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01/26/2025
शरीर की सभी नसों को खोलने का आयुर्वेदिक समाधान....कपूर और नींबु कितने उपयोगी है...दिन में सिर्फ़ एक बार यह साधारण सा उपा...
01/25/2025

शरीर की सभी नसों को खोलने का आयुर्वेदिक समाधान....

कपूर और नींबु कितने उपयोगी है...दिन में सिर्फ़ एक बार यह साधारण सा उपाय करके देखिए, सिर के बाल से पैर की उंगली तक सारी नसें मुक्त होने का आपको स्पष्ट अनुभव होगा कि सिर से पैर तक एक तरह से करंट का अनुभव होगा, आपके शरीर की नसें मुक्त होने का स्पष्ट अनुभव होगा। हाथ–पैर में होने वाली झंझनाहट (खाली चढ़ना) तुरंत बंद हो जाती हैं,

◾पुराना घुटनों का दर्द और कमर, गर्दन या रीड की हड्डी (मणके) में कोई नस दबी या अकड़ गई है तो वह पूरी तरह से ठीक हो जाएगी, पुराना एड़ी का दर्द भी ठीक हो जाएगा।

◾इस उपाये से बहुत से लोगों के लाखों रुपए बच सकते हैं। पैर में फटी एड़ियां और डैड स्किन रिमूव हो जाती है और पैर कोमल हो जाते हैं और इसके पीछे जो विज्ञान और आयुर्वेद है.

◾यह उपाय करने के लिए हमें घर में ही उपलब्ध कपूर और नींबू, ये दो चीजें चाहियें। इस उपाय को करने के लिए डेढ़ से दो लीटर गुनगुना पानी लें, जिसका तापमान पैर को सहन होने जितना गरम हो, उसमे आधे नींबू का रस निचोड़े और फिर नींबू को भी उस पानी में डाल दें

◾फिर दूसरी चीज कपूर है–कोई भी कपूर हो। कपूर की तीन गोलिय् बारीक पीस कर उसका पाउडर बना लें, यह भी उस पानी में मिला लें, फिर पांच से दस मिनट तक पैरों को इस पानी में डाल कर रखें।

◾जैसे ही आप पैरों को पानी में डालेंगे, तो आपको इससे सिर से पैर तक एक तरह से करंट का अनुभव होगा। आपके सिर के बालों से पैर तक की सारी नसें मुक्त होने का स्पष्ट रूप से अनुभव होगा। इसका कारण यह है कि हमारे पैरों में 172 प्रकार के प्रेशर पॉइंट होते हैं, जो हमारे शरीर की सभी नसों के साथ जुडे होते हैं।

◾यह नींबू और कपूर वाला गुनगुना पानी इन 172 प्रकार के प्रेशर पॉइंट्स को मुक्त कर देता है और इससे शरीर की सारी नसें एकदम से रीएक्टिवेट हो जाती हैं और पूरी तरह से मुक्त हो जाती हैं, ऐसा अनुभव होता है।

◾इस उपाय में सिर्फ पांच से दस मिनट तक इस पानी में पैर डाल कर रखने है और यह दिन में कभी भी सुबह या शाम को कर सकते हैं।

◾इससे हाथ, पैर में होने वाली झनझनाहट (खाली चढ़ना) बंद हो जाती हैं और कोई नस दबी या अकड़ गई हो, तो वह खुल जाएगी और सिरदर्द भी इस उपाय से बंद हो जाता है।

◾जिन लोगों को माइग्रेन की तकलीफ हो वह भी, पानी में पैर रखने के साथ ही बन्द हो जायेगी। अगर स्नायु अकड़ गये हों या शरीर दर्द कर रहा हो तो यह उपाय करके देखिए।

◾इसका कोई साइड इफैक्ट नहीं है और यह उपाय सरल रूप से किया जा सकता है।

◾यह उपाय पांच दिन करना है। यह उपाय दिखने में तो सरल लगता है मगर इस का रिज़ल्ट बहुत ही अच्छा और असरदार होता है....आपको इससे नुकसान कुछ नहीं होगा फायदा ही होगा....🙏

01/24/2025
ॐ मंत्र की साधना पद्धति क्या है?पतंजलि के योग सूत्र के अनुसार, ओम का जाप या ध्यान इसका अर्थ और महत्व दिमाग़ में रखते हुए...
01/18/2025

ॐ मंत्र की साधना पद्धति क्या है?

