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21/10/2022

मिट्टी स्नान बहुत ही लाभकारी होता हैं, इससे शरीर के विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते है खून का संचार अच्छा हो जाता हैं

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नमस्कार मैं विपिन योगाचार्य पिछले 8 वर्षों से अभी तक लोगों को योग सेवा देता आ रहा हूं, सेवा देते देते मैंने यह महसूस ....

20/10/2022
07/08/2022


भारत देश में प्रत्यक्ष रूप से 6,32000 क्रांतिकारी हैं जो शहीद हुए हैं, 6,32000 क्रांतिकारी थे जिन्होंने इस देश के लिए शह...
23/03/2022

भारत देश में प्रत्यक्ष रूप से 6,32000 क्रांतिकारी हैं जो शहीद हुए हैं, 6,32000 क्रांतिकारी थे जिन्होंने इस देश के लिए शहादत दी थीI भगत सिंह उनके सर्वोच्च शिखर पर हैं ऐसा पूरा देश मानता है, शहीदे आजम का खिताब भगत सिंह को मिला, ऐसा पूरे देश की तरफ से उनके लिए भावना है| 23 मार्च को पूरा भारत उनकी शहादत का स्मरण करेगा, उनको श्रद्धांजलि देगा| भगत सिंह जी की शहादत के बारे में आप सब बहुत कुछ जानते हैं बहुत कुछ सुना है, छोटी सी एक जानकारी मैं भी आप सबको देना चाहता हूं | अंग्रेजों की सरकार ने 24 मार्च 1931 का दिन तय किया उनको फांसी देने का, लेकिन एक दिन पहले फांसी क्यों दी, इसके बारे में यदि आप सब लोग जाने तो बहुत अच्छा होगा, अंग्रेजों की सरकार ने फांसी के 1 दिन पहले क्यों भगत सिंह को फांसी पर लटका दिया बिना किसी को जानकारी दिए| क्यों अंग्रेजों की सरकार ने अपने कानूनों और नियम का उल्लंघन किया भगत सिंह को फांसी देने में, आप जानते हैं कि अंग्रेजों की सरकार दुनिया के जिन देशों में चली, और वहां पर उन्होंने फांसी देने के लिए जो नियम कानून बनाएं उनमें से एक नियम यह है कि किसी को भी फांसी दी जाती है तो वह सुबह के समय दी जाती है, दुनिया के सभी देशों में इसका पालन रहता रहा है, इराक के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को भी फांसी दी गई थी तो वह सुबह के समय ही हैं | दुनिया के हर देशों में यह नियम लागू है और आज से नहीं सौ सवा 100 वर्षों पहले से, अंग्रेजों के देश में भी यही नियम था कि फांसी सुबह दी जानी चाहिए, तो 24 मार्च 1931 का दिन उनको फांसी देने का था, लेकिन 23 मार्च की रात को ही उनको फांसी हो गई, बिना किसी को बताए, इसके पीछे का कारण जानना चाहिए| भगत सिंह को फांसी देने से अंग्रेजों की सरकार बहुत घबराई हुई थी, अंग्रेजों की संसद में विशेष अधिवेशन बुलाया गया, और उस पर चर्चा हुई चर्चा दो स्तर पर हुई, अंग्रेजों की संसद में पहली चर्चा हुई कि क्या भगत सिंह को फांसी कराई जा सकती है क्योंकि यदि उनको फांसी हुई तो पूरे भारत में क्रांति फैल जाएगी, और हिंदुस्तान में एक नहीं ऐसे हजारों भगत सिंह आ जाएंगे, जिन को संभालना बहुत मुश्किल हो जाएगा हम हिंदुस्तान पर राज नहीं कर पाएंगे एक भगत सिंह को संभालना तो मुश्किल हो रहा हजारों भगतसिंह हो जाएंगे तो क्या हो जाएगा, हो सकता है हम को एक 2 महीने में ही भारत छोड़ना पड़ जाए ऐसा उनको लगता था कारण इसका क्या था अंग्रेजों की संस्था के लिए जासूसी करने वाला एक संस्था होती थी जिसका नाम अलाइव है लोकल इंटेलिजेंस यूनिट जो अभी भी भारत सरकार के लिए भारत में काम करती है यह अंग्रेजों की बनाई हुई संस्था है जो अभी भी भारत में चलती है, उनकी रिपोर्ट भारत से नियमित रूप से अंग्रेजों की संसद में जा रही थी, भगत सिंह को फांसी देने का फैसला तो उस समय जब वे जेल में थे तो उसके दो ढाई साल पहले ही हो गया था लेकिन एलआईयू की जो रिपोर्ट जा रही थी वह रिपोर्ट कहती थी कि यदि भगत सिंह को फांसी हो गई तो पूरे धा भारत में एक साथ क्रांति आ जाएगी लोग आग बबूला हो जाएंगे पूरे भारत में एक साथ बगावत हो जाएगी और अंग्रेजों को मुश्किल हो जाएगा राज्य चलाना| तो अंग्रेजों की संसद में इस बात का बहुत डर था उसी समय संयोग से उस 1930 1931 में महात्मा गांधी जी लंदन गए हुए थे, वहां के अंग्रेजों के सबसे बड़े नेता अधिकारी इर्विन से बात करने के लिए, इरविन से गांधी जी की बात चल