुरुष या जन्य-ईश्वर वैसे नहीं हैं, वे निष्क्रिय साक्षी सत्ता मात्र हैं और इस ईश्वर का कोई प्रयोजन मनुष्य" के लिए नहीं है। परन्तु असल में परमपुरुष या पुरुषोत्तम से ही मनुष्य को सार्वभौमिक संग्राम की प्रेरणा मिलती है।

मनुष्य संग्राम करता है प्रतिद्वन्द्वी शक्ति के ऊपर अपने को प्रतिष्ठित करने के लिए। इसी को कहा जाता है जय, और यह जय जब स्थायी होती है तब कहेंगे विजय। विजयादशमी का यह जो उत्सव है यह है 'विजयोत्सव'। 'उत्सव' शब्द आया है उत् सू+अल से। 'सू' धातु में अल् प्रत्यय लगाने से 'सव' बना है जिसका अर्थ है जन्म ग्रहण करना, और उत् का अर्थ है उच्छलित होकर अर्थात् मनुष्य जब कूदकर, प्राण की उच्छलता से नये जीवन का आस्वादन करता है उसी को कहेंगे 'उत्सव'।

अब हमलोग यदि गहराई से देखें तो इस उत्सव को विजयोत्सव का नकाब ही कह सकते हैं. विजयोत्सव नहीं। विजयोत्सव की प्रतीक्षा में हमलोग असह्य व्यग्रता लेकर बैठे हुए हैं। समग्र पीड़ित मानवात्मा गम्भीर व्यग्रता के साथ बैठी हुई है कि कब उनके सामूहिक जीवन का विजयोत्सव मनाया जायेगा। हम तो हर साल केवल इसका नकाब ही देखते आए हैं।

मनुष्य का शत्रु कौन है किसके विरूद्ध संग्राम करके विजयोत्सव मनाना होगा? मनुष्य के अपने मन के भीतर अष्टपाश और षडरिपु हैं इन अन्तर्निहित शत्रुओं के विरूद्ध संग्राम के लिए मनुष्य को सारा जीवन आध्यात्मिक साधना करते जाना होगा। यही हुआ मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में शत्रु के विरूद्ध संग्राम। मनुष्य जिस दिन साधना में सिद्ध होगा उस दिन होगा उसके मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में विजयोत्सव।

परन्तु मनुष्य समाज बद्ध जीव है जो मनुष्य, मनुष्य की संगति नहीं चाहता है वह मनुष्य नहीं है। मनुष्य मनुष्यों के बीच रह कर उसकी सेवा करता जायेगा, उसका कल्याण करता जायेगा, मिलजुल कर बड़ा बड़ा काम करता जायेगा, यही यथोचित है। सामाजिक जीवन में मनुष्य का शत्रु वही है जो मनुष्य की शांति के घर में आग लगाना चाहता है, जो उसका घर तोड़ना चाहता है, जो मनुष्य को भूखे प्यासे रखकर, पीड़ा देकर लांछित कर पशु के स्तर में गिराना चाहता है उनके विरूद्ध संग्राम करना होगा। जिस नियम या दुर्नियम के द्वारा इन समाज द्रोहियों को उत्साह मिलता है वह नियम नीति भी मनुष्य का दुश्मन है।

इसलिए यथार्थ विजयोत्सव का पालन मानव समाज तभी करेगा जब मनुष्य के इन सामाजिक शत्रुओं का पतन होगा और ये शक्तियाँ आवाज बुलन्द नहीं करेगी। इसीलिए इस विजयोत्सव को मैं विजयोत्सव का नकाब कहता हूँ। इस विजयोत्सव में तुम लोग व्यष्टिगत रूप से अर्थात् मन-ही-मन और समष्टिगत रूप से अर्थात् जोर-जोर से कहते हुए यही व्रत लो कि जो मानवता का शत्रु है उसके विरूद्ध सीमाहीन संग्राम चलाकर एक दिन वास्तविक रूप में विजयोत्सव का पालन करेंगे। विजयोत्सव का नकाब तो बहुत दिनों से देखते आये हैं अब यथार्थ विजयोत्सव मनाना चाहिए।

यह आनन्द वचनामृतम् खण्ड-28 का है।
श्रीश्रीआनन्दमूर्तिजी

14/09/2025
07/09/2025

Kaushiki Dance Performance by Girls of Ananda Marga Children's home, Malviya Nagar, Jaipur.

Namaskar,Happy Kaushiki Divas ! Kaushiki Day was celebrated in Jaipur by teaching Kaushiki Dance to the school going chi...
06/09/2025

Namaskar,

Happy Kaushiki Divas !

Kaushiki Day was celebrated in Jaipur by teaching Kaushiki Dance to the school going children especially girls children by Avdhutika Ananda Nirbha Acharya and Supriya Acharya Didi.

Certificates were distributed to participants.

Importance of the dance was also taught to the students.

