Chaitanyaa Sachde

Chaitanyaa Sachde Chaitanyaa Sachde
| Mental Health Advocate | Fortis Young Mental Health Advocacy Program - Batch of 2022 |

12/10/2023

Millions struggle with mental illness silently due to stigma and discrimination.

Let's .

Mental Health is a universal human right.
It's time to .

17/09/2023

Psych-ED: The Psychology Quiz for Schools is here!Divya Jain, Head of Psychological Services, Fortis National Mental Health Program, shares a message for all...

17/09/2023

Thankyou



17/09/2023
17/09/2023

Psych-ED: The Psychology Quiz for Schools is here!Dr. Shambhavi Jaiman, Psychiatrist, Department of Mental Health & Behavioural Sciences, Fortis Healthcare, ...

17/09/2023

Psych-ED: The Psychology Quiz for Schools is here!Aakriti Gupta, Art Therapist, Department of Mental Health & Behavioural Sciences, Fortis Healthcare, shares...

17/09/2023

Psych-ED: The Psychology Quiz for Schools is here!Nishtha Narula, Lead - Counselling Psychology, Department of Mental Health and Behavioural Sciences, Fortis...

17/09/2023

Fun with Psych-ED Round 3 with Stuti Sood and Aditi KaulThe guessers - Dr. Vishal Chhabra, Dr. Samir Parikh and Nishtha Narula gets psyched with Stuti Sood a...

17/09/2023

Dr. Samir Parikh shares a message on World Su***de Prevention Day - is a collective responsibility to ensure Su***de Prevention. ...

17/09/2023

Love U ज़िंदगी
यह सच है कि हर शख्स कुछ तनाव या स्ट्रेस में रहता है। यह किसी को कम तो किसी को ज्यादा होता है। लेकिन तनाव इस कदर न बढ़ जाए कि अंदर टूटने का अहसास होने लगे। कई बार टूटना बिखरने की स्थिति में बदलने लगता है। ऐसे में सवाल उठता है कि हम कैसे समझें कि वह शख्स बिखरने के कगार पर पहुंच रहा है? ऐसे शख्स से कैसे बात करनी चाहिए, क्या नहीं कहना चाहिए? ऐसी तमाम बातों पर विस्तार से बात करने के लिए देश के जाने-माने सीनियर साइकायट्रिस्ट डॉ. समीर पारिख दिल्ली स्थित NBT के ऑफिस आए और संडे एनबीटी टीम से बात की। बातों का निचोड़ पेश कर रहे हैं लोकेश के. भारती

