08/06/2022
आज से 50 साल पहले तक लोगों का दिन सूर्य के अस्ताचल में जाते के साथ अस्त होने लगता था. 7 बजते ही लोग अपने कार्यों से निवृत्त होकर बिस्तर की ओर चल बढ़ते थे.
परन्तु विज्ञान ने मनुष्य के जीवन में कल्पनातीत परिवर्तन कर दिया है. विज्ञान के कृत्रिम प्रकाश से, आज अधिकतर लोगों की रात्रि 12 बजे के पहले नहीं होती है. यह प्रकाश मनुष्य के कर्म निपुणता में अकल्पनीय योगदान कर रहा है. रात के 11 बजे भी कार्यालय का कार्य लेपटोप पर बैठे बैठे घर से भी किया जा रहा है.
परन्तु समस्या यह है कि यह कृत्रिम प्रकाश संसार को जिस गति से प्रकाशित कर रहा है, उतने ही तेजी से मनुष्य के मन में अंधकार रूपी काल कोठरियों का भी निर्माण करता जा रहा है. आधुनिक मनुष्य जितना बाहर के तरफ क्रियाशील नजर आता है, उतना ही उसका मन विक्षिप्त होता है. क्योंकि ये क्रियाशीलता चेतना के गहराई से आने वाले आवाजों से नहीं अपितु बाहरी समाज और मिडिया के झूठे आकांक्षाओं से ओत प्रोत होता है. जीवन इसलिये बड़ा सतही और अर्थहीन दृष्टिगोचर होता है.
जीवन को अगर नयी ऊर्जा देनी है तो आध्यात्म के शरण में जाना ही होगा. आध्यात्म का लक्ष्य स्वयं को समझना है. आध्यात्म का प्रकाश बाहर को प्रकाशित ना करके, मन के अन्दर दबे गहरी संस्कारों को प्रकाशित करना है. इसके प्रकाश में ही हमें अपने सच्चे स्वरूप का साक्षात्कार होगा.