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06/11/2024

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बदलते/नये हेतु स्कंध एवं तज्जन्य बदलते/नये लक्षण स्कंध के अनुसार ... नया अभिनव नूतन अपूर्व औषध स्कंध!

आज कुछ "अच्छा" सुनते है !
आज कुछ "सच्चा" सुनते है !!

हेतु स्कंध के अनुसार हि लक्षण निर्माण होते है,

यह कार्य करण भाव सिद्धांत है!

जैसे हेतू बदलेंगे, वैसे लक्षण भी बदलेंगे.

संहिता मे जो हेतु स्कंध था,

वो आज वैसे के वैसे उपलब्ध नहीं है

और

आज का जो हेतु स्कंध है,

उसका वर्णन संहिता में नही हो सकता!

तो संहिता काल के हेतुजन्य लक्षण आज दिखाई नही देते, जैसे की गुल्म ऊरुस्तंभ ...

और आज के नये हेतु, एवं तज्जन्य जन्य नये लक्षण संहिता मे वर्णित नही हो सकते !

और

*हेतु लक्षण के विपरीत हि, औषध स्कंध होता है*.

तो ... बदलते/नये हेतु स्कंध एवं तज्जन्य बदलते/नये लक्षण स्कंध के अनुसार हि, नया औषध स्कंध होना,

यही शास्त्र सुसंगत है.

किंतु नये औषधस्कंध की निर्मिती या डिझाईन के लिए उतनी बुद्धिमत्ता उतने अनुभव और *उतनी विश्वासार्हता* संभवतः आज किसी के भी पास नही है.

तो जो संहिता मे उल्लेखित या 100 200 300 वर्ष पूर्व लिखे हुए ग्रंथो मे उल्लेखित योग / कल्प है,

वे "तत्कालीन" हेतुजन्य, "तत्कालीन" लक्षणों के लिए लिखे हुए, "तत्कालीन" औषध स्कंध है.

इसलिये मेरा एक ऐसा भी मानना है, कि वह जो औषध स्कंध आज हम प्रयोग मे ला रहे है, वो "कालबाह्य" है.

हम आज के हेतुओं के विपरीत, "आज" के हेतु व "आज" के लक्षण के विपरीत, "तत्कालीन" ताप्यादि लोह, "तत्कालीन" कौटजादि शिलाजतु "तत्कालीन" च्यवनप्राश ऐसे औषध, आज के दौर/काल/युग मे प्रयोग कर रहे है.

ये आज के गन और बॉम्ब से जैसे शस्त्रों से सिद्ध/ युक्त शत्रुओं के साथ , "विगतकाल के कालबाह्य तत्कालीन" "तीर और तलवार" से युद्ध करने जैसा है.

ये ई-मेल व्हाट्सअप के जमाने मे कबूतर द्वारा या घुडसवार द्वारा संदेश भेजने जैसा है.

तो "आज के नये" हेतुओं के लिए और "तज्जन्य आज के नये" लक्षण के लिए, "आज का नया औषध स्कंध" लिखना, यह "आज के वैद्यों" का, "आज के आयुर्वेद अनुयायीयों" का, "आज के आयुर्वेद अभ्यासकों" का काम है.

सिद्धांत त्रिकाला बाधित है इसका अर्थ यह नही होता है कि, उसके अनुसार लिखे हुए औषध कालबाह्य नही होंगे.

जैसे हमारे बचपन मे चौथी पाचवी छठी कक्षा मे गणित के मॅथ्स के कुछ प्रॉब्लेम्स सॉल्व करते थे, उसमे जो उदाहरण होते है, उस काल के थे. आज 30 40 साल के बाद, जब हम रोज के व्यवहार में बँक मे किराणा दुकान मे बस के ट्रॅव्हल मे हर क्षण हर व्यवहार मे जो गणित के प्रॉब्लेम्स सॉल्व करते है, वो बचपन की किताबों से नही है. बचपन के किताब मे गणित के जो 0 से 9 नंबर थे और जो मूलभूत मल्टिप्लिकेशन ॲडिशन सबट्रॅक्शन डिव्हायडेशन+×÷- ये गणित की प्रक्रियायें थी, "आज के प्रॉब्लेम के लिए भी, वैसे ही उपयोगी है".✅️