पतंजलि के योग सूत्र के अनुसार, ओम का जाप या ध्यान इसका अर्थ और महत्व दिमाग़ में रखते हुए करना चाहिए। चूंकि ओम ईश्वर की प्रतिनिधि ध्वनि और प्रतीक है, इसलिए ओम का जाप करते हुए ईश्वर का ध्यान रखना जरूरी है। ओम का जाप करने की विधि इस प्रकार है:

1. किसी भी आरामदायक ध्यान करने के आसन में बैठ जायें, जैसे की पद्मासन, सुखासन, या सिद्धासन। रीढ़ की हड्डी, सिर, और गर्दन बिल्कुल सीधी रखें।

2. आंखों को बंद कर लें और एक गहरी साँस लें। अब साँस छोड़ते हुए ओम बोलना शुरू करें।

3. नाभि क्षेत्र में "ओ" आवाज़ से होने वाली कंपन को महसूस करें और इस कंपन को उपर की तरफ बढ़ते हुए महसूस करें।

4. जैसा आप मंत्र जारी रखते हैं, कंपन को गले की ओर बढ़ते हुए महसूस करें।

5. जैसे कंपन गले के क्षेत्र में पहुंचती हैं, ध्वनि को "म" की एक गहरी ध्वनि में परिवर्तित करें।

6. कंपन तब तक महसूस करें जब तक वह सिर के मुकुट तक ना पहुँचे।

7. आप इस प्रक्रिया को दो या ज़्यादा बार दोहरा सकते हैं।

8. अंतिम मंत्र जाप के बाद भी बैठे रहें और पूरे शरीर में ओम की ध्वनि की कंपन को महसूस करें - शरीर के हर एक कोशिका में महसूस करें।

9. ओम मंत्र का पाठ आपके शरीर में विभिन्न कंपन पैदा करता है, जो सिर से पैर तक पहुंचता है।

• 'ए' एक ऐसा कंपन पैदा करता है जो पेट, छाती और रीढ़ की हड्डी के क्षेत्र में महसूस होता है।

• अक्षर 'ऊ' का उच्चारण करने से " ओ" का कंपन उत्पन्न होता है। यह कंपन आपके सीने में गूंजता है, जो कि गले और शरीर के मध्य भाग में भी कंपन पैदा करता है।

• अंत में, 'म' शब्द का जाप करने से नाक और मस्तिष्क क्षेत्र में "म्मम" की गुनगुनाहट होती है। कंपन शरीर के ऊपरी हिस्से को ठीक करने में मदद करता है।

इस तरह, ओम मंत्र (om mantra) की ब्रह्मांडीय ऊर्जा एक व्यक्ति के पूरे शरीर में गूंजती है। यह मंत्र आपके जीवन में सकारात्मकता लाता है और आपको अंदर से तरोताजा होने का अहसास कराता है।

ओंकार ध्यान का वर्णन ‘छान्दोग्य उपनिषद्’में किया गया है। यह एक विशाल उपनिषद् है। ‘छान्दोग्य उपनिषद्’को 8 भागों में बांटा गया है। पहले भाग में ´ओंकार´ का ध्यानोपासना के भिन्न-भिन्न रूप में वर्णन किया गया है। वैदिक साहित्य में ´ओंकार´ का वर्णन इस प्रकार किया है कि ´ओंकार´ के ध्यान को ही जीवन का अंतिम लक्ष्य माना गया है। इसके अनुसार मानव जीवन में ´ओंकार´ ध्यान के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य होना चाहिए। ‘ऊँ’ का महत्व का वर्णन उपनिषद् में मिलता है। इस का वर्णन करते हुए कहा गया है कि ‘ऊँ’ का जप (पढ़ना) तथा ‘ऊँ’ ओंकार ध्यान के अभ्यास की विभिन्न स्थितियां-पहली स्थिति-

