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16/07/2025
श्रावण मास (या सावन महीना) हिन्दू पंचांग का एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण महीना है। यह मास विशेषतः...
11/07/2025

श्रावण मास (या सावन महीना) हिन्दू पंचांग का एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण महीना है। यह मास विशेषतः भगवान शिव को समर्पित होता है और इसमें शिव की उपासना का विशेष महत्व माना गया है। इसके कई धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पक्ष हैं:

🌿 श्रावण मास की महिमा:

1. भगवान शिव की आराधना का श्रेष्ठ समय

श्रावण मास में भगवान शिव को जल, बेलपत्र, धतूरा, दूध, शहद आदि चढ़ाने से विशेष पुण्य फल प्राप्त होता है।
🔸 “श्रावण सोमवारी” (श्रावण के सोमवार) को व्रत रखने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं।

2. समुद्र मंथन से जुड़ा महत्व

मान्यता है कि इस मास में समुद्र मंथन हुआ था और जब हलाहल विष निकला, तो भगवान शिव ने उसे पीकर संसार की रक्षा की। इसलिए इस माह में शिवजी को शीतल चीजें चढ़ाकर उनका शांत स्वरूप बनाए रखने की परंपरा है।

3. व्रत और संयम का माह

श्रावण मास में लोग व्रत, संयम, ब्रह्मचर्य और सात्विक जीवन अपनाते हैं।
🔸 सोमवार व्रत विशेष फलदायी होता है।
🔸 महिलाएं अपने परिवार की सुख-शांति व अच्छे जीवनसाथी की कामना से व्रत रखती हैं।

4. प्रकृति और जीवन का उत्सव

श्रावण मास वर्षा ऋतु में आता है, जब धरती हरियाली से भर जाती है।
🔹 इस मौसम में हरियाली तीज, नाग पंचमी, रक्षाबंधन जैसे पर्व आते हैं।

5. कावड़ यात्रा का महत्व

श्रावण मास में कावड़ यात्री गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। यह भगवान शिव की भक्ति का उत्सव है जो न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है।

🛐 श्रावण मास के प्रमुख पर्व:

तिथि पर्व का नाम महत्व

प्रत्येक सोमवार श्रावण सोमवारी शिव पूजन व व्रत
सावन शुक्ल तृतीया हरियाली तीज महिलाओं द्वारा व्रत, श्रृंगार, सौभाग्य की कामना
श्रावण शुक्ल पंचमी नाग पंचमी नाग देवता की पूजा
श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन भाई-बहन का पर्व

🕉️ क्या करें श्रावण में:

शिवलिंग पर प्रतिदिन जल/गंगाजल चढ़ाएं

ओम नमः शिवाय का जाप करें

सोमवार का व्रत रखें

सात्विक भोजन लें

शराब, मांस और तामसिक चीजों से दूर रहें

चातुर्मास का अर्थ है – “चार महीनों का पावन काल”, जो सनातन धर्म में अत्यंत पुण्यदायक और संयममय माना गया है। यह समय भगवान ...
10/07/2025

चातुर्मास का अर्थ है – “चार महीनों का पावन काल”, जो सनातन धर्म में अत्यंत पुण्यदायक और संयममय माना गया है। यह समय भगवान विष्णु की योगनिद्रा का काल होता है, जिसमें वे क्षीर सागर में विश्राम करते हैं। इस दौरान शादी-विवाह, नए काम, गृह प्रवेश, मुंडन आदि शुभ कार्य वर्जित होते हैं।

चातुर्मास 2025 की तिथियाँ:
• प्रारंभ (देवशयनी एकादशी):
7 जुलाई 2025 (सोमवार)
• समापन (देवउठनी एकादशी):
1 नवम्बर 2025 (शनिवार)

इस अवधि को भगवान विष्णु के शयनकाल और तप-संयम के विशेष काल के रूप में मनाया जाता है।

चातुर्मास में आने वाले मुख्य पर्व:
1. गुरु पूर्णिमा – 10 जुलाई 2025 (गुरुवार)
2. हरियाली तीज – 27 जुलाई 2025 (रविवार)
3. नाग पंचमी – 31 जुलाई 2025 (गुरुवार)
4. रक्षा बंधन – 9 अगस्त 2025 (शनिवार)
5. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी – 16 अगस्त 2025 (शनिवार)
6. हरतालिका तीज – 25 अगस्त 2025 (सोमवार)
7. गणेश चतुर्थी – 27 अगस्त 2025 (बुधवार)
8. पितृपक्ष प्रारंभ – 5 सितम्बर 2025 (शुक्रवार)
9. महालय अमावस्या – 19 सितम्बर 2025 (शुक्रवार)
10. शारदीय नवरात्रि – प्रारंभ: 21 सितम्बर 2025
11. दुर्गा अष्टमी/महानवमी – 28–29 सितम्बर 2025
12. दशहरा (विजयदशमी) – 30 सितम्बर 2025
13. करवा चौथ – 15 अक्टूबर 2025
14. धनतेरस – 29 अक्टूबर 2025
15. दीपावली – 31 अक्टूबर 2025
16. देवउठनी एकादशी – 1 नवम्बर 2025

