वैद्य पंडित पुष्पराज त्रिपाठी

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लोग कहते हैं आयुर्वेद में बहुत महंगी औषधि होती हैं बहुत कीमती आती हैं तो ऐसा नहीं है भस्म औषधि, रसायन औषधि महंगी होती है...
20/07/2025

लोग कहते हैं आयुर्वेद में बहुत महंगी औषधि होती हैं बहुत कीमती आती हैं तो ऐसा नहीं है भस्म औषधि, रसायन औषधि महंगी होती हैं, लेकिन जो जड़ी-बूटियां होती है उनमें कुछ ऐसी भी जड़ी बूटियां होती हैं जो बहुत ही कम मूल्य में या कुछ तो बिना मूल्य भी मिल जाती है उनमें से एक औषधि है सफेद मूसली आपको क्या करना है सफेद मूसली बढ़िया 250 ग्राम लेकर कूट-पीसकर, छान लें। फिर इसे 2 किलो गाय के दूध में डालकर खोया बनाएँ। खोया बन जाने पर इसे 250 ग्राम घी में भून लें। ठण्डा होने पर आधा किलो बूरा शक्कर मिलाकर किसी थाली आदि में बर्फी की तरह जमा दें। 20-20 ग्राम प्रातः- सायं सेवन करें। अत्यन्त पौष्टिक और शक्तिवर्धक है, वीर्य को गाढ़ा करता है। शीघ्रपतन की समस्या को दूर करता है। यह आपके धातु को पुष्ट करेगा वीर्य को पुष्ट करेगा वीर्य के पतलेपन को दूर करेगा गाढ़ा करेगा। चिपचिपा पानी आने, स्वप्नदोष, धातुरोग की समस्याओं को ठीक करता है जिनको शीघ्रपतन की समस्या होती है उसको जड़ मूल से नष्ट कर देता है और आश्चर्य की बात है कि स्पर्म काउंट को भी बढ़ता है इतना सारा इसमें गुण है और लोग आयुर्वेद की कोई वैल्यू नहीं करते हैं कारण यह है की जानकारी का अभाव और कोई भी व्यक्ति है वह इस तरह की जो ज्ञानवर्धक जानकारी होती है ज्ञानवर्धक बातें हैं वह बताते नहीं है, तो जो अपना इलाज महंगी औषधियों से नहीं कर सकते उनके लिए यह रामबाण औषधि है शरीर को पुष्ट करती है वीर की गर्मी को मसाने की गर्मी को भी दूर करती है इस औषधि को आप बनाएं घर में इस्तेमाल करें और जरूरी नहीं है कि जो बीमार है वह इस्तेमाल करे। स्वस्थ व्यक्ति इसका सेवन करता है तो उसे आने वाले समय में ऐसी समस्याएं नहीं होगी और हमेशा काम शक्ति वर्धक औषधि का सेवन करते रहना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की मर्दाना कमजोरी आने से पहले हजार बार सोचे तो यह पोस्ट अगर आपको अच्छा लगी हो जानकारी अगर आपको अच्छी लगी हो तो उसे अधिक से अधिक शेयर करिए ताकि गरीब से गरीब लोग भी इसका लाभ उठाएं। अधिक से अधिक लोगों का कल्याण हो यही आयुर्वेद की भावना है लोग स्वस्थ हो मस्त हो जय श्री राम वंदे मातरम्

वैद्य पंडित पुष्पराज त्रिपाठी
मो०- 093360 55537

इस पौधे का नाम बताएं  90% लोग गलत जवाब देते गांव के लोग ही बता पाएंगे
20/07/2025

इस पौधे का नाम बताएं 90% लोग गलत जवाब देते गांव के लोग ही बता पाएंगे

 #सफेद_बाल_काले करने में  #भृंगराज का चमत्कार  - बाल काले करे और बालों का झड़ना रोके  #भृंगराज_का_तेल बालों के लिये बहुत...
19/07/2025

#सफेद_बाल_काले करने में #भृंगराज का चमत्कार - बाल काले करे और बालों का झड़ना रोके #भृंगराज_का_तेल बालों के लिये बहुत उपयोगी माना जाता है बालों को घने, काले और सुंदर बनाने के लिए भृंगराज का उपयोग कई तरह से किया जाता है भृंगराज के पत्तों का रस निकालकर बराबर का नारियल तेल लें और धीमी आंच पर रखें जब केवल तेल रह जाए तो बन जाता है " #भृंगराज_केश_तेल"-अगर धीमी आंच पर रखने से पहले आंवले का रस मिला लिया जाए तो और भी अच्छा तेल बनेगा-बालों में रूसी हो या फिर बाल झड़ते हों तो इसके पत्तों का रस 15-20 ग्राम लें।

#सफेद_बाल_काले करने में #भृंगराज का चमत्कार - आयुर्वेद, ऋषि मुनि और सभी पुराने वैद्य इस विषय पर सहमत है कि भृंगराज एक ऐसी बूटी है, जिसके निरन्तर सेवन से समय के पहिले बालों का सफेद होना रुक जाता है। आयुर्वेद के सभी वैद्यक ग्रन्थों में भृंगराज के हजारों नुस्खे मिलते है। हम आज आपको वह नुस्खा बता रहे हैं, जो हमें सब से अधिक प्रभावशाली प्रतीत हुआ है।
#नुस्खा - आवश्यकता अनुसार सूखे आंवले लेकर किसी चीनी मिट्टी के बर्तन में डालें और ऊपर से भृंगराज का रस इतना डाले कि आंवले उसमें डूब जावें कुछ दिन बाद जब रस सूख जाए तब फिर से डालें। इसी प्रकार सात भावना दें और फिर सूखने पर बारीक पीसकर शीशी में सुरक्षित रखें।
#मात्रा - 3 ग्राम प्रतिदिन ताजा नल के साथ सेवन करे । इसके सेवन सफेद बाल शीघ्र ही काले हो जाते हैं।

#बालों के लिए फायदेमंद बालों के झड़ने को रोकता है और नए बाल उगाने में मदद करता है। समय से पहले सफेद होने से बचाव करता है। डैंड्रफ और स्कैल्प इंफेक्शन को दूर करता है। बालों को मज़बूत बनाता है। यह बालों का झड़ना रोकता है। यह बालों को काला करने में मदद करता है। यह बालों को घना बनाता है। यह बालों की चमक बढ़ाता है। यह बालों की ग्रोथ बढ़ाता है। यह बालों के विकास को बढ़ाता है।

 #लुप्त_हुआ_भारत_का_यह_ज्ञान_विज्ञान 5 वीं शताब्दी ईशा पूर्व पाटली पुत्र के राजवैद्य आचार्य जीवक भारत के प्रसिद्ध आयुर्व...
19/07/2025

#लुप्त_हुआ_भारत_का_यह_ज्ञान_विज्ञान 5 वीं शताब्दी ईशा पूर्व पाटली पुत्र के राजवैद्य आचार्य जीवक भारत के प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य थे। अनेक चिकित्सा ग्रन्थों में उनके चिकित्सा-ज्ञान की व्यापक प्रशंसा मिलती है।