इस प्रकार से संहितोक्त या बाद के योगसंग्रह मे जो आज से 100 200 400 वर्ष पहले लिखे गये है, उन तत्कालीन ग्रंथो मे उल्लेखित औषध स्कंध / योग / कल्प "आज, कालबाह्य" हो गये है ... "क्योंकि" वे "तत्कालीन" हेतुस्कंध, "तत्कालीन" तज्जन्य लक्षण स्कंध के लिये, "तत्कालीन" हेतु लक्षण विपरीत औषध स्कंध है. उनका भी आकलन उन्हीं सिद्धांतोंपर उन्ही दोषरसगुणमहाभूत पर और मूलभूत मुस्ताशुंठीवचाहरिद्रा इन द्रव्यों के आधार पर हि सिद्ध होगा ... वैसे ही उन्ही दोष रस गुण महाभूत सिद्धांत पर और उन्हीं मुस्ता शुंठी वचा हरिद्रा इन्हीं द्रव्यों से हि आज के नये हेतुओं के लिए और आज के नये लक्षणे के लिये, आज का नया औषध स्कंध बनेगा.

शून्य से नऊ (0 to 9) अंक वही रहेंगे, मल्टिप्लिकेशन डिव्हायडेशन सब्ट्रॅक्शन ॲडिशन (+×÷-) यह प्रक्रियायें वही रहेंगी, किंतु बचपन के मॅथ्स के प्रॉब्लेम आज नही रहेंगे, आज के मॅथ्स के प्रॉब्लेम नये आयेंगे, जो फिर से उन्हे 0 से 9 नंबर के द्वारा और उन्हीं मल्टिप्लिकेशन डिव्हायडेशन सब्ट्रॅक्शन ॲडिशन +×÷- प्रक्रियायों द्वारा हि सॉल्व होंगे.

सब कुछ बेसिकली वही रहेगा , लेकिन "कॉम्बिनेशन बदलेगा, अरेंजमेंट बदलेगी".

आज के व्यवहार में, वैसे ही दोष रस गुण महाभूत वही रहेंगे, वचा शुंठी मुस्ता हरिद्रा वही रहेंगे, किंतु आज के हेतूओं के लिए, आज के लक्षणों के लिए , आज का औषध स्कंध इन्हीं सिद्धांतोंसे, इन्ही औषधी द्रव्यों से बनेगा ... किंतु "कॉम्बिनेशन = अरेंजमेंट नया होगा" ... इसलिये औषधी स्कंध अभिनव बनेगा , नूतन बनेगा , अपूर्व बनेगा!!!

प्रस्थापित औषधों से परे , कुछ अन्य नये अभिनव नूतन औषधी योग = औषधी कल्प प्रस्तुत करने का निरंतर प्रयास, स्वयं म्हेत्रेआयुर्वेद के और ... MhetreAyurveda के विद्यार्थी तथा सन्मित्र वैद्यों द्वारा उनका बहुतर मात्रा में प्रयोग करने के बाद जो अनुभव आता है , उसके अनुसार ये लेख लिखे जाते है.

इसका उद्देश्य ये है की , आज के नये हेतू स्कंध के लिए और "तज्जन्य" आज के नये लक्षण स्कंध के लिए ... यह "नए औषध स्कंध" प्रयोग करके देखिये !!!

हो सकता है की प्रस्थापित और पूर्वोक्त संहितोक्त और संभवतः कालबाह्य औषध कल्पों से "अधिक कार्यकारी, यह नए कल्प" है, ऐसा अनुभव आपको भी आयेगा!!!

यह नये कल्प कोई म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda की अपनी प्रॉपर्टी पेटंट कॉपीराईट नही है!

यह केवल एक नयी पहल है, की प्रस्थापित लोकप्रिय कल्पों को बाजू को रखके, कुछ नये कल्पों का रुग्णों पर उपयोग करके, आने वाले अनुभवोंको आपके सामने प्रस्तुत किया है.

ये कल्प म्हेत्रेआयुर्वेद से ही पर्चेस करने चाहिये ऐसा नही है. ये कल्प स्वयं भी निर्माण करके आपके पेशंट पर उपयोग करके देख सकते है. हो सकता है की, हम आज के नये हेतुस्कंध के लिए, "तज्जन्य" नये लक्षण स्कंध के लिए, एक नया औषध कंध निर्माण कर पाये ... जो आनेवाले काल के लिए सुसंगत, परिणामकारक और लाभदायक होगा.

