स्वदेशी अभियान

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केवल स्वदेशी नीतियों से ही देश फिर से सोने कि चिड़िया बन सकता हैं ।

स्वदेशी एक ऐसा गहरा दर्शन हैं जो किसी भी देश को अपने पैरो पर खड़ा कर सकता हैं - श्री राजीव दीक्षित जी मित्रो राजीव दीक्षित जी के परिचय मे जितनी बातें कही जाए वो कम है ! कुछ चंद शब्दो मे उनके परिचय को बयान कर पाना असंभव है ! ये बात वो लोग बहुत अच्छे से समझ सकते है जिन्होने राजीव दीक्षित जी को गहराई से सुना और समझा है !! फिर भी हमने कुछ प्रयास कर उनके परिचय को कुछ शब्दो का रूप देने का प्रयत्न किया है ! परिचय शुरू करने से पहले हम आपको ये बात स्पष्ट करना चाहते हैं कि जितना परिचय राजीव भाई का हम आपको बताने का प्रयत्न करेंगे वो उनके जीवन मे किये गये कार्यों का मात्र 1% से भी कम ही होगा ! उनको पूर्ण रूप से जानना है तो आपको उनके व्याख्यानों को सुनना पडेगा !!

राजीव दीक्षित जी का जन्म 30 नवम्बर 1967 को उत्तर प्रदेश राज्य के अलीगढ़ जनपद की अतरौली तहसील के नाह गाँव में पिता राधेश्याम दीक्षित एवं माता मिथिलेश कुमारी के यहाँ हुआ था। उन्होने प्रारम्भिक और माध्यमिक शिक्षा फिरोजाबाद जिले के एक स्कूल से प्राप्त की !! इसके उपरान्त उन्होने इलाहाबाद शहर के जे.के इंस्टीट्यूट से बी० टेक० और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology) से एम० टेक० की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद राजीव भाई ने कुछ समय भारत CSIR(Council of Scientific and Industrial Research) मे कार्य किया। तत्पश्चात् वे किसी Research Project मे भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ भी कार्य किया !!

 #वैदिक_गणित_के_कुछ_अद्भुत_उदाहरणदेश में एक ऐसा वर्ग बन गया है जो कि संस्कृत भाषा से तो शून्य हैं परंतु उनकी छद्म धारणा ...
03/12/2025

#वैदिक_गणित_के_कुछ_अद्भुत_उदाहरण
देश में एक ऐसा वर्ग बन गया है जो कि संस्कृत भाषा से तो शून्य हैं परंतु उनकी छद्म धारणा यह बन गयी है कि संस्कृत भाषा में जो कुछ भी लिखा है वे सब पूजा पाठ के मंत्र ही होंगे जबकि वास्तविकता इससे भिन्न है।
देखते हैं -
"चतुरस्रं मण्डलं चिकीर्षन्न् अक्षयार्धं मध्यात्प्राचीमभ्यापातयेत्।
यदतिशिष्यते तस्य सह तृतीयेन मण्डलं परिलिखेत्।"
बौधायन ने उक्त श्लोक को लिखा है !
इसका अर्थ है -
यदि वर्ग की भुजा 2a हो
तो वृत्त की त्रिज्या r = [a+1/3(√2a – a)] = [1+1/3(√2 – 1)] a
ये क्या है ?
अरे ये तो कोई गणित या विज्ञान का सूत्र लगता है
शायद ईसा के जन्म से पूर्व पिंगल के छंद शास्त्र में एक श्लोक प्रकट हुआ था।हालायुध ने अपने ग्रंथ मृतसंजीवनी मे , जो पिंगल के छन्द शास्त्र पर भाष्य है ,
इस श्लोक का उल्लेख किया है -
परे पूर्णमिति।
उपरिष्टादेकं चतुरस्रकोष्ठं लिखित्वा तस्याधस्तात् उभयतोर्धनिष्क्रान्तं कोष्ठद्वयं लिखेत्।
तस्याप्यधस्तात् त्रयं तस्याप्यधस्तात् चतुष्टयं यावदभिमतं स्थानमिति मेरुप्रस्तारः।
तस्य प्रथमे कोष्ठे एकसंख्यां व्यवस्थाप्य लक्षणमिदं प्रवर्तयेत्।
तत्र परे कोष्ठे यत् वृत्तसंख्याजातं तत् पूर्वकोष्ठयोः पूर्णं निवेशयेत्।
शायद ही किसी आधुनिक शिक्षा में maths मे B. Sc. किये हुए भारतीय छात्र ने इसका नाम भी सुना हो , जबकि यह "मेरु प्रस्तार" है।
परंतु जब ये पाश्चात्य जगत से "पास्कल त्रिभुज" के नाम से भारत आया तो उन कथित सेकुलर भारतीयों को शर्म इस बात पर आने लगी कि भारत में ऐसे सिद्धांत क्यों नहीं दिये जाते।

"चतुराधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्राणाम्।
अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्यासन्नो वृत्तपरिणाहः॥"
ये भी कोई पूजा का मंत्र ही लगता है लेकिन ये किसी गोले के व्यास व परिध का अनुपात है। जब पाश्चात्य जगत से ये आया तो संक्षिप्त रुप लेकर आया ऐसा π जिसे 22/7 के रुप में डिकोड किया जाता है।
उक्त श्लोक को डिकोड करेंगे अंकों में तो कुछ इस तरह होगा-
(१०० + ४) * ८ + ६२०००/२०००० = ३.१४१६
#ऋग्वेद में π का मान ३२ अंक तक शुद्ध है।*
गोपीभाग्य मधुव्रातः श्रुंगशोदधि संधिगः |
खलजीवितखाताव गलहाला रसंधरः ||
इस श्लोक को डीकोड करने पर ३२ अंको तक π का मान 3.1415926535897932384626433832792… आता है।

#चक्रीय_चतुर्भुज का क्षेत्रफल:
ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त के गणिताध्याय के क्षेत्रव्यवहार के श्लोक १२.२१ में निम्नलिखित श्लोक वर्णित है-
स्थूलफलम् त्रिचतुर्-भुज-बाहु-प्रतिबाहु-योग-दल-घातस्।
भुज-योग-अर्ध-चतुष्टय-भुज-ऊन-घातात् पदम् सूक्ष्मम् ॥
अर्थ:
त्रिभुज और चतुर्भुज का स्थूल (लगभग) क्षेत्रफल उसकी आमने-सामने की भुजाओं के योग के आधे के गुणनफल के बराबर होता है तथा सूक्ष्म (exact) क्षेत्रफल भुजाओं के योग के आधे में से भुजाओं की लम्बाई क्रमशः घटाकर और उनका गुणा करके वर्गमूल लेने से प्राप्त होता है।