रही थी तो इरविन बोला जी आप यदि चाहे तो हम भगत सिंह को फांसी की सजा से बचा सकते हैं, तो गांधीजी ने कहा कि बिना शर्त के इरविन बोला नहीं शर्त तो माननी पड़ेगी तो गांधीजी ने कहा क्या करना पड़ेगा इरविन बोला आप भगत सिंह से निवेदन करें कि भगत सिंह एक माफीनामा लिखें सॉरी आई एम वेरी सॉरी मैंने अंग्रेजो के खिलाफ बगावत की है इसका मुझे बहुत अफसोस है, अब ऐसा कभी नहीं करूंगा इस तरीके का माफीनामा लिखवा के भगत सिंह के हस्ताक्षर उसमें हो और मेरे सामने उसे आप प्रस्तुत करेंगे, तुम्हें अपनी संसद से कहूंगा कि वे एक स्वर से भगत सिंह को माफ कर दें|
गांधीजी ने कहा कि मैं ऐसी कोई शर्त मान नहीं सकता जिसका कंसल्ट मैंने भगत सिंह से अभी तक किया ना हो तो इरविन ने कहा कि आप भगत सिंह का कंसल्ट ले लीजिए समय आपके पास है, तो गांधीजी ने कहा अभी मैं दो-चार दिन की आपसे मोहलत चाहता हूं, मै मेरे मित्र को एक टेलीग्राम करूंगा और वह लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह से मिलकर बात करेंगे, भगत सिंह के द्वारा बात बनती है तो फिर आगे इस पर मैं आप से चर्चा करूंगा, तो गांधी जी ने एक टेलीग्राम भेजा भारत देश के एक अच्छे महान व्यक्ति तेज बहादुर सप्रू को, इलाहाबाद हाईकोर्ट में बहुत बड़े वकील माने जाते थे, टेलीग्राम में गांधीजी ने कहा कि तुरंत लाहौर जेल जाओ और भगत सिंह से मिलो और पूछो की इर्विन ऐसा कहता है कि आप एक माफीनामा लिखकर दो, तो फांसी की सजा माफ की जा सकती है, तो जब यह जानकारी भगत सिंह को मिली तो उन्होंने साफ मना कर दिया कि मुझे अंग्रेजों की कोई शर्त मंजूर नहीं है, सप्रू जी भगत सिंह को समझाते रहे, उन्होंने दूसरे तरीके से भी समझाया कि यदि आप की फांसी की सजा रुक जाएगी तो आप हजारों क्रांतिकारी तैयार कर सकते हैं भारत की आजादी जल्दी आएगी तो भगत सिंह ने कहा की आजादी आना और मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि अगर मैं छूट गया और माफीनामा मैंने लिख दिया, तो अंग्रेजो के खिलाफ जो बगावत का मामला गरम पड़ गया है वह सब ठंडा हो जाएगा फिर दूसरा कोई भगत सिंह इनमें से निकलकर नहीं आएगा, सप्रो ने कहा क्यों तो भगत सिंह ने कहा भारत वासियों की एक खासियत है कि वह मरने से नहीं डरते हैं मगर मरने के पहले का जो हो दर्द होता है उसको वहां सह नहीं सकते यहां बहुत गहरी बात उन्होंने बोली, मरने से नहीं डरते हैं 1 मिनट में मृत्यु आ जाती है लेकिन मरने के पहले जो दर्द होता है, वह उनकी तकलीफ को बढ़ा देता है, मैं भी एक ऐसा हिंदुस्तानी हूं, मैं मेरी तकलीफ बढ़ाना नहीं चाहता मैं तय कर चुका हूं कि मुझे फांसी हो जाए, सप्रू जी दो-तीन बार भगत सिंह जी को समझाने आए जेल में लेकिन जब वह समझ गए कि भगत सिंह जी नहीं मानेंगे तो उन्होंने गांधीजी को फिर से टेलीग्राम लिखा और उन्होंने कहा कि आपकी इरविन से जो बात हो रही है उसमें भगत सिंह की माफीनामा की चर्चा ना करिएगा क्योंकि भगत सिंह जी माफीनामा नहीं लिखेंगे वह चाहते हैं कि उन्हें फांसी हो और देश में एक बार ठंडी पड़ी हुई क्रांति फिर से जग जाए, हम में से भी कोई नहीं चाहता कि वह माफीनामा लिखकर दें क्योंकि मानते हैं हम कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया, उन्होंने अपने भारत देश के लिए यह सब किया है और भारत अभी ठंडा पड़ा हुआ है, 1919 में एक ज्वाला उठी हुई थी जलियांवाला बाग कांड हम चाहते तो उसी समय देश को आजाद करा सकते थे, अंग्रेजों को भारत से मार के भगा सकते थे लेकिन हमने उस अवसर का फायदा नहीं उठाया, इसी तरीके से अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति यदि निश्चित दिन होती और पूरा भारत एक साथ मिलकर अंग्रेजों को भगाता तो उसी दिन हम को आजादी मिल जाती, अबे फिर से ज्वाला उठने की तैयारी है इसको ठंडा नहीं होने दीजिए, और कृपया करके इरविन के साथ भगत सिंह के माफीनामा की चर्चा बंद कर दीजिए, गांधी जी ने लंदन में एक मीटिंग और बुलाई जिसमें भारत के वे सभी क्रांतिकारी थे जो लंदन में रहकर भारत की क्रांति के लिए काम करते थे उन सब लोगों ने भी यही बात बोली कि भगत सिंह को माफीनामा