आत्महत्या रोकथाम दिवस (आज)
पर विशेष

इस धरती पर शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जो तनाव में न हो। तनाव अच्छी चीज़ भी है और बुरी भी। अगर तनाव की वजह से हम काम समय पर पूरा कर पाते हैं तो यह बढ़िया है। कहा भी गया है ऑप्टिमम स्ट्रेस, ऑप्टिमम रिजल्ट।
जब बात मानसिक बीमारियों की होती है तो
3 बातों की चर्चा होती है:
स्ट्रेस यानी तनाव: पढ़ाई हो या फिर जॉब, हर जगह कुछ-न-कुछ तनाव होना चाहिए। लेकिन यह सिर्फ इतना हो कि काम पूरा करने में मदद करे, न कि हमारी कार्यक्षमता को ही प्रभावित करने लगे। अगर तनाव चिंता में बदल जाएगा तो हम काम या पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाएंगे। सीधे कहें तो जब कोई तनाव हमारी आम ज़िंदगी के कामों पर असर डालने लगे तो समझ लें कि कुछ उपाय करने की जरूरत है।
कैसे लड़ें स्ट्रेस से: अपनों से बातें करें। सोशल हों, किताबें पढ़ें, पौधों से दोस्ती करें, संगीत सुनें, ध्यान करें, फिजिकल ऐक्टिविटी करें। कुछ न हो तो डांस करें।
एंग्जायटी यानी चिंता: घबराहट इसका एक अहम लक्षण है। पैनिक अटैक भी होता है। ऐसे में किसी साइकायट्रिस्ट से जरूर मिलें।
डिप्रेशन: पूरी दुनिया में 22 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन में हैं। यह अनुमान है। असल आंकड़ा इससे ज्यादा ही होगा। इससे छुटकारा मिल सकता है।
डिप्रेशन की वजहें क्या-क्या
1. खुद को बेकार समझना: यह Worthlessness वाली स्थिति होती है। मैं किसी काबिल नहीं हूं। मुझसे कुछ हो ही नहीं सकता। मैं जो काम करता हू, उसी में फेल हो जाता हूं।
2. पूरी तरह निराश होना: इसे Hopelessness की स्थिति कह सकते हैं। किसी भी तरफ से अच्छी खबर नहीं सुनना। भविष्य में अच्छे दिनों की आस नहीं रहती।
3. खुद को बेबस समझना: यह Helplessness की स्थिति होती है। मेरी समस्या का कोई समाधान है ही नहीं। मेरी कोई मदद कर ही नहीं सकता।
कैसे पहचानें डिप्रेशन
ऊपर की तीनों स्थितियां डिप्रेशन की वजह हो सकती हैं। ऐसे में अगर कोई शख्स दो हफ्ते यानी 14 दिनों से ज्यादा वक्त से अपने सामान्य कामकाज पर न लौटे तो यह मान लेना चाहिए कि वह डिप्रेशन का शिकार हो सकता है। यह स्थिति किसी करीबी की मौत की वजह से, जॉब या बिजनेस लॉस या फिर पैसों की तंगी की वजह से हो सकती है। ऐसे में क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट या साइकायट्रिस्ट की मदद की जरूरत होगी ताकि वह इससे निकल सके।
ऐसे करें परेशान आदमी की मदद
1. LOOK (पहचानना)
मूड: जब कोई शख्स तनाव में होता है तो वह भले ही खुशहाल दिखे, लेकिन उसकी कार्यक्षमता पर असर जरूरत पड़ता है। वह हंसता रहेगा, लेकिन पहले वाली नेचरल हंसी गायब रहेगी। ऐसा लग सकता है कि वह बनावटी हंसी हंस रहा है। (पहचानना)
बर्ताव में बदलाव: वह शख्स पहले सबसे गर्मजोशी से मिलता था। पारिवारिक या फिर राजनीतिक बहस का हिस्सा होता था। अब ऐसा बिलकुल नहीं करता। अकेलापन पसंद आने लगता है। वह अक्सर अपसेट रहेगा। बात कुछ और चल रही होगी, वह कुछ और सोच रहा होगा। पूछने पर जवाब कुछ और देगा। वह गुस्सैल ज्यादा हो जाएगा।
सामाजिक बदलाव: जब कोई मानसिक तनाव में होता है तो अक्सर उसके दोस्त बदल जाते हैं। ऐसे दोस्त जो पॉजिटिव बातें करते थे, उनके बजाय नेगेटिव बातें करने वाले करीब हो जाते हैं।
शारीरिक बदलाव: ऐसे लोगों की भूख अक्सर कम हो जाती है। हालांकि कुछ मामले ऐसे भी देखे जाते हैं जब कोई शख्स बहुत ज्यादा खाना शुरू कर देता है। इससे उसके शरीर का वज़न बढ़ने लगता है। इसके अलावा थकान, सिरदर्द की अक्सर शिकायत रहने लगती है। ऑफिस से घर लेट पहुंचना या फिर ऑफिस ही देर से पहुंचना अक्सर होने लगता है। बातों, विचारों और बर्ताव में एनर्जी की भारी कमी दिखने लगती है।
ध्यान दें: ऊपर बताए हुए लक्षण कई बार खुद ही समझ में आ जाते हैं। कई बार कोई नजदीकी बता देता है।

