Bagwan Dhanvantari Ayurveda

Bagwan Dhanvantari Ayurveda It's purpose to know about the Ayurveda medicine to people
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*●●हार्ट ब्लोकेज●●**99 परसेन्ट ब्लॉकेज को भी जड़ से खत्म या रिमूव कर देता है देवतुल्य पीपल का पत्ता...**बनाने की विधि :*प...
22/08/2025

*●●हार्ट ब्लोकेज●●*
*99 परसेन्ट ब्लॉकेज को भी जड़ से खत्म या रिमूव कर देता है देवतुल्य पीपल का पत्ता...*

*बनाने की विधि :*
पीपल के 15 पत्ते लें जो कोमल गुलाबी कोंपलें न हों, बल्कि पत्ते हरे, कोमल व भली प्रकार विकसित हों। प्रत्येक का ऊपर व नीचे का कुछ भाग कैंची से काटकर अलग कर दें। पत्ते का बीच का भाग पानी से साफ कर लें। इन्हें एक गिलास पानी में धीमी आँच पर पकने दें।
जब पानी उबलकर एक तिहाई रह जाए तब ठंडा होने पर साफ कपड़े से छान लें और उसे ठंडे स्थान पर रख दें, दवा तैयार।

इस काढ़े की तीन खुराकें बनाकर प्रत्येक तीन घंटे बाद प्रातः लें।
हार्ट अटैक के बाद कुछ समय हो जाने के पश्चात लगातार पंद्रह दिन तक इसे लेने से हृदय पुनः स्वस्थ हो जाता है और फिर दिल का दौरा पड़ने की संभावना नहीं रहती।

*दिल के रोगी इस नुस्खे का एक बार प्रयोग अवश्य करें...*

पीपल के पत्ते में दिल को बल और शांति देने की अद्भुत क्षमता है।
इस पीपल के काढ़े की तीन खुराकें सवेरे 8 बजे, 11 बजे व 2 बजे ली जा सकती हैं।
खुराक लेने से पहले पेट एक दम खाली नहीं होना चाहिए, बल्कि सुपाच्य व हल्का नाश्ता करने के बाद ही लें। प्रयोगकाल में तली चीजें, चावल आदि न लें।
मांस, मछली, अंडे, शराब, धूम्रपान का प्रयोग बंद कर दें।
समुद्री नमक, चीनी, रिफाइंड तेल, चिकनाई आदि का प्रयोग बंद कर दें।
अनार, पपीता, आंवला, बथुआ, लहसुन, मेथी दाना, सेब का मुरब्बा, मोसंबी, रात में भिगोए काले चने, किशमिश, गुग्गुल, दही, छाछ आदि लें।

*तो अब समझ आया,*
भगवान ने पीपल के पत्तों को हार्टशेप क्यों

छोटी इलायची- 20 ग्रामबड़ी इलायची-20 ग्राम और कबाबचीनी- 20 ग्रामदेशी खांड- 60 ग्राम विधि- आधी चमच्च चूर्ण गर्म पानी के साथ...
22/08/2025

छोटी इलायची- 20 ग्राम
बड़ी इलायची-20 ग्राम और
कबाबचीनी- 20 ग्राम
देशी खांड- 60 ग्राम

विधि- आधी चमच्च चूर्ण गर्म पानी के साथ 3 साल से ऊपर के बच्चों के लिए।

समय- सुबह खाली पेट

लाभ- इस से मिट्टी, पत्थर, चौक आदि बुरी चीजें खाना छूट जाता है।

सौंफ बहुत गजब की औषधी है।अनिंद्रा- 2 चमच्च सौंफ लेके  2 गिलास पानी मे डाल दो फिर उसको इतना उबालें की आधा गिलास शेष रहने ...
22/08/2025

सौंफ बहुत गजब की औषधी है।

अनिंद्रा-

2 चमच्च सौंफ लेके 2 गिलास पानी मे डाल दो फिर उसको इतना उबालें की आधा गिलास शेष रहने पर उतार छान कर उसमे एक गिलास गाय का दूध और आधी चमच्च घी मिला के सेवन करें। चमत्कारी लाभ होगा।

अधिक निंद्रा या आलस्य-

इसी तरह काढ़ा बना के उतार कर छान कर उसमे दो चुटकी के करीब सेंधा नमक मिला कर सुबह शाम काढ़ा बना कर पियें तो अत्यंत लाभ होता है।

15 से 20 दिन करें।

क्या आपका शरीर कमजोरी ने जकड़ लिया है?❓खेती बाड़ी से जुड़े पारंपरिक ज्ञान को बटोरने का बाद के अनुभव से मैं कह सकता हूँ कि ...
21/08/2025

क्या आपका शरीर कमजोरी ने जकड़ लिया है?❓

खेती बाड़ी से जुड़े पारंपरिक ज्ञान को बटोरने का बाद के अनुभव से मैं कह सकता हूँ कि जो फसल खूब सारे केमिकल्स, पेस्टीसाइड्स, रासायनिक खाद डालकर तैयार होती है, वो फसल कीट, कीड़े-मकोड़े और रोगों को ज्यादा आकर्षित करती है और जो फसल प्राकृतिक रूप से उपजी है उस पर इन जीवों का आक्रमण ज्यादा नहीं होता है। वजह, प्राकृतिक तौर तरीकों से तैयार फसलों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) ज्यादा होती है।

ठीक इसी तरह प्राकृतिक तौर तरीकों से बना स्वस्थ शरीर रोगों और रोगकारकों को आकर्षित नहीं करता है। यानी आप घर में चूल्हे पर पके भोजन, साफ स्वच्छ खानपान, मौसमी फल, सब्जियां खाते रहेंगे तो एकदम टनाटन रहेंगे। दवाओं, एंटीबॉयोटिक्स और एनर्जी/ मल्टीविटामिन कैप्सूल्स खाने वाले लोगों में रोगों के होने की संभावनाएं ज्यादा होती है क्योंकि इनका शरीर रोगकारकों को ज्यादा आकर्षित करता है, वही खेती- बाड़ी वाली बात। नई पीढ़ी को स्वस्थ रखना है तो डिब्बाबंद और पाउचबंद प्रोडक्ट्स से दूर रखें, जिन्हें आप जंक फूड कहते हैं वो फूड नहीं है, सिर्फ जंक हैं। समझ सको तो ठीक वरना 2 मिनिट वाली फोफसी मैगी बनकर रह जाओ, शरीर भी फुस्स, सेहत भी फुस्स।

