Swami Atmo Darshan Ayurveda moga

Swami Atmo Darshan Ayurveda moga Guru Ramdas Ayurveda Opp. Baldev Da Dhaba Godhewala, Ludhiana Road, Moga Panjab

15/03/2025

*शरीर को अल्कलाइन बनाये *

मधुमेह जाग्रति अभियान याने जीवनशैली में परिवर्तन और उसी सन्दर्भ में शरीर की एसिडिक कंडीशन को अल्कलाइन में बदलने से अनेक रोग से मुक्ति मिल जाती है आज उसी सन्दर्भ में महत्चपूर्ण जानकारी शेयर कर रहे है जो सभी को अपनाना चाहिए
*शरीर को कर लो Alkaline हार्ट कैंसर किडनी थाइरोइड शुगर आर्थराइटिस सोरायसिस भी पास नहीं फटकेगा।*

कोई भी रोग हो चाहे के कैंसर भी Alkaline वातावरण में पनप नहीं सकता – *डॉक्टर Otto Warburg,* नोबेल पुरस्कार विजेता, 1931.

*“No Disease including cancer, can exist in an alkaline envioronment” Dr. Otto Warburg – Noble Prize Winner 1931*

➡ *दोस्तों कई दिनों से हम सोच रहे थे के हम आपको एक ऐसी चीज बताएं जिस से के आपके शरीर के सभी रोग स्वतः ही समाप्त हो जाए,*--- जैसे :

डायबिटीज, कैंसर, हार्ट, ब्लड प्रेशर, जोड़ों का दर्द, UTI – पेशाब के रोग, Osteoporosis, सोरायसिस, यूरिक एसिड का बढ़ना, गठिया – Gout, थाइरोइड, गैस, बदहजमी, दस्त, हैजा, थकान, किडनी के रोग, पेशाब सम्बंधित रोग, पत्थरी और अन्य कई प्रकार के जटिल रोग। इन सबको सही करने का सबसे सही और सस्ता उपयोग है शरीर को एल्कलाइन कर लेना।

*पहले तो जानिए पी एच लेवल क्या है?*

इसको समझने के लिए सबसे पहले आपको PH को समझना होगा, हमारे शरीर में अलग अलग तरह के द्रव्य पाए जाते हैं, उन सबकी PH अलग अलग होती है,

हमारे शरीर की सामान्य *Ph 7.35 से 7.41* तक होती है,

PH पैमाने में PH 1 से 14 तक होती है, 7 PH न्यूट्रल मानी जाती है, यानी ना एसिडिक और ना ही एल्कलाइन। 7 से 1 की तरफ ये जाती है तो समझो *एसिडिटी* यानी *अम्लता* बढ़ रही है, और 7 से 14 की तरफ जाएगी तो *Alkalinity* यानी *क्षारीयता* बढ़ रही है।

अगर हम अपने शरीर के अन्दर पाए जाने वाले विभिन्न द्रव्यों की PH को Alkaline की तरफ लेकर जाते हैं। तो हम बहुत सारी बीमारियों के मूल कारण को हटा सकते हैं, और उनको हमेशा के लिए Cure कर सकते हैं।

*Cancer and PH – कैंसर*

*उदहारण के तौर पर सभी तरह के कैंसर सिर्फ Acidic Environment में ही पनपते हैं।*
क्यूंकि कैंसर की कोशिका में शुगर का ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में Fermentation होता है जिससे अंतिम उत्पाद के रूप में लैक्टिक एसिड बनता है और यही लैक्टिक एसिड Acidic Environment पैदा करता है जिस से वहां पर एसिडिटी बढती जाती है और कैंसर की ग्रोथ बढती जाती है। और ये हम सभी जानते हैं के कैंसर होने का मूल कारण यही है के कोशिकाओं में ऑक्सीजन बहुत कम मात्रा में और ना के बराबर पहुँचता है। और वहां पर मौजूद ग्लूकोस लैक्टिक एसिड में बदलना शुरू हो जाता है।

