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योग और साधना को समर्पित जीवन के धनी, पद्मश्री शिवानंद बाबा जी को योग भारती परिवार की भावभीनी श्रद्धांजलि। उनका योगदान अव...
04/05/2025

योग और साधना को समर्पित जीवन के धनी, पद्मश्री शिवानंद बाबा जी को योग भारती परिवार की भावभीनी श्रद्धांजलि। उनका योगदान अविस्मरणीय है। उनके सिद्धांत और जीवन मूल्य मानवता को सदैव योगपथ पर अग्रसर करते रहेंगे ।

05/04/2025

श्रृंगेरी पीठ सत्संग, पूज्य गुरुदेव परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती।

वसंत ऋतु में- कैसा हो हमारा आहार विहार  वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा गया है। यह शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के मध्...
24/03/2025

वसंत ऋतु में- कैसा हो हमारा आहार विहार

वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा गया है। यह शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के मध्य का संधिकाल होता है। इसमे मौसम समशीतोष्ण होता है, प्रकृति में सर्वत्र उल्लास और मादकता विद्यमान रहती है। इस समय नये नये कोपलों, रंग बिरंगे फूलों की सुंदरता और सुगंध के माध्यम से प्रकृति मानो अपनी प्रसन्नता प्रकट कर रही होती है। कुल मिलाकर वसंत का मौसम बहुत ही मनोरम और सुहावना होता है। लेकिन यदि समुचित आहार विहार का ध्यान न रखा जाय तो इस मौसम में स्वास्थ्य से जुड़ी अनेक प्रकार की समस्यायें भी उत्पन्न हो सकती हैं। ऋतुपरिवर्तन से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान हेतु आयुर्वेद में ऋतुचर्या का विशेष महत्व है। ऋतुचर्या का अर्थ है मौसम के अनुकूल आहार विहार या दिनचर्या। आयुर्वेद शास्त्रों में अलग अलग ऋतु के लिए अलग अलग प्रकार के आहार विहार का वर्णन है। चूँकि अभी वसंत चल रहा है इसलिए आज हम वसंत की ऋतु की चर्या प्रस्तुत कर रहे हैं।

🔸शरीर पर मौसम का प्रभाव

वसंत ऋतु में सूर्य की किरणें तेज होने लगती हैं जिसके कारण शीतकाल (हेमंत और शिशिर ऋतु) में संचित कफ कुपित होने लगता लगता है। इसके कारण लोगों में सर्दी, खांसी, दमा, नजला, जुकाम, साइनोसाइटिस, टांसलाइटिस, गले में खराश, पाचन शक्ति की कमी, व जी मिचलाने जैसे अनेक प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं। इस काल में खसरा, मीजल्स व एन्फ्लूएन्जा, जैसे कई प्रकार के वायरल इनफेक्शंस का भी प्रकोप देखने को मिलता है। इस समय वातावरण में सूर्य का बल बढ़ता है, चंद्रमा का बल क्षीण होता है, जलीय अंश और स्निग्धता की कमी होती है। इसके परिणाम स्वरूप हमारे शरीर में आलस्य और दुर्बलता की वृद्धि होती है। अतः इस मौसम में खान-पान का विशेष ध्यान रखें। बासी, गरिष्ठ और कफवर्धक पदार्थों का सेवन तो भूलकर भी न करें।

🔸पथ्य / लाभदायक

✅ कटु, तीक्ष्ण, व कषाय रस युक्त ताजा हल्का और सुपाच्य भोजन। चना, मूँग, अरहर, जौ, गेहूँ, चावल आदि अनाजों से बने भोज्य पदार्थ। सभी प्रकार की हरी सब्जियां तथा उनका सूप। करेला, लहसुन, अदरक, पालक, जमीकंद, केले के फूल व कच्चे केले की सब्जी, कच्ची मूली, गाजर व मौसमी फल। नीम की नई कोपलें, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आँवला, नीबू और शहद। इस समय भोजन बनाने में सरसों के तेल का प्रयोग करना चाहिए। प्रातः काल अंकुरित चना, भिगोया हुआ किशमिश व अँजीर तथा भोजन के समय मक्खन लगी रोटी खाना चहिए। जल इस समय अधिक मात्रा में पीना चाहिए। यदि शरीर में सर्दी या कफ का प्रभाव दिखे तो जल में थोडा़ सा अदरक, काली मिर्च और पीपल डालकर उबाल लें और गुनगुना होने के बाद उसी पानी में शहद मिलाकर पीना चाहिए। यदि यह न संभव हो तो केवल गुनगुना पानी भी पी सकते हैं।