इसके अभ्यास के लिए सिद्धासन या पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं। कमर, गर्दन और पीठ को सीधा करके रखें। आंखों को बन्द कर ले और दोनों हाथों से अंजुली मुद्रा बनाकर नाभि के पास रखें। इसके बाद ‘ऊँ’ मंत्र का मधुर स्वर में बिना रुके जप करें। ओंकार ध्यान में ‘ऊँ’ का जप करते समय मन के साथ शरीर का अधिक प्रयोग करने से शरीर पूर्णरूप से ओंकार ध्वनि में लीन हो जाता है। ध्यान रखें कि ‘ऊँ’ का जप करते समय अपनी पूर्ण शक्ति को ओंकार के जप में ही लगाना चाहिए। ‘ऊँ’ को पढ़ने की क्रिया लयबद्ध एवं शांत भाव से करना चाहिए। इस तरह ओंकार का जप करने से शरीर और मन में अदृश्य रूप से एक अनुपम कम्पन होने लगता है, शरीर में उत्पन्न होने वाली यह कम्पन ही ओंकार ध्वनि की लहरें होती हैं। ‘ऊँ’ से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंग ही शरीर के चारों तरफ फैलने लगती है, जो शून्यता के भाव से अद्भुत रूप से ध्वनित होते हुए बाहरी वातावरण से टकराकर वापस आती है। इससे आस-पास का वातावरण शांत होता है तथा शरीर आनन्द का अनुभव करता है। ‘ऊँ’ का जप लयबद्ध रूप से बिना रुकावट के करना चाहिए। ओंकार जप लगातार करना चाहिए जैसे- ऊँऊँऊँऊँऊँऊँ…………। ‘ऊँ’ जप के बीच में कोई भी खाली जगह नहीं बननी चाहिए। इससे मन में अन्य भावनाएं उत्पन्न हो सकती है। इस तरह ओंकार ध्यान करने से उत्पन्न ध्वनि के कारण ध्यान वाले स्थान ‘ऊँ’ मय हो जाता है और पुन: वही ध्वनि चारों तरफ से टकराकर वापस आकर सुनाई देने लगती है। इस ध्वनि तरंग को सुनकर रोम-रोम प्रसन्न और पुलकित होने लगता है, जिससे शरीर स्वास्थ्य एवं शांत होता है। इससे बहुत सी शारीरिक समताएं अपने आप समाप्त हो जाती है, क्योंकि इस प्रक्रिया से अन्नमयकोश एवं प्राणमयकोश दोनों प्रभावित होते हैं। इनकी शुद्धता पर ही शरीर का बाहरी तथा भीतरी स्वास्थ्य निर्भर है। इस ‘ऊँ’ कार ध्यान के अभ्यास से ही सूक्ष्म शरीर का पूर्ण ज्ञान सम्भव है। ‘ऊँ’ कार के जप से शरीर ‘ऊँ’ रूपी जल स्नान में मग्न (लीन) होकर एक अलौकिक शांति, पवित्रता एवं शीतलता का अनुभव करता है। उपनिषदों के अनुसार तत्व और प्राण (जीवन) द्वारा शरीर की उत्पत्ति हुई है। अत: शरीर ध्वनि का ही अंश है। इस तरह ‘ऊँ’ का जप प्रतिदिन 15 मिनट तक जोर-जोर से करना चाहिए। इससे पूरा शरीर, मन और वातावरण ‘ऊँ’ मय हो जाता है।

