17/07/2025
#कब्ज_मलावरोध( ) पेट साफ न होने या खुलकर ना आने को ही कब्ज या मलावरोध कहते हैं इसी को कब्जियत या कोस्टबद्धता या कॉन्स्टिपेशन भी कहा जाता है।
#कब्ज_रोग_के_मुख्य_कारण -
• मुख्यतः यह रोग-आँतों की गति कम (Peristalsis) होने से उत्पन्न होता है। यकृत/जिगर (लीवर Liver) की कार्यक्षमता कम होना भी इसके मुख्य कारणों में हैं। इसके अतिरिक्त विद्युत चालित चक्की का चिकना, महीन, बारीक आटा बिना छिलके की दाल, पालिश किये हुए चावल, चोकर रहित आटा की रोटियाँ, छिलका निकाल कर बनाई हुई हरी सब्जियाँ, रेशा रहित आहार का अत्यधिक उपयोग, पानी कम पीने की आदत, परिश्रम रहित अकर्मण्य जीवन यापन, मल त्याग के लिए तम्बाकू, चाय या बीड़ी-सिगरेट सेवन करने की लत/आदत, बार-बार विरेचन/जुलाव लेकर मल त्याग करने की आदत, मलोत्सर्जन की वेग को बलात रोके रहना, चिन्ता, भय, क्रोध और मानसिक विकार, लम्बे समय तक चलने वाले रोग, अत्यधिक परिश्रम तथा अपर्याप्त आहार, मैदा से निर्मित खाद्य पदार्थों को अधिकता से खाना, भोजन में परिवर्तन, कम फाइबर युक्त भोजन खाना तथा पानी कम मात्रा में पीना, गर्भावस्था, भारी (गरिष्ठ) पानी पीना, पानी में बदलाव, वृद्धावस्था में आँतें निर्बल/कमजोर हो जाना, मधुमेह, पोरफायरिया और मानिसक चिन्तन, बहुत सी अंग्रेजी दवाएं यथा कोडीन, ओपिएट्स, एण्टासिड, बेहोशी लाने वाली दवाएं, गैंगिलियोन को ब्लाक करने की दवाएं, मल त्याग में अधिक दर्द होने पर यथा-ऐनल फिशर में, बवासीर में, प्रोक्टाईटिस में रोगी दर्द के भय के कारण मल त्याग हेतु नहीं जाता है। पेट से सम्बन्धित रोग होने की दशा में (वमन, कार्सिनोमा, ओप्मकोलन, पायलेरिक आऊटलेट आब्स टूक्शन।) बड़े आपरेशन के बाद (चूंकि रोगी व्यक्ति कई-कई दिनों तक बिस्तर/पलंग पर लेटा रहता है तथा मुख द्वारा कुछ भी न लेने से मल खुश्क हो जाता है।), मानसिक विकारों द्वारा (एटोनेमिक नर्वस सिस्टम में परिवर्तन आने के कारण), अफीम का अधिक सेवन, रात्रि जागरण, विटामिन 'बी' की कमी, निरन्तर बैठे रहना, क्लर्की जीवन तथा मानसिक कार्य करने वालों में यह कब्ज (कोष्ठबद्धता) एक आम रोग है।
#कब्ज_के_लक्षण -
रोगी में कब्ज के लक्षण मुख्यतः नीचे लिखी बातों पर निर्भर करते हैं
(1) क्षुधानाश/भूख न लगना।
(2) शरीर गिरा हुआ रहना / आलस्य ।
(3) चक्कर आना।
(4) सिर भारी रहना।
(5) जी मिचलाना।
(6) खट्टी डकारें आना।
(7) गुदा द्वार से वायु / गैस का निकलना ।।
(8) पेट भारी रहना।
(9) मानसिक तनाव बने रहना।
(10) जीभ फटी हुई अथवा सफेद होना।
(11) किसी भी कार्य में मन नहीं लगना।
(12) शौच/दस्त साफ न होना।
(13) मल (पाखाना) कम मात्रा में निकलना।
(14) भूख नष्ट हो जाना ।
(15) पेट में भारीपन तथा मीठा-मीठा दर्द होना।
(16) रोगी के शरीर ओर सिर में भारीपन रहना।।
(17) कभी-कभी मुख से दुर्गन्ध की अनुभूति होना।
(18) जिह्वा मलावृत रहना।
(19) पेट में वायु/गैस बनना।
(20) रक्त पर दुष्प्रभाव होने के कारण रक्तभार (ब्लडप्रैशर) में वृद्धि।
(21) मुख का स्वाद/जायका खराब रहना।
(22) आलस्य, सुस्ती, अनिद्रा तथा ज्वर आदि लक्षणों का मिलना।
(23) कब्ज के दीर्घकालिक रोग से बवासीर (पाइल्स), गृध्रसी (सायटिका पेन) आदि रोगों की उत्पत्ति ।