बसंत ऋतु ऋतु में नियमित रूप से हल्का व्यायाम या योगासन सभी के लिए अनिवार्य है। सूर्योदय से पहले उठकर भ्रमण करें। रात्रि में देर तक जागरण और सुबह देर तक शयन हानिकारक है। दिन में तो बिल्कुल भी नहीं सोना चाहिए क्योंकि इससे कफ दोष और बढ़ेगा। शरीर में तेल मालिश करके (सर्दी होने पर गुनगुने पानी से) स्नान करें। जो लोग यौगिक षट्कर्म जानते हों उन्हें इस समय वमनधौति और जलनेती का अभ्यास करना चाहिए।

🔸अपथ्य / हानिकारक

❎ पचने में भारी, ठंढे व अधिक चिकानाई युक्त भोजन जैसे- नया अनाज, उड़द, दहीबड़ा, पूरी, कचौड़ी, रबड़ी, मलाई, मिठाई, आइसक्रीम, केक, पिज्जा, बर्गर, चाकलेट, गुड़, शक्कर, खजूर, व खटाई (इमली, अमचूर) आदि। शीत प्रकृति वाले पेय पदार्थ, जैसे- ठंढा पानी, ठंढी लस्सी, ठंढाई शर्बत, व कोल्डड्रिंक्स आदि। ओस में या खुले आसमान में सोना, ठंढ में रहना, धूप में घूमना, रात में जागना व दिन में सोना।

- आचार्य बी एस 'योगी'
भाग्यनगर (हैदराबाद)

21/03/2025

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21/07/2024

#श्री_गुरुपूर्णिमा #व्यासपूर्णिमा

कुंडलिनी शक्ति और सप्त चक्र आदमी के पास सात प्रकार के शरीर हैं। एक शरीर तो जो हमें दिखाई पड़ता है--फिजिकल बॉडी, भौतिक शरी...
16/10/2022

कुंडलिनी शक्ति और सप्त चक्र

आदमी के पास सात प्रकार के शरीर हैं। एक शरीर तो जो हमें दिखाई पड़ता है--फिजिकल बॉडी, भौतिक शरीर। दूसरा शरीर जो उसके पीछे है और जिसे ईथरिक बॉडी कहें--आकाश शरीर। और तीसरा शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे एस्ट्रल बॉडी कहें--सूक्ष्म शरीर। और चौथा शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे मेंटल बॉडी कहें--मनस शरीर। और पांचवां शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे स्प्रिचुअल बॉडी कहें--आत्मिक शरीर। छठवां शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे हम कास्मिक बॉडी कहें--ब्रह्म शरीर। और सातवां शरीर जो उसके भी पीछे है, जिसे हम निर्वाण शरीर, बॉडीलेस बॉडी कहें--अंतिम।

इन सात शरीरों के संबंध में थोड़ा समझेंगे तो फिर कुंडलिनी की बात पूरी तरह समझ में आ सकेगी।

पहले सात वर्ष में भौतिक शरीर ही निर्मित होता है। जीवन के पहले सात वर्ष में भौतिक शरीर ही निर्मित होता है, बाकी सारे शरीर बीजरूप होते हैं; उनके विकास की संभावना होती है, लेकिन वे विकसित उपलब्ध नहीं होते। पहले सात वर्ष, इसलिए इमिटेशन, अनुकरण के ही वर्ष हैं। पहले सात वर्षों में कोई बुद्धि, कोई भावना, कोई कामना विकसित नहीं होती, विकसित होता है सिर्फ भौतिक शरीर।

कुछ लोग सात वर्ष से ज्यादा कभी आगे नहीं बढ़ पाते; कुछ लोग सिर्फ भौतिक शरीर ही रह जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में और पशु में कोई अंतर नहीं होगा। पशु के पास भी सिर्फ भौतिक शरीर ही होता है, दूसरे शरीर अविकसित होते हैं।

