06/11/2024
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बदलते/नये हेतु स्कंध एवं तज्जन्य बदलते/नये लक्षण स्कंध के अनुसार ... नया अभिनव नूतन अपूर्व औषध स्कंध!
आज कुछ "अच्छा" सुनते है !
आज कुछ "सच्चा" सुनते है !!
हेतु स्कंध के अनुसार हि लक्षण निर्माण होते है,
यह कार्य करण भाव सिद्धांत है!
जैसे हेतू बदलेंगे, वैसे लक्षण भी बदलेंगे.
संहिता मे जो हेतु स्कंध था,
वो आज वैसे के वैसे उपलब्ध नहीं है
और
आज का जो हेतु स्कंध है,
उसका वर्णन संहिता में नही हो सकता!
तो संहिता काल के हेतुजन्य लक्षण आज दिखाई नही देते, जैसे की गुल्म ऊरुस्तंभ ...
और आज के नये हेतु, एवं तज्जन्य जन्य नये लक्षण संहिता मे वर्णित नही हो सकते !
और
*हेतु लक्षण के विपरीत हि, औषध स्कंध होता है*.
तो ... बदलते/नये हेतु स्कंध एवं तज्जन्य बदलते/नये लक्षण स्कंध के अनुसार हि, नया औषध स्कंध होना,
यही शास्त्र सुसंगत है.
किंतु नये औषधस्कंध की निर्मिती या डिझाईन के लिए उतनी बुद्धिमत्ता उतने अनुभव और *उतनी विश्वासार्हता* संभवतः आज किसी के भी पास नही है.
तो जो संहिता मे उल्लेखित या 100 200 300 वर्ष पूर्व लिखे हुए ग्रंथो मे उल्लेखित योग / कल्प है,
वे "तत्कालीन" हेतुजन्य, "तत्कालीन" लक्षणों के लिए लिखे हुए, "तत्कालीन" औषध स्कंध है.
इसलिये मेरा एक ऐसा भी मानना है, कि वह जो औषध स्कंध आज हम प्रयोग मे ला रहे है, वो "कालबाह्य" है.
हम आज के हेतुओं के विपरीत, "आज" के हेतु व "आज" के लक्षण के विपरीत, "तत्कालीन" ताप्यादि लोह, "तत्कालीन" कौटजादि शिलाजतु "तत्कालीन" च्यवनप्राश ऐसे औषध, आज के दौर/काल/युग मे प्रयोग कर रहे है.
ये आज के गन और बॉम्ब से जैसे शस्त्रों से सिद्ध/ युक्त शत्रुओं के साथ , "विगतकाल के कालबाह्य तत्कालीन" "तीर और तलवार" से युद्ध करने जैसा है.
ये ई-मेल व्हाट्सअप के जमाने मे कबूतर द्वारा या घुडसवार द्वारा संदेश भेजने जैसा है.
तो "आज के नये" हेतुओं के लिए और "तज्जन्य आज के नये" लक्षण के लिए, "आज का नया औषध स्कंध" लिखना, यह "आज के वैद्यों" का, "आज के आयुर्वेद अनुयायीयों" का, "आज के आयुर्वेद अभ्यासकों" का काम है.
सिद्धांत त्रिकाला बाधित है इसका अर्थ यह नही होता है कि, उसके अनुसार लिखे हुए औषध कालबाह्य नही होंगे.
जैसे हमारे बचपन मे चौथी पाचवी छठी कक्षा मे गणित के मॅथ्स के कुछ प्रॉब्लेम्स सॉल्व करते थे, उसमे जो उदाहरण होते है, उस काल के थे. आज 30 40 साल के बाद, जब हम रोज के व्यवहार में बँक मे किराणा दुकान मे बस के ट्रॅव्हल मे हर क्षण हर व्यवहार मे जो गणित के प्रॉब्लेम्स सॉल्व करते है, वो बचपन की किताबों से नही है. बचपन के किताब मे गणित के जो 0 से 9 नंबर थे और जो मूलभूत मल्टिप्लिकेशन ॲडिशन सबट्रॅक्शन डिव्हायडेशन+×÷- ये गणित की प्रक्रियायें थी, "आज के प्रॉब्लेम के लिए भी, वैसे ही उपयोगी है".✅️
इस प्रकार से संहितोक्त या बाद के योगसंग्रह मे जो आज से 100 200 400 वर्ष पहले लिखे गये है, उन तत्कालीन ग्रंथो मे उल्लेखित औषध स्कंध / योग / कल्प "आज, कालबाह्य" हो गये है ... "क्योंकि" वे "तत्कालीन" हेतुस्कंध, "तत्कालीन" तज्जन्य लक्षण स्कंध के लिये, "तत्कालीन" हेतु लक्षण विपरीत औषध स्कंध है. उनका भी आकलन उन्हीं सिद्धांतोंपर उन्ही दोषरसगुणमहाभूत पर और मूलभूत मुस्ताशुंठीवचाहरिद्रा इन द्रव्यों के आधार पर हि सिद्ध होगा ... वैसे ही उन्ही दोष रस गुण महाभूत सिद्धांत पर और उन्हीं मुस्ता शुंठी वचा हरिद्रा इन्हीं द्रव्यों से हि आज के नये हेतुओं के लिए और आज के नये लक्षणे के लिये, आज का नया औषध स्कंध बनेगा.