आपकी सेहत बेहतरी की हर दवा आपकी रसोई और खानपान में है, दवाइयां कभी भी आपको सेहत नहीं दे सकती।

क्या आपने 'प्लांट ब्लाइंडनेस' के बारे में सुना है ? हम में से बहुत से लोग कलर ब्लाइंड होते हैं  लेकिन अपने आस-पास के फ्ल...
21/08/2025

क्या आपने 'प्लांट ब्लाइंडनेस' के बारे में सुना है ? हम में से बहुत से लोग कलर ब्लाइंड होते हैं लेकिन अपने आस-पास के फ्लोरा
यानी पेड़-पौधों के प्रति हमारा उदासीन रवैया हमें 'प्लांट ब्लाइंडनेस' की तरफ़ धकेलता है यानी अपने आस-पास के पेड़-पौधों के बारे में जानकारी न होना , उसे पहचान न पाना । हमने अक्सर लोगों को बहुत गर्व के साथ कहते सुना है अरे यार मुझे तो धनिया-पुदीना का अंतर समझ नहीं आता । आम, अमरूद और जामुन जैसे बेहद आम और हमारे वातावरण में बहुतायत में पाए जाने वाले पेड़-पौधों को भी अगर हम पहचान नहीं पा रहे , अगर नीम-मीठी नीम , आम-अमरूद, घास-गेंहू की फ़सल में हमें अंतर नहीं पता तो यह कोई गर्व की बात नहीं बल्कि यह एक तरह से आपके भीतर की कमी है जो आपके लिए ही नहीं हमारे वातावरण और प्रकृति के फलने-फूलने के लिए भी बहुत ख़तरनाक़ है। अमेरिका में शहर के कई लोगों पर एक शोध किया गया जिसे अटेंशनल ब्लिंक कहते हैं । इस टेस्ट में पलक झपकने की गति में लोगों को दो तस्वीरें दिखाईं गईं । एक किसी जीव-जंतु की थी और दूसरी किसी वनस्पति या पौधे की। लोग जानवरों को तुरंत पहचान गए पर अपने आस-पास ही पाए जाने वाले पौधों की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी और इस तरह 1998 में अमेरिका के दो वनस्पति वैज्ञानिकों को एक नया शब्द खोजना पड़ा - 'प्लांट ब्लाइंडनेस' । हम में से कितने लोग अपनी स्थानीय वनस्पतियों के नाम जानते हैं ? किसी विशेष स्थान का पौधा अगर उस ख़ास जगह पर ही उगता है तो उसकी एक वजह होती है । हम में से कितने लोग अपने आप से यह सवाल पूछते हैं कि बहुत आम से लगने वाले पौधों की पर्यावरण में अहमियत क्यूं है ?कौन सी चिड़िया किस फूल या पौधे से आकर्षित होती है ।लंबी चोंच वाली चिड़िया गुड़हल पर ही क्यूँ आती है।
कौन-से पौधे तितलियों, मधुमक्खियों और कीट-पतंगों को आकर्षित करते हैं ? यह अच्छी बात है कि सोशल मीडिया पर बहुत सारे गार्डनिंग ग्रुप्स और बढ़ती पर्यावरण जागरुकता के कारण हम हरियाली की ओर आकर्षित हो रहे हैं लेकिन जो वनस्पतियां चुपचाप हमसे मुंह मोड़ती जा रही हैं , जो पौधे चुपचाप धरती से गायब होते जा रहे हैं उसकी कीमत कौन चुकाएगा ? हमारे स्थानीय वातावरण में पाये जाने वाले पीपल, नीम, गूलर , करंज पापड़ी जैसे पेड़ हमारे पर्यावरण के लिए वरदान हैं इसलिए उनके बारे में जानकारी हमें होनी ही चाहिए। हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि क्यूं जहां पीपल, गुलमोहर और नीम होना चाहिए वहां यूकेलिप्टस बढ़ता जा रहा है ..क्यूं उन राज्यों में भी जहां पानी की कोई समस्या नहीं वहां बबूल कीकर क्यूं फल -फूल रहे हैं। सदाबहार का फूल देखा है आपने ..इतना आम सा फूल जिसे आप विदेशी फूलों के आगे तवज्जो नहीं देते न केवल तितलियों को आकर्षित करता है बल्कि कई औषधियों गुणों से भरपूर है । सत्यानाशी का पौधा भंवरों , तितलियों को लिए वरदान है इसे घर में नही लगा सकते पर आपने इसे पार्कों , मैदानों से भी मिटा दिया। क्या तितलियों और कीट-पतंगों को आकर्षित करने के लिए हम मिल्कीवीड लगाते हैं । प्लांट ब्लाइंडनेस बेहद आसानी से मिट सकती है। ज़रूरी है पेड़-पौधों के प्रति संवेदनशील होने की। सर्वज्ञाता कोई नहीं हो सकता पर आम और जामुन की पत्ती में फर्क़ न कर पाना इंगित करता है कि कहीं कोई तो तार टूट रहा है।
अपने माहौल में अपने आस-पास के पेड़-पौधों से जुड़ने का सबसे शानदार तरीक़ा है आस-पास के पार्कों , जंगलों , मैदानों में सिर्फ़ पेड़ों से बातें करने उन्हें महसूस करने के लिए निकल जाइए। उन्हें देखिए, परखिए, उनके बारे में पढ़िए। दोस्तों के साथ परिजनों के साथ उन पर चर्चा कीजिए। अपने बच्चों को इस चर्चा में शामिल कीजिए। उनके फूलों के रंग देखिए। फलों को पकते हुए देखिए। पेड़ों पर चढ़िए उनसे गले मिलिए।
अपने बच्चों को प्रकृति से जुड़े कार्यक्रम दिखाइए और किताबें भेंट कीजिए । नेचर वॉक पर निकलिए। पेड़ों से बातें कीजिए । उन्हें भी उतने ही दुलार और देखभाल की ज़रूरत है जितनी हमें उनकी ऑक्सीजन की । धनिया-पुदीना में फ़र्क करना सीखिए। अर्जुन, बरगद, सेमल से मित्रता कीजिए। नीम को शुक्रिया कहिये। खट्टी मीठी से बच्चों का परिचय करवाईए।अपनी प्रकृति को पहचानिए ।ऐसा नहीं है तो यह
आपके इंसान होने पर प्रश्न चिह्न है ।यह प्लांट ब्लाइंडनेस है ।

