Dhyan Abha

Dhyan Abha Osho Meditation Camp Facilitator. Living in Osho Sanzen, Solan
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28/08/2025

TA**RA : the sacred path
November 7 - 9 (3 days)
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opening : 6th evening.
with : मां ध्यान आभा & स्वामी अंतर जगदीश

स्थान : ओशो मंदाकिनी, वाराणसी
9336913528, 9839040207,

तंत्र ध्यान प्रक्रियाओं और ज्ञान का एक विशाल फलक है । अपने इसी बहुआयामी दृष्टिकोण के कारण 'तंत्र' शब्द बहुत रहस्यमय हो गया है ...
प्राचीन तंत्र नए युग के नियो तंत्र से बहुत भिन्न है ! यह neo ta**ra ही sexual ta**ra है जो आम जनता के बीच भ्रम की मुख्य वजह है ...
वास्तव में, तंत्र ध्यान और प्रज्ञा के एक विशाल आकाश का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें भारतीय परंपरा से विज्ञान भैरव तंत्र, वज्रयान की समृद्ध महासिद्धों से जन्मी बौद्ध परंपरा और थोड़ा तिब्बती तंत्र - ये सभी शामिल हैं। साधक के लिये इस ज्ञान का परिणाम है - बिना भ्रम के जीना, सहजता से जीना, पश्चाताप रहित जीना।

इस 3 दिवसीय शिविर में शिव, महासिद्धों और अतिशा के ध्यान हमें तंत्र के इस पवित्र मार्ग पर ले जाने वाले हैं...
ध्यान की यह यात्रा हमारे भीतर सोए वास्तविक ज्ञान का आह्वान करते हुए हमारे दिल से गुजरती है। यह निमंत्रण हमारे 3 दिनों के प्रयास को परिपक्व कर सकता है...हमारी साधना के लिये !
ओशो के प्रज्ञा-निर्देश इस पूरी यात्रा में हमारा नेतृत्व और मार्गदर्शन करेंगे !
**ra

27/08/2025

Swami Antar Jagdish -helps running & managingOsho Sanzen :meditation center in Himalaya...He facilitates meditation camps & workshops...---------------------...

ओशो का यह निष्कर्ष अनूठा है कि भारत की आजादी में अरविंद का जितना योगदान है, उतना किसी का भी नहीं है। लेकिन उसे देखना कठि...
26/08/2025

ओशो का यह निष्कर्ष अनूठा है कि भारत की आजादी में अरविंद का जितना योगदान है, उतना किसी का भी नहीं है। लेकिन उसे देखना कठिन है, और सिद्ध करना तो बिल्कुल असंभव है।

श्री अरविंद ने कहा कि मैं कुछ कर रहा हूं। और जो पहले मैं कर रहा था वह अपर्याप्त था; अब जो कर रहा हूं वह पर्याप्त है।

वह आदमी चौंका होगा जिसने पूछा। उसने कहा, यह किस प्रकार का करना है कि आप अपने कमरे में आंख बंद किए बैठे हैं! इससे क्या होगा?

तो अरविंद कहते हैं कि जब मैं करने में लगा था तब मुझे पता नहीं था कि कर्म तो बहुत ऊपर-ऊपर है, उससे दूसरों को नहीं बदला जा सकता। दूसरों को बदलना हो तो इतने स्वयं के भीतर प्रवेश कर जाना जरूरी है जहां से कि सूक्ष्म तरंगें उठती हैं, जहां से कि जीवन का आविर्भाव होता है।

और अगर वहां से मैं तरंगों को बदल दूं तो वे तरंगें जहां तक जाएंगी–और तरंगें अनंत तक फैलती चली जाती हैं। रेडियो की ही आवाज नहीं घूम रही है पृथ्वी के चारों ओर, टेलीविजन के चित्र ही हजारों मील तक नहीं जा रहे हैं, सभी तरंगें अनंत की यात्रा पर निकल जाती हैं।

जब आप गहरे में शांत होते हैं तो आपकी झील से शांत तरंगें उठने लगती हैं; वे शांत तरंगें फैलती चली जाती हैं। वे पृथ्वी को छुएंगी, चांद-तारों को छुएंगी, वे सारे ब्रह्मांड में व्याप्त हो जाएंगी। और जितनी सूक्ष्म तरंग का कोई मालिक हो जाए उतना ही दूसरों में प्रवेश की क्षमता आ जाती है.

