RSS-Badarpur

RSS-Badarpur Unofficial Page Of RSS. The goal of the Sangh is to take our nation to the pinnacle of glory through organizing the entire society and ensuring protection

A unique phenomenon in the history of Bharat in the twentieth century is the birth and unceasing growth of Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS). The Sangh's sphere of influence has been spreading far and wide like the radiance of a many splendored diamond. Sangh inspired institutions and movements today form a strong presence in every field of nationalist endeavor.

Pujya SarSanghchalak Dr.Mohanji Bhagwat and and Sarkaryavah Sri Bhaiyyaji Joshi offered flowers to Bharat Mata's moorthi...
09/03/2018

Pujya SarSanghchalak Dr.Mohanji Bhagwat and and Sarkaryavah Sri Bhaiyyaji Joshi offered flowers to Bharat Mata's moorthi to formally inaugurate the Akhil Bharatiya Pratinidhi Sabha 2018 at Nagpur..

 हम करें राष्ट आराधनातन से मन से धन सेतन मन धन जीवनसेहम करें राष्ट आराधना……………अन्तर से मुख से कृती सेनिश्र्चल हो निर्मल ...
26/02/2018


हम करें राष्ट आराधना
तन से मन से धन से
तन मन धन जीवनसे
हम करें राष्ट आराधना……………

अन्तर से मुख से कृती से
निश्र्चल हो निर्मल मति से
श्रध्धा से मस्तक नत से
हम करें राष्ट अभिवादन…………………

अपने हंसते शैशव से
अपने खिलते यौवन से
प्रौढता पूर्ण जीवन से
हम करें राष्ट का अर्चन…………………

अपने अतीत को पढकर
अपना ईतिहास उलटकर
अपना भवितव्य समझकर
हम करें राष्ट का चिंतन……………

है याद हमें युग युग की जलती अनेक घटनायें
जो मां के सेवा पथ पर आई बनकर विपदायें
हमने अभिषेक किया था जननी का अरिशोणित से
हमने शृंगार किया था माता का अरिमुंडो से

हमने ही ऊसे दिया था सांस्कृतिक उच्च सिंहासन
मां जिस पर बैठी सुख से करती थी जग का शासन
अब काल चक्र की गति से वह टूट गया सिंहासन
अपना तन मन धन देकर हम करें पुन: संस्थापन………

27/01/2018
26/10/2017

"समाज परिवर्तन के लिए हर कुटुंब को प्रयास करना पड़ेगा " - सरसंघचालक Dr मोहनजी भागवत

शरद पूर्णिमा महोत्सव सैनिक कॉलोनी फ़रीदाबाद..
05/10/2017

शरद पूर्णिमा महोत्सव सैनिक कॉलोनी फ़रीदाबाद..

शरद पूर्णिमा महोत्सव सैनिक कॉलोनी फ़रीदाबाद
05/10/2017

शरद पूर्णिमा महोत्सव सैनिक कॉलोनी फ़रीदाबाद

30/09/2017

सभी प्रियवरों को विजयदशमी पर्व की हृदय से शुभकामनाएं

RSS SarSanghchalak Dr Mohan Bhagwat was honored by Lata Mangeshkar ji on the occasion of 75th Punyatithi of her father D...
25/04/2017

RSS SarSanghchalak Dr Mohan Bhagwat was honored by Lata Mangeshkar ji on the occasion of 75th Punyatithi of her father Deenanath Mangeshkar.

Former Cricketer Shri Kapil Dev received an Award from RSS SarSanghchalak Dr Mohan Bhagwat at Dinanath Mangeshkar Purash...
25/04/2017

Former Cricketer Shri Kapil Dev received an Award from RSS SarSanghchalak Dr Mohan Bhagwat at Dinanath Mangeshkar Purashkar.

Noted actor Aamir Khan received Vishesh Puraskar from RSS SarSanghachalak Dr Mohan Bhagwat at 75th Dinanath Mangeshkar A...
25/04/2017

Noted actor Aamir Khan received Vishesh Puraskar from RSS SarSanghachalak Dr Mohan Bhagwat at 75th Dinanath Mangeshkar Awards.

