Buddha's Meditation in Hindi

Buddha's Meditation in Hindi बुद्ध ने ध्यान से परम शांति प्राप्ति की और वही शांति का मार्ग हमें बताया, आईये उसी ध्यान को सीखते है

।। Buddha Amrut Vaani ।।"असारे सारमतिनो, सारे चासारदस्सिनो।ते सारं नाधिगच्छन्ति, मिच्छासङ्कप्पगोचरा॥"जो नि:सार बातों को ...
28/04/2023

।। Buddha Amrut Vaani ।।

"असारे सारमतिनो, सारे चासारदस्सिनो।
ते सारं नाधिगच्छन्ति, मिच्छासङ्कप्पगोचरा॥"

जो नि:सार बातों को ही सार समझते हैं, सार को नि:सार समझते हैं, ऐसे मिथ्या संकल्प को गोचर करने वाले व्यक्ति को सार युक्त बात कभी मिलती ही नहीं है।

"सारञ्‍च सारतो ञत्वा, असारञ्‍च असारतो।
ते सारं अधिगच्छन्ति, सम्मासङ्कप्पगोचरा॥"

जो सार युक्त बात को सार समझते हैं, नि:सार को नि:सार समझते हैं, ऐसे सम्यक् संकल्प को गोचर बनाने वाले व्यक्ति (निर्वान रुपी) सार को प्राप्त करते हैं।

(धम्मपद गाथा 11, 12 - ये गाथाएं तथागत ने अग्र श्रावकों को उद्देश्य कर कही है।)

।। Buddha Amrut vaani ।।   "न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनं।अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो॥" इस लोक में कभी भी...
22/04/2023

।। Buddha Amrut vaani ।।

"न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनं।
अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो॥"

इस लोक में कभी भी वैर से वैर शान्त नहीं होते, बल्कि वैर न करने से (मैत्री, क्षान्ति, योनिसोमनसिकार, प्रत्यवेक्षण करने से) ही वैर शान्त हो जाते हैं। यही (कभी न बदलने वाला) सनातन धर्म है।

(धम्मपद गाथा 5 - यह गाथा तथागत ने जेतवनाराम में वंध्या स्त्री को उद्देश्य कर कही है।)

21/04/2023

।।Buddha Amrut Vani ।।

"अक्‍कोच्छि मं अवधि मं, अजिनि मं अहासि मे।
ये च तं उपनय्हन्ति, वेरं तेसं न सम्मति॥"

अमुक व्यक्ति ने मुझ पर आक्रोश किया, मुझे मारा, मुझे कराया, मुझे लूट लिया- जो कोई व्यक्ति उसी के बारे में बार बार सोच कर मन में गाँठ बांधता है, उसका वैर शान्त नहीं होता।

"अक्‍कोच्छि मं अवधि मं, अजिनि मं अहासि मे।
ये च तं नुपनय्हन्ति, वेरं तेसूपसम्मति॥"

अमुक व्यक्ति ने मुझ पर आक्रोश किया, मुझे मारा, मुझे कराया, मुझे लूट लिया- जो कोई व्यक्ति उसी के बारे में बार बार न सोच कर मन में गाँठ नहीं बांधता, उसका वैर शान्त होता है।
(धम्मपद गाथा - 3, 4 - ये गाथाएं जेतवनाराम में तिस्स स्थविर को उद्देश्य कर कही है।)

।। Buddha Amrut Vaani ।।मनोपुब्बङ्गमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया।मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा।ततो नं दुक्खमन्वेति, च...
19/04/2023

।। Buddha Amrut Vaani ।।

मनोपुब्बङ्गमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया।
मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा।
ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्‍कंव वहतो पदं॥

मन (कामावचर, रूपावली, अरुपावचर, लोकुत्तर भूमिक) सभी प्रवृत्तियों का अगुआ है, मन ही श्रेष्ठ है, सभी धर्म मन से ही उत्पन्न होने के कारण मनोमय है। जब कोई व्यक्ति अपने मन को लोभ व्देशादि से प्रदुष्ट करके कुछ बोलता है या कार्य करता है तो उससे मिलने वाला विपाक उस व्यक्ति के पीछे पीछे वैसे ही हो लेते है जैसे बैल गाडी से बन्धे बैलों के पैरों के पीछे पीछे गाडी के पहिये(चक्के) हो लेते है।
(धम्मपद - यह गाथा तथागत ने श्रावस्थि में चक्खुपाल स्थविर को उद्देश्य कर बतायी है।)

सबका मंगल हो।

15/04/2023

नमो बुध्दाय !
हमारे भगवान बुद्ध को बावरी ब्राह्मण का शिष्य अजित माणवक प्रश्न पूछता है -
यह छह इन्द्रिय रूपी लोक किससे ढका हुआ है? छह इन्द्रिय रूपी लोक किससे प्रकाशित नहीं होता? इन छह इन्द्रिय रूपी लोक का आलेपन किसे कहते हैं? इन छह इन्द्रिय रूपी लोक में महाभय क्या है?

