14/08/2023
जेनेरिक दवा
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NMC ने स्पष्ट कर दिया है कि सभी रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्शनर्स को अब जेनेरिक दवा ही प्रेस्क्राइब करनी होगी।बेहतर होता NMC ये भी बता देता कि आज के बाद ब्रैंडेड दवा कौन प्रेस्क्राइब कर सकेगा? और यदि कोई ब्रैंडेड दवाओं को प्रेस्क्राइब ही नहीं कर पाएगा तो फिर इन दवाओं के उत्पादन का औचित्य क्या है?
हिंदुस्तान में शराब और सिगरेट से लेकर वस्त्रों अथवा खाने पीने की हज़ारों वस्तुओं तक एक भी कोई प्रोडक्ट ऐसा न होगा जिसके असंख्य ब्रांड्स बाजार में उपलब्ध न हों लेकिन आश्चर्य का विषय है कि जब बात दवाओं की हो तो बुद्धिजीवी जेनेरिक दवाओं की वकालत करते हैं और NMC नियम भी बना देता है।नेताओं को अपने लिए हेलीकॉप्टर लेने हों तो विदेशी कम्पनी के सबसे महंगे हेलीकॉप्टर लेते हैं क्योंकि वो अधिक सुरक्षित माने जाते हैं।वे फिल्म कलाकार जो जेनेरिक दवाओं की पैरवी करते हैं वो तो पानी भी अच्छे ब्रांड का पीते हैं।वे नीति निर्माता जो जेनेरिक दवाओं के लिए नियम बनाते हैं वो स्वयं बीमार होने पर जेनेरिक दवा ही खाते होंगे इस पर विश्वास करना कठिन है।
सरकारी अस्पतालों में मिल रही जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता पर आज तक कोई स्पष्ट जानकारी देखने को नहीं मिली है।पिछले दिनों पीजीआई चंडीगढ़ की एक रिसर्च ने जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता पर गंभीर प्रश्न उठाए थे।
जेनेरिक दवाओं के प्रोत्साहन का उद्देश्य मरीजों के आउट ऑफ पॉकेट खर्च को कम करना है।यदि बिना गुणवत्ता से समझौता किए ऐसा होता है तो निस्संदेह ये स्वागत योग्य कदम है लेकिन ये कार्य तो ब्रांडेड दवाओं के मूल्य को नियंत्रित करके भी किया जा सकता था।हर दवा का अधिकतम मूल्य सरकार निर्धारित कर दे और दवा कम्पनीज पर गुणवत्ता नियंत्रण के कड़े से कड़े नियम लागू हों तो फिर जेनेरिक दवाओं को इस तरह थोपने की आवश्यकता कतई न पड़ती।
डॉक्टर्स का तो ये भी कहना रहा है कि यदि ब्रांडेड एवं जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता में कोई फ़र्क़ नहीं तो सरकार ब्रांडेड दवाओं का उत्पादन बंद कर दे,यदि ब्रांडेड दवाओं की एमआरपी अधिक है तो सरकार एमआरपी को नियंत्रित करे।
वन नेशन, वन ड्रग, वन प्राइस की मांग डॉक्टर्स ने समय - समय पर की है लेकिन न तो सरकार ने कभी ऐसा किया और न समाज सेवी हेल्थ एक्टिविस्ट ये माँग रखने का साहस कर पाए। डॉक्टर्स पर लांछन लगाना सबसे आसान काम था इसलिए केवल लांछन लगाये गये।
अब जनता की सेहत को जेनेरिक दवाओं के हवाले कर दिया गया है। इलाज के परिणाम आशानुकूल नहीं रहे तो डॉक्टर्स के साथ हिंसा की घटनाएं बढ़ना तय है।
~ डॉ राज शेखर यादव
फ़िज़िशियन,ब्लॉगर