RSS SarSanghchalak Dr Mohanji Bhagwat addressed Ram Navami Celebrations organised by Andhra Association Nagpur.
07/04/2017

RSS SarSanghchalak Dr Mohanji Bhagwat addressed Ram Navami Celebrations organised by Andhra Association Nagpur.

"A 'NATION' requires four things. The first is land or people, whom. we call a country. The second is a collective will ...
04/04/2017

"A 'NATION' requires four things. The first is land or people, whom. we call a country. The second is a collective will for a corporate life. The third is a system which we can call a constitution but which can far more appropriately be called |Dharma'. And the fourth is an ideal of life. The synthesis of all these four is called a Nation. As an individual is made up of body, minds intelligence and soul, a nation is mode up of country, will, Dharma and ideal."
- Deendayal Upadhyay

Aadya Sarsanghchalak, Param Pujaneeya Doctor Hedgewar was born on Yugadi (Ugadi )/ Gudi Padwa.In the book, Dr.Hedgewar -...
28/03/2017

Aadya Sarsanghchalak, Param Pujaneeya Doctor Hedgewar was born on Yugadi (Ugadi )/ Gudi Padwa.

In the book, Dr.Hedgewar - Seer, Patriot & Nation Builder, senior Sangh Pracharak, Sri Suryanarayana Raoji wrote,

"Dr.Hedgewar was a unique and extraordinary person. He was a passionate patriot, an undaunted, determined, relentless practical worker, a deep and clear thinker, a versatile organizer all rolled into one. From his boyhood he struggled to free the country from the foreign yoke, adopting every method. Very honest and earnest in all his attempts, he ultimately came to a conclusion and decided to start a non political organization to mould men of character, inculcating discipline with absolute selfless dedication and readiness to sacrifice everything for the Motherland and its people. Rashtriya Swayamsevak Sangh is the distinctive, genuine end product of the intense Tapas of such an unparalleled practical worker.

Dr.Hedgewar took up this challenging task of transforming the Hindu. The timid and docile Hindu was to be made a virile, active and assertive Hindu. Dr.Hedgewar’s instrument of transformation was a simple programme of bringing together young ones of a locality for one hour at a particular place and time. This was also not an easy task. But Dr.Hedgewar’s tireless efforts of going to the homes of every person and informally having a personal talk with full of affection, his transparent sincerity and intense love for the Motherland, made every person he contacted submit and follow him and the daily ‘Shakha’ was started. Shakha begins with hoisting Bhagwa Dhwaj with salutation, then in a disciplined atmosphere some games and physical exercises, patriotic group songs and a small talk about the country ending with a prayer would give the necessary samskars for the body mind and intellect to mould every person into a Swayamsevak, keeping Dr.Hedgewar himself as the model before them. This is the simple but most effective technique that Dr.Hedgewar adopted, the main content of which was informality and intense affection. Swayamsevaks moulded in this manner formed the backbone of the organization and the chain of such swayamsevaks are responsible for the present enormous growth of the Sangh and its allied activities."

" राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक थे डॉ. केशव बळीराम हेडगेवार। संघ विश्वविख्यात हो गया है, अपनी अद्वितीय संघटनशैली क...
28/03/2017

" राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक थे डॉ. केशव बळीराम हेडगेवार। संघ विश्वविख्यात हो गया है, अपनी अद्वितीय संघटनशैली के कारण। उसके साथ ही उसके संस्थापक डॉ. हेडगेवार का भी नाम विश्वविख्यात हुआ है।