2. LISTEN (सुनना)
यह बड़ा अहम हो जाता है कि उस शख्स की बातों को संजीदगी से सुनें। उसे क्या परेशानी है, वह सामान्य जीवन क्यों नहीं जी पा रहा। चूंकि वह डिस्टर्ब है, इसलिए अपने काम या पढ़ाई को सही तरीके से पूरा नहीं कर पा रहा। इन बातों को सुनना जरूरी है और बोलना कम है। अगर सामने वाला ही बोलता रहेगा और समझाता रहेगा तो उस शख्स को लग सकता है कि उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
ऐसे में क्या करें
- उसकी गलतियां ज्यादा
न बताएं।
- बातों को संवेदनशीलता
से सुनें।
- उसकी इस झिझक को दूर करें कि लोग क्या कहेंगे। दरअसल, 70 फीसदी लोग साइकॉलजिस्ट आदि के पास इसलिए नहीं जाते कि लोग क्या कहेंगे। इससे परेशानी कई बार बढ़ जाती है।
- उसकी परेशानियों का हल खोजने में मदद करें।

3. LINK (समाधान)
समस्याओं का हल खोजना भी जरूरी है। हर बार यह कह देना कि तुम यह कर सकते हो, तुम ध्यान नहीं दे रहे, ध्यान दो। इनसे काम नहीं चलेगा। जिस शख्स की जो परेशानी है, उस परेशानी तक पहुंचना होगा। अगर कोई बच्चा पढ़ाई से बहुत ज्यादा तनाव महसूस कर रहा है तो उसके तनाव को किस तरह हल्का करना है, यह बताना होगा। उसके टीचर से बात करनी होगी। उसे यह समझाना होगा कि एक एग्ज़ाम किसी शख्स की ज़िंदगी की दशा और दिशा तय नहीं कर सकता। अपनी तरफ से मेहनत करो। यह नहीं होगा तो कुछ और होगा। कुछ नहीं होगा तो अनुभव तो होगा ही। शख्स को सलूशन से लिंक करने में मदद करनी होगी। इसके अलावा हेल्पलाइन की मदद लें या फिर किसी साइकायट्रिस्ट या साइकॉलजिस्ट की।

HELPLINES
1.Tele MANAS
यह सरकारी हेल्पलाइन है। मेंटल हेल्थ से जुड़ी किसी भी तरह की समस्या में फौरी मदद में ये नंबर मददगार हैं। यहां क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट जैसे एक्सपर्ट से मदद मिल जाती है।
वेबसाइट
telemanas.mohfw.gov.in
फोन
14416 या 18008914416

2. Fortis Stress
फोर्टिस में इस हेल्पलाइन की शुरुआत डॉ. समीर पारिख ने की है। यहां पर कॉल करके फौरी मदद मिल जाती है। यहां पर भी कई साइकॉलजिस्ट और साइकायट्रिस्ट ऑनलाइन उपलब्ध रहते हैं।
वेबसाइट
fortishealthcare.com
फोन
8376804102 नोट: ऊपर की दोनों हेल्पलाइंस फ्री हैं और दोनों ही 24 घंटे और सातों दिन उपलब्ध हैं।
- इनके अलावा कई दूसरी हेल्पलाइंस भी हैं।

जब खुद ही फंस जाएं...
सबसे पहले क्या करें: जब मन में सुसाइड करने का विचार पैदा होने लगे तो किसी ऐसे शख्स से बात कर लें जो पहले भी कभी काम आया हाे। जिस पर पूरा भरोसा हो। इन परिस्थितियों में अगर किसी ने ढंग से सकारात्मक बात कर ली तो रोशनी की एक किरण दिख जाती है और मामला टल जाता है।
- अगर वह करीब न हो तो ऐसे शख्स को कॉल या विडियो कॉल कर लें जिस पर भरोसा हो।
- ऐसे शख्स से बात न करें जिन्होंने पहले मदद न की हो या फिर जिन पर भरोसा न हो।