तो अरविंद ने कहा कि अब मैं महा कार्य में लगा हूं। तब मैं क्षुद्र कार्य में लगा था; अब मैं उस महा कार्य में लगा हूं जिसमें मनुष्य से बदलने को कहना न पड़े और बदलाहट हो जाए। क्योंकि मैं उसके हृदय में सीधा प्रवेश कर सकूंगा।

अगर मैं सफल होता हूं–सफलता बहुत कठिन बात है–अगर मैं सफल होता हूं तो एक नए मनुष्य का, एक महा मानव का जन्म निश्चित है।

लेकिन जो व्यक्ति पूछने गया था वह असंतुष्ट ही लौटा होगा। यह सब बातचीत मालूम पड़ती है। ये सब पलायनवादियों के ढंग और रुख मालूम पड़ते हैं। खाली बैठे रहना पर्याप्त नहीं है, अपर्याप्त है।

इसलिए लाओत्से कहता है, ‘महा चरित्र अपर्याप्त मालूम पड़ता है।’ इसलिए हम पूजा जारी रखेंगे गांधी की; अरविंद को हम धीरे-धीरे छोड़ते जाएंगे।

लेकिन भारत की आजादी में अरविंद का जितना हाथ है उतना किसी का भी नहीं है। पर वह चरित्र दिखाई नहीं पड़ सकता। आकस्मिक नहीं है कि पंद्रह अगस्त को भारत को आजादी मिली; वह अरविंद का जन्म-दिन है।

पर उसे देखना कठिन है। और उसे सिद्ध करना तो बिलकुल असंभव है। क्योंकि उसको सिद्ध करने का क्या उपाय है? जो प्रकट, स्थूल में नहीं दिखाई पड़ता उसे सूक्ष्म में सिद्ध करने का भी कोई उपाय नहीं है।

भारत की आजादी में अरविंद का कोई योगदान है, इसे भी लिखने की कोई जरूरत नहीं मालूम होती। कोई लिखता भी नहीं। और जिन्होंने काफी शोरगुल और उपद्रव मचाया है, जो जेल गए हैं, लाठी खाई है, गोली खाई है, जिनके पास ताम्रपत्र है, वे इतिहास के निर्माता हैं।

इतिहास अगर बाह्य घटना ही होती तो ठीक है; लेकिन इतिहास की एक आंतरिक कथा भी है। तो समय की परिधि पर जिनका शोरगुल दिखाई पड़ता है, एक तो इतिहास है उनका भी। और एक समय की परिधि के पार, कालातीत, सूक्ष्म में जो काम करते हैं, उनकी भी एक कथा है।

लेकिन उनकी कथा सभी को ज्ञात नहीं हो सकती। और उनकी कथा से संबंधित होना भी सभी के लिए संभव नहीं है। क्योंकि वे दिखाई ही नहीं पड़ते। वे वहां तक आते ही नहीं जहां चीजें दिखाई पड़नी शुरू होती हैं। वे उस स्थूल तक, पार्थिव तक उतरते ही नहीं जहां हमारी आंख पकड़ पाए।

तो जब तक हमारे पास हृदय की आंख न हो, उनसे कोई संबंध नहीं जुड़ पाता।

इतिहास हमारा झूठा है, अधूरा है, और क्षुद्र है।

हम सोच भी नहीं सकते कि बुद्ध ने इतिहास में क्या किया।
ओशो
Sanzen India

"silence is the soul of meditation..." ओशो ने यह अनेक बार कहा है और केवल ओशो ही नहीं, हर गुरु ने इस पर जोर दिया है...यह ...
23/08/2025

"silence is the soul of meditation..."

ओशो ने यह अनेक बार कहा है और केवल ओशो ही नहीं, हर गुरु ने इस पर जोर दिया है...