म्हेत्रेआयुर्वेद द्वारा जो लेख कल्पों के / गण के बारे मे लिखे जाते है, वे मार्केटिंग के लिए, व्यवसाय के लिए, व्यापार के लिए नही लिखे जाते!

अपितु, नये हेतू स्कंध के अनुसार, निर्माण होनेवाले, "तज्जन्य" नये लक्षण स्कंध के लिए उपयोगी, ऐसे हेतू विपरीत &/or लक्षण विपरीत, "नये औषध स्कंध" प्रस्तुत करने के लिए, शास्त्र के लिए एक समर्पित योगदान करने के लिए , यह लेख निरंतर प्रस्तुत किये जाते है.

✍🏼
वैद्य हृषीकेश म्हेत्रे
आयुर्वेद क्लिनिक्स @ पुणे & नाशिक
9422016871

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*मुस्तादि गण : स्त्री विशिष्ट विकारों में उपयोगी अत्यंत वीर्यवान कल्प!*विशेष रूप से कफ प्रधान या शीतगुणजन्य स्निग्ध गुरु...
06/11/2024

*मुस्तादि गण : स्त्री विशिष्ट विकारों में उपयोगी अत्यंत वीर्यवान कल्प!*

विशेष रूप से कफ प्रधान या शीतगुणजन्य स्निग्ध गुरु गुणजन्य क्लेद प्रधान पृथ्वी जल प्रधान स्त्री विशिष्ट विकारोमे उपयोगी अत्यंत वीर्यवान कल्प!
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05/11/2024

संहिताकार एवं टीकाकारों के जयंती स्मृतिदिन पुण्यतिथी जन्मस्थल देहत्यागस्थल , इनका संहिता और टीकाओं में स्पष्ट संदर्भ

अभी इसी बात का दुसरा पहलू यह भी है की चलो छोड दीजिए की हमारा स्पर्धक हमारा समकालीन सहकर्मी हमारा कॉम्पिटिटर क्या कर रहा है, क्या नही कर रहा है, हम नही देखना चाहते ...
क्यूकी मॉडर्न मेडिसिन का औषध का सिद्धांत तथा वितरण (= प्रिन्सिपल्स & प्रॅक्टिस) यह आयुर्वेद से बहुत ही भिन्न = विलक्षण है ...!

किंतु यदि हम हमारा हि इतिहास देखेंगे, तो "प्रायः सभी" संहिताकारों ने एवं टीकाकारों ने प्रतिसंस्कर्ताओं ने , अपना संक्षिप्त या विस्तृत परिचय दिया है!

उन्होंने कभी अपने स्थान का या राजा का या पिता का या बडे भाई का या आराध्य देवताओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है

किंतु, क्या किसी संहिता मे या किसी संहिता के किसी टीकाकार ने, आज तक कभी यह रेफरन्स दिया है, यह संदर्भ दिया है, यह कथन किया है, कि हमने धन्वंतरी की , चरक की , सुश्रुत की , वाग्भट की जयंती / पुण्यतिथी / जन्मशताब्दी ... अमुक "तिथी" पर अमुक "मास" मे मनानी चाहिए या अमुक "स्थान" पर चरकने, सुश्रुतने, वाग्भट ने, धन्वंतरीने, जन्म लिया था या देह त्याग किया था ... जहां पर जाकर हमने उस मंगल पवित्र दिन पर या उस मंगल पवित्र स्थल पर अध्ययन करना चाहिए !!!

आज हमे अमुक स्थान पर या अमुक दिन पर अमुक व्यक्ती की जयंती या देहत्याग हुआ था ... "यह नये से" पता चल रहा है ... किंतु क्या हम यह मान्य करेंगे की, हमारी तुलना मे, हमसे पहले जो 100 150 300 500 1000 वर्ष पूर्व, भूतकाल मे टीकाकार एवं संहिताकार थे , उनको इस प्रकार की तिथी और स्थल के बारे मे "अधिक निश्चित जानकारी" होगी , की कहां पर चरक सुश्रुत वाग्भट धन्वंतरि पुनर्वसु आत्रेय अग्निवेश इनका जन्मस्थल देहत्यागस्थल और कौन से दिन पर जन्म या मृत्यु हुआ होगा ... और ऐसी शक्यता होने पर भी , कही पर भी , एक भी संदर्भ , किसी भी संहिता मे किसी भी प्राचीन या अर्वाचीन टीकामे नही मिलता है, की अमुक एक संहिताकार या अमुक एक टीकाकार का जन्म या मृत्यु का तिथी या स्थल यह है या यह था , ऐसा संदर्भ हमारे संहिता और टीका मे कही पर भी नही है ...