शासकीय सेवा में प्रवेश के लिये या अपना अस्पताल खोलकर पैसा कमाने के लिये वे डॉक्टर बने ही नहीं थे। भारत का स्वातंत्र्य यही उनके जीवन का ध्येय था। उस ध्येय का विचार करते करते उनके ध्यान में स्वतंत्रता हासील करने हेतु क्रांतिकारी क्रियारीतियों की मर्यादाएं ध्यान में आ गई। दो-चार अंग्रेज अधिकारियों की हत्या होने के कारण अंग्रेज यहाँ से भागनेवाले नहीं थे। किसी भी बडे आंदोलन के सफलता के लिये व्यापक जनसमर्थन की आवश्यकता होती है। क्रांतिकारियों की क्रियाकलापों में उसका अभाव था। सामान्य जनता में जब तक स्वतंत्रता की प्रखर चाह निर्माण नहीं होती, तब तक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं होगी और मिली तो भी टिकेगी नहीं, यह बात अब उनके मनपर अंकित हो गई थी। अत: नागपुर लौटने के बाद गहन विचार कर थोडे ही समय में उन्होंने उस क्रियाविधि से अपने को दूर किया और काँग्रेस के जन-आंदोलन में पूरी ताकत से शामील हुये। यह वर्ष था 1916। लोकमान्य तिलक जी मंडाले का छ: वर्षों का कारावास समाप्त कर मु़क़्त हो गये थे। ‘‘स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और उसे मैं प्राप्त करके ही रहूँगा’’ उनकी इस घोषणा से जनमानस में चेतना की एक प्रबल लहर निर्माण हुई थी। डॉ. केशवराव हेडगेवार भी उस लहर के अंग बन गये। उससे एकरूप हो गये। अंग्रेज सरकार के खिलाफ उग्र भाषण भी देने लगे। अंग्रेज सरकारने उनपर भाषणबंदी का नियम लागू किया। किन्तु डॉक्टर जी ने उसे माना नहीं। और अपना भाषणक्रम चालूही रखा। फिर अंग्रेज सरकारने उनपर मामला दर्ज किया और उनको एक वर्ष की सश्रम कारावास की सजा दी। 12 जुलाय 1922 को कारागृह से वे मुक्त हुये।

संघ का जन्म
एक वर्ष के कारावास में उनके मन में विचारमंथन अवश्य ही चला होगा। उनके मन में अवश्य यह विचार आया होगा कि क्या जनमानस में स्वतंत्रता की चाह मात्र से स्वतंत्रता प्राप्त होगी। वे इस निष्कर्षपर आये कि स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों से प्रदीर्घ संघर्ष करना होगा। उस हेतु जनता में से ही किसी एक अंश को संगठित होकर नेतृत्व करना होगा। जनता साथ तो देगी किन्तु केवल जनभावना पर्याप्त नहीं होगी। स्वतंत्रता की आकांक्षा से ओतप्रोत एक संगठन खडा होना आवश्यक है, जो जनता का नेतृत्व करेगा, तभी संघर्ष दीर्घ काल तक चल सकेगा। जल्दबाजी से कुछ मिलनेवाला नहीं है। अत: कारावास से मुक्त होनेपर इस दिशा में उनका विचारचक्र चला और उसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म हुआ।