यह ओशो silence retreat हमें यही अनुभव कराएगा कि कैसे !
ओशो sanzen में ये 4 दिन मौन के होंगे। सहजता से उपजा मौन फलदाई होता है जिसमें साधक को संघर्ष से गुजरना नहीं पड़ता।
सुबह सूर्योदय ध्यान, सत्संग, मौन बैठना, बारदो, zazen और सुखदायक संगीत साधकों को प्रत्येक बीतते दिन के साथ और अधिक गहराई में जाने में मदद करेंगे।
हर दिन संध्या सत्संग में ओशो ऊर्जा हम सब पर बरसेगी। यह एक advance ग्रुप है।
स्वयं का निकटता से अनुभव करना है तो स्वागत है :-

ओशो silence retreat (4 days)
2 - 5 oct, 2025
(opening - 1st oct, evening)
with : ma dhyan abha
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ओशो SANZEN, Kotla, Solan, HP
088943 51962
(advance booking)




इश्क़ - ए - हक़ीक़ी : The Sufi Way -----------------–------------------------21 -23 nov' 2025 (open - 20th eve)------------...
20/08/2025

इश्क़ - ए - हक़ीक़ी : The Sufi Way
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21 -23 nov' 2025 (open - 20th eve)
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With : Ma Dhyan Abha & Swami Antar Jagdish

"सूफीवाद का सीधा सा अर्थ है - कोई अपने दिल में घुलने-मिलने के लिए तैयार है..." ओशो

सूफ़ीवाद या तसव्वुफ़ समर्पण का मार्ग है और इस शुद्ध प्रेम और भक्ति की स्थिति ही सूफ़ीवाद में अंतिम अनुभूति है।

सूफी साधना यात्रा में ज़िक्र, एहसान, हातिफ़-ए-ग़ैब और whirling का अभ्यास साधक को मदद करता है और धीरे-धीरे साधक की गहनतम ऊर्जा यानी लतीफ़ा सक्रिय होने लगते है।
सूफी साधना में लताइफ हमारे भीतर सोई विधायक शक्ति के 5 मान्य अक्स हैं । सूफी मार्ग और इसका अभ्यास हमारे वास्तविक स्वरूप को अनुभवात्मक तरीके से प्रकट करने में मदद कर सकता है।
इस मार्ग पर यात्रा और उसका अनुभव हृदय का सत्य के प्रति प्रेम बन जाता है।
इस यात्रा में ओशो हमारे मार्गदर्शक होंगे...

आइए इस नरम जादू का अनुभव करने के लिए !

O-sho amritdham, jabalpur ..

7828184233🤙
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19/08/2025
❤️💃💃*स्वतंत्रता* 💃💃❤️ मैं ऐसे गुलामों को जानता हूं, जो मानते हैं कि वे स्वतंत्र है। और उनकी संख्या थोड़ी नहीं है, वरन सार...
10/08/2025

❤️💃💃*स्वतंत्रता* 💃💃❤️

मैं ऐसे गुलामों को जानता हूं, जो मानते हैं कि वे स्वतंत्र है।

और उनकी संख्या थोड़ी नहीं है, वरन सारी पृथ्वी ही उनसे भर गई है। और चूंकि अधिक लोग उनके ही जैसे हैं, इसलिए उन्हें स्वयं की धारणा को ठीक मान लेने की भी सुविधा है, लेकिन मेरा हृदय उनके लिए आंसू बहाता है, क्योंकि गुलाम होते हुए भी उन्होंने अपने आपको स्वतंत्र मान रखा है।

और इस भांति स्वयं ही अपने स्वतंत्र होने की प्राथमिक संभावना को ही समाप्त कर दिया है।

धर्मों के नाम से संप्रदायों में कैद व्यक्ति ऐसी ही स्थिति में है।

इस भांति की परतंत्रता में निश्चय ही सुविधा है और सुरक्षा है। सुविधा है, स्वयं विचार करने के श्रम से बचने की और सुरक्षा है, सबके साथ होने की।

और इसलिए ही जो कारागृह है, उन्हें नष्ट करने की तो बात ही दूर, कैदी गण ही उसकी रक्षा के लिए सदा प्राण देने को तत्पर रहते हैं!

