Astro Dev Sharma

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16/09/2025
16/09/2025
24/07/2024

पिछले दो दशकों से कावड़ यात्रा की लोकप्रियता बढ़ी है और अब समाज का उच्च एवं शिक्षित वर्ग भी कावड यात्रा में शामिल होने लगा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कावड़ यात्रा का इतिहास, सबसे पहले कावड़िया कौन थे। इसे लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मान्यता है आइए जानें विस्तार से ---

ज्योतिषी लवली शर्मा

1. कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’का कावड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था।

परशुराम, इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। आज भी इस परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग 'पुरा महादेव' का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट है।

2. वहीं कुछ विद्वानों का कहना है कि सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कावड़ यात्रा की थी। माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे जहां उनके अंधे माता-पिता ने उनसे मायापुरी यानि हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की।


माता-पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कावड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया. वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए। इसे ही कावड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।

3. पुराणों के अनुसार कावड यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। परंतु विष के नकारात्मक प्रभावों ने शिव को घेर लिया

शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया।तत्पश्चात कावड़ में जल भरकर रावण ने 'पुरा महादेव' स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया। इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कावड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ।

4. कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल के प्रभावों को दूर करने के लिए देवताओं ने शिव पर पवित्र नदियों का शीतल जल चढ़ाया था। सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित करने लगे। सावन मास में कावड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ।

आपके अनुसार इनमे से कोनसा सही है, कृपया comment करके बताये और page को follow करें 🙏

हर हर महादेव 🙏
जय भोले 🙏
जय गंगा मैया 🙏

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22/12/2022

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ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि कितनी घातक या लाभदायक होती है??
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जन्मकुंडली में कोई भी ग्रह कहीं भी बैठा हो वह दूसरे ग्रह आदि पर दृष्टि डालता है तो उस दृष्टि का प्रभाव शुभ या अशुभ होता है। आप अपनी कुंडली के ग्रहों की स्थिति जानकर उनकी दृष्टि किस भाव या ग्रह पर कैसी पड़ी रही है यह जानकार आप भी उनके अशुभ प्रभाव को जान सकते हैं। जब तक आपको यह पता नहीं है कि कौन-सा ग्रह आपकी कुंडली में अशुभ दृष्टि या प्रभाव डाल रहा है तब तक आप कैसे उसके उपाय कर पाएंगे? अत: जानिए कि किसी ग्रह की कौन सी दृष्टि घातक होती है।


दृष्टि क्या होती है?

दृष्टि का अर्थ यहां प्रभाव से लें तो ज्यादा उचित होगा। जैसे सूर्य की किरणें एकदम धरती पर सीधी आती है तो कभी तिरछी। ऐसा तब होता है जब सूर्य भूमध्य रेखा या कर्क, मकर आदि रेखा पर होता है। इसी तरह प्रत्येक ग्रह का अलग-अलग प्रभाव या दृष्टि होती है।


किस ग्रह की कौन-सी दृष्टि?

प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से सप्तम स्थान पर सीधा देखता है। सीधा का मतलब यह कि उसकी पूर्ण दृष्टि होती है। पूर्ण का अर्थ यह कि वह अपने सातवें घर, भाव या खाने में 180 डिग्री से देख रहा है। पूर्ण दृष्टि का अर्थ पूर्ण प्रभाव।


सातवें स्थान के अलावा शनि तीसरे और दसवें स्थान को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है। गुरु भी पांचवें और नौवें स्थान पर पूर्ण दृष्टि रखता है। मंगल भी चौथे और आठवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है।


इसके अतिरिक्त प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से तीसरे और दसवें स्थान को आंशिक रूप से भी देखते हैं।

कुछ आचार्यों ने राहु और केतु की दृष्टि को भी मान्यता दी है। राहु अपने स्थान सातवें, पांचवें और नवम स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है तो केतु भी इसी तरह देखता है।

सूर्य और मंगल की ऊर्ध्व दृष्टि है, बुध और शुक्र की तिरछी, चंद्रमा और गुरु की बराबर की तथा राहु और शनि की नीच दृ‍ष्टि होती है।


वक्री ग्रह :

सूर्य और चंद्र को छोड़कर सभी ग्रह वक्री होते हैं। वक्री अर्थात् उल्टी दिशा में गति करने लगते हैं। जब यह वक्री होते हैं तब इनकी दृष्टि का प्रभाव अलग होता है। वक्री ग्रह अपनी उच्च राशिगत होने के समतुल्य फल प्रदान करता है। कोई ग्रह जो वक्री ग्रह से संयुक्त हो उसके प्रभाव मे मध्यम स्तर की वृद्धि होती है। उच्च राशिगत कोई ग्रह वक्री हो तो, नीच राशिगत होने का फल प्रदान करता है।

इसी प्रकार से जब कोई नीच राशिगत ग्रह वक्री होता जाय तो अपनी उच्च राशि में स्थित होने का फल प्रदान करता है। इसी प्रकार यदि कोई उच्च राशिगत ग्रह नवांश में नीच राशिगत होने तो तो नीच राशि का फल प्रदान करेगा। कोई शुभ अथवा पाप ग्रह यदि नीच राशिगत हो परन्तु नवांश मे अपनी उच्च राशि में स्थित हो तो वह उच्च राशि का ही फल प्रदान करता है।


फलादेश के सामान्य नियम:-

लग्न की स्थिति के अनुसार ग्रहों की शुभता-अशुभता व बलाबल भी बदलता है। जैसे सिंह लग्न के लिए शनि अशुभ मगर तुला लग्न के लिए अतिशुभ माना गया है।


1. कुंडली में त्रिकोण के (5-9) के स्वामी सदा शुभ फल देते हैं।

2. केंद्र के स्वामी (1-4-7-10) यदि शुभ ग्रह हों तो शुभ फल नहीं देते, अशुभ ग्रह शुभ हो जाते हैं।

3. 3-6-11 भावों के स्वामी पाप ग्रह हों तो वृद्धि करेगा, शुभ ग्रह हो तो नुकसान करेगा।

4. 6-8-12 भावों के स्वामी जहां भी होंगे, उन स्थानों की हानि करेंगे।

5. छठे स्थान का गुरु, आठवां शनि व दसवां मंगल बहुत शुभ होता है।

6. केंद्र में शनि (विशेषकर सप्तम में) अशुभ होता है। अन्य भावों में शुभ फल देता है।