*Gout and PH – गठिया*

*दूसरा उदहारण है*-- Gout जिसको गठिया भी कहते हैं, इसमें रक्त में *यूरिक एसिड* की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे रक्त एसिडिक होना शुरू हो जाता है, जितना ब्लड अधिक एसिडिक होगा उतना ही यूरिक एसिड उसमे ज्यादा जमा होना शुरू हो जायेगा। अगर हम ऐसी डाइट खाएं जिससे हमारा पेशाब Alkaline हो जाए तो ये बढ़ा हुआ यूरिक एसिड Alkaline Urine में आसानी से बाहर निकल जायेगा।

*UTI and PH – पेशाब का संक्रमण*

*तीसरा उदहारण है* -- UTI जिसको Urinary tract infection कहते हैं, इसमें मुख्य रोग कारक जो बैक्टीरिया है वो E.Coli है, ये बैक्टीरिया एसिडिक वातावरण में ही ज्यादा पनपता है। इसके अलावा Candida Albicanes नामक फंगस भी एसिडिक वातावरण में ही ज्यादा पनपता है। इसीलिए UTI तभी होते हैं जब पेशाब की PH अधिक एसिडिक हो।

*Kidney and PH – किडनी*

*चौथी एक और उदाहरण देते हैं*--- किडनी की समस्या मुख्यतः एसिडिक वातावरण में ही होती है, अगर किडनी का PH हम एल्कलाइन कर देंगे तो किडनी से सम्बंधित कोई भी रोग नहीं होगा। मसलन क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड, पत्थरी इत्यादि समस्याएँ जो भी किडनी से सम्बंधित हैं वो नहीं होंगी।

*वर्तमान स्थिति*
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आजकल हम जो भी भोजन कर रहें हैं वो *90 प्रतिशत* तक एसिडिक ही है, और फिर हमारा सवाल होता है कि हम सही क्यों नहीं हो रहे ? या फिर कहते हैं कि हमने ढेरों इलाज करवाए मगर आराम अभी तक नहीं आया। बहुत दवा खायी मगर फिर भी आराम नहीं हो रहा। तो उन सबका मुख्यः कारण यही है के उनका PH लेवल कम हो जाना अर्थात एसिडिक हो जाना।

*आज हम इसी विषय पर बात करेंगे कि कैसे हम अपना PH level बढ़ाएं और इन बिमारियों से मुक्ति पायें।_*

*कैसे बढ़ाएं PH level ? --*

इन सभी Alkaline क्षारीय खाद्य पदार्थो का सेवन नित्य करिये...

फल –* सेब, खुबानी, ऐवोकैडो, केले, जामुन, चेरी, खजूर, अंजीर, अंगूर, अमरुद, नींबू, आम, जैतून, नारंगी, संतरा, पपीता, आड़ू, नाशपाती, अनानास, अनार, खरबूजे, किशमिश, इमली, टमाटर इत्यादि फल।

- इसके अलावा तुलसी, सेंधा नमक, अजवायन, दालचीनी, बाजरा इत्यादि।

15/03/2025

संभोग सम्राट योग
सफेद मूसली,काली मूसली,बहमन सफेद,बहमन काला,सालम पंजा,साल्व मिश्री,कौंच, सतावर,अश्वगंधा,उतंगन बीज,साल्व गटा,रूमी मस्तगी,अकरकरा, विधारिकन्द, संगाडा,जवित्री,दालचीनी,लौंग, केशर,शिलाजीत,श्रृंग भस्म,मोती पिसटी,प्रवाल पिसटी,मकरध्वज,उडद,अबर्क़ भस्म,बीजबंद,फौलाद भस्म,मुक्ता सूक्ति भस्म,स्वर्ण भस्म,............
9812860927

15/03/2025

50 ग्राम भुने हुए चने
50 ग्राम बादाम
50 ग्राम काजू
50 ग्राम खसखस
20 ग्राम छोटी इलायची
50,50 ग्राम चारों मगज़
50 ग्राम सौंफ
05 ग्राम भूरी मिर्च
300 से 450 ग्राम मिश्री
3 से 6 ग्राम सुबह शाम दूध के साथ
आंखों की रोशनी बढ़ाता है,सिर दर्द, बालों के लिए, कमर दर्द,नींद के लिए,जादास्त बढ़ाता है।
स्वामी आत्मो दर्शन
9812860927

15/03/2025

दही में नमक डाल कर न खाऐं

कभी भी आप दही को नमक के साथ मत खाईये । दही को अगर खाना ही है, तो हमेशा दही को मीठी चीज़ों के साथ खाना चाहिए जैसे कि चीनी, गुड, शक्कर या बूरे के साथ आदि।