दूसरे सात वर्ष में भाव शरीर का विकास होता है; या आकाश_शरीर का। इसलिए दूसरे सात वर्ष व्यक्ति के भाव जगत के विकास के वर्ष हैं। चौदह वर्ष की उम्र में इसीलिए सेक्स मैच्योरिटी उपलब्ध होती है; वह भाव का बहुत प्रगाढ़ रूप है। कुछ लोग चौदह वर्ष के होकर ही रह जाते हैं; शरीर की उम्र बढ़ती जाती है, लेकिन उनके पास दो ही शरीर होते हैं।

तीसरे सात वर्षों में सूक्ष्म शरीर विकसित होता है--इक्कीस वर्ष की उम्र तक। दूसरे शरीर में भाव का विकास होता है; तीसरे शरीर में तर्क, विचार और बुद्धि का विकास होता है।

इसलिए सात वर्ष के पहले दुनिया की कोई अदालत किसी बच्चे को सजा नहीं देगी, क्योंकि उसके पास सिर्फ भौतिक शरीर है; और बच्चे के साथ वही व्यवहार किया जाएगा जो एक पशु के साथ किया जाता है। उसको जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। और अगर बच्चे ने कोई पाप भी किया है, अपराध भी किया है, तो यही माना जाएगा कि किसी के अनुकरण में किया है; मूल अपराधी कोई और होगा।

दूसरे शरीर के विकास के बाद--चौदह वर्ष--एक तरह की प्रौढ़ता मिलती है; लेकिन वह प्रौढ़ता यौन-प्रौढ़ता है। प्रकृति का काम उतने से पूरा हो जाता है। इसलिए पहले शरीर और दूसरे शरीर के विकास में प्रकृति पूरी सहायता देती है; लेकिन दूसरे शरीर के विकास से मनुष्य मनुष्य नहीं बन पाता। तीसरा शरीर--जहां विचार, तर्क और बुद्धि विकसित होती है--वह शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता का फल है। इसलिए दुनिया के सभी मुल्क इक्कीस वर्ष के व्यक्ति को मताधिकार देते हैं।...

लेकिन साधारणतः इक्कीस वर्ष लगते हैं तीसरे शरीर के विकास के लिए। और अधिकतम लोग तीसरे शरीर पर रुक जाते हैं; मरते दम तक उसी पर रुके रहते हैं; चौथा शरीर, मनस शरीर भी विकसित नहीं हो पाता।

जिसको मैं साइकिक कह रहा हूं, वह चौथे शरीर की दुनिया की बात है--मनस शरीर की। उसके बड़े अदभुत और अनूठे अनुभव हैं। जैसे जिस व्यक्ति की बुद्धि विकसित न हुई हो, वह गणित में कोई आनंद नहीं ले सकता। वैसे गणित का अपना आनंद है। कोई आइंस्टीन उसमें उतना ही रसमुग्ध होता है, जितना कोई संगीतज्ञ वीणा में होता हो, कोई चित्रकार रंग में होता हो। आइंस्टीन के लिए गणित कोई काम नहीं है, खेल है। पर उसके लिए बुद्धि का उतना विकास चाहिए कि वह गणित को खेल बना सके।

जो शरीर हमारा विकसित होता है, उस शरीर के अनंत-अनंत आयाम हमारे लिए खुल जाते हैं। जिसका भाव शरीर विकसित नहीं हुआ, जो सात वर्ष पर ही रुक गया है, उसके जीवन का रस खाने-पीने पर समाप्त हो जाएगा। जिस कौम में पहले शरीर के लोग ज्यादा मात्रा में हैं, उसकी जीभ के अतिरिक्त कोई संस्कृति नहीं होगी।

जिस कौम में अधिक लोग दूसरे शरीर के हैं, वह कौम सेक्स सेंटर्ड हो जाएगी; उसका सारा व्यक्तित्व, उसकी कविता, उसका संगीत, उसकी फिल्म, उसका नाटक, उसके चित्र, उसके मकान, उसकी गाड़ियां--सब किसी अर्थों में सेक्स सेंट्रिक हो जाएंगी; वे सब वासना से भर जाएंगी।