(24) किसी-किसी रोगी को चाय या सिगरेट का सेवन किये बिना मल त्याग न होना
(25) रोगी के मल त्याग हेतु जाने पर भी (काफी देर तक मल त्याग हेतु बैठे रहने के
बाद भी) मल त्याग की प्रवृत्ति न होना।
#कब्ज_की_जटिलतायें (Complications of Constipation)
(1) मल द्वार का विदर (A**l Fissure)
(2) वासीर (Piles)
(3) मूत्र आना रुक जाना (Retention of Urine)
(4) मल का बड़ी आँत और मल द्वार से चिपक जाना (Impaction of Stool)
(5) बड़ी आँत (कोलन) में घाव/व्रण (अल्सर) (Colonic Ulser)
(6) विरेचक बड़ी आँत (Catharitic Colon)
(7) शौच / दस्त पर नियन्त्रण न रहना (In continue of Bowel)
(8) क्सीजन की कमी के कारण बड़ी आँत की सूजन (Ischaemic Colitis)
(9) मल द्वार का नीचे खिसक जाना (Prolapse of Reactum)
(10) कोलन सख्त होकर पाइप जैसा हो सकता है।
(11) लगातार मल त्याग में जोर लगाने से बवासीर, भगन्दर, (फिस्टयूत्त) इनग्वीनल हार्निया, वायोकार्डियल इन्फार्कशन्स अधिकतर हो सकते हैं।
(12) कब्ज रोग से पीड़ित रोगी में स्वाभाविक स्फूर्ति नहीं रहती।
#शोभान्जन_वटी के सेवन से पाचक अग्नि की शिथिलता दूर हो पुनः उसमें चेतना आ जाती है अधिक भोजन या गरिष्ठ भोजन करने से अजीर्ण हो गया हो तो शोभान्जन वटी की दो गोली खा लेने से भोजन जल्दी पच जाता है
शोभान्जन वटी के सेवन से अम्लपित्त में मुंह में खट्टा या कड़वा पानी आना बंद हो जाता है और अन्न का परिपाक भली-भांति होने लगता है पेट के दर्द को कम करने के लिए शोभान्जन वटी की गोली गर्म जल के साथ खा लेने से दर्द में आराम हो जाता है
यह मंदाग्नि, अजीर्ण, अम्लपित्त, उदरशूल और वायूगोला आदि का शीघ्र नाश करती है।
अधिक भोजन या गरिष्ठ भोजन, बासी आदि भोजन करने से उत्पन्न मंदाग्नि कब्जियत आदि इसके सेवन से नष्ट हो जाते हैं।
यह मंदाग्नि को नष्ट कर जठराग्नि को प्रदीप्त करती है। इसकी दो तीन खुराक खाने से ही भूख खूब खुलकर लगती है और भोजन भी ठीक-ठीक पचने लग जाता है।
किसी भी तरह का अजीर्ण हो उसे नष्ट करने के लिए शोभान्जन वटी का प्रयोग अवश्य करें। मात्रा से अधिक भोजन कर लिया हो तो उसे भी यह पचा देती है।
पेट में वायु भर जाने से पेट फूल जाता हो उस समय शोभान्जन वटी की दो गोली गर्म जल के साथ देने से तत्काल लाभ होता है।
शोभान्जन वटी बड़ी आंत तथा छोटी आंत की विकृति को नष्ट करती है।
किसी भी कारण से अग्नि मन्द होकर भूख ना लगती हो, अन्न में अरुचि हो, जी मिचलाता हो, पेट भारी रहता हो, वमन की इच्छा हो या वमन हो जाता हो, अपच दस्त होते हों, या कब्ज रहता हो आदि उपद्रव होने पर शोभान्जन वटी अद्भुत कार्य करती है।
इसके सेवन से भोजन पच कर खूब भूख लगती है और दस्त साफ आता है। जिन्हें बार बार भूख कम लगने की शिकायत हो उन्हें शोभान्जन वटी अवश्य लेनी चाहिए।
अजीर्ण की शिकायत अधिक दिनों तक बनी रहने पर पित्त कमजोर हो जाता है और कफ तथा आंव की वृद्धि हो जाती है इसमें हृदय भारी हो जाना, पेट में भारीपन बना रहना आदि लक्षण होने पर शोभान्जन वटी देने से बहुत शीघ्र लाभ होता है।
शोभान्जन वटी पित्त को जागृत कर कफ और आंव के दोष को पचाकर बाहर निकाल देती है और पाचक रस की उत्पत्ति कर भूख जगा देती है।
यह दीपक पाचक तथा वायुनाशक है।
