01/12/2020
Brown Rice और White Rice
जब हम डाइट की बात करते हैं तो पिछले कुछ वर्षों में एक आम मिथक निकलकर सामने आई है और वह ब्रायन राइस की है।जब हम ब्राउन राइस और वाइट राइस की तुलना करते हैं तो अधिकतर लोगों को नहीं पता कि इनमे क्या अंतर होता है और Myths का प्रॉब्लम यह है कि वह फैशन की तरह यूज होती है।तो अगर आप किसी से पूछेंगे कि आप ब्राउन राइस क्यों खा रहे हैं तो उसको इसका उत्तर नहीं पता होगा या फिर वह एक कॉमन उत्तर देगा कि आज कल सभी कहते हैं।तो प्रॉब्लम यह है कि जब आप बीमार होते हैं तो आप डॉक्टर के पास जाते हैं, सभी के पास नहीं जाते।तो कृपया इन सभी से मत पूछिए क्योंकि इन सभी को नहीं पता होता कि किसी भी चीज के पीछे रीजन या फेक्ट क्या है।
1) जब हम चावल की बात करते हैं तो चावल की उत्पत्ति हजारों साल पहले हुई थी और तब से हम चावल को सुरक्षित तरीके से खा रहे हैं।आज भी 60 से 70% भारतीय वाइट राइस खाते हैं। जब हम चावल के एक दाने को लेते हैं तो उसकी एक बाहरी परत होती है जिसे हम कहते हैं "Hull" या "Rice Husks"।जब हम चावल को फैक्ट्री में प्रोसेस करते हैं तो इस परत को हटा दिया जाता है।इसके अंदर एक और परत होती है जिसे हम कहते हैं ब्रान (BRAN) ! यह सामान्य ब्राउन रंग की परत होती है और ब्राउन राइस इसी को कहते हैं।अगर हम इस परत को हटा दे तो बचता है "एंडोस्पर्म"(Endosperm)
यानी "वाइट राइस".... जिसमें कार्बोहाइड्रेट ज्यादा होते हैं।अब जो मुख्य कारण निकल कर आते हैं, वह है कि इस ब्राउन परत में थोड़े से माइक्रोन्यूट्रिएंट्स होते हैं,फाइबर होता है लेकिन इसके पीछे जो असली बातें या कारण है, यह लोगों को नहीं पता।अब एक-एक करके सारी myths को क्लियर करते हैं और आपको जानकर बहुत अचंभा लगेगा कि ब्राउन राइस आपकी बॉडी के लिए अच्छे नहीं बल्कि नुकसान दायक है।ब्राउन राइस को लेकर पहली mythयह है कि इसमें माइक्रोन्यूट्रिएंट्स ज्यादा होते हैं। बिल्कुल Researchers ने यह बताया है कि जो ब्राउन परत होती है उसमें 50-60% ज्यादा न्यूट्रिएंट्स या माइक्रोन्यूट्रिएंट्स होते हैं और अगर हम ध्यान से देखें तो उसका अमाउंट बहुत ही कम होता है।तो अगर एक सामान्य व्यक्ति सामान्य खाना खा रहा है या Multivitamin ले रहा है तो उसे उससे कई गुना ज्यादा न्यूट्रिएंट्स मिल रहे हैं।लेकिन एक फैक्ट जो आपको नहीं पता वह यह है कि इसी ब्राउन परत में एक एंटीन्यूट्रिएंट् पाया जाता है जिसका नाम होता है फाईटेट (Phytate)!यह फाइटेट एंटीन्यूट्रिएंट् इसलिए कहलाता है क्योंकि यह बाकी के माइक्रोन्यूट्रिएंट्स कि absorption में प्रॉब्लम करता है।तो जो भी एक्स्ट्रा न्यूट्रीशन आपको ब्राउन राइस से मिल रहे होते हैं, वह अवशोषित नहीं होते क्योंकि यह फाइटेट उन को अवशोषित नहीं होने देता।
2) सेकंड पॉइंट जो अक्सर डायटिशियन या ट्रेनर आप को बताते हैं। वह यह है कि ब्राउन राइस का ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाइट राइस से कम होता है।लेकिन अगर आप उनसे पूछेंगे कि यह कितना होता है शायद वे इसका उत्तर नहीं देंगे।वह इसलिए कि ब्राउन राइस और बासमती राइस का ग्लाइसेमिक इंडेक्स लगभग बराबर होता है और अगर हम glycemic index की बात करें तो क्या मैं आपसे पूछ सकता हूं कि लास्ट टाइम आपने सिर्फ राइस कब खाए थे?हम कभी भी चावल को अकेले नहीं खाते। हम इसे दाल राजमा छोले सब्जी के साथ खाते हैं और जब दो foods मिलते हैं तो हम ग्लाइसेमिक इंडेक्स के कांसेप्ट का प्रयोग नहीं करते।हम प्रयोग करते हैं ग्लिसमिक लोड का।तो जब हम चावल को किसी भी सब्जी दाल छोले राजमा के साथ खाते हैं तो उसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स मैटर नहीं करेगा। इस बात में कोई शक नहीं है कि नॉर्मल वाइट राइस का ग्लाइसेमिक इंडेक्स हाई होता है पर हाई ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले फूड की भी अपनी एक जगह है।उदाहरण के लिए पोस्ट वर्कआउट न्यूट्रीशन में जहां आपकी मसल ग्लाइकोजन को रिस्टोर करना हो, वाइट राइस बहुत ही अमेजिंग फूड है। असल में बॉडीबिल्डिंग जैसे खेल में कंपटीशन से पहले या नॉर्मल केस में भी वर्कआउट के बाद वाइट राइस और चिकन सामान्य तौर पर लिया जाता है।