संघ की कार्यरीति
यह संगठन हिन्दुओं का ही होगा, यह भी निश्चय उनका हो गया था। क्यौं कि इस देश का भाग्य और भवितव्य हिन्दु समाज से निगडित है। अन्य समाजों का साथ मिल सकता है। किन्तु संगठन की अभेद्यता के लिये केवल हिन्दुओं का ही संगठन हो इस निष्कर्षपर वे आये। अंग्रेज चालाख है। फूट डालने की नीति में कुशल है और सफल भी थे। यह डॉक्टर जी ने भलीभाँति जान लिया। इस लिये उन्होंने हिन्दुओं का ही संगठन खडा करने का निश्चय किया। हिन्दु की परिभाषा उनकी व्यापक थी। उस में सिक्ख, जैन और बौद्ध भी अन्तर्भूत थे। वे यह भी जानते थे कि हिन्दु एक जमात (community) नहीं है। वह ‘राष्ट्र’ है। अत: उन्होंने, अनेक सहयोगियों से विचार कर उसका नाम ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ रखा।
हिन्दुओं का संगठन खडा करना यह आसान बात नहीं थी। अनेक जातियों में, अनेक भाषाओं में, अनेक संप्रदायों में हिन्दु समाज विभक्त था। इतनाही नहीं तो अपनी अपनी जाति के, भाषा के और संप्रदाय के अभिमान भी उत्कट थे। साथ ही जातिप्रथा के कारण उच्चनीच भाव भी था। अस्पृश्यता का भी प्रचलन था। इन सब बाधाओं का विचारकर, उन्होंने अपनी अलोकसामान्य प्रतिभा से एक अभिनव कार्यपद्धति का निर्माण किया। वह पद्धति यानी संघ की दैनंदिन शाखा की प्रद्धति। हम अपने समाज के लिये, अपने देश के लिये कार्य करना चाहते हैं ना, तो अपने 24 घण्टों के समय में से कम से कम एक घण्टा संघ के लिये देने का उन्होंने आग्रह रखा। और उनकी दूसरी विशेषता यह थी, समाज में के भेदों का जिक्र ही नहीं करना। बस् एकता की बात करना। अन्य समाजसुधारक भी उस समय थे। उनको भी जातिप्रथा के कारण आया उच्चनीच भाव तथा अस्पृश्यता को मिटाना था। किन्तु वे जाति का उल्लेख कर उसपर प्रहार करते थे। डॉक्टर जी ने एक नये मार्ग को चुना। उन्होंने तय किया कि व्यक्ति की जाति ध्यान में नहीं लेंगे। केवल सब में विराजमान एकत्व की यानी हिन्दुत्व की ही भाषा बोलेंगे। इस कार्यपद्धति द्वारा उन्होंने शाखा में सब को एक पंक्ति में खडा किया। एक पंक्ति में कंधे से कंधा मिलाकर चलने को सिखाया और क्रांतिकारी बात यह थी एक पंक्ति में सबको भोजन के लिये बिठाया। ‘एकश: सम्पत्’ यह जो संघ शाखापद्धति की विशिष्टतापूर्ण आज्ञा है वह डॉक्टर जी की मौलिक विचारसरणी का प्रतीक है। मैं तो कहूँगा कि वह एक क्रांतिकारी आज्ञा है। सारा संघ उस आज्ञा के भाव से आज तक अनुप्राणित है।

खास तरीका
इसका एक उदाहरण मेरे स्मरण में है। बात 1932 की है। प्रथम बार नागपुर में संघ के शीत शिबिर में जिनको समाज अस्पृश्य मानता था, उस समाज से स्वयंसेवक आये। उनके ही पडोस के मुहल्ले से आये हुये अन्य जाति के स्वयंसेवकों ने डॉक्टर जी से कहा कि, हम इनके साथ एक पंक्ति में बैठकर भोजन नहीं करेंगे। डॉक्टर जी ने उनको यह तो नहीं कहा कि आप शिबिर से चले जाइये। उन्होंने उनसे कहा ‘ठीक है, आप अलग पंक्ति बना कर भोजन कीजिये। मैं तो उनके साथ ही भोजन करूँगा।’’ उस दिन उस विशिष्ट जाति के 10-12 स्वयंसेवकों ने अलग पंक्ति में बैठकर भोजन किया। अन्य करीब तीनसौ स्वयंसेवकोंने, डॉक्टर जी समेत, समान पंक्तियों में बैठकर अपना भोजन किया। दूसरे दिन चमत्कार हुआ। उन 10-12 स्वयंसेवकों ने भी सब के साथ पंक्ति में बैठकर भोजन किया। बोर्डपर विद्यमान किसी रेषा को छोटी करनी हो तो उसके लिये दो तरीके हैं। एक यह कि डस्टर लेकर उस रेषा को किसी एक छोर से मिटाये। और दूसरा यह कि उस रेषा के ऊपर एक बडी रेषा खींचे। वह मूल रेषा आपही आप छोटी हो जाती है। डॉक्टर जी ने दूसरे तरीके को अपनाया। सब के ऊपर हिन्दुत्व की बडी रेषा खींची। बाकी सब रेषाएं आप ही आप छोटी हो गई। इस पद्धति की सफलता यह है कि संघ में किसी व्यक्ति की जाती पूछी ही जाती नहीं। इस तरीके से संघ में जातिभेद मिट गया। छुआछूत समाप्त हुई। 1934 में महात्मा जी ने भी संघ की इस विशेषता का, उनके आश्रम के समीप जो संघ का शिबिर लगा था, उस में जाकर स्वयं अनुभव किया। संघ जातिनिरपेक्ष, भाषानिरपेक्ष, पंथनिरपेक्ष बना। और बिखरे हुये हिन्दुओं का संगठन करने में सफल बना।


