Manasvi homeo clinic

Manasvi homeo clinic Manasvi homoeopathic clinic aim-आपका सावस्थ्य ही हमारी प्राथमिकता है ।

यह पोस्ट उन लोगों के लिए नहीं है जो "PCOD के 5 घरेलू इलाज" गूगल करते हैं।यह उनके लिए है जो सच में जानना चाहते हैं कि आखि...
07/05/2025

यह पोस्ट उन लोगों के लिए नहीं है जो "PCOD के 5 घरेलू इलाज" गूगल करते हैं।

यह उनके लिए है जो सच में जानना चाहते हैं कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में लड़कियों और महिलाओं को एक साथ ये सब क्यों हो रहा है।

हर पांचवीं लड़की आज PCOD से पीड़ित है। हर तीसरी महिला इंटरनेट पर यही सर्च कर रही है –

irregular periods, facial hair, acne, weight gain, infertility…

क्या कभी किसी ने पूछा है कि ये सब एक ही साथ क्यों हो रहा है?

PCOD का मतलब सिर्फ ये नहीं कि अंडाशय में सिस्ट हैं। इसका मतलब है कि शरीर में हार्मोन का संतुलन बिगड़ गया है –

Insulin का असर घटा, Testosteron बढ़ गया, Progesteron कम हो गया, Estrogen अस्थिर हो गया।

इसका असर सिर्फ पीरियड्स पर नहीं, पूरे शरीर और व्यवहार पर होता है।

नींद खराब होती है।

वज़न बढ़ता है, भले ही डाइटिंग कर रही हों।

चेहरे पर बाल आते हैं, बाल झड़ने लगते हैं।

त्वचा की स्थिति बदलती है, पेट फूलता है, मूड चिड़चिड़ा हो जाता है।

थकान लगातार बनी रहती है।

PCOD की दवा दी जाती है – Metformin, OCPs, हार्मोन बैलेंसिंग टैबलेट्स।

ये दवाएं लक्षणों को कुछ समय के लिए दबा देती हैं, पर अंदर का असंतुलन जस का तस बना रहता है।

ध्यान दें – इलाज का मतलब सिर्फ लक्षण रोकना नहीं होता।

PCOD की समस्या केवल शरीर की नहीं है – यह एक सामाजिक, व्यवहारिक और सिस्टम लेवल की समस्या बन चुकी है।

हर बार लड़की को कहा जाता है –

योग करो, स्ट्रेस मत लो, खाना सुधारो, वज़न कम करो…

यानि कि पूरी ज़िम्मेदारी सिर्फ महिला पर डाल दी जाती है।

कोई यह नहीं पूछता कि यह स्थिति इतने बड़े पैमाने पर क्यों बन रही है?

क्या स्कूलों में हार्मोनल स्वास्थ्य पर शिक्षा दी जाती है?

क्या हर लड़की को सही उम्र में पीरियड्स, थायरॉइड, वजन, नींद, और तनाव के आपसी संबंध समझाए जाते हैं?

PCOD दरअसल एक सिस्टम फेलियर है –

जहां मेडिकल साइंस केवल डायग्नोस करती है, कारणों की तह तक नहीं जाती।

जहां लड़कियों को जागरूक नहीं किया जाता, सिर्फ इलाज के नाम पर दवाएं दी जाती हैं।

जहां हर थकान को ‘आलस’ और हर अनियमित पीरियड को ‘नॉर्मल’ कहकर टाल दिया जाता है।

अब जरूरत है एक नए नजरिए की।

PCOD को सिर्फ बीमारी मानना गलत है।

ये एक संकेत है – कि शरीर और जीवन दोनों को दोबारा संतुलित करने की ज़रूरत है।

अगर आप इससे जूझ रही हैं – तो सिर्फ गोली मत लें, सवाल पूछें।

अपने शरीर को समझें।

सपोर्ट सिस्टम बनाएं।

और सबसे जरूरी – खुद को दोषी मत मानिए।

यदि आप तैयार हैं समझने और बदलाव की तरफ पहला कदम रखने को –

तो हमसे बात कर सकते हैं।

Inbox खुला है।

Call करें।

इलाज वहीं से शुरू होता है जहाँ समझ शुरू होती है।
Manasvi homeopathic clinic, sikar
Mob-92 16 24 7400(Dr. Ravi sunda)