दूसरी स्थिति-

पहली स्थिति में ‘ऊँ’ का जप करने के बाद दूसरी स्थिति में ‘ऊँ’ का जप करें। इसमें ‘ऊँ’ का जप मन में किया जाता है। इसके लिए आसन में रहते हुए होंठों को बन्द कर लें और जीभ को तालू से लगाकर रखें। इस स्थिति में मुख, कण्ठ एवं जीभ का उपयोग नहीं किया जाता। इस तरह की शारीरिक स्थिति बनाने के बाद ‘ऊँ’ का जप मन ही मन जोर-जोर से करें। मन में बोलने व सुनने की गति पहली वाले स्थिति के समान ही लयबद्ध रखनी चाहिए। इस तरह ‘ऊँ’ का जप करते समय ढीलापन या रुकावट नहीं आनी चाहिए। इस ध्यान क्रिया में ओंकार जप से उत्पन्न ध्वनि शरीर के अन्दर ही गूंजती रहती है तथा इसमें सांस लेकर रुकने की भी कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। इस क्रिया को बिना रुके लगातार करते रहें ‘ऊँ’ मंत्र से उत्पन्न ध्वनि को जप के द्वारा शरीर के अन्दर इस तरह भर दें कि सिर से पैर तक ‘ऊँ’ ध्वनि से उत्पन्न कम्पन अपने-आप ‘ऊँ’ मंत्र को दोहराने लगें। इस तरह मन ही मन ‘ऊँ’ मंत्र का जप एकांत में बैठ कर जितनी देर तक सम्भव हो उतनी देर तक अभ्यास करें। ‘ऊँ’ जप के बीच में कोई खाली स्थान न छोड़े, क्योंकि इससे मन में अन्य विचार उत्पन्न हो सकता है। इसलिए ‘ऊँ’ मंत्र का जप लगातार करना चाहिए। इस तरह ओंकार ध्वनि का ध्यान करने से धारणा शक्ति बढ़ती है और समाधि के लिए अत्यन्त लाभकारी होती है। मन ही मन में ‘ऊँ’ का जप करते समय जीभ का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस क्रिया में शरीर को स्थिर व मन को शांत रखना चाहिए तथा ‘ऊँ’ ध्वनि से निकलने वाली तरंगों का अनुभव करना चाहिए। इसमे ध्वनि तरंग आंतरिक शरीर व मन से टकराकर अन्दर ही अन्दर गूंजती रहती है। पहली स्थिति में ‘ऊँ’ जप से शरीर शुद्ध होकर मन ही मन जप के योग्य बनता है और मन ही मन ‘ऊँ’ जप करके मन शुद्ध व निर्मल बनता है, जिससे बुरे मानसिक विचार दूर होते हैं। इस ध्यान से शरीर और मन दोनों ही ‘ऊँ’ मय हो जाते हैं। इससे मन शांत होकर ईश्वर शक्ति का ज्ञान प्राप्त करता है और व्यक्ति समाधि की प्राप्ति करता है। इस क्रिया का अभ्यास प्रतिदिन 15 मिनट तक करना चाहिए। इससे मनोमयकोश एवं विज्ञानमयकोश शुद्ध होता है। उत्तरोत्तर कोश के शुद्ध हो जाने पर आनन्दमयकोश द्वारा परमानन्द की प्राप्ति होने लगती है। अन्नमयकोश एवं प्राणमयकोश रोगों को शरीर में प्रवेश नहीं करने देते जिससे स्थूल शरीर स्वस्थ और सजग बना रहता है। मनोमयकोश एवं विज्ञानमयकोश की शुद्धता के फल स्वरूप सूक्ष्म शरीर का बोध होता है। इस से सूक्ष्म शरीर में किसी भी प्रकार का दोष प्रवेश नहीं कर पाता। उपनिषदों के अनुसार दोष सूक्ष्म रूप ही रोग का कारण है। ‘ऊँ’ मंत्र का मानसिक जप व ध्यान करने से शरीर के 5 कोशों का ज्ञान होता है जिससे तुरीय अवस्था में चेतना तत्व का ज्ञान होता है। यह चेतना तत्व शरीर का मूल स्रोत है। जब ‘ऊँ’ कार ध्यान का अभ्यास करते हुए व्यक्ति को कारण, स्थूल तथा सूक्ष्म शरीर का ज्ञान प्राप्त होने के बाद व्यक्ति ज्योति में लीन हो जाता है तो इसी अवस्था विशेष को निर्बीज समाधि कहते हैं।