जिस सभ्यता में तीसरे शरीर का विकास हो पाएगा ठीक से, वह सभ्यता अत्यंत बौद्धिक चिंतन और विचार से भर जाएगी। जब भी किसी कौम या समाज की जिंदगी में तीसरे शरीर का विकास महत्वपूर्ण हो जाता है, तो बड़ी वैचारिक क्रांतियां घटित होती हैं। बुद्ध और महावीर के वक्त में बिहार ऐसी ही हालत में था कि उसके पास तीसरी क्षमता को उपलब्ध बहुत बड़ा समूह था। इसलिए बुद्ध और महावीर की हैसियत के आठ आदमी बिहार के छोटे से देश में पैदा हुए, छोटे से इलाके में। और हजारों प्रतिभाशाली लोग पैदा हुए।

लेकिन आमतौर से तीसरे शरीर पर मनुष्य रुक जाता है; अधिक लोग इक्कीस वर्ष के बाद कोई विकास नहीं करते।

लेकिन ध्यान रहे, चौथा जो शरीर है उसके अपने अनूठे अनुभव हैं--जैसे तीसरे शरीर के हैं, दूसरे शरीर के हैं, पहले शरीर के हैं। चौथे शरीर के बड़े अनूठे अनुभव हैं। जैसे सम्मोहन, टेलीपैथी, क्लेअरवायंस--ये सब चौथे शरीर की संभावनाएं हैं। आदमी बिना समय और स्थान की बाधा के दूसरे से संबंधित हो सकता है; बिना बोले दूसरे के विचार पढ़ सकता है या अपने विचार दूसरे तक पहुंचा सकता है; बिना कहे, बिना समझाए, कोई बात दूसरे में प्रवेश कर सकता है और उसका बीज बना सकता है; शरीर के बाहर यात्रा कर सकता है--एस्ट्रल प्रोजेक्शन--शरीर के बाहर घूम सकता है; अपने इस शरीर से अपने को अलग जान सकता है।

इस चौथे शरीर की, मनस शरीर की, साइकिक_बॉडी की बड़ी संभावनाएं हैं, जो हम बिल्कुल ही विकसित नहीं कर पाते हैं; क्योंकि इस दिशा में खतरे बहुत हैं--एक; और इस दिशा में मिथ्या की बहुत संभावना है--दो। क्योंकि जितनी चीजें सूक्ष्म होती चली जाती हैं, उतनी ही मिथ्या और फाल्स संभावनाएं बढ़ती चली जाती हैं।

अब एक आदमी अपने शरीर के बाहर गया या नहीं--वह सपना भी देख सकता है अपने शरीर के बाहर जाने का, जा भी सकता है। और उसके अतिरिक्त, स्वयं के अतिरिक्त और कोई गवाह नहीं होगा। इसलिए धोखे में पड़ जाने की बहुत गुंजाइश है; क्योंकि दुनिया जो शुरू होती है इस शरीर से, वह सब्जेक्टिव है; इसके पहले की दुनिया ऑब्जेक्टिव है।

तो यह जो चौथा शरीर है, इससे हमने मनुष्यता को बचाने की कोशिश की। और अक्सर ऐसा हुआ कि इस शरीर का जो लोग उपयोग करनेवाले थे, उनकी बहुत तरह की बदनामी और कंडेमनेशन हुई। योरोप में हजारों स्त्रियों को जला डाला गया विचे.ज कहकर, डाकिनी कहकर; क्योंकि उनके पास यह चौथे शरीर का काम था। हिंदुस्तान में सैकड़ों तांत्रिक मार डाले गए इस चौथे शरीर की वजह से, क्योंकि वे कुछ सीक्रेट्स जानते थे जो कि हमें खतरनाक मालूम पड़े। आपके मन में क्या चल रहा है, वे जान सकते हैं; आपके घर में कहां क्या रखा है, यह उन्हें घर के बाहर से पता हो सकता है। तो सारी दुनिया में इस चौथे शरीर को एक तरह का ब्लैक आर्ट समझ लिया गया कि एक काले जादू की दुनिया है जहां कि कोई भरोसा नहीं कि क्या हो जाए! और एकबारगी हमने मनुष्य को तीसरे शरीर पर रोकने की भरसक चेष्टा की कि चौथे शरीर पर खतरे हैं।

खतरे थे; लेकिन खतरों के साथ उतने ही अदभुत लाभ भी थे। तो बजाय इसके कि रोकते, जांच-पड़ताल जरूरी थी कि वहां भी हम रास्ते खोज सकते हैं जांचने के। और अब वैज्ञानिक उपकरण भी हैं और समझ भी बढ़ी है; रास्ते खोजे जा सकते हैं।...

