वास्तव में यह सोचनीय विषय है की नित नई दवाएं ईजाद हो रही हैं, नए मेडिकल कालेज खुल रहे हैं औए उनमें से हजारों की संख्या में डॉक्टर निकल रहे हैं , फिर भी रोग और रोगियों की संख्या में वृद्धी होती जा रही है | निश्चित रूप से रोगी होने के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं – अप्राकृतिक आहार,विहार और विचार मूलतः रोगों का कारण है | यदि हम प्राकृतिक जीवन शैली को अपना लें तो बिना किसी दवा या चिकित्सक के पहले सुख का सपना साकार हो सकता है |
आयुर्वेद का कथन है -” प्रकृति स्मामिक्ष स्मरेत ” अर्थात ‘प्रकृति का सदैव अनुसरण करो |” मनुष्यों से दूर जंगल में रहने वाले जीव-जंतु कम बीमार पड़ते हैं और बीमार पड़ने पर जल्द ही स्वस्थ्य हो जाते हैं | उन्हें किसी दवा की जरूरत नही पडती वे कोई टॉनिक नही पीते फिर भी वे मनुष्य से अधिक शक्तिशाली होते हैं | उनकी माँ गर्भकाल में कोई कथित स्वस्थ्य संबर्द्धक औषधियां नही लेती न ही कोई विटामिन/आयरन आदि खनिजों को गोलियों के रूप खाती हैं फिर भी वे बिना किसी सर्जरी,बिना किसी कष्ट के अपने बच्चे को जन्म देती हैं,वह भी ऐसे बच्चे को जो जन्म से ही फुदकने दौड़ने लगे, मनुष्य की तरह कोमल सुकुमार शिशु की तरह नहीं जिसको एक फूल की चोट लगते ही शरीर पर खून की लाली उभर आये | ऐसा इसलिए है की जानवर प्रकृति के सानिध्य में रहते हैं और प्रकृति प्रदत्त भोजन करते हैं |