7. दूसरे, पांचवें व सातवें स्थान में अकेला गुरु हानि करता है।

8. ग्यारहवें स्थान में सभी ग्रह शुभ होते हैं। केतु विशेष फलदायक होता है।

9. जिस ग्रह पर शुभ ग्रहों की दृष्टि होती है, वह शुभ फल देने लगता है।

08/12/2022

आज बात करते हैं कुंडली की कुछ और महत्वपूर्ण बातो की।।

१) कुंडली में शुभ ग्रहों को बल दीजिए अशुभ ग्रहों का बल उपायों के माध्यम से कम कीजिए,आपकी जीवन की अधिक मुश्किलें कम होगी।।

२) राहु अगर एकादश भाव में अशुभ हो तो एक माचिस और ग्यारह कपूर किसी शिव मंदिर में रखे।।

३) चंद्र राहु की अशुभ युति चतुर्थ भाव में हो तो एक बिजली की तार किसी जल में प्रवाहित करे।।

४ अगर शनि राहु की अशुभ युति नवम में है तो आटे को तेल में गूंथ कर उसके हींग और नमक मिलाकर उसकी रोटी बनाकर सांड को खिलाए।।

५) अगर मंगल शुभ है एक लाल रुमाल हमेशा अपने पास रखे।।

हर मुश्किल का हल कुंडली के माध्यम से उपायों के द्वारा है।।उपाय कुंडली अनुसार अवश्य कीजिए।।

कुंडली दिखाने के लिए संपर्क करें।।

9915535715

07/12/2022

नौ अच्छी आदतों से नवग्रहो का सम्मान कर सुधारें।

1)अगर आपको कहीं पर भी थूकने की आदत है तो यह निश्चित है कि आपको यश, सम्मान अगर मुश्किल से मिल भी जाता है तो कभी टिकेगा ही नहीं . wash basin में ही यह काम कर आया करें ! यश,मान-सम्मान में अभिवृध्दि होगी।

२) जिन लोगों को अपनी जूठी थाली या बर्तन वहीं उसी जगह पर छोड़ने की आदत होती है उनको सफलता कभी भी स्थायी रूप से नहीं मिलती.!

बहुत मेहनत करनी पड़ती है और ऐसे लोग अच्छा नाम नहीं कमा पाते.! अगर आप अपने जूठे बर्तनों को उठाकर उनकी सही जगह पर रख आते हैं तो चन्द्रमा और शनि का आप सम्मान करते हैं ! इससे मानसिक शांति बढ़ कर अड़चनें दूर होती हैं।

3) जब भी हमारे घर पर कोई भी बाहर से आये, चाहे मेहमान हो या कोई काम करने वाला, उसे स्वच्छ पानी ज़रुर पिलाएं ! ऐसा करने से हम राहु का सम्मान करते हैं.!

जो लोग बाहर से आने वाले लोगों को हमेशा स्वच्छ पानी पिलाते हैं उनके घर में कभी भी राहु का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.! अचानक आ पड़ने वाले कष्ट-संकट नहीं आते।

4) घर के पौधे आपके अपने परिवार के सदस्यों जैसे ही होते हैं, उन्हें भी प्यार और थोड़ी देखभाल की जरुरत होती है.!

जिस घर में सुबह-शाम पौधों को पानी दिया जाता है तो हम बुध, सूर्य और चन्द्रमा का सम्मान करते हुए परेशानियों का डटकर सामना कर पाने का सामर्थ्य आ पाता है ! परेशानियां दूर होकर सुकून आता है।

जो लोग नियमित रूप से पौधों को पानी देते हैं, उन लोगों को depression, anxiety जैसी परेशानियाँ नहीं पकड़ पातीं.!

5) जो लोग बाहर से आकर अपने चप्पल, जूते, मोज़े इधर-उधर फैंक देते हैं, उन्हें उनके शत्रु बड़ा परेशान करते हैं.! इससे बचने के लिए अपने चप्पल-जूते करीने से लगाकर रखें, आपकी प्रतिष्ठा बनी रहेगी।

6) उन लोगों का राहु और शनि खराब होगा, जो लोग जब भी अपना बिस्तर छोड़ेंगे तो उनका बिस्तर हमेशा फैला हुआ होगा, सिलवटें ज्यादा होंगी, चादर कहीं, तकिया कहीं, कम्बल कहीं ?

उसपर ऐसे लोग अपने पुराने पहने हुए कपडे़ तक फैला कर रखते हैं ! ऐसे लोगों की पूरी दिनचर्या कभी भी व्यवस्थित नहीं रहती, जिसकी वजह से वे खुद भी परेशान रहते हैं और दूसरों को भी परेशान करते हैं.!

इससे बचने के लिए उठते ही स्वयं अपना बिस्तर समेट दें.! जीवन आश्चर्यजनक रूप से सुंदर होता चला जायेगा।

7) पैरों की सफाई पर हम लोगों को हर वक्त ख़ास ध्यान देना चाहिए, जो कि हम में से बहुत सारे लोग भूल जाते हैं ! नहाते समय अपने पैरों को अच्छी तरह से धोयें, कभी भी बाहर से आयें तो पांच मिनट रुक कर मुँह और पैर धोयें.!

आप खुद यह पाएंगे कि आपका चिड़चिड़ापन कम होगा, दिमाग की शक्ति बढे़गी और क्रोध धीरे-धीरे कम होने लगेगा.! आनंद बढ़ेगा।

8) रोज़ खाली हाथ घर लौटने पर धीरे-धीरे उस घर से लक्ष्मी चली जाती है और उस घर के सदस्यों में नकारात्मक या निराशा के भाव आने लगते हैं.! इसके विपरीत घर लौटते समय कुछ न कुछ वस्तु लेकर आएं तो उससे घर में बरकत बनी रहती है.!

उस घर में लक्ष्मी का वास होता जाता है.! हर रोज घर में कुछ न कुछ लेकर आना वृद्धि का सूचक माना गया है.! ऐसे घर में सुख, समृद्धि और धन हमेशा बढ़ता जाता है और घर में रहने वाले सदस्यों की भी तरक्की होती है.!

9) जूठन बिल्कुल न छोड़ें । ठान लें । एकदम तय कर लें। पैसों की कभी कमी नहीं होगी।

अन्यथा नौ के नौ गृहों के खराब होने का खतरा सदैव मंडराता रहेगा। कभी कुछ कभी कुछ । करने के काम पड़े रह जायेंगे और समय व पैसा कहां जायेगा पता ही नहीं चल पायेगाअपने मां वह पिता श्री को सम्मान दे अपने ईष्ट देव को प्रसन्न रखे

02/12/2022

शुभ ग्रह और पाप ग्रह की महादशा का फल

आज के इस टॉपिक में समझने की कोशिश करेंगे की शुभ ग्रह और पाप ग्रह अपनी महादशा में कैसा फल देता है

यह बात हमेशा याद रखिए की शुभ ग्रह की जब महादशा शुरू होती है तो उसका फल प्राप्त होने में थोड़ा विलंब होता है..