इस चौथे शरीर की बड़ी संभावनाएं हैं। जितनी भी योग में सिद्धियों का वर्णन है, वह इस सारे चौथे शरीर की ही व्यवस्था है। और निरंतर योग ने सचेत किया है कि उनमें मत जाना। और सबसे बड़ा डर यही है कि उसमें मिथ्या में जाने के बहुत उपाय हैं और भटक जाने की बड़ी संभावनाएं हैं। और अगर वास्तविक में भी चले जाओ तो भी उसका आध्यात्मिक मूल्य नहीं है।...

चौथा शरीर अट्ठाइस वर्ष तक विकसित होता है--यानी सात वर्ष फिर और। लेकिन मैंने कहा कि कम ही लोग इसको विकसित करते हैं।

पांचवां शरीर बहुत कीमती है, जिसको अध्यात्म शरीर या स्प्रिचुअल बॉडी कहें। वह पैंतीस वर्ष की उम्र तक, अगर ठीक से जीवन का विकास हो, तो उसको विकसित हो जाना चाहिए।

लेकिन वह तो बहुत दूर की बात है, चौथा शरीर ही नहीं विकसित हो पाता। इसलिए आत्मा वगैरह हमारे लिए बातचीत है, सिर्फ चर्चा है; उस शब्द के पीछे कोई कंटेंट नहीं है। जब हम कहते हैं "आत्मा", तो उसके पीछे कुछ नहीं होता, सिर्फ शब्द होता है; जब हम कहते हैं "दीवाल", तो सिर्फ शब्द नहीं होता, पीछे कंटेंट होता है। हम जानते हैं, दीवाल यानी क्या। "आत्मा" के पीछे कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि आत्मा हमारा अनुभव नहीं है। वह पांचवां शरीर है। और चौथे शरीर में कुंडलिनी जगे तो ही पांचवें शरीर में प्रवेश हो सकता है, अन्यथा पांचवें शरीर में प्रवेश नहीं हो सकता। चौथे का पता नहीं है, इसलिए पांचवें का पता नहीं हो पाता। और पांचवां भी बहुत थोड़े से लोगों को पता हो पाता है। जिसको हम आत्मवादी कहते हैं, कुछ लोग उस पर रुक जाते हैं, और वे कहते हैंः बस यात्रा पूरी हो गई; आत्मा पा ली और सब पा लिया।

यात्रा अभी भी पूरी नहीं हो गई।

इसलिए जो लोग इस पांचवें शरीर पर रुकेंगे, वे परमात्मा को इनकार कर देंगे; वे कहेंगे, कोई ब्रह्म, कोई परमात्मा वगैरह नहीं है। जैसे जो पहले शरीर पर रुकेगा, वह कह देगा कि कोई आत्मा वगैरह नहीं है। तो एक शरीरवादी है, एक मैटीरियलिस्ट है, वह कहता हैः शरीर सब कुछ है; शरीर मर जाता है, सब मर जाता है। ऐसा ही आत्मवादी है, वह कहता हैः आत्मा ही सब कुछ है, इसके आगे कुछ भी नहीं; बस परम स्थिति आत्मा है। लेकिन वह पांचवां शरीर ही है।

छठवां शरीर ब्रह्म शरीर है, वह कास्मिक बॉडी है। जब कोई आत्मा को विकसित कर ले और उसको खोने को राजी हो, तब वह छठवें शरीर में प्रवेश करता है। वह बयालीस वर्ष की उम्र तक सहज हो जाना चाहिए--अगर दुनिया में मनुष्य-जाति वैज्ञानिक ढंग से विकास करे, तो बयालीस वर्ष तक हो जाना चाहिए।

और सातवां शरीर उनचास वर्ष तक हो जाना चाहिए। वह सातवां शरीर निर्वाण काया है; वह कोई शरीर नहीं है, वह बॉडीलेसनेस की हालत है। वह परम है। वहां शून्य ही शेष रह जाएगा। वहां ब्रह्म भी शेष नहीं है। वहां कुछ भी शेष नहीं है। वहां सब समाप्त हो गया है।