भगवान उत्तर देते हैं -
अविद्या से यह छह इन्द्रिय रूपी लोक ढका हुआ है । लोभ और प्रमाद के कारण ही प्रकाशित नहीं होता। तृष्णा इन छह छह इन्द्रिय रूपी लोक का आलेपन कहता हूँ। और इसके लिए बुढापा , रोग, मरण आदि दुख आना इसके लिए महाभय है।

अजित माणवक आगे प्रश्न पूछता है -
इन सभी छह इन्द्रियों में तृष्णा की नदी स्त्रोत बहती है, इन तृष्णा स्त्रोत का निवारण करने का उपाय क्या है? इन तृष्णा स्त्रोत को संयमित करने तथा पूर्णतः बन्द करने के उपाय के बारे में बताइये !

भगवान उत्तर देते हैं -
लोक में जो तृष्णा की नदियाँ स्त्रोत है स्मृति उसका निवारण करने का उपाय है, और इन तृष्णा स्त्रोत को संयमित करने तथा पूर्णतः बन्द करने के लिए विपश्यना प्रज्ञा ही है कहता हूँ।

अजित माणवक आगे प्रश्न पूछता है -
हे मार्श ! प्रज्ञा , स्मृति और नाम रुप कहा पूर्णतः निरुद्ध होते हैं आप से यह पूछता हूँ आप इसे बताएँ?

भगवान उत्तर देते हैं -
अजित तूने जो मुझे प्रश्न पूछा है उसे मैं बताता हूँ जहाँ नाम ( संज्ञा, वेदना, स्पर्श, चेतना, मनसिकार) रुप ( चार महाभूतों से बना शरीर) पूर्णतः यानी बिना शेष रहे निरुद्ध होता है वहाँ विज्ञान पूर्णतः निरुद्ध होता है, विज्ञान के पूर्णतः निरुद्ध होने पर इन सबका निरोध हो जाता है।

इसे ही निब्बान कहते हैं। इसे अवबोध करने के लिए क्रमशः विपश्यना भावना का अभ्यास करें।
वीर्य करने वाले व्यक्ति ही निब्बान की ओर अभिमुख होते हैं। सबके लिए रास्ता खुला है। आइये अपना मंगल साध ले।
सबका कल्याण हो।

।।बुध्द अमृत वाणी।।    ‘‘अट्ठानमेतं, भिक्खवे, अनवकासो, यं दिट्ठिसम्पन्‍नो पुग्गलो कञ्‍चि सङ्खारं निच्‍चतो उपगच्छेय्य, सु...
06/04/2023

।।बुध्द अमृत वाणी।।

‘‘अट्ठानमेतं, भिक्खवे, अनवकासो, यं दिट्ठिसम्पन्‍नो पुग्गलो कञ्‍चि सङ्खारं निच्‍चतो उपगच्छेय्य, सुखतो उपगच्छेय्य, कञ्‍चि धम्मं अत्ततो उपगच्छेय्य, मातरं जीविता वोरोपेय्य, पितरं जीविता वोरोपेय्य, अरहन्तं जीविता वोरोपेय्य, दुट्ठचित्तो तथागतस्स लोहितं उप्पादेय्य, सङ्घं भिन्देय्य, अञ्‍ञं सत्थारं उद्दिसेय्य नेतं ठानं विज्‍जती’’ति (म॰ नि॰ ३.१२७-१२८; अ॰ नि॰ १.२६८-२७६; विभ॰ ८०९)।
यह जो सम्यक दृष्टिवान व्यक्ति है वह किसी संस्कार को नित्य रुप में देखें, सुख के रूप में देखें, किसी धर्म को आत्मा के रूप में देखें असम्भव है। और वह माता की हत्या करें, पिता की हत्या करें, अरहन्त की हत्या करें, दुष्ट चित्त से तथागत के शरीर से खुन निकाले, संघ भेद करें, अन्य किसी उपास्य को अपना शास्ता गुरु माने यह असम्भव बात है, कभी न होने वाली बात है।
ऐसा सम्यक दृष्टि सम्पन्न श्रावक सच्चा बुध्द पुत्र होता है उसके लिए निब्बाण पाना निश्चित होता है।
लेकिन जो मिथ्या दृष्टि वाला है वह संस्कार को नित्य समझ सकता है, वह किसी धर्म को आत्मा समझ सकता है, माता पिता की हत्या कर सकता है। संघ भेद कर सकता है यानी वह खुद को जादा ज्ञानी समझ लेने के कारण जो भगवान ने कहा है वह नहीं कहा है कहता है। जो नहीं कहा होता है, वह कहा है कहता है। त्रिपिटक को जलाने झुठा कह सकता है ऐसा करता हुआ संघ भेद का महा पाप कमाता है। वह ऐसा पाप कमा कर एक कल्प तक निरय में पक सकता है। हात की कुल्हाड़ी पैरों पर मारने की तरह कोई जरुरत नहीं होती गलत तरीके से धम्म को बताने की। इसलिए सगज रहे सम्यक दृष्टि सम्पन्न बने, सच्चे बुध्द श्रावक बने। अच्छे गुणों को धारण करने से श्रावक बनते है जन्म से नहीं।
सबका मंगल हो।