तस्वीर चाहे हमारे देश की नहीं है, लेकिन काबिलेतारीफ है।पेड़ है तो हम है...🌳🌳
21/08/2025

तस्वीर चाहे हमारे देश की नहीं है, लेकिन काबिलेतारीफ है।
पेड़ है तो हम है...🌳🌳

आपके जीवन में 3 प्रकार के लोग.. 1. पत्ता लोग 2. शाखा वाले 3. जड़ लोग पत्ता लोग: ये वो लोग हैं जो सिर्फ एक सीज़न के लिए आ...
20/08/2025

आपके जीवन में 3 प्रकार के लोग..

1. पत्ता लोग
2. शाखा वाले
3. जड़ लोग

पत्ता लोग:
ये वो लोग हैं जो सिर्फ एक सीज़न के लिए आपकी जिंदगी में आते हैं। आप उन पर निर्भर नहीं रह सकते क्योंकि वे कमज़ोर हैं। वे केवल वही लेने आते हैं जो उन्हें चाहिए, लेकिन यदि हवा आ गई तो वे चले जाएंगे।
आपको इन लोगों से सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि जब चीजें ठीक होती हैं तो ये आपसे प्यार करते हैं, लेकिन जब स्थिति बिगड़ती है तो ये आपको छोड़ देते हैं।

शाखा के लोग:
वे मजबूत हैं, लेकिन आपको उनसे सावधान रहने की भी जरूरत है। जब जीवन कठिन हो जाता है और वे बहुत अधिक वजन नहीं संभाल पाते तो वे अलग हो जाते हैं। वे कुछ मौसमों में आपके साथ रह सकते हैं, लेकिन जब यह कठिन हो जाएगा तो वे चले जाएंगे 😢

जड़ लोग: ये लोग बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे दिखने के लिए काम नहीं करते हैं। वे आपका समर्थन करते हैं, भले ही आप कठिन समय से गुजरें, वे आपको सहारा देंगे और वे आपकी स्थिति से प्रभावित नहीं होंगे, वे आपसे बस उसी तरह प्यार करते हैं...

वे सभी लोग जिनसे आप मिलते हैं या आपके मित्र हैं, वे आपके साथ नहीं रहेंगे।
केवल जड़ प्रकार के लोग ही रहेंगे चाहे कोई भी मौसम हो।

भाड़ में जाओ की हकीकत 👇😄गुस्से में अक्सर हर व्यक्ति के मुॅंह से ये शब्द निकल जाता है भाड़ में जाओ। अरे! भाड़ में जाओ का मत...
20/08/2025

भाड़ में जाओ की हकीकत 👇😄
गुस्से में अक्सर हर व्यक्ति के मुॅंह से ये शब्द निकल जाता है भाड़ में जाओ। अरे! भाड़ में जाओ का मतलब भाड़ में भुनाने जाओ !
भाड़ के अंदर आग में मत जाओ लेकिन, समझने वाले तो समझ ही जाते हैं।
भाड़ मतलब मिट्टी और मिट्टी के बर्तनों से बना हुआ वो पारम्परिक ओवन होता है जिसमें, भूनने का कार्य होता है। जो भूनने का काम करता है उसे गांव में भड़भूज कहते हैं। भड़भूज जाति के लोगों का भाड़ चलाना, चिवड़ा कूटना जैसे पारंपरिक कार्य ही आय का स्रोत होते हैं।
पहले के समय में लगभग हर गांव में एक भड़भूज होता था जिसके यहाँ गांव के बच्चे बूढ़े अक्सर चना, चावल, मक्का, मटर इत्यादि भुनाने के लिए लाते थे। ताजा गन्ने का रस जिसमें दही डालकर शर्बत बनाया जाता था उसे सिखरन कहते हैं। सिखरन के साथ इन्ही भूने हुए भुजे और तीखे चटपटे मसालेदार नमक के साथ मस्त देशी नाश्ता हर घर में किया जाता था। ताजा ताजा भुने मक्की, चने, मटर के भुजे का स्वाद स्वर्गिक होता था।
गर्मियों में सात प्रकार के मोटे अनाज को लोग भाड़ में भुनवा कर पिसवा लेते हैं इन सातों अनाज के मिश्रण से बने आटे को सत्तू कहा जाता है। सत्तू का क्या उपयोग होता है मेरे ख्याल से मुझे बताने की जरूरत नहीं है भड़भूज इन सब अनाजों को भूनने के बदले में उन्ही अनाजों का कुछ हिस्सा अपने पास अपने मेहनताने के रूप में रख लेता था।
सुबह सुबह भड़भूजे के भाड़ से भुने अनाजों से उठने वाली खुश्बू से जीभ लपलप करने लगती थी, न चाहते हुए भी अनाज लेकर लोग भाड़ में पहुँच जाया करते थे। मेरे प्राइमरी स्कूल के परिसर में एक भाड़ था हम सब घर से रुमाल में बांधकर मक्की के दाने ले जाते थे और भुनाते थे दोपहर की छुट्टी में वही हमारा लंच होता था। जिस दिन अनाज ले जाना भूल जाते थे उस दिन एक रुपया ले जाते थे भुजइन काकी एक कलछुल अनाज भुज देती थी जिससे हम सब का पेट भर जाता था। भाड़ में भूजा भुजाने जाओ तो भुजइन काकी भाड़ में पत्तियां झोंकने का काम करवाती थी जिसके, अनाज को भुजने की बारी होती थी वो तब तक सूखी पत्तियां भाड़ में झोंकता था जिससे आग जलती थी और भूजा बनता था।
अब तो इस पॉपकॉर्न के जमाने में भाड़ लगभग लुप्त प्राय हो रहे हैं लेकिन, जो स्वाद भाड़ में भुने भुजे का होता है वो आजकल के पॉपकॉर्न में कहां मिलेगा?