अजीर्ण के कारण पेट में वायु भर जाती है जिससे डकारें आने लगती हैं इस वायु को पचाने तथा डकारों को बंद करने के लिए शोभान्जन वटी बहुत उपयोगी है।
शोभान्जन वटी के प्रयोग से उर्ध्ववात का शमन शीघ्र ही हो जाता है।
शोभान्जन वटी आम को पचाती तथा अजीर्ण मन्दाग्नि पेट दर्द-परिणाम-शूल, पित्तज शूल आदि रोगों को दूर करती है। इसके नियमित सेवन से पेट-सम्बन्धी किसी व्याधि(रोग) के होने का डर नहीं रहता है, क्योंकि उदर सम्बन्धी व्याधियों का मूल अजीर्ण और कब्ज, इसके सेवन से ना तो अजीर्ण ही हो सकता है और न कब्ज ही होता है। इसलिए उदर सम्बन्धी व्याधियों से रक्षा के लिए शोभान्जन वटी का नियमित प्रयोग करना अति श्रेष्ठ उपाय है।
#त्रिफला_वटी -
यह नेत्रों के लिए हितकर, वर्ण एवं स्वर को उत्तम करने वाली मेघावर्धक, वीर्यवर्धक, भुख को बढ़ाने वाली एवं रूचिकारक है। इसके नियमित सेवन से मस्तिष्क रोग, दंतरोग, हृदय रोग एवं गुर्दे की विभिन्न प्रकार की बीमारियों से रक्षा होती है। साथ ही त्रिफलाघन वटी चर्मरोग, मोटापा, दमा, खाँसी, कब्ज, पेट का फूलना, अजीर्ण आदि में भी बहुत अधिक लाभदायक है।
#विशेष :- आंवला, हरड़ व बहेड़ा के घन को मधु(शहद) के साथ योग(मिलाकर) के साथ (जैसा कि नीचे श्लोक नंबर 44 मात्राशितीयाध्याय 8 सूत्रस्थानम् अष्टांग हृदय में कहा गया है) बनायी गई है जिसके कारण इसका परिणाम कई गुना बढ़ गया और बहुत अधिक लाभकारी बन गई ।
#मात्रा_व_सेवन_विधि:- 3 गोलियाँ रात को सोते समय पानी से लें।
त्रिफलां मधुसर्पिर्भ्यां निशि नेत्रबलाय च ।
स्वास्थ्यानुवृत्तिकृद्यच्च रोगोच्छेदकरं च यत् ।। ४४ ।।
- मात्राशितीयाध्यायः ८ सूत्रस्थानम् अष्टाङ्गहृदये
रात में सेवनीय पदार्थ दृष्टि की शक्ति को बढ़ाने के लिए रात में मधु तथा घी में मिलाकर त्रिफला का सेवन करें। जो-जो द्रव्य स्वास्थ्य की रक्षा करने वाला तथा रोगनाशक हो उस उस का भी निरन्तर सेवन करें। ४४ ॥
#औषधि_के_रूप_में_शहद_युक्त_त्रिफला_वटी -
👉 रात को सोते वक्त शहद युक्त 2 त्रिफला वटी हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होती है।
👉 त्रिफला वटी के सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।
👉 शाम को एक गिलास पानी में शहद युक्त 3 त्रिफला वटी भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी 3, गाय का घी10 ग्राम मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते हैं। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते हैं।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकती है।
👉 शहद युक्त त्रिफला की तीनों जड़ी-बूटियां और शहद आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।
👉 चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 3-3 त्रिफला वटी लेना चाहिए।
👉 शहद युक्त 3 त्रिफला वटी को एक गिलास ताजे पानी में दो-तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। इससे मुँह आने की बीमारी, मुंह के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करती है। इस का काढ़ा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी पाचन और भूख को बढ़ाने वाली और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाली है।