तो इसका यह स्पष्ट अर्थ होता है कि, इस प्रकार के भावनिक समारंभों का हमारे शास्त्र मे कोई उपयोग आवश्यकता उद्देश प्रयोजन संकेत रीती रूढी परंपरा है ही नही ...

तो इस प्रकार की अगर रुढी रीती परंपरा हमारे संहिताकारों ने टीकाकारों ने उनके ग्रंथो मे कही पर भी नही लिखी है ,

तो हम क्यू ऐसे अशास्त्रीय अबौद्धिक रुढी संकेतों को "नये से" स्थापित करने का निरुद्देश निष्प्रयोजन, प्रारंभ या प्रयास कर रहे है?!

05/11/2024

ग्रे की जयंती! गायटन की पुण्यतिथी!! हचीसन डेव्हिडसन की जन्मशताब्दी!!! हरीसन को श्रद्धांजली !!!!

जब आप किसी क्षेत्र में कार्य कर रहे होते है, तब आपके सहकर्मियों का व्यवहार भी आपने देखना चाहिए. क्यूकी आपके सहकर्मी अर्थात उसीक्षेत्र में आपके जैसा कार्य करने वाले अन्य व्यक्ती संस्था समूह सिस्टीम ये आपके स्पर्धक competitor होते है. इसलिये ये क्या "कर रहे" है? ये क्या "नही कर रहे" है? इसके अनुसार आपको भी आपका व्यवहार उचित दिशा मे बदलना पडता है.

जब आप किसी क्षेत्र में अकेले ही सेवादाता (सोल सर्विस प्रोव्हायडर) होते हो अर्थात आपकी मोनोपाॅली होती है, तब आपको इस प्रकार का अपने व्यवहार का निर्धारण आपके स्पर्धकों के व्यवहार के अनुसार बदलने की आवश्यकता नही होती है!

आज से 150-200 साल पहले भारतीय समाज की आरोग्य व्यवस्था केवल आयुर्वेद के ही अधिकार में थी. तब आयुर्वेद शास्त्र का समाज के प्रति व्यवहार क्या है, इस पर प्रश्न उठाने वाला उसको व्हेरिफाय करने वाला व्हॅलिडेट करने वाला कोई नही था.

लेकिन आज के काल मे जब 95% से ज्यादा लोग आयुर्वेद की आरोग्य व्यवस्था के बजाय, मॉडर्न मेडिसिन की आरोग्य व्यवस्था पर अवलंबित है, ऐसी स्थिती मे, आयुर्वेदिक चिकित्सा जगत ने ही अपने व्यवहार का उचित रूप मे दिशा परिवर्तन करने के लिए, अपना जो बलवान स्पर्धक है, उस मॉडर्न मेडिसिन के डॉक्टर्स का तथा स्वयं मॉडर्न मेडिसिन इस सिस्टीम का व्यवहार किस प्रकार का है, वो किस प्रकार से व्यवहार "करते है" और किस प्रकार का व्यवहार "टालते है", इसकी तरफ ध्यान देना आवश्यक हो जाता है.

अगर हम ऐसा नही करेंगे, तो यह अव्यवहार या असमंजसता या मूर्खता सिद्ध होगी.

क्या मॉडर्न मेडिसिन के लोगो ने कभी ग्रे की जयंती, गायटन की पुण्यतिथी, हचीसन डेव्हिडसन के जन्मशताब्दी, हरीसन को श्रद्धांजली ... ऐसे कार्यक्रम पूरे विश्व मे कही पर भी आयोजित करते हुए देखा है!?

हर वर्ष की बात छोड दो , किंतु किसी की सेंटेनरी बर्थडे अर्थात जन्मशताब्दी या 100 वी स्मृतिदिन = पुण्यतिथी यह भी कभी मनाई हुई, पूरे विश्व मे दिखाई नही देती है.

