02/09/2024
Overwhelming!
We are living an unfair lifestyle,But why?
Question : ब्राह्मणों को वैदिक अध्ययन का आरक्षण क्यों प्राप्त है और इस को कैसे खत्म कर सकते हैं? वैदिक अध्ययन के लिए आरक्षण परम्परागत रूप से केवल ब्राह्मणों को ही दिया जाता रहा है। लेकिन यह कौन तय करता है कि वह ब्राह्मण होगा और यदि वह मनुष्य के गर्भ से पैदा हुआ है तो उसकी परम्परागत संतान भी ब्राह्मण कहलाएगी। इस सामाजिक समस्या से निजात पाने का उपाय क्या है? Don't believe how you became Brahman?
Note:वर्तमान में जाति और आरक्षण से मुक्ति के लिए इस प्रश्न को हल करना जरूरी है।
Answer: ब्राह्मणों को वैदिक अध्ययन में आरक्षण का मुद्दा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भों में निहित है। इसका संबंध सामाजिक संरचना और धार्मिक परंपराओं से जुड़ा है, जहां ब्राह्मणों को परंपरागत रूप से वैदिक अध्ययन और धार्मिक कृत्यों में प्रमुख स्थान दिया गया है। हालांकि, यह समझना महत्वपूर्ण है कि "आरक्षण" शब्द यहां सामाजिक आरक्षण की आधुनिक अवधारणा से भिन्न है। यह अधिकतर सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं के आधार पर होता है, न कि किसी कानूनी या संवैधानिक व्यवस्था के तहत।
1. इतिहास और परंपरा (Historical Context):धार्मिक परंपराएं: भारत में वैदिक शिक्षा परंपरागत रूप से ब्राह्मणों के अधिकार क्षेत्र में रही है, क्योंकि उन्हें धार्मिक कृत्यों और वैदिक ज्ञान के संरक्षण का दायित्व सौंपा गया था। इस परंपरा का उद्देश्य यह था कि वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों का सही ढंग से अध्ययन और संचार हो।The question arises that who is deciding who will be a Brahmin? If everyone here is human?
सामाजिक संरचना: वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत, ब्राह्मणों को ज्ञान और शिक्षा का संरक्षक माना गया था, जबकि अन्य वर्णों को अन्य प्रकार के कार्य सौंपे गए थे। यह सामाजिक संरचना लंबे समय तक भारतीय समाज में प्रचलित रही है।
2. समकालीन संदर्भ (Contemporary Context):
शैक्षिक समानता: आधुनिक युग में, शिक्षा का अधिकार सभी को समान रूप से प्राप्त है, और किसी भी जाति या समुदाय के व्यक्ति को वैदिक अध्ययन का अधिकार होना चाहिए।
सामाजिक परिवर्तन: आज के समय में सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में बड़े पैमाने पर परिवर्तन करना जरूरी हैं, जिससे परंपरागत रूप से ब्राह्मणों से जुड़े अध्ययन और कार्यक्षेत्रों में भी अन्य जातियों की भागीदारी बढ़ रही है।
3. कैसे इसे समाप्त किया जा सकता है (How to End This Traditional Privilege):
शैक्षिक संस्थानों में खुला प्रवेश : सभी समुदायों के लोगों के लिए वैदिक अध्ययन के संस्थानों में प्रवेश के दरवाजे खुले होने चाहिए। शैक्षिक संस्थानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रवेश प्रक्रिया में जाति या समुदाय के आधार पर कोई भेदभाव न हो। But the question arises that where do people socially adopt what is written in the theory. Accountability is not there at all.
सामाजिक जागरूकता: समाज में जागरूकता फैलाने की जरूरत है कि वैदिक अध्ययन और धार्मिक कार्यों में किसी एक जाति का विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए। इसे सभी के लिए सुलभ बनाना जरूरी है।
धार्मिक संस्थाओं का सुधार: धार्मिक और शैक्षिक संस्थानों को अपनी परंपराओं और प्रक्रियाओं में सुधार करना चाहिए, ताकि वे आधुनिक समाज के मूल्यों के अनुरूप हों। इसके लिए धार्मिक नेताओं और विद्वानों के बीच संवाद और सहमति आवश्यक है।But the question arises whether the educational institutions themselves are part of the tradition and the discrimination continues in the system.
सरकारी नीतियां: सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो वैदिक अध्ययन के क्षेत्र में सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करें। इसके तहत धार्मिक शिक्षा के लिए विशेष छात्रवृत्ति और समर्थन योजनाओं का भी प्रावधान किया जा सकता है।The question arises as to who should be given these scholarships. Those who have been living this part traditionally or those who are deprived.
If this happens, reservation will have to be given again and everyone will say that we are general candidates and we are finding it difficult to fight?
विविधता को बढ़ावा देना: वैदिक अध्ययन में विविधता लाने के लिए सभी जातियों के लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके लिए वैदिक शिक्षकों और धार्मिक गुरुओं को प्रशिक्षण दिया जा सकता है, ताकि वे सभी समुदायों के छात्रों का स्वागत कर सकें।
This country is a country of diversity, but here untouchability, exclusion, socialism, ill will towards people, insulting them. All these things happen only with those castes which people do not call general. They are not called Brahmin or Kashtriy or Vaishy?Then how will this be possible?
4. संविधानिक और कानूनी दृष्टिकोण (Constitutional and Legal Perspective): संवैधानिक समानता: भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। जाति या समुदाय के आधार पर कोई भी विशेषाधिकार संविधान के खिलाफ है। इसलिए, अगर किसी विशेष समुदाय को वैदिक अध्ययन में प्राथमिकता दी जा रही है, तो इसे संवैधानिक रूप से चुनौती दी जा सकती है।If equality was being given constitutionally, this problem would have been solved long ago. But even an educated person like Ambedkar is considered to be of a lower caste. He too faced ill-will and discrimination and even today people associated with him are facing ill-will and mistreatment.
In which country respect through education is given only to those who are called Brahmin or do Vedic studies?
If being called a Brahmin is such a prestigious thing then everyone should become Brahmin and many problems of India will be solved.
समान अवसर: यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी समुदायों को वैदिक अध्ययन का अवसर मिले, कानूनी प्रावधानों और सरकारी नीतियों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।समाज में शिक्षा और ज्ञान का प्रसार किसी भी एक जाति या समुदाय तक सीमित नहीं होना चाहिए। आधुनिक समय में, यह महत्वपूर्ण है कि सभी लोगों को समान रूप से वैदिक और धार्मिक ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिले, ताकि समाज में समावेशिता और समानता का प्रसार हो सके।
This means that in the fundamental rights given by the Constitution, including the right to equality, everyone, being a human being, should become a Brahmin and the problems will be solved.
But again the question arises that who makes a Brahmin? Who gives this general degree? Who is deciding this right to equality? 🙏🏻