
01/06/2025
“आप भली भांति जानते हैं, प्रत्येक मनुष्य में कुंडलिनी होती है। किसी तरह का भेदभाव नहीं है।प्रत्येक व्यक्ति में ।चाहे आप मुस्लिम हों, यहूदी हों, हिंदू हों, ईसाई हों , सिख हों , पारसी हों ।कोई भी, आप कोई भी नाम दे सकते हैं। अब थोड़ा देखिये कि हम कैसे अपने लिए एक विशेष संप्रदाय को मान लेतें हैं। आपका जन्म हुआ है, कहिए कि , एक ईसाई परिवार में। अथवा आपका जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ है ।तुरंत आप यह सोचना शुरू कर देते हैं कि आप थामने के लिए हैं, उस धर्म के सभी झंडों को जिसमें आपका जन्म हुआ है । उस धर्म में आपका जन्म हुआ है बिना आपकी जानकारी के, बिना आपकी अनुमति के , बिना किसी समझ के। अतः कैसे आप उस धर्म के अनुयायी हो सकते हैं? आपके अंदर कुंडलिनी है।सभी के अंदर कुंडलिनी है। अतः आप केवल मानव धर्म के अनुयायी हो सकते हैं, जहाँ प्रत्येक मनुष्य के अंदर कुंडलिनी है।
अतः , मनुष्य होने के अतिरिक्त आप कुछ नहीं हैं। ये सभी मिथ्या धारणा कि, हम हिंदू हैं, हम मुसलमान हैं, हम ईसाई हैं, सभी मानव रचित है। मेरे कहने का अर्थ है, मनुष्य किसी भी चीज़ की रचना कर सकता है। और मनुष्य के अंदर यह समझने के लिए कोई मस्तिष्क नहीं है , कि यह सब मनुष्य की देन है ।
परन्तु कोई कह सकता है कि, “माँ, आख़िरकार वे एक दैवीय व्यक्तित्व थे ।” वे दिव्य थे तथा अब आप भी दिव्य बना दिए गए हैं । अतः , अब हम किस प्रकार आपस में मिलकर एक सम्पूर्ण प्रयास करें। लोगों को बताने के लिए एक सम्पूर्ण प्रयास कि, “आप क्या कर रहें हैं?आप ऐसा क्यों कर रहें हैं ? ऐसी चीज़ें करने की क्या आवश्यकता है? ” एक पक्ष है , हम कह सकते हैं, एक सामूहिक विनाश ,मूर्खता के माध्यम से ।दूसरा पक्ष है आपका का अपना आत्म-विनाश । शराब पीने लगिए। अन्य आत्म-विनाशकारी चीज़ों को अपनाइए, जो अनैतिक हैं। जो बहुत आसानी से उपलब्ध है। और लोग इसे बहुत पसंद करते हैं। और उन्हें पसंद नहीं है जब आप बतातें हैं कि यह विनाशकारी है।
अतः या तो हम दूसरों को नष्ट करते हैं या स्वयं को नष्ट करते हैं। दूसरों ने ईसा मसीह का अंत किया एवं वे स्वयं ही पुनर्जीवित हो गये । इसलिए हम भी अब उसी दशा में हैं। मैं जानती हूँ कि कई बार सहज योग को चुनौती दी गई थी। अब यह पहले से बहुत बेहतर है। इतना बुरा नहीं है । चुनौती दी गई थी एवं बहुत सारी समस्याएं थीं। पर अब इसमें सुगमता आ रही है। कारण कि यही सत्य है।यही सच है।यही दिव्यता है।”
“ यह पुनरुत्थान है, न केवल आप लोगों का, अपितु हमारी विचारधाराओं का भी। अब विचारधाराएँ बदल गई हैं, कि हमारी चेतना प्रकाशित होनी चाहिए। हमारी चेतना आलोकित होनी चाहिए। यह एकदम सहज योग के माध्यम से ही लोगों में आया है कि, यदि आपके अंदर प्रकाश नहीं है, आप कैसे सही मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं?
ईसा मसीह के जीवन का वर्णन करना आसान नहीं है, वे किस प्रकार उससे पार हुए । युवावस्था में ही उनकी मृत्यु हो गई एवं क्रूरता से उनका बध किया गया । परन्तु उसके बावजूद भी , उन्होंने अपना पुनरुत्थान किया । वे उस सब से बाहर निकल आये । उस कठिन दौर से बाहर निकल आए । अतः हमारे लिए भी, जब हमें सहज योग में समस्याएँ होतीं हैं, हमें समझ होनी चाहिए कि हमारे अंदर स्वयं को पुनरुत्थान करने की शक्ति है । कोई हमें नष्ट नहीं कर सकता है ।कोई हमारा अंत नहीं कर सकता, क्योंकि हमारे अंदर स्वयं को पुनरुत्थान करने की शक्ति है। पुनरुत्थान की यह विशेष शक्ति जो हमारे अंदर है, आपको सदैव इसका भान रखना चाहिए एवं अनुभव करना चाहिए तथा उस पर ध्यान करना चाहिए।”
परम पूज्य श्री माताजी
तुर्की. 25 अप्रैल, 1999.