तो क्या ऐसी जयंती पुण्यतिथी शताब्दी न मनाने से, मॉडर्न मेडिसिन के यश में, उनके शास्त्रीय व्यवहार में उनके सामाजिक स्वीकारता में कुछ हानी हुई है ?

अगर ऐसा नही है ... तो हम आयुर्वेद के लोग इस प्रकार के अशास्त्रीय भावनिक व्यवहारों में अपना समय एनर्जी रिसोर्सेस और पैसा क्यू व्यर्थ बर्बाद करते रहते है??

क्या इससे आयुर्वेद समाज को आयुर्वेद शास्त्र को या संपूर्ण सामान्य पेशंट वर्ग को कोई लाभ होता है!?

हमारे स्पर्धकों का व्यवहार देखकर , जैसे हमने हमे क्या करना चाहिए , ये सीखना चाहिए ... उसी के साथ, हमने क्या "नही करना" चाहिए, यह भी सीखना चाहिए.

05/11/2024

गंधक रसायन : व्हेरिफिकेशन & व्हॅलिडेशन

यह गंधक रसायन नाम का कल्प ,
योग रत्नाकर नाम के ग्रंथ मे ,
सबसे अंतिम प्रकरण रसायन अधिकार मे सेकंड लास्ट = उपान्त्य कल्प के रूप मे वर्णित है.

किंतु व्यवहार में इसका प्रयोग न जाने किस किस रोग मे करते है??

यह कल्प प्रायः त्वचारोग और व्रण इसमे उपयोग मे देने की प्रथा है

अगर इस कल्प के घटकों का विचार किया जाये तो उसमे मूल घटक केवल एक मात्र है वह है, गंधक !

जिसे शुद्ध करके लेने के लिए कहा है, शुद्ध बली इस शब्द से

इस कल्प मे या इस घटक द्रव्य को भावना हि भावनायें है.

जिनको जिज्ञासा रुची कुतूहल उत्सुकता हो, वे आगे का लेख इस लिंक का उपयोग करके पढे

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/11/blog-post.html

05/11/2024

✍️🏼 Yash Velankar Ayu:

*विचार घटना घडवून आणतात का?
👆🏼 डॉ यश वेलणकर*
- माणसाचे विचार त्याच्या शरीरावर परिणाम करतात हे सिद्ध झाले आहे
- मात्र ते विचार वातावरणात काही तरंग निर्माण करून तसेच प्रसंग घडवून आणतात हे सिद्ध झालेले नाही
- विचार जगाकडे पाहण्याचा दृष्टिकोन ठरवतात, सकारात्मक दृष्टिकोन माणसाला प्रेरणा देणारा असतो. त्यामुळे विचार करताना माणसाने सकारात्मक असायला हवे.तो नकारात्मक असेल तर माणसांना काही करण्याचीच इच्छा राहत नाही
- मात्र काहीही घडवून आणायचे असेल तर कृती आवश्यक आहे. असे घडावे असा केवळ विचार करत राहणे, ते घडले आहे असे कल्पना करून पाहणे, तसे ध्यान करणे पण प्रत्यक्षात ते घडण्यासाठी कोणतीही कृती न करणे यामुळे जे घडावे असे वाटते ते घडणार नाही.
- सध्या सोशल मीडियावर manifestation technique, law of attraction, positive vibes वगैरे नी उच्छाद मांडला आहे 😄... पण ते काही खरे नाही
- विचारांचा प्रभाव स्वतः च्या शरीर मनावर नक्की होतो पण तो परिसरावर होत नाही
- म्हणजे उद्या सकाळी ठराविक वेळी झोपेतून जाग यायला हवी असा विचार करून झोपलो तर त्यावेळी गजर न लावता जाग येऊ शकते.
- पण उद्या सकाळी मला नाश्त्यासाठी शिरा खायला मिळायला हवा असा कितीही तास विचार करत राहिलो पण काहीही कृती केली नाही तर शिरा खायला मिळण्याची शक्यता खूप कमी असते
- शिरा खायला हवा असेल तर तो स्वतः तयार करावा लागेल, शिरा कर असे दुसऱ्याला सांगावे लागेल किंवा हॉटेलात ऑर्डर द्यावी लागेल.
- शिरा खायची इच्छा असते आणि त्यावेळी शिरा मिळतो हा केवळ योगायोग असतो.
- केवळ विचार करून समोर ठेवलेले पेन देखील हलवता येत नाही. त्यामुळे केवळ विचार करत राहणे पुरेसे नाही
- कोणतीही मोठी कामे पूर्ण होण्यासाठी तसा विचार करणे आवश्यक असतेच. कोणतीही गोष्ट दोन वेळा घडत असते, प्रथम ती कल्पना एखाद्या माणसाच्या मनात येते आणि नंतर ती प्रत्यक्षात येते.
- मात्र ती प्रत्यक्षात आणण्यासाठी कर्म आवश्यक असते. केवळ कल्पना पुरेशी नसते.
- Only thoughts can't get manifested