Please find below the glimpses.

सभी को नमस्कार, कल, ५ सितंबर २०२५ को टोडाभीम में एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें सत्य प्रकाश ...
06/09/2025

सभी को नमस्कार,
कल, ५ सितंबर २०२५ को टोडाभीम में एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें सत्य प्रकाश और गौरवी का विवाह आनंद मार्ग विवाह प्रणाली के अनुसार संपन्न हुआ।

यह विवाह आनंद मार्ग चर्चाचर्य के अनुरूप था. आनंद मार्ग विवाह पद्धति जो कि जाति पाती विहीन, दहेज मुक्त, कर्मकांड रहित और दोनों पक्षों की स्वतंत्र सहमति पर आधारित होती है। इस प्रणाली में विवाह को केवल शारीरिक या सामाजिक बंधन नहीं, बल्कि आत्मिक विकास की यात्रा के रूप में देखा जाता है, जहां दंपत्ति एक-दूसरे के साथ-साथ समाज की सेवा में समर्पित होते हैं।

यह विवाह आचार्य रामफूल जी और अवधूतिका आनंद निर्भा आचार्या द्वारा संपन्न कराया गया। आचार्य रामफूल जी आनंद मार्ग के गृही आचार्य हैं, जिनकी गहन आध्यात्मिक साधना, मार्गदर्शन एवं समाज सेवा की प्रसिद्धि है। वहीं, अवधूतिका आनंद निर्भा आचार्या महिलाओं के आध्यात्मिक विकास और सामाजिक उत्थान में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। उनके द्वारा किए गए मंत्रोच्चारण, कीर्तन और आशीर्वाद ने समारोह को और अधिक दिव्य बना दिया। विवाह की रस्में सरल लेकिन गहन थीं, जिसमें नवदंपत्ति ने समाज के साक्षीत्व में एक-दूसरे के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए शपथ ली तथा उपस्थित समाज बन्धुओं ने नवदम्पति के सर्वात्मक उन्नति में सहायक होने की शपथ ली।
विवाह से पूर्व, ३ घंटे का अखंड कीर्तन आयोजित किया गया, जो आनंद मार्ग की परंपरा का अभिन्न अंग है। अखंड कीर्तन में "बाबा नाम केवलम" मंत्र का अखंड भावपूर्ण गायन हुआ, जो उपस्थित सभी को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है। यह कीर्तन न केवल विवाह की पवित्रता बढ़ाता है, बल्कि सभी को प्रेम और भक्ति के भाव में बांधता है। कीर्तन के दौरान वातावरण इतना सकारात्मक और उत्साहपूर्ण था कि सभी उपस्थित मार्गी और अतिथि इसमें डूब गए।

इस समारोह में आचार्य सत्यश्रयानंद अवधूत सहित अनेक दादा-दीदी तथा ४० से अधिक मार्गी उपस्थित थे। आचार्य सत्यश्रयानंद अवधूत आनंद मार्ग के वरिष्ठ पुरोधा हैं, जिनकी उपस्थिति ने समारोह को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया। दादा ने उपस्थित जनसमूह को सम्बोधित किया तथा आनन्द मार्ग विवाह पद्धति की विशेषता के बारे में सबका ज्ञानवर्धन किया। मार्गी भाइयों-बहनों की बड़ी संख्या ने यह दर्शाया कि आनंद मार्ग परिवार कितना मजबूत और एकजुट है। सभी ने नवदंपत्ति को आशीर्वाद दिया और उनके सुखी वैवाहिक जीवन की कामना की।

यह विवाह न केवल दो व्यक्तियों का मिलन था, बल्कि आनंद मार्ग के आदर्श का जीवंत उदाहरण था, जो समाज को जातिभेद मुक्त, दहेज मुक्त तथा समानता आधारित विवाह की प्रेरणा देता है।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Happy Independence Day ! Today Anand Marga Primary School Rajni Vihar Jaipur celebrated the 79th Independence Day.Celebr...
15/08/2025

Happy Independence Day !

Today Anand Marga Primary School Rajni Vihar Jaipur celebrated the 79th Independence Day.

Celebration includes Flag hoisting, Cultural Program, Prize and Sweets Distribution, Motivational Speech by the guests.

Ac. Nirbhayananda Avt. (Regional Secretary - Ananda Marga Pracharak Samgha Jaipur Region) were also present.

Freedom fighters were remembered and emphasis on economic independence were given during the speech to build a prosperous and strong nation in all aspects.

आध्यात्म बिना शिक्षा अधूरी विषय पे चर्चा हुई

Please find the glimpses of the celebration below.

Address

Jaipur

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Ananda Marga Pracaraka Samgha Jaipur Bhukti posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share

Share on Facebook Share on Twitter Share on LinkedIn
Share on Pinterest Share on Reddit Share via Email
Share on WhatsApp Share on Instagram Share on Telegram