मनुष्य भी कैसा अदभुत है, वह चाहे तो अपने कारागृहों को ही मोक्ष भी मान सकता है! लेकिन इससे बदतर गुलामी कोई दूसरी नहीं हो सकती है। स्वतंत्रता पाने के लिए सबसे पहले तो यही आवश्यक है कि हम जाने कि हमारा चित्त किसी गहरी दासता में है, क्योंकि जो यही नहीं जानता, वह स्वतंत्रता के लिए अभीप्सा भी अनुभव नहीं कर सकता।

कैद की पीड़ा ही मुक्ति की आकांक्षा में बदल जाती है। फिर वास्तविक बंधन बाहर नहीं, भीतर है, इसलिए उन्हें पहचानना भी आसान नहीं। वे इतने परिचित भी है कि हमने उन्हें बंधन मानना ही छोड़ दिया है।

उनका दंश अनुभव न हो, इसलिए हमने उन्हें खूब सजीली बंदनवारों से भी गूंथ दिया है। परंपराएं, अंधविश्वास, रूढ़ियां संप्रदाय, शास्त्र और शब्द हमारे मन को बुरी तरह बांधे हुए हैं। उनके बाहर हमने सोचना और देखना सभी बंद कर दिया है। ऐसी अवस्था में ज्ञान का उदभव कैसे होगा?

समाज से दिए हुए पक्षपात और संस्कारों की दासता को जो नहीं तोड़ सकता है, वह सत्य को और स्वयं को जानने का अधिकारी ही नहीं है।

सत्य पाने को अधिकार चित्त की परिपूर्ण स्वतंत्रता में ही प्राप्त होता है। क्या जीवन में रास्ता नहीं मिलता है? तो उसे बनाओ। वस्तुतः बना बनाया कोई रास्ता ही नहीं है।

प्रत्येक को अपने श्रम से अपना मार्ग बनाना पड़ता है और अपने ही विवेक के प्रकाश में उस पर यात्रा भी करनी होती है।

जीवन भी दूसरों से नहीं मिलता और न ही जीवन का मार्ग मिलता है। जड़ता ही बंधी हुई लीकों पर गति करती है, जीवन नहीं है।

जीवन तो प्रतिपल अज्ञात में प्रवेश है, इसलिए उसके लिए कोई पूर्व निर्धारित मार्ग नहीं है। और न ही होना भी चाहिए। जीवन के भीतर से ही उसका मार्ग भी निकलता है।

और मेरी दृष्टि में मनुष्यात्मा का इससे बड़ा और कोई सन्मान नहीं हो सकता।

क्योंकि मार्ग पर चलने की स्वतंत्रता कोई वास्तविक स्वतंत्रता नहीं है। वास्तविक स्वतंत्रता तो स्वयं के लिए स्वयं ही मार्ग निर्मित करने में निहित होती है।

आप चाहते है कि एक शब्द में, मैं अपने समस्त दर्शन को कहूं? तो मैं कहूंगा- स्वतंत्रता।

परतंत्रता जड़ता है और स्वतंत्रता आत्मा। जीवन का विकास जड़ता से आत्मा की ओर है अर्थात परतंत्रता की ओर है।

मैं मनुष्य के चित्त को सब भांति स्वतंत्र देखना चाहता हूं। उस स्वतंत्रता में ही उसके सत्य तक और स्वयं तक पहुंचने की संभावना है।

स्वतंत्रता से बड़ा न कोई आनंद है, न कोई उपलब्धि। क्योंकि उसमें ही उस बीज के वृक्ष तक पहुंचने का द्वार है जो कि मनुष्य में छुपा हुआ है। मनुष्य तो प्रारंभ ही है। वह कोई अंत नहीं। अंत तो हैं परमात्मा।

लेकिन, आंतरिक स्वतंत्रता के अभाव में मनुष्य अपने अंत तक कभी नहीं पहुंच सकता।

इससे बड़ी पीड़ा ही क्या होगी कि बीज, बीज ही रह जावे और जो हो सकता था वह हो सके। स्वयं की पूर्ण संभावना को पाए बिना आनंद और कृतार्थता कैसे उपलब्ध हो सकती है? धन्यता तो केवल उन्हीं का भाग्य बनती है, जो कि स्वयं की पूर्णता को प्राप्त हो जाते है। ❤ ओशो ❤
#ओशो

मित्रवर, ओशो सांजेन द्वारा प्रस्तुत इस श्रृंखला में हम वर्षों पहले स्वामी आनंद वैराग्य के निर्देशन में तैयार एवम ....