#ब्रह्मगुप्त_प्रमेय:
चक्रीय चतुर्भुज के विकर्ण यदि लम्बवत हों तो उनके कटान बिन्दु से किसी भुजा पर डाला गया लम्ब सामने की भुजा को समद्विभाजित करता है।
ब्रह्मगुप्त ने श्लोक में कुछ इस प्रकार अभिव्यक्त किया है-
त्रि-भ्जे भुजौ तु भूमिस् तद्-लम्बस् लम्बक-अधरम् खण्डम् ।
ऊर्ध्वम् अवलम्ब-खण्डम् लम्बक-योग-अर्धम् अधर-ऊनम्॥
(ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, गणिताध्याय, क्षेत्रव्यवहार १२.३१)

#वर्ग_समीकरण_का_व्यापक_सूत्र:
#ब्रह्मगुप्त का सूत्र इस प्रकार है-
वर्गचतुर्गुणितानां रुपाणां मध्यवर्गसहितानाम् ।
मूलं मध्येनोनं वर्गद्विगुणोद्धृतं मध्यः ॥
ब्राह्मस्फुट-सिद्धांत - 18.44
अर्थात :
व्यक्त रुप (c) के साथ अव्यक्त वर्ग के चतुर्गुणित गुणांक (4ac) को अव्यक्त मध्य के गुणांक के वर्ग (b²) से सहित करें या जोड़ें। इसका वर्गमूल प्राप्त करें तथा इसमें से मध्य अर्थात b को घटावें।
पुनः इस संख्या को अज्ञात ञ वर्ग के गुणांक (a) के द्विगुणित संख्या से भाग देवें।
प्राप्त संख्या ही अज्ञात "त्र" राशि का मान है।
श्रीधराचार्य ने इस बहुमूल्य सूत्र को भास्कराचार्य का नाम लेकर अविकल रुप से उद्धृत किया —
चतुराहतवर्गसमैः रुपैः पक्षद्वयं गुणयेत् ।
अव्यक्तवर्गरूपैर्युक्तौ पक्षौ ततो मूलम् ॥ -- भास्करीय
#बीजगणित, अव्यक्त-वर्गादि-समीकरण, पृ. - 221
अर्थात :-
प्रथम अव्यक्त वर्ग के चतुर्गुणित रूप या गुणांक (4a) से दोनों पक्षों के गुणांको को गुणित करके द्वितीय अव्यक्त गुणांक (b) के वर्गतुल्य रूप दोनों पक्षों में जोड़ें। पुनः द्वितीय पक्ष का वर्गमूल प्राप्त करें।☺

#आर्यभट्ट_की_ज्या_सारणी:(sine)
आर्यभटीय का निम्नांकित श्लोक ही आर्यभट की ज्या-सारणी को निरूपित करता है:
मखि भखि फखि धखि णखि ञखि ङखि हस्झ स्ककि किष्ग श्घकि किघ्व ।
घ्लकि किग्र हक्य धकि किच स्ग झश ङ्व क्ल प्त फ छ कला-अर्ध-ज्यास् ॥
#माधव_की_ज्या_सारणी:
निम्नांकित श्लोक में माधव की ज्या सारणी दिखायी गयी है। जो चन्द्रकान्त राजू द्वारा लिखित *'कल्चरल फाउण्डेशन्स आफ मैथमेटिक्स'* नामक पुस्तक से लिया गया है।
श्रेष्ठं नाम वरिष्ठानां हिमाद्रिर्वेदभावनः।
तपनो भानुसूक्तज्ञो मध्यमं विद्धि दोहनं।।
धिगाज्यो नाशनं कष्टं छत्रभोगाशयाम्बिका।
म्रिगाहारो नरेशोऽयं वीरोरनजयोत्सुकः।।
मूलं विशुद्धं नालस्य गानेषु विरला नराः।
अशुद्धिगुप्ताचोरश्रीः शंकुकर्णो नगेश्वरः।।
तनुजो गर्भजो मित्रं श्रीमानत्र सुखी सखे!।
शशी रात्रौ हिमाहारो वेगल्पः पथि सिन्धुरः।।
छायालयो गजो नीलो निर्मलो नास्ति सत्कुले।
रात्रौ दर्पणमभ्राङ्गं नागस्तुङ्गनखो बली।।
धीरो युवा कथालोलः पूज्यो नारीजरैर्भगः।
कन्यागारे नागवल्ली देवो विश्वस्थली भृगुः।।
तत्परादिकलान्तास्तु महाज्या माधवोदिताः।
स्वस्वपूर्वविशुद्धे तु शिष्टास्तत्खण्डमौर्विकाः।।
(२.९.५)

#संख्या_रेखा_की_परिकल्पना (कॉन्सेप्ट्)
"एकप्रभृत्यापरार्धसंख्यास्वरूपपरिज्ञानाय रेखाध्यारोपणं कृत्वा एकेयं रेखा दशेयं, शतेयं, सहस्रेयं इति ग्राहयति, अवगमयति, संख्यास्वरूम, केवलं, न तु संख्याया: रेखातत्त्वमेव।"
Brhadaranyaka Aankarabhasya (4.4.25)
🔸जिसका अर्थ है-
1 unit, 10 units, 100 units, 1000 units etc. up to parardha can be located in a number line. Now by using the number line one can do operations like addition, subtraction and so on.
ये तो कुछ नमूना हैं , जो ये दर्शाने के लिये दिया गया है कि संस्कृत ग्रंथो में केवल पूजा पाठ या आरती के मंत्र नहीं है बल्कि तमाम विज्ञान भरा पड़ा है।
दुर्भाग्य से कालांतर में व विदेशी आक्रांताओं के चलते संस्कृत का ह्रास होने के कारण हमारे पूर्वजों के ज्ञान का भावी पीढ़ी द्वारा विस्तार नहीं हो पाया और बहुत से ग्रंथ आक्रांताओं द्वारा नष्ट भ्रष्ट कर दिए गए ।
वन्दे संस्कृत मातरम्🙏🏼