एशिया में प्रसिद्ध आख्यानों में एक मॉडल हीलर के रूप में उनका स्थान प्रमुखता से है, जीवक जब तक्षशिला में आयुर्वेद का अध्ययन करने के लिए गए और अध्ययन समाप्त करने के पश्चात जब उन्होंने आचार्य से लौटने की अनुमति मांगी तो आचार्य ने उन्हें परखना चाहा और तक्षशिला के चारो ओर ढूंढ कर कोई ऐसी वनस्पति लाओ जो औषद्धि के काम न आता हो जीवक ने एक माह तक ढूढने के पश्चात वापस लौटा और कहा हे आचार्य मैंने बहुत यत्न किया किंतु ऐसा कोई तृण भी न मिला जो किसी न किसी रोग के औषध में काम न आता हो , आचार्य ने जीवक का उत्तर सुन सुनिश्चित हुआ कि जीवक का अध्ययन पूर्ण हुआ और उसने जीवक की जाने की अनुमति दी ।

भारतीयों का यह विज्ञान भी तक्षशिला के ध्वंस के बाद लुप्त हो गया। इसी औषधि विज्ञान के कारण नालंदा विश्वविद्यालय को खिलजी ने आग लगा दी जो 6 महीने तक जलता रहा ।

चित्रस्रोत :-- थाईलैंड से जहाँ आज भी जीवक की प्रतिमा बनी हुई है

मिस्र के फराओ मन्दिर एक बार टूटे, फिर कभी न बन सके और मिस्र समाप्त हो गया। फारस के अग्नि मन्दिर एक बार टूटे फिर वहाँ कभी...
18/07/2025

मिस्र के फराओ मन्दिर एक बार टूटे, फिर कभी न बन सके और मिस्र समाप्त हो गया। फारस के अग्नि मन्दिर एक बार टूटे फिर वहाँ कभी अग्नि की आराधना नहीं हुई। फारस समाप्त हो गया। यूनान में एक बार उनके देवताओं को शैतान बता कर उनके मंदिरों को ध्वस्त किया गया, उसके बाद फिर कभी ग्रीस खड़ा नहीं हुआ। अब कोई ज्यूस या अपोलो को नहीं पूजता... ओलंपिक पर्वत पर अवस्थित उनके द्वादश देवों का कोई नामलेवा नहीं...
प्राचीन रोमन धर्म के मंदिर एक बार खंडित हुए, फिर कभी न बन सके। रोम समाप्त हो गया, ज्यूपिटर के अनुयायी समाप्त हो गए। मेसोपोटामिया की सभ्यता पर एक बार सिकन्दर का आक्रमण हुआ और एक झटके में वह सभ्यता समाप्त हो गयी। उनके देवताओं का अब किसी को नाम तक ज्ञात नहीं...
अब आप यूनानी सभ्यता के बारह देवों (द्वादश देव) की समानता भारत में ढूंढ पा रहे हों तो आइए काशी चलते हैं। संसार की समस्त सभ्यताओं पर हुए सारे बर्बर आक्रमणों को एक में मिला दें, तब भी उनसे अधिक आक्रमण महादेव की काशी पर हुए हैं। पर इस सावन में निहारिये काशी को! भारत के उस सबसे प्राचीन नगर के वैभव को, और महादेव का जलाभिषेक करने के लिए जुटती भक्तों की विशाल भीड़ को... हर्षातिरेक से फहरा उठे आपके रोम रोम चिल्लायेंगे- हर हर महादेव! संसार के सारे असभ्य मिल कर भी सभ्यता का नाश नहीं कर पाते! धर्म कभी भी समाप्त नहीं होता। हम कभी भी समाप्त नहीं हो सकते...
सभ्यता धर्मकाज के लिए कब किसका चयन करेगी, यह कोई नहीं जानता। काशी कैसे अपने भक्तों को बुला कर उनके पाप धोती है, इसका अद्भुत उदाहरण देखिये। जब मोहम्मद गोरी और ऐबक ने काशी का विध्वंस किया, तब जानते हैं वहाँ के मंदिरों और घाटों का पुनर्निमाण किसने कराया? कन्नौज नरेश जयचंद के पुत्र राजा हरिश्चंद्र ने! और वह भी तब जब चन्दावर के युद्ध मे वे गोरी की सेना से पराजित हो गए थे। और सिकन्दर लोदी के समय हुए ध्वंस को ठीक कराया अकबर के दरबार में रहने वाले राजा मानसिंह और राजा टोडरमल ने... राजनैतिक कारणों से लोग भले हजार टुकड़ों में टूट जांय, महादेव की शरण मे आकर सभी एक हो जाते हैं। क्या ब्राह्मण, क्या ठाकुर, क्या यादव, क्या गुर्जर, क्या वैश्य... क्या भाजपा, क्या कांग्रेस क्या सपा क्या राजद... राजनीति तोड़ती है, पर धर्म जोड़ता है...
काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने तुड़वाया तो एक दीवाल छोड़ दी उसने। यह इसलिये, कि काशी आने वाले लोग देख लें कि हम उनके देवस्थलों का स्वरूप जब चाहें तब बदल सकते हैं, और वे कुछ नहीं कर सकते। सुन कर बुरा लगा न? पर ऐसी बुराई का उत्तर सभ्यता कैसे देती है, यह देखिये। उस घटना के लगभग सौ वर्ष बाद जब राजमाता अहिल्याबाई होलकर जी ने मन्दिर का निर्माण किया तो उसके कुछ दिनों बाद ही महाराजा रणजीत सिंह जी ने मन्दिर के दोनों शिखरों को सोने से मढ़वा दिया। दिल्ली में बैठे मुगलों के आंखों के सामने मन्दिर पर बाईस मन सोना चढ़ा कर कहा, कि देख! लुटेरों की सेंधमारी से सभ्यता का वैभव समाप्त नहीं होता। तोड़ने वाले समाप्त हो जाते हैं, रचने वाले समाप्त नहीं होते...
महादेव की काशी जाइये तो संसार की उस प्राचीनतम नगरी को इस भाव से भी देखिये कि शिव के त्रिशूल पर बसी यह कभी समाप्त न होने वाली नगरी है। विध्वंस से सभ्यता समाप्त नहीं होती, धर्म कभी समाप्त नहीं होता। महादेव अपने भक्तों को कभी अकेला नहीं छोड़ते।

खान-पान- खीरा-ककड़ी पेट और पाचन के लिए अच्छा नहीं...कुछ सालों से सलाद या खीरा-ककड़ी खाना बहुत चलन में है पर सदैव ध्यान रखे...
17/07/2025