चातुर्मास के दौरान क्या करें और क्या न करें:

क्या करें:
• व्रत, ध्यान, जप, तप, स्वाध्याय
• एक समय भोजन या सात्विक आहार का पालन
• तुलसी पूजन व सेवा
• ब्रह्मचर्य और संयम का पालन
• धर्म ग्रंथों का अध्ययन
• गरीबों और ब्राह्मणों को दान

क्या न करें:
• विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, नए कार्य की शुरुआत
• मांसाहार, मद्यपान, प्याज-लहसुन सेवन
• नींद अधिक लेना, आलस्य करना
• झूठ बोलना, विवाद करना

देव शयन से देव प्रबोधन तक का महत्व:
• देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं।
• इस दौरान लक्ष्मी माता का पूजन, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और व्रत विशेष पुण्यदायक होता है।
• देवउठनी एकादशी (1 नवम्बर 2025) को भगवान जागते हैं और शुभ कार्यों की पुनः शुरुआत होती है।

11/12/2024

कहइ रीछपति सुनु हनुमाना।

का चुप साधि रहेहु बलवाना।।
पवन तनय बल पवन समाना।

बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।
कवन सो काज कठिन जग माहीं।

जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।

Rudra Abhishek Dates -
17/08/2024

Rudra Abhishek Dates -

11/05/2024

♨️चमत्कारी उपाय

जो व्यक्ति प्रत्येक शुक्र वार को 108 कमलगटटे के बीज लेकर घी के साथ एक-एक करके अग्नि में 108 आहुतियां देता है। उसके घर से दरिद्रता हमेशा के लिए चली जाती है। कामयाब उपाय - घी में डुबोकर आहुति दीजिए- 27 शुक्र कीजिए- अच्छा सटीक उपाय जो आज तक fail नहीं हुआ- लक्ष्मी माता को आपके घर आना ही होगा *
मां लक्ष्‍मी धन-संपत्ति की देवी हैं जो जीवन में सुख-सौभाग्‍य को बनाएं रखती हैं. माना जाता है किे अगर पैसों की परेशानी हो तो मां लक्ष्‍मी के 18 पुत्रों का नाम लेने से अचानक धन लाभ होता हैं. यह उपाय शुक्रवार से आजमाएं और मां लक्ष्मी की कृपा से अपनी समस्‍याओं से छुटकारा पाएं.
ऋग्वेद में लक्ष्मी पुत्रों के नामऋग्वेद में लक्ष्मी जी के 4 पुत्रों का नाम इस श्लोक में आया है.आनंद: कर्दम: श्रीदश्चिकलीत इति विश्रुता|ऋषय: श्रिय: पुत्राश्व मयि श्रीर्देवी देवता||लेकिन आकस्मिक धन पाने के लिये आपको लक्ष्मी जी के 18 वर्ग पुत्रों के नाम लेने होंगे. इसके बाद धन की व्यवस्था स्वयं लक्ष्मी जी आकर करती हैं.
कैसे होगा धन लाभ?अगर कभी अचानक से आपको घाटा हो जाए या फिर जॉब चली जाए या फिर बीमारी के चलते बैंक बैलेंस खत्‍म हो जाए तो बस ऐसी ही स्थिति में, लक्ष्मी जी के 18 पुत्रों का नाम, शुक्रवार से जपना शुरू कर दें.
18*6-108
मां लक्ष्‍मी के 18 पुत्र के नाम:1. ॐ देवसखाय नम:2. ॐ चिक्लीताय नम:3. ॐ आनन्दाय नम:4. ॐ कर्दमाय नम:5. ॐ श्रीप्रदाय नम:6. ॐ जातवेदाय नम:7. ॐ अनुरागाय नम:8. ॐ सम्वादाय नम:9. ॐ विजयाय नम:10. ॐ वल्लभाय नम:11. ॐ मदाय नम:12. ॐ हर्षाय नम:13. ॐ बलाय नम:14. ॐ तेजसे नम:15. ॐ दमकाय नम:16. ॐ सलिलाय नम:17. ॐ गुग्गुलाय नम:18. ॐ कुरूण्टकाय नम:
आहूति देते समय स्वाहा बोले
जैसे ॐ देवसखाय नम: स्वाहा

08/05/2024

अगर कर्ज की समस्या से निजात पाना चाहते है तो रोजाना यह मंत्र का जप करे श्री सूक्तम से