✍️🏼 Yash Velankar Ayu:
मानसोपचार तज्ञ स्वतःच्या भावना आणि विचार यांना कसे सामोरे जावे याचे कौशल्य विकसित करण्याची तंत्रे शिकवीत असतात.
ही तंत्रे शिकण्याची आणि वापरण्याची ज्यांची तयारी असेल त्यांनाच त्याचा उपयोग होतो.

05/11/2024

✍️🏼 शेफाली वैद्य यांचा एक सणसणीत लेख

माझ्या ओळखीतली एक मुलगी सध्या तिच्या आयुष्यातल्या सर्वात कठीण काळातून जातेय, वय पस्तिशी ओलांडलेले, जवळजवळ फायनल होत आलेला अत्यंत बिटर असा घटस्फोट, मुले नाहीत, भावंडे नाहीत. वडील वर्षापूर्वी गेलेले, मुळातली हेकट स्वभावाची आई सतत आजारी असल्यामुळे अजून हेकट झालेली. ही घटस्फोटामुळे आईकडे राहायला आलेली. आयटी कंपनीतली चांगल्या पगाराची पण खूप ताण देणारी नोकरी. स्वतःच्या मानसिक आणि शारीरिक आरोग्याकडे लक्ष द्यायला वेळ मिळत नसल्यामुळे हिचे स्वतःचेही सगळेच गणित बिघडलेले. वाढलेले वजन, वाढलेली साखर, वाढलेला रक्तदाब आणि त्यामुळे ढासळलेला आत्मविश्वास ह्या सगळ्याशी एकत्र झुंजतेय बिचारी. अधून मधून ती मला सल्ल्यासाठी फोन करते.

मी तिला सल्ला दिला होता की तिने एखादा चांगला मानसोपचार तज्ज्ञ शोधावा, योगासने आणि ध्यान करणे सुरु करावे, स्वतःच्या आरोग्यावर काम करावे. त्याप्रमाणे तिने थेरपी सुरु केलीही होती, पण थेरपिस्ट समोर स्वतःच्या मनाचा कंद सोलून स्वतःकडेच निर्ममपणे बघणे, स्वतःच्या चुका शोधणे आणि त्या सुधारण्याची जबाबदारी घेऊन त्याप्रमाणे स्वतःच्या वागण्यात बदल करणे ही एक अत्यंत कठीण, दुःखदायक, हळू होणारी आणि वेळकाढू प्रक्रिया आहे, त्यामुळे पाच-सहा सेशन नंतर तिने थेरपी सोडली.

सध्या ही मुलगी तिचा सगळा रिकामा वेळ इन्स्टाग्राम वरच्या शंभरेक स्वघोषित लाईफ कोच, ट्रॉमा हिलर आणि छद्म अध्यात्म गुरु यांचे रील बघण्यात आणि स्वतःच्या कष्टाचे पैसे तासाला दोन-तीन हजार भरून त्यांच्याकडून ऑनलाईन कन्सल्टेशन करण्यात घालवते. आतापर्यंत तिने ऑरा रिडींग, प्राणिक हीलिंग, रेकी, इनर चाईल्ड हीलिंग, कार्मिक क्लीनिंग वगैरे पंचवीसेक तरी वेगवेगळे ऑनलाईन हीलिंग सेशन घेतले असतील. प्रत्येक सेशन मध्ये तिला वेगवेगळ्या शब्दात हेच सांगण्यात येतं की तिच्या आयुष्यात जे काही राडे चालू आहेत त्यात तिचा काहीच दोष नाही. तिचे गेल्या जन्मातले कर्म, तिचे चाइल्डहूड ट्रॉमा, तिचे आई-वडील, शाळा, टीचर, बॉस, नवरा, कलिग्स, थोडक्यात सांगायचे तर ती सोडून इतर सर्व जग तिच्या आयुष्यात जो काही काला तिने करुन ठेवलाय त्याला जबाबदार आहेत!