आयुर्वेद उपाय कब असर करते हैं—इस प्रश्न का उत्तर शरीर, मन और प्रकृति के गहरे सामंजस्य में छिपा हुआ है। आयुर्वेद मानता है...
02/12/2025

आयुर्वेद उपाय कब असर करते हैं—इस प्रश्न का उत्तर शरीर, मन और प्रकृति के गहरे सामंजस्य में छिपा हुआ है। आयुर्वेद मानता है कि हर मनुष्य अद्वितीय है। उसकी प्रकृति, आयु, पाचन शक्ति, जीवनशैली, मानसिक स्थिति, रोग का कारण और उसकी पुरानगी—इन सभी के आधार पर उपचार का असर अलग-अलग समय में दिखाई देता है। जब रोग नया होता है, कारण सरल और शरीर की अपनी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है, तब आयुर्वेदिक उपाय बहुत जल्दी लाभ देने लगते हैं। लेकिन जब रोग कई वर्षों से जड़ पकड़ चुका हो, शरीर में दोष इतने अधिक बढ़ जाएँ कि धातुएँ कमजोर पड़ जाएँ या मन लगातार तनाव में डूबा हो, तब समय अधिक लगता है।
आयुर्वेद केवल लक्षणों को नहीं दबाता, बल्कि रोग की जड़ को मिटाने का प्रयास करता है। जड़ तक पहुँचने में समय लगता है, और यही कारण है कि कुछ लोग तुरंत लाभ महसूस कर लेते हैं जबकि कुछ को धैर्य रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति को पेट खराब है और उसका कारण केवल खानपान की गलती है, तो त्रिफला या अजवाइन-हींग जैसे साधारण उपाय एक ही-दो दिन में राहत दे देते हैं। परंतु वही समस्या अगर पुरानी कब्ज, अग्नि की कमजोरी या आँतों में सूजन का परिणाम हो, तब पंचकर्म, विशिष्ट औषधियां और आहार-विहार अनुशासन की लंबी आवश्यकता पड़ती है।
आयुर्वेद शरीर के साथ-साथ मन को भी संतुलित करने की बात करता है। क्रोध, चिंता, दुख और बेचैनी दोषों को असंतुलित करते हैं। ऐसे में अगर केवल दवा ली जाए और जीवनशैली न सुधारी जाए, तो दवा का असर धीमा पड़ जाता है। चिकित्सक कहते हैं—रोग आधा शरीर का और आधा मन का होता है। इसलिए जब व्यक्ति अपने विचार, दिनचर्या, नींद, भोजन के समय और मौसमों के अनुसार व्यवहार को संतुलित कर लेता है, उपचार का प्रभाव गहन और स्थायी हो जाता है।
पंचकर्म उन रोगों में तेज असर दिखाता है, जहाँ शरीर में जमा विषाक्त पदार्थ (अम) बीमारी की जड़ बन चुके हों। लेकिन पंचकर्म से पूर्व और पश्चात आहार-विहार का अनुशासन न हो, तो पुनः वही रोग लौट आता है। अर्थात् आयुर्वेद उपाय तभी पूर्ण लाभ देते हैं जब शरीर को रोगरहित बनाने के साथ-साथ उसके पुनरुत्पादन की क्षमता भी बढ़ती है। इसी कारण आयुर्वेद उपचार को “समग्र” चिकित्सा कहा जाता है।
शरीर की उम्र भी फर्क डालती है। बच्चों का चयापचय तेज होता है, इसलिए वे हर्बल उपचार से तुरंत सुधर जाते हैं। वहीं बुजुर्गों में धातुओं की कमजोरी और पाचन बल कम होने के कारण औषधियों को असर करने में अधिक समय लगता है। इसी प्रकार ऋतु परिवर्तन भी असर को प्रभावित करता है। जैसे वसंत ऋतु में कफ प्रकृति की बीमारियाँ तेजी से ठीक होती हैं, जबकि शीत ऋतु में उन्हीं रोगों को ठीक होने में अधिक समय लगता है।
आयुर्वेद में आहार ही प्रथम औषधि है। जब व्यक्ति गलत भोजन करता है—जैसे दूध के साथ खट्टा, रात में भारी तला-भुना भोजन, ज्यादा ठंडे पेय—तो कोई भी दवा चमत्कार नहीं कर सकती। इलाज के दौरान आहार का नियम पालन किया जाए, तो शरीर तेजी से प्रतिक्रिया देता है और दवा का असर कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए कहा गया—“भोजनं भेषजम्”—भोजन ही औषधि है।
दोष संतुलन की अवस्था में भी परिणाम अलग-अलग होते हैं। वात असंतुलन में समय अधिक लगता है, क्योंकि वात परिवर्तनशील और अस्थिर है। पित्त रोग तेज आते हैं और अक्सर जल्दी नियंत्रित भी हो जाते हैं। कफ रोग धीमे बढ़ते हैं, परंतु जब बढ़ जाते हैं, तो हटने में समय लेते हैं। इसलिए इलाज का समय भी दोष की प्रकृति पर निर्भर है।
आयुर्वेद में एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है—रोग का काल। नया रोग कम दिनों का, मध्यम रोग महीनों का और जीर्ण रोग वर्षों का उपचार चाहता है। इसीलिए चिकित्सक पूछते हैं—रोग कब से है? स्थिति क्या है? कारण क्या है?—इन सब पर उपचार-फल आधारित होता है। जो लोग सोचते हैं कि सालों पुरानी बीमारी दो-चार दिन की जड़ी-बूटी से मिट जाएगी, वे आयुर्वेद के मूल दर्शन को समझ नहीं पाए हैं। आयुर्वेद शरीर की गहराई में जमा असंतुलन को साफ करता है, इसलिए इसका असर धीरे-धीरे पर स्थायी होता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात—रोगी की श्रद्धा और धैर्य। मन में संदेह हो तो चिकित्सा का प्रभाव आधा रह जाता है। आयुर्वेद शरीर को उसके प्राकृतिक संतुलन की ओर ले जाता है, और प्रकृति कभी जल्दबाजी में काम नहीं करती। पौधा भी बीज बोने के अगले दिन फल नहीं देता—उसे समय, धूप, पानी और मिट्टी की जरूरत होती है। ठीक इसी तरह शरीर को भी समय, सहनशीलता और अनुशासन चाहिए।
आयुर्वेद उपाय तब असर करते हैं जब व्यक्ति केवल दवा पर नहीं, अपनी जीवनशैली, भोजन, नींद, विचार और प्रकृति के नियमों पर भी ध्यान देता है। आयुर्वेद का लक्ष्य सिर्फ रोग हटाना नहीं—स्वास्थ्य को प्राकृतिक स्थिति में स्थापित करना है।
#आयुर्वेद #आयुर्वेदिकउपचार #स्वास्थ्य #रोगमुक्तजीवन #प्राकृतिकउपचार #आहारविहार #पंचकर्म #अग्निबल