एक और एलोपैथी मेडिसिन में आयुर्वेदिक मेडिसिन मिलायी गयी है।Boswellia Serrata ( शल्‍लकी)शल्लकी एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है...
20/08/2025

एक और एलोपैथी मेडिसिन में आयुर्वेदिक मेडिसिन मिलायी गयी है।
Boswellia Serrata ( शल्‍लकी)

शल्लकी एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है जिसमें बोसोवेलिक एसिड नामक सूजन को कम करने वाला ट्राइटपेनॉयड शामिल है। बोसोवेलिक एसिड ऑस्टियोअर्थराइटिस और रुमेटीइड अर्थराइटिस और पीठ दर्द के लिए प्रभावी होता है। बोसवेलिया ऊतको की सूजन और संयोजी ऊतक के टूटने को रोकने में लाभकारी होता है। शल्लकी से निकला गोंद राल यानी भारतीय लोबान दर्द और जकड़न को कम करने में मदद कर सकता है। अनुसंधान से यह भी पता चलता है कि बोसवेलिया दर्द और सूजन के लिए मौखिक रूप से लिया जा सकता है। इसके अलावा इससे बनी क्रीम भी गठिया में आराम दे सकती है।

      बड़ी पहुंच वाले कई सारे क्रिमिनल्स हैं वो। DNA रिपोर्ट null करवा देंगे। और ओरल पेनिट्रेशन ( ओरल सेक्स )किया होगा उ...
20/08/2025


बड़ी पहुंच वाले कई सारे क्रिमिनल्स हैं वो। DNA रिपोर्ट null करवा देंगे।
और ओरल पेनिट्रेशन ( ओरल सेक्स )किया होगा उन राक्षसों ने , इसलिए मनीषा की खाने की नली निकाल ली और गर्दन काट के तेजाब इसलिए डाला गया ताकि सीमन नष्ट हो जाए। कोई मेडिकल के ही लोग होंगे वो , क्यूंकि उन्हीं को इतना सारा मेडिकल का ज्ञान था!!!!

री–पोस्टमार्टम हुआ है मनीषा का अब और उसमें रेप की पुष्टि नहीं की है और गले का ये बताया गया है कि किसी जानवर ने काटा होगा।
जब पहले पोस्टमार्टम के लिए गई थी तब पहले डॉक्टर ने देखते ही कह दिया था कि किसी तेजधार हथियार से गर्दन काटी गई है। जिन जिन लोगों ने on the spot बॉडी देखी उन्होंने उसकी जांघों के बीच blood भी देखा।

सुसाइड नोट भी मिल गया , छी !!
मतलब वो इतनी दुखी थी कि खुश हो के एडमिशन लेने जा रही जिस दिन , उस दिन बाहर खेत में सुसाइड करेगी और बॉडी जानवर खा गया!!!!
और ऐसा कौन सा जानवर है जो सिर्फ चेहरा ही खाया करता हैं बाकी शरीर पर खरोंच तक नहीं पहुंचाता।

दोषियों को बचाने के लिए अब उसे जानवर के काटने में दिखाया जा रहा , सब जगह पैसे चल रहे। नरक जायेंगे सब....

मधुक ,महुवा , ( मराठी ) मोह , मोहड  ( संस्कृत ) मधुक , मधुपुष्प ,मधुस्रव , मधुद्रुम ,मधुवृक्ष , आदि  (अंग्रेजी ) Honey T...
19/08/2025

मधुक ,महुवा , ( मराठी ) मोह , मोहड ( संस्कृत ) मधुक , मधुपुष्प ,मधुस्रव , मधुद्रुम ,मधुवृक्ष , आदि (अंग्रेजी ) Honey Tree , Butter Tree व वैज्ञानिक नाम Madhuca longifolia या Madhuca indica l यह बहुउपयोगी वृक्ष मानो कल्पवृक्ष है l भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला यह वृक्ष हमारे वनवासी व ग्रामीण देशबंधुओं के लिए बहुत महत्त्व रखता है l विशाल आकार का यह पेड़ 40 से 50 फुट ऊंचाई व 10-12 फुट मोटाई प्राप्त कर लेता है l जंगलों के अलावा सड़क के किनारे , खेतों में ,व खाली ज़मीनों पर यह अपने आप या रोपण के द्वारा उगाया या उग जाता है l इसकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है व पुराने समय हवेलियों व किलों के बड़े बड़े किवाड़ व दरवाजे इसकी लकड़ी के बनाए जाते थे , जो सैकड़ों साल के बाद आज भी उसी मजबूती से खड़े हैं lइसके पत्ते दोने -पत्तल बनाने के काम आते थे l सबसे महत्वपूर्ण इसका फूल व फल होते है , जो मार्च समाप्ति व अप्रेल प्रारंभ में आना प्रारंभ होते है l फूल आने के पूर्व इसके सभी पत्ते पीले /लाल पड़कर झड जाते हैं व फिर फूल खिलने का सिलसिला चालू होता है l ये फूल रात में खिलता हैं व प्रातः जमींन पर गिरना प्रारंभ कर देते हैं lअपने जोरदार मौसंम में इतने फूल गिरते हैं , की धरती पर उनकी चादर सी बिछ जाती है l इन फूलों को खिलते रहने के लिए स्वच्छ धुप की व तेज गर्मी की जरूरत होती है व यदि इस दौरान बादल आ जाने या पानी गिरने से मौसम में ठंडक आ जाती है तो इनका फूलना भी रूक जता है जिसे स्थानीय ग्रामीण " महुआ लौटना " कहते हैं व यह स्थिति महुआ संग्राहकों के लिए निराशा भरी होती है l महुए का फूल सफ़ेद ,रस भरा व मीठा होता है जिसमें से तेज मीठी मीठी गंध निकलती है जो मादक होती है l इस गिरे हुए महुओ को इकठ्ठा करने ग्रामीण परिवार सहित या अकेले सूर्योदय के पूर्व ही इसके पेड़ों के नीचे डेरा डाल देते हैं व गिरा हुआ महुआ एकत्रित करना प्रारंभ कर देते हैं l यह कार्य दिन के 10-11 बजे तक चलता है l एकत्रित महुए को धुप में सुखा लिया जाता है वसूखा फूल बाजार में अच्छे दामों पर बेच दिया जाता है l यह सूखा महुआ देश के शराब उद्योग ( विशेष कर देशी शराब ) की रीढ़ है व इससे बड़ी मात्रा में शराब बनाई जाती है l फूलों का मौसम ख़त्म होने के बाद इसमें फल लगते हैं ,जिन्हें स्थानीय भाषा में गुलेन्दा कहा जता है l फलों में चोकलेटी रंग के बीज होते हैं जिन्हे गुली कहते हैं व इन बीजों की गिरी से तेल निकाला जाता है लिसे गुली का या महुए का तेल कहते हैं l पचाने में भारी यह तेल फिर भी खाया जाता है lयह व्यावसायिक रूप से उपयोगी वृक्ष औषधीय भी है l l सूखे फूलों से ग्रामीण लोग कुछ मिठाइयाँ भी बनाते हैं lयह नेत्र रोग , कर्ण रोग ,वक्ष रोग व अस्थिसंधि रोग ,बाजीकरण में भी उपयोग किया जाता है l इसके सूखे फूलों से ग्रामीण लोग कुछ खाद्य पदार्थ व मिठाइयाँ भी बनाते हैं l