खान-पान- खीरा-ककड़ी पेट और पाचन के लिए अच्छा नहीं...कुछ सालों से सलाद या खीरा-ककड़ी खाना बहुत चलन में है पर सदैव ध्यान रखें कि यह न तो रोगियों के लिए हितकर है और न स्वास्थ्य के लिए। यदि स्वस्थ व्यक्ति भी यदि खीरा-ककड़ी रोज और अधिक मात्रा में सेवन करता है तो पेट के रोग और यूरिक एसिड जैसी बीमारी पाने को तैयार रहे। यदि रोगी व्यक्ति इसका सेवन रोज-रोज करता है तो और अधिक बीमार होना तय है। शास्त्र कहता है-
सर्वाकर्कटिकागुर्वीदुर्जरावातरक्तदा।
अग्निमांद्यकरी प्रोक्ता ऋषिभि: शास्त्रकोविदै:।।
(नि.र.)
अर्थात् सभी प्रकार की ककड़ी स्वभाव से भारी, पचने में कठिन, शरीर में वातरक्त (यूरिक एसिड) को पैदा करती है, यह पाचकाग्नि को दुर्बल करती है, यह ज्ञान ऋषियों और शास्त्रज्ञों द्वारा बताया गया है। यही स्थिति खीरा की भी है-
स्यात्त्रपुषीफलं रुच्यं मधुरं शिशिरं गुरु।
भ्रमपित्तविदाहार्त्तिवान्ति हृद्बहुमूत्रदम्।। (नि.र.)
अर्थात् खीरा रुचिकर तो लगता है किन्तु यह मधुर है इसकी प्रकृति ठण्डी और पचने में भारी है। इसमें बहुमूत्र करने का गुण है इसलिए मधुमेह, ब्लडप्रेशर और मोटापा ग्रस्तजनों को सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि वैसे भी मधुमेह रोगी में बहुमूत्रता रहती है और ब्लडप्रेशर के रोगी जब अंग्रेजी दवा खाते हैं तो मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।
यदि चक्कर आ रहे हैं, पित्त बढ़ा है, शरीर में दाह वेदना है, वमन आ रहा है तो खीरे को औषधि के रूप में ले सकते हैं।
इसके पीछे दर्शन यह है कि खीरा, ककड़ी जल और पृथ्वी महाभूत प्रधान द्रव्य है जो शरीर में इन्हीं तत्त्वों को बढ़ाते हैं, ये तत्त्व शरीर में रसधातु को बढ़ाते हैं, पाचकाग्नि को कमजोर करते हैं, शरीर में सूजन, मोटापा, भारीपन, आलस्य, तमोदोष, निद्रा प्रमाद आदि को बढ़ाते हैं।
आचार्य चरक ने बताया है कि-
त्रपुसैर्वारुकं स्वादु गुरुविष्टम्भि शीतलम्।
मुख प्रियं च रुक्षं च मूत्रलं त्रपुसं त्वति।।
च.सू. २७/११०-१११।।
खीरा और ककड़ी ये रस के मधुर, पचने में भारी पेट को बाँधने वाले, कब्जकारक, वायु पैदा करने वाले तथा प्रकृति से ठण्डे होते हैं। खाने में प्रिय और रुक्ष होते हैं। खीरा मूत्र भी अधिक लाता है।
आप शास्त्र को देखें तो स्पष्ट है कि खीरा, ककड़ी विष्टम्भकारक अर्थात् कब्जकारक, मलरोधक है। विष्टम्भ का अर्थ रुकावट, बाधा, विबंध (ण्दहेूग्ज्aूग्दह), आनाह (पेट फूलना) होता है। सदैव ध्यान रखें कि खीरा-ककड़ी पचने में भारी होती है इसीलिए इनके खाने के बाद काफी देर तक डकार आती रहती है। इसकी प्रकृति भी ठण्डी होती है।
यही कारण है कि प्राचीन काल में खीरा को नींबू रस, सेंधा नमक और कालीमिर्च से युक्त कर खाते थे और वह भी ऋतु विशेष में खाते थे। किन्तु आज तो सलाद के नाम पर क्या दुर्दशा कर रखी है पेट की और आहार प्रणाली की।
विचार करें कि जब शीतल, भारी और विष्टम्भी गुण युक्त कोई वस्तु पेट में रोज-रोज जायेगी तो पेट की पाचनकाग्नि की क्या स्थिति पैदा करेगी। यही कारण है कि आज पेट के सर्वाधिक रोग बढ़ रहे हैं जब पेट का इलाज शुरू कराते हैं तो डॉक्टर खाने के पहले पेन-४० या कोई पीपीआई जोड़ ही देते हैं, अब रोग के साथ-साथ इस दवा का भी साइड इफेक्ट झेलिए। बस! कुछ दिन बाद नए-नए रोग या जीवन व्यापी रोग, शुगर, मोटापा, थायराइड या ब्लडप्रेशर आ जाते हैं।
कुछ लोग महा अज्ञानतावश खीरा को हल्का मानकर वजन घटाने या कोलेस्ट्राल घटाने के लिए सलाद के रूप में खाते हैं पर उनका भी पांसा उल्टा ही पड़ता है। सलाद खाकर कोई भी आज तक मोटापे को नहीं कम कर पाया बल्कि खीरे के शीतल, गुरु और विष्टम्भी गुण नए रोग अवश्य दे जाते हैं। इसलिए खान-पान में सदैव शास्त्रीय नियमों को ही ग्रहण करें।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भोजन के तत्त्वों में केवल वैâलोरी का विचार कर खाने की सलाह दे देता है जबकि वैदिक चिकित्सा विज्ञान बहुत सूक्ष्मता से चिंतन करता है।
ये अपनी वैदिक चिकित्सा विज्ञान की गहराइयाँ हैं, जहाँ तक अभी भी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान नहीं पहुँच सका। यदि हम इन गहराइयों को समझकर आत्मसात करेंगे तथा अपनों को आत्मसात करायेंगे तो सुखमय वातावरण अवश्य बनेगा।
इस विषय को इस तरह भी समझना चाहिए कि यदि खीरा, ककड़ी सलाद सेहत के लिए आरोग्यकर होता तो जिस समय कोई किडनी रोगी हार्ट रोग या लीवर क्षति के कारण रुग्ण हो जाता है उस समय एलोपैथ डॉक्टर क्यों नहीं सलाद या खीरा-ककड़ी खाने पर जोर देते। कोलाइटिस या आईबीएस में क्या नहीं सलाद खिलाते? हमारे देश का दुर्भाग्य है रहने वाला व्यक्ति भारत की जलवायु का और डाइट नियमावली लागू की जाती है ब्रिटेन की।
लेख - गुरुदेव आचार्य मदन गोपाल वाजपेयी जी

 #कब्ज_मलावरोध(   ) पेट साफ न होने या खुलकर ना आने को ही कब्ज या मलावरोध कहते हैं इसी को कब्जियत या कोस्टबद्धता या कॉन्स...
17/07/2025

#कब्ज_मलावरोध( ) पेट साफ न होने या खुलकर ना आने को ही कब्ज या मलावरोध कहते हैं इसी को कब्जियत या कोस्टबद्धता या कॉन्स्टिपेशन भी कहा जाता है।