अगर आज भारत में स्टेरॉइड्स पर पाबंदी लग जाए, तो शायद ज़्यादातर डर्मेटोलॉजिस्ट का धंधाही बंद हो जाए।मैं आमतौर पर किसी भी ...
03/05/2025

अगर आज भारत में स्टेरॉइड्स पर पाबंदी लग जाए, तो शायद ज़्यादातर डर्मेटोलॉजिस्ट का धंधा

ही बंद हो जाए।

मैं आमतौर पर किसी भी चिकित्सा पद्धति पर उंगली नहीं उठाता — हर विधा की अपनी सीमा और विशेषता होती है। लेकिन एक क्षेत्र है जहां अनुभव ने खुद सवाल खड़े कर दिए — और वो है डर्मेटोलॉजी।

हाल ही में मुझे एक पेशेंट ने अपनी आपबीती बताई उनको किसी त्वचा रोग के चलते एक मशहूर डर्मेटोलॉजिस्ट के पास जाना पड़ा। नाम बड़ा था, क्लिनिक शानदार था, और दीवारों पर डिप्लोमा और सर्टिफिकेट्स की कतारें किसी गहने की तरह टंगी थीं। फीस ₹900 सिर्फ सलाह के लिए ली गई — और इलाज से पहले माहौल ने ही मानो भरोसा खींच लिया।

लेकिन असली हैरानी तब हुई, जब डॉक्टर ने न पेशेंट को छुआ, न कोई जांच की, न ही BP या नाड़ी देखी। पेशेंट ने जब बताया कि आपकी दवा खाने के बाद कान के अंदर कुछ दाने निकल आए हैं, तो उन्होंने बड़ी सहजता से कहा — “ENT वालो को दिखाइए।”

उनका पूरा रवैया ऐसा था जैसे इस केस से कोई लेना-देना न हो। कोई आत्मविश्वास नहीं, कोई उत्सुकता नहीं, कोई चिकित्सकीय सोच नहीं — बस एक कोशिश कि किसी तरह मामला किसी और विशेषज्ञ के हवाले कर दिया जाए।

और यह सिर्फ शुरुआत थी।

पहली ही मुलाकात में, बिना ज्यादा पूछे, डॉक्टर ने अपने क्लिनिक की ही लैब में कुछ खून की जांचें लिख दीं। रिपोर्ट आई तो सिर्फ हल्का एनीमिया निकला — और सलाह मिली, “हरी सब्ज़ियाँ खाओ।” एक बार के लिए ये समझ नहीं आया कि अगर पहले से ही कोई गंभीर लक्षण नहीं था, कोई clinical suspicion नहीं था, तो फिर टेस्ट क्यों लिखवाया गया? क्या यह ज़रूरत थी, या सिर्फ रूटीन प्रक्रिया?

इलाज कहीं नहीं दिखा, बस एक डॉक्यूमेंटेड दौरा था — जहां मरीज हर कदम पर बिल की ओर बढ़ता है, और डॉक्टर हर मोड़ पर जिम्मेदारी से पीछे हटता है।

अब बात सिर्फ डॉक्टर या सिस्टम की नहीं रह जाती — इसमें पेशेंट का रवैया भी उतना ही दोषी लगता है। लोग अब इलाज के लिए नहीं, नाम और बोर्ड देखकर चलते हैं। Friday हो या humiliation, भीड़ उसी क्लिनिक में लाइन लगाती है, जहां उन्हें पहले ही दिन नज़रअंदाज़ किया गया हो। इलाज मिल न मिले, बस भीड़ का हिस्सा बनना जैसे भरोसे से बड़ा फैशन बन गया है।

सवाल यही है — दोष किसका है? सिस्टम का? डॉक्टर का? मरीज की मानसिकता का? या शायद… तीनों का?

जब स्टेरॉइड्स और कॉस्मेटिक स्क्रिप्शन की स्कीमें हट जाएंगी, तो क्या बचेगा?

इलाज, या रेफरल?

शायद अब वक्त है, जब हमें न केवल अपनी बीमारी पर ध्यान देना है, बल्कि उस इलाज पर भी सवाल उठाना है जो हमें दिया जा रहा है — और उस डॉक्टर से भी, जो हमें छुए बिना इलाज का दावा करता है।

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