नहीं लिखना चाहिए, उन्होंने उनके क्रांतिकारी साथियों ने कहा कि इरविन बहुत चालाक आदमी है, और अंग्रेजों की सरकार बहुत खतरनाक है, वह माफीनामा लिखवाना चाहते अपनी सुरक्षा के लिए भारत की आजादी के लिए नहीं क्योंकि उनको डर है कि भगत सिंह को यदि फांसी हो गई तो बगावत इतनी खतरनाक होगी कि सत्ता पलट जाएगी, आर्मी में बगावत हो सकती है एयर फोर्स में बगावत हो सकती है नेवी में बगावत हो सकती है पुलिस में बगावत हो सकती है, क्योंकि आप जानते हैं कि भगत सिंह का जितने दिन मुकदमा चला उतने ही भगत सिंह की लोकप्रियता बढ़ती चली गई, तो उस लोकप्रियता से अंग्रेज डरते थे, तो अंग्रेजों की संसद में एक बैठक हुई उसमें उन्होंने बात की कि यदि भगत सिंह को फांसी हो जाएगी तो वहां के लोग भगत सिंह का शरीर मांगेंगे और उसको वे जुलूस के रूप में सम्मान के साथ उसका अंतिम संस्कार करेंगे और उसमें बगावत आक्रोशित ना पड़ जाएगा कि हमें पंजाब से भागना पड़ जाएगा और हो सकता है एक बहुत बड़ा भारत का टुकड़ा हमारे कब्जे से छूट जाए , तो अंग्रेजों की संसद में एलआईयू की जो अंतिम रिपोर्ट आई थी उसमें अलाइव की रिपोर्ट में बोला गया कि यदि भगत सिंह को फांसी उसी दिन हो जाती है और उनका अंतिम संस्कार सम्मान के साथ वहां के लोग कर देते हैं तो पूरा पंजाब जल जाएगा, और अंग्रेज सरकार बचा नहीं पाएगी अपने आपको क्योंकि अंग्रेज की सरकार में काम करने वाले जो भारतवासी हैं वह लोग भी बगावत कर बैठेंगे, एक एलआईयू रिपोर्ट के अधिकारी ने यहां तक कह दिया कि अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति में वहां के लोगों से एक गलती हो गई थी और उस गलती को वे लोग अब सुधारना चाहते हैं गलती यह थी कि जिस दिन क्रांति की मशाल जल्दी थी उसके कुछ दिन पहले से अलग-अलग जगह पर क्रांति की चिंगारी जलने लगी थी यदि एक ही दिन सब लोग क्रांति की चिंगारी जलाते तो बात कुछ और होती, उस समय जो दिन डिसाइड हुआ था वह 10 मई 18 सो 57 का था मगर कहीं 30 मार्च को कहीं किसी और दिन क्रांति की शुरुआत हुई, तो यह जो अलग-अलग उस समय क्रांति हुई थी उसको अंग्रेजों ने आर्मी की ताकत से दबा दिया था मगर इस बार मामला कुछ और है, तो अंग्रेजो के पार्लियामेंट में एक प्रस्ताव पारित हुआ और वह भारत भेजा गया कि किसी को पता ना चले इस तरीके से भगत सिंह को फांसी दे दी जाए तो इस तरीके से भगत सिंह को 1 दिन पहले रात में फांसी दे दी गई भगत सिंह के साथ सुखदेव और राजगुरु जी को भी फांसी दे दी गई , फांसी देने के बाद दो-तीन मिनट में उनकी मृत्यु हो जाएगी और उनकी उनके शरीर को उठाकर बाहर किसी नदी के किनारे जला दिया जाएगा चुपके से, रात भर में सब जल जाएगा और सुबह जब लोग आएंगे तब तक कि भगत सिंह की राख मिलेगी, इस चालाकी और कुटिलता के साथ 23 मार्च 1931 को सांयकाल 7:15 बजे भगतसिंह,सुखदेव, राजगुरु को फांसी की सजा दे दी गई और इन सभी क्रान्तिकारी के शरीर के टुकड़े करवाकर सेंट्रल जेल लाहौर की पीछे की दीवार तोड़कर बाहर सतलुज नदी के किनारें लाए और बिना किसी रीति रिवाज के शरीर को जला रहे थे, उसी बीच कुछ गांव के लोगों को भनक लगी और जलती लाश को अपने कब्जे में ले लिया I हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव की समाधि स्थल है जो अमृतसर के नजदीक भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर है, साथ ही साथ क्रान्तिकारी बी. के. दत्त जिन्होंने भगत सिंह के साथ दिल्ली में सेंट्रल एसेंबली में बम फेंका था उनका निधन 19 जुलाई 1965 में हुआ उनका भी दाह संस्कार इसी स्थान पर किया गया था| तो अंग्रेजों की सरकार ने भगत सिंह को 1 दिन पहले फांसी इसलिए दी क्योंकि उनको डर था कि बगावत हो जाएगी, तो निष्कर्ष यह निकला कि अंग्रेजों की सरकार सिर्फ एक भगत सिंह से इतनी डरी हुई थी कि वह उनको फांसी देने से डर रहे थे, तो अंग्रेजों के अंदर इतनी घबराहट थी जिन्होंने उन भगत सिंह को करीब से देखा वह कहते थे कि भारत में ऐसे से क्रांतिकारी हैं जो मरने से नहीं डरते हैं, हिंदुस्तानियों को मरने का डर दिखाकर गुलाम बनाना बहुत कठिन है कोई और रास्ता हमें देखना पड़ेगा