3) अगला पॉइंट आता है फाइबर का।काफी डाइटिशियन और न्यूट्रीशनिस्ट कहते हैं कि ब्राउन राइस में फाइबर ज्यादा होता है। पहले तो कितना ज्यादा होता है? मुश्किल से बस एक-दो ग्राम का सारा अंतर आता है और यह अंतर भी काफी लोगों को नुकसान करता है क्योंकि जो ब्राउन राइस की ब्राउन परत होती है, यानी ब्रान होता है। वह सब को आसानी से डाइजेस्ट नहीं होता है। जिन लोगों को पाचन क्षमता की प्रॉब्लम है, यह उनकी पाचन क्षमता को प्रॉब्लम करता है।
4) अगला पॉइंट आता है कुल कैलोरी का। ब्राउन राइस की कुल कैलोरीज नॉरमल वाइट राइस से ज्यादा होती है। वह इसलिए क्योंकि जो राइस ब्रान ऑयल है, वह इसी ब्राउन परत से निकाला जाता है तो जब आप नॉर्मल ब्राउन राइस लेते हैं तो इसमें फैट कंटेंट वाइट राइस से ज्यादा होता है। लेकिन यह सारे पॉइंट तो ठीक है लेकिन एक पॉइंट ऐसा है जो शायद सभी को नहीं पता होगा, वह है आर्सेनिक (Earcanic) कंटेंट।जब हम चावल को उगाते हैं तो वह सामान्यत पानी में लगाया जाता है और जब उस पर कीटनाशकों का स्प्रे किया जाता है जिनमे मुख्यतः आर्सेनिक होता है तो उस आर्सेनिक को जो सबसे ज्यादा अवशोषित करता है वह उसकी ब्राउन परत। बहुत सारी स्टडीज में देखा गया है कि जिन फूड्स मे मुखयत बेबी फूड्स में ब्राउन राइस का यूज किया गया है, उसका आर्सेनिक कंटेंट बहुत ज्यादा है और सटडीज में दिखाया गया है कि आर्सेनिक लंग और ब्लड कैंसर जैसी प्रॉब्लम का मुख्य कारण है।
यह तो हो गई कुछ साइंटिफिक रिसर्च की बातें, अब है कुछ सामान्य जानने वाली बातें। उदाहरण के तौर पर जब वर्ल्ड की लांगेस्ट लिविंग पापुलेशन पर रिसर्च की गई तो "जापान का ओकिनावा आईलैंड है जहां पर 100 साल से ज्यादा जीने वाले लोग रहते हैं" तो पाया कि बचपन से वे नॉर्मल वाइट राइस खा रहे हैं।अगर हम अपने देश भारत में दक्षिणी भारत या पूर्वी भारत की तरफ जाते हैं तो उनका जो मुख्य भोजन है वह है "वाइट राइस" ना कि "ब्राउन राइस"। ब्राउन राइस खाने में कोई प्रॉब्लम नहीं है।असल में मार्केट में बहुत तरह के चावल आते हैं जैसे कि ब्राउन राइस पर्पल राइस रेड राइस या ब्लैक राइस इनके सबके अपने-अपने बेनिफिट या नेगेटिव पॉइंट है। लेकिन प्रॉब्लम सिर्फ एक है। वह है "मात्रा"। अगर मैं आपको बोलूं के ब्राउन राइस या वाइट राइस में से कुछ भी खाइए और आप उसको बहुत ज्यादा मात्रा में खा रहे हैं तो प्रॉब्लम वहां आती है, लेकिन अगर आप थोड़ी मात्रा में खा रहे हैं तो ब्राउन या वाइट में कोई ज्यादा फर्क नहीं होगा। जबकि सवाल में आप मुझसे व्यक्तिगत तौर पर पूछे तो मुझे राजमा और वाइट राइस ही पसंद रहेंगे ना कि ब्राउन या ब्लैक राइस। इसलिए कृपया जब भी कोई myth या fact फूड या सप्लीमेंट को लेकर आपके सामने आती है तो थोड़ा सोचो और उसके बारे में पढ़िए,गहराई मे जाइए और तभी आप जान पाएंगे कि फैक्ट क्या है और myth क्या है। तो कृपया भेढ़ चाल की तरह लोगों के पीछे मत जाइए। वह बस आपको भ्रमित करेंगे। तो आज से अपने वाइट राइस खाइए। उसकी मात्रा कम रखीए। बाकी कोई प्रॉब्लम नहीं है। तो अब आज के बाद आपका कोई मित्र या कोई ट्रेनर या डाइटिशियन आप से कहता है कि वाइट राइस मत खाइए, ब्राउन राइस खाइए तो आप उनसे सिर्फ एक ही चीज बोलना कि मुर्ख मत बनीए ।