👉 मोटापा कम करने के लिए शहद युक्त त्रिफला वटी को गुनगुने पानी के साथ लें।
👉 शहद युक्त 3 त्रिफला वटी पानी में उबालकर पीने से चरबी कम होती है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद युक्त त्रिफलाघन वटी लेने से अत्यंत लाभ होता है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी घिस कर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है।
👉 शहद युक्त 3 त्रिफला वटी पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी गोमूत्र के साथ एक माह तक लेने से कामला(पीलिया) रोग मिट जाता है।
👉 टॉन्सिल्स के रोगी को शहद युक्त त्रिफला वटी को पानी में भिगोकर उसी पानी से बार-बार गरारे करवायें।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी दुर्बलता का नास करती है और स्मृति को बढा़ती है। दुर्बलता का नास करने के लिए शहद युक्त त्रिफला वटी को घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी को तिल के तेल में मिलाकर इस मिश्रण को 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट की, मासिक धर्म की और दमे की तकलीफे दूर होती है
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।
👉 शहद युक्त त्रिफला वटी को घृतकुमारी में मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला वटी रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।
डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।
👉 यह बटी दीपन-पाचन तथा जायकेदार होने से बहुत प्रसिद्ध है। अजीर्ण रोग को नाश करने के लिए यह बहुत लाभदायक है। भोजन के बाद 2-4 गोली जल के साथ लेने से अन्न अच्छी तरह हजम हो जाता और दस्त भी साफ निकलता है। अरुचि, अजीर्ण, पेट दर्द, पेट में वायु का जमा होना, आँव की शिकायतें, कब्जियत, रक्त-विकार और अम्लपित्त आदि रोगों में यह बटी बहुत फायदा करती है। जो लोग भोजन अच्छी तरह पचने के लिए सोडा वाटर का व्यवहार करते हैं, उनके लिए उसकी अपेक्षा यह अमृत के समान गुणकारी हैं। इससे भोजन अच्छी तरह पचता और खुल कर भूख लगती है और चित्त हमेशा प्रसन्न रहता है। इसके नियमित सेवन से किसी देश के जल का बुरा प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता। इसमें यह विचित्र और अद्भूत शक्ति है। अमीर-गरीब सभी के योग्य, उत्तम गुणदायक यह दवा है।
#हरीतकी_रसायन_वटी
यह बटी दीपन-पाचन तथा जायकेदार होने से बहुत प्रसिद्ध है। अजीर्ण रोग को नाश करने के लिए यह बहुत लाभदायक है। भोजन के बाद 2-4 गोली जल के साथ लेने से अन्न अच्छी तरह हजम हो जाता और दस्त भी साफ निकलता है। अरुचि, अजीर्ण, पेट दर्द, पेट में वायु का जमा होना, आँव की शिकायतें, कब्जियत, रक्त-विकार और अम्लपित्त आदि रोगों में यह बटी बहुत फायदा करती है। जो लोग भोजन अच्छी तरह पचने के लिए सोडा वाटर का व्यवहार करते हैं, उनके लिए उसकी अपेक्षा यह अमृत के समान गुणकारी हैं। इससे भोजन अच्छी तरह पचता और खुल कर भूख लगती है और चित्त हमेशा प्रसन्न रहता है। इसके नियमित सेवन से किसी देश के जल का बुरा प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता। इसमें यह विचित्र और अद्भूत शक्ति है। अमीर-गरीब सभी के योग्य, उत्तम गुणदायक यह दवा है।
#पथ्य_कुपथ्य -