।। ध्यान के कर्मस्थान का चयन।।  भगवान कहते हैं - ध्यान साधना के दो प्रकार है शमथ और विपस्सना। शमथ भावना के 40 कर्मस्थान ...
02/04/2023

।। ध्यान के कर्मस्थान का चयन।।
भगवान कहते हैं - ध्यान साधना के दो प्रकार है शमथ और विपस्सना। शमथ भावना के 40 कर्मस्थान है और विपस्सना के 48 है। संसार के हर व्यक्ति ने अपने पूर्व जन्मों में ध्यान का अभ्यास किया हुआ होता है। लेकिन क्लेशों के आवरण से वे संस्कार दस जाते हैं। जीन क्लेश की तीव्रता अधिक होती है, जीन संस्कारों की तीव्रता अधिक होती है उसके अनुसार व्यक्ति की पहचान बनती है चर्या बनती है। उस चर्या के अनुसार ही ध्यान के कर्मस्थान का चयन करना होता है। इसलिए भगवान सबको योग्य कर्मस्थान को बताते थे और श्रावक उसके अनुसार अभ्यास करता हुआ सफल होता था। इसलिए ध्यान भावना गुरू के पास ही सीखी जाती थी। सामान्य चर्या 6 प्रकार की होती हैं जैसे राग चर्या व्देश चर्या मोह चर्या वितर्क चर्या श्रद्धा चर्या और बुध्दि चर्या। इन्हीं 6 चर्या में सभी लोग आते हैं। व्यक्ति ने अपने चर्या स्वभाव को पूर्णतः समझकर उचित कर्मस्थान के अनुसार ध्यान करना चाहिए। जैसे राग चर्या के लोगों के लिए अशुभ कर्मस्थान लेकर ध्यान करना चाहिए। व्देश चर्या के लोगों ने मैत्री भावना का अभ्यास करना चाहिए। मोह चर्या के लोगों ने मरणस्सति अनित्य भावना का अभ्यास करना चाहिए। वितर्क चर्या के लोगों ने आनापानस्सति भावना करनी चाहिए। श्रद्धा चर्या के लोगों ने बुध्दानुस्सति आदि का अभ्यास करना चाहिए। बुध्दि चर्या के लोगों ने धातु आयतन पटिच्चसमुप्पाद आदि का अभ्यास करना चाहिए। इस क्रम से अभ्यास करने वाले बहुत शीघ्रता से उन्नति करते हैं। धर्म के महान प्रतिफल को पाते हैं।
इस उचित काल में उचित कर्मस्थान लेकर ध्यान भावना करने का प्रयास करे, मंगल होगा।

सब्बे सत्ता सुखी होन्तु।।
नमो बुद्धाय।।

तथागत बुद्ध की शिक्षा के अनुसार ध्यान अभ्यास सीखे और अपने मन के स्वामी बने। परम शांति आपका हमेशा अनुगमन करेगी। सचमुच मन ...
29/03/2023

तथागत बुद्ध की शिक्षा के अनुसार ध्यान अभ्यास सीखे और अपने मन के स्वामी बने। परम शांति आपका हमेशा अनुगमन करेगी। सचमुच मन का दमन करना सुखावह है।

23/03/2023

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