इस क्रिया को और बेहतर से समझने के लिए आपको बाज़ार जाकर किसी भी साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट की दूकान से एक लेंस खरीदना है। अब अगर आप दही में इस लेंस से देखेंगे तो आपको छोटे- छोटे करोड़ो बैक्टीरिया नज़र आएंगे।

ये बैक्टीरिया जीवित अवस्था में आपको इधर- उधर चलते- फिरते नजर आएंगे ये बैक्टीरिया जीवित अवस्था में ही हमारे शरीर में जाने चाहिए....? क्योंकि जब हम दही खाते हैं तो हमारे अंदर एंजाइम प्रोसैस अच्छे से चलता है ।

हम दही केवल बैक्टीरिया के लिए खाते हैं ।

दही को आयुर्वेद की भाषा में जीवाणुओं का घर माना जाता है,
अगर आप मीठा दही खायेंगे तो ये बैक्टीरिया आपके लिए काफ़ी फायदेमंद साबित होंगे ।

वहीं अगर आप दही में एक चुटकी नमक भी मिला लें तो एक मिनट में सारे बैक्टीरिया मर जायेंगे और उनकी लाश ही हमारे अंदर जाएगी जो कि किसी काम नहीं आएगी ।

अगर आप 100 किलो दही में एक चुटकी नामक डालेंगे तो दही के सारे बैक्टीरियल गुण खत्म हो जायेंगे....? क्योंकि नमक में जो कैमिकल्स है वह इन जीवाणुओं के दुश्मन है ।

आयुर्वेद में कहा गया है कि दही में ऐसी चीज़ मिलाएं, जो कि जीवाणुओं को बढाये ना कि उन्हें मारे या खत्म करे ।

दही को गुड़ के साथ खाईये, गुड़ डालते ही जीवाणुओं की संख्या मल्टीप्लाई हो जाती है और वह एक करोड़ से दो करोड़ हो जाते हैं । थोड़ी देर गुड मिला कर रख दीजिए।

बूरा डालकर भी दही में जीवाणुओं की ग्रोथ कई गुना ज्यादा हो जाती है ।

मिश्री को अगर दही में डाला जाये तो ये सोने पर सुहागे का काम करेगी।

पुराने समय के लोग अक्सर दही में गुड़ डाल कर दिया करते थे।

15/03/2025

प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व-
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परिचय- आयुर्वेद के अनुसार किसी भी तरह के रोग होने के कारण होते हैं-

1. वात:- शरीर में गैस बनना।

2. पित्त:- शरीर की गर्मी बढ़ना ।

3. कफ:- शरीर में बलगम बनना।

नोट:- किसी भी रोग के होने का कारण एक भी हो सकता है और दो भी हो सकता है या दोनों का मिश्रण भी हो सकता है या तीनों दोषों के कारण भी रोग हो सकता है।



1. वात होने का कारण

गलत भोजन, बेसन, मैदा, बारीक आटा तथा अधिक दालों का सेवन करने से शरीर में वात दोष उत्पन्न हो जाता है।
दूषित भोजन, अधिक मांस का सेवन तथा बर्फ का सेवन करने के कारण वात दोष उत्पन्न हो जाता है।

आलसी जीवन, सूर्यस्नान, तथा व्यायाम की कमी के कारण पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है जिसके कारण वात दोष उत्पन्न हो जाता है।
इन सभी कारणों से पेट में कब्ज (गंदी वायु) बनने लगती है और यही वायु शरीर में जहां भी रुकती है, फंसती है या टकराती है, वहां दर्द होता है। यही दर्द वात दोष कहलाता है।

2. पित्त होने का कारण

पित्त दोष होने का कारण मूल रुप से गलत आहार है जैसे- चीनी, नमक तथा मिर्चमसाले का अधिक सेवन करना।
नशीली चीजों तथा दवाईयों का अधिक सेवन करने के कारण पित्त दोष उत्पन्न होता है।

