Dr Pratyush Kumar

Dr Pratyush Kumar Dr. Pratyush Kumar is a Top-Rated Physician and Diabetologist in Patna. Awarded as best Physician in Patna.

Clinic 1 :- Makhaniya Kuan, Near Maszid opposite PMCH 📲8130668400
Clinic 2 :- Abdullahchak, Near Bairiya Bus stand, Patna 📲9241952419 Physician and Diabetologist
HIV specialist
Vaccination center in Patna

16/10/2025

The best views in Europe were right beside me. बस कुछ पल सुकून के... परिवार के साथ।


Back to the school days! 🎓 An absolutely fantastic Vikas Vidyalaya get-together in Patna. 🎉 The energy was incredible 🔥,...
14/10/2025

Back to the school days! 🎓 An absolutely fantastic Vikas Vidyalaya get-together in Patna. 🎉 The energy was incredible 🔥, catching up with old friends after so many years and hearing their inspiring stories. It was extra special to have our families with us to share the memories. 👨‍👩‍👧‍👦
Kudos to the organizers for bringing us all together! 👏 The Vikasian spirit is stronger than ever! 💯

13/10/2025

एचआईवी से सुरक्षा: PEP (पीईपी) क्या है? 72 घंटे का सुरक्षा कवच: PEP दवा की पूरी जानकारी
3 days. 72 hours. That’s your window to act after a potential HIV exposure.
We know it’s a scary moment, but there’s a safety net: PEP (Post-Exposure Prophylaxis). This 28-day emergency treatment can stop HIV from taking hold. Dr. Pratyush Kumar explains what PEP is, why timing is everything, and what mild side effects (like nausea or fatigue) to expect.
Don’t wait. Every hour counts. Watch the full reel and know your emergency option.

08/10/2025

Filaria ka ilaj. क्या आपको या आपके जानने वाले किसी व्यक्ति को फाइलेरिया? 🤔
घबराइए नहीं! पटना फ़िज़िशियन और डायबिटीज क्लिनिक में डॉ. प्रत्युष कुमार फाइलेरिया का सही इलाज और देखभाल देते हैं, ताकि आप जल्द स्वस्थ हो सकें।
देर न करें, अपनी सेहत को बेहतर बनाएँ!

04/10/2025

डेंगू से परेशान हैं? 🤔 Platelets बढ़ाने और जल्दी recover करने के लिए सही diet बहुत ज़रूरी है! 💪
Dr. Pratyush Kumar
Physician & diabetes specialist in Patna
✅ ये ज़रूर खाएं:
• अनार (Pomegranate)
• संतरा, कीवी (Vitamin C)
• पालक, चुकंदर (Iron)
• खिचड़ी और सूप (Easy to Digest)
• नारियल पानी (Hydration)
❌ इनसे दूर रहें:
• मसालेदार और तला हुआ खाना
• चाय, कॉफ़ी और मीठे ड्रिंक्स
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Disclaimer: यह सिर्फ सामान्य जानकारी है। हमेशा डॉक्टर की सलाह लें।

गांधी जयंती पर बापू को शत्-शत् नमन।पूर्वी चंपारण की कर्मभूमि से, मैं आप सबके साथ वह कहानी साझा कर रहा हूँ जो किताबों से ...
02/10/2025

गांधी जयंती पर बापू को शत्-शत् नमन।
पूर्वी चंपारण की कर्मभूमि से, मैं आप सबके साथ वह कहानी साझा कर रहा हूँ जो किताबों से कहीं ज़्यादा गहरी है। यह कहानी है कि कैसे हमारे पूर्वजों के साहस ने गांधीजी के सत्य के प्रयोग को सफल बनाया और देश की आज़ादी की नींव रखी। चंपारण की मिट्टी आज भी उस सत्याग्रह की गवाह है।
यह हमारी विरासत है, इसे जानना और इस पर गर्व करना हमारा कर्तव्य है।
• डॉ. प्रत्युष कुमार
मंगुराहा, पूर्वी चंपारण

गाँधीजी और चंपारण: सत्य की खोज जहाँ मोहनदास “महात्मा” बने

1917 का वर्ष। बिहार का चंपारण ज़िला, भारत के नक्शे पर भले ही छोटा रहा हो, लेकिन यहाँ की धरती पर सदियों से चल रहे नील बागान मालिकों के अत्याचार और उसके विरुद्ध हुए एक अभूतपूर्व संघर्ष की कहानी लिखी जा रही थी। यह वह ज़मीन थी, जहाँ मोहनदास करमचंद गांधी ने पहली बार अपने सबसे बड़े हथियार 'सत्याग्रह' को भारतीय धरती पर परखा और एक साधारण वकील से 'महात्मा' के रूप में रूपांतरित हुए। चंपारण की कहानी केवल एक किसान आंदोलन की कहानी नहीं है, बल्कि यह वैश्विक अर्थशास्त्र, ब्रिटिश प्रशासन की दुविधा, एक कुशल रणनीति और भारत के मनोवैज्ञानिक स्वतंत्रता की नींव की कहानी है।