समस्त रोगों की जड़ है रात्रि भोजनकिसी भी चिड़िया को डायबिटीज नहीं होती।किसी भी बन्दर को हार्ट अटैक नहीं आता ।कोई भी जानवर...
01/12/2025

समस्त रोगों की जड़ है रात्रि भोजन
किसी भी चिड़िया को डायबिटीज नहीं होती।
किसी भी बन्दर को हार्ट अटैक नहीं आता ।
कोई भी जानवर न तो आयोडीन नमक खाता है और न ब्रश करता है, फिर भी किसी को थायराइड नहीं होता और न दांत खराब होता है ।
बन्दर शरीर संरचना में मनुष्य के सबसे नजदीक है, बस बंदर और आप में यही फर्क है कि बंदर के पूँछ है आप के नहीं है, बाकी सब कुछ समान है।
तो फिर बंदर को कभी भी हार्ट अटैक, डायबिटीज , high BP , क्यों नहीं होता है?
एक पुरानी कहावत है बंदर कभी बीमार नहीं होता और यदि बीमार होगा तो जिंदा नहीं बचेगा मर जाएगा!
बंदर बीमार क्यों नहीं होता?
हमारे एक मित्र बताते हैं कि एक बहुत बड़े , प्रोफेसर हैं, मेडिकल कॉलेज में काम करते हैं । उन्होंने एक बड़ा गहरा रिसर्च किया कि बंदर को बीमार बनाओ। तो उन्होने तरह - तरह के virus और वैक्टीरिया बंदर के शरीर में डालना शुरू किया, कभी इंजेक्शन के माध्यम से कभी किसी और माध्यम से । वो कहते है, मैं 15 साल असफल रहा , लेकिन बंदर को कुछ नहीं हुआ ।
*मित्र ने प्रोफेसर से कहा कि आप यह कैसे कह सकते है कि बंदर को कुछ नहीं हो सकता ? तब उन्होंने एक दिन यह रहस्य की बात बताई वो आपको भी बता देता हूँ कि बंदर का जो RH factor है वह सबसे आदर्श है । कोई डॉक्टर जब आपका RH factor नापता है, तो वह बंदर के ही RH Factor से तुलना करता है , वह डॉक्टर आपको बताता नहीं यह अलग बात है*।
उसका कारण यह है कि, उसे कोई बीमारी आ ही नहीं सकती । उसके ब्लड में कभी कॉलेस्टेरॉल नहीं बढ़ता , कभी ट्रायग्लेसराइड नहीं बढ़ती , न ही उसे कभी डायबिटीज होती है । शुगर को कितनी भी बाहर से उसके शरीर में इंट्रोडयूस करो, वो टिकती नहीं । तो वह प्रोफेसर साहब कहते हैं कि यही चक्कर है , कि *बंदर सबेरे सबेरे ही भरपेट खाता है। जो आदमी नहीं खा पाता है , इसीलिए उसको सारी बीमारियां होती है ।*
*सूर्य निकलते ही सारी चिड़िया , सारे जानवर खाना खाते हैं ।*
जब से मनुष्य इस ब्रेकफास्ट , लंच , डिनर के चक्कर में फंसा तबसे मनुष्य ज्यादा बीमार रहने लगा है ।
प्रोफेसर रवींद्रनाथ शानवाग ने अपने सभी मरींजों से कहा कि *सुबह सुबह भरपेट खाओ* । उनके मरीज बताते है कि, *जबसे उन्हांने सुबह भरपेट खाना शुरू किया तबसे उन्हें डायबिटीज यानि शुगर कम हो गयी, किसी का कॉलेस्टेरॉल कम हो गया, किसी के घुटनों का दर्द कम हो गया , किसी का कमर का दर्द कम हो गया गैस बनाना बंद हो गई, पेट मे जलन होना बंद हो गया ,नींद अच्छी आने लगी* ….. वगैरह ..वगैरह ।
और यह बात बागभट्ट जी ने 3500 साल पहले कहा, कि सुबह का किया हुआ भोजन सबसे अच्छा है ।
*सुबह सूरज निकलने से ढाई घंटे तक यानि 9.30 बजे तक, ज्यादा से ज्यादा 10 बजे तक आपका भरपेट भोजन हो जाना चाहिए* । और ये भोजन तभी होगा जब आप नाश्ता बंद करेंगे । यह नाश्ता का प्रचलन हिंदुस्तानी नहीं है , यह अंग्रेजो की देन है , और रात्रि का भोजन सूर्य अस्त होने से आधा घंटा पहले कर लें । तभी बीमारियों से बचेंगे । सुबह सूर्य निकलने से ढाई घंटे तक हमारी जठराग्नि बहुत तीव्र होती है । हमारी जठराग्नि का सम्बन्ध सूर्य से है ।हमारी जठराग्नि सबसे अधिक तीव्र स्नान के बाद होती है । स्नान के बाद पित्त बढ़ता है , इसलिए सुबह स्नान करके भोजन कर लें । तथा एक भोजन से दूसरे भोजन के बीच 4 से 6 घंटे का अंतराल रखें बीच में कुछ न खाएं, और दिन डूबने के बाद बिल्कुल न खायें।।
चूंकि यह पक्षियों और जंगली जानवरों की दिनचर्या में सम्मिलित है, अत: वे अमूमन बीमार नहीं होते।।
स्वस्थ रहे, स्वस्थ रखे
आयुर्वेद के अनुसार, शाम का खाना सूर्य छिपने से पहले हो तो कभी बीमार नहीं होवेगे।

30/11/2025

स्वदेशी दिवस
श्री राजीव दीक्षित जी की पुण्यतिथि एवं अवतरणदिवस
30 नवंबर 1967 से 30 नवंबर 2010

30 नवंबर, 2003 — वह दिन जब मेरी बेटी प्रणति ने इस धरती पर पहली बार सांस ली।आज भी, जब मैं इस तारीख के बारे में सोचती हूँ,...
30/11/2025

