06/03/2025
*🌹।।जनेऊ।।🌹*
जनेऊ का नाम सुनते ही सबसे पहले जो चीज़ मन मे आती है वो है धागा दूसरी चीज है ब्राम्हण।
जनेऊ का संबंध क्या सिर्फ ब्राम्हण से है, ये जनेऊ पहनाए क्यों है, क्या इसका कोई लाभ है,
जनेऊ क्या, क्यों, कैसे आज आपका परिचय इससे ही करवाते हैं।
जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र,
व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र के नाम से भी जाना जाता है।
हिन्दू धर्म के 24 संस्कारों है। आप सभी को 16 संस्कार पता होंगे लेकिन वो प्रधान संस्कार है। 8 उप संस्कार है। जिनके विषय मे आगे आप
को जानकारी दूँगा। 24 संस्कारों में से एक
‘उपनयन संस्कार’ के अंतर्गत ही जनेऊ पहनी जाती है। जिसे
‘यज्ञोपवीतधारण करने वाले व्यक्ति को सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है।
उपनयन का शाब्दिक अर्थ है "सन्निकट ले जाना" और उपनयन संस्कार का अर्थ है-"ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना"।
हिन्दू धर्म में प्रत्येक हिन्दू
का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना।
हर हिन्दू जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का
पालन करे।
ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है।
जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है।
द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म।
मतलब सीधा है जनेऊ संस्कार के बाद ही शिक्षा का अधिकार मिलता
था और जो शिक्षा नही ग्रहण करता था उसे शूद्र की श्रेणी में रखा जाता
था (वर्ण व्यवस्था)।
लड़की जिसे आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना हो, वह जनेऊ धारण
कर सकती है।
ब्रह्मचारी तीन और विवाहित छह धागों की जनेऊ पहनता है।
यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के बतलाए गए हैं।
जनेऊ का आध्यात्मिक महत्व:-
जनेऊ में तीन सूत्र,
त्रिमूर्ति ब्रह्मा विष्णु
और महेश के प्रतीक है।
देवऋण पितृऋण और
ऋषिऋण के प्रतीक है।
सत्व, रज और तम के
प्रतीक होते है।
साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक है। तो तीन आश्रमों के प्रतीक भी।
जनेऊ के एक-एक तार
में तीन-तीन तार होते हैं।
अत: कुल तारों की
संख्या नौ होती है।
इनमे एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं।
इनका मतलब है की हम मुख से अच्छा बोले और खाएं, आंखों से अच्छा देंखे और कानों से अच्छा सुने।
जनेऊ में पांच गांठ लगाई जाती है। जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और
मोक्ष का प्रतीक है।
ये पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों के भी प्रतीक है।
जनेऊ की लंबाई:-
जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होती है क्यूंकि जनेऊ धारण करने वाले
को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए।
32 विद्याएं चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ,
नौ अरण्यक मिलाकर होती है।
64 कलाओं में वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य
कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण,
सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान
आदि आती हैं।
जनेऊ के लाभ:-
प्रत्यक्ष लाभ जो आज
के लोग समझते है:-
जनेऊ बाएं कंधे से दाये
कमर पर पहनना चाहिये।
जनेऊ में नियम है कि मल - मूत्र विसर्जन के दौरान
जनेऊ को दाहिने कान पर
चढ़ा लेना चाहिए और हाथ
स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए।
इसका मूल भाव यह है कि
जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो।
यह बेहद जरूरी होता है।
मतलब साफ है कि जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति ये ध्यान रखता है कि मलमूत्र करने के बाद खुद को साफ करना है इससे उसको इंफेक्शन का
खतरा कम से कम हो जाता है।
वो लाभ जो अप्रत्यक्ष है
जिसे कम लोग जानते है।
शरीर में कुल 365 एनर्जी
पॉइंट होते हैं। अलग - अलग बीमारी में
अलग - अलग पॉइंट असर करते हैं। कुछ पॉइंट कॉमन भी होते हैं।
एक्युप्रेशर में हर पॉइंट को
दो - तीन मिनट दबाना होता है और जनेऊ से हम यही काम करते है। उस point को हम एक्युप्रेश करते है।
कैसे आइये समझते है:-
कान के नीचे वाले हिस्से
(इयर लोब) की रोजाना पांच मिनट मसाज करने से याददाश्त बेहतर होती है।
यह टिप पढ़नेवाले बच्चों
के लिए बहुत उपयोगी है।
अगर भूख कम करनी है तो खाने से आधा घंटा पहले कान के बाहर
छोटेवाले हिस्से (ट्राइगस) को दो मिनट उंगली से दबाएं। भूख कम लगेगी।
यहीं पर प्यास का भी पॉइंट होता है।
निर्जला व्रत में लोग इसे दबाएं तो प्यास कम लगेगी।
एक्युप्रेशर की शब्दवली में इसे point जीवी 20 या डीयू 20- इसका लाभ आप देखे-
जीबी 20 - कहां:-
कान के पीछे के झुकाव में।
उपयोग:-
डिप्रेशन, सिरदर्द, चक्कर और सेंस ऑर्गन यानी नाक, कान और आंख से जुड़ी बीमारियों में राहत।
दिमागी असंतुलन, लकवा और यूटरस की बीमारियों में असरदार।
इसके अलावा इसके कुछ अन्य लाभ जो क्लीनिकली प्रूव है:-
1. बार - बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से ऐसे स्वप्न नहीं आते।
2. जनेऊ के हृदय के पास से गुजरने से यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है, क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होने लगता है।
3. जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति सफाई नियमों में बंधा होता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जीवाणुओं के रोगों से बचाती है।
4. जनेऊ को दायें कान पर धारण करने से कान की वह नस दबती है, जिससे मस्तिष्क की कोई सोई हुई तंद्रा कार्य करती है।
5. दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।
6. कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जागरण होता है।
7. कान पर ये जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है।