त्याला तोडगा म्हणून हे तथाकथित हीलर लोक जे उपाय सुचवतात त्यातही कुठेही तिने स्वतःच्या चुकांकडे डोळसपणे पाहणं आणि स्वतःला बदलवणं अपेक्षितच नाहीये. ती जेव्हा मला फोन करून तिच्या आईच्या हेकटपणाच्या गोष्टी सांगते आणि ‘आईच्या घरात राहते म्हणून मला हे सगळं सोसावं लागतंय’ म्हणत स्वतःची कींव करते तेव्हा एक-दोनदा मी तिला त्या घरातून निघून जवळ एखादा छोटा फ्लॅट भाड्याने घेऊन स्वतंत्र राहण्याचा सल्ला दिला, जे आर्थिक दृष्ट्या तिला परवडू शकतं, पण स्वतंत्र राहिलं तर स्वतःची संपूर्ण जबाबदारी स्वतः घ्यायला लागते, इथे आई आजारी असून सुद्धा घरची संपूर्ण जबाबदारी घेतेय, मुलगी घरी आली की तिला आयतं जेवण मिळतं, कपडे धुवून, इस्त्री करून तयार ठेवलेले असतात, लाईट बिल, फोन बिल कधी येणार, कोण भरणार याची चिंता करावी लागत नाही. त्यामुळे तिला बदल नकोय, त्यापेक्षा ’घराची वास्तूरचना बदल आणि ईशान्य कोपऱ्यात क्रिस्टल वॉटर फाउंटन ठेव म्हणजे घराची एनर्जी बदलून जाईल व सगळं ठीक होईल’ म्हणणाऱ्या ऑनलाईन वास्तू कन्सल्टंटचा सल्ला तिला जास्त सोपा आणि स्वीकारार्ह वाटतो कारण त्यात तिला तक्रार करत राहण्याशिवाय काहीच करावं लागत नाही. अर्थात हा सल्ला वट्ट तीन हजार रुपये एका सेशनवर घालवून तिने मिळवलेला असतो, वर पाच हजार रुपयांचं क्रिस्टल वॉटर फाऊंटनही त्याच बाईकडून विकत घेतलेलं असतं!

सध्या अश्या स्वघोषित लाईफ कोच आणि छद्म हीलर यांचा सोशल मीडियावर जबरदस्त सुळसुळाट झालाय. या लोकांच्या प्रोफाईल्सवर होलीस्टिक मेंटर, एनर्जी हीलर, आकाशिक गाइड, ट्रॉमा कोच असे भारी भारी टायटल्स असतात, आणि सोल हीलिंग, कर्मा अलाईनमेन्ट, आकाशिक रिडींग सारखे शब्द त्यांच्या रील्समध्ये सहजपणे वापरले जातात. खरे सांगायचे तर, ही मंडळी ‘बेंबट्या कुंभार हो, गाढवांस तोटा नाही’ हा पुलंच्या असा मी असामीमधला सल्ला प्रत्यक्षात आणताना दिसतात.

या सगळ्यात गैरफायदा घेतला जातो तो लोकांच्या भावनिक दुर्बलतेचा. सध्याच्या धकाधकीच्या आयुष्यात माणसं खूप एकटी पडतात, खूप हतबल होतात, त्यांना त्यांचं आयुष्य आनंदाने जगणं अवघड जातं. तेव्हा त्यांना वाटतं की कुणीतरी झटपट उपाय सांगावा आणि काहीतरी क्विक सोल्युशन द्यावं. पण आयुष्य सोपं नसतं मग त्यातल्या प्रश्नांची उत्तरं कशी सोपी असतील? प्रत्येक सज्ञान व्यक्तीच्या आयुष्याची जबाबदारी ही त्या त्या व्यक्तीचीच असते. परिस्थिती, आयुष्यातले इतर लोक, ह्यांचा परिणाम होतोच, नाही असे नाही, पण लॉंग टर्म उपाय हा केवळ कठोर आत्मपरीक्षण आणि स्वतःला हील करण्याची जबाबदारी स्वतः स्वीकारणे हाच असू शकतो. ही प्रक्रिया ग्लॅमरस किंवा सोपी नसते तर खूप वेळकाढू, दुःखदायक आणि फ्रस्टरेटिंग असते.