निर्वाण शब्द का मतलब होता है, दीये का बुझ जाना। इसलिए बुद्ध कहते हैं, निर्वाण हो जाता है। पांचवें शरीर तक मोक्ष की प्रतीति होगी, क्योंकि परम मुक्ति हो जाएगी; ये चार शरीरों के बंधन गिर जाएंगे और आत्मा परम मुक्त होगी।

तो मोक्ष जो है, वह पांचवें शरीर की अवस्था का अनुभव है।

अगर चौथे शरीर पर कोई रुक जाए, तो स्वर्ग का या नरक का अनुभव होगा; वे चौथे शरीर की संभावनाएं हैं।

अगर पहले, दूसरे और तीसरे शरीर पर कोई रुक जाए, तो यही जीवन सब कुछ है — जन्म और मृत्यु के बीच; इसके बाद कोई जीवन नहीं है।

अगर चौथे शरीर पर चला जाए, तो इस जीवन के बाद नरक और स्वर्ग का जीवन है; दुख और सुख की अनंत संभावनाएं हैं वहां।

अगर पांचवें शरीर पर पहुंच जाए, तो मोक्ष का द्वार है।

अगर छठवें पर पहुंच जाए, तो मोक्ष के भी पार ब्रह्म की संभावना है; वहां न मुक्त है, न अमुक्त है; वहां जो भी है उसके साथ वह एक हो गया। अहं ब्रह्मास्मि की घोषणा इस छठवें शरीर की संभावना है।

लेकिन अभी एक कदम और, जो लास्ट जंप है--जहां न अहं है, न ब्रह्म है; जहां मैं और तू दोनों नहीं हैं; जहां कुछ है ही नहीं, जहां परम शून्य है--टोटल, एब्सोल्यूट वॉयड--वह निर्वाण है।

ओशो; जिन खोजा तिन पाइयां--प्रवचन--13

राष्टीय स्वयंसेवक संघ नगर इकाई द्वारा आयोजित योगोत्सव कार्यक्रम के कुछ चित्र- स्थान Tota Penta Reddy Garden Bolarum, Sec...
15/08/2022

राष्टीय स्वयंसेवक संघ नगर इकाई द्वारा आयोजित योगोत्सव कार्यक्रम के कुछ चित्र- स्थान Tota Penta Reddy Garden Bolarum, Secundrabad 21 Jun 2022

योगोत्सव 1 इम सी ई एम ई सेंटर 3 TB
01/08/2022

योगोत्सव 1 इम सी ई एम ई सेंटर 3 TB

11/07/2022

स्मरणीय एवं महत्वपूर्ण :
===============
01. बीपी: 120/80
02. पल्स: 70 - 100
03. तापमान: 36.8 - 37
04. सांस : 12-16
05. हीमोग्लोबिन: पुरुष -13.50-18
स्त्री- 11.50 - 16
06. कोलेस्ट्रॉल: 130 - 200
07. पोटेशियम: 3.50 - 5
08. सोडियम: 135 - 145
09. ट्राइग्लिसराइड्स: 220
10. शरीर में खून की मात्रा: पीसीवी 30-40%
11. शुगर लेवल: बच्चों के लिए (70-130) वयस्क: 70 - 115
12. आयरन: 8-15 मिलीग्राम
13. श्वेत रक्त कोशिकाएं WBC: 4000 - 11000
14. प्लेटलेट्स: 1,50,000 - 4,00,000
15. लाल रक्त कोशिकाएं RBC: 4.50 - 6 मिलियन.
16. कैल्शियम: 8.6 -10.3 मिलीग्राम/डीएल
17. विटामिन D3: 20 - 50 एनजी/एमएल.
18. विटामिन B12: 200 - 900 पीजी/एमएल.

वरिष्ठ लोग यानि 40/ 50/ 60 वर्ष वालों के लिए विशेष टिप्स:

1- प्यास न लगे या जरूरत न हो तो भी हमेशा पानी पिएं, सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याएं और उनमें से ज्यादातर शरीर में पानी की कमी से होती हैं। 2 लीटर न्यूनतम प्रति दिन.

