जय जिनेन्द्र,
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ठलुआ एक महान कार्य क्षेत्र है जहाँ लोग अपने सारे जरुरी कामोँ को छोड़कर इस क्षेत्र का रुख करते हैँ
इस क्षेत्र मे मनुष्य के अन्दर से छल कपट की भावना समाप्त हो जाती है
ठलुआई करते हुये लोगो के अन्दर के सारे गम खो जाते है वो किसी दूसरे संसार मे खो जाते हैँ
ठलुआ हमेशा खुश रहते है वो हर पल मुस्कुराकर जीते है
उन्हे न खुद की फिक्र न कल की चिन्ता बस इस लम्हे को जीना उनकी फितरत है
"ठलुआ" शब्द की उत्पत्ति समझना साधारण बात नहीं है .
जिस प्रकार तरकारी में अलुआ,
सावन में झलुआ ,
शाखामृग में मलुआ,
कुत्तों में कलुआ,
सेनापति में नलुआ,
पकवान में हलुआ,
जंगली जानवरों में भलुआ ,
रिश्तों में पलुआ,
शरीर के अंगों में तलुआ ,
सौदा-सुलुफ में घलुआ का महत्व है,
उसी प्रकार सर्वसाधारण में ठलुआ का महत्व है. ”
ठलुआपन मेँ भी बहुत बड़ा ज्ञान है
ठलुओँ ने ही किया आविष्कार है
एक ठलुआ के कारण ही रात को मिलता प्रकाश है
ठलुये ने ही उड़ाया आकाश मेँ जहाज है
ठलुओँ से ही विकसित विज्ञान है
ठलुआपन ही विकास है
ठलुआई ही विज्ञान है
एक शब्द मे ठलुआ को Creative अर्थात रचनात्मक कह सकते है
१- दुखी हों, किन्तु रोयें नहीं, रोयें भी तो रोने में हसने का आनंद लें.
२- अपने सिवाय सारे संसार को मूर्ख माने.
धन कमा लेने के कौशल को मूर्खता नहीं तो कम से कम धूर्तता समझें.
३- भूखों मरते हों किन्तु स्वभिमानवश भीख के लिए हाथ न पसारें . पसारें भी तो अपने दाता की ओर सिंह के सामान गुर्राते रहें.
४- धनवान हों तो इतनी की बिना हाथ-पैर चलाए घर में सोने-चांदी के ढेर लगे रहें
किन्तु हिसाब-किताब करते समय उनका सर दर्द करने लगे.
५-विद्वान हों किन्तु अपने आदर, सम्मान की आकांछा न हो.
६- नौकरीपेशा हों, जिनकी नौकरी छूट गई हो अथवा छूटने वाली हो और उनके भविष्य में नौकरी मिलने की आशा भी न हो तो भी मस्त हों.
७-बीमार हों किन्तु शेयासेवी न हों, आसन्न मृत्यु न हो,
परन्तु जीने की भी पक्की आशा न रखते हों.
८- बातूनी हों, पेट भरने लायक कमाने की धूर्तता रखते हों किन्तु रुपया - पैसा कमाने की बात करना असभ्यता समझते हों.
९- ठंडाई -भांग के शौक़ीन हों. न चांटे हों तो बुरा भी न माने.
रसखान जी ने भी ठलुओँ की महत्ता पर प्रकाश डालते हुये लिखा है,
'मानुष होँ तो वही रसखान
जो बैठे भोर ही नन्द के द्वारे'
” यदि शब्दकोश के अनुसार ठलुआ का अर्थ बेकार और आवारा मान लिया जाय तो इस रूप में भगवान श्रीकृष्ण सबसे बड़े ठलुआ थे .
राजा होकर भी बेचारे जीवन भर राजसुख नहीं भोग सके, उल्टे रथ हांकते रहे"
एक उच्च कोटि का ठलुआ होने के लिए कुछ नियम है
१.ठलुआ होना एक स्थापित कलाकार की पूर्व स्थिति है अतः हमें सर्वप्रथम ठलुआ होने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए
२.एक ठलुआ कभी-कभी स्वयं को साबित नहीं कर पाता तो
इसका अर्थ यह नहीं की वह असफल हो गया है, ठलुआ कभी असफल नहीं होता अतः कभी निराश नहीं होना चाहिए
३.खुद में विश्वास जगाने के लिए कुछ मंत्रो का जाप किया जा सकता है जैसे- अहम् ठलस्मि, ठलुआपन परमो धर्मः