शोषण की गहरी जड़ें: तिनकठिया का श्राप और वैश्विक अर्थशास्त्र

चंपारण के किसानों के गले में 'तिनकठिया' नामक एक क्रूर व्यवस्था का फंदा पड़ा था। इस नियम के तहत, किसानों को अपनी ज़मीन के हर 20 कट्ठे में से अनिवार्य रूप से 3 कट्ठे पर नील की खेती करनी पड़ती थी। लेकिन इस क्रूरता के पीछे केवल लालच ही नहीं, बल्कि एक वैश्विक आर्थिक बदलाव भी छिपा था। 19वीं सदी के अंत तक जर्मनी में सिंथेटिक (कृत्रिम) नील का आविष्कार हो चुका था, जो सस्ता और बेहतर था। इसके कारण विश्व बाज़ार में भारतीय नील की माँग लगभग समाप्त हो गई। चंपारण के बागान मालिक (जो अधिकतर अंग्रेज़ थे) समझ चुके थे कि उनका व्यापार अब डूबने वाला है। उनकी हताशा तब और बढ़ गई जब उन्होंने किसानों को नील की खेती से 'मुक्त' करने के बदले उनसे गैर-कानूनी रूप से भारी-भरकम कर 'तावान' और लगान वसूलना शुरू कर दिया। यह शोषण उनकी व्यावसायिक हताशा का ही परिणाम था।

राजकुमार शुक्ल: एक किसान का अदम्य हठ

इन हज़ारों त्रस्त किसानों में से एक थे राजकुमार शुक्ल, जो एक अनपढ़ लेकिन दृढ़ निश्चयी किसान थे। वह जानते थे कि स्थानीय प्रयासों से कुछ नहीं होगा। बड़े नेताओं द्वारा अनदेखी किए जाने के बावजूद, शुक्लजी ने हार नहीं मानी। वह 1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन पहुँचे और गांधीजी से मिले। उनकी लगन इतनी अटूट थी कि उन्होंने गांधीजी का पीछा पुणे से लेकर उनके अहमदाबाद आश्रम तक किया। उनकी अडिगता और किसानों की पीड़ा से भरी कहानी ने गांधीजी को चंपारण आने के लिए बाध्य कर दिया।

गांधीजी: एक कुशल रणनीतिकार का आगमन

गांधीजी सीधे चंपारण नहीं गए। उनका पहला पड़ाव मुजफ्फरपुर था, जहाँ उन्होंने आंदोलन की रूपरेखा तैयार की। यहीं उनकी रणनीतिक कुशलता पहली बार सामने आई। मुजफ्फरपुर में वे आचार्य जे.बी. कृपलानी और प्रोफेसर मलकानी जैसे स्थानीय प्रभावशाली लोगों से मिले और बिहार के बड़े वकीलों को बुलाया। जब उन्हें पता चला कि ये वकील गरीब किसानों से भारी फीस लेते हैं, तो उन्होंने उन्हें फटकार लगाते हुए कहा, "न्याय के लिए लड़ने वालों को निजी लाभ से ऊपर उठना चाहिए।" उन्होंने वकीलों को यह समझाया कि आंदोलन भावनात्मक नारों पर नहीं, बल्कि कठोर तथ्यों और सबूतों पर आधारित होगा। इसके साथ ही, उन्होंने इन प्रतिष्ठित वकीलों को एक टीम में संगठित किया।

मोतिहारी का नाटक: सत्याग्रह, मनोविज्ञान और ब्रिटिश दुविधा

मोतिहारी पहुँचते ही कलेक्टर ने गांधीजी को तुरंत इलाका छोड़ने का नोटिस थमा दिया। गांधीजी ने आदेश मानने से साफ इनकार कर दिया। यह टकराव केवल एक व्यक्ति और सरकार के बीच नहीं था, बल्कि यह कई स्तरों पर एक मनोवैज्ञानिक और रणनीतिक युद्ध था। कोर्ट में गांधीजी ने अपने सत्याग्रह का पहला परीक्षण करते हुए कहा, "मैंने कानून तोड़ा है, क्योंकि मैं अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को, जो मानवता की सेवा का कानून है, सर्वोच्च मानता हूँ।" उन्होंने शांतिपूर्वक सज़ा भुगतने की इच्छा व्यक्त की। गांधीजी के इस नैतिक साहस का गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा। हज़ारों की संख्या में किसान, जो सदियों से डरे-सहमे थे, निडर होकर कोर्ट के बाहर जमा हो गए। यह चंपारण की सबसे बड़ी जीत थी—'अभय' यानि निर्भयता का संचार। यह अप्रत्याशित जनसैलाब देखकर ब्रिटिश राज एक रणनीतिक दुविधा में फँस गया। 1917 में प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था और वे भारत में कोई बड़ा विद्रोह नहीं चाहते थे। गांधीजी को गिरफ्तार करके शहीद बनाने का जोखिम वे नहीं उठा सकते थे। इसलिए, बिहार के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने दूरदर्शिता दिखाते हुए केस वापस लेने का आदेश दिया।