एक छोटी सी घटना, और अपनी बात मैं पूरी करूं। एक घटना मैं पढ़ रहा था, दो दिन हुए। अमेरिका का एक अभिनेता, फिल्म अभिनेता मरा।...
06/08/2025

एक छोटी सी घटना, और अपनी बात मैं पूरी करूं। एक घटना मैं पढ़ रहा था, दो दिन हुए। अमेरिका का एक अभिनेता, फिल्म अभिनेता मरा। मरने के पहले उसने--कोई दस साल पहले--वसीयत की थी कि मुझे मेरे छोटे से गांव में ही दफनाया जाए।
लोग महात्माओं की वसीयतें नहीं मानते, अभिनेताओं की वसीयत कौन मानेगा? जब वह मरा तो अपने गांव से दो हजार मील दूर मरा। कौन फिकर करता? मरने के बाद महात्माओं की कोई फिक्र नहीं करता तो अभिनेताओं की कौन करता? उसको तो वहीं कहीं ताबूत में बंद करके दफना दिया। मरते क्षण भी उसने कहा कि देखो, मुझे यहां मत दफना देना, अगर मैं मर जाऊं। मैं आखिरी बार तुम से कह दूं कि मुझे मेरे गांव तक पहुंचा देना, जहां मैं पैदा हुआ था। उसी गांव में मुझे दफनाया जाए। वह मर गया। लोगों ने कहा, मरे हुए आदमी की क्या बात है! उसको ताबूत में बंद करके दफना दिया।
लेकिन रात ही भयंकर तूफान आया, उसकी कब्र उखड़ गई। उसकी कब्र के पास खड़ा हुआ दरख्त गिर गया। और उसका ताबूत समुद्र में बह गया और दो हजार मील ताबूत ने समुद्र में यात्रा की और अपने गांव के किनारे जाकर लग गया। और जब लोगों ने ताबूत खोला तो सारा गांव इकट्ठा हो गया। वह तो उनके गांव का बेटा था जो सारी दुनिया में जग-जाहिर हो गया था। उन्होंने उसे उसी जगह दफना दिया जहां वह पैदा हुआ था।
उस अभिनेता की जीवन-कथा मैं पढ़ रहा था। उसके लेखक ने लिखा है कि क्या यह उसके संकल्प का परिणाम हो सकता है? यह क्वेश्चन उठाया है।
अगर मैं आदमियों की तरफ देखूं तो शक होता है कि यह संकल्प का परिणाम कैसे हो सकता है? आदमी जिंदगी में जहां पहुंचना चाहता है वहां जिंदा रहते नहीं पहुंच पाता। यह आदमी मर कर जहां पहुंचना चाहता था कैसे पहुंच पाएगा? लेकिन दो हजार मील की यह लंबी यात्रा और अपने गांव पर लग जाना और उसी रात तूफान का आना, ऐसा भी नहीं मालूम पड़ता कि संकल्प से बिल्कुल हीन हो। संकल्प इसमें रहा होगा।
संकल्प की इतनी शक्ति है कि मुर्दा भी यात्रा कर सकता है, तो क्या हम जिंदे लोग यात्रा नहीं कर सकते? लेकिन हमने कभी यात्रा ही नहीं करनी चाही है, हमने कभी अपनी विल को ही नहीं पुकारा है। हमने कभी सोचा ही नहीं कि हम भी कुछ हो सकते हैं या हम भी कुछ होने को पैदा हुए हैं या हमारे होने का भी कोई गहरा प्रयोजन है।

ओशो ....

       कुछ यादें ओशो sadhnapath,  nargol की..🙏
26/07/2025



कुछ यादें ओशो sadhnapath, nargol की..🙏

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Solan
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