जबकि पाप ग्रह की जब महादशा शुरू होती है तो उसका फल व पहले ही दिन से देना शुरू कर देता है, मिसाल के तौर पर अगर कोई संत या महात्मा आपके घर को पधारे तो वह सबसे पहले घर आने के पश्चात चुपचाप कुर्सी पर बैठेगा, उसके बाद थोड़ी देर बाद एक गिलास पानी पीएगा तत्पश्चात वह धीरे-धीरे अपना व्यक्तित्व को बताएगा ...और आहिस्ता आहिस्ता आने का कारण और बाकी चीजों को बताएगा ..

यानी उसके स्वभाव में गंभीरता होगी, यानी उसके व्यवहार में स्थिरता होगी जो कि स्थाई होगी..

वही अगर हम उदाहरण एक क्रूर एक पापी या एक कुकर्मी आदमी का लेते हैं तो वह घर आने के पश्चात आते ही गाली गलौज या चिल्लाना शुरू कर देगा, वह बैठने का इंतजार नहीं करेगा और उसके व्यवहार में चंचलता अस्थिरता और उतावलापन होगा

यह उदाहरण आप पाप ग्रह और शुभ ग्रह के द्वारा समझ सकते हैं इसी प्रकार जब भी कोई पाप ग्रह की महादशा आती है तो आते ही अपना प्रभाव दिखाने लगती है, परंतु जब कोई शुभ ग्रह की महादशा आती है तो आने के पश्चात उसके प्रभाव देखने में थोड़ा समय लगता है..

मिसाल के तौर पर एक सज्जन जिनकी कुंडली में शुक्र की महादशा शुरू हो गई शुक्र उनकी कुंडली में लाभेश है, फिर भी 6 महीना शुक्र की महादशा शुरू होने के पश्चात भी शुक्र कोई फर्क नहीं दे रही थी..

यहां तक कि पाई पाई का मोहताज वह व्यक्ति था, पर जैसे ही 1 वर्ष हुआ उसके पश्चात ने शुक्र ने ऐसी लॉटरी लगाई कि क्या कहना ..

वहीं अगर कोई क्रूर ग्रह की महादशा चलती रहती है उसका प्रभाव तेज होता है पर वह स्थायी नहीं होता है और और कुछ दिन बाद वह शांत भी हो जाता है, परंतु वही कोई शुभ ग्रह की महादशा चलती है उसका प्रभाव भले ही विलम्ब से हो और वह स्थाई होता है, और महादशा के अंतिम समय तक परिणाम देता है

यही अगर राहु और शनि जैसे क्रूर ग्रह की महादशा चले तो कोई सफलता मिलती है और तुरंत चली भी जाती है यानी वह स्थाई नहीं होती है जैसे कोई क्रोधी व्यक्ति को अगर गुस्सा भी आए तो स्थाई नहीं होता है, उसी प्रकार से पाप ग्रह की महादशा में मिलने वाली सफलता भी अस्थाई होती है

वही संत महात्मा कोई आशीर्वाद दे दे या कुछ भी बोले तो धीर होता है गंभीर होता है और स्थाई होता है उसी तरह से शुभ ग्रह में प्राप्त होने वाला फल भले ही देर से प्राप्त हो पर वह स्थाई होता है ..

और पूरे महादशा के दौरान लंबा चलता है जैसा कि मैंने उदाहरण शुक्र की महादशा शुरू होने के तत्पश्चात 1 वर्ष बाद तक भी तो जातक के पास कोई धन नहीं था पर 1 वर्ष के पश्चात उसका एक जबरदस्त मुनाफा हुआ जिससे कि उसके जीवन में शुक्र की महादशा में अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया और धन से परिपूर्ण कर दिया..

इसी प्रकार से किसी भी जातक को यह लगता जरूर है कि उसकी शुभ ग्रह की महादशा शुरू हो गई पर कोई फल प्राप्त नहीं हो रहा है उसे इंतजार करना चाहिए, वहीं अगर कोई पाप ग्रह की महादशा शुरू होती है आते ही आकर हमला बोलता है और तुरंत प्रभाव पहले दिन से ही दिखाना शुरू कर देता है

अगर कोई एक क्रूर व्यक्ति आपके घर आए तो हो सके वह घर के बाहर दरवाजे से ही चिल्लाना शुरु कर दे, वह घर आकर कुर्सी में आराम से बैठकर आपको आदरणीय शर्मा जी कहकर सम्बोधित नहीं करेगा और आपको इज्जत नहीं देगा, वह घर के बाहर से ही चिल्लाना शुरु कर देगा और पूरा मोहल्ला या जान जाएगा कि कोई क्रूर व्यक्ति आपके पास आया है

वही कोई अगर संत आपके घर पधारे तो उसकी उपस्थिति ऐसी दर्ज होती है कि किसी को पता भी नहीं चलता, पर उसका प्रभाव ऐसा होता है कि उससे पूरा मोहल्ला धीरे-धीरे जानता है और पूरा मोहल्ला उनके ज्ञान से सुशोभित होता है

शुभ ग्रह की महादशा में मिलने वाली सफलता स्थाई होती है जबकि पाप ग्रह की महादशा में मिलने वाली सफलता अस्थाई

शुभ ग्रह की महादशा में मिलने वाला फल विलम्ब से प्राप्त होता है जबकि पाप ग्रह की महादशा मिलने वाले फल जल्दी प्राप्त होता है

शुभ ग्रह और योगकारक ग्रह की महादशा प्रतिचक्रवात (Anti Cyclone) की तरह होती है जिसकी महादशा में मौसम साफ और खिली हुई धूप की तरह रहती है और जातक पूरी तरक्की करता है जीवन में खुशहाली उन्नति और सुख शांति आती है

अशुभ ग्रह, अनिष्ट ग्रह और मार्केश ग्रह की महादशा चक्रवात (Cyclone) की तरह होती है जो जीवन में आंधी तूफान और बर्बादी और तबाही लेकर आती है,

शुभ ग्रह और योगकारक ग्रह की महादशा में जातक को पद प्रतिष्ठा धन-धान्य सुख संपदा की प्राप्ति होती है

जबकि पाप ग्रह और क्रूर ग्रह की महादशा में जातक को रोग ऋण शत्रु जैसे अशुभ फल प्राप्त होते हैं