तीसरी स्थिति-

इस क्रिया के अभ्यास में मन के द्वारा ‘ऊँ’ का जप करना बन्द कर दिया जाता है और केवल आंतरिक भाव से ‘ऊँ’ के जप से उत्पन्न ध्वनि का अनुभव किया जाता है। इस क्रिया में ऐसा अनुभव करें कि ‘ऊँ’ ध्वनि का उच्चारण आंतरिक शरीर में अपने आप हो रहा है। इस तरह मन में विचार करते हुए ध्यान से आपको अनुभव होने लगेगा की शरीर के अन्दर ‘ऊँ’ की सूक्ष्म ध्वनि गूंज रही है। इस तरह का अनुभव होने लगेगा की सभी जगह ´ऊँ ऊँ´ का जप हो रहा है। ‘ऊँ’ ही ‘ऊँ’ की ध्वनि सुनाई दे रही है। उसी ध्वनि पर अपने ध्यान को लगाएं। ´ओंकार ध्वनि तरंग ध्यान का जप में पहले ध्याता, ध्यान और ध्येत तीनों मौजूद होते हैं। परन्तु पहली स्थिति में ´ओंकार जप के द्वारा ध्याता शरीर से हट जाता है। फिर दूसरी स्थिति में ध्याता को मानसिक जप द्वारा मन से भी हटाया जाता है। इन दोनों प्रक्रिया में ध्याता पूर्ण रूप से गायब (लोप) हो जाता है। केवल ध्यान और ध्येय बचा रह जाता है। तीसरी स्थिति में ‘ऊँ’ का जप करने से केवल ध्येय ही बचा रह जाता है जो ‘ऊँ’ कार ध्यान साधना विधि का फल है। इसलिए ध्यान के लिए ‘ऊँ’ से अदभुत कोई मंत्र नहीं है। इस ‘ऊँ’ ध्वनि तरंग ध्यान की विधि में पहली 2 अवस्थाओं में ‘ऊँ’ को बोलकर और मन के द्वारा जप किया जाता है। परन्तु तीसरी स्थिति में आंतरिक भाव से ‘ऊँ’ मंत्र का केवल अपने अन्दर अनुभव किया जाता है। पहली 2 स्थितियों तक कर्ताभाव से हम ध्यान करते हैं क्योंकि शरीर और मन कर्तव्य का हिस्सा है। परन्तु तीसरी स्थिति में आंतरिक भाव से मंत्र को सुनते हैं। इससे सिर्फ शुद्ध चेतन्य बचती है। वही सर्वस्थित ´ओंकार ब्रह्म है। यही ´ओंकार ध्यान साधना विधि है। इस तरह प्रतिदिन ´ओंकार ध्यान साधना का अभ्यास करें। इस आसन में बैठकर पहले ‘ऊँ’ मंत्र को पढ़कर अभ्यास करें, दूसरे में मन ही मन ‘ऊँ’ को पढ़ें और तीसरी अवस्था में केवल अपने भाव के द्वारा उस ध्वनि तरंग को अनुभव करें। अभ्यास के बाद अपने आप को ध्यानावस्था से मुक्त करके बाहरी संसार का अनुभव करें, शरीर तथा स्थान का ध्यान करें। अपने कामों का ध्यान करें। इसके बाद ईश्वरकृत प्राकृतिक दृश्यों की कल्पना करें- ´´मेरे चारों ओर हरे-भरे पेड़-पौधे और फूलों-फलों का पेड़ है। मै जिस स्थान पर ध्यान का अभ्यास कर रहा हूं वहां के स्वच्छ व शांत वातारण में स्वच्छ पानी के बहाव वाली नदी बह रही है तथा एक सुन्दर पर्वत है जिसके बीच बैठकर मैं यह ध्यान का अभ्यास कर रहा हूं। इस तरह के प्राकृतिक दृश्य का अनुभव करने से शरीर स्वस्थ और मन प्रसन्न होता है। ऐसा अनुभव करने के बाद दोनों हथेलियों को आपस में रगड़कर चेहरे पर तथा आंखों पर लगाएं। इसके बाद आंखों को हथेलियों से ढक दें और फिर खोलें। आसन त्याग करने के बाद 5 से 10 मिनट तक पीठ के बल लेटकर श्वास क्रिया करें। श्वसन क्रिया के बाद कुछ क्षण तक मौन रहना चाहिए और फिर अपने दैनिक कार्यों पर लौट जाना चाहिए। इस प्रकार ओंकार ध्यान साधना का अभ्यास एक महीने तक फल की इच्छा के बिना करना चाहिए। इस ध्यान साधना का अभ्यास करना पहले कठिन होता है परन्तु प्रतिदिन अभ्यास करने से यह आसानी से होने लगता है। इस क्रिया में सफलता प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मन को अपने वश में करके एकाग्र करना चाहिए। ध्यान क्रिया में जल्दबाजी करने से लाभ के स्थान पर हानि होने की सम्भावना रहती है और मन में इससे ऐसी भावना पैदा होना ही इस की सफलता में सबसे बड़ी बाधा है। इसलिए इस का अभ्यास को धैर्य व साहस के साथ करना चाहिए। यदि ‘ऊँ’ ध्यान साधना विधि का अभ्यास फल की इच्छा के बिना किया जाएं तो कुछ महीने में ही सफलता प्राप्त हो सकती है। इस क्रिया में ओंकार मंत्र को अंतर आत्मा में इस तरह चिंतन किया जाता है कि कुछ समय में ही व्यक्ति को दिव्य शक्ति व ज्ञान प्राप्त होने लगता है। भारतीय आस्तिक दर्शनों में ओंकार मंत्र को बीज कहा गया हैं और जिस तरह बीज को जमीन से निकाल लेने पर पेड़ नहीं बनते, उसी तरह ओंकार मंत्रों को अंतर आत्मा में पूरी श्रद्धा के साथ धारण न करने पर सफलता प्राप्त नहीं होती। परन्तु अंतर मन के साथ इस साधना को करने से अच्छा परिणाम मिलता है। उसी ब्रह्म को उपनिषदों में नेति कहा गया है। जब ध्यान में मन लीन होने लगता है तो संसार स्वत्नवत हो जाता है और ध्यान करने वाला व्यक्ति साक्षी हो जाता है। इस तरह ध्यान करने से मनुष्य को ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त होता है और उसे अनुभव होता है कि यह संसार एक स्टेज है और जीवन एक अभिनय। यह ज्ञान ही जीवन मुक्ति है और कैवल्य या परम पद है। महर्षि पतांजलि ने कहा है कि जब मनुष्य अपने स्वरूप को जान लेता है तो वह सुख की कामना नहीं करता और न ही दु:ख से बचाव की ही कामना करता है। क्योंकि इस ध्यान साधना से उसे ज्ञान हो जाता है कि सुख और दु:ख केवल बाहरी साधना है। ओंकार साधना से बाहरी सम्बंध टूट जाते है और मन अंतर आत्मा में स्थित और स्थिर हो जाता है। काम, क्रोध, लोभ व मोह का नाश होकर अन्दर केवल आनन्द ही आनन्द रहता है। वह ईश्वर के चिंतन में लीन होने लगता है। ‘ऊँ’ मंत्र उसके श्वास-प्रश्वास में बहने लगता है। ´अणेरणीयान महतो महीयान´ अर्थात ओंकार ध्यान साधना के द्वारा व्यक्ति संसार के सभी पदार्थों में ईश्वर का अनुभव करने लगता है।उसे यह ज्ञान हो जाता है कि संसार के सभी वस्तुओं में ब्रह्म मौजूद है। इस कैवल्य-अवस्था में आरूढ़ व्यक्ति में संसारिक वस्तुओं के प्रति इच्छाओं का नाश हो जाता है तथा मन में किसी तरह की कोई इच्छा नहीं रह जाती। इस तरह मन की इच्छा का नाश होने के कारण व्यक्ति संसार के जीवन, मरण के चक्र से मुक्त होकर हमेशा के लिए ईश्वर के पास चला जाता है। इसके बाद आत्मा का न कभी जन्म होता है और न ही कभी मृत्यु। जीवन और मन की क्रिया तब तक होती रहती है, जब तक इच्छाओं का नाश नहीं हो जाता। मनुष्य अपने जीवन में जिस वस्तु या सुख आदि की कामना करता है उसका उसी इच्छाओं को लेकर नए रूप में जन्म लेता है। ओंकार ध्यान साधना से सम्पूर्ण मायावी आकांक्षा रूपी बीज बन जाती है। ओंकार ध्यान साधना से भी सभी महत्वकांक्षाओं का नाश होकर केवल ईश्वर की इच्छा रह जाती है। तत्त्ववेता ऋषियों ने भी उपरोक्त जन्म मरण के कारणों को स्वकथन द्वारा पुष्ट किया है-