#कब्ज_रोग_के_मुख्य_कारण -

• मुख्यतः यह रोग-आँतों की गति कम (Peristalsis) होने से उत्पन्न होता है। यकृत/जिगर (लीवर Liver) की कार्यक्षमता कम होना भी इसके मुख्य कारणों में हैं। इसके अतिरिक्त विद्युत चालित चक्की का चिकना, महीन, बारीक आटा बिना छिलके की दाल, पालिश किये हुए चावल, चोकर रहित आटा की रोटियाँ, छिलका निकाल कर बनाई हुई हरी सब्जियाँ, रेशा रहित आहार का अत्यधिक उपयोग, पानी कम पीने की आदत, परिश्रम रहित अकर्मण्य जीवन यापन, मल त्याग के लिए तम्बाकू, चाय या बीड़ी-सिगरेट सेवन करने की लत/आदत, बार-बार विरेचन/जुलाव लेकर मल त्याग करने की आदत, मलोत्सर्जन की वेग को बलात रोके रहना, चिन्ता, भय, क्रोध और मानसिक विकार, लम्बे समय तक चलने वाले रोग, अत्यधिक परिश्रम तथा अपर्याप्त आहार, मैदा से निर्मित खाद्य पदार्थों को अधिकता से खाना, भोजन में परिवर्तन, कम फाइबर युक्त भोजन खाना तथा पानी कम मात्रा में पीना, गर्भावस्था, भारी (गरिष्ठ) पानी पीना, पानी में बदलाव, वृद्धावस्था में आँतें निर्बल/कमजोर हो जाना, मधुमेह, पोरफायरिया और मानिसक चिन्तन, बहुत सी अंग्रेजी दवाएं यथा कोडीन, ओपिएट्स, एण्टासिड, बेहोशी लाने वाली दवाएं, गैंगिलियोन को ब्लाक करने की दवाएं, मल त्याग में अधिक दर्द होने पर यथा-ऐनल फिशर में, बवासीर में, प्रोक्टाईटिस में रोगी दर्द के भय के कारण मल त्याग हेतु नहीं जाता है। पेट से सम्बन्धित रोग होने की दशा में (वमन, कार्सिनोमा, ओप्मकोलन, पायलेरिक आऊटलेट आब्स टूक्शन।) बड़े आपरेशन के बाद (चूंकि रोगी व्यक्ति कई-कई दिनों तक बिस्तर/पलंग पर लेटा रहता है तथा मुख द्वारा कुछ भी न लेने से मल खुश्क हो जाता है।), मानसिक विकारों द्वारा (एटोनेमिक नर्वस सिस्टम में परिवर्तन आने के कारण), अफीम का अधिक सेवन, रात्रि जागरण, विटामिन 'बी' की कमी, निरन्तर बैठे रहना, क्लर्की जीवन तथा मानसिक कार्य करने वालों में यह कब्ज (कोष्ठबद्धता) एक आम रोग है।

#कब्ज_के_लक्षण -
रोगी में कब्ज के लक्षण मुख्यतः नीचे लिखी बातों पर निर्भर करते हैं

(1) क्षुधानाश/भूख न लगना।
(2) शरीर गिरा हुआ रहना / आलस्य ।
(3) चक्कर आना।
(4) सिर भारी रहना।
(5) जी मिचलाना।
(6) खट्टी डकारें आना।
(7) गुदा द्वार से वायु / गैस का निकलना ।।
(8) पेट भारी रहना।
(9) मानसिक तनाव बने रहना।
(10) जीभ फटी हुई अथवा सफेद होना।
(11) किसी भी कार्य में मन नहीं लगना।
(12) शौच/दस्त साफ न होना।
(13) मल (पाखाना) कम मात्रा में निकलना।
(14) भूख नष्ट हो जाना ।
(15) पेट में भारीपन तथा मीठा-मीठा दर्द होना।
(16) रोगी के शरीर ओर सिर में भारीपन रहना।।
(17) कभी-कभी मुख से दुर्गन्ध की अनुभूति होना।
(18) जिह्वा मलावृत रहना।
(19) पेट में वायु/गैस बनना।
(20) रक्त पर दुष्प्रभाव होने के कारण रक्तभार (ब्लडप्रैशर) में वृद्धि।
(21) मुख का स्वाद/जायका खराब रहना।
(22) आलस्य, सुस्ती, अनिद्रा तथा ज्वर आदि लक्षणों का मिलना।
(23) कब्ज के दीर्घकालिक रोग से बवासीर (पाइल्स), गृध्रसी (सायटिका पेन) आदि रोगों की उत्पत्ति ।
(24) किसी-किसी रोगी को चाय या सिगरेट का सेवन किये बिना मल त्याग न होना
(25) रोगी के मल त्याग हेतु जाने पर भी (काफी देर तक मल त्याग हेतु बैठे रहने के
बाद भी) मल त्याग की प्रवृत्ति न होना।

#कब्ज_की_जटिलतायें (Complications of Constipation)

(1) मल द्वार का विदर (A**l Fissure)
(2) वासीर (Piles)
(3) मूत्र आना रुक जाना (Retention of Urine)
(4) मल का बड़ी आँत और मल द्वार से चिपक जाना (Impaction of Stool)
(5) बड़ी आँत (कोलन) में घाव/व्रण (अल्सर) (Colonic Ulser)
(6) विरेचक बड़ी आँत (Catharitic Colon)
(7) शौच / दस्त पर नियन्त्रण न रहना (In continue of Bowel)
(8) क्सीजन की कमी के कारण बड़ी आँत की सूजन (Ischaemic Colitis)
(9) मल द्वार का नीचे खिसक जाना (Prolapse of Reactum)
(10) कोलन सख्त होकर पाइप जैसा हो सकता है।
(11) लगातार मल त्याग में जोर लगाने से बवासीर, भगन्दर, (फिस्टयूत्त) इनग्वीनल हार्निया, वायोकार्डियल इन्फार्कशन्स अधिकतर हो सकते हैं।
(12) कब्ज रोग से पीड़ित रोगी में स्वाभाविक स्फूर्ति नहीं रहती।

#शोभान्जन_वटी के सेवन से पाचक अग्नि की शिथिलता दूर हो पुनः उसमें चेतना आ जाती है अधिक भोजन या गरिष्ठ भोजन करने से अजीर्ण हो गया हो तो शोभान्जन वटी की दो गोली खा लेने से भोजन जल्दी पच जाता है
शोभान्जन वटी के सेवन से अम्लपित्त में मुंह में खट्टा या कड़वा पानी आना बंद हो जाता है और अन्न का परिपाक भली-भांति होने लगता है पेट के दर्द को कम करने के लिए शोभान्जन वटी की गोली गर्म जल के साथ खा लेने से दर्द में आराम हो जाता है
यह मंदाग्नि, अजीर्ण, अम्लपित्त, उदरशूल और वायूगोला आदि का शीघ्र नाश करती है।
अधिक भोजन या गरिष्ठ भोजन, बासी आदि भोजन करने से उत्पन्न मंदाग्नि कब्जियत आदि इसके सेवन से नष्ट हो जाते हैं।
यह मंदाग्नि को नष्ट कर जठराग्नि को प्रदीप्त करती है। इसकी दो तीन खुराक खाने से ही भूख खूब खुलकर लगती है और भोजन भी ठीक-ठीक पचने लग जाता है।
किसी भी तरह का अजीर्ण हो उसे नष्ट करने के लिए शोभान्जन वटी का प्रयोग अवश्य करें। मात्रा से अधिक भोजन कर लिया हो तो उसे भी यह पचा देती है।
पेट में वायु भर जाने से पेट फूल जाता हो उस समय शोभान्जन वटी की दो गोली गर्म जल के साथ देने से तत्काल लाभ होता है।
शोभान्जन वटी बड़ी आंत तथा छोटी आंत की विकृति को नष्ट करती है।
किसी भी कारण से अग्नि मन्द होकर भूख ना लगती हो, अन्न में अरुचि हो, जी मिचलाता हो, पेट भारी रहता हो, वमन की इच्छा हो या वमन हो जाता हो, अपच दस्त होते हों, या कब्ज रहता हो आदि उपद्रव होने पर शोभान्जन वटी अद्भुत कार्य करती है।
इसके सेवन से भोजन पच कर खूब भूख लगती है और दस्त साफ आता है। जिन्हें बार बार भूख कम लगने की शिकायत हो उन्हें शोभान्जन वटी अवश्य लेनी चाहिए।
अजीर्ण की शिकायत अधिक दिनों तक बनी रहने पर पित्त कमजोर हो जाता है और कफ तथा आंव की वृद्धि हो जाती है इसमें हृदय भारी हो जाना, पेट में भारीपन बना रहना आदि लक्षण होने पर शोभान्जन वटी देने से बहुत शीघ्र लाभ होता है।
शोभान्जन वटी पित्त को जागृत कर कफ और आंव के दोष को पचाकर बाहर निकाल देती है और पाचक रस की उत्पत्ति कर भूख जगा देती है।
यह दीपक पाचक तथा वायुनाशक है।
अजीर्ण के कारण पेट में वायु भर जाती है जिससे डकारें आने लगती हैं इस वायु को पचाने तथा डकारों को बंद करने के लिए शोभान्जन वटी बहुत उपयोगी है।
शोभान्जन वटी के प्रयोग से उर्ध्ववात का शमन शीघ्र ही हो जाता है।
शोभान्जन वटी आम को पचाती तथा अजीर्ण मन्दाग्नि पेट दर्द-परिणाम-शूल, पित्तज शूल आदि रोगों को दूर करती है। इसके नियमित सेवन से पेट-सम्बन्धी किसी व्याधि(रोग) के होने का डर नहीं रहता है, क्योंकि उदर सम्बन्धी व्याधियों का मूल अजीर्ण और कब्ज, इसके सेवन से ना तो अजीर्ण ही हो सकता है और न कब्ज ही होता है। इसलिए उदर सम्बन्धी व्याधियों से रक्षा के लिए शोभान्जन वटी का नियमित प्रयोग करना अति श्रेष्ठ उपाय है।