शुभ ग्रह की महादशा आरोग्य स्वस्थ शरीर और दीर्घायु प्रदान करती है

जबकि पाप ग्रह अनिष्ट ग्रह की स्थिति अगर राहु केतु अष्टमेश या मार्केश द्वितीयेश और सप्तमेश के स्वामी के साथ बने तो जीवन का क्षय तक हो जाता है

अब यह समझना परम आवश्यक है कि शुभ ग्रह भी पापी बनता है और पाप ग्रह भी शुभ बन जाता है क्योंकि ज्योतिष एक विज्ञान है जिसमें तमाम चीज की possibilities है

अगर शुक्र, गुरु और बुध की महादशा चल रही हो और अगर वह कुंडली में खराब स्थिति में हो तो वह अशुभ प्रभाव दे तो इसकी मार जबरदस्त होती है

इसके मिसाल को ऐसा समझे कि अगर एक क्रोधी व्यक्ति है और वह हमेशा क्रोध ही करता है तो संभवत है कि उसको अगर गुस्सा आए तो फिर 5 मिनट में शांत भी हो जाए तो पाप ग्रह राहु और शनि का क्रोध भी ऐसा ही होता है कि उसे गुस्सा तो आता है और उसके मंत्र का जाप करने से वह शांत भी हो जाता है ..

पर आपने अपने जीवन में अवश्य पाया होगा कि एक व्यक्ति जो हंसता हो खेलता हो मुस्कुराता हो उसको गुस्सा कभी आता ही नहीं है, पर अगर उसको गुस्सा आ गया...

जो शांत प्रवृत्ति का व्यक्ति है फिर उसका गुस्सा 6 महीने तक शांत ही नहीं होगा

और आपको लगेगा कि ऐसे व्यक्ति का गुस्सा अगर एक बार आ जाए तो वह फिर शांत होने का नाम नहीं लेता है...

यही महादशा में समझें अगर पाप ग्रह है तो उसको रोकना बड़ा आसान है राहु और शनि के क्रूरता को रोकना आसान है, और चीजों को शांत करने के लिए क्योंकि वह आसानी से मान जाते हैं,और वहीं अगर ज्ञानी और पंडित नाराज हो जाए तो फिर उसको शांत करना बड़ा मुश्किल होता है.. मतलब शुभ ग्रह अगर नाराज हो जाए तो उसको रोकना बड़ा मुश्किल

इसलिए हमारे आज के शोध में यह पता किया कि सबसे जबरदस्त अशुभा सूर्य के पास होती है, उससे ज्यादा मंगल के पास, उससे ज्यादा शनि के पास, और उससे ज्यादा राहु के पास, और उससे ज्यादा केतु के पास होती है

परन्तु इसमें सबसे ज्यादा अगर अशुभता की बात करें तो बृहस्पति की होती है अगर वृहस्पति नाराज हो गया तो इसका मिसाल को ऐसा समझें...

कि अगर एक डाकू है, मुजरिम है, अपराधिक प्रवृत्ति का आदमी है वह अगर नाराज हो जाए तो आप उसको चुटकी में उसका मान सम्मान करके, उसको शराब की बोतल देकर, उसकी चापलूसी करके, उसको मांसाहार भोजन कराकर पटा लेंगे

और वहीं अगर एक संत प्रवृत्ति का व्यक्ति नाराज हो गया तो उसको मनाना बड़ा ही मुश्किल..

इसलिए कहा जाता है कि गुरु अगर मारकेश हो तो उसको रोकना बड़ा मुश्किल हो जाता है

01/12/2022

इन योगों में जन्म लेने वाला व्यक्ति अवश्य ही धनवान बनेगा।
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
1】धन योग
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👍2nd,5th,9th,11th भाव आपस मे सम्बनध बना रहे हो युती, दृष्टि,परिवर्तन तो धन योग होता है।

👌5th का परिवर्तन 2nd से या 11th से होतो धन योग होता है।

👌9th और 11th का परिवर्तन योग हो तो धन योग होता है।

◆यदि शुक्र की राशि (बृषभ या, तुला,)पंचम भाव में हो और स्वयं शुक्र द्वारा शासित हो, जबकि मंगल लाभ भाव में हो, तो जातक को बहुत धन की प्राप्ति होती है।

◆ यदि बुध की राशि(मिथुन या कन्या) पंचम भाव में हो और स्वयं बुध द्वारा शासित हो, क्योंकि लाभ भाव पर चंद्र, मंगल और गुरु का कब्जा है, तो जातक बहुत समृद्ध होगा।

◆यदि सिंह पंचम भाव में हो और स्वयं सूर्य के अधीन हो, जैसे कि शनि, चंद्र और गुरु लाभ भाव में हों, तो जातक बहुत समृद्ध होगा।

◆यदि सूर्य और चंद्र लाभ भाव में हों, जैसे शनि पंचम भाव में अपने स्वयं के भाव (मकर या कुंम्भ )के समान हैं, तो जातक बहुत समृद्ध होगा।

◆यदि गुरु पंचम भाव में अपनी राशि में हो , और बुद्ध लाभ भाव में हों, तो जातक बहुत समृद्ध होगा।

◆ यदि मंगल की राशि(मेष,बृश्चिक) पंचम भाव में मंगल के साथ हो, जबकि शुक्र लाभ भाव में हो, तो जातक बहुत समृद्ध होता है।

◆सूर्य लग्न के समान सिंह में होना चाहिए और युति होना चाहिए, या मंगल और गुरु से दृष्टि प्राप्त करना, व्यक्ति धनवान होगा।

◆यदि चंद्र लग्न के समान कारक में हों और युति हों, या बुद्ध और गुरु से दृष्टि प्राप्त कर रहे हों, तो व्यक्ति धनवान होगा।

◆यदि मंगल लग्न में अपनी राशि के समान हो और युति हो, या बुद्ध, शुक्र और शनि से दृष्टि प्राप्त कर रहा हो, तो जातक धनी होगा।

◆यदि बुध राशि लग्न में बुध के साथ हो और बुध युति हो या शनि और गुरु से दृष्टि प्राप्त हो तो जातक धनवान होता है।

2】होरा कुंडली 【D2】
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सभी लोगों का जन्म या तो सूर्य की होरा (दिन के समय) या चंद्रमा की होरा (रात के समय) में होता है।

👍 सूर्य होरा के पीठासीन देवता (देवता) हैं - उग्र (प्रज्वलित करना है) सूर्य के होरा में मजबूत ग्रहों में सूर्य, मंगल शामिल हैं
यदि सूर्य की होरा में सूर्य और मंगल होतो धन अधिक होता है।
■【पुरुष ग्रह सूर्य,मङ्गल,गुरु होतो अधिक धन देता है】