2- शरीर से अधिक से अधिक काम ले, शरीर को हिलना चाहिए, भले ही केवल पैदल चलकर, या तैराकी या किसी भी प्रकार के खेल से।

3- खाना कम करो...अधिक भोजन की लालसा को छोड़ दें... क्योंकि यह कभी अच्छा नहीं लाता है। अपने आप को वंचित न करें, लेकिन मात्रा कम करें। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आधारित खाद्य पदार्थों का अधिक प्रयोग करें।

4- जितना हो सके वाहन का प्रयोग तब तक न करें जब तक कि अत्यंत आवश्यक न हो. आप कहीं जाते हैं किराना लेने, किसी से मिलने या किसी काम के लिए अपने पैरों पर चलने की कोशिश करें। लिफ्ट, एस्केलेटर का उपयोग करने के बजाय सीढ़ियां चढ़ें।

5- क्रोध छोड़ो, चिंता छोड़ो,चीजों को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करो. विक्षोभ की स्थितियों में स्वयं को शामिल न करें, वे सभी स्वास्थ्य को कम करते हैं और आत्मा के वैभव को छीन लेते हैं। सकारात्मक लोगों से बात करें और उनकी बात सुनें।

6- सबसे पहले पैसे का मोह छोड़ दे
अपने आस-पास के लोगो से खूब मिलें जुलें हंसें बोलें!पैसा जीने के लिए बनाया गया था, जीवन पैसे के लिए नहीं।

7- अपने आप के लिए किसी तरह का अफ़सोस महसूस न करें, न ही किसी ऐसी चीज़ पर जिसे आप हासिल नहीं कर सके, और न ही ऐसी किसी चीज़ पर जिसे आप अपना नहीं सकते। इसे अनदेखा करें और इसे भूल जाएं।

8- पैसा, पद, प्रतिष्ठा, शक्ति, सुन्दरता, जाति की ठसक और प्रभाव, ये सभी चीजें हैं जो अहंकार से भर देती हैं. विनम्रता वह है जो लोगों को प्यारसे आपके करीब लाती है।

9- अगर आपके बाल सफेद हो गए हैं, तो इसका मतलब जीवन का अंत नहीं है। यह एक बेहतर जीवन की शुरुआत हो चुकी है। आशावादी बनो, याद के साथ जियो, यात्रा करो, आनंद लो। यादें बनाओ!

10- अपने से छोटों से भी प्रेम, सहानुभूति ओर अपनेपन से मिलें! कोई व्यंग्यात्मक बात न कहें! चेहरे पर मुस्कुराहट बनाकर रखें !

अतीत में आप चाहे कितने ही बड़े पद पर रहे हों वर्तमान में उसे भूल जाये और सबसे मिलजुलकर रहें!

वसंत ऋतु में कैसा हो हमारा आहार विहार ?वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा गया है। यह शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के मध्य...
05/04/2022

वसंत ऋतु में कैसा हो हमारा आहार विहार ?

वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा गया है। यह शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के मध्य का संधिकाल होता है। इसमे मौसम समशीतोष्ण होता है, प्रकृति में सर्वत्र उल्लास और मादकता विद्यमान रहती है। इस समय नये नये कोपलों, रंग बिरंगे फूलों की सुंदरता और सुगंध के माध्यम से प्रकृति मानो अपनी प्रसन्नता प्रकट कर रही होती है। कुल मिलाकर वसंत का मौसम बहुत ही मनोरम और सुहावना होता है। लेकिन यदि समुचित आहार विहार का ध्यान न रखा जाय तो इस मौसम में स्वास्थ्य से जुड़ी अनेक प्रकार की समस्यायें भी उत्पन्न हो सकती हैं। ऋतु परिवर्तन से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान हेतु आयुर्वेद में ऋतुचर्या का विशेष महत्व है। ऋतुचर्या का अर्थ है मौसम के अनुकूल आहार विहार या दिनचर्या। आयुर्वेद शास्त्रों में अलग अलग ऋतु के लिए अलग अलग प्रकार के आहार विहार का वर्णन है। चूँकि अभी वसंत चल रहा है इसलिए आज हम वसंत की ऋतु की चर्या प्रस्तुत कर रहे हैं।