कार्यकर्ता
किसी भी संस्था चलाने के लिये कार्यकर्ता चाहिये। वे कहॉ से आयेंगे। डॉक्टर जी ने वे संघ से ही निर्माण किये। उत्कट देशभक्ति और निरपेक्ष समाजनिष्ठा की भावना से डॉक्टर जी ने तरुणों को अनुप्राणित किया। और 18-20 वर्ष की आयुवाले तरुण, अननुभवी होते हुये भी, रावलपिंडी, लाहोर, देहली, लखनौं, चेन्नई, कालिकत, बेंगलूर ऐसे सुदूर स्थित अपरिचित शहरों में गये। प्राय:, शिक्षा का हेतु लेकर ये तरुण गये। किन्तु मुख्य उद्देश्य था वहाँ संघ की शाखा स्थापन करना। इन तरुणों ने अपने समवयस्क तरुणों को अपने साथ यानी संघ के साथ जोडा। और शिक्षा समाप्ति के पश्चात् भी वे वहीं कार्य करते रहे। उनके परिश्रम से संघ आसेतुहिमाचल विस्तृत हुआ। उस समय ‘प्रचारक’ यह संज्ञा रूढ नहीं हुई थी। किन्तु ये सारे प्रचारक ही थे। आज भी उच्चविद्याविभूषित तरुण, ‘प्रचारक’ बनकर अपना सारा जीवन संघ के लिये समर्पित करते दिखाई देते हैं। इन कार्यकर्ताओं के प्रयत्नों को अभूतपूर्व यश मिला और 1940 के नागपुर में हुये संघ शिक्षा वर्ग में एक असम का अपवाद छोडकर उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक के सब प्रान्तों से शिक्षार्थी स्वयंसेवक उपस्थित थे। डॉक्टर जी अपनी आँखों में हिंदुस्थान का लघुरूप देख सके। उस शिक्षा वर्ग के समाप्ति के पश्चात् केवल 11 दिनों के बाद ही यानी 21 जून 1940 को डॉक्टर जी ने इहलोक की जीवनयात्रा समाप्त की। 51 वर्षों का उनका जीवन कृतार्थ हुआ।
आज डॉक्टर जी ने स्थापन किया हुआ संघ भारत के सभी जिलों में फैला है। और भारत के बाहर 35 देशों में उसका विस्तार हुआ है। अंतर इतना ही कि विदेश स्थित संघ का नाम हिंदू स्वयंसेवक संघ है। आज की बिगडी हुई सामाजिक स्थिति के परिप्रेक्ष्य में संघ ही एकमात्र जनता की आशा का स्थान है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा परम पूजनीय डॉ. केशव बळीराम हेडगेवारजी का जन्मदिन है। " मा. गो. वैद्य

डॉक्टर जी के जन्मदिन के शुभ अवसर पर उनको सादर प्रणाम।

युगाब्दी परम पूज्य डॉ हेडगेवार जी की जन्मतिथि

RSS Swayamsevaks marched for Path Sanchalan on the occasion of Yugadi Utsav at Chikkodi, Karnataka.
28/03/2017

RSS Swayamsevaks marched for Path Sanchalan on the occasion of Yugadi Utsav at Chikkodi, Karnataka.

RSS SarSanghchalak Dr Mohan Bhagwat to address 7th Annual Nanaji Deshmukh Memorial Lecture on March 26th, 2017 at 6.00pm...
26/03/2017

RSS SarSanghchalak Dr Mohan Bhagwat to address 7th Annual Nanaji Deshmukh Memorial Lecture on March 26th, 2017 at 6.00pm at New Delhi.

RSS SarSanghachalak Dr Mohan Bhagwat visits ADIYOGI at Isha Yoga Centre, Coimbatore, Tamilnadu.
23/03/2017

RSS SarSanghachalak Dr Mohan Bhagwat visits ADIYOGI at Isha Yoga Centre, Coimbatore, Tamilnadu.

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