गुमनाम नायकों का बलिदान: बतख मियाँ की कहानी

इसी दौरान, मैनेजर इरविन ने अपने रसोइए बतख मियाँ को गांधीजी के दूध में ज़हर मिलाने का आदेश दिया। बतख मियाँ ने अपनी जान और नौकरी को खतरे में डालकर चुपके से गांधीजी को आगाह कर दिया। इस साहस की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी—उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया और उनके परिवार को गाँव से बेदखल कर दिया गया। यह कहानी दर्शाती है कि इस आंदोलन में बड़े नेताओं के साथ-साथ आम इंसानों का भी असाधारण बलिदान शामिल था।

जाँच, समाधान और एक नैतिक विजय

कोर्ट की जीत के बाद, गांधीजी ने मोतिहारी में हजारीमल धर्मशाला को अपना कार्यालय बनाया और 25,000 से अधिक किसानों के बयान दर्ज किए। यह एक विशाल डेटा-संग्रह अभियान था, जिसने बागान मालिकों के अत्याचारों को अकाट्य सबूतों के साथ साबित कर दिया। सरकार को चंपारण कृषि समिति बनानी पड़ी, जिसमें गांधीजी को सदस्य बनाया गया। समिति की रिपोर्ट के आधार पर चंपारण कृषि अधिनियम (1918) पारित हुआ, जिसने तिनकठिया प्रणाली को समाप्त कर दिया। बागान मालिकों को अवैध वसूली का 25% हिस्सा लौटाने पर सहमत होना पड़ा। जब कुछ लोगों ने 100% वापसी की माँग पर सवाल उठाया, तो गांधीजी ने समझाया, "पैसे का मूल्य उतना नहीं है, जितना इस बात का कि बागान मालिकों को अपनी प्रतिष्ठा और अवैध धन का हिस्सा छोड़ना पड़ा। यह उनकी नैतिक हार है।"

रचनात्मक कार्य: स्वराज की असली नींव

गांधीजी केवल कानूनी जीत से संतुष्ट नहीं थे। उनका मानना था कि सच्चा 'स्वराज' केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता है। उन्होंने और कस्तूरबा गांधी ने भीतिहरवा जैसे गाँवों में स्कूल खोले और स्वच्छता अभियान चलाया। एक प्रसिद्ध घटना में, जब कस्तूरबा ने एक महिला को उसके गंदे कपड़ों के लिए टोका, तो वह महिला उन्हें अपनी झोपड़ी में ले गई और कहा, "मेरे पास पहनने के लिए इस एक साड़ी के अलावा और कुछ नहीं है।" इस घटना ने गांधीजी और कस्तूरबा को भारत की गरीबी की गहराई का एहसास कराया और रचनात्मक कार्यों के महत्व को और भी दृढ़ कर दिया।

चंपारण की विरासत: एक आंदोलन, अनेक परिणाम

चंपारण सत्याग्रह भारतीय इतिहास में एक मील का पत्थर था, जिसके परिणाम दूरगामी और बहुआयामी थे। इसी आंदोलन के बाद रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को 'महात्मा' कहकर संबोधित किया और वे एक क्षेत्रीय नेता से उठकर राष्ट्रीय पटल पर स्थापित हो गए। चंपारण वह प्रयोगशाला बनी, जहाँ सत्याग्रह की तकनीक को सफलतापूर्वक परखा गया और यह भविष्य के स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य हथियार बनी। इस आंदोलन ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद (जो भारत के पहले राष्ट्रपति बने), आचार्य कृपलानी और पंडित विभूति मिश्रा जैसे नेताओं की एक नई पीढ़ी को भी तैयार किया।

अंततः, चंपारण केवल नील की खेती के खिलाफ एक आंदोलन नहीं था; यह भारत के आम आदमी के आत्म-सम्मान और निडरता की पुनः खोज थी। यह एक कहानी है कि कैसे एक हठी किसान की पुकार और एक दृढ़ निश्चयी नेता की रणनीति ने मिलकर इतिहास की धारा बदल दी।