* #अचूक_आयुर्वेदिक_नुस्खे :-**(१)* मधुमक्खी काटने की दवा -  आक(मदार) के दूध में लौंग, गोल मिर्च, शुद्ध कड़वा तेल या सरसो...
19/08/2025

* #अचूक_आयुर्वेदिक_नुस्खे :-*

*(१)* मधुमक्खी काटने की दवा - आक(मदार) के दूध में लौंग, गोल मिर्च, शुद्ध कड़वा तेल या सरसों का दाना एक में रगड़कर तेल में फेंटकर लगाये। पीड़ा समाप्त हो जायगी।

(२) मनुष्य के पेट में दर्द - आकाश बवर पीसकर थोड़ा शुद्ध घी एक चम्मच जल के साथ पिला दिया जाय, दर्द मिट जायगा।

(३) जहर खा लेने पर - अकोल्हा की छाल थोड़ा-सा पीसकर पिला दिया जाय तो कैसा भी जहर हो उसे उलटी द्वारा बाहर निकाल देता है। यह दवा रामबाण है।

(४) वातरोग या गठिया - हरसिंगार की चार या पाँच पत्ती पीसकर एक गिलास पानी से सुबह-शाम दो या तीन सप्ताह पीने से रोग समाप्त हो जायगा।

(५) कान का दर्द - पीपल के पत्ते का रस कान में डालने से कान का दर्द, बहना तथा बहरापन चला जाता है।

(६) चौथिया, जड़ेया बुखार - कपास के पत्तों को सूंघने से चौथिया या जडैया बुखार जड़ से छूट जायगा।

(७) सिरदर्द या सर्दी - पीपल के चार कोमल पत्तों का रस चूसिये। रस चूसते चूसते दर्द या सर्दी जुक़ाम मिट जायगा।

(८) खाँसी, दमा - पीपल के सूखे पत्तों को कूटकर कपड़छान कर ले तथा एक बड़े चम्मच शुद्ध मधु २५ ग्राम में, २५ ग्राम पीपल पत्ते का चूर्ण । मिलाकर चाटनेसे खाँसी, दमा दो सप्ताह में जड़ से समाप्त हो जायगा।

(९) पीपल के फल के उपयोग - पीपल के फल को सुखाकर कूटकर कपड़छान कर ले। २५० ग्राम रोजाना गाय के दूध में मिलाकर सेवन करनेसे वह बल-वीर्य को बढ़ाता है, ताकत पैदा करता है और स्त्रियों के प्रसूत, प्रदर, मासिक धर्म की गड़बड़ी को भी 'के' यह दूर कर देता है।

(१०) हैजा - अकवन (आक)-को कुछ लोग मदार भी कहते हैं। अकवनकी जड़ १०० मिलीग्राम, इतनी ही गोल मिर्च मिलाकर पीस ले और मटरके दाने के बराबर गोली बना ले। जिसे हैजा (कॉलरा) हो गया हो, उसे एक बार दो गोली खिलाये, हैजा तुरंत - बंद हो जायगा।

(११) गैस (घटसर्प) - सफेद अकवन के फूल सुखाकर तवे पर भून ले तथा चार फूल हथेली पर रगड़कर शहद मिलाये । ४ या ६ बूंद उस मरीज को चटाये, जिसे गैस (घटसर्प)- की बीमारी हो, इससे ठीक हो जाती है। इस रोग में सीने में उठा दर्द साँपकी आकृति में ऊपर उठकर कण्ठपर जाकर रुक जाता है। ऐसे रोगीकी श्वास घुटने लगती है। जब कण्ठ पर श्वास रुक जाती है, उसी समय इसे देना चाहिये, कण्ठ खुल जायगा। पंद्रह दिन तीन समय देने से बिल्कुल आराम हो जाता है।

(१२) सूज़ाक - अकवन (मदार) - की जड़ ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम, गोल मिर्च २५ ग्राम पीसकर गोली बनाये। एक-एक गोली रोजाना सुबह खाकर पानी पी ले तो गरमी, सूजाक जड़ से समाप्त हो जाता है।

(१३) मलेरिया - तुलसी के सात पत्ते और गोल मिर्च सात दाने एक साथ चबाने से पाँच बार में मलेरिया जड़ से चला जाता है। बुखार शीघ्र उतर जाता है, आराम हो जाता है।