🔸शरीर पर मौसम का प्रभाव

वसंत ऋतु में सूर्य की किरणें तेज होने लगती हैं जिसके कारण शीतकाल (हेमंत और शिशिर ऋतु) में संचित कफ कुपित होने लगता लगता है। इसके कारण लोगों में सर्दी, खांसी, दमा, नजला, जुकाम, साइनोसाइटिस, टांसलाइटिस, गले में खराश, पाचन शक्ति की कमी, व जी मिचलाने जैसे अनेक प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं। इस काल में खसरा, मीजल्स व एन्फ्लूएन्जा, जैसे कई प्रकार के वायरल इनफेक्शंस का भी प्रकोप देखने को मिलता है। इस समय वातावरण में सूर्य का बल बढ़ता है, चंद्रमा का बल क्षीण होता है, जलीय अंश और स्निग्धता की कमी होती है। इसके परिणाम स्वरूप हमारे शरीर में आलस्य और दुर्बलता की वृद्धि होती है। अतः इस मौसम में खान-पान का विशेष ध्यान रखें। बासी, गरिष्ठ और कफवर्धक पदार्थों का सेवन तो भूलकर भी न करें।

यदि शरीर में सर्दी या कफ दोष का प्रभाव दिखे तो तीन चार लीटर पानी में थोडा़ सा अदरक, काली मिर्च और पीपल डालकर उबाल लें और कुनकुना (ठंढा) होने के बाद उसमें शहद मिलाकर हर बार वही पानी पीयें। यदि यह न संभव हो तो केवल गुनगुना पानी भी पी सकते हैं।

✔️ पथ्य / लाभदायक

कटु, तीक्ष्ण, व कषाय रस युक्त ताजा हल्का और सुपाच्य भोजन व पर्याप्त मात्रा में स्वछ जल का सेवन।

चना, मूँग, अरहर, जौ, गेहूँ, चावल आदि पुराने अनाजों से बने भोज्य पदार्थ।

सभी प्रकार की हरी सब्जियां तथा उनका सूप।
करेला, लहसुन, अदरक, पालक, जमीकंद, केले के फूल व कच्चे केले की सब्जी, कच्ची मूली, गाजर व मौसमी फल।

नीम की नई कोपलें, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हरड़, बहेड़ा, आँवला, नीबू और शहद।

इस समय भोजन बनाने में सरसों के तेल का प्रयोग करना चाहिए।

प्रातः काल अंकुरित चना, भिगोया हुआ किशमिश व अँजीर। दिन में भुने हुये चने आदि खाना चाहिए।

नियमित रूप से आसन प्राणायाम का अभ्यास या कोई हल्का व्यायाम अवश्य करें ।

सूर्योदय से पहले उठकर भ्रमण करें। शरीर में उबटन व तेल मालिश करके (सर्दी होने पर गुनगुने पानी से) स्नान करें।

जो लोग यौगिक षट्कर्म जानते हों उन्हें इस समय वमनधौति और जलनेती का अभ्यास करना चाहिए।

❌ अपथ्य / हानिकारक

पचने में भारी, ज्यादा खट्टे, मीठे, नमकीन, ठंढे, बासी, व अधिक चिकानाई युक्त भोजन।

नया अनाज, उड़द, दहीबड़ा, अंडा, माँस, पूरी, कचौड़ी, रबड़ी, मलाई, मिठाई, गुड़, शक्कर, खजूर, खटाई, इमली, अमचूर आदि।

सभी प्रकार के जंकफूड व फास्टफूड, जैसे- केक, ब्रेड, बन, पिज्जा, बर्गर, चाऊमीन व पास्ता आदि।

शीत प्रकृति वाले पदार्थ, जैसे- ठंढा पानी, दही, लस्सी, ठंढाई शर्बत, कुल्फी, आइसक्रीम, व कोल्डड्रिंक्स आदि।

ओस में या खुले आसमान में सोना, ठंढ में रहना, धूप में घूमना, रात में देर तक जागना व दिन में सोना व ठंढे पानी से स्नान आदि।

- आचार्य बी एस 'योगी' (भाग्यनगर) हैदराबाद

https://youtu.be/KiSDadf655w

वसंत ऋतु में कैसा हो हमारा आहार विहार ?~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ वसंत को ऋतुराज अर्थात ऋतुओं का राजा कहा गया है। यह शीत ऋतु और ग्रीष्.....

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