आज भी भगत सिंह की समाधि हुसैनीवाला में है
फिरोजपुर शहर से 10 किलोमीटर दूरी पर बने हुसैनीवाला बार्डर पर ये वही जगह है जो कुछ साल पहले पाकिस्तान के कब्जे में थी। यहां पर शहीद भगत सिंह के अलावा सुखदेव, राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त जैसे आज़ादी के दीवानों की समाधि है।
यहां पर वह पुरानी जेल भी है, जहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव लाहौर जेल में शिफ्ट करने से पहले रखा गया था। स्मारक स्थल पर लगे बोर्ड के मुताबिक अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांड्रस की हत्या के दोष में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई तो इसके विरोध में पूरा लाहौर बगावत के लिए उठ खड़ा हुआ।
रेलवे ट्रैक को ब्लॉक कर यहां लिखा गया है- द एंड ऑफ नार्दर्न रेलवे। पूरे साल में एक दिन यानि 23 मार्च को फिरोजपुर से एक स्पेशल ट्रेन बार्डर के लिए चलती है। यहां हर साल मार्च में शहीदी दिवस के मौके पर बड़ा मेला लगता है।
बटुकेशवर दत्त का निधन 19 जुलाई 1965 को दिल्ली में हुआ। उनकी अंतिम इच्छा अनुसार उनका अंतिम संस्कार भी इसी स्थान पर किया गया। इस स्मारक पर चारों के समाधि स्थल बने हुए हैं। बहुत कम लोग जानते होंगे कि हुसैनीवाला स्थित समाधि स्थल 1960 से पहले पाकिस्तान के कब्जे में था। जन भावनाओं को देखते हुए 1950 में तीनों शहीदों की समाधि स्थल पाक से लेने की कवायद शुरू हुई।करीब 10 साल बाद फाजिल्का के 12 गांव व सुलेमान की हेड व‌र्क्स पाकिस्तान को देने के बाद शहीद त्रिमूर्ति से जुड़ा समाधि स्थल भारत को मिल गया। सतलुज दरिया के करीब बना इस समाधि स्थल को अब पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जा रहा है। समाधि स्थल के आसपास ग्रीनरी क्षेत्र विकसित किया जा रहा है। यहां पार्क और झूले-फव्वारे लगाए गए हैं।