ऐसे मामलों में नुकसान की चर्चा है जरूरी
जब कोई शख्स सुसाइड करता है तो चर्चा इस बात की करें कि कितना नुकसान हो गया। अगर किसी ऐसे शख्स ने सुसाइड किया है जिसके ऊपर उसके पैरंट्स, उसके बीवी व बच्चों की जिम्मेदारी है तो इसी बात को सबसे ज्यादा चर्चा में लाना चाहिए कि उसके चले जाने से उस परिवार और उसके बच्चों पर कितनी बड़ी आफत आ पड़ी है। जब इस तरह की बातें ऐसे लोगों तक पहुंचती हैं जिनके दिमाग में कहीं दूर से इस तरह का ख्याल जगह बनाने की कोशिश करता है तो वह रुक जाता है।
ऐसे समय में साथ देना अहम: जब परिवार का रोजी-रोटी कमाने वाला सदस्य की मौत हो जाती है। ऐसे में पूरे परिवार पर आफत आ जाती है। उस शख्स पर आश्रित सदस्यों को दूसरा रास्ता नहीं दिखता। ऐसे परिवारों के नजदीकी रिश्तेदार, दोस्त यह दिलासा दिला दे दें कि वे उनके साथ खड़े हैं।
इलाज में आजकल टेलीमेडिसिन सबसे अहमकोरोना ने नुकसान जो भी किया हो, लेकिन इसने एक नए चलन को बढ़ाया है, वह है टेलीमेडिसिन। इसकी उपयोगिता मेंटल हेल्थ की समस्या का निदान खोजने में काफी अहम है। दूर-दराज के गांव में बैठा शख्स भी दिल्ली के किसी बड़े डॉक्टर से अपनी मानसिक सेहत का इलाज विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए करवा सकता है। लेकिन इसके लिए उस शख्स के भीतर भी डॉक्टर से मदद लेने की इच्छा होनी चाहिए।
-टेलीमेडिसिन से इलाज में वक्त की बचत होती है। घर बैठे ही इलाज करवा सकता है। पैसे की बचत भी काफी होती है।
- लोगों में मानसिक बीमारी के इलाज को लेकर जो झिझक है, वह टेलीमेडिसिन के इलाज में पूरी तरह खत्म हो जाती है। घर के एक कमरे से विडियो कॉल करिए, ऑनलाइन पेमंट करिए। किसी को कानोंकान खबर नहीं होगी।

पढ़ाई के दबाव को ऐसे करें कम
कोटा जैसी जगहों पर आजकल इस तरह के मामले जरूर बढ़े हैं। इसे किसी खास जगह से जोड़कर देखना भी ठीक नहीं है। कुछ बदलाव जरूरी हैं:
-हमें स्टूडेंट्स को यह बताना होगा कि मार्क्स और एग्जाम ही सब कुछ नहीं।
-रातभर जागकर पढ़ना जरूरी नहीं है, सिर्फ दिन में ही पढ़ाई पूरी की जा सकती है।
- मेंटल वेलनेस के लिए हर कॉलेज या संस्थान का एक वेलनेस प्रोग्राम होना चाहिए।
-टीचर्स को ट्रेनिंग मिलनी चाहिए कि स्टूडेंट्स के साइकोलॉजिकल इश्यू को समझ सकें और फर्स्ट ऐड दे सकें।
-हर दिन एक पीरियड एंटरटेनमेंट या खेल का जरूर होना चाहिए।

पैरंटस ऐसे करें मदद
पैरंट्स को भी यह समझना होगा कि संतरे के पेड़ पर आम और आम के पेड़ पर संतरा नहीं उग सकता। हमारे लिए दोनों ही जरूरी हैं। इसलिए सभी को आईआईटियन या डॉक्टर नहीं बना सकते। कोई हिस्टोरियन तो कोई म्यूजिशन बन सकता है। कोई ऐक्टिंग भी कर सकता है तो कोई क्रिकेटर या फिर चेस खेल सकता है।
- पैरंट्स का काम है बच्चों को खुश रखना। अपने बच्चों को बिना किसी सजा और लताड़ के समझाएं।


17/09/2023

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