#त्रिफला_वटी -
यह नेत्रों के लिए हितकर, वर्ण एवं स्वर को उत्तम करने वाली मेघावर्धक, वीर्यवर्धक, भुख को बढ़ाने वाली एवं रूचिकारक है। इसके नियमित सेवन से मस्तिष्क रोग, दंतरोग, हृदय रोग एवं गुर्दे की विभिन्न प्रकार की बीमारियों से रक्षा होती है। साथ ही त्रिफलाघन वटी चर्मरोग, मोटापा, दमा, खाँसी, कब्ज, पेट का फूलना, अजीर्ण आदि में भी बहुत अधिक लाभदायक है।

#विशेष :- आंवला, हरड़ व बहेड़ा के घन को मधु(शहद) के साथ योग(मिलाकर) के साथ (जैसा कि नीचे श्लोक नंबर 44 मात्राशितीयाध्याय 8 सूत्रस्थानम् अष्टांग हृदय में कहा गया है) बनायी गई है जिसके कारण इसका परिणाम कई गुना बढ़ गया और बहुत अधिक लाभकारी बन गई ।

#मात्रा_व_सेवन_विधि:- 3 गोलियाँ रात को सोते समय पानी से लें।

त्रिफलां मधुसर्पिर्भ्यां निशि नेत्रबलाय च ।
स्वास्थ्यानुवृत्तिकृद्यच्च रोगोच्छेदकरं च यत् ।। ४४ ।।
- मात्राशितीयाध्यायः ८ सूत्रस्थानम् अष्टाङ्गहृदये

रात में सेवनीय पदार्थ दृष्टि की शक्ति को बढ़ाने के लिए रात में मधु तथा घी में मिलाकर त्रिफला का सेवन करें। जो-जो द्रव्य स्वास्थ्य की रक्षा करने वाला तथा रोगनाशक हो उस उस का भी निरन्तर सेवन करें। ४४ ॥

#औषधि_के_रूप_में_शहद_युक्त_त्रिफला_वटी -

👉 रात को सोते वक्त शहद युक्त 2 त्रिफला वटी हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होती है।
👉 त्रिफला वटी के सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।
👉 शाम को एक गिलास पानी में शहद युक्त 3 त्रिफला वटी भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी 3, गाय का घी10 ग्राम मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते हैं। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते हैं।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकती है।
👉 शहद युक्त त्रिफला की तीनों जड़ी-बूटियां और शहद आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।
👉 चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 3-3 त्रिफला वटी लेना चाहिए।
👉 शहद युक्त 3 त्रिफला वटी को एक गिलास ताजे पानी में दो-तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। इससे मुँह आने की बीमारी, मुंह के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करती है। इस का काढ़ा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी पाचन और भूख को बढ़ाने वाली और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाली है।
👉 मोटापा कम करने के लिए शहद युक्त त्रिफला वटी को गुनगुने पानी के साथ लें।
👉 शहद युक्त 3 त्रिफला वटी पानी में उबालकर पीने से चरबी कम होती है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद युक्त त्रिफलाघन वटी लेने से अत्यंत लाभ होता है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी घिस कर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है।
👉 शहद युक्त 3 त्रिफला वटी पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी गोमूत्र के साथ एक माह तक लेने से कामला(पीलिया) रोग मिट जाता है।
👉 टॉन्सिल्स के रोगी को शहद युक्त त्रिफला वटी को पानी में भिगोकर उसी पानी से बार-बार गरारे करवायें।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी दुर्बलता का नास करती है और स्मृति को बढा़ती है। दुर्बलता का नास करने के लिए शहद युक्त त्रिफला वटी को घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी को तिल के तेल में मिलाकर इस मिश्रण को 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट की, मासिक धर्म की और दमे की तकलीफे दूर होती है
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी को घृतकुमारी में मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला वटी रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।
डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।
👉 यह बटी दीपन-पाचन तथा जायकेदार होने से बहुत प्रसिद्ध है। अजीर्ण रोग को नाश करने के लिए यह बहुत लाभदायक है। भोजन के बाद 2-4 गोली जल के साथ लेने से अन्न अच्छी तरह हजम हो जाता और दस्त भी साफ निकलता है। अरुचि, अजीर्ण, पेट दर्द, पेट में वायु का जमा होना, आँव की शिकायतें, कब्जियत, रक्त-विकार और अम्लपित्त आदि रोगों में यह बटी बहुत फायदा करती है। जो लोग भोजन अच्छी तरह पचने के लिए सोडा वाटर का व्यवहार करते हैं, उनके लिए उसकी अपेक्षा यह अमृत के समान गुणकारी हैं। इससे भोजन अच्छी तरह पचता और खुल कर भूख लगती है और चित्त हमेशा प्रसन्न रहता है। इसके नियमित सेवन से किसी देश के जल का बुरा प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता। इसमें यह विचित्र और अद्भूत शक्ति है। अमीर-गरीब सभी के योग्य, उत्तम गुणदायक यह दवा है।