योगसेवक विपिन योगाचार्य

14/03/2022

प्लासी का पहला युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में भागीरथी नदी के किनारे 'प्लासी' नामक स्थान में हुआ था। इस युद्ध में एक ओर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना थी तो दूसरी ओर थी बंगाल के नवाब की सेना। कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में नवाब सिराज़ुद्दौला को हरा दिया था। किंतु इस युद्ध को कम्पनी की जीत नही मान सकते कयोंकि युद्ध से पूर्व ही नवाब के तीन सेनानायक मीर जाफर, उसके दरबारी, तथा राज्य के अमीर सेठ जगत सेठ आदि से कलाइव ने षडंयत्र कर लिया था। नवाब की तो पूरी सेना ने युद्ध मे भाग भी नही लिया था युद्ध के फ़ौरन बाद मीर जाफ़र के पुत्र मीरन ने नवाब की हत्या कर दी थी। युद्ध को भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है इस युद्ध से ही भारत की दासता की कहानी शुरू होती है।
निष्कर्ष -
क्लाइव को पता था कि उनकी सेना में 300 सैनिक है और सिराजुद्दौला की सेना में लगभग 18000 सैनिक है, अब किसी भी बच्चे से पूछिए कि 300 वाला जीतेगा या 18000 वाला तो जवाब आपको मिल जाएगा, यही बात क्लाइव भी जानता था, इसलिए उसने अपने दो जासूस सिराजुद्दौला कि सेना में लगा दिया कि कैसे इनकी सेना को तोड़ा जाए उस सेना में सेनापति मीर जाफर का पता चला कि वह व्यक्ति बहुत लालची और पैसों के लिए साम्राज्य के लिए वह अपना देश भी बेच सकता है, जैसा कि आजकल राजनीति में भी होता है इसी का फायदा उठाते हुए रॉबर्ट क्लाइव ने मीर जाफर को चिट्ठी लिखी और उसमें उस ने मीर जाफर को लालच दिया प्रलोभन दिया कि यदि तुमको कोलकाता का राजा बना दें तो तुमसे बस मुझे 5 परसेंट चाहिए बाकी का राज्य साम्राज्य सब कुछ तुमको ही नियंत्रण करना है इस लालच में आकर मीर जाफर ने जिस दिन युद्ध होना था अपनी सेना को रॉबर्ट क्लाइव की सेना के सामने सरेंडर करने को बोल दिया इसका मतलब साफ है कि बिना युद्ध किए अंग्रेजों ने सिराजुद्दोला को परास्त कर दिया कुछ ही समय बाद अंग्रेजों ने मीर जाफर को भी मार दिया और कोलकाता पर अपना अधिकार जमा लिया इस तरीके से देश गुलामी की जंजीरों में बंध गया|

ज्ञानवी योग
साधक विपिन योगाचार्य

19/02/2022

जिस देश की अपनी उत्पादन क्षमता गांव गांव तक फैली हो, जहां हर गांव में १००—१०० छोटे बड़े उद्योग हो, करखाने हों वह देश विकास की ओर अग्रसर होता हैं, और विकास तभी संभव है जब तकनीक हो, तकनीक तभी संभव है जब विज्ञान हो, विज्ञान तभी संभव है जब शोध हो और शोध तभी संभव हैं जब भारत के प्रत्येक सरकारी स्कूलों की शिक्षा बड़े बड़े प्राइवेट स्कूल के जैसे हों और यह व्यवस्था करना शासन प्रशासन का काम हैं, जिसकी कमान हमरे हाथों में एक बार जरूर आती हैं I
द्वारा — विपिन मौर्या योगाचार्य

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Rajajipuram
Lucknow

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