18/03/2023
क्या है ओसीडी
यह एक चिंता करने वाली बीमारी है, जिसमें पीड़ित शख्स किसी बात की जरूरत-से-ज्यादा चिंता करने लगता है। एक ही जैसे अनचाहे ख्याल उसे बार- बार आते हैं और एक ही काम को बार-बार दोहराना चाहता है। ऐसे लोगों को सनक वाले ख्याल आते हैं और अपने बिहेवियर पर कोई कंट्रोल नहीं होता। ऐसे मरीज न खुद को रोक पाते हैं, न ही बेफिक्र रह पाते हैं। जैसे कोर्इ सूर्इ पुराने रेकॉर्ड पर अटक जाती है, वैसे ही ओसीडी से दिमाग किसी एक ख्याल या काम पर अटक जाता है। मसलन, यह कन्फर्म करने के लिए कि गैस बंद है या नहीं, आप 20 बार स्टोव की नॉब चेक करते हैं। तब तक हाथ धोते रहते हैं, जब तक कि वह छिल न जाए या आप तब तक गाड़ी भगाते रहते हैं, जब तक कि आपको यह संतुष्टि न हो जाए कि जिस शख्स ने पीछे से हॉर्न दिया था, वह पीछा तो नहीं कर रहा।
आम तरह के ओसीडी
ओसीडी के ज्यादातर मरीज इनमें से किसी कैटिगरी में आते हैं :
- बार-बार सफार्इ करने वाले गंदगी से डरते हैं। उन्हें आमतौर पर सफार्इ और बार-बार हाथ धोने का कंपल्शन होता है।
- कुछ लोग बार-बार चीजों की जांच करते हैं (अवन बंद किया या नहीं, दरवाजा बंद किया या नहीं आदि)। उनके मन में इनके खतरे का डर होता है।
- शंकालु और पाप से डरने वाले लोग यह सोचते हैं कि अगर सब कुछ ठीक ढंग से नहीं हुआ तो कुछ बुरा हो जाएगा या वे सजा के भागी बन जाएंगे।
- गिनती करने वाले और चीजों को व्यवस्थित करने वाले क्रम और समानता से ऑब्सेस्ड होते हैं। उनमें से कुछ निश्चित संख्याओं, रंगों और अरेंजमेंट को लेकर अंधविश्वास हो सकता है।
ओसीडी का इलाज कौन करता है
ओसीडी का इलाज सायकायट्रिस्ट (मनोचिकित्सक) और क्लीनिकल सायकॉलजिस्ट (मनोविज्ञानी) करते है। किस अस्पताल में प्राइवेट के अलावा सभी बड़े सरकारी अस्पतालों में भी इसका इलाज होता है। दिल्ली सरकार का इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूइमन बिहेवियर एंड अलायड साइंसेज (इहबास) में हर तरह की मानसिक बीमारियों के इलाज की सुविधा है। इसके अलावा राम मनोहर लोहिया अस्पताल और एम्स में इसके लिए अलग से विभाग हैं। और भी कर्इ अस्पतालों में काउंसलिंग व इलाज हो सकता है। कितने दिन चल सकता हैइसके लिए कोर्इ लिमिट तय नहीं हो सकती। चूंकि इलाज का मकसद मरीज के बर्ताव में पॉजिटिव बदलाव लाना होता है, जिसमें उसकी अपनी कोशिश और परिवार के सदस्यों का सहयोग सबसे अहम होता है। ऐसा देखा गया है कि शुरूआती दौर में पता लग जाए तो छह-सात महीने की थेरपी में धीरे-धीरे समस्या कंट्रोल में आ जाती है। लेकिन कर्इ मामलों में कर्इ साल तक थेरपी की जरूरत पड़ती है। क्योंकि यह बीमारी कभी भी 100 पर्सेंट ठीक नहीं होती। इसे कंट्रोल में रखने के लिए लगातार कोशिश और सहयोग की जरूरत होती है।