#हरीतकी_रसायन_वटी
यह बटी दीपन-पाचन तथा जायकेदार होने से बहुत प्रसिद्ध है। अजीर्ण रोग को नाश करने के लिए यह बहुत लाभदायक है। भोजन के बाद 2-4 गोली जल के साथ लेने से अन्न अच्छी तरह हजम हो जाता और दस्त भी साफ निकलता है। अरुचि, अजीर्ण, पेट दर्द, पेट में वायु का जमा होना, आँव की शिकायतें, कब्जियत, रक्त-विकार और अम्लपित्त आदि रोगों में यह बटी बहुत फायदा करती है। जो लोग भोजन अच्छी तरह पचने के लिए सोडा वाटर का व्यवहार करते हैं, उनके लिए उसकी अपेक्षा यह अमृत के समान गुणकारी हैं। इससे भोजन अच्छी तरह पचता और खुल कर भूख लगती है और चित्त हमेशा प्रसन्न रहता है। इसके नियमित सेवन से किसी देश के जल का बुरा प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता। इसमें यह विचित्र और अद्भूत शक्ति है। अमीर-गरीब सभी के योग्य, उत्तम गुणदायक यह दवा है।

#पथ्य_कुपथ्य -
प्रातः समय जागकर नित्य ऊषापान (ठण्डा पानी पीना) और प्रातः भ्रमण (मॉर्निंग वाक् करना) तथा स्नान करना हितकर होता है।
कब्ज में-पका अमरूद, उबली गाजर, पपीता का सेवन कम चिकनाई वा आहार (यथा-गाय का दूध, पनीर, चोकर युक्त आटा की रोटी, मौसमी फल, दाल के स्थान पर हरी सब्जी (बथुआ, पालक आदि), आम, अंगूर, किशमिश, मुनक्का, खजूर, संतरा, नाशपाती एवं कागजी नींबू के रस का उपयोग करें।
• बासी भोजन, वात बर्द्धक भोजन, चिकना और तला हुआ आहार नहीं लेना चाहिए।

#पेट_के_रोगों_से_बचने_के_सरल_उपाय

किसी भी बीमारी के हो जाने पर उसका इलाज करने से अच्छा तो यही है कि बीमारी को होने ही ना दिया जाए। इन नियमों को अपनाकर उदर रोगों से बड़ी ही आसानी से बचा जा सकता है।

(1) सबसे पहली बात तो यह है कि प्रत्येक पदार्थ खूब चबा चबाकर खाना चाहिए जिससे दांतों का काम आंतों को ना करना पड़े। इससे आंतों पर अतिरिक्त कार्यभार नहीं पड़ेगा और पाचन तंत्र सदैव दूरस्त रहेगा।

(2) भोजन कभी भी ठूंस-ठूंसकर यानि अधिक मात्रा में ना करें बल्कि सदैव भूख से एक रोटी कम ही खाना चाहिए।

(3) भोजन करने का समय निश्चित कर लेना चाहिए और प्रतिदिन लगभग उसी समय पर भोजन करना चाहिए। इस उपाय से पाचन क्रिया व्यवस्थित रहती है‌। समय निश्चित करते समय इस बात का ध्यान रखें कि सुबह और रात के भोजन के मध्य में कम से कम 5 घंटे का अंतर रहे और रात का भोजन सोने से कम से कम 2 घंटे पहले कर लिया जाये।

(4) भोजन करने में न तो कम समय लगना चाहिए और ना ही अधिक सामान्यतः एक समय का भोजन करने में 15 मिनट का समय लगना चाहिए।

(5) व्यावहारिक जीवन में गरिष्ठ पदार्थों व मिर्च-मसाले युक्त पदार्थों से बच पाना असंभव ही है विशेषकर दावत तथा पार्टियों आदि में तो इनका सेवन करना ही पड़ता है ऐसी स्थिति में यह पदार्थ कम ही मात्रा में खाएं और परस्पर विरुद्ध प्रकृति के पदार्थ जैसे - गरम दूध व ठंडे पेय आदि का साथ-साथ सेवन न करें।

(6) अगर बाजार में बनी चाट-पकौड़ी खानी पड़े तो ऐसे स्थान से लें जहां साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता हो और जहां खाद्य पदार्थों पर मक्खियां न भिनभिनाती हों।

(7) प्रतिदिन कुछ ना कुछ शारीरिक श्रम अवश्य करना चाहिए। यदि और कुछ परिश्रम संभव ना हो सके तो प्रतिदिन दो-तीन किलोमीटर दौड़ने ही जाया करें। इससे पाचन तंत्र के साथ-साथ पूरा शरीर चुस्त दुरुस्त बना रहता है।

(8) प्रत्येक पंद्रह दिन में एक दिन का उपवास अवश्य करना चाहिए। इससे पाचन अंगों को विश्राम मिल जाता है और वे फिर से कार्य करने को तैयार हो जाते हैं। उपवास में बिल्कुल भूखे रहने की जरूरत नहीं है बल्कि थोड़ी मात्रा में दूध या फल लिया जा सकता है। उपवास में ताजा पानी पर्याप्त मात्रा में पीना चाहिए।

(9) जब भी पेट में भारीपन महसूस हो, भोजन के प्रति अरुचि हो तो अच्छा यही है कि एक समय का भोजन न किया जाए। इससे पाचन संबंधी परेशानी अपने-आप दूर हो जाती हैं।

उपरोक्त नियम सरल होने के साथ साथ व्यवहारिक भी हैं। इन्हें अपनाना बहुत ही आसान है। आप भी उक्त नियमों को अपनाकर अपने पाचन-तंत्र को सदैव स्वस्थ रख सकते हैं और पेट के रोगों से बच सकते हैं।

वैद्य पंडित पुष्पराज त्रिपाठी
मो०- 093360 55537

सावन के बाद जो मलेरिया डेंगू आदि वायरल फैलेंगे इससे की  एक मात्र और गिलोय ही है । गिलोय एक आयुर्वेदिक औषधि है। इसका वनस्...
15/07/2025

सावन के बाद जो मलेरिया डेंगू आदि वायरल फैलेंगे इससे की एक मात्र और गिलोय ही है । गिलोय एक आयुर्वेदिक औषधि है। इसका वनस्पतिक नाम Tinospora Cordifolia है तथा संस्कृत में इसे गुडूची,अमृता जैसे अनेक नामों से जाना जाता है। यह एक लता या बेल होती है जो की पेड़ों, दीवारों तथा गमले आदि में लगाने के बाद रस्सी के सहारे आसानी से ऊपर चढ़ जाती है यह पेड़ों पर चढ़ी हुई अक्सर पार्कों में दिखाई देती है। गिलोय जिस पेड़ को आधार बनाती है जिस पेड़ पर फैलती है उस पेड़ के गुण भी इसमें समाहित हो जाते हैं। जैसे कि नीम के पेड़ पर चढ़ी हुई गिलोय में नीम के गुण आ जाते हैं।

#गिलोय_के_लाभ

1. आधुनिक विज्ञान की अनेक शोधों में भी यह साबित हो गया है की गिलोय बीमारियों से बचाने तथा चिकित्सा दोनों ही रूप में बहुत उपयोगी है। Researchers के अनुसार गिलोय में anti inflammatory, analgesic, antipyretic तथा immune booster जैसे अनेक गुण पाए जाते हैं।

2. चिकनगुनिया जैसे वायरल बुखार जो ठीक होने के बाद भी रोगी को महीनों तक जोड़ों के दर्द से परेशान करते रहते हैं, ऐसे मामलों में गिलोय प्रकृति द्वारा हमें दिया गया एक बेहतरीन उपहार है आयुर्वेद में तो गिलोय को अनेक बीमारियों में उपयोगी माना ही गया है।