मृतिबीजं भवेज्जन्म जन्मबीजं तथा मृति:। घटीयंत्रवदाश्रान्तो बम्भ्रमीत्य निशंनर:।।अर्थात जन्म मृत्यु का बीज है और मृत्यु जन्म का बीज है। मनुष्य निरन्तर घड़ी की सुई की तरह बिना आराम किए बार-बार जन्म और मरण के चक्कर में घूमता रहता है। अत: ओंकार ध्यान साधना से मानव जीवन के उस चक्र से मुक्ति मिल जाती है।

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01/18/2025

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01/15/2025

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Sleeping On Your Left Side Affects Your Health In Ways You Would Have Never Thought.Your overall health can be significa...
12/29/2024

Sleeping On Your Left Side Affects Your Health In Ways You Would Have Never Thought.

Your overall health can be significantly influenced by the sleeping position you choose. Although there are several sleeping positions – side, back, and stomach – sleeping on your left side has been discovered to provide numerous health benefits, each position having its own set of variables. Let’s explore how this specific sleeping position can positively affect your health

Benefits of Sleeping on Your Left Side:
👉Prevents Nighttime Heartburn:
👉 Improves Spleen Function:
👉 Helps Liver Detoxification:
👉 Enhances Lymphatic System Drainage:
👉 Beneficial for Pregnant Women:
👉 Aids in Heart Function:
👉 Promotes Healthy Bowel Movement

✅ Benefits of Sleeping on Your Left Side:
Prevents Nighttime Heartburn:
Individuals dealing with gastroesophageal reflux disease (GERD) or acid reflux may find it advantageous to sleep on their left side. This position helps maintain the stomach below the esophagus, lowering the risk of acid flowing back into the esophagus.