नेमका ह्याचाच फायदा हे इन्स्टा गुरु घेत असतात. ते लोकांना सांगतात की तुमच्या आयुष्यात जो राडा चाललेला आहे त्याला तुम्ही जबाबदार नसून एका कठीण आध्यात्मिक फेजमधून जात आहात, किंवा तुमचं शेवटून पाचव्या जन्मीचं कर्म किंवा तुमचं बालपण आणि तुमचे आई-वडील जबाबदार आहेत. उदाहरणार्थ, ब्रेकअप झालंय? ते तुम्हाला आत्मपरीक्षण करायला लावणार नाहीत, त्याऐवजी तुम्हाला तुमची आणि तुमच्या जोडीदाराची ‘एनर्जी मिसअलाइन्मेंट’ असं कारण सांगतील. तुमच्या कामात तुमची प्रगती होत नाहीये? ते तुम्हाला असं कधीच सांगणार नाहीत की तुम्ही तुमचं कौशल्य वाढवा किंवा नवीन संधी शोधायचा; ते सांगतील की तुमचं कार्मिक हीलिंग करावं लागेल. तुमच्या चुकांचं, फसलेल्या निर्णयांचं कारण आत्मपरीक्षण करून तुम्हाला स्वतःलाच शोधायला लावण्याऐवजी ते तुम्हाला सांगतील की हे सगळं तुमच्या हातातच नाही.

भावनिकदृष्ट्या कमकुवत झालेल्या लोकांना हेच ऐकायचं असतं. त्यांना वाटतं की त्यांच्या आयुष्यातले सगळे प्रश्न कोणीतरी दुसऱ्याने आणि तेही लगेच सोडवले पाहिजेत आणि हे स्वघोषित हीलर्स ह्याच गोष्टींचा फायदा घेऊन सगळा दोष कर्म, ऊर्जा, ऑरा किंवा बालपणीचे प्रश्न ह्यांच्या माथी मारतात. बालपणाचे प्रश्न किंवा ट्रॉमा हे खरेच असतात, पण मोठेपणीचे सर्व दोष चाईल्डहूड ट्रॉमा ह्या एकाच उत्तराने झाकले जात नाहीत.

या स्वघोषित हीलरनी आजच्या जगातल्या लोकांची मानसिकता अगदी बरोबर ओळखलीय. विविध कारणांमुळे लोक त्यांच्या आयुष्याला त्रासलेले आहेत, कंटाळलेले आहेत, पूर्वीचे सपोर्ट सिस्टिम गेल्यामुळे एकटे पडलेले आहेत आणि म्हणूनच क्विक फिक्सच्या शोधात आहेत. खरे तर भारतीय अध्यात्म, ध्यान धारणा, योग आदी गोष्टी आयुष्यातल्या अनेक प्रश्नांची उत्तरे देऊ शकतात, पण तोही एक खूप लांब पल्ल्याचा प्रवास आहे, कारण मूळ समस्या कधी बाहेरची नसतेच. ती आपल्यातच असते. ती सोडवायचीही आपल्यालाच असते, आत्मपरीक्षण करून, स्वतःमध्ये सकारात्मक बदल घडवून आणून, कधी कठोर निर्णय घेऊन तर कधी आपले दोष स्वीकारून. खरा गुरु फक्त रस्ता दाखवू शकतो, चालायचं आपल्यालाच असतं. वाट कठीण असते, आत्मनिंदेच्या काट्यांनी भरलेली असते, पण ती चालावीच लागते. एका तासाच्या स्पिरिच्युअल ऑरा क्लेनसिंग मधून तुम्हाला खोटे समाधान मिळण्याव्यतिरिक्त कसलेच प्रश्न सुटत नाहीत. आपलं आयुष्य सुधारायचं असेल तर आपल्याला त्याची संपूर्ण जबाबदारी घ्यावी लागते, आपले दोष स्वीकारावे लागतात, स्वतःला बदलावं लागतं, आपलं काय चुकलं ते ओळखावं लागतं आणि त्यावर काम करावं लागतं.

शेफाली वैद्य

04/11/2024

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