(१४) आँख की लाली - अकवन का दूध पैर के अँगूठे के नखपर लगाने से आँख की लाली फौरन साफ हो जाती है, परंतु ध्यान रहे आँख में न लगने पाये।

(१५) तुलसी के अद्भुत गुण - तुलसी के पत्ते और इसके बराबर गोल मिर्च मिलाकर पीस ले, मटर बराबर गोली बना ले, एक गोली दाँत पर रगड़ने से दाँत दर्द, पायरिया आदि में फौरन आराम होगा। दस रोज में दाँत से खून आना, मुख की दुर्गन्ध इत्यादि जड़ से चली जाती है। यह गोली बुखार खाने से रामबाण का काम करती है। बुखार उतर जाता है और तुरंत आराम होता है।

(१६) शक्तिवर्धन तथा भूख-प्यास लगना - चिरचिरी (अपामार्ग)-का बीज १०० ग्राम रगड़कर साफ कर ले और गायका दूध २५० ग्राम या एक किलो लेकर उसमें मिलाकर उसे गरम करे, जब दूध गाढ़ा हो जाय तब सेवन करे। दस रोज सेवन करने पर ताकत बढ़ेगी, भूख प्यास भी लगेगी।

(१७) बवासीर के अक्सीर नुस्खे -
(क) रसौत ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम, गेंदेका फूल ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम, मुनक्का ५० ग्राम तीनों को पीसकर सात गोली बना ले; एक गोली रोजाना सुबह पानी के साथ सेवन करे, जड़से बवासीर चली जायगी।
(ख) निरी (हरसिंगार) का बीज ५८ ग्राम ३१६ मिलीग्राम कुकरौंधा के रस में पीस ले। मटर बराबर नौसादर मिलाकर दस गोली बना ले। एक गोली नित्य ५८ ग्राम ३१६ मिलीग्राम गुलाबजल के साथ निगल जाय।
(ग) सूरन (जमींकन्द)-को ओल भी कहते हैं, इसे घी में भूनकर खाने से खूनी बवासीर दूर हो जाती है।
(घ) काले तिलका चूर्ण मक्खन में मिलाकर खाने से बवासीर दूर होती है।
(ङ) मदार (आक) -का पत्ता तथा सहिजन के जड़ की छाल-इन दोनोंको एक साथ पीसकर लेप करने से खूनी बवासीर दूर हो जाती है।

(१८) खुजली-दाद - खुजली, दाद, घाव, एग्जिमा आदि चर्मरोगों में गेहूँ को जलाकर राख बना ले। इसे कपड़छान कर तेल (सरसों पीला)-में भिगोकर लगाये तो खुजली आदि में तुरंत आराम हो जायगा।

(१९) बिच्छू का काटना -
(क) बिच्छूने जहाँ काटा हो, वहाँ दूधी घास रगड़ देने से फौरन आराम हो जाता है।
(ख) मूलीको पीसकर बिच्छूके काटे स्थानपर लगाने से विष दूर हो जाता है।
(ग) सिन्धुवार के कोंपल को पीसकर बिच्छू के डंक मारने वाले स्थानपर लगाने से आराम हो जाता है।

(२०) गठिया-दर्द - सिन्धुवार (सैंधा कचरी) के पत्ते एक किलो पानी में खूब गरम कर दे। उस गरम जल से धोने से गठिया, कनकनी गाँठका दर्द तथा सूजन अच्छा हो जाता है।

(२१) बुखार - सिन्धुवार की जड़ हाथ में बाँधने से बुखार उतर जाता है।

(२२) त्रिफला के उपयोग - ५० ग्राम त्रिफला (आँवला, हरें, बहेड़ा) का चूर्ण, शुद्ध शहद और तिलके तेलमें मिलाकर चाटने से खाँसी, दमा, बुखार, धातुक्षीणता, पेट के समस्त रोग जड़ से समाप्त हो जाते हैं। ऋषियों ने यहाँ तक कहा है कि इसे सुबह शाम सेवन करने से शरीर का कायापलट हो जाता है। सूजाक, बवासीर में पूरा आराम मिलता है। स्त्रियों का प्रदररोग, प्रसूत तथा मासिककी गड़बड़ी जड़ से चली जाती है।

(२३) खाँसी-सर्दी - बाक्स (अड़ूसा) का रस एक तोला, शहद एक तोला के साथ सेवन करे तो यह खाँसी, सर्दी, पुराने बुखार आदि को जड़ से समाप्त कर देता है।

(२४) आँख की फूली, धुंधलापन - गदहपूरना का रस आँख में डालने से आँख की फूली, माणी, धुंधलापन आदि रोग दूर हो जाते हैं।

(२५) गर्भ न गिरना - अशोक के बीज का एक दाना लेकर सिलपर घिसकर बछड़े वाली गाय के दूध में मिलाकर स्त्री को देने से गर्भपात रुक जाता है, स्त्री पुत्रवती हो जाती है।

(२६) स्त्री का गर्भ न टिकता हो - आम के वृक्षका अतरछाल, गाय के घी में पुराना गुड़ तथा एक फूल लवंग गर्भवती स्त्री को खिला देने से गर्भधारण हो जायगा।

(२७) दर्द - सहिजन के जड़ की छाल को बिना पानी के पीसकर दर्द में लगाने से शीघ्र आराम हो जाता है।

(२८) फाइलेरिया - फाइलेरिया के रोगी को जब दर्द हो, ज्यादे सूजन हो जाय तो सहिजन और सिन्धुवार (सैंधाकचरी) - के पत्तों को किसी कच्चे मिट्टी के बर्तन में गरम करे, जब गरम हो जायँ तो जहाँ पर फाइलेरिया हो वहाँ बाँधने से तुरंत आराम हो जाता है।