30 नवंबर, 2003 — वह दिन जब मेरी बेटी प्रणति ने इस धरती पर पहली बार सांस ली।
आज भी, जब मैं इस तारीख के बारे में सोचती हूँ, तो हृदय में एक अनिर्वचनीय भाव जाग उठता है — न तो डर, न खुशी, बल्कि एक गहरी कृतज्ञता, जो समय के बीतने के बावजूद धुंधली नहीं हुई।
उस समय, हमने जानबूझकर घर पर प्रसव कराने का निर्णय लिया था। आज के दौर में यह विचार असामान्य लग सकता है, पर हमारे लिए वह विश्वास का सवाल था — प्रकृति पर, और अपने शरीर पर। नौ महीने और इक्कीस दिन की गर्भावस्था के बाद, चिंता की छाया गहरी हो चुकी थी। डॉक्टरों ने चेतावनी दी थी — “बच्चा 4.5 किलोग्राम का है, सामान्य प्रसव में जोखिम है।” रातें बेचैनी से गुज़रतीं, मन में सवाल उठते — क्या हम सही रास्ते पर हैं?
लेकिन जीवन कभी-कभी अपने तरीके से आपको उत्तर दे देता है।
उसी दिन, 30 नवंबर को, जब प्रणति ने अपनी पहली मासूम सी रोने की आवाज़ सुनाई, दरवाज़े पर राजीव दीक्षित जी आ खड़े हुए। वे अप्पा के पुराने और अत्यंत सम्मानित मित्र थे। आगरा से रात भर की ट्रेन यात्रा करके वे सुबह-सुबह हमारे घर पहुँचे थे — और जैसे ही कदम रखा, घर का वातावरण एक अलौकिक शांति से भर गया।
मुझे पता था कि उनका जन्मदिन भी उसी दिन है।
ऐसा लगा, जैसे स्वयं कालचक्र ने दो आत्माओं का मिलन इसी दिन निर्धारित कर दिया हो — एक नवजात जीवन की शुरुआत, और एक ऐसे व्यक्ति का आशीर्वाद, जिसने अपना जीवन देश, समाज और सत्य के लिए समर्पित कर दिया था।
मैं आज भी वह पल स्पष्ट रूप से देख सकती हूँ — जब उन्होंने प्रणति को अप्पा की गोद से धीरे से लिया और अपनी बाँहों में सुला लिया। उस शिशु के चेहरे पर शांति छा गई, जैसे वह जानती हो कि वह प्यार और सुरक्षा में आई है।
हमने उस पल को एक तस्वीर में संजो लिया।
वह तस्वीर सिर्फ़ एक फ़ोटो नहीं — यह हमारे जीवन के उस अनमोल क्षण की जीवंत याद है, जब भगवान ने एक नई ज़िंदगी को आशीर्वाद देने के लिए एक महान आत्मा को हमारे दरवाज़े पर भेज दिया था।
कुछ वर्षों बाद, दुर्भाग्य से, उसी दिन — 30 नवंबर 2010 — हमने राजीव दीक्षित जी को अपने बीच से खो दिया।
आजादी बचाओ आंदोलन के वे ज्योतिर्मय महान आत्मा, जिन्होंने अपने विचारों व ज्ञान से लाखों को प्रेरित किया, हमेशा के लिए विदा हो गए।
आज, हर साल जब प्रणति का जन्मदिन मनाया जाता है, तो मेरे मन में दो भाव एक साथ उमड़ते हैं —
एक, वह अद्वितीय खुशी जो केवल एक माँ के दिल में होती है, जब वह अपनी बेटी को बड़ी होते देखती है…
और दूसरा, एक सूखा सा विरह — कि वह आशीर्वाद देने वाले अब नहीं रहे अर्थात राजीव दीक्षित जी
पर मैं विश्वास करती हूँ —
कुछ रिश्ते मृत्यु से भी परे होते हैं।
और कुछ आशीर्वाद, समय के साथ धुंधले नहीं होते…
वे बस गहरे होते जाते हैं।
मुझे स्पष्ट नही पता कि इस प्रकार पोस्ट सर्वप्रथम किसने किया था - बस मैंने उस पुराने पोस्ट को नए रूप में प्रस्तुत कर रहा

बाहर निकलिए और इन मंदिरों में जाईये , घूमिये , अपनी विरासत पर गर्व करना सीखिए । तभी हमारे विरासत की महत्ता जग ज़ाहिर होगी...
30/11/2025

बाहर निकलिए और इन मंदिरों में जाईये , घूमिये , अपनी विरासत पर गर्व करना सीखिए ।
तभी हमारे विरासत की महत्ता जग ज़ाहिर होगी ।
हम इसे क्यों दुनियाँ के आश्चर्यों में नहीं रख सकते , कोई बताएगा क्या कि इसमें क्या कमी है ??
अगर आप बिना किसी भेदभाव के दुनियाँ के 10 महान आश्चर्यों रखना चाहेंगे तो भारत के मंदिरों दसों स्थान पर काबिज़ हो जाएंगे और बाकी के मंदिरों का स्थान भी बीस शीर्ष स्थानों में होगा !!!
लेकिन खेद है कि हम लोग अनजान हैं इन सबसे और हमें जो बताया जाता है हम मान लेते हैं !!

मंदिर"में"स्तंभ""""🚩🚩🚩
हाथों की उंगलियां छोटे से विष्णु जी की मूर्ति को पीछे से छूती हैं,यह स्तंभ इस प्रकार का है,उन्होंने कैसे किया होगा निर्माण ? किस प्रकार के उपकरण होंगे उनके पास ? यह थी हमारी तकनीक एवं वो था हमारे पूर्वजों की कला और ज्ञान विज्ञान"""

संगीतमय भव्यता !!!
जब इन खंभों को टैप किया जाता है तो शास्त्रीय संगीत नोटों की ध्वनि उत्पन्न होती है

2010 के पहले, जब राजीव दीक्षित जी हमारे बीच थे—वह रात-दिन लोगों के फ़ोन उठाकर होमियोपैथी और आयुर्वेद से निशुल्क उपचार बत...
28/11/2025