👍चंद्रमा होरा के पीठासीन देवता पितृ (पूर्व पिता) हैं - पानी (धन का आसान प्रवाह) बृहस्पति जबकि चंद्रमा की होरा में सबसे मजबूत ग्रह चंद्रमा, शुक्र और शनि हैं।ये यदि चंद्र होरा में होतो अधिक धन आता है।
★【स्त्री ग्रह चन्द,शुक होतो अधिक धन देता है】

【3】इंदु लग्न कुंडली
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👍इंदु लग्न इंदु लग्न विशेष लग्नों में से एक है और इसे धन और समृद्धि के लग्न के रूप में जाना जाता है।

👍 बृहत पाराशर होरा शास्त्र में इसे चंद्र योग के रूप में वर्णित किया गया है। "इंदु लग्न' हमारे प्राचीन ऋषियों द्वारा जीवन की विशिष्ट अवधि का पता लगाने के लिए तैयार की गई एक स्वतंत्र और पूर्ण विधि है जो कुंडली में मौजूद अन्य धन योगों के बावजूद किसी व्यक्ति को धन और समृद्धि प्रदान करेगी।

👍 चंद्रमा संस्कृत में चंद्रमा 'इंदु' कहा जाता है, इसलिए इंदु लग्न को चंद्र लग्न (राशि) के साथ भ्रमित नहीं करना चाहिए।

इंदु लग्न का विश्लेषण
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👍 इंदु लग्न में अशुभ ग्रह मध्यम धन देता है।

👍 इंदु लग्न में शुभ और अशुभ ग्रह मिले जुले फल देंगे।
लेकिन इंदु लग्न में एक उच्च पापी अपनी दशा के अंत में बहुत अच्छा धन देता है।

👍 इंदु लग्न से मजबूत दूसरा और 11वां घर भी धन में कई गुना वृद्धि करता है।

👍तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें भाव को अशुभ माना जाता है। तीसरा संघर्ष दिखाएगा, 6वां शत्रुता दिखाएगा, 8वां अचानक बातें दिखाएगा और 12वां नुकसान दिखाएगा।

【4】धन देने वाले नक्षत्र
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👍रोहिणी स्वाभाविक रूप से संसाधनों और बचत बैंक बैलेंस के दूसरे घर में आती है और इसे नक्षत्र की रानी ई के रूप में भी जाना जाता है। गहनों, वस्त्रों जैसी भौतिक वस्तुओं की अत्यधिक इच्छा रखती है और संसाधनों तक पहुँच प्रदान करती है

👍रेवती विशाल हाथी के सामन है जिसे बुद्धिजीवियों के माध्यम से सबसे धनी के रूप में जाना जाता है। यहाँ शुक्र भी उच्च का होता है,

👍विशाखा पर बृहस्पति का शासन होता है और शुक्र राशि में भी इन्द्र देव (राजाओं के देवता) हैं, वे पेशे के माध्यम से धन प्राप्त करते हैं।

👍 उत्तरभाद्रपद शनि इस तारे का स्वामी है, इसे चांदी के चम्मच से जन्म लेने वाली देवी लक्ष्मी का तारा भी माना जाता है।इस नक्षत्र में जन्म लेने बाले बहुत धन कमाते है।

👍 पूर्वाफाल्गुनी, शुक्र नक्षत्र रॉयल (सिंह) राशि में है, स्वाभाविक रूप से 5 वें घर में आता है जिसे पूर्वा पुण्य का घर भी कहा जाता है। इसलिए वे पिछले जन्म के अच्छे कर्मों से पैसा कमाते हैं।

👍धनिष्ठा, मंगल नक्षत्र और मंगल का उच्च का भी। इसे सबसे धनी तारा भी कहा जाता है, क्योंकि यह प्राकृतिक 10वें और 11वें भाव में आता है। उनका धन के प्रति बहुत महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण है।

👍 उत्तराषाढ़ा, सूर्य द्वारा शासित नक्षत्र और अभिजीत डिग्री के रूप में विजयी के रूप में जाना जाता है और स्वाभाविक रूप से 9 वें और 10 वें घरों में पड़ता है। अभिजीत खुद विजयी है।

5】दुनिया के सब से अमीर बिल गेट्स की कुंडली का उदाहरण दिया जा रहा है।

■जन्म नक्षत्र उत्तरा भाद्रपद है

■लग्न चार्ट में 2nd लॉर्ड चन्द मङ्गल(11) का दृष्टि सम्बन्ध है

■उच्च का शनि 2nd भाव को देख रहा है और शनि पंचम में उच्च का है।
■होरा चार्ट【D2】में जो धन की मात्रा दिखता है ,सिंह राशि मे पुरुष ग्रह सूर्य,मङ्गल ,गुरु और कर्क राशि मे शुक्र चन्द बैठे है।।
【 श्री कांत शर्मा ज्योतिष सलाहकार】

01/12/2022

लग्न अनुसार गुरु रत्न पुखराज धारण
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भारतीय ज्योतिष के आधार पर हम कोई भी रत्न धारण करते हैं तो सर्वप्रथम
लग्न व लग्नेश की स्थिति देखते हैं। जो भी रत्न धारण कर रहे हैं उसके लग्न व लग्नेश
के साथ कैसे सम्बन्ध हैं. मित्र हैं अथवा शत्र हैं ? इसके अतिरिक्त हम अकारक ग्रह
अथवा कष्टकारी ग्रह की दशा- अन्तर्दशा के आधार पर रत्न धारण करते हैं। गरु रत्न
पुखराज बहुत ही शुभ रत्न है। कन्या अथवा विवाहित स्त्री के लिये तो यह बहुत ही आवश्यक हो जाता है परन्तु फिर भी इसको धारण करने से पहले पत्रिका में
स्थति का ज्ञान आवश्यक है, क्योंकि जैसे पत्रिका में यदि गुरु अशुभ हो तथा पुखराज
धारण करना आवश्यक हो, फिर पुखराज धारण करने से पहले कुछ अन्य प्रयोग
करना होता है। यहां हम केवल लग्न के आधार पर ही पुखराज धारण की चर्च
रहे हैं।

मेष लग्न👉 इस लग्न का स्वामी मंगल होता है जो गुरु का परम मित्र है।
भी इस लग्न में भाग्य भाव तथा व्यय भाव का स्वामी होता है परन्तु नवम भाव
आने पर गुरु भाग्य भाव का ही फल अधिक प्रदान करता है। इसलिये पुखराज
लग्न वालों के लिये बहुत ही शुभ होता है। यदि इसको लग्नेश मंगल के रत्न मूंगे के
साथ धारण किया जाये तो गुरु के शुभ फल में और अधिक वृद्धि होती है।