(29) टूटी हुई हड्डी को जोड़ना, गुप्त चोट में आराम -
(क) नागफनी का एक पूरा टुकड़ा आग में डाल दे, भुन जाने पर काँटे छील डाले और बीच में फाड़कर आँबाहलदी, खारी, सेंधा नमक का चूर्ण कपड़छान कर उसे दे और चोटपर बाँध दे। २४ घंटे के बाद खोले, उसी तरह फिर तैयार कर बाँधे। सात दिन में टूटी हड्डी जुड़ जायगी।
(ख) हड़जोड़ जो पेड़ों पर पलता है बिना जड़के, कहीं कहीं इसे चौराहाजी कहते हैं। अगर महुआ के वृक्षपर का मिल जाय तो उत्तम, न मिले तो कहीं किसी वृक्षपर हो, उसे पीसकर शुद्ध घीमें भून ले और आँबाहलदी, खारी, सेंधा नमकका चूर्ण मिलाकर बाँधने तथा हड़जोड़ की पकौड़ी (भजिये) सेवन करने से टूटी हड्डी तथा गुप्त चोट ठीक होती है।

(३०) दन्त-रोग तथा दर्द -
(क) मदार (आक) या थूहर के दूध को रुई में भिगोकर दाँतों के घावपर रखने से दाँतों का दर्द दूर हो जाता है और घाव भी भर जाता है।
(ख) गुलाइची वृक्ष का या छीतवन का दूध रुई में रखकर दाँतों पर रखने से दाँत का दर्द चला जाता है।

(३१) दन्तमंजन - बादाम के छिलके तथा नीम की डाल का कोयला बना ले । डम्बर का बीज, बबूल की छाल, काली मिर्च, सफेद इलायची, चूल्हेकी मिट्टी तथा लाहोरी नमक-इन्हें समान भाग लेकर कूट-छानकर नित्य मंजन करे। यह पायरिया तथा हिलते दाँतों को मजबूत तथा सांफ रखता है।

(३२) पायरिया एवं दाँत हिलना - तूतिया और फिटकरी एक किलो पानी में पकाये। जब एक भाग जल जाय और तीन भाग बच जाय तो शीशी में रख ले, रोज थोड़ा गरम करके कुल्ला करे तो रोग ठीक हो जायगा।

(३३) कान का दर्द तथा बहना - नीम की मुलायम पत्ती का रस तथा रस के बराबर शुद्ध शहद मिलाकर कान में डालने से बहता कान, कान का दर्द तथा बहरापन दूर हो जाता है। नीम की पत्ती का रस हथेली द्वारा निकालना चाहिये ।

(३४) खाज, गजकर्ण, अपरस, खुजली का मरहम - अकवन का दूध, नीला थूथा का दूध, गन्धक, फिटकरी, सोहागा, नौसादर- प्रत्येक वस्तुको ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम लेकर लोहे के बर्तनमें खरल कर खूब बारीक मरहम-जैसा बना ले। घाव को नीम के पत्ते युक्त गरम जल से अच्छी तरह साफ कर ले। जब घाव का पानी सूख जाय तो मरहम को नारियल के तेल में मिलाकर लगाये।

(३५) श्वेत कुष्ठ (सफेद कोढ़) - तिल के तेल में नौसादर मिलाकर लगाने से सफेद कोढ़ के दाग मिट जाते हैं।

(३६) तेज ज्वर -
(क) काली मिट्टी की पट्टी पेट पर लगाने से आधे घंटे में तेज ज्वर शांत हो जाता है।
(ख) तेज ज्वर में ठंडे पानी से सिर धोने या ठंडे जलका कपड़ा भिगोकर सिरपर रखने से ज्वर कम हो जाता है।

(३७) दमा या श्वासरोग -
(क) आम के कच्चे पत्तों को सुखाकर चीलम में भरकर पीने से दमा रोग नष्ट हो जाता है।
(ख) बेर के पत्तों को पीसकर घी में भूनकर तथा सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से दमा रोगी को आराम मिलता है।
(ग) अजवाइन को पान में डालकर चूसने से खाँसी तथा श्वास रोग नष्ट हो जाते हैं।
(घ) मदार के चार-पाँच पत्तों को आग में राख करके उस राख को रातभर पानी में रहने दे। सुबह छानकर पीने से श्वास रोग हमेशा के लिये नष्ट हो जाता है।

(३८) आँख के रोहे का काजल - तूतिया को गुलाबजल में पीसकर रख ले, सरसों के तेल दीपक में रुई की बत्ती से काजल पार ले, बाद में पीसा हुआ तूतिया-गुलाबजल मिला ले, हो सके तो पुराने गाय के घी में फेंट ले। फिर रोहे वाले आँख में लगाये।

( ३९ ) प्रदररोग ल्यूकोरिया -
(क) शुद्ध शहद के साथ प्रतिदिन आँवला चूर्ण चाटने से श्वेतप्रदर दूर होता है।
(ख) चावल के धोवन में कपास की जड़ पीसकर पीने से श्वेतप्रदर दूर होता है।
(ग) घी के साथ लाख चूर्ण खाने से रक्तप्रदर दूर हो जाता है।
(घ) गूलर के सूखे फल का चूर्ण मिश्री के साथ सेवन करने से प्रदररोग ठीक हो जाता है।
(ङ) गूलर के पके फलों का साग बनाकर खाने से रक्तप्रदर दूर होता है।

(४०) हृदय की जलन तथा पेशाब की जलन - गूलर के कच्चे फल खानेके उपरान्त गायका धारोष्ण दुग्ध मिस्री मिलाकर पीने से हृदय की जलन, पेशाब की जलन तथा मूत्रजनित रोग हमेशा के लिये दूर हो जाते हैं।

(४१) बहुमूत्रता सिंघाड़ा-चूर्ण ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम बकरी के दूध के साथ नित्य सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।

(४२) गुल्मरोग (वायुगोला ) -
(क) गुग्गुल को गोमूत्र के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
(ख) अदरक, सहिजन की छाल और सरसों का तेल-इन तीनों को मिलाकर गोमूत्र के साथ सेवन करने से वायुगोला समाप्त हो जाता है।

(४३) श्लीपद (हाथीपाँव) -
(क) देवदार और हलदी का चूर्ण गोमूत्र के साथ सेवन करने से हाथी पाँव ठीक हो जाता है।
(ख) गुडुच (गुरुच)-का रस गोमूत्र के साथ सेवन करने से भी हाथीपाँव ठीक होता है।