2010 के पहले, जब राजीव दीक्षित जी हमारे बीच थे—
वह रात-दिन लोगों के फ़ोन उठाकर होमियोपैथी और आयुर्वेद से निशुल्क उपचार बताते थे।
उस दौर में न आज जैसा इंटरनेट था, न हर हाथ में स्मार्टफोन, न ही टच-स्क्रीन का ज़माना। सोशल मीडिया की पहुँच भी बहुत सीमित थी, और ज्यादातर लोग साधारण कीपैड मोबाइल ही चलाते थे।
ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी उनका यह समर्पण कोई साधारण बात नहीं—यह सच्ची राष्ट्रसेवा थी।”**

यदि आपको भी उपचार पूछना हैं तो हमारी वेबसाइट पर जाकर पूछ सकते हो - https://swdeshibharat.com/medical.html

हज़ारों सदियों पहले पच्छम जब अंधकार में गर्क था तो भारत के ऋषियों ने नाड़ी दोष ढूंढ लिया था और उसे गोत्र के रूप में विभाजि...
28/11/2025

हज़ारों सदियों पहले पच्छम जब अंधकार में गर्क था तो भारत के ऋषियों ने नाड़ी दोष ढूंढ लिया था और उसे गोत्र के रूप में विभाजित करके संसार को उत्तम ज्ञान दिया था, जिसे आज का आधुनिक चिकित्सा शास्त्र क्रोमोसोम थ्योरी कहता है, आईये बताएं कहां से नकल हुई ये क्रोमोसोम थ्योरी......
जानिए पुत्री को अपने पिता का गोत्र ,
क्यों नही प्राप्त होता ?
आइये वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
हम आप सब जानते हैं कि स्त्री में गुणसूत्र xx और पुरुष में xy गुणसूत्र होते हैं ।
इनकी सन्तति में माना कि पुत्र हुआ (xy गुणसूत्र) अर्थात इस पुत्र में y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्योंकि माता में तो y गुणसूत्र होता ही नही है !
और यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) यानी यह गुण सूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते हैं ।
१. xx गुणसूत्र
xx गुणसूत्र अर्थात पुत्री , अस्तु xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा x गुणसूत्र माता से आता है ।
तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है ।
२. xy गुणसूत्र
xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र , यानी पुत्र में y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में y गुणसूत्र है ही नही ।
और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारन पूर्ण Crossover नही होता केवल ५ % तक ही होता है । और ९५ % y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही रहता है ।
तो महत्त्वपूर्ण y गुणसूत्र हुआ । क्योंकि y गुणसूत्र के विषय में हमें निश्चित है कि यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है ।
बस इसी y गुणसूत्र का पता लगाना ही गोत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों / लाखों वर्ष पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था ।
वैदिक गोत्र प्रणाली और y गुणसूत्र :
अब तक हम यह समझ चुके है कि वैदिक गोत्र प्रणाली y गुणसूत्र पर आधारित है अथवा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है ।
उदहारण के लिए यदि किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है तो उस व्यक्ति में विद्यमान y गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है या कश्यप ऋषि उस y गुणसूत्र के मूल हैं ।
चूँकि y गुणसूत्र स्त्रियों में नही होता यही कारण है कि विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है ।
वैदिक / हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व स्त्री भाई बहन कहलाएंगे क्योंकि उनका प्रथम पूर्वज एक ही है ।
परन्तु ये थोड़ी अजीब बात नही कि जिन स्त्री व पुरुष ने एक दुसरे को कभी देखा तक नही और दोनों अलग अलग देशों में परन्तु एक ही गोत्र में जन्मे , तो वे भाई बहन हो गये ?
इसका मुख्य कारण एक ही गोत्र होने के कारण गुणसूत्रों में समानता का भी है ।
आज के आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनकी सन्तति आनुवंशिक विकारों के साथ उत्पन्न होगी ।
ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा ,
पसंद , व्यवहार आदि में कोई नयापन
नहीं होता । ऐसे बच्चों में
रचनात्मकता का अभाव होता है ।
विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगोत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात मानसिक विकलांगता , अपंगता , गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं ।
शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगोत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था ।
इस गोत्र का संवहन यानी उत्तराधिकार पुत्री को एक पिता प्रेषित न कर सके ,
इसलिये विवाह से पहले कन्यादान कराया जाता है और गोत्र मुक्त कन्या का पाणिग्रहण कर भावी वर अपने कुल गोत्र में उस कन्या को स्थान देता है ,
यही कारण था कि उस समय विधवा विवाह भी स्वीकार्य नहीं था , क्योंकि , कुल गोत्र प्रदान करने वाला पति तो मृत्यु को प्राप्त कर चुका है ।
इसीलिये , कुंडली मिलान के समय वैधव्य पर खास ध्यान दिया जाता और मांगलिक कन्या होने पर ज्यादा सावधानी बरती जाती है ।
आत्मज या आत्मजा का
सन्धिविच्छेद तो कीजिये ।
आत्म + ज अथवा आत्म + जा
आत्म = मैं , ज या जा = जन्मा या जन्मी , यानी मैं ही जन्मा या जन्मी हूँ ।
यदि पुत्र है तो 95% पिता और 5% माता का सम्मिलन है । यदि पुत्री है तो 50% पिता और 50% माता का सम्मिलन है ।
फिर यदि पुत्री की पुत्री हुई तो वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा , फिर यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा , इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह प्रतिशत घटकर 1% रह जायेगा ।
अर्थात , एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है , और यही है सात जन्मों का साथ ।
लेकिन , जब पुत्र होता है तो पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% ( जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है ) डीएनए ग्रहण करता है , और यही क्रम अनवरत चलता रहता है ,
जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं , अर्थात यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है ।
इसीलिये , अपने ही अंश को पित्तर जन्म जन्मान्तरों तक आशीर्वाद देते रहते हैं और हम भी अमूर्त रूप से उनके प्रति श्रध्येय भाव रखते हुए आशीर्वाद ग्रहण करते रहते हैं ,
और यही सोच हमें जन्मों तक स्वार्थी होने से बचाती है , और सन्तानों की उन्नति के लिये समर्पित होने का सम्बल देती है ।
एक बात और , माता पिता यदि
कन्यादान करते हैं , तो इसका यह
अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को
कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं ,
बल्कि इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुलधात्री बनने के लिये ,
उसे गोत्र मुक्त होना चाहिये ।
डीएनए मुक्त तो हो नहीं सकती क्योंकि भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही ,
इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है , गोत्र यानी पिता के गोत्र का त्याग किया जाता है ।
तभी वह भावी वर को यह वचन दे पाती है कि उसके कुल की मर्यादा का पालन करेगी यानी उसके गोत्र और डीएनए को दूषित नहीं होने देगी , वर्णसंकर नहीं करेगी ,
क्योंकि कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का रजदान करती है और मातृत्व को प्राप्त करती है । यही कारण है कि प्रत्येक विवाहित स्त्री माता समान पूज्यनीय हो जाती है ।
यह रजदान भी कन्यादान की ही तरह कोटि यज्ञों के समतुल्य उत्तम दान माना गया है जो एक पत्नी द्वारा पति को दान किया जाता है ।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अलावा यह संस्कारगत शुचिता किसी अन्य सभ्यता में दृश्य ही नहीं है, इसीलिए कहता हूँ
अपना भारत वो भारत है, जिसके पीछे संसार चला (ग्रीष्मा)
साभार: स्वामी संकल्प देव की वाल से