शून्य से नऊ (0 to 9) अंक वही रहेंगे, मल्टिप्लिकेशन डिव्हायडेशन सब्ट्रॅक्शन ॲडिशन (+×÷-) यह प्रक्रियायें वही रहेंगी, किंतु बचपन के मॅथ्स के प्रॉब्लेम आज नही रहेंगे, आज के मॅथ्स के प्रॉब्लेम नये आयेंगे, जो फिर से उन्हे 0 से 9 नंबर के द्वारा और उन्हीं मल्टिप्लिकेशन डिव्हायडेशन सब्ट्रॅक्शन ॲडिशन +×÷- प्रक्रियायों द्वारा हि सॉल्व होंगे.
सब कुछ बेसिकली वही रहेगा , लेकिन "कॉम्बिनेशन बदलेगा, अरेंजमेंट बदलेगी".
आज के व्यवहार में, वैसे ही दोष रस गुण महाभूत वही रहेंगे, वचा शुंठी मुस्ता हरिद्रा वही रहेंगे, किंतु आज के हेतूओं के लिए, आज के लक्षणों के लिए , आज का औषध स्कंध इन्हीं सिद्धांतोंसे, इन्ही औषधी द्रव्यों से बनेगा ... किंतु "कॉम्बिनेशन = अरेंजमेंट नया होगा" ... इसलिये औषधी स्कंध अभिनव बनेगा , नूतन बनेगा , अपूर्व बनेगा!!!
प्रस्थापित औषधों से परे , कुछ अन्य नये अभिनव नूतन औषधी योग = औषधी कल्प प्रस्तुत करने का निरंतर प्रयास, स्वयं म्हेत्रेआयुर्वेद के और ... MhetreAyurveda के विद्यार्थी तथा सन्मित्र वैद्यों द्वारा उनका बहुतर मात्रा में प्रयोग करने के बाद जो अनुभव आता है , उसके अनुसार ये लेख लिखे जाते है.
इसका उद्देश्य ये है की , आज के नये हेतू स्कंध के लिए और "तज्जन्य" आज के नये लक्षण स्कंध के लिए ... यह "नए औषध स्कंध" प्रयोग करके देखिये !!!
हो सकता है की प्रस्थापित और पूर्वोक्त संहितोक्त और संभवतः कालबाह्य औषध कल्पों से "अधिक कार्यकारी, यह नए कल्प" है, ऐसा अनुभव आपको भी आयेगा!!!
यह नये कल्प कोई म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda की अपनी प्रॉपर्टी पेटंट कॉपीराईट नही है!
यह केवल एक नयी पहल है, की प्रस्थापित लोकप्रिय कल्पों को बाजू को रखके, कुछ नये कल्पों का रुग्णों पर उपयोग करके, आने वाले अनुभवोंको आपके सामने प्रस्तुत किया है.
ये कल्प म्हेत्रेआयुर्वेद से ही पर्चेस करने चाहिये ऐसा नही है. ये कल्प स्वयं भी निर्माण करके आपके पेशंट पर उपयोग करके देख सकते है. हो सकता है की, हम आज के नये हेतुस्कंध के लिए, "तज्जन्य" नये लक्षण स्कंध के लिए, एक नया औषध कंध निर्माण कर पाये ... जो आनेवाले काल के लिए सुसंगत, परिणामकारक और लाभदायक होगा.
म्हेत्रेआयुर्वेद द्वारा जो लेख कल्पों के / गण के बारे मे लिखे जाते है, वे मार्केटिंग के लिए, व्यवसाय के लिए, व्यापार के लिए नही लिखे जाते!
अपितु, नये हेतू स्कंध के अनुसार, निर्माण होनेवाले, "तज्जन्य" नये लक्षण स्कंध के लिए उपयोगी, ऐसे हेतू विपरीत &/or लक्षण विपरीत, "नये औषध स्कंध" प्रस्तुत करने के लिए, शास्त्र के लिए एक समर्पित योगदान करने के लिए , यह लेख निरंतर प्रस्तुत किये जाते है.
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वैद्य हृषीकेश म्हेत्रे
आयुर्वेद क्लिनिक्स @ पुणे & नाशिक
9422016871
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