3. गिलोय सभी प्रकार के बुखार में फायदेमंद होती है। विशेष रूप से डेंगू, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू से बचाव, चिकित्सा तथा रोग होने के बाद side effects को दूर करने में अति उपयोगी है तथा सर्दी, खांसी,जुकाम में भी फायदेमंद है। ज्वर निवारण के अतिरिक्त किसी भी लंबी व्याधि के बाद हुई दुर्बलता को मिटाने के लिए भी रसायन के तौर पर गिलोय प्रयुक्त होती है। सभी प्रकार के जीर्ण ज्वरों को दूर करने में गिलोय बहुत फायदेमंद है।

4. गिलोय एक रसायन के रूप में काम करती है। यह शरीर में जाकर खून को साफ़ करती है।

5. गिलोय हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढाती है।

6. गिलोय कोलेस्ट्रोल को कम करती है तथा खून में शूगर के नियंत्रण में सहायता करती है।

7. गिलोय के नित्य प्रयोग से चेहरे पर तेज आता है और असमय ही झुर्रियां नहीं पड़ती।

8. गिलोय त्रिदोशघ्न है अर्थात किसी भी प्रकृति के लोग इसे ले सकते हैं।

9. गिलोय पाचन क्रिया को दुरुस्त करने में सहायक है और इसके सेवन से अंत सम्बन्धी समस्याएं दूर होती हैं।

10. गिलोय अपनी anti-inflammatory और anti-arthritic properties के कारण गठिया में भी फायदेमंद है।

#गिलोय_का_घरेलू_प्रयोग_कैसे_करें...?

1. ज्वर या बुखार होने पर: 4-5 इंच गिलोय के टुकड़े के साथ एक चम्मच धनिया तथा एक टुकड़ा नीम की छाल का आंतरिक भाग मिला कर काढ़ा बना कर लेना बुखार में फायदेमंद है या गिलोय का 4-5 इंच टुकड़ा लेकर उसके साथ 2-3 तुलसी के पत्ते तथा इतनी ही कालीमिर्च लेकर काढ़ा बना कर पीना भी बुखार में फायदेमंद है अथवा केवल गिलोय का काढ़ा बनाकर पीना भी बुखार में आराम देता है स्वाद के लिए इसमें शहद,गुड अथवा चीनी डाल सकते हैं।

2. डेंगू बुखार में: Platelets कम होने पर गिलोय के रस के साथ, aloevera juice,अनार का juice तथा पपीते की पत्तियों का रस मिलाकर लेना फायदेमंद माना जाता है।

3. मधुमेह में: गिलोय का रस कुछ समय तक लगातार दिन में 2 बार लेना मधुमेह में फायदेमंद है।

4. जोड़ों के दर्द में: गिलोय का काढ़ा बनाकर उसमें 10-20 ml अरंडी का तेल मिलाकर सेवन करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है।

5. रक्त विकार होने पर: खाज, खुजली जैसे चर्म रोगों में शुद्ध गुगुल के साथ देने से लाभ होता है।

6. कब्ज होने पर: गिलोय का चूर्ण गुड़ के साथ सेवन करना कब्ज को दूर करता है।

7. मूत्र विकारों में: गिलोय का काढ़ा पेशाब संबंधी परेशानियों को दूर करने में भी फायदेमंद माना गया है।

8. स्किन के लिए: गिलोय का सेवन त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है गिलोय के नित्य प्रयोग से शरीर में कान्ति आती है।

9. पाचन के लिए: आप आधा ग्राम गिलोय पाउडर को आमला या गुड़ में मिला कर खा सकते हैं. इससे आँतों की समस्या नहीं होती।

10. गठिया में: गिलोय के ताने से बनाये गए पाउडर को दूध में मिला कर पीना गठिया में सहायक है। Rheumatoid arthritis के मामलों में आप इसका सेवन अदरक के साथ भी कर सकते हैं।

11. गिलोय रस में खाण्ड डालकर पीने से पित्त का बुखार ठीक होता है। और गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से पित्त का बढ़ना रुकता है।

12. प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी में मिलाकर या शहद गुड़ या मिश्री के साथ गिलोय का रस मिलकर सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होती है।

13. गिलोय ज्वर पीडि़तों के लिए अमृत है, गिलोय का सेवन ज्वर के बाद टॉनिक का काम करता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। शरीर में खून की कमी (एनीमिया) को दूर करता है।

14. फटी त्वचा के लिए गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करके ठंडा करें। इस तेल को फटी त्वचा पर लगाए वातरक्त दोष दूर होकर त्वचा कोमल और साफ होती है।

15. सुबह शाम गिलोय का दो तीन टेबल स्पून शर्बत पानी में मिलाकर पीने से पसीने से आ रही बदबू का आना बंद हो जाता है।

16. गिलोय के काढ़े को ब्राह्मी के साथ सेवन से दिल मजबूत होता है, उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है, गिलोय याददाश्त को भी बढाती है।

17. गिलोय का रस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। प्रतिदिन 2 से 3 बार सेवन करे इससे हाथ पैरों और शरीर की जलन दूर हो जाती है।

18. मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयो पर गिलोय के फलों को पीसकर लगाये मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है।

19. गिलोय, धनिया, नीम की छाल, पद्याख और लाल चंदन इन सब को समान मात्रा में मिलाकर काढ़ा बना लें। इस को सुबह शाम सेवन करने से सब प्रकार का ज्वर ठीक होता है।

20. गिलोय, पीपल की जड़, नीम की छाल, सफेद चंदन, पीपल, बड़ी हरड़, लौंग, सौंफ, कुटकी और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण के एक चम्मच को रोगी को तथा आधा चम्मच छोटे बच्चे को पानी के साथ सेवन करने से ज्वर में लाभ मिलता है।

21. गिलोय, सोंठ, धनियां, चिरायता और मिश्री को सम अनुपात में मिलाकर पीसकर चूर्ण बना कर रोजाना दिन में तीन बार एक चम्मच भर लेने से बुखार में आराम मिलता है।

22. गिलोय, कटेरी, सोंठ और अरण्ड की जड़ को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात के ज्वर (बुखार) में लाभ पहुंचाता है।

23. गिलोय के रस में शहद मिलाकर चाटने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है। और गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन करें इससे बारम्बार होने वाला बुखार ठीक होता है।गिलोय के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकर लेने से जीर्ण-ज्वर तथा खांसी ठीक हो जाती है।

24. गिलोय, सोंठ, कटेरी, पोहकरमूल और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सुबह और शाम सेवन करने से वात का ज्वर ठीक हो जाता है।

25. गिलोय और काली मिर्च का चूर्ण सम मात्रा में मिलाकर गुनगुने पानी से सेवन करने से हृदयशूल में लाभ मिलता है। गिलोय के रस का सेवन करने से दिल की कमजोरी दूर होती है और दिल के रोग ठीक होते हैं।

26. गिलोय और त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता है और गिलोय, हरड़, बहेड़ा, और आंवला मिला कर काढ़ा बनाइये और इसमें शिलाजीत मिलाकर और पकाइए इस का नियमित सेवन से मोटापा रुक जाता है।

27. गिलोय और नागरमोथा, हरड को सम मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना कर चूर्ण शहद के साथ दिन में 2 – 3 बार सेवन करने से मोटापा घटने लगता है।

28. बराबर मात्रा में गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसका एक चम्मच चूर्ण प्रतिदिन मिश्री और घी के साथ सेवन करने से संभोग शक्ति मजबूत होती है।