आप जीवित हैं या मृत? रावण को अंगद ने बताए थे 14 प्रकार के मृतक!क्या आप जानते हैं कि रामायण के अनुसार, साँस लेना ही जीवन ...
28/11/2025

आप जीवित हैं या मृत? रावण को अंगद ने बताए थे 14 प्रकार के मृतक!
क्या आप जानते हैं कि रामायण के अनुसार, साँस लेना ही जीवन नहीं है?
जब राम और रावण का भीषण युद्ध चल रहा था, तब अंगद ने रावण को ललकारते हुए कहा था, "तुझे मारकर क्या फ़ायदा? तू तो पहले ही मरा हुआ है!"
इस पर रावण हैरान हुआ। तब अंगद ने वे 14 दुर्गुण बताए, जिनके कारण कोई भी व्यक्ति जीवित होते हुए भी 'मृत' के समान माना जाता है। ये 14 बातें त्रेतायुग की थीं, लेकिन आज के दौर में भी शत-प्रतिशत लागू होती हैं।
विचार करें, क्या इनमें से कोई दुर्गुण आपको भी मृतक समान तो नहीं बना रहा?
जीवित होते हुए भी मृतक समान माने जाने वाले 14 दुर्गुण
१. कामवश (अत्यधिक भोगी):
जो व्यक्ति कामवासना और संसार के क्षणिक भोगों में पूरी तरह लिप्त रहता है, जिसकी इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होतीं, और जो प्राणी सिर्फ अपनी वासनाओं के अधीन होकर जीता है।
२. वाम मार्गी (नकारात्मक विद्रोही):
जो व्यक्ति समाज और दुनिया से विपरीत चलता है। जो हर बात में नकारात्मकता खोजता है और नियमों, परंपराओं तथा लोक-व्यवहार के विरुद्ध आचरण करता है।
३. अति कंजूस (कृपण):
वह व्यक्ति जो धर्म के कार्य, दान, या किसी भी कल्याणकारी कार्य में आर्थिक रूप से हिस्सा लेने से बचता है। धन होने पर भी उसे खर्च न करना, उसे मृत समान बना देता है।
४. अति दरिद्र (आत्मविश्वास से हीन):
सिर्फ धन से नहीं, बल्कि जो व्यक्ति आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो। गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है, और ऐसा व्यक्ति जीवित होते हुए भी पराजित माना जाता है।
५. विमूढ़ (मूर्ख/विवेकहीन):
अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति, जिसके पास अपना विवेक और बुद्धि न हो। जो खुद कोई निर्णय न ले सके और हर कार्य के लिए दूसरों पर आश्रित हो।
६. अजसि (बदनाम व्यक्ति):
जिस व्यक्ति को समाज, परिवार या राष्ट्र में बदनामी मिली हुई हो। जो किसी भी इकाई में सम्मान नहीं पाता, वह मृत समान ही होता है।
७. सदा रोगवश (निरंतर रोगी):
जो व्यक्ति लगातार रोगी रहता है, जिसका शरीर अस्वस्थता के कारण विचलित रहता है। ऐसा व्यक्ति जीवन के वास्तविक आनंद से वंचित रह जाता है।
८. अति बूढ़ा (अत्यंत आश्रित वृद्ध):
अत्यधिक वृद्ध व्यक्ति, जो पूरी तरह से दूसरों पर आश्रित हो जाता है, जिसका शरीर और बुद्धि दोनों असक्षम हो जाते हैं। (अंगद के अनुसार यह अवस्था भी मृतक समान है, जहाँ व्यक्ति कष्टों से मुक्ति की कामना करने लगता है)।
९. सतत क्रोधी (हमेशा क्रोध में रहने वाला):
वह व्यक्ति जो हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करता है। क्रोध के कारण उसका मन और बुद्धि उसके नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं, और नियंत्रणहीन जीवन मृत के समान ही है।
१०. अघ खानी (पाप की कमाई खाने वाला):
जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का भरण-पोषण करता है। पाप की कमाई से जीवन चलाने वाला व्यक्ति स्वयं तो मृत समान होता ही है, उसके परिजन भी उसी के भागी होते हैं।
११. तनु पोषक (परम स्वार्थी):
ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से सिर्फ अपनी आत्म-संतुष्टि और अपने स्वार्थों के लिए जीता है। जिसके मन में संसार के अन्य प्राणियों के लिए कोई संवेदना न हो और जो समाज के लिए अनुपयोगी हो।
१२. निंदक (अकारण आलोचना करने वाला):
जो व्यक्ति दूसरों में सिर्फ कमियाँ देखता है और किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता। जो सदैव दूसरों की बुराई करता है, वह मृत समान है।
१३. परमात्म विमुख (आस्थाहीन):
जो व्यक्ति परम सत्ता (परमात्मा) का विरोधी है, यह सोचता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं और संसार हम ही चला रहे हैं। ऐसा व्यक्ति परमशक्ति में आस्था न रखने के कारण मृत माना जाता है।
१४. श्रुति, संत विरोधी (ज्ञान का विरोधी):
जो व्यक्ति वेद, ग्रंथ, पुराणों और संतों के उपदेश का विरोधी होता है। संत और शास्त्र समाज में ब्रेक का काम करते हैं; जो इन्हें नकारता है, वह अपने और समाज के पतन का मार्ग प्रशस्त करता है।
चौपाई में प्रमाण (लंका काण्ड):
कौल कामबस कृपिन विमूढ़ा।
अतिदरिद्र अजसि अतिबूढ़ा।।
सदारोगबस संतत क्रोधी।
विष्णु विमूख श्रुति संत विरोधी।।
तनुपोषक निंदक अघखानी।
जिवत सव सम चौदह प्रानी।।
🙏 जय श्री राम