वृषभ लग्न👉 इस लग्न का स्वामी शुक्र है जो गुरु का परम शत्रु है। गुरु भी इस लग्न में अष्टम व एकादश जैसे अशुभ भावों का स्वामी होता है, इसलिये इस लग्न वालों
को पुखराज अशुभ होता है। मेरे शोध में लग्नेश शुक्र की महादशा तथा गुरु की अंतर्दशा में अथवा गुरु की महादशा में पुखराज धारण कर लाभ लिया जा सकता है।

मिथुन लग्न👉 इस लग्न में बुध लग्न स्वामी है। गुरु भी दो केन्द्र स्थान सप्तम
व दशम स्थान का स्वामी होकर केन्द्राधिपति दोष से दूषित होता है, इसलिये गुरु यदि लग्न, द्वितीय, एकादश अथवा किसी अन्य केन्द्र या त्रिकोण में होने पर संतान अथवा आर्थिक कष्ट होने पर गुरु की महादशा में आप पुखराज धारण कर सकते हैं परन्तु इतना अवश्य ध्यान रखें कि गुरु इस लग्न में प्रबल मारकेश होता है। सेहत पर नकारात्मक असर मिल सकते है।

कर्क लग्न👉 इस लग्न का स्वामी चन्द्र होता है जो गुरु का मित्र है। गुरु भी यहां रोग भाव तथा भाग्य भाव का स्वामी है, इसलिये आप भाग्य प्रबल करने के लिये
पुखराज धारण कर सकते हैं लेकिन आपको पूर्ण लाभ तभी मिल पायेगा जब पुखराज के साथ मोती भी धारण करें।

सिंह लग्न👉 इस लग्न का स्वामी सूर्य भी गुरु का मित्र है। गुरु भी पंचम जैसे त्रिकोण व अष्टम जैसे अशुभ भाव का स्वामी होता है लेकिन यहां पर गुरु पंचम भाव का शुभ फल प्रदान करता है, इसलिये आप पुखराज धारण कर सकते हैं। यदि आप
पुखराज के साथ सूर्य रत्न माणिक्य भी धारण करें तो और भी अधिक लाभ प्राप्त होगा।

कन्या लग्न👉 इस लग्न का स्वामी बुध है। गुरु यहां भी दो केन्द्र स्थान चतुर्थ व सप्तम भाव का स्वामी होकर केन्द्राधिपति दोष से दूषित होने के साथ मारकेश भी होता है। इसलिये गुरु यदि लग्न, द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम, दशम अथवा एकादश भाव में हो तो आप गुरु की महादशा अथवा संतान या आर्थिक कष्ट होने पर पुखराज धारण कर सकते हैं लेकिन मारकेश का भी ध्यान रखें। मेरे अनुभव में पुखराज के साथ रत्न पन्ना भी धारण किया जाये व गुरु की पूजा की जाये जिसमें मुख्यतः 108 नाम का उच्चारण हो तो फिर गुरु इतना अशुभ प्रभाव नहीं देता है।

तुला लग्न👉 इस लग्न का स्वामी शुक्र होता है जो गुरु का परम शत्रु है। गुरु पष्ठम जैसे अशुभ भाव का स्वामी है, इसलिये ऐसे जातक पुखराज से दूर ही रहें। मेरे अनुभव में तुला लग्न में गुरु जितने कमजोर व शान्त होंगे, जातक को उतना ही अधिक शुभ फल प्रदान करेंगे।

वृश्चिक लग्न👉 इस लग्न का स्वामी मंगल है जो गुरु का मित्र है। गुरु भी यहां तृतीय व पंचम भाव का स्वामी है । एक तरफ गुरु मारक प्रभाव रखता है तो दूसरी और शुभ त्रिकोण का स्वामी है, इसलिये इस लग्न वाले लोग आर्थिक समस्या वा गुरु की महादशा में पुखराज धारण कर सकते हैं लेकिन सामान्य रूप से पुखराज के साथ लग्न रत्न मूगा भी धारण करे तो फिर गुरु के अशुभ फल की समस्या समाप्त हो जायेगी।

धनु लग्न👉 इस लग्न का स्वामी स्वयं गुरु है, इसलिये लग्न व चतुर्थ भाव का स्वामी है और लग्नेश होने के आधार पर केन्द्राधिपति दोष से बचता है । इस लग्न वाले लोगों के लिये तो पुखराज कवच का कार्य करता है।

मकर लग्न👉 इस लग्न का स्वामी शनि होता है। गुरु इस लग्न में तृतीय व द्वादश भाव का स्वामी होता है जो कि दोनों ही अशुभ भाव हैं, इसलिये ऐसे जातक
पुखराज से दूर ही रहें।

कुंभ लग्न👉 इस लग्न का स्वामी भी शनि होता है। गुरु यहां द्वितीय व एकादश
भाव का स्वामी होता है तथा दोनों ही अशुभ भाव हैं। गुरु एकादश भाव में कारकत्व दोष से पीड़ित होता है। सामान्यतः इस लग्न वालों को पुखराज अशुभ फल के साथ मारक प्रभाव भी प्रदान करता है, इसलिये इस लग्न वालों को पुखराज से दूर ही रहना चाहिये। मेरे अनुभव में गुरु यदि इनमें से किसी भी भाव में बैठा हो अथवा गुरु की महादशा में पुखराज धारण करने से जातक को आर्थिक लाभ के साथ यश भी प्राप्त होगा लेकिन नीलम भी धारण करना आवश्यक है।

मीन लग्न👉 इस लग्न का स्वामी स्वयं गुरु है। गुरु दो केन्द्र का स्वामी है। जैसे
मैंने धनु लग्न में बताया कि गुरु लग्नेश होने कारण केन्द्राधिपति दोष से मुक्त होता है,
इसलिये इस लग्न वाले जातक को पुखराज तुरन्त धारण करना चाहिये।

क्रमशः...अगले लेख के माध्यम से हम पुखराज धारण करने की विधि के विषय मे चर्चा करेंगे।