29. अलसी और वशंलोचन समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, और इसे गिलोय के रस तथा शहद के साथ हफ्ते-दस दिन तक सेवन करे इससे वीर्य गाढ़ा हो जाता है।

30. लगभग 10 ग्राम गिलोय के रस में शहद और सेंधानमक (एक-एक ग्राम) मिलाकर, इसे खूब उबाले फिर इसे ठण्डा करके आंखो में लगाएं इससे नेत्र विकार ठीक हो जाते हैं।

31. गिलोय का रस आंवले के रस के साथ लेने से नेत्र रोगों में आराम मिलता है।

32. गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसमें पीपल का चूर्ण और शहद मिलकर सुबह-शाम सेवन करने से आंखों के रोग दूर हो जाते हैं और आँखों की ज्योति बढ़ जाती हैं।

33. गिलोय के पत्तों को हल्दी के साथ पीसकर खुजली वाले स्थान पर लगाइए और सुबह-शाम गिलोय का रस शहद के साथ मिलाकर झपीने से रक्त विकार दूर होकर खुजली से छुटकारा मिलता है।

34. गिलोय के साथ अरण्डी के तेल का उपयोग करने से पेट की गैस ठीक होती है।

35. श्वेत प्रदर के लिए गिलोय तथा शतावरी का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होता है।गिलोय के रस में शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने से प्रमेह के रोग में लाभ मिलता है।

36. गिलोय के रस में मिश्री मिलाकर दिन में दो बार पीने से गर्मी के कारण से आ रही उल्टी रूक जाती है। गिलोय के रस में शहद मिलाकर दिन में दो तीन बार सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है।

37. गिलोय के तने का काढ़ा बनाकर ठण्डा करके पीने से उल्टी बंद हो जाती है।

38. 6 इंच गिलोय का तना लेकर कुट कर काढ़ा बनाकर इसमे काली मिर्च का चुर्ण डालकर गरम गरम पीने से साधारण जुकाम ठीक होगा।

39. पित्त ज्वर के लिए गिलोय, धनियां, नीम की छाल, चंदन, कुटकी क्वाथ का सेवन लाभकारी है, यह कफ के लिए भी फायदेमंद है।

40. नजला, जुकाम खांसी, बुखार के लिए गिलोय के पत्तों का रस शहद मे मिलाकर दो तीन बार सेवन करने से लाभ होगा।

41. 1 लीटर उबलते हुये पानी मे एक कप गिलोय का रस और 2 चम्मच अनन्तमूल का चूर्ण मिलाकर ठंडा होने पर छान लें। इसका एक कप प्रतिदिन दिन में तीन बार सेवन करें इससे खून साफ होता हैं और कोढ़ ठीक होने लगता है।

42. गिलोय का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार प्रसूता स्त्री को पिलाने से स्तनों में दूध की कमी होने की शिकायत दूर होती है और बच्चे को स्वस्थ दूध मिलता है।

43. एक टेबल स्पून गिलोय का काढ़ा प्रतिदिन पीने से घाव भी ठीक होते है।गिलोय के काढ़े में अरण्डी का तेल मिलाकर पीने से चर्म रोगों में लाभ मिलता है खून साफ होता है और गठिया रोग भी ठीक हो जाता है।

44. गिलोय का चूर्ण, दूध के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से गठिया ठीक हो जाता है।

45. गिलोय और सोंठ सामान मात्रा में लेकर इसका काढ़ा बनाकर पीने से पुराने गठिया रोगों में लाभ मिलता है।

46. या गिलोय का रस तथा त्रिफला आधा कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम भोजन के बाद पीने से घुटने के दर्द में लाभ होता है।

47. गिलोय का रास शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक होता है।

48. मट्ठे के साथ गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण सुबह शाम लेने से बवासीर में लाभ होता है।गिलोय के रस को सफेद दाग पर दिन में 2-3 बार लगाइए एक-डेढ़ माह बाद असर दिखाई देने लगेगा।

49. गिलोय का एक चम्मच चूर्ण या काली मिर्च अथवा त्रिफला का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है।

50. गिलोय की बेल गले में लपेटने से भी पीलिया में लाभ होता है। गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।

51. गिलोय के पत्तों को पीसकर एक गिलास मट्ठा में मिलाकर सुबह सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है।

52. गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके दोनों कानो में दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है और गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस को कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।

53. गिलोय का रस पीने से या गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से प्रदर रोग खत्म हो जाता है या गिलोय और शतावरी को साथ साथ कूट लें फिर एक गिलास पानी में डालकर इसे पकाएं जब काढ़ा आधा रह जाये इसे सुबह-शाम पीयें प्रदर रोग ठीक हो जाता है।

54. गिलोय के रस में रोगी बच्चे का कमीज रंगकर सुखा लें और यह कुर्त्ता सूखा रोग से पीड़ित बच्चे को पहनाकर रखें। इससे बच्चे का सूखिया रोग जल्द ठीक होगा।

55. गिलोय एक रसायन है, यह रक्तशोधक, ओजवर्धक, ह्रुदयरोग नाशक ,शोधनाशक और लीवर टोनिक भी है। यह पीलिया और जीर्ण ज्वर का नाश करती है अग्नि को तीव्र करती है, वातरक्त और आमवात के लिये तो यह महा विनाशक है।

56. गिलोय के 6″ तने को लेकर कुचल ले उसमे 4 -5 पत्तियां तुलसी की मिला ले इसको एक गिलास पानी में मिला कर उबालकर इसका काढा बनाकर पीजिये। और इसके साथ ही तीन चम्मच एलोवेरा का गुदा पानी में मिला कर नियमित रूप से सेवन करते रहने से जिन्दगी भर कोई भी बीमारी नहीं आती। और इसमें पपीता के 3-4 पत्तो का रस मिला कर लेने दिन में तीन चार लेने से रोगी को प्लेटलेट की मात्रा में तेजी से इजाफा होता है प्लेटलेट बढ़ाने का इस से बढ़िया कोई इलाज नहीं है यह चिकन गुनियां डेंगू स्वायन फ्लू और बर्ड फ्लू में रामबाण होता है।

57. गैस, जोडों का दर्द ,शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात असंतुलित होने का लक्षण हैं। गिलोय का एक चम्मच चूर्ण को घी के साथ लेने से वात संतुलित होता है।

58. गिलोय का चूर्ण शहद के साथ खाने से कफ और सोंठ के साथ आमवात से सम्बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है।

59. गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं।

60. गिलोय का रस और गेहूं के जवारे का रस लेकर थोड़ा सा पानी मिलाकर इस की एक कप की मात्रा खाली पेट सेवन करने से रक्त कैंसर में फायदा होगा।

61. गिलोय और गेहूं के ज्वारे का रस तुलसी और नीम के 5 – 7 पत्ते पीस कर सेवन करने से कैंसर में भी लाभ होता है।

62. क्षय (टी .बी .) रोग में गिलोय सत्व, इलायची तथा वंशलोचन को शहद के साथ लेने से लाभ होता है।

63. गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा।

64. एक चम्मच गिलोय का चूर्ण खाण्ड या गुड के साथ खाने से पित्त की बिमारियों में सुधार आता है और कब्ज दूर होती है।
#सदा_स्वस्थ_रहें

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