Improves Spleen Function:
The spleen, a component of the lymphatic system, is situated on the left side of the body. Choosing to sleep on the left side can assist the spleen in operating more effectively by promoting increased blood flow, which, in turn, supports the filtration of impurities.

Helps Liver Detoxification:
Given that the liver is positioned on the right side of the body, sleeping on your right side may lead to congestion. Opting to sleep on the left side facilitates improved neutralization and processing of toxins and substances by the liver.

Enhances Lymphatic System Drainage:
The lymphatic system, responsible for removing toxins, benefits from left-side sleeping. This position allows for more effective drainage into the thoracic duct located on the left, thereby facilitating the removal of bodily toxins and using escaped proteins from cells.

Beneficial for Pregnant Women:
Particularly in the last trimester, sleeping on the left side offers several advantages for expectant mothers. It alleviates pressure on the liver, enhances blood circulation, and supports normal heart function. The left-side position also helps in the efficient movement of waste from the small to the large intestine, utilizing gravity to stimulate regular bowel movements and enhance waste elimination.

Aids in Heart Function:
Since the left side of the heart pumps blood towards the body, sleeping on your left side can facilitate heart function during sleep. This position allows the circulatory system to harness gravity, aiding in arterial circulation and reducing the heart’s workload.

Promotes Healthy Bowel Movement:
The ileocecal valve, which connects the large and small intestines, is situated on the left side. Sleeping on this side can promote the seamless movement of waste from the small to the large intestine, contributing to regular bowel movements with the assistance of gravity.

Sleeping on your left side can be a beneficial habit for your health, though it might take some time to get used to. Initially, it may feel uncomfortable, but persistence can lead to habit formation and realization of these health benefits. If you’re considering making a change to your sleeping habits, trying out the left-side position could be a simple yet effective way to enhance your overall health and well-being.

यदि आप ध्यान का तत्वमिमान्सा को समझते है तो ध्यान में बैठने से आपकी आंतरिक स्थिति का ज्ञान होगा , इसी को  ही स्वयं मे भी...
12/01/2024

यदि आप ध्यान का तत्वमिमान्सा को समझते है तो ध्यान में बैठने से आपकी आंतरिक स्थिति का ज्ञान होगा , इसी को ही स्वयं मे भीतर उतरना या अंतर्मुखी होना कहते हैं। आपके मस्तिष्क में संसार के लोगों की , संसार की स्मृतियों की भारी भीड़ है, जो आपको एकान्त में भी शान्ति से बैठने नहीं देती। दुनिया की आवाजें है, दुनिया की बातें हैं, दुनिया की अनेक कड़वी और मीठी स्मृतियाँ हैं। आप देखें तो आपके मस्तिष्क में भरी संसार के लोगों की और संसार की स्मृतियों की घुड़दौड़ ने एकान्त के क्षणों की भी आपकी शान्ति छीन ली है। आप ज़रा सा शान्त बैठेगें, तो वो सब याद आयेगा और आपको परेशान करेगा। किसी की बात को याद करके आप हंसोगे तो किसी की बात को याद करके जलोगे, किसी की बात को याद करके आप में घृणा का भाव आएगा तो किसी की बात को याद करके आप में उसके प्रति आसक्ति जागेगी, किसी की बात को याद करके‌ आपको धन का ध्यान आयेगा तो किसी की कोई बात याद करके आपको ध्यान आयेगा कि उस व्यक्ति ने मेरा बड़ा नुकसान किया और उससे बदला लेने की भावना आपमें आयेगी।
यह ध्यान की महिमा है जो आपकी वस्तुस्थिति से आपका परिचय कराती है। अपने अंतस को खाली किए बिना आप ज्ञानी नहीं बन सकते। जानकारी तो आपकी स्मृति का अंग बनती जा रही है। इसलिए अपने में ध्यान को जाग्रत करें। यही साक्षी ओर दृष्टा बनने में आपकी सहायता करेगा।
आप ध्यान करना शुरू करें चाहे जिस भी विधि से करें।आप जिस भी विधि से ध्यान करे लेकिन उसका तत्वमिमान्सा को समझ ले| तव आपका प्राण शक्ति जो मूलाधार में सोई पड़ी है वो ऊपर उठने लगेगी। और उसका ऊपर उठने का एक ही रास्ता है सुषुम्ना नाड़ी।