समयाभाव के कारण कृपया पोस्ट पर किसी प्रकार के शंका समाधान की अपेक्षा ना रखें।

पं देवशर्मा
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29/11/2022

घर का सुरक्षा बंधन क्यों है जरूरी ?
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90 प्रतिशत लोग चाहे वह किसी भी जाति -सम्प्रदाय के हों ,किसी भी धर्म के हो बहुत पूजा -आराधना ,ईष्ट भक्ति के बावजूद विभिन्न प्रकार के नकारात्मक प्रभावों ,शक्तियों से पीड़ित होते ही हैं ,कोई कुछ कम कोई कुछ ज्यादा ,तथा इन्हें इनके भाग्य के अनुसार जो की इनकी ग्रह स्थितियां या कुंडली कहती है नहीं मिलता |शुभ फल कम और अशुभ फल में वृद्धि दिखती ही है |समय क्रम में विभिन्न अव्यवस्थाओं और जीवनचर्या में बदलाव के साथ नकारात्मक प्रभावों में वृद्धि भी हुई है और लोगों की मानसिकता में भी परिवर्तन आये हैं जिससे लोग भी लोगों को कष्ट दे रहे हैं |नकारात्मक प्रभावों में ग्रह दोष ,वास्तु दोष ,स्थान दोष ,स्थानीय शक्तियों की विपरीतता से दोष ,कुलदेवता /देवी दोष ,पित्र दोष ,क्षेत्रपाल दोष ,श्मशान दोष ,भूत -प्रेत -ब्रह्म -जिन्न -खबीस -पिशाच जैसे वायव्य बाधाओं के दोष ,ईष्ट अप्रसन्नता से उत्पन्न दोष ,किये -कराये का दोष ,तांत्रिक अभिचार का दोष आदि आते हैं |कोई भी स्थान /क्षेत्र इनसे पूरी तरह मुक्त हो ऐसा सम्भव नहीं |सभी लोग इनमे सभी से मुक्त रहें ऐसा भी सम्भव नहीं |जब बहुत अच्छी ग्रह स्थितियां हो ,भाग्य साथ दे रहा हो इनका प्रभाव कम समझ आता है या यूँ कहें व्यक्ति ध्यान नहीं देता |जब समय संतुलन बिगड़ता है तो इनका प्रभाव स्पष्ट दिखता है |
नकारात्मकता के कुछ कारण
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१. ग्रह दोष और वास्तु दोष घर और व्यक्ति से जुड़े होते हैं और इनसे बचाव तो घर के अन्दर और इनके लिए किये उपायों से ही होगा
२. किन्तु यदि ,स्थान दोष अर्थात जमीन के नीचे दोष है ,कोई स्थानीय शक्ति विपरीत हो गयी है ,कुलदेवता /देवी का पता नहीं है ,उनकी पूजा नहीं हो रही ,वह रुष्ट या असंतुष्ट हैं ,पित्र दोष है ,क्षेत्रपाल दोष है तो आपके घर में नकारात्मक शक्तियां और उर्जायें आएँगी ही आएँगी |
३.स्थान दोष की नकारात्मक शक्ति उस स्थान पर रहने वाले सभी लोगों को किसी न किसी रूप में प्रभावित करती ही है साथ ही सकारात्मक ऊर्जा को क्षीण कर बाहरी नकारात्मक प्रभावों के आवागमन में भी सहायक होती है |
४.यदि कुलदेवता /देवी सुरक्षा नहीं कर रहे तो कोई भी ऊर्जा बेरोकटोक घर -मकान में प्रवेश कर जाती है |
५.पित्र दोष में अपने पितरों से अधिक वह शक्तियां परेशान करती हैं जो पितरों के साथ जुड़ जाती हैं मित्रवत |उन्हें आपके परिवार से लगाव नहीं होता और वह मात्र अपनी अतृप्त इच्छाओं की पूर्ती करती हैं |पित्र उन्हें नहीं रोकते क्योंकि वह तो पहले से ही आपसे रुष्ट हैं तभी तो पित्र दोष बन रहा
६.|यदि किसी कारणवश आपके द्वारा पूजित ईष्ट रुष्ट हो गए ,आपसे कोई गलती हो गयी तो उनका कोप भी नकारात्मक ऊर्जा के रूप में आपको कष्ट देगा |यह तो सामान्य नकारात्मक प्रभाव हैं जो अक्सर देखने में आता है |
अब कुछ अन्य नकारात्मक प्रभावों के कारण
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१. आप बहुत सुन्दर हैं तो कोई आत्मा आपकी ओर आकृष्ट हो सकती है |आप परफ्यूम -सेंट का प्रयोग कर रात या दोपहर में बाहर गए तो कोई शक्ति आपकी ओर आकृष्ट हो सकती है
२. आपकी किसी से दुश्मनी हो गयी या कोई आपसे ईर्ष्या -जलन रखता है तथा वह सामने नहीं आना चाहता या वह कमजोर है तो वह तांत्रिक अभिचार या टोना -टोटका कर सकता है या करवा सकता है |आपकी उन्नति रोकने के लिए ,आपके बच्चों की वृद्धि रोकने के लिए ,आपके परिवार या पति -पत्नी में कलह करवाने के लिए ,आपका अहित करने के लिए ,आपके व्यवसाय हानि के लिए ,आपको कमजोर और अव्यवस्थित करने के लिए ,अपनों को आपके विरुद्ध करने के लिए ,आपको या आपके परिवारीजन को वशीकृत कर अपने प्रभाव में लेने के लिए ,आपको रोग -शोक -पीड़ा देने के लिए ,आपका घर -मकान छुडाने या हड़पने के लिए अभिचार या टोना -टोटका हो सकता है |
३. कभी -कभी कोई आत्मा भी आपसे जुड़ कर या रुष्ट -क्रोधित होकर घर में आ सकती है या उसे आपके घर में भेजा जा सकता है |यह सभी नकारात्मक उर्जायें हैं और सुरक्षा व्यवस्था न होने पर यह आपको कष्ट देते ही हैं |हो सकता है आप आर्थिक रूप से न परेशान हों तो स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा ,चोट -दुर्घटनाएं -बीमारियाँ हो सकती है |यह नहीं हो तो अनावश्यक खर्च या हानि हो सकती है |व्यवसाय प्रभावित हो सकता है |परिवार अस्त व्यस्त हो सकता है |मतलब कोई न कोई कमी उत्पन्न हो सकती है और मानसिक तनाव -चिंता होगी |
इन स्थितियों में आप कुंडली लेकर ज्योतिषी के यहाँ घुमते हैं ,तांत्रिक -पंडित के पास जाते हैं ,पित्र दोष -ग्रह दोष की पूजा कराते हैं ,जप -हवन कराते हैं ,पूजा -पाठ खुद करते हैं ,यन्त्र -ताबीज धारण करते हैं |कभी लाभ होता है कभी नहीं ,कभी कुछ लाभ होता है और कभी केवल कुछ दिन |अक्सर आपका ध्यान अपनी और परिवार के लोगों की ओर जाता है लेकिन घर की सुरक्षा की ओर नहीं जाता ,कि ऐसा क्या किया जाए की नकारात्मक शक्तियां ,उर्जायें घर में प्रवेश ही न करें |[मुक्ति मार्ग ]
