
12/09/2025
क्या रहस्य है हमारे सनातन तीर्थ स्थानों का भाग .....23
तांत्रिक पद्धति में योनी तंत्र का विशेष महत्व है इस ग्रन्थ में, दस महाविद्या वर्णित है। यह एक विडम्बना रही है कि भारतीय ज्ञान के इस उज्ज्वलतम पक्ष से समाज भयभीत है।
परन्तु सचाई यह है कि तन्त्र एक पूर्ण शुद्ध एवं सात्विक विद्या है। तंत्र को शारीरिक आनंद के साथ जोड़ना अनुचित है। यदपि तंत्र में काम शक्ति का रूपांतरण, दिव्य अवस्था प्राप्ति की लिए किया जाता है।
परंतु केवल गृहस्थ के लिए। वैष्णव पद्धति ब्रह्मचर्य पर विश्वास करती है परंतु तंत्र पद्धति सन्यासी और गृहस्थ दोनों को ही समान रूप से महत्व देती है।
गृहस्थ होना कुंडलनी साधक के लिए सहायक है महानिर्वाण तंत्र में भगवान शिव ने साधना के लिए शैव-विवाह की विधि भी बताई है। परंतु तंत्र विद्या में सब कुछ एक सिस्टम में हैं।
वैष्णव पद्धति गृहस्थ को साधना करने की अनुमति नहीं देती है। परंतु शैव पद्धति देती है; परंतु इसका अर्थ यह नहीं हुआ क्या कि आप दुराचार करें।
पति पत्नी मिलकर साधना करें। वैष्णव पद्धति अगर फल नहीं देती, तो दंड भी नहीं देती। परंतु शैव पद्धति तुरंत दंड देती है। शिव तो सो जाने पर माता पार्वती को भी क्षमा नहीं करते।
उन्हें भी मत्स्या के रूप में जन्म लेना पड़ता है। तंत्र के केंद्रीय विषय तुम स्वयं हो। तुम जैसे अभी हो और जो तुम्हारे भीतर छिपा है वही विकसित हो सकता है ।
जो तुम हो और जो तुम हो सकते हो। अभी इस समय तुम काम की ही एक इकाई हो। और जब तक इकाई को गहराई से न समझ लिया जाए तुम आध्यात्मिक इकाई नहीं हो सकते।
कामुकता ,आध्यात्मिकता एक ही ऊर्जा के दो छोर हैं।”तंत्र” तुम जैसे हो वहीं से शुरू करता है और ''योग'' तुम जो हो सकते हो वहां से शुरू करता है।
योग अंत के साथ शुरू करता है तंत्र आरंभ के साथ शुरू करता है। तुम्हें देवता होना है और अभी तुम सिर्फ पशु हो। और यह पशु देवता के आदर्श के कारण पागल हो जाता है।
तंत्र कहता है अगर तुम पशु हो तो इस पशु को उसकी समग्रस्ता में समझो। आदर्श तुम्हारी संभावनाओं को प्रकट नहीं कर सकते, केवल वास्तविकता का ज्ञान ही मदद कर सकता है।
इसलिए तुम ही तंत्र का केंद्रीय विषय हो–जैसे तुम हो और जैसे हो सकते हो। तुम्हारी वास्तविकता और तुम्हारी संभावना... वे ही विषय-वस्तु हैं।
क्रमशः