चंपारण सत्याग्रह के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से अध्ययन करने के लिए, निम्नलिखित पुस्तकें और लेख अत्यंत उपयोगी हैं:
• Girish Mishra, "Socio-Economic Background of Gandhi's Champaran Movement," The Indian Economic & Social History Review, Vol. 5, No. 3 (1968): गिरीश मिश्रा का यह लेख आंदोलन के आर्थिक और सामाजिक पहलुओं की विस्तृत विवेचना करता है, विशेषकर वैश्विक बाजार में नील की घटती माँग के प्रभाव पर।
• Girish Mishra, Agrarian Problems of Permanent Settlement: A Case Study of Champaran (1978): यह पुस्तक चंपारण की कृषि समस्याओं और स्थायी बंदोबस्त की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर एक गहन अकादमिक अध्ययन है।
• Rajendra Prasad, Champaran me Mahatma Gandhi (Hindi): भारत के प्रथम राष्ट्रपति और आंदोलन के एक प्रमुख प्रतिभागी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा लिखा गया यह एक प्रत्यक्षदर्शी और प्रामाणिक विवरण है।
• Jacques Pouchepadass, Champaran and Gandhi: Indigo Plantations and Agrarian Protest in North India: यह पुस्तक एक फ्रांसीसी इतिहासकार द्वारा चंपारण आंदोलन का एक आधुनिक और विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करती है।
• D.G. Tendulkar, Gandhi in Champaran (1957): यह पुस्तक इस ऐतिहासिक घटना का एक क्लासिक और विस्तृत वृत्तांत प्रदान करती है।

We had an incredible Rural WONCA Executive Meeting at the WONCA World Conference in Lisbon! 🇵🇹 Here’s a look at some of ...
17/09/2025

We had an incredible Rural WONCA Executive Meeting at the WONCA World Conference in Lisbon! 🇵🇹 Here’s a look at some of the amazing things we accomplished:
✨ two major initiatives: the WONCA Rural Institute of Learning and GRACE (Global Rural Health Action, Collaboration and Excellence).
🌍 Presented a new model to host a Global Rural Health Summit every two years, in the year between our World Rural Health Conferences!
A huge thank you to our chair, Dr. Bruce Chater, for his inspiring leadership, and to all the delegates who joined us, both in person and online! 👏👏
We’re already looking forward to the next WONCA World Rural Health Conference in Wellington, New Zealand! 🇳🇿

Conference time in beautiful Lisbon! 🇵🇹 Arrived just in time and honored to be starting with meetings alongside key Wonc...
16/09/2025

Conference time in beautiful Lisbon! 🇵🇹 Arrived just in time and honored to be starting with meetings alongside key Wonca Leaders. 🤝 Ready for a week of learning, collaboration, and advancing family medicine. Let’s begin! 🩺

Luzern और Mount Titlis की यात्रा बहुत ही अच्छी रही। ये जगहें सच में जन्नत जैसी हैं। 🇨🇭 यह सिर्फ खूबसूरती नहीं है, यह यहा...
14/09/2025

Luzern और Mount Titlis की यात्रा बहुत ही अच्छी रही। ये जगहें सच में जन्नत जैसी हैं। 🇨🇭 यह सिर्फ खूबसूरती नहीं है, यह यहाँ की सच्चाई है। स्विट्जरलैंड ने मुझे सिखाया कि एक देश कैसे तरक्की करता है।

यहाँ का पब्लिक ट्रांसपोर्ट हमेशा सही समय पर चलता है, सड़कों पर साइकिलिंग करना आम बात है और लोग बहुत जिम्मेदार हैं। यह सब एक बड़े भरोसे और आपसी समझ पर आधारित है। बेशक यहाँ सब कुछ महंगा है, लेकिन जब आप ऐसी शानदार व्यवस्था देखते हैं, तो इसकी कीमत सही लगती है। यह सब समर्पण, मेहनत और शिक्षा का नतीजा है।

Fibroscan Free Test Camp: Date - 12/03/2025 Thursday, Time - 03:30PM - 5:30PM @ Makhana Kuan Clinic. Fibroscan is a test...
12/03/2025

Fibroscan Free Test Camp: Date - 12/03/2025 Thursday, Time - 03:30PM - 5:30PM @ Makhana Kuan Clinic. Fibroscan is a test for Fatty Liver, Liver Cirrhosis, Hepatitis B & C patients.

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Received Diabetes India Award at World congress of diabetes from Padmshri Dr. V Mohan and President of International dia...
13/02/2025

Received Diabetes India Award at World congress of diabetes from Padmshri Dr. V Mohan and President of International diabetes federation Prof. Peter Schwarz in presence of stalwarts of diabetology. This award is for the best contribution in diabetes care awareness, education in management.
मुझे डायबिटीज इंडिया पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार मधुमेह देखभाल जागरूकता, शिक्षा और प्रबंधन में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए है।







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