घर की सुरक्षा बंधन के लिए क्या करना चाहिए
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आप अक्सर नवीन गृह निर्माण की वास्तु पूजा जैसी पद्धति अपनाकर ,कुछ चीजें जमीन में दबा ,पूजा करवा संतुष्ट हो सोचते हैं सुरक्षा भी हो गयी ,पर ऐसा नहीं होता |यह सुरक्षा नहीं करते |सुरक्षा के लिए घर को बांधा जाता है ,जो की एक विशेष तांत्रिक प्रक्रिया है और इसमें कील मारने से लेकर विभिन्न पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं ,जिसकी जैसी क्षमता और ज्ञान हो
|पुराने समय में अक्सर लोग मकान के चारो तरफ और मुख्य दरवाजे पर कीले लगवाते थे जो अभिमंत्रित किये होते थे ,यह सुरक्षात्मक उपाय ही थे | पूजा -पाठ ,यज्ञ -हवन तो उनके यहाँ होते ही थे फिर भी वह यह करते थे क्योंकि वह जानते थे की जो उर्जाये /शक्तियां हानि दे सकती हैं उनसे सुरक्षा यही तरीका दे सकता है |आज आप सोचें की हम इतना पूजा -पाठ कर रहे ,अमुक देवता को पूज रहे ,अमुक अमुक तीर्थ -मंदिर जा रहे ,हमें कुछ नहीं हो सकता और हमारे घर में कुछ नहीं आ सकता तो यह मात्र आपका भ्रम है |यह सब सकारात्मक ऊर्जा बढ़ा तो देंगे पर स्थायी रूप से सुरक्षा नहीं देते |कोई बहुत शक्तिशाली होने पर भी सुरक्षा गार्ड रखता है क्योंकि जो काम सुरक्षा गार्ड का है वह काम दूसरा कोई नहीं कर सकता |
घर बाँधने की अनेक तकनीक तंत्र के विभिन्न मार्गों में उपलब्ध हैं किन्तु यह सभी तरीके तंत्र के ही अंतर्गत आते हैं क्योंकि शक्ति को किसी वस्तु से संयुक्त कर स्थापित करना तंत्र के अंतर्गत आता है |इसमें अक्सर हम देखते हैं की गाँव -मुहल्ले के छोटे ओझा -गुनी अथवा ग्रामीण मन्त्रों के साधकों का सहयोग लिया जाता है किन्तु यह बहुत स्थायी व्यवस्था नहीं क्योंकि यह मंत्र की अक्सर हर साल जगाने वाले होते हैं तो इनके प्रभाव वर्षों वर्ष कैसे स्थायी हो सकते हैं
|इस तकनीक में सर्वाधिक प्रभावी माँ काली का तंत्र साधक / साधिका होते है जो मूल मंत्र से साधना करते हो ,क्योंकि स्थिर और स्थायी सम्पत्ति माँ काली के अंतर्गत आती है और घर एक स्थायी सम्पत्ति है |
यही तकनीक पहले के समय में लोग धन को जमीन में दबाते [रखते ]समय अपनाते थे |जिससे हजारों वर्षों तक उस स्थान की सुरक्षा कोई शक्ति करती रहती थी |इनके साथ किसी शक्ति को वचनबद्ध कर संयुक्त कर दिया जाता था |आज भी कभी कभी धन के साथ ऐसी शक्तियाँ संयुक्त होती हैं जिन्हें विशेष तकनीक से ही हटाना होता है और बेहद सक्षम व्यक्ति की आवश्यकता होती है |
घर बाँधने की तकनीक में मूल और पुरानी पद्धति कील मारना [गाड़ना ]रहा है जिसमे घर के चारो कोनों और मुख्य दरवाजे पर विशेष मन्त्रों से अभिमंत्रित और धुपित कीले विशेष मुहूर्त में गाडी जाती हैं |कुछ अन्य पद्धतियों में विशेष वृक्ष की जड़ या संयुक्त जड़ें अभिमंत्रित कर लगाईं जाती हैं अथवा कहीं हवन भष्म का प्रयोग किया जाता है |कहीं कहीं इस कार्य के लिए विशेष यंत्रों और धातुओं का भी प्रयोग किया जाता है |कही धूल शाबर मन्त्रों से अभिमंत्रित की जाती है |कहीं गंगा जल और सामान्य मंत्र उपयोग किये जाते हैं |
|इस पद्धति से बाहर से भेजी जा रही या साथ अचानक लगी कोई ऊर्जा घर में नहीं जा पाती |उस घेरे में आने वाले क्षेत्र में नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव क्षींण होता है |
यदि आपकी कुंडली में अथवा घर में पित्र दोष ,प्रेत दोष ,ब्रह्म दोष है ,यदि आपके कुलदेवता /देवी की पूजा नहीं हो रही या कुलदेवता /देवी रुष्ट /असंतुष्ट हैं या आपको कुलदेवता /देवी का पता नहीं है ,यदि आपका कोई शत्रु टोना -टोटका या तांत्रिक अभिचार कर रहा हो ,यदि आपको लगता हो कि कोई आपके व्यवसाय पर कोई क्रिया कर सकता है ,यदि आपको लगता हो कि कोई अपना नजदीकी आपका अहित चाहता हो ,यदि आपको लगता हो कि रास्ते की कोई बाधा आपके साथ लग सकती है ,यदि आपको लगता हो कि आपके पति -पत्नी अथवा बच्चे पर कोई क्रिया कर सकता है ,यदि आपके घर में कोई ब्रह्म -सती -पीर -मजार -वीर -साई पूजने की परंपरा हो या आप पूजते हों ,यदि आपने ऐसे स्थान पर मकान बनाया हो जहाँ पहले कब्रिस्तान -श्मशान -तालाब -कुंआं आदि था ,यदि आप ऐसे मकान /घर में रहते हैं जहाँ पहले अनेक अकाल मौतें हो चुकी हो तो आपको अपने घर की सुरक्षा अवश्य करनी चाहिए और अपना घर बांध कर रखना चाहिए |समस्या उत्पन्न हो इससे पहले सुरक्षा रखना बेहतर विकल्प होता है बजाय इसके की समस्या हो जाए तब यहाँ वहां भागे और उपाय खोजे |अंततः बाद में फिर यही करना ही होता है |कुछ लोग जो भुक्तभोगी नहीं उन्हें यह विषय समझ नहीं आएगा किन्तु जो भुगत रहा या भुगत चूका वह इसे अच्छी तरह समझेगा [मुक्ति मार्ग ]

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