27/10/2025
कहा जाता है कि महाभारत काल में कुंती पुत्र कर्ण सूर्य देव के उपासक थे और उन्होंने ही सबसे पहले छठ व्रत “कर्णपर्याग” में किया था। कर्ण, कुंती और सूर्य देव के पुत्र थे, और उन्हें “सूर्यपुत्र” कहा गया। उस समय उन्होंने प्रण लिया: “जैसे मेरी आत्मा , मेरे कर्म - मेरे दान सब सूर्य-तुल्य प्रकाश को समर्पित हैं, वैसे ही मैं प्रत्येक वर्ष इस व्रत को करूंगा, इस देवता को अर्घ्य दूँगा, इस प्रकार उन्होंने उस पर्व की रूपरेखा स्थापित की, जिसे बाद में छठ व्रत के नाम से जाना गया। बाद में द्रौपदी और पांडवों ने भी राज्य और सुख-समृद्धि की कामना से छठ व्रत किया था।
व्रत चार दिन तक चलता है :-
1. नहाय-खाय : शरीर और मन की शुद्धि।
2. खरना : संध्या में उपवास के बाद गुड़-चावल का प्रसाद।
3. संध्या अर्घ्य : अस्त होते सूर्य को अर्घ्य
4. उषा अर्घ्य : उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन।
छठ महापर्व मात्र एक लोकपरंपरा नहीं - यह मातृशक्ति की अविचल आस्था, अनुपम प्रेम और अमर त्याग का दिव्य अनुष्ठान है। आप सभी को छठ महापर्व की मंगलमय शुभकामनाएँ, आपके जीवन में आदित्य के सदृश तेज, ऊर्जा और ऐश्वर्य सदा प्रकाशित रहें।
|| जय हिन्द ||
डॉ॰ प्रदीप भारद्वाज