11/26/2025
मां की घरेलू दवाएं.….....♥️♥️
मां कहती थीं कि शाम के समय अमरूद न खाओ खांसी हो जाएगी।
खांसी होने पर सुबह मां उसी अमरूद को चूल्हे की आग में भून कर खिलाती थी कि खाओ खांसी ठीक हो जाएगी..........😄
जब कहो कि मां जीभ में दाने निकल आए खाना तीखा लग रहा है नहीं खाऊंगी तब मां झट अमरूद की कोमल कोंपल लाकर देती कहती कि कूच लो और रस निकले तो निगल जाना दाने ठीक हो जाएंगे और तीखा भी नहीं लगेगा। सच में अमरूद की पत्तियां कूचने के बाद खाना खाने पर तीखा नहीं लगता था.........😊
पेट दर्द होने पर मां गुनगुने पानी में नमक डाल कर नींबू निचोड़ कर एक सांस में पिला देती थीं। ढक्क से डकार आई पेट दर्द गायब......…...😄
नानी का इलाज तो तीखा मीठा होता था।
जब भी खांसी होती थी कभी मुझे डॉक्टर से दवा नहीं दिलाती थी। घर पर घर का निकला शहद रहता था। अब ये मत पूछिए कि घर का कैसा शहद?
गांव में घर के कोने पर, पेड़ के तने पर, बंड़ेर पर कहीं न कहीं मधुमक्खी के छत्ते लगे ही रहते थे और फिर कोई गुनिया आग का लुकारा जला कर कम्बल ओढ़ कर शहद निकाल लाता था। इस तरह से घर का निकला घर पर एकदम शुद्ध शहद होता था.........
तो उस शहद में नानी पीपर (पीपली) बारीक पीस कर एक एक चम्मच सुबह शाम चटा कर ठीक कर देती थी..........🤣🤣
सर्दी जुकाम होने पर नानी घर की कच्ची हल्दी, सोंठ, पीस कर,गुड़, अजवाइन, सरसों तेल मिलाकर फतका बना कर पिला देती थीं.......... इसका स्वाद हमें इतना अच्छा लगता था कि बिन जुकाम होने पर भी नानी से फतका बनवाते थे तब नानी उसमें दूध मिलाकर देती थीं जो हमें ठंड से बचाता था और स्वाद बढ़ा देता था।
🤔...........लूज मोशन होने पर ठंडा ठंडा मठ्ठा नमक डाल कर पिला देती थीं अगर ज्यादा हो रहा हो तो यूकेलिप्टस की नर्म मुलायम कोमल कोंपल पीस कर कुछ बूंदे मट्ठे में मिलाकर पिला देती थीं।
यहां तक की खूनी पेचिश में बताशे में गूलर का दूध डाल कर खिला देती थीं...........😘
बुखार आया है और ठीक नहीं हो रहा है तो सुबह नीम की पत्तियां पीस कर कपड़े से छान कर एक कटोरे में रखती और फिर चूल्हे में हंसिया को एकदम लाल सुर्ख गर्म करके नीम के रस को छौंक देती थीं और कहती थीं कि दातुन करके आंख बंद करके एक सांस में पी जाओ.............😬😬बुखार गायब!
बुखार चले जाने के बाद भी अपना असर कुछ दिनों तक छोड़ जाता था भोजन अच्छा नहीं लगता था, जीभ का स्वाद खराब हो जाता था तब भी नानी कहती थीं दातुन करके नीम की पत्तियां चबाती रहो और जब रस मुंह में बन जाए बस एक घूंट घूंट लो खाना अच्छा लगने लगेगा.............🥳🥳
सच में ये नुस्खा चमत्कार ही करता था। भूख एकदम खुल जाती थी और जीभ का स्वाद भी ठीक हो जाता था..........
इस तरह से बहुत से बीमारी का इलाज मां, आजी, नानी अपने नुस्खों से ठीक कर देती थीं बहुत कम ही डॉक्टर की रंग बिरंगी गोलियों की पुड़िया कागज में लपेट कर खाने को मिलती थी।
हॉस्पिटल में एडमिट होने की नौबत तो शायद ही कभी किसी को आती थी।
खैर वो समय अलग था। रहन सहन, खानपान के तौर तरीके अलग थे...............
अब का समय और है अब हॉस्पिटल, दवाएं, डॉक्टर हमारे जीवन का हिस्सा बन गए हैं, या बना दिया गया है
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