दूषित भोजन तथा केवल पके हुए भोजन का सेवन करने से पित्त दोष उत्पन्न होता है।

भोजन में कम से कम 75 से 80 प्रतिशत क्षारीय पदार्थ (फल, सब्जियां इत्यादि अपक्वाहार) तथा 20 से 25 प्रतिशत अम्लीय पक्वाहार पदार्थ होने चाहिए। जब इसके विपरीत स्थिति होती है तो शरीर में अम्लता बढ़ जाती हैं और पित्त दोष उत्पन्न हो जाता है।

3. कफ होने का कारण

तेल, मक्खन तथा घी आदि चिकनाई वाली चीजों को हजम करने के लिए बहुत अधिक कार्य करने तथा व्यायाम की आवश्यकता होती है और जब इसका अभाव होता है तो पाचनक्रिया कम हो जाती है और पाचनक्रिया की क्षमता से अधिक मात्रा में चिकनाई वाली वस्तुएं सेवन करते है तो कफ दोष उत्पन्न हो जाता है।

रात के समय में दूध या दही का सेवन करने से कफ दोष उत्पन्न हो जाता है।

वात, पित्त और कफ के कारण होने वाले रोग निम्नलिखित हैं-

वात के कारण होने वाले रोग

अफारा, टांगों में दर्द, पेट में वायु बनना, जोड़ों में दर्द, लकवा, साइटिका, शरीर के अंगों का सुन्न हो जाना, शिथिल होना, कांपना, फड़कना, टेढ़ा हो जाना, दर्द, नाड़ियों में खिंचाव, कम सुनना, वात ज्वर तथा शरीर के किसी भी भाग में अचानक दर्द हो जाना आदि।

पित्त के कारण होने वाले रोग

पेट, छाती, शरीर आदि में जलन होना, खट्टी डकारें आना, पित्ती उछलना (एलर्जी), रक्ताल्पता (खून की कमी), चर्म रोग (खुजली, फोड़े तथा फुन्सियां आदि), कुष्ठरोग, जिगर के रोग, तिल्ली की वृद्धि हो जाना, शरीर में कमजोरी आना, गुर्दे तथा हृदय के रोग आदि।

कफ के कारण होने वाले रोग

बार-बार बलगम निकलना, सर्दी लगना, श्वसन संस्थान सम्बंधी रोग (खांसी, दमा आदि), शरीर का फूलना, मोटापा बढ़ना, जुकाम होना तथा फेफड़ों की टी.बी. आदि।



वात से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार

आहार चिकित्सा

वात से पीड़ित रोगी को अपने भोजन में रेशेदार भोजन (बिना पकाया हुआ भोजन) फल, सलाद तथा पत्तेदार सब्जियों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।

मुनक्का अंजीर, बेर, अदरक, तुलसी, गाजर, सोयाबीन, सौंफ तथा छोटी इलायची का भोजन में अधिक उपयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में लहसुन की 2-4 कलियां खानी चाहिए तथा अपने भोजन में मक्खन का उपयोग करना चाहिए इसके फलस्वरूप वात रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

उपवास

वात रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले कुछ दिनों तक सब्जियों या फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए तथा इसके बाद अन्य चिकित्सा करनी चाहिए।

पित्त से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार

आहार चिकित्सा

पित्त रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सब्जियों तथा फलों का रस पीना चाहिए।

पित्त रोग से पीड़ित रोगी को भूख न लग रही हो तो केवल फलों का रस तथा सब्जियों का रस पीना चाहिए और सलाद का अपने भोजन में उपयोग करना चाहिए। इसके फलस्वरूप उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति को पूरी तरह स्वस्थ होने तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए।

पित्त रोग से पीड़ित रोगी को खट्टी, मसालेदार, नमकीन चीजें तथा मिठाईयां नहीं खानी चाहिए क्योंकि इन चीजों के सेवन से पित्त रोग और बिगड़ जाता है।

पित्त के रोगी के लिए गाजर का रस पीना बहुत ही लाभकारी होता है, इसलिए रोगी को प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में कम से कम 1 गिलास गाजर का रस पीना चाहिए।

अनार, मुनक्का, अंजीर, जामुन, सिंघाड़ा, सौंफ तथा दूब का रस पीना पित्त रोगी के लिए बहुत ही लाभकारी होता है।

पित्त रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में लहसुन की 2-4 कलियां खाने से बहुत लाभ मिलता है।
स्वामी आत्मो दर्शन
9812860927

Address

Moga
142001

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