आप के चक्र ध्यान करने से जागृत होने लगेंगे क्योंकि चक्र सुषुम्ना नाड़ी में ही होते हैं । सुषुम्ना नाड़ी में संचित कर्म भी होते है। संचित कर्म को ध्यान के द्वारा जरुर समाप्त कर सकते हैं या उनका प्रभाव कम कर सकते हैं। जैसे आप ध्यान करते जाते है प्राण शक्ति ऊपर उठने लगती है। और सुषुम्ना नाड़ी में जो संचित कर्म जमा हैं उन्हें जलाने लगती है। जब वो कर्म पूरी तरह से जल जाते हैं या समाप्त हो जाते हैं तभी अंतस में आत्मप्रकाश होता है।

जो भी हम ज्ञान बाट रहे वो ज्ञान भी आपके पास नहीं रहेगा ये अनुभव को भी इस संसार में छोड़ कर जायेगे  जो स्वयं के यात्री हो...
10/23/2024

जो भी हम ज्ञान बाट रहे वो ज्ञान भी आपके पास नहीं रहेगा ये अनुभव को भी इस संसार में छोड़ कर जायेगे जो स्वयं के यात्री हो जगत में ,,हम कुछ भी बाट नहीं रहे हैं मा की कृपा जो भेज रहे वो वो आपके लिए है सभी आप तत्व है आत्म तत्व को प्राप्त ओर ओर मोक्ष के द्वारा आप के खुल जायेगे कोई आदमी चुक ना जाए इस लिए निस्वार्थ लिख कर छोड़ रहा हु और वो आगे बढ़ेंगे लिए आप मंजिल आप ही हो किसकी भी संसार के मार्ग ऊपर आप चुनोगे तो अंत में सिर्फ आपको आपके तत्व को ही पाना हे और उस विराट ऊर्जा में समाहित हो जाना है मंजिल संबंकी एक ही है रास्ते अलग अलग हे सबसे छोटा रास्ता स्वयं को समझ स्वयं जीना स्वयं को जीना और स्वयं स्थित होना आंखों बीच आंखे बंध करके ध्यान से सिर्फ देखना। जो भी होता हे होने दीजिए ना कुछ बोले ना कुछ सोचे जो विचार आते वो भी धीरे धीरे खत्म हो ते जायेगे। शुरुवात आप से 5 शुरू मिनिट दीजिए खुद को फिर धीरे धीरे ध्यान का समय आप बड़ा ते जाव ओर आप खुद अनुभव पाते जाओगे प्रकाश पूज आपको दिखेगा आवश्य ये बात अनुभव की हे फिर आप सबकुछ जान जाओगे आपको किसीको भी पूछने जरूरत नहीं रहेगी मार्ग खुद चल के आपके पास आता जाएगा शिव तत्व शक्ति की ऊर्जा आप को रास्ता दिखाती जाएगी हमारा शिव शक्ति प्रणाम करते जाए और आगे बढ़ते जाएं

आप सभी को मेरा कोटी कोटी प्रणाम
ॐ महाकाली शिव शक्ति तुहि 🙏🪔🌷

3rd Eye: तीसरा नेत्र - Pineal Gland:When your Pineal Gland 👁️ starts to work properly and your aura becomes huge and pow...
09/23/2024

3rd Eye: तीसरा नेत्र - Pineal Gland:
When your Pineal Gland 👁️ starts to work properly and your aura becomes huge and powerful, you don't only see people around you, but you feel everything about them, their emotions, their frustrations, their fears, their internal lies, you perceive their energetic field, especially if affected by negative charge, you become so sensitive, every Word not said Is like a sword that can cut through your skin.

It might happen that somebody could Unconsciouly feel the need to step into your energetic field to restore his own One, it's up to you how to allow that, please bear in mind that your aura extends now for many meters and can shift entire Neighborhoods, when you walk among the streets you are cleansing the quantum field from negative charge.

The best way to be always on a High vibration without being affected by those around you is to focus on lovely thoughts about how to be more in Service to Others.

It's like a command to your Aura: be sealed and strong, heal everywhere you go, nothing and nobody except Love can enter Here.
I Am.
You Are.
We Are.
Oneness.
Universal Consciousness..

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