Shri swami param hansha seva

  • Home
  • Shri swami param hansha seva

Shri swami param hansha seva The main aim is to help and guide people towards the finest methods to Salvation

17/07/2025

जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी ॥ तजउँ न नारद कर उपदेसू। आपु कहहिं सत बार महेसू ॥

14/07/2025
*एक अचंभा हमने देखा बन्दर दूहे गाय।**दूध दूध तो सब पी लेवे घी वनारस जाय।।*        *कबीरदास जी के भक्तों ने कहा कि महाराज...
16/05/2025

*एक अचंभा हमने देखा बन्दर दूहे गाय।*
*दूध दूध तो सब पी लेवे घी वनारस जाय।।*

*कबीरदास जी के भक्तों ने कहा कि महाराज! कुछ समझ में नहीं आया। कबीरदास जी बोले -- हो गया सत्संग। बन्दर गाय दुह रहा है और दूध खुद पी लेता है, घी वनारस चला जाता है, सत्संग हो गया। अरे कहा महाराज! समझाओ तो।*

*तो हमें जो समझ आई बात सो कह रहे हैं। बन्दर है मन और गौ इन्द्रियां, गो गोचर, गो नाम इन्द्रियों का है। यह बन्दर रूपी मन ही इन इन्द्रियों का दोहन कर रहा है। इनकी शक्ति का पान स्वयं कर रहा है। आंख कहती है कि अब तो हमें नींद लग रही है, देखते-देखते थक गये। मन कहता है कि नहीं, थोड़ी देर और देखो। कान कहता है सुनते-सुनते थक गए, मन कहता है थोड़ा और। आंख कहती है बुढ़ापे में नहीं दिखता, मन कहता है चश्मा बनवा लो, पर देखो। कान में मशीन लगवा लो, पर सुनो। पांव नहीं चल पा रहे हैं, मन कहता है थोड़ी दूर और, थोड़ी दूर और घूम कर आते हैं, चलो। मन इन इन्द्रियों से दिन-रात काम ले रहा है।*

*अच्छा हम लोग क्या करते हैं? गाय को खिलाते हैं चारा और निकालते हैं दूध। इन्द्रियों को जो सुख सुविधा चाहिए वह मन देता नहीं है और काम दिन-रात लेता है। तो यही बन्दर का गाय दुहना है। एक अचंभा हमने देखा बन्दर दूहे गाय। अच्छा अब यह क्या है कि दूध दूध तो सब पी लेवे घी वनारस जाय? विना दूध का घी। दूध तो पी लिया, अब घी बचा। तो विना दूध का घी -- इसका अर्थ है विना शक्ति का जीवन। यौवन की शक्ति तो यह सब पी गया, अब बुढ़ापा आया। यह विना दूध का घी है। शक्ति नहीं है स्वांस है बस। बुढ़ापे में कहां चले? काशी। ••• क्यों? वहाँ मरने से मुक्ति मिलेगी।*

*तो यह मन ही बन्दर है। इसीलिए हम लोगों का मन भी कभी-कभी ऐसी बात करता है जैसे बड़े वैराग्य में डूबा हुआ हो। लेकिन थोड़ी देर में बदल जाता है। तो ऐसे में हंसी आती है ना।*

*तो भगवान को हंसी आ गई। इसलिए --*

*सुनि विराग संजुत कपि बानी।*

*लक्ष्मण जी ने कहा -- कितनी बढ़िया बात सुग्रीव जी कह रहे हैं? भगवान ने कहा -- थोड़ा रुक जाओ, थोड़ी देर में दूसरी बात करेंगे। यह बन्दर है अभी इस शाखा पर दिखाई दे रहा है, थोड़ी देर में दूसरी शाखा पर दिखाई देगा।*

*लक्ष्मण जी बोले -- एक बात है, इस बन्दर को अब कोई डर नहीं है। •••क्यों? बोले -- चाहे जितनी उछल-कूद करे, पर इसे मदारी मिल गया है।*

*नट मरकट इव सबहिं नचावत।*

*भगवान नचा रहे हैं बन्दर को। अच्छा मदारी तो बन्दर को नचाता ही है, तो राम जी भी नचाते हैं। लेकिन एक अंतर है। वे जो मदारी बंदर को नचाते हैं वे द्वार-द्वार नचाते हैं और राम जी ऐसे मदारी हैं कि जिसे अपना बना लेते हैं उसे द्वार-द्वार नहीं, अपने ही द्वार नचाते हैं।*