(४४) तिल्ली -
(क) हर्रे का चूर्ण गोमूत्र के साथ सेवन करने से तिल्ली(पीलही) कट जाती है।
(ख) नित्य सुबह-शाम पपीता-सेवन करने से तिल्ली (पीलही) कट जाती है।

(४५) मूर्छा रोग ( दौरा) -
(क) पेठा (भतुआ) | की सब्जी शुद्ध घी में भूनकर खाने से मूर्छा दूर हो जाती है।
(ख) नौसादर तथा चूने का पानी सुंघाने से मूर्छा दूर हो जाती है।

(४६) कृमि पेट के कीड़े -
(क) गाजर खाने से कृमिरोग दूर हो जाता है।
(ख) कृमिरोग में पोदीना का काढ़ा देने से बच्चों को लाभ होता है।

(४७) कण्ठमाला -
(क) त्रिफले के जल में अरंडी (रेंडी)- की जड़ को पीसकर लगाने से कण्ठमाला रोग दूर हो जाता है।
(ख) गेंदे की पत्ती को गोमूत्र में पीसकर लगाने से कण्ठमाला नष्ट हो जाता है।
(ग) सूरजमुखी और लहसुन की पुटली बनाकर लगाने से कण्ठमाला दूर हो जाता है।
(घ) गोमूत्र के साथ जल कुम्भी का भस्म सेवन करने से कण्ठमाला नष्ट होता है।

(४८) पतले दस्त -
(क) अमरूद (वीही) के जड़ की छाल तथा कोमल पत्तों को ६० ग्राम लेकर उसका काढ़ा बना ले, उसे पीने से पतले दस्त बंद हो जाते हैं ।
(ख) अशोक के फूल ४० ग्राम पीसकर पीने से पतले दस्त बंद हो जाते हैं।
(ग) भुनी अजवाइन का अर्क पीने से पतले दस्त बंद हो जाते हैं।
(घ) गूलर का दूध बतासा में डालकर बच्चों को देने से उनका आँव (मल) दस्त बंद हो जाता है।
(ङ) गाय के कच्चे दूध में कागजी नीबू निचोड़कर पीने से आँव (मल) दस्त चला जाता है, परंतु नीबू निचोड़कर तुरंत पी जाना चाहिये। दूध पेट में जाकर फटना चाहिये, देर होनेपर जम जायगा।
(च) धवई के फूल मट्ठे के साथ सेवन करने से पतले दस्त बंद हो जाते हैं।

(४९) पुरुष का हृष्ट-पुष्ट होना -
(क) गोखरू, कौंच का बीज, मुलहठी, शतावर, श्वेत मुसली, छोटी इलायची के दाने, तालम खाना-इन्हें समान भाग लेकर कूटकर कपड़छान कर ले और रात में सोते समय गाय के दूध के साथ सेवन करे। शक्ति बढ़ेगी और हृदय पुष्ट होगा।
(ख) शतावर, गोखरू के बीज, कौंच के बीज, गगेरन की छाल, तालमखाना, कंथी की छाल - इन्हें बराबर मात्रा में लेकर कूट-छान ले और रात में सोते समय गाय के दूधके साथ सेवन करे।
(ग) असली नागकेशर, वंशलोचन, शतगिलोय, मुलहठी, श्वेत राल, मरगमीहमी-सबको समान भाग लेकर कूटकर, कपड़छान कर प्रतिदिन गाय के दूधके साथ सेवन करे। (घ) अश्वगन्धका चूर्ण ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम, विधारा बीज ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम प्रतिदिन गाय के दूध के साथ सेवन करे।

(५०) कील-मुहाँसे - लवंग, धनिया, वर्च का लेप मुँहासों को दूर करता है।

(५१) कालापन - हलदी के चूर्ण को आक (मदार ) - के दूध में मिलाकर चेहरे पर लेप करने से मुँह का कालापन दूर हो जाता है।

(५२) हृदयरोग -
(क) अर्जुन की छाल रात में एक गिलास पानी में भिगो दे। सुबह दातौन करने के पश्चात् छानकर पी ले। हृदयरोग जड़से चला जायगा।
(ख) विजयशाल की लकड़ी के गिलास में पानी पीने से भी हृदयरोग में आराम होता है। अगर लकड़ी हो तो उसे एक गिलास पानी में रातको भिगो दे। फिर दूसरे दिन भी पानी में उसी लकड़ी को डालकर पानीका प्रयोग करे।

(५३) मधुमेह - शहदइया की जड़ ११ ग्राम ५०० मिलीग्राम साफ-सुथरा कर उसमें चार-पाँच दाना काली मिर्च मिलाकर पीस ले, गाय का दूध २५० या ५०० ग्राम लेकर उसी के साथ निगल जाय। दातौन करने के पश्चात् सुबह लगातार इक्कीस दिन करना है। बीच में नागा नहीं करना है। परंतु गरमी में ही करना है, जाड़े में करने से गठिया की बीमारी हो सकती है।

(५४) बहता खून बंद करना - काले कुकरौंधा के पत्ते का रस हाथ से निकालकर कटे हुए स्थान पर डाले, बहता हुआ खूनं तुरंत बंद हो जायगा।

(५५) पेट के अंदर से खून आता हो - सफेद दूर्वा (दूब) लेकर पीस ले और उसे चीनी या गुड़ डालकर शर्बत बनाकर रोगी को पिला दे, खून फौरन बंद कर देगा। यह दो-तीन बार देना है।

(५६) शरीर के अंदर से कट-कटकर खून कहीं से आता हो - खस (कतरा)- की जड़, कमल का फूल और दूर्वा (दूब), पुराने चावल (चावल जितना ही पुराना हो अच्छा रहेगा। कम-से-कम एक सालका पुराना अवश्य हो)- के पानी में पीसकर रोगी को एक गिलास जल में शर्बत बनाकर पिला दे। खून तुरंत बंद हो जायगा । इसे दो-तीन बार देना चाहिये।

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