28/11/2025

भारत के 10 प्राचीन महान वैज्ञानिक.... यदि आपने इनको नही जाना तो आपने भारत के बारे मे कुछ नही जाना.... सभी 10 चित्रों पर क्लिक करके पढ़े 🙏

 #अग्नि में डाला हुआ पदार्थ नष्ट नहीं होता, फैल जाता हैयह बात बुद्धिगम्य कर लेनी चाहिए कि अग्नि में डाला हुआ पदार्थ नष्ट...
27/11/2025

#अग्नि में डाला हुआ पदार्थ नष्ट नहीं होता,
फैल जाता है
यह बात बुद्धिगम्य कर लेनी चाहिए कि अग्नि में डाला हुआ पदार्थ नष्ट नहीं होता ।
अग्नि का काम स्थूल पदार्थ को सूक्ष्म रूप में परिवर्तित कर देना है ।
यज्ञ करते हुए अग्नि में घी डालते हैं, वह नष्ट नहीं होता, स्थूल घी, घी के सूक्ष्म परमाणुओं में बदल जाता है ,
जो घी एक कटोरी में था,
परमाणुओं के रूप में वह सारे वातावरण में फैल जाता है ।
सामग्री गुग्गल, जायफल, जावित्री, मुनक्का आदि जो कुछ डाला गया था,
वह परमाणुओं में टूटकर सारे वायुमण्डल में व्याप्त हो जाती है ।
किसी बात का पता चलता है, किसी का नहीं ।
उदाहरण के लिए स्थूल (साबुत) मिर्च को आप जेब में डाल कर घुमते रहें,
किसी को कुछ पता नहीं चलेगा,
उसी को हमाम दस्ते में कूटें तो उसकी धमक से छीकें आने लगेंगी,
उसी को आग में डाल दें तो सारे घर के लोग दूर-दूर बैठे हुए भी परेशान हो जाएँगे ।
क्यों परेशान हो जाएँगे ?
क्योंकि आग का काम स्थूल वस्तु को तोड कर सूक्ष्म कर देना है और वस्तु सूक्ष्म हो कर परिमित स्थान में कैद न रह कर दूर-दूर फैल जाती है और असर करती है।
मनु महाराज ने ठीक कहा है आग में डालने से हवि सूक्ष्म हो कर सूर्य तक फैल जाती है
"अग्नौ हुतं हविः सम्यक् आदित्यम् उपतिष्ठति ।"

चुकंदर और गाजर का जूस पीने के 5 बेहतरीन फायदे स्वस्थ जीवन (Healthy Life) की तलाश में लोग अक्सर नेचुरल और हर्बल उपाय अपना...
27/11/2025

चुकंदर और गाजर का जूस पीने के 5 बेहतरीन फायदे

स्वस्थ जीवन (Healthy Life) की तलाश में लोग अक्सर नेचुरल और हर्बल उपाय अपनाना पसंद करते हैं। चुकंदर (Beetroot) और गाजर (Carrot) का जूस न केवल स्वादिष्ट होता है बल्कि यह हमारी हेल्थ और स्किन दोनों के लिए बेहद फायदेमंद है।

आयुर्वेद में भी इसे खून बढ़ाने, पाचन सुधारने और शरीर को एनर्जी देने वाला पेय माना गया है। आइए जानते हैं इस जूस के 5 जबरदस्त फायदे –

1. खून की कमी (Anemia) दूर करने में सहायक

चुकंदर और गाजर में भरपूर आयरन पाया जाता है। इसके नियमित सेवन से शरीर में खून की कमी पूरी होती है। जो लोग एनीमिया (Anemia disease) या बार-बार थकान की समस्या से परेशान रहते हैं, उनके लिए यह जूस बहुत लाभकारी हो सकता है।

2. ग्लोइंग स्किन और पिंपल्स से छुटकारा

अगर आप नेचुरल glowing skin चाहते हैं तो इस जूस को अपनी डाइट में शामिल करें। यह खून को शुद्ध करता है और डार्क स्पॉट, डार्क सर्कल और एक्ने की समस्या को कम करता है। नियमित सेवन से चेहरे पर नैचुरल ग्लो आता है और स्किन हेल्दी बनती है।

3. वज़न कम करने में मददगार

वज़न घटाने (Weight Loss) के लिए यह जूस बेहद असरदार है। इसमें natural sugar और fiber की पर्याप्त मात्रा होती है, जिससे भूख देर तक नियंत्रित रहती है। अगर आप डाइटिंग कर रहे हैं तो सुबह या शाम इस जूस का सेवन जरूर करें।

4. ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने में सहायक

आजकल बहुत से लोग high blood pressure (BP) की समस्या से जूझ रहे हैं। चुकंदर और गाजर का जूस पोटैशियम और फाइबर से भरपूर होता है, जो ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद करता है। नियमित सेवन से दिल की बीमारियों (Heart Diseases) का खतरा भी कम हो सकता है।

5. बेहतर पाचन और मेटाबॉलिज्म बूस्ट

पाचन (Digestion) ठीक रखना सेहत के लिए जरूरी है। यह जूस मेटाबॉलिज्म को बूस्ट करता है और डाइजेशन को बेहतर बनाता है। इसे सुबह खाली पेट या नाश्ते के बाद पिया जा सकता है। इससे खाना आसानी से पचता है और पेट की दिक्कतें कम होती हैं।

निष्कर्ष

चुकंदर और गाजर का जूस एक नेचुरल टॉनिक की तरह है, जो खून बढ़ाने से लेकर स्किन, वज़न, ब्लड प्रेशर और डाइजेशन—हर चीज में मदद करता है। अगर आप हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाना चाहते हैं, तो इसे अपनी डेली डाइट का हिस्सा बनाइए।

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श्री राजीव दीक्षित जी

पिछले ५०० सालो में राजीव दीक्षित जैसा कोई आदमी भारत में पैदा ही नहीं हुआ तो मै भी सोच में पड गया और मै उनकी इन बातों का कारन जानने के लिए हर पहलू पर विचार किया तो पाया की वास्तविकता यही है की राजीव भाई में इतनी शक्ति होते हुए भी उनकी नैतिकता का कोई शानी नहीं है.

स्वदेशी अपनाएं, स्वावलम्बी बनें।