*प्रभु ने कहा -- ठीक है, ठीक है सोचेंगे। अभी तो जो व्यवहारिक समस्या है उसका समाधान करो, जाओ। भगवान ने भेजा सुग्रीव को। सुग्रीव जी ने जाकर ललकारा, क्योंकि सोच रहे थे कि अपने को तो ललकारना ही है केवल। बाण तो भगवान चला ही देंगे, वचनबद्ध हैं। अब जैसे ही सुग्रीव ने बालि को ललकारा--*

*सुनत बालि क्रोधातुर धावा।*
*गहि कर चरन नारि समुझावा।।*

*(क्रमशः)*
*श्री राम जय राम जय जय राम*

राम कहत चल, राम कहत चल भाई रे।’’- संसार में हर कार्य करते समय नाम का स्मरण करते चलो अन्यथा आवागमन के चक्कर में पड़ जाओगे...
26/03/2025

राम कहत चल, राम कहत चल भाई रे।’’

- संसार में हर कार्य करते समय नाम का स्मरण करते चलो अन्यथा आवागमन के चक्कर में पड़ जाओगे। छूटने में अत्यन्त कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। नाम के लिए कोई जगह अपवित्र नहीं होती। हृदय में श्रद्धा नहीं एक परमात्मा के प्रति तथा स्मरण में नाम नहीं तो सभी मानव का स्थान अपवित्र है।

सुमिरन एक संस्कृत मूल का हिंदी शब्द है, जिसका अर्थ होता है:

1. स्मरण करना – किसी चीज़ को याद करना या विचार करना।

2. ईश्वर का ध्यान – भगवान या किसी दिव्य शक्ति का मनन करना या उनके नाम का जाप करना।

3. आत्मचिंतन – अपने भीतर झाँककर सोच-विचार करना।

यह शब्द प्रायः भक्ति साहित्य में ईश्वर की भक्ति या स्मरण के संदर्भ में प्रयोग होता है, जैसे – "नाम सुमिरन करना" का अर्थ होता है भगवान का नाम जपना या ध्यान करना।

🌷👌👌🙏🙏🙏ओम श्री सद्गुरुदेव भगवान की जय 🌷🌷🌷🌷🌷🌷

05/03/2025

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान, शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।

14/12/2024

निरंजन माला घटमें फिरे दिनरात ॥ टेक ॥
ऊपर आवे नीचे जावे श्वास श्वास चल जात
संसारी नर समझे नाही बिरथा उमर बिहात ॥ १ ॥
सोहं मंत्र जपे नित प्राणी बिन जिब्हा बिन दांत
अष्ट पहर में सोवत जागत कबहुं न पलक रुकात ॥ २ ॥
हंसा सोहं सोहं हंसा बारबार उलटात
सतगुरु पूरा भेद बतावे निश्चल मन ठहरात ॥ ३ ॥
जो योगीजन ध्यान लगावे बैठ सदा परभात
ब्रम्‍हानंद मोक्षपद पावे फेर जन्म नहि आत ॥ ४ ॥

14/12/2024

निरंजन पुरका पंथ कठिन है दूर ॥ टेक ॥
लाखों योजन पर्वत ऊंचा घाटी विकट करूर
करकर जतन फिरें बहुतेरे पहुंचे बिरला शूर ॥ १ ॥
तेजपुंजमय शिखर बना है चमके अदभुत नूर
चहुं दिश घोरघटा घन गाजे बाजे अनहद तूर ॥ २ ॥
सूरज चांद जले जहां दीपक नाचें पारियां हूर
गंगा जमुना निर्मल धारा बेग चले भरपूर ॥ ३ ॥
गगन महलमें तखत बिछा है बैठे आप हजूर
ब्रम्‍हानंद जो चलकर जावे पावे मोक्ष जरूर

12/10/2024

गुरु बिन भव निधि तरै न कोई, जौ बिरंचि संकर सम होई” का मतलब है कि भले ही कोई ब्रह्मा या शंकर के समान क्यों न हो, लेकिन बिना गुरु की कृपा के वह भवसागर पार नहीं कर सकता. गुरु के बिना शिष्य सफल नहीं हो सकता. गुरु, शिष्य को ऊपर चढ़ने का रास्ता बताते हैं और हर पल उसकी रक्षा करते हैं. गुरु-शिष्य संबंध का मूल आधार ब्रह्मज्ञान और उसकी साधना है.

Address


Telephone

+917828112345

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Shri swami param hansha seva posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Practice

Send a message to Shri swami param hansha seva:

Shortcuts

  • Address
  • Telephone
  • Alerts
  • Contact The Practice
  • Claim ownership or report listing
  • Want your practice to be the top-listed Clinic?

Share