ऊँ तां म आ वह जातवेदों लक्ष्मीमनगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामवश्वं पुरुषानहम्।।
श्रियं देवीमुप ह्रये श्रीर्मा देवी जुषताम्।।

Remedy for stuck money, Debt free

30/04/2024

ऋण-हरण श्री गणेश-मन्त्र प्रयोग
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यह धन-दायी प्रयोग है। यदि प्रयोग नियमित करना हो तो साधक अपने द्वारा निर्धारित वस्त्र में कर सकता है किन्तु, यदि प्रयोग पर्व विशेष मात्र में करना हो, तो पीले रंग के आसन पर पीले वस्त्र धारण कर पीले रंग की माला या पीले सूत में बनी स्फटिक की माला से करे। भगवान् गणेश की पूजा में ‘दूर्वा-अंकुर’ चढ़ाए। यदि हवन करना हो, तो ‘लाक्षा’ एवं‘दूर्वा’ से हवन करे। विनियोग, न्यास, ध्यान कर आवाहन और पूजन करे। ‘पूजन’ के पश्चात् ‘कवच’- पाठ कर ‘स्तोत्र’का पाठ करे।

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-मन्त्रस्य सदा-शिव ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीऋण-हर्ता गणपति देवता, ग्लौं बीजं, गं शक्तिः, गों कीलकं, मम सकल-ऋण-नाशार्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यासः- सदा-शिव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे, श्रीऋण-हर्ता गणपति देवतायै नमः हृदि, ग्लौं बीजाय नमः गुह्ये, गं शक्तये नमः पादयो, गों कीलकाय नमः नाभौ, मम सकल-ऋण-नाशार्थे जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ।

कर-न्यासः- ॐ गणेश अंगुष्ठाभ्यां नमः, ऋण छिन्धि तर्जनीभ्यां नमः, वरेण्यं मध्यमाभ्यां नमः, हुं अनामिकाभ्यां नमः, नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः, फट् कर-तल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।

षडंग-न्यासः- ॐ गणेश हृदयाय नमः, ऋण छिन्धि शिरसे स्वाहा, वरेण्यं शिखायै वषट्, हुं कवचाय हुम्, नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्, फट् अस्त्राय फट्।

ध्यानः-
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं, लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं, सिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम्।।

‘आवाहन’ आदि कर पञ्चोपचारों से अथवा ‘मानसिक पूजन’ करे।

।।कवच-पाठ।।
ॐ आमोदश्च शिरः पातु, प्रमोदश्च शिखोपरि, सम्मोदो भ्रू-युगे पातु, भ्रू-मध्ये च गणाधीपः।
गण-क्रीडश्चक्षुर्युगं, नासायां गण-नायकः, जिह्वायां सुमुखः पातु, ग्रीवायां दुर्म्मुखः।।

विघ्नेशो हृदये पातु, बाहु-युग्मे सदा मम, विघ्न-कर्त्ता च उदरे, विघ्न-हर्त्ता च लिंगके।

गज-वक्त्रो कटि-देशे, एक-दन्तो नितम्बके, लम्बोदरः सदा पातु, गुह्य-देशे ममारुणः।।
व्याल-यज्ञोपवीती मां, पातु पाद-युगे सदा, जापकः सर्वदा पातु, जानु-जंघे गणाधिपः।
हरिद्राः सर्वदा पातु, सर्वांगे गण-नायकः।।

।।स्तोत्र-पाठ।।
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक्, पूजितः फल-सिद्धये। सदैव पार्वती-पुत्रः, ऋण-नाशं करोतु मे।।१
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं-शम्भुना सम्यगर्चितः। हिरण्य-कश्यप्वादीनां, वधार्थे विष्णुनार्चितः।।२
महिषस्य वधे देव्या, गण-नाथः प्रपूजितः। तारकस्य वधात् पूर्वं, कुमारेण प्रपुजितः।।३
भास्करेण गणेशो हि, पूजितश्छवि-सिद्धये। शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं, पूजितो गण-नायकः।
पालनाय च तपसां, विश्वामित्रेण पूजितः।।४
।।फल-श्रुति।।
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं, तीव्र-दारिद्र्य-नाशनम्, एक-वारं पठेन्नित्यं, वर्षमेकं समाहितः।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा, कुबेर-समतां व्रजेत्।।
मन्त्रः- “ॐ गणेश ! ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट्” (१५ अक्षर)
उक्त मन्त्र का अन्त में कम-से-कम २१ बार ‘जप करे। २१,००० ‘जप’ से इसका ‘पुरश्चरण’ होता है। वर्ष भर ‘स्तोत्र’ पढ़ने से दारिद्र्य-नाश होता है तथा लक्ष्मी-प्राप्ति होती है।

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