06/04/2023
।।बुध्द अमृत वाणी।।
‘‘अट्ठानमेतं, भिक्खवे, अनवकासो, यं दिट्ठिसम्पन्नो पुग्गलो कञ्चि सङ्खारं निच्चतो उपगच्छेय्य, सुखतो उपगच्छेय्य, कञ्चि धम्मं अत्ततो उपगच्छेय्य, मातरं जीविता वोरोपेय्य, पितरं जीविता वोरोपेय्य, अरहन्तं जीविता वोरोपेय्य, दुट्ठचित्तो तथागतस्स लोहितं उप्पादेय्य, सङ्घं भिन्देय्य, अञ्ञं सत्थारं उद्दिसेय्य नेतं ठानं विज्जती’’ति (म॰ नि॰ ३.१२७-१२८; अ॰ नि॰ १.२६८-२७६; विभ॰ ८०९)।
यह जो सम्यक दृष्टिवान व्यक्ति है वह किसी संस्कार को नित्य रुप में देखें, सुख के रूप में देखें, किसी धर्म को आत्मा के रूप में देखें असम्भव है। और वह माता की हत्या करें, पिता की हत्या करें, अरहन्त की हत्या करें, दुष्ट चित्त से तथागत के शरीर से खुन निकाले, संघ भेद करें, अन्य किसी उपास्य को अपना शास्ता गुरु माने यह असम्भव बात है, कभी न होने वाली बात है।
ऐसा सम्यक दृष्टि सम्पन्न श्रावक सच्चा बुध्द पुत्र होता है उसके लिए निब्बाण पाना निश्चित होता है।
लेकिन जो मिथ्या दृष्टि वाला है वह संस्कार को नित्य समझ सकता है, वह किसी धर्म को आत्मा समझ सकता है, माता पिता की हत्या कर सकता है। संघ भेद कर सकता है यानी वह खुद को जादा ज्ञानी समझ लेने के कारण जो भगवान ने कहा है वह नहीं कहा है कहता है। जो नहीं कहा होता है, वह कहा है कहता है। त्रिपिटक को जलाने झुठा कह सकता है ऐसा करता हुआ संघ भेद का महा पाप कमाता है। वह ऐसा पाप कमा कर एक कल्प तक निरय में पक सकता है। हात की कुल्हाड़ी पैरों पर मारने की तरह कोई जरुरत नहीं होती गलत तरीके से धम्म को बताने की। इसलिए सगज रहे सम्यक दृष्टि सम्पन्न बने, सच्चे बुध्द श्रावक बने। अच्छे गुणों को धारण करने से श्रावक बनते है जन्म से नहीं।
सबका मंगल हो।