प्रातः समय जागकर नित्य ऊषापान (ठण्डा पानी पीना) और प्रातः भ्रमण (मॉर्निंग वाक् करना) तथा स्नान करना हितकर होता है।
कब्ज में-पका अमरूद, उबली गाजर, पपीता का सेवन कम चिकनाई वा आहार (यथा-गाय का दूध, पनीर, चोकर युक्त आटा की रोटी, मौसमी फल, दाल के स्थान पर हरी सब्जी (बथुआ, पालक आदि), आम, अंगूर, किशमिश, मुनक्का, खजूर, संतरा, नाशपाती एवं कागजी नींबू के रस का उपयोग करें।
• बासी भोजन, वात बर्द्धक भोजन, चिकना और तला हुआ आहार नहीं लेना चाहिए।
#पेट_के_रोगों_से_बचने_के_सरल_उपाय
किसी भी बीमारी के हो जाने पर उसका इलाज करने से अच्छा तो यही है कि बीमारी को होने ही ना दिया जाए। इन नियमों को अपनाकर उदर रोगों से बड़ी ही आसानी से बचा जा सकता है।
(1) सबसे पहली बात तो यह है कि प्रत्येक पदार्थ खूब चबा चबाकर खाना चाहिए जिससे दांतों का काम आंतों को ना करना पड़े। इससे आंतों पर अतिरिक्त कार्यभार नहीं पड़ेगा और पाचन तंत्र सदैव दूरस्त रहेगा।
(2) भोजन कभी भी ठूंस-ठूंसकर यानि अधिक मात्रा में ना करें बल्कि सदैव भूख से एक रोटी कम ही खाना चाहिए।
(3) भोजन करने का समय निश्चित कर लेना चाहिए और प्रतिदिन लगभग उसी समय पर भोजन करना चाहिए। इस उपाय से पाचन क्रिया व्यवस्थित रहती है। समय निश्चित करते समय इस बात का ध्यान रखें कि सुबह और रात के भोजन के मध्य में कम से कम 5 घंटे का अंतर रहे और रात का भोजन सोने से कम से कम 2 घंटे पहले कर लिया जाये।
(4) भोजन करने में न तो कम समय लगना चाहिए और ना ही अधिक सामान्यतः एक समय का भोजन करने में 15 मिनट का समय लगना चाहिए।
(5) व्यावहारिक जीवन में गरिष्ठ पदार्थों व मिर्च-मसाले युक्त पदार्थों से बच पाना असंभव ही है विशेषकर दावत तथा पार्टियों आदि में तो इनका सेवन करना ही पड़ता है ऐसी स्थिति में यह पदार्थ कम ही मात्रा में खाएं और परस्पर विरुद्ध प्रकृति के पदार्थ जैसे - गरम दूध व ठंडे पेय आदि का साथ-साथ सेवन न करें।
(6) अगर बाजार में बनी चाट-पकौड़ी खानी पड़े तो ऐसे स्थान से लें जहां साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता हो और जहां खाद्य पदार्थों पर मक्खियां न भिनभिनाती हों।
(7) प्रतिदिन कुछ ना कुछ शारीरिक श्रम अवश्य करना चाहिए। यदि और कुछ परिश्रम संभव ना हो सके तो प्रतिदिन दो-तीन किलोमीटर दौड़ने ही जाया करें। इससे पाचन तंत्र के साथ-साथ पूरा शरीर चुस्त दुरुस्त बना रहता है।
(8) प्रत्येक पंद्रह दिन में एक दिन का उपवास अवश्य करना चाहिए। इससे पाचन अंगों को विश्राम मिल जाता है और वे फिर से कार्य करने को तैयार हो जाते हैं। उपवास में बिल्कुल भूखे रहने की जरूरत नहीं है बल्कि थोड़ी मात्रा में दूध या फल लिया जा सकता है। उपवास में ताजा पानी पर्याप्त मात्रा में पीना चाहिए।
(9) जब भी पेट में भारीपन महसूस हो, भोजन के प्रति अरुचि हो तो अच्छा यही है कि एक समय का भोजन न किया जाए। इससे पाचन संबंधी परेशानी अपने-आप दूर हो जाती हैं।
उपरोक्त नियम सरल होने के साथ साथ व्यवहारिक भी हैं। इन्हें अपनाना बहुत ही आसान है। आप भी उक्त नियमों को अपनाकर अपने पाचन-तंत्र को सदैव स्वस्थ रख सकते हैं और पेट के रोगों से बच सकते हैं।
वैद्य पंडित